घुमक्कड़ी के लिए किसी पढाई की या किसी खास विशेषता की जरुरत नहीं होती ये तो ऐसा शौक है जो भगवन मानव को बनाने के साथ ही उसमे डालकर भेजता है, तभी तो घुमक्कड़ी किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती. घुमक्कड़ी तो बस घुमक्कड़ी ही होती है. बच्चों के मन में भी घुमक्कड़ी का कीड़ा उतना ही प्रबल होता है जितना की बड़ों के मन में.
सितम्बर के महीने की एक शाम ऑफिस से घर पहुँचने पर बच्चों ने अपने स्कूल की एग्जाम datesheet दिखाते हुए अपनी घुमक्कड़ी की datesheet पास करते हुए कहा “पापा हमारे पेपर 27 तारीख को समाप्त हो रहे हैं इस बार हम ज़रूर कहीं घुमने चलेगे।”
बच्चो ने अपने एग्जाम की तैयारिय़ो में लगने के साथ मुझे भी एक एग्जाम की तैयारी करने मैं लगा दिया। बच्चो के साथ घर से बाहर निकलने के लिए जो तैयारी की जाती है वो कोइ एग्जाम से कम थोड़े ही है. आस पास उपलब्ध ऑनलाइन और ऑफलाइन जानकारी माध्यमों पर समय व्यतीत करने पर किसी न किसी यात्रास्थल को तो चुनना ही था. इस बार का यात्रास्थल सर्वसम्मति से उदयपुर राजस्थान को स्वीकार किया गया.
जिस स्थान पर पहली बार घुमक्कड़ी के लिया जाना हो उसके बारे में यहाँ वहां से जानकारियाँ इकट्ठी कर लेना यात्रा में होने वाली परेशानियों से बचाता है. इधर उधर से जानकारियां इकट्ठी करके जाना की राजस्थान का यह शहर प्रकृति एवं मानवीय रचनाओं से समृद्ध अपने सौंदर्य के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां की हवेलियों और महलों की भव्यता को देखकर दुनिया भर के पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहां के लोग, उनका व्यवहार, यहां की संस्कृति, लोक गीत, लोक-नृत्य, पहनावे, उत्सव एवं त्योहारों में ऐसा आकर्षण है कि देशी-विदेशी पर्यटक, फोटोग्राफर, लेखक, फिल्मकार, कलाकर, व्यावसायी सभी यहां खिंचे चले आते हैं। शिशोदिया राजवंश के महाराणा उदय सिंह (1433-68) ने पिछौला झील के तट पर अपनी राजधानी बनाई जिसे उदयपुर नाम दिया गया।
शानदार बाग-बगीचे, झीलें, संगमरमर के महल, हवेलियां आदि इस शहर की शान में चार चांद लगाते हैं। अरावली की पहाड़ियों से घीरे और पांच मुख्य झीलों के इस शहर को देखने या घुमने-फिरने का एक अलग ही रोमांच है.
उदयपुर के दर्शनीय स्थलों में सिटी पैलेस का एक विशेष आकर्षण है इसके अतिरिक्त सिटी पैलेस के नजदीक ही भव्य जगदीश मंदिर भी है। इसके अतिरिक्त फतेह सागर झील, कृष्णा विलास, दूध तलाई, सज्जन निवास, गुलाब बाग, जग मंदिर, सज्जनगढ़ महल, शिल्पग्राम इत्यादि अनेकानेक स्थान अपना अपना विशेष महत्त्व लिए हुए हैं.
यात्रा में अंतिम समय पर होने वाली परेशानी से बचने के लिए समय रहते ही ट्रेन की सीट्स रिज़र्व करवा लेने पर अन्य औपचारिकताओ को पूरा करने में कब यात्रा का दिन आ गया पता ही नहीं चला. यात्रा का उत्साह और उमंग से भरे हुए परिजनो के साथ निर्धारित समय पर DELHI सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन पहुँच कर अपने गंतव्य पर पहुँचने के लिए मेवार एक्सप्रेस में सवार होकर ट्रैन के चलने कि प्रतीक्षा करने लगे. ट्रैन कि सिटी सुनते ही बच्चे चिल्लाने लगे ट्रैन चल पड़ी, ट्रैन चल पड़ी खूब सारी मस्ती और हो – हल्ला करते-करते बच्चे एक-एक करके अपनी घुमक्कड़ी कि दुनिया में डूबने के लिए सोने लगे. बच्चों ने अपने लिए ऊपर वाली सीट को चुन और नीचे वाली विंडो सीट पर मैं भी सोने का प्रयास करने लगा पर यात्रा में नींद आना इतना आसान थोड़े ही होता है. बार बार विंडो से झांकते हुए आने जाने वाले स्टेशन को निहारते हुए कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला. सुबह लगभग साढ़े छह बजे नींद खुली.
बच्चे भी नींद से उठकर नयी जगह पर उत्साह से चलती ट्रैन से पेड़, पहाड़, नदी-नाले और पुलों को देखकर रोमांचित होने लगे. जैसे-जैसे ट्रैन आगे चलती जा रही थी वैसे ही सभी का उत्साह भी और अधिक बढ़ता जा रहा था. उदयपर सिटी से पहले महाराणा प्रताप स्टेशन पर कुछ देर के लिए ट्रैन रुकी, ट्रैन से बहार निकलकर देखा तो बारिश कि रिमझिम और ठंडी हवा से सिहरन सी दौड़ उठी. धीरे-धीरे रिमझिम तेज बारिश मैं बदल गयी. उदयपर सिटी रेलवे स्टेशन पहुँच कर कुछ बारिश कम हुई और हलकी-हलकी बूंदाबांदी में स्टेशन से बाहर निकल कर घुमक्कड़-नीति पर चलते हुए ऑटो रिक्शा द्वारा गणगौर घाट पर पहुच कर सबसे पहले एक कमरा बुक करके सामान सहित होटल में प्रवेश किया बारिश अभी भी अपना रंग दिखा रही थी. कहीं बारिश के कारण घुमक्कड़ी के रंग में भंग न पड़े ये सोचकर थोड़ी चिंता होने लगी. चलो जो भी हो अब घुमक्कड़ी का शुभारम्भ तो करना ही है चाहें बारिश कि रिमझिम में ही क्यों न हो. जल्दी-जल्दी अपने दैनिकचर्या का निवृत्त हो, नहा-धोकर सभी आगे की घुमक्कड़ी का आनंद उठाने के लिए तैयार हो गए. उदयपुर में घुमक्कड़ी का शुभारम्भ जगदीश मंदिर से करना ही उचित है, होटल से कुछ कदमों कि दूरी पर ही जगदीश मंदिर है. बारिश कि बूंदाबांदी में चलते-चलते जगदीश मन्दिर पहुंचे तो आरती में सम्मिलित होने का सौभाग्य भी प्राप्त हो गया] प्रशाद ग्रहण कर और भगवन जगदीश्वर के दर्शन कर मंगलमय यात्रा की कामना की.
जगदीश मंदिर से बाहर आकर पास ही सिटी पैलेस का मुख्य द्वार दिखाई दिया. उदयपुर का प्रमुख आकर्षण अपनी और आकर्षित कर रहा था पर पहले कुछ नाश्ता-पानी कर लिया जाए. पास ही कि दूकान में चाय के साथ उदयपुर के प्रसिद्द मिर्ची-वडा और अन्य सामग्री से नाश्ते का कार्यक्रम संपन्न हुआ. इसके बाद अब सिटी पैलेस कि और अपने आप ही कदम चल पड़े. सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए टिकट कि ओपचारिकता पूरी करके पैलेस में प्रवेश किया.
सिटी पैलेस, उदयपुर में जितना कुछ देखने समझने के लिए है उसका वर्णन सहज नहीं हो सकता. सिटी पैलेस संग्राहालय में प्राचीन अस्त्र-शास्त्र, वस्त्र-आभूषण, राजसी रहन-सहन, वाद्य-नृत्य सामग्री, कला-कौशल, मेवाड़ शैली के मनमोहक चित्र प्रदर्शन, और भी बहुत-बहुत कुछ.
सिटी पैलेस का भ्रमण पूर्ण करने के पश्चात अगले आकर्षण गुलाब बाग़ जाने के लिए सिटी पैलेस से बाहर निकलते ही ऑटो तैयार खड़े थे, उनमे से ही एक ऑटो पर सवार होकर गुलाब बैग कि सैर पर चल पड़े. गुलाब बाग़ का नाम सुनने में तो केवल बाग़ का ही परिदृश्य आँखों में घूमता है, पर इस बाग़ में पर्यटको विशेषकर बच्चों को लुभाने के लिए जन्तुशाला (zoo), टॉय ट्रैन कि सवारी, झूले, जलपान आदि कई अन्य मनोरंजक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं. बच्चों के लिए तो गुलाब बाग़ कि सैर बहुत ही आनंददायक लग रही थी. इस समय बारिश भी रुक गयी थी. लेकिन झूले अभी भी गीले थे और उनके आस-पास पानी भरा होने के कारण बच्चे झूलों का पूरा मज़ा नहीं ले सके. इस कमी को टॉय ट्रैन कि सवारी ने पूरा कर दिया. ट्रैन में बैठे-बैठे ही पूरे बाग़ के भ्रमण के साथ ही जन्तुशाला (zoo) देखते हुए बच्चे-बड़े सभी रोमांचित हो उठे.
गुलाब बाग़ कि सैर के बाद हमारा अगला पड़ाव दूध तलाई नामक स्थान था. दूध तलाई उदयपुर का एक बहुत ही सुन्दर आकर्षण है. दूध तलाई नाम का एक छोटा सा ताल लेक पिछोला से सटा हुआ है. इसके आस पास का दृश्य बहुत ही सुहाना और मन को मोह लेने वाला है. यहाँ के मुख्य आकर्षणों में पैदल बोट, मोटर बोट, कैमल राइड, सनसेट पॉइंट, करनी माता मंदिर, रोपवे ट्राली आदि हैं. यहाँ चारों और मनोरंजन, रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य फैला हुआ है. दिन भर के सैर-सपाटे के बाद दूध तलाई कि ये शाम बहुत ही आरामदायक लग रही थी.
दूध तलाई के मायावी आकर्षण से निकल कर किसी और जगह जाने कि जानकारी लेने पर पता चला कि रात्रि का समय उदयपुर कि बागोर कि हवेली में होने वाले राजस्थानी सांस्कृतिक लोक कार्यक्रमों में व्यतीत करना यात्रा-भ्रमण को और अधिक यादगार बना देता है. सांस्कृतिक लोक कार्यक्रमों के प्रदर्शन में अभी कुछ समय था इसलिए कुछ समय उदयपुर की एक दूसरी झील फ़तेह सागर लेक पर व्यतीत करना उचित लगा.
फ़तेह सागर लेक पर बारिश की फुहारों के साथ घूमते टहलते शाम ढलने लगी, जैसे-जैसे शाम ढाल रही थी बारिश भी धीरे-धीरे तेज़ होती जा रही थी. रात्रि के समय सांस्कृतिक लोक कार्यक्रमों का आनंद उठाने के लिए बागोर की हवेली आ पहुंचे. बारिश से बचते बचाते जल्दी-जल्दी हवेली में प्रवेश किया. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए निर्धारित स्थान पर आगंतुकों के बैठने के लिए दरियां, गद्दे, चटाई एवं चादर आदि बिछी हुई थी. अभी कार्यक्रम प्रारम्भ होने में कुछ समय बाकि था. दिन भर की थकावट के बाद एक स्थान पर बैठना काफी आरामदायक लग रहा था. कार्यक्रम प्रारम्भ होने से पूर्व ही हॉल पूरी तरह भर चुक था. सामान्यतः कार्यक्रम हवेली के खुले चौक में ही होता है लेकिन बारिश कि वजह से आज का प्रदर्शन छोटे हॉल में निर्धारित था. धीरे-धीरे राजस्थानी लोक कला संस्कृति के एक के बाद एक गीत संगीन नृत्य एवं कठपुतली के कार्यक्रम के बीच एक घंटे का समय कैसे व्यतीत हो गया पता ही नहीं चला. पूरे कार्यक्रम का बच्चे और बड़े सभी ने खूब आनंद उठाया.
कार्यक्रम के समापन पर हॉल से चौक में बाहर निकले तो पूरे चौक में एक से डेढ़ फीट तक बारिश का पानी भरा हुआ था. पानी में पैर रखते ही बारिश के ठन्डे पानी ने पूरे शरीर में सिहरन सी लहरा दी. हवेली से बाहर लेक पिछोला पर कुछ देर रुक कर रात्रि के खाने के बाद टहलते हुए रात्रिविश्राम के लिए होटल में आ पहुंचे. अगले दिन की घुमक्कड़ी के उत्साह और पूरे दिन की थकान के बाद सभी जल्दी जल्दी सोने की तैयारी करने लगे.
उदयपुर में दूसरा दिन :
पहले दिन की अपनी सफल घुमक्कड़ी के लिए भगवन का धन्यवाद करते हुए और आज के दिन की शुभ यात्रा भ्रमण की कामना के साथ यात्रा का प्रारम्भ भगवन एकलिंगजी के दर्शन से करने का निर्णय लिया. जल्दी-जल्दी अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर सभी भगवन एकलिंगजी के दर्शनों के लिए तैयार हो गए. होटल से निकल कर सुबह का नाश्ता कर कैलाशपुरी जाने के लिए उदयपुर बस स्टैंड से बस द्वारा कैलाशपुरी के लिए प्रस्थान किया. आज बारिश तो नहीं हो रही, बादलों के होने से घूमने के लिए अच्छा वातावरण बना हुआ था. भगवन एकलिंगजी मंदिर परिसर कैलाशपुरी गांव (उदयपुर से लगभग 23-24 किलोमीटर) में स्थित है। उदयपुर से यहां जाने के लिए बसें मिलती हैं। एकलिंगजी को शिव का ही एक रुप माना जाता है। इस परिसर में छोटे-बड़े कुल 108 मंदिर हैं। मुख्यत मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्त्ति स्थापित है। भगवन एकलिंगजी मंदिर परिसर में फोटोग्राफी निषेध है इसलिए मंदिर के द्वार का ही फ़ोटो ले सके.
भगवन एकलिंगजी के दर्शन के बाद उदयपुर के प्रसिद्ध गरमा-गरम मिर्ची वडे का आनंद बड़ा ही अद्भुत था. कैलाशपुरी बस स्टैंड से बस द्वारा वापिस उदयपुर पहुँचकर अन्य प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक शिल्पग्राम के लिए प्रस्थान किया. जैसा कि शिल्पग्राम नाम से ही प्रतीत होता है कि यह स्थान भारत के ग्रामीण जीवनशैली को समर्पित है. शिल्पग्राम में भारत के अनेक राज्यों राजस्थान, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोआ, महाराष्ट्रा आदि अनेक स्थलों के पारम्परिक घरों को संगृहीत किया गया है. इनमें मिटटी के कच्चे घर, लकड़ी, घास-फूस, ईंट आदि अन्य अनेक निर्माण सामग्री से बने हुए घरों को संरक्षित किया गया है. यहाँ आकर भारत के ग्रामीण जीवन-शैली के जीवंत दर्शन होते हैं.
अनेक ग्रामीण लोक कलाकारों द्वारा लोक गीत-संगीत के कार्यक्रम, कठपुतली का खेल, पारम्परिक वस्त्र निर्माण, मिटटी के बर्तन आदि अनेकानेक जीवनोपयोगी सामग्री के निर्माण प्रक्रियाओं को भी यहाँ देखा जा सकता है. यहाँ पर गोल संग्रहालय नामक संग्रहालय में ग्रामीण वाद्य यंत्र, वेश-भूषा, आभूषण, बर्तन, चित्रकला, शास्त्र, कृषि उपयोगी यन्त्र, औजार आदि अनेक ग्राम्य जीवन में प्रतिदिन काम में आनेवाली अनेक सामग्रीओं को बहुत ही सुन्दरता से प्रदर्शित किया गया है. विभिन्न राज्यों कि शैली में बने हुए घरों के अंदर जाकर उनकी साज-सज्जा एवं घरों के अंदर राखी सामग्री को भी देखने का अनुभव एक ही स्थान पर करने का अनूठा विशिष्ट स्थान है शिल्पग्राम.
बच्चों को झूले और ऊँट कि सवारी रोमांचित करती है. शिल्पग्राम में आकर भारत के प्राचीन ग्राम्य जीवन शैली को आत्मसात करके मन प्रफुल्लित हो उठता है.
शिल्पग्राम की यादों को अपने मन में सहेज कर एक अन्य पर्यटन आकर्षण सहेलियों की बाड़ी के मनोहारी दृश्यों ने सारी थकान को मिटा दिया. यहाँ आकर पर्यटक अपने-आप को तरो-ताज़ा अनुभव करते हैं. उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी नामक यह स्थान बहुत ही सुन्दर और चित्ताकर्षण उद्यान (बाग़) है. इस बाग़ का निर्माण मुख्य रूप से राज परिवार की महिलाओं के मनोरंजन के लिए करवाया गया था.
सुंदर फूलों की क्यारियाँ, बाग़ के चारों तरफ़ काले संगमरमर की मूर्तियाँ, कमल के फूलों के तालाब, चारों और पानी का फव्वारों से गिरता पानी बारिश के मौसम का आभास करा देता है. इस उद्यान का मुख्य आकर्षण यहाँ के फव्वारे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें इंग्लैण्ड से मंगवाया गया था। यहाँ आकर पर्यटक यही अनुभव करते हैं जैसे किसी परीलोक में आ गए हों. चारों तरफ सब कुछ सुन्दर, आकर्षक, मनोहारी और आनंदायक.
धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था. अभी शाम होने में समय बाकी था, आज शाम को ही दिल्ली वापसी के लिए ट्रेन भी लेनी थी इसलिए अन्य स्थानों कि और जाना अब सम्भव नहीं था. पूरे यात्रा भ्रमण में दूध तलाई ने काफी प्रभावित किया था. होटल कि और जाने से पहले इसलिए बचे हुए समय को दूध तलाई पर व्यतीत करके होटल से अपना सामन लेने के बाद. उदयपुर के यात्रा-भ्रमण के मीठे सुनहरी अनुभव हमारे कैमरे और मन में सुरक्षित हो गए. रेलवे स्टेशन पहुँच कर उदयपुर को शुभरात्रि कहा ओर धीरे धीरे गाडी चल पड़ी उदयपुर को छोड़कर दिल्ली की ओर.
Dear Mr. Munesh Mishra,
Welcome to Ghumakkar. The post was superb and your writing style ….Masha allah. So ghumakkar have got one more Hindi writer. Keep traveling Keep writing.
Thanks.
Thank your very much Mukesh ji for reading my post and commenting. Comments of authors like you will encouraging me to more ghumakkari and more writing.
????? ??,
?? ????? ?? ?? ????? ?? ??????? ???? ?? ????? ?? ?? ??????? ?? ??? ??? ??? ???? ??? ?????? ?? ?? ??? ????? ?? ?? ??? ???? ???? ?? ???? ????? ??????? ?? ????? ?? ?? ?????
??? ?? ?? ???? ???? ????? ??? ???? ??????? ?? ?? ??????????? ?? ??? ????? ?? ???? ???? ???????!
?? ???? ?????? ?? ?????????? ??? ?? ????? ?? ?????? ???? ??? ?????? ???? ??? ??? ?? ??? ??????? ?? ??? ?????? ??.
Dear Munesh,
Welcome on Ghumakkar.
Nice Post. Keep traveling and keep writing..
Thank you very much!
Hi Munesh
??????? ??? ?? ???????? ????? ??? ??? ??? ???????? ??? ???? ???????? ?? ???? ??, ?? ???? ?????? ???????? ?? ??? ???? ?? ??? ?????? ???? ??? ?? ?????? ???? ?? ?
???????? ?? ???? ?????? ?? ??? ???? ???? ?? ???? ????????
????? ????? ????? ???? ?? !
???? ???? ???? ?????? ???? ????? ???? ?? ??????? ??????????. ????? ?? ????? ???? ?? ??? ???????. ???? ?? ??? ???? ?? ?? ???? ?? ????? ????? ??? ????? ??. ???? ?? ????? ?? ??? ?????????? ?? ??????? ???? ?? ????? ???? ???? ?????? ??? ???? ?????? ?? ???????? ??? ???????? ???? ?? ???? ?? ?? ?? ???? ??.
???????.
Welcome aboard Munesh. It seems Udaipur is a hot destinations since there are so many logs on this great city here. I was also there during end of 2013 and we stayed near Gangour heart only, mostly spending our time walking up-and-down the old bylanes like hippies.
While looking at photos, I noticed that for the ‘Fateh Sagar’ boat-do you are in two different shirts, the reason for which was clear as I learnt that you indeed went for a 2nd run.
Wishes and look forward for a longer associations.
Dear Friend
Nandan Jha ji wishing you a very happy Lohri and Makar Sankranti.
Thank you for commenting my post and interest shown on photos, your sharp view noticed on my shirt great sir. First day we did not boating on Fateh Sagar, we enjoyed boating on second day at returning.
thank you again.
Wishing you, your family and team ghumakkar very happy Lohri and Makar Sankranti.
Hi Munesh,
Welcome to Ghumakkar with a lovely first post!
Udaipur is a great place to start. It is apparent that your family had a wonderful time there.
Hope to visit the city soon.
Keep writing!
Thank you Nirdesh Singh ji for liking and commenting my first post.
I hope you will soon visit to Udaipur and share your experience with us. Udaipur is a wonderful place for ghumakkari.
Muneesh Ji, welcome aboard with a post on this marvellous city. Even my first post was on this city only. You have refreshed our memories.
Thank you,
Rakesh ji.
One who visit this magical city Udaipur, can never forget the memories and Experience.