प्रताप गढ़ फार्म , झज्झर

परीक्षाओं का तनाव और परिणाम की बैचैनी से जब आपके बच्चों का मन पदाई से ही उचाट होने लगे तो ऐसे में उनका मनोबल बनाये रखने के लिये सबसे बेहतरीन विकल्प है उन्हें इन कठिन दिनो के गुजरते ही एक अच्छी छुट्टियाँ देने का वादा ! इसी नजरिये को सामने रखते हुये, इन दबे कुचले बच्चों में एक बार फिर से जीवन संजीवनी भरने के उद्देश्य से हमारे और त्यागी जी के परिवार ने कहीं एक अच्छा रविवार का दिन गुजारने का मन बनाया | एनसीआर में आपकी शाम और रात रंगीन बनाने के लिये तो बहुतेरे अड्डे हैं पर यदि आपने परिवार के साथ एक अच्छा दिन भर का समय बिताना हो तो आपको इससे बाहर देखने की आवश्यकता पड़ ही जाती है | अनेकों विकल्पों को जांचते परखते हुये हमने तुषार की विशेष अनुशंसा पर प्रतापगढ़ फॉर्म को चुना, क्यूंकि वो पहले भी यहाँ अपने स्कूल ट्रिप पर आ चुका था |

रविवार का दिन, सुबह जल्द ही बिस्तर त्याग करना यूँ तो मुश्किल होता है मगर जब बात कहीं घूमने जाने की हो तो बड़ों से पहले, बच्चे ही बिना अलार्म जाग कर आपको भी उठने को मजबूर कर देते हैं | तैयारी करने के नाम पर आपको अपने backpack में तौलिया और नहाने के कपड़े ही रखने हैं, और फिर, सुबह के 9 बजते-बजते एक कप चाय पी कर हमारा कारवां अपनी मंजिल पर निकलने को तैयार था | गुढ़गाँव से 50 किमी दूर सुल्तानपुर-रोहतक मार्ग पर झज्झर कस्बा और इससे लगभग 5 – 6 किमी और आगे तलाया गाँव में, जिसके लिये आपको मुख्य सडक को छोडकर उलटे हाथ की तरफ उतरना पड़ता है, स्थित प्रताप गढ़ फार्म! हरे-भरे खेतों के बीच में स्थित, यह स्थान विगत कुछ अरसे में ही एनसीआर क्षेत्र के लोगों में बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुआ है, सम्भवत: जिसका एक प्रमुख कारण स्कूलों और कार्पोरेट्स द्वारा यहाँ प्रायोजित होने वाले टूर ही है | और फिर, ‘साडी दिल्ली’ के घूमने के शौक़ीन नवधनाढ्य मध्य वर्ग से ऐसी कौन सी जगह अछूती रह गयी है, जो यह रह पाती !

 Supply of potable water is still carried out in Jhajjar through these types of mobile tankies

Supply of potable water is still carried out in Jhajjar through these types of mobile tankies


We are coming dear, thanx for telling us the way!

We are coming dear, thanx for telling us the way!

मुख्य सड़क से नीचे उतरते ही आपको लगभग दो से तीन किमी का कच्चा रास्ता लेना पड़ता है, धुल-मिट्टी से उसरित सडक, दोनों तरफ छितरे खेत, आपको अपनी मंजिल के बारे में और ज्यादा रोमांचित करती है | यूँ तो फाल्गुन, अर्थात मार्च का महीना, उत्तर भारत में गरमी की शुरुआत ले कर आता है, मगर शायद आज कुदरत का वरदहस्त हम पर था कि सुबह से आसमान बादलों से आच्छादित था, और हिमालय की पहाड़ियों से चली शीतल हवा अपनी ठंडक को काफी हद तक अपने में समेटे हुये थी | बीच रास्ते ही जब बूँदाबाँदी भी शुरू हो गयी, और सडकों पर जमा धूल-मिट्टी बैठ गयी, तो आखिरकार हमे भी AC का मोह त्याग कर अपनी कार के शीशे थोड़े-थोड़े ही सही, पर नीचे करने पड़े, आखिर ये भी तो प्रकृति के साथ ज्यादती होती जब हम ऐसे मौसम में भी अपनी कार के शीशे चड़ा कृत्रिम अनुकूलित वायु के मोह में पड़ें, यकीन मानिये, गुडगाँव जैसे शहर में, जहाँ गरमी का मतलब सिर्फ और सिर्फ धूल-रेतीली मिट्टी और गर्म हवा ही होता है,ऐसा मौसम नसीब होना दुर्लभ ही होता है और फिर जब कभी मौका मिले, इसे हाथों-हाथ ले लेने में ही समझदारी है | कच्ची सडक, जो कि हल्की फुहार के बाद गीली है, और कहीं कहीं हल्का कीचड़ भी इकटठा हो गया है, हमारी कार हिचकौले खाते हुए, गुजर रही है | आपके आस पास दूर दूर तक फैले खेत, जिनमे से अधिकतर में सरसों काटी जा चुकी है, बिखरे पड़े हैं, बारिश के कण इन खाली खेतों में बेहद मनोहारी दिखते हैं और भले कुछ पल के लिये ही सही, एक नयनाभिराम दृश्य आपके सामने उपस्थित करते हैं | यदि आप सचमुच वाले भाग्यशाली हैं तो यहीं-कहीं इन खेतों में आपको मोर भी दिख जाते हैं, वो भी पूरी ठसक के साथ अपने पंख फैलाये हुये! जल्द ही आपको अपने आस पास कुछ और भी कारें नज़र आने लगती हैं, सम्भवता इनमे भी वही लोग हैं जो आप की ही तरह प्रताप गढ़ ही जा रहे हैं |

The way to reach there starts giving you the village experience before reaching there!

The way to reach there starts giving you the village experience before reaching there!

Finally, we are here!

Finally, we are here!

15 मिनट की ये यात्रा आपको इसलिये भी रोमांचित करती है कि यूँ तो फाल्गुन शुरू हो गया है पर इस वर्ष शीत का प्रकोप कुछ लम्बा चलना के कारण, शीत ऋतु अभी गुजरने की अवस्था में है, कुछ दिनो में ही होली का पर्व है, ऐसे में इस पतझड़ वाली अवस्था में मेह की बूंदे मिट्टी पर गिर उस सोंधी खुशबू को उभारती है, जिसकी सुगन्धि से आज का शहरी वर्ग अछूता सा ही रह गया है !

कुल जमा, डेढ़ घंटे के लगभग लगता है, आपकी इस यात्रा को, क्यूंकि अमूनन रविवार के दिन सड़कें खाली सी ही हैं और अभी दिन की शुरुआत हुई ही है, अत: सडकों पर ट्रेफ्फिक का ज्यादा दबाव नही है | कहीं कहीं सडक के किनारे आपको बेर और अमरुद बेचने वाले भी दिख जाते हैं, जो सडक के दोनों और स्थित आस-पास के बागों से मौसम के अनुसार अलग-अलग फल बेचने आ जाते हैं |मनोहारी आबो-हवा में ही आप जैसे ही झज्झर पहुँचते हैं, जगह जगह मोबाइल पानी की टंकियां देख आपको आपको एहसास होता है कि आज भी झज्झर की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की उपलब्धता की ही है और शायद यही इकलौता कारण है इसके अल्प विकसित रह जाने का | अन्यथा दिल्ली, गुढ़गाँव और रोहतक, तीन महत्वपूर्ण शहर और तीनो से ही यह शहर, मोटे तौर पर समान दूरी पर स्थित, पर फिर भी उपेक्षित! वैसे, हाल के कुछेक वर्षों से झज्झर शिक्षा और उद्योगों के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाने का गंभीर प्रयास कर रहा है | मशहूर क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी अपना स्कूल झज्झर में ही बनाया है, यानि कुल मिलाकर यह क्षेत्र अब शिक्षण गतिविधियों का एक हब सा बनने के लिये प्रयासरत है |

साढ़े दस बजे का समय है जब हम अपनी कार, फार्म की पार्किंग में लगा देते हैं और फिर टिकट खरीदने के लिये लाइन में लग जाते हैं | दो तरह की टिकटे हैं, वयस्कों के लिये, 780/- रुपल्ली में और बच्चों के लिये 425/- रुपल्ली में(5 साल से कम), जिसमे आपका नाश्ता, दोपहर का भोजन और वो सारे खेल और गतिविधियाँ सम्मिलित हैं जो इस फार्म में उपलब्ध करवाये गये हैं |आपको हर टिकट के लिये एक कार्ड दिया जाता है जिसमे सारी गतिविधियाँ अंकित हैं जैसे ही आप किसी ऐसी गतिविधि (मसलन- ऊँट की सवारी, निशानेबाजी, त्रैम्पोलिन इत्यादि) को करते है, तो वहाँ खड़ा स्टाफ उस पर पंच कर देता है, अन्यथा बाकी सब गतिविधियाँ आप जब और जितना चाहें, बेरोकटोक कर सकते हैं |

फार्म के अंदर प्रवेश करते है आपका सामना एक ऐसे ग्रामीण परिवेश से करवाने की चेष्टा की गयी है, जिसे बहुत यत्नपूर्वक और सूषमता से निर्मित किया गया है | शहरी चकाचौंध और मॉल कल्चर से उकताये लोगों के लिये ये ग्रामीण परिवेश निश्चित ही एक सुखद अनुभूति का अहसास तो करवाता ही है, और ऊपर से आज का रूमानी मौसम, परिवार के संग इससे बेहतर आप और क्या चाह सकते
हैं! प्रवेश द्वार के समीप ही कुछ लोक कलाकार अपने पारम्पिक वादःसंगीत यंत्रों के साथ स्वर-लहरियां बिखेर आपके आगमन को इस्तकबाल करते प्रतीत होते हैं |

सपेरे वाली बीन निश्चित रूप से सबके आकर्षण का केंद्र है जो आस-पास खड़े लोगों के समूह को देखकर आसानी से जाना जा सकता है और उस से उभरती फाल्गुन फ़िल्म के भारत भूषण ने जो धुन उकेरी थी या फिर मेरा मन डोले, मेरा तन डोले की धुन जब आपके कर्ण से टकराती है तो आपको एहसास होता है कि वाकई ये संगीत का ही जादू है जिसके मोहपाश में खड़े समूह में से अनेकों के पाँव यूँ थिरकने लगते हैं जैसे जाने किसी ने उन्हें अभिमंत्रित कर अपने बाहुपाश के बंधन में बाँध लिया हो |

To quench your thrust, these Indian traditional drinks are always refreshing than the colas

To quench your thrust, these Indian traditional drinks are always refreshing than the colas

अभी आप आस-पास के क्षेत्र का अवलोकन कर ही रहे होते हैं कि आपसे आग्रह किया जाता है कि आप पहले नाश्ता कर ले | एक बड़े से खुले मैदान में टेंट लगे हुये हैं, समीप ही कुछ प्लास्टिक की कुर्सियां डाल बैठने की व्यवस्था भी की गई है | बूफे की तरह आप अपनी प्लेट लेकर लाइन में लग जाते हैं | पूरी, आलू का झोल, आलू के परांठे, दही, सफेद मक्खन, आचार, जलेबी ! पीने को शिकंजी और छाछ ! निश्चित ही खाना मात्रा और गुणवत्ता, दोनों कसौटियों पर पूरा खरा उतरता है | समीप ही, चाय और पकोड़े भी हैं, भीड़ जरूर है मगर
पकोड़ों और चाय का स्तर भी आश्चर्यजनक रूप से काफी अच्छा है | वहीं नजदीक ही में ही कुछ छोटी-छोटी झोपडी नुमा रसोइयाँ सी बनी है जिनमे कुछ लोग,मक्की और बाजरे की रोटी का आनंद ले रहे हैं, और उधर हम पूरी और आलू के परांठे ही खाते रह गये, अब क्या हो सकता है पहली बार एक नई जगह पर कुछ तो नज़र से छूट ही जाता है काश दोपहर के भोजन तक यह विकल्प भी हो….. आमीन!

Various activities are available at the farm

Various activities are available at the farm

A moment of pleasure for city people, but only those can feel the agony, who had drawn water from the well.

A moment of pleasure for city people, but only those can feel the agony, who had drawn water from the well.

Bajre ki roti ia also an added attraction

Bajre ki roti ia also an added attraction

Camel ride is always a big hit among the children

Camel ride is always a big hit among the children

इधर बच्चा पार्टी अधीर हो उठी है, आप लोग एन्जॉय करने आये हो या खाने? उनकी बात मान ली जाती है और फिर शुरू होता है प्रताप गढ़ फार्म को खोजने का हमारा अभियान ! शुरुआत होती है उन छोटे-छोटे खेलों से, जिन्हें हम अपने बचपन और स्कूली दिनो में खेलते आये हैं, मसलन, नीबू-चम्मच दौड़, रस्सा-कस्सी, मटकी फोड़, बोरा दौड़… वगैरह वगैरह | अच्छी बात यह है कि जगह काफी खुली है, और सामान प्रचुर मात्रा में, ऊपर से कोई रोक-टोक नही आप अपने ही परिवार या अन्यों के साथ भी भागेदारी कर सकते हैं | कुछ छोटी-छोटी ऐसी चीज़ें जो आपको अपने बचपन की उस तिलस्मी दुनिया में ले जाती है, जिसे आप शहरीकरण कहें या हमारी खुद पर ही ओढ़ी हुई अभिजात्यता की परत,जिसने हमे अपने उस खजाने से दूर कर दिया है जो कभी हमारे लिये इस दुनिया में सबसे दुर्लभ होता था | कंचे, सटेपू, पिट्ठू, गुलेल, पतंग बाजी हो या तीर-कमान और बंदूक से निशाना लगाना इत्यादि | ऐसा नही कि केवल गाँव-देहात में प्रचलित खेल ही हैं, आपके लिये, टेबल-टेनिस, बैडमिंटन, वालीवाल, कैरम और लूडो जैसे परिष्कृत और साफ़-सुथरे खेल भी हैं और इन सबके अलावा आजकल के बच्चों और युवाओं का मनपसंद त्रैम्पोलिन भी !

This is a swinging bridge rather than a Burma Bridge

This is a swinging bridge rather than a Burma Bridge

इनसे पार पाकर, अगले रोमांच के लिये आप झील पर बने एक ऐसे ब्रह्मा ब्रिज से गुजर सकते हो जिसे पार करते हुये आप को बिलकुल डर नही लगता | झील के किनारे यदि आप चाहे तो अपनी मसाज़ भी करवा सकते हैं, जी हाँ, सब कुछ आपकी टिकट का ही हिस्सा है और आपको कहीं भी, और कुछ भी अलग से नही खरचना पड़ता, इस फार्म में विचरण करते हुये आपको बारम्बार ये एहसास होता रहता है कि वाकई यहाँ हर चीज़ शहरी लोगो के मिज़ाज़ और उनकी नर्म तबियत को देखते हुये ही बनाई गयी है | अब बारी है मिट्टी के लेप और टयूबवेल में स्नान की, देशी स्पा ! फुल हरियाणवी ईस्ताइल !

Cricket is not just a game in Indis, it has become a way of life

Cricket is not just a game in Indis, it has become a way of life

Makki ki roti and that too on the slow wooden fire!

Makki ki roti and that too on the slow wooden fire!

Some more activities and khana-shana at the farm

Some more activities and khana-shana at the farm

The distant cousins of African ostrichs are reared here

The distant cousins of African ostrichs are reared here

ये अच्छी बात है कि महिलायों और पुरुषों के नहाने की अलग व्यवस्था है, जिससे दोनों वर्ग निसंकोच मिट्टी में लोट-पोट हो सकते है और फिर जब आपका इससे मन भर जाये तो जमीन से निकलते ताजे कुनकुने पानी में जम कर नहायें, समय की कोई रोक टोक नही जो सबसे मजेदार पक्ष है बच्चों के लिये ! और हमारे जवान तो तब तक बाहर नही निकले जब तक ठंड से कांपना नही शुरू हो गये| नहाने-धोने के बाद भूख लगना तो स्वाभाविक है और इस बीच दोपहर का भोजन की शुरुआत भी हो चुकी है, सो कुछ ऐसे ही छोटे मोटे और क्रिया-कलाप करते हुये, जिनमे कुँए में से बाल्टी भरना और हरियाणवी महिला के अंदाज में फोटो खिंचवाना शामिल है, निपटाते हुये भोजन स्थल की और बढ़ चले |

आप का तो निश्चित है कि सुबह वाली गलती नही दोहराएंगे, मगर बच्चे तो अपने मन की मर्जी के मालिक ठहरे, अत: उन्होंने उस मेन्यु को चुना जो उत्तर भारतीय शादियो में बहु-प्रचलित भी है और हिट भी | चाऊमिन के भारतीय संस्करण से लेकर दाल मक्खनी और शाही पनीर तक, मगर अपने राम ने तो निश्चित किया है, हम तो आज जीमेंगे उस खाने पर, जिसका स्वाद हम शहरी जिन्दगी की इस अंधी भागदौड़ में कहीं पीछे छोड़ चुके हैं, और यदि चाहें भी तो हमारी आज की डिज़ाइनर रसोइयाँ में न तो देसी चूल्हे के लिये कहीं कोई प्रावधान हो
सकता है और न ही हमारी आज की शरीके-हयात उन्हें बना सकती हैं| सो, चूल्हे की हल्की आँच पर सिकी मकई और बाजरे की देसी घी में तरबतर रोटी, साथ में लहसुन की चटनी और बनाने वाली हमारे गाँव देहात की ही कोई ग्रहणी, न कि कोई व्यवसायिक कारीगर, जैसा कि आप आजकल की शादियों में या फ़ूड फेस्टिवल में पाते हैं | वहाँ आप ऐसा खाना पा तो सकते हैं पर वो होता रस विहीन ही है, ये हमारा व्यक्तिगत अनुभव है कि जब तक खाने में अन्नपूर्णा के हाथ न लगें हों आपको तृप्ति नही हो सकती | जी भर इसके रसावादन के बाद मीठे के शौकीनों के लिये बाजरे की खिचड़ी बूरा उकेर कर और साथ में गर्म गर्म ढूध जलेबी | ऐसा खाना वास्तव में आपके केवल पेट को नही वरन आत्मा तक को भी तृप्त कर देता है | भले ही इस जगह के आस-पास की महिलायें चार पैसे कमाने और अपने परिवार को कुछ आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिये इस फार्म में रोज़गार पा लेती हैं मगर इसका सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष ये है कि यूँ लगता है कोई आपकी परिचित ही आपको प्रेम से बैठा कर खिला रही है, आपके किसी भी गुण का उपयोग कहीं भी हो आखिर काम तो काम है और हमारे जैसे और भी जो इस देशी खाने के शौक़ीन हैं, पूरी मोहब्बत और खलूस के साथ खा रहे हैं | आप को सबसे अच्छा यह देख कर लगता है कि नौजवान पीढ़ी के जो लडके-लडकियाँ भी यहाँ आये वो इन महिलायों को पूरे सम्मान के साथ आँटी-आँटी कह कर बुलाते रहे और थैन्कू थैन्कू कर जाने से पहले फोटो खिंचवाना न भूलते…. आखिरकार परम्पराएँ भी कोई चीज़ हैं…. That is why I love my India!!!

The fruit of your labour gives immense satisfaction.

The fruit of your labour gives immense satisfaction.

The group of folk artists is trying their level best to give you the pleasure of a nice holiday

The group of folk artists is trying their level best to give you the pleasure of a nice holiday

The place for taking mud bath, plz do not expect the pic ftom inside!

The place for taking mud bath, plz do not expect the pic ftom inside!

This charkha is made up of Sandal wood or not, I do not know, but Ravi is operating it with the same preet!!!

This charkha is made up of Sandal wood or not, I do not know, but Ravi is operating it with the same preet!!!

खाने से तृप्त होने के बाद क्यूँ न कुछ ऊँट की सवारी का आनंद लिया जाये, मेहँदी के कलाकार भी हैं तो चरखा और दही बिलौने वाले उपकरण भी, चाहें तो आप चक्की चला कर देखें और जितना घी आपने खाया है उसे हजम कर लें | एक बड़ा मुख्य आकर्षण है कुम्हार के चाक का आप खुद अपने हाथ से कोई छोटा मोटा बर्तन बना सकते हैं और उसे बतौर निशानी अपने साथ भी ले जा सकते हैं यदि वो आपके घर पहुंचने तक टूटे न तो !

बच्चों का मन लगाने के लिये खरगोश, कबूतर, मुर्गियां इत्यादि भी रखी गई है, और युवा वर्ग के लिये DJ भी ! यदि मेहमान भारतीय हों तो ऐसा कैसा हो सकता है कि क्रिकेट के खेल का सामान न हो, अत: बड़ी चतुराई से नेट लगाकर जगह का प्रयोग किया गया है कि एक बार में 5-7 ग्रुप या परिवार अपने अपने मैच खेल सकें |

प्रताप गढ़ फार्म की जो सबसे प्रभावशाली और इसे एक पूरी तरह से गाँव की शक्ल देने वाली जगह वो है जहाँ हमारे दिल्ली से आने वाले मित्र या तो जाते ही नही या उन्हें इसकी कोई जरूरत ही महसूस नही होती और ये वो हिस्सा है जहाँ वास्तविक खेत है, खाद है, हल हैं, बैलगाड़ी है, ट्रेक्टर है और साथ ही कुछ घोड़े और शतुरमुर्ग जैसी मिलती जुलती प्रजाति के प्राणी भी हैं

इतना सब घूमते-घूमते शाम के पांच बजने लगते हैं और आप पाते हैं कि फार्म के कर्मचारियों ने धीरे धीरे अब सब कुछ समेटना शुरू कर दिया है | दरअसल, यहाँ का समय ही सुबह साढ़े नौ से लेकर शाम के साढ़े पांच बजे तक है यानि अब आप भी स्टाफ का इशारा समझिये और अपनी यात्रा को विराम दीजिये, यदि आप चाय-वाय के शौकीन हैं तो जरा समय से चाय वाली जगह पर पहुँच कर पा सकते है, सभी परिवार अब निकलने की जल्दी में हैं क्यूंकि चारो तरफ गाँव है, और वापसी का रास्ता कच्चा. वैसे भी घर पहुँचते-पहुँचते रात हो जाने वाली है
| अब जब तक घर की चाय मिलेगी हम उन फोटुओं को देखेंगे जो त्यागी जी के और हमारे कैमरे ने खींची हैं और साथ ही साथ इन्हें ट्रांसफर करने का काम भी शुरू ! महिला वर्ग के रसोई की तरफ जाते ही रावी और तुषार में इस बात की बहस कि वो किसे अपनी फेसबुक की प्रोफाइल पिक बनायेंगे और किसे whatsAppकी dp और इधर फोटुओं की अदला बदली करते हुये हमारे और त्यागी जी के चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ इस संतुष्टि के भाव कि दो वक्त का खाना और फिर ऊपर से दिन भर ढेर सारी एक्टिविटीज, पैसा वसूल जगह है कोई घाटे का सौदा नही….

आखिर दिल है हिन्दुस्तानी !

28 Comments

  • Last month we have been to this place …….Awesome experience , especially for growing kids who never saw some of old games like Latu, kanche (marbles) , gulli danda..etc

    Spacious & well managed. Value for money.

  • Arun says:

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    • Avtar Singh says:

      Hi Arun

      Many thanx for your comment.

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  • Parmender Tyagi says:

    Dear Avtaar Ji

    Pranam

    As usual , again your journey to further aware the Ghumakkars , about the real taste of a Ghumakkar is continue…
    I always enjoyed with you in this journey of Ghumakkars. Inspite of time shortage ,after your continue inspiration & efforts we tried and visited on unexplored places like Pratapgarh Farm . Not only visited but enjoyed a lot. This Farm visit is really worthwhile and value for money.
    Still I am thankful to you to write and share the real story & picture of the tourist places with Ghumakkars family.
    please continue the same.

    Again n again thanks

    With due regards
    Parmender

    • Avtar Singh says:

      Hi Parminder ji
      Many thanx for your appreciation!

      Sir, you are are the planner and I am just the follower!

      We both are just trying to do our parts!!!

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  • Smita Dhall says:

    I had not idea about this place, right here next to Delhi! Thank you for sharing this, Avtar ji. I can’t wait to go and spend a peaceful day there. Do you think it would be wise to go there once the monsoon arrives?

    • Avtar Singh says:

      Hi Smita ji

      Thanx for your words.

      I think, monsoon will be more ok than these sunny days, as, almost all the activities are outdoor and the sun seems unbearable!

      we went in March and moreover the day was pleasant, so make your program considering all this.

      Thanx again.

  • Ashok Sharma says:

    very good post. back to the almost forgotten village life at your doorstep refreshes the readers like us too.nice place beautifully up kept.

    • Avtar Singh says:

      Hi Ashok ji

      Nice to hear you after so many days!

      Yes sir, I agree, it is a nice concept and skillfully maintained place, where something is available for everyone.

      Thanx for your comment.

  • silentsoul says:

    very good about a new place near NCR and unknown to many like me. It seems like a mini version of chokhi Dhani… although the entry fee seems to be high but given the activities inside, the rates look reasonable.

    Thanks pahjii

    • Avtar Singh says:

      Hi SS Sir

      It is like a clever blend of chokhi-Dhani and more, because, here the stress is on various activities rather than cultural show offs.

      In the food section too, they are providing options, which is great.

      Chokhi-Dhani is an evening affair while it is a day time bonanza!

      Entry fees seems ok, considering the fact that it is included with two times unlimited meal and tea-snacks for the day.

  • Vipin says:

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    • Avtar Singh says:

      Hi Vipin

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      Yeah it is good for families but not in these harsh summers.

      Thanx for the comment.

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    • Avtar Singh says:

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  • Naresh Sehgal says:

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    • Avtar Singh says:

      Hi Naresh Ji

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      Thanx for the comment.

  • AJAY SHARMA says:

    Avtar Ji,
    Sorry for responding late, though I read it the same morning when published but on mobile and as you know its not comfortable writing long shots on mobiles.
    Yes, indeed a great story about a place which I was never known about despite that I frequent to Rohtak on official visits. Moreover, your sense of writing is irresistibly flawless and spontaneously brings the rawness into evenness. Inspirational story and a must visit to all Delhi-NCR residents, at least.

    Keep traveling
    Ajay

    • Avtar Singh says:

      Hi Ajay Ji

      I am sorry too for responding late as I was away from my place and most of the time was on the go.

      Thankx for all your praise. You like the post, it matters most.

      Thanx again.

  • Nandan Jha says:

    And its a FOG (First on Ghumakkar). Many years back, we visited a similar place (Surajgarh farm or something like that) not far from GGN and had a good time. Pratap Garh looks awesome and it seems to have something for everyone.

    I think it is a great day outing. Hopefully we make it soon as the weather gets better.

    • Avtar Singh says:

      Hi Nandan

      Its feeling great to know that this story gets the status of FOG.

      You are absolutely right at present, the weather is not favourable for such an adventure, although this is a proper time to try Zurasic Park at near Sonipat with family,which has many water rides etc.

  • Nirdesh Singh says:

    Hi Avtar ji,

    A few months ago, a colleague while researching for weekend outing had mentioned this place. I think i saw its website. Later the friend was all praise for the place as perfect for kids and family away from the city.

    Now that I see the photos, it does seem its a perfect Sunday getaway. As always enjoyed the reading part too.

    • Avtar Singh says:

      Hi Nirdesh ji

      Sorry for coming late on your comment.

      You are absolutely right sir. This place is perfectly fit for family get to gather but only on friendly and pleasantly weather days. I do not think that the place is fit for such sultry and extremely humid days.

      Thanx for your comment.

  • sudesh sharma says:

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    ???? ?????? ????? ??? worth reading article.
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