दयारा बुघयाल के बारे मे मुझे एक अखबार के एक लेख से पता चला था, करीब ६ महीने पहले.
कुछ घुमक्कड के पोस्ट भी पढे थे. जैसे ही हमारे पास ३ दिन की छुट़टियां हुई , हमने अपनी थडंरबर्ड ५०० ओर करीजंमा तैयार की, जिस पर हम 5 महीने पहले भी दिल्ली- शिमला- किन्नौर- स्पिती – मनाली – शिमला – दिल्ली का टूर कर चुके हैं।
हम सुबह ३ बजे , दिल्ली से निकले और आराम से सुबह ७ बजे हरिद्वार पहुच गए.ढाबे पर चाय एवं पराठे का नास्ता किया. रिशीकेश के बाद से ही बारिश शुरू हो गई थी. स्टड के रेनकोट ने हमै बारिस से बखूबी बचाया.
रास्ता बढिया बन गया है. २ साल पहले जब परिवार के साथ गंगोत्री आया था तब रास्ता बेहद खराब था. बाइक से घूमने का पूरा -पूरा मजा लेते हुए हम १ बजे उत्तकाशी पहुच गए. हमने सोचा कि भोजन हम शहर के बाहर करते ही करेगें पर बाद मे कोई ढाबा नही मिला.
वहां से २१ किलोमीटर के बाद भटवारी जगह पर एक बहुत छोटा सा ढाबा मिला, जहां चाय, चावल एवं आलू भात से ही हमारा दोपहर का भोजन हुआ. वहा लोगौं ने बताया कि गंगोत्री ओर दयारा मे बहुत बर्फवारी हुइ है. इसकी सम्भावना हमैं पहले से भी थी. जहां भी जाए , मौसम समबन्धी वेबसाइट से मौसम का मिज़ाज पहले जानले ताकि आप पूरी तरह तैयार रहैं.
भटवारी से २ किमी के बाद एक बोर्ड ने हमैं खुश कर दिया, जिस पर लिखा था कि बरसू एवं दयारा के लिए बाए मुडे. हमारी मंजिल करीब दिख रही थी. सीधा रास्ता गंगोत्री को गया था , पर भारी बर्फवारी के कारण , वो बन्द हो गया था.
२:३० दोपहर हम बरसू पहुच गए. बरसू ५०-६० घर वाला एक छोटा सा गावँ है.जिसके बाहर २ होटल है (गी.एम.वी.एन ओर दयारा रिसोर्ट) . हमको दयारा रिसोर्ट मे ₹ ७00 /दिन से कमरा मिल गया.. ऐयरटेल के सिगनल बरसु ओर दयारा मे नही थे. थोडाआराम करके हम बरसू गए, ये सोचके कि कुछ फल- सलाद मिल जाए. पर वहा केवल १ चाय की दुकान है जिस पर बिसकुट ,नमकीन और कभी कभी मैगी ही मिलती है। काफी ठन्ड थी. हम बहुत थक चुके थे. ६बजे मेरी आँख लग गई. रात ८ बजे खानाआया . खानाअच्छा था. दाल,आलू गोभी,चावल रोटी खाके मजाआ गया. उस दिन पहली बार भरपेट एवं स्वादिष्ट भोजन मिला था.
मुझे ज्यादा सोने की आदत नही. सुबह ४ बजे आँख खुल गई. ५:१५ सुबह उजाला होना शुरू हुआ. बाहर के नज़ारे बेहद सुन्दर थे. सामने पहाडों पर बर्फ थी. ठन्डी हवा चल रही थी.
हम तैयार हुए. उपर ले जाने का जरूरी सामान रखा जैसे स्लीपिंग बैग, टैन्ट,कढाई आदि. हमेशा कम से कम सामान रखें. टरैकिंग के समय ०.५किलो भी ५ किलो जैसा लगता है। ९बजे हमने टरैकिंग शुरु कर दी. बरसू के लोगों से रास्ता पूछते हुए हम आगे बढ़ते रहे. १किमी बाद ही जंगल शुरु हो गया. आगे कोई इनसान नहीं मिला. रास्ता और उँचाई की तरफ जा रहा था। हम दोनों स्वस्थ हैं।
रोजाना व्यायाम करते हैं, इसलिए शुरुवात मे बहुत ज्यादा परेशानी नहीं आई. ४ किमी की खडी चडाई के बाद हल्की बर्फ वारी शुरू हो गइ थी. नजारों की खूबसूरती शब्दों मे बयां करना कठिन है. हर तरफ बर्फ की चादर को ओढे हुए पेड, जमीन पर १-२ फीट तक बर्फ, मानव समाज की खिलवाड से अछूता जंगल– अगर केवल एक शब्द मे बताना हो तो मैं कहुंगा “ स्वर्ग“.
आगे चले तो खाली गुजरो कि छोपडी मिली. बरसू मे लोगों ने बताया था कि उसमें रात बिताई जा सकती है. वहां से और आगे चले तो बर्फ वारी बहुत तेज हो गई. अब हमारा हर कदम बहुत मुश्किल से आगे बढ रहा था. २फीट की ताजा बर्फ मै चलना बेहद चुनौती पूर्ण होता है. दिल की धडकन तेज थी. आक्सीजन की कमी का असर साफ दिख रहा था।पर मंजिल अब ज्यादा दूर नहीं थी.
हम २:३० दोपहर को दयारा बुघयाल पहुच गए. हर तरफ सफेद रंग बिखरा था. बहुत ज्यादा बर्फवारी हो रही थी. रूफटोप के नीचे हम आराम कर रहे थे एंव आगे की रणनीति सोच ही रहे थे कि हमने देखा कि एक विदेशी पर्यटक , ३0 की उम्र , अकेले, हमारे थोडे बाद ही दयारा पहुचा है. स्पैन के उस बन्दे से १५-२०मिनट तक भिन्न भिन्न मुददो पर बात हुई जैसे मोदी,वीजां ,स्पैन का मौसम,लेह – लदाख आदि। घूमने का असली मकसद ही नई- नई जगह देखना और लोगौ को जानना है.
रूफटोप के पास ही लेक नजर आई. उसके पास जाने पर एक पुराना मंदिर (खंडित) मिला। गौर से उसकी पडताल की, अन्दर जानवर का मल नही मिला. २०मिनट की मरम्मत के बाद को रात बिताने लायक हो गई.
फिर पत्थरों से एक चूल्हा बनाया। लाइटर, सूखी लकडियां , पत्तों से आग लगाके बाबा रामदेव की मैगी बनाई. यकीन मानें , ये अब तक की सबसे लज़ीज मैगी थी। बर्फ को कढाई मे गर्म करके , पानी बनाके प्यास बुझाई. खाने की कुछ भी चीज खुले मे न रखे, जानवर दूर से गंध लेकर आक्रषित हो सकता है.
शाम ६ बजे ही अँधेरा हो गया.. गुप्प काली रात थी. दूर दूर तक किसी की आवाज नही थी. पूरे दिन की थकान की वजह से नीदं भी जल्दी आ गई. जंगली जानवर से बचाव के लिए (अगर जरुरत पडती तो।), एक चाकू पास मे रख लिया था.
नींद सुबह ४ बजे खुल गई. बाहर काला अंधेरा था. तारो की रोशनी कुछ ज्यादा ही थी. दिल्ली के पोलूशन मे तारो की चमक कम दिखती है.मोबाइल मे गाने सुनकर थोडा समय काटा. ५:३० सुबह पर उजाला होना शुरू हुआ. छोपडी के बाहर का दृश्य बहुत अनोखा था . गहरे नीले आकाश के नीचे सब कुछ नीला सा लग रहा था. पास मे लेक, ठन्ड से जम गई थी. वहां से सूर्योदय का अदभुत नज़ारा हम कभी नही भूल पाएंगे।
८बजे सुबह पर हमने सामान पैक करके वापसी का रूख किया. छोपडी मे कुछ भी कूडा नही छोडा . लोटने मे ज्यादा मुश्किल नही हुई. १०:३० सुबह तक हम रिसोर्ट आ गए. ३०मिनट हम दोनो बस चुपचाप आसमान के नीचे , खिली धूप मे यही सोचते रहे थे कि जो नजारे हमारी आखों ने देखे, क्या वो सच थे या कोई सपना. ११ बजे सुबह अपना सामान बाईकौ पर लगा कर हम दिल्ली की ओर लौट लिए. चम्बा मे ३बजे भोजन करके हम रात ११ बजे दिल्ली आ गए.
दौनो का पूरा खर्च – ₹४२००, जिसमै खाना, रहना ,पैटरोल आदि सब सामिल है.
wow —- you guys amazing and brave to think and go Dayara Bugyal in winter.
Pics are lovely
Thank viraj ji for ur support…
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Very nice post Sagar.
Looks like so much fun.
Please keep writing and sharing!
Best.
Thank u Archana ji. D Bughyal is a must visit place.. Enjoyed a lot.. Will definitely share my coming experiences… Thank u.
Please translate this article in English . I am unable to read it .
Will mail u the English version in 2-3 days.. Thanks for the interest shown….
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Sagar ji namaskar Dayara Bugyal is very interesting place when i come from gangotri for kanwar yatra since 2002.this place about 2 km before bhatwari. picture is very nice
Hey Sagar,
What an amazing trip you had and nice pics too. And thank you for all the detail. Really helps in planning one’s own trip. If you don’t mind I’d like to give you just one bit of advice.
Do turn off/disable the date stamp option in your camera setting. It kind of lessens the beauty of the captured frame. If its the date you care about then you could always find that in EXIF info of the photo by selecting the pic and going on properties (right click of mouse).
Despite that, this one is a gem of post. With these much details anyone could plan their trip to Dyara. A lots of practical information without any digressions which I do often in my posts :-)
The thing is that I have been thinking of doing Dayara Bugyal for a long time now. What makes my travel feet more itchy that you have narrated your bike trip. I myself am thinking of taking my Royal Enfield till Barsu and then doing the trek. Do you think it is possible for me to leave on Friday night reach Barsu before afternoo;.park my bullet there and trek to Dyara; do the overnight camping at Dyara Bugyal i.e. on Saturday night and Return to Barsu and reach Delhi by 9-10 O’ clock in the evening i.e. Sunday?
Any help, tips or suggestions would be highly appreciated. And do keep travelling and keep sharing. And BTW a trip to Spiti that is from Delhi via Shimla and return via Manali is also on cards in June/July again on my Royal Enfield. Have you penned down your Spiti trip somewhere. Please share the link if you have. If you haven’t then do share tips or any information you reckon might help me in successfully orchestrate my trip.
Thanks in advance :-)
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delhi to reckong peo, reckong to kaza, kaza to manali, manali to delhi. total 1800km. . road condition extreme. total cost 6500 PP including petro, stay, food, tax etc. .?
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Welcome aboard Sagar.
To me, it seems such a brave trip and probably thats the reason, the rewards were so high. Let the travel bug be with you at all times.
यात्रा का आनंद फोटो देखकर ही पता लग रहा है। फोटो और यात्रा वर्णन खूबसूरत।