घुम्मकड़ी अपने आप में एक नशा है, और ये नहीं कि घुम्मकड़ी सिर्फ मन को खुश करती है या समय काटती है। घुम्मकड़ी का असली मज़ा आता है, बहुत समय के बाद जब घुम्मकड़ी की यादें मन को गुदागुदाती हैं, हमें याद दिलाती हैं कि हमने क्या सीखा, क्या नया जाना। और घुम्मकड़ी की कुछ यादें तो सदा के लिये हृदय में अपना घर बना लेती हैं।यूं तो हम सब बड़े हो चुके हैं…. कम्पयूटर का इस्तेमाल करते हैं… पर घुमक्कड़ी हमें फिर से बच्चा बना डालती है… ऐसा बच्चा जो नये-2 गिज़मो इस्तेमाल करता है… कम्पयूटर चलाता है… पर आश्चर्य से देख रहा है… इस दुनिया को… इसकी खूबसूरती को… इसके बनाने वाले को… और मानव की क्षमताओं को जो सदा प्रकृति को जीतने की कोशिश में लगा रहता है ।
बड़े खराब मूढ़ में ये यादें अचानक एक स्मित हास्य ले आती हैं, या एक अच्छे भले मूढ़ को बिगाड़ भी डालती हैं… और कभी एक छोटी सी घटना पूरे जीवन को बदल देती है । जो भी हो, हम अपनी अच्छी या बुरी यादें सदा एक अमूल्य खज़ाने की तरह सहेज कर रखते हैं।
आज मैने भी अपना खजाना खोला तो रंग-बिरंगे इंद्र-धनुष की तरह वो मेरे आज पर छा गयीं…. सोचा उन्हें कलमबद्ध करुं और अपनों के साथ बांटू । पेश हैं ऐसी ही कुछ इंद्र-धनुषी यादें ।
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पहले बात मेरी सब से पहली घुम्मकड़ी की । बात बहुत पुरानी है 1977 की। हम कभी दिल्ली से बाहर नहीं गये थे ना कभी ट्रेन में बैठे थे । पिताजी को अचानक कुछ रुके हुए दफ्तर के पैसे मिले ओर उन्होने कार्यक्रम बनाया हमें पहली बार घुमाने का. पहले पंहुचे वैष्णो देवी.
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सराय वाली को 10 रुपये अग्रिम दिये और जब दर्शन कर के वापिस आये व रात सराय में रुक कर अगले दिन चलने लगे व सराय वाली का हिसाब किया । पिताजी नें 10 रु अडवांस काट कर बाकी पैसे दिये तो उसने अडवांस की बात से साफ इंकार कर दिया । उसने अपना डिब्बा दिखा कर कहा, देख लो इसमें कोइ 10 का नोट नहीं। काफी देर बहस के बाद भी वो नहीं मानी व जोर से बोली – तुम लोग माता पर आ कर भी बेईमानी करते हो । मुझे बहुत गुस्सा आया मैने पिताजी को बोला – आप इसे 10 रु. दे दो और कसम खाओ कि ऐसी वैष्णो देवी पर कभी नहीं आओगे जहां बेइमान रहते हैं और यात्रिओं को धोखा देते हैं । खैर हमने उसे 10 रु. और दिये और बड़े दुखी मन से जाकर बस में बैठ गये। 10 रु. हमारे लिये तब काफी थे, क्योंकि आगे भी लम्बी यात्रा करनी थी व मुख्य दुख ये था कि इतने लोगों के सामने हम बेईमान कहलाये गये. बस 1 घंटे बाद चलनी थी । कुछ देर बाद देखा, सराय वाली अपने बेटे के साथ आ रही थी, व बस में किसी को ढूंढ रही थी । मैने पिताजी को बोला – लो आ गयी फिर और अब कहेगी आप पैसे दिये बिना भाग रहे थे ।
खैर वो हमारी बस में चढ़ी और सीधी पिताजी के पास आकर हाथ जोड़कर बोली – भाईजी मुझे माफ कर दो.. अभी मेरे बेटे ने बताया कि आपने अडवांस दिया था जो मैने उसे कुछ खरीदने के लिये दे दिया और मेरे दिमाग से निकल गया । पिताजी ने चुपचाप पैसे लिये और कहा – कोई बात नही गलती हो जाती है । जाते -2 उसने एक 5 का नोट निकाला और मुझे दे कर बोली – बेटा मेरी गलती के लिये माता को गाली मत देना… उसी ने मुझे सच दिखाया और मैने अपनी गलती ठीक कर ली…ये लो ये पैसे तुम्हारी मौसी की तरफ से समझ कर रख लो… इस से पहले कि मैं 5 रु. उसे वापिस करता वो बस से उतर कर चली गयी.. और हम ज्वाला जी की तरफ ।
अब इसे, वैष्णो देवी का चमत्कार कहें या उस बुढ़िया की ईमानदारी या अपनी अच्छी किस्मत ?? अब हम वैष्णो देवी जाते हैं हज़ारों रुपये खर्च करते हैं… पर वो 5 का नोट याद आता है तो दिल भर आता है ।
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1983 में… मै, लक्षमण, विनोद डलहोज़ी, धर्मशाला घूम कर ज्वाला जी पंहुचे । सफर में थके थे … तब ज्वाला जी में केवल कुठियाला धर्मशाला ही होती थी ठहरने के लिये, कोई होटल वगैरह नहीं थे.. था भी एक पर वो हमारी पंहुच के बाहर । सामान धर्मशाला में रखा और चल दिये दर्शन करने. ज्वाला जी मंदिर के बाहर सीधे हाथ पर एक गुसलखाना था, सोचा स्नान कर के चलें । अंदर गये तो देखा इतनी गंदगी, चारों ओर कीचड़, फटे कपड़े, दातुन वगैरह बिखरे पड़े थे। सोच रहे थे कि नहायें या नही… एक परिवार और आया और वो भी गंदगी देख कर रुक गये । बस जी… भाषण शुरु हो गये । देखो हमारे मंदिरों में कितनी गंदगी होती है…गुरुद्वारे देखो कितने चम चम करते हैं… दुसरे सज्जन बोले – अरे इतना दान देते हैं हम लोग.. पंडित सब खा जाते है, कोई सफाई भी नहीं करता ।
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विनोद ने सलाह दी – मुख्य पंडित के पास चलते हैं, और उसे कहते हैं सफाई कराने को.. और 2 लोग चल दिये पंडित के पास… भाषण बरकरार चल रहे थे । कुछ देर बाद आ कर बोले. .ठीक कर दिया जी ..अभी भेजेंगे सफाई वाला । खैर कोई नहीं आया…
लक्षमण जो हम सबसे अमीर घर से था व कभी घर में काम नही करता था बोला – मेरे पास रास्ता है, सफाई करने का… सबने पूछा क्या ??? वो एक कोठरी-नुमा कमरे में गया, वहां से एक झाड़ू व बाल्टी लेकर आया और बोला चलो मैं झाड़ू लगाता हूं तुम लोग पानी डालो… हम तीनों लग गये, हमें देख 1-2 लोग और भी आ गये और आनन फानन में गुसलखाना चमकने लगा ।
उस दिन लक्षमण ने मुझे एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ाया…. फालतू बातें कर के दूसरों को कोसने की जगह स्वंय आगे बढ़ो और कर दो जो दूसरे नही कर पाये ।। धन्यवाद् लक्षमण !!!!!
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1981 – किसी दूर के रिश्तेदार की मौत पर पिताजी ने हुक्म दिया कि मैं जाऊ । बस अड्डे पंहुचने से पहले लक्षमण की दुकान पर गया और उसे बताया, कि मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं । भाई भी पैदाईशी घुम्मकड़ बोला यार तू अकेला बोर हो जायेगा चल मैं भी चलता हूं । दोनों ने बस पकड़ी और पंहुच गये चंडीगढ़ । अगले दिन सुबह दिल्ली की बस पकड़ने गये तो सामने शिमले की बस खड़ी थी । लक्षमण बोला चल यार शिमले चलते हैं और हम शिमला पंहुच गये… उतरते ही सामने नारकंडा की बस खड़ी थी, लक्षमण ने पूछा यार हमने नारकंडा नहीं देखा… और लो हम शाम तक नारकंडा में थे. तब नारकंडा में केवल 1 हिमाचल टूरिस्म वालों का टूटा-फूटा रेस्ट हाउस था, और कोई होटल नही । हम थोड़ा उपर चढ़् कर उस रेस्ट हाउस में पहुंचे और वहां मौजूद थकेले चौकीदार/मैनेजर/रसोइये से कमरे के बारे में पूछा. उन दिनों कोइ विरला ही नारकंडा में रहने आता था. कमरे सब खाली पड़े थे…. किराया था 40 रु. एक रात के ।
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हम कोई यहां की योजना बना कर तो आये नहीं थे अत: पैसे भी कम थे हमारे पास. लक्षमण ने उसे कहा भइया हमने सिर्फ रात को सोना है, कैसा भी हो पर कोई सस्ता कमरा बताओ। चौकीदार ने कहा – कमरा तो है.. बहुत छोटा है फिर न कहना.. किराया 10 रु. व रसीद भी नहीं मिलेगी. हमारी झट हां थी.
घूम फिर कर रात सोने आये. कमरा बहुत छोटा था… पर 10 रु में क्या बुरा था, दोनो टेढ़े-मेढ़े हो कर सो गये… थोड़ी देर में मुझे गरदन में कुछ चुभने लगा… जब असह हो गया तो लक्षमण को बताया.. हम दोनो उठे और गद्दा उठा कर देखा तो नीचे पाईप काटा हुआ लगा था… अचानक कुंडली-जागरण हो गया.. पता चला कि ये वास्तव में एक बाथ-रुम था जो शायद अब काम में नहीं लाया जाता.. कमोड का पाईप ही मेरी गरदन में चुभ रहा था… खैर सिर दूसरी तरफ किया वहां भी कुछ पाइप जैसा चुभने लगा परन्तु कुछ देर बाद नींद आ ही गयी.
सुबह थकेले चौकीदार को शिकायत की – भईया बाथ-रूम में सुला दिया, रात भर करवटें बदलते रहे. चौकीदार महाराज भौंके – 10 रु में क्या ताजमहल में सोना था ??
दिल्ली पंहचे… विनोद के घर गये और अपनी यात्रा की बढ़ा चढ़ा कर बातें सुनाई ताकि उसे जला सकें… पेश है हमारी बातचीत का एक अंश
विनोद – अच्छा तो तुम नारकंडा तक पंहुच गये ?? कैसा है
लक्षमण – बहुत खूबसूरत .
विनोद – ठहरे कहां थे
मैं – अरे हिमाचल टूरिस्म के होटल में..
विनोद – पर वो तो मंहगा होगा
लक्षमण – हां 40 रु का कमरा था.. पर हमने चौकीदार को पटा लिया और 10 रु में ठहरे थे
विनोद – 10 रु ????
लक्षमण – हां 10 रु… क्या समझता है हमें
विनोद – भईया 10 रु में तो कोई बाथरूम ही देगा सोने को.. कमरा नहीं.
हम दोनो को जैसे सांप सूंघ गया और मेरा हाथ बरबस ही अपनी गरदन सहलाने लगा
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ये बात 2003 की है जब मैं स्काटलैंड से वापिस आया था । मैने वहां 2 छोटे टैन्ट खरीदे थे घुम्मकड़ी के लिये ।
प्रदीप व विजय को कहा चलो टैन्ट टैस्ट कर के आते हैं…. आनन-फानन में प्रदीप की गाड़ी से पहुंच गये देवप्रयाग । गंगा में नहाये व कुछ घूमना किया तथा वापिस रिषीकेश की तरफ चले। रास्ते मे एक छोटी सी नदी मिली जो नीचे जाकर गंगा में मिल रही थी । नदी के पुल के पास नीचे जाने का रास्ता नजर आया बस हमने गाड़ी नीचे उतार दी… वहां ट्रक आने से पत्थरों में रास्ता सा बना था । काफी मेहनत से धीरे-2 चलते हुए आखिर बिल्कुल गंगा के किनारे पंहुच गये। रेतीले बीच पर गाड़ी खड़ी की और जुट गये टैंट फिट करने…चूंकि पहली बार टैट लगा रहे थे, काफी मुश्किल आई और अंतत 2 घंटे के बाद हमारा टैंट खड़ा हो गया.
कार की बैटरी से तारें निकाली और 2 छोटे बल्ब, एक टैंट के बाहर व एक अंदर चमकने लगे। गाड़ी का स्टिरियो पूरी आवाजं में चलाया और रफी तथा किशोर के गानों की आवाज़ सूनी घाटी में गूंजने लगी । कुछ मीटर की दूरी पर गंगा कल-कल कर बह रही थी…फिर काफी देर संगीत के मध्य गंगा में नहाते रहे ।
अंधेरा होने पर बाहर आये और अपने टैंट के बाहर बैठ कर गप्पें मारने लगे । रात के 10 बज गये तो सोचा कुछ खाया जाये । दूर उपर सड़ंक पर एक ढाबे की रोशनी जल रही थी….टार्च उठाई और चढ़ गये सीधे ढाबे पर.
गरम गरम खाना खाया, और वापिस जाने की तैयारी करने लगे। ढाबे के मालिक का हिसाब किया तो बोला – अभी तो यहां से कोई गाड़ी नहीं मिलेगी, आप रात कहां रहेंगे ? यहां तो कोई होटल भी नही ।
हम उसे बाहर लेकर आये और अपने टैट की मद्धम रौशनी की और इशारा करके कहा – वो दूर गंगा के किनारे रौशनी देख रहे हो, वहां हमने टैंट लगाया है, रात वहीं सोयेंगे…और गर्व से उसकी ओर देखा.
पहाड़ी बोला – क्या गजब कर रहे हो बाऊजी, वहां तो रात को शेर तथा अन्य जंगली जानवर पानी पीने आते हैं
हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम… अब नीचे जाने की हिम्मत नही हो रही थी…खैर राम राम करते नीचे पंहुचे। मैने बोला घबराने की बात नहीं, रौशनी देख कर शेर यहां नही आयेगा. पर विजय रहने को तैयार नही हुआ, बोला वो ढाबे वाले के साथ सो जायेगा. प्रदीप ने भी कहा कि अगर रात को बत्ती जलाते रहने से बैटरी बैठ गयी तो सुबह गाड़ी चालू नहीं होगी…. उनका बातें सुन कर मुझे भी डर लगने लगा और हमने 2 घंटे की मेहनत से लगाये टैट को 5 मिनट में खोला और वहां से भाग लिये। आधी रात का समय, कोई गाड़ी नही… कोई रौशनी नहीं..
रात 12 बजे रिषिकेश पंहुचे.. सब होटल बंद पड़े थे… बड़ी कोशिश के बाद 1 बजे के आसपास एक घटिया से होटल में कमरा मिला और अपन लोग, केंचुली मार कर दहाड़ -2 कर सो गये
उसके बाद दसियों बार वहां से निकले और जब भी उस जगह से निकलते है, हंसी निकल जाती है
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ये बात गंगोत्री की है, हम लोग मंदिर के पीछे से गंगा के किनारे किनारे जंगल की तरफ घूमने गये. जगह बड़ी रमणीक थी । कुछ दूरी से 2 विदेशी आ रहे थे… महिला व पुरुष दोनो 50-55 के रहे होंगे. पास आने पर देखा कि वो दोनो थैला उठाये थे और चुन चुन कर वहां से कूड़ा, जिसमें पानी की खाली बोतलें, नमकीन के खाली लिफाफे, सिगरेट की डब्बियां इत्यादी था.
मैने उनसे पूछा कि क्यो कर रहे हो तो वो बोले – ये इतनी सुंदर जगह है, पर गंदगी इस पर दाग लगा रही है…तो हमने सोचा खाली घूमने से अच्छा है, कूड़ा उठा दें.
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मेरा सिर शर्म से झुक गया, और हम भी फिर उनके साथ कूड़ा उठाते -2 वापिस मंदिर पंहुचे. उस दिन से मैने कसम खाई कि कभी कहीं कूड़ा नहीं फैकूंगा और न अपने साथ जाने वालों को फैकने दूंगा.
मुझे आशा है, यहां के बहुत से घुम्मकड़ों ने ये कसम ली होगी… जिन्होनें नहीं ली वो आज यहां हम सब घुम्मकड़ों के सामने यही कसम लें – हम कूड़ा नहीं फैलायेंगे, न अपने साथ वालों को फैलाने देंगे… और हो सका तो कूड़ा साफ करेंगे
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तो दोस्तो आज इतना ही….. कुछ और कलम-बद्ध किया तो आपके साथ अवश्य बांटूंगा । धन्यवाद
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Great Post……
tks prakash ji
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tks Naman. you have good photographic skills and I am waiting for some gr8 photos in your next post on Kashmir
Dost,
ankhny nam ho gai, itni chhoti-chhoti bateny bhee ab tak yaad hai.
college time say abtak jitni bhee yatrany tumhary sath kee sab yaad aa gai.
mery bachay to kehty hai ki uncle ney asi-asi jaghy hamey dikhai jin ka naam
bhi nahi suna thaa. mey to sab say kehta hon mujhy hindustan dikhaya mery dost ney mujhey
duniya ghumaya mery dost ney
thanks for every things
waiting for next post
thanks laxman.. there are more little stories about our trips with Kapuria, JP and pradeep. keep coming to Ghumakkar dot com
Superb photography!
tks sunworld…
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Travel together woth photography do leave us with moments which could be relived again and again. That’s the joy of traveling. Great post Mr. Silentsoul. Nostalgia is so good :-)
Cheers!
Nikhil
tks chandra and congrats for becoming featured author for Feb,12 !
Dear SS,
Thank you. This post is like ‘Chitrahaar’ – colorful and full of nostalgia! Great format and very interesting. Experiment ??? ???! :)
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Dear Silent
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Tks vishal rathod ji. yes i will come with more such snippets. tks for encouragement
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Har jagah hamein vida dete huye yaadein de jati hai.
Bada accha likha aapne, tent wali story padhke mein apni hansi nahi rok paya.
Vaishno Devi wali story mein, us aurat ka pashchatap hoga jo use apki bus tak le aya.
Main bhi kabhi kuda khula mein nahi phekta. kahi jata hoon to apni gadi mein hi ikathha karta rehta hoon, taki dustbeen mile to sara ek saath phek saku…par phir bhi is seekh ke liye dhanyawaad.
Likhte rahiyega.
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Dear Silentsoul ji,
Very interesting post. keep sharing.
tarunji thanx ! pls read next part too
no one noticed that it was my first hindi post !!!
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Dear Silent Soul !
& Dear Ghumakkars…
Maine to yeh article pad kar kisi dusri duniya mein hi pahuch gaya…aur sach kaho to jitna maja post padh ke maja aaya utna hi comments padh ke bhi aaya. Maine aajkal niyamit rup se ghumakkar dot com aana chalu kar diya hein…ek aadat ban gai hein. Jeevan mein itni acchi ghumakadi kar saku, jeevan ko jee saku aur is tarah ki yaadein .. yaad kar saku… issi khawahish ke saath…
bhavesh
p.s. bhamandevta aapko suit karta hein. safai ki shapath mein bhi leta hu. pehla photo vakai kamal hein. aur pehle hindi post ki bhadhai sweekar kare.
thanks Bhaveshji for your kind words. and thanks for joining my VOW !!
wow, amazing posts!
tks kanupriya. Pls keep reading future parts
Dear SS – Congratulations, your story is the ‘Featured Story of February 2012’ :-). At this point of time, the instrument of this recognition is through the monthly AuthLetter we send to all Authors. If you or any of the other Authors are not getting this, please write to me/Vibha or send a mail at info AT ghumakkar.com
I am hoping that this is a meethi news. Lol.
Tks Nandan for yr compliments and all what you have done for me and for other ghumakkars on this site.
Happy Holi to you & yr family
SSji
Picture hit hai. ?????-?????? ???? ?? ??? ?? ???? ??? ??| ????????|???? ?? ????? ????? ???|
Tks Manish ji… ??? ???… ??????? ???
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@ gentlesaand – thank you very much for reading and appreciating my post. Pls share your stories too here.
O Great SS ji! Khatti Mitthi Yaden parhkar to maza aaya hi, saath main hamare pariwaar main ek aur sadsya jurha Mr. gentlesaand. Um-meed karta hoon, ye bhi kuchh-bahut rochak ghumakkary karvayenge aur purani yaadon se gud-gudayenge.
Dear SSji,
Behad ashcharya mein dal diya aapney is lekh ko likhkar, kayse itni minute detailing mein yaad reh jaati hai itne puraaney episodes, aaj ke is bhagam bhag jiwan mein kuii baar apna naam bhi bhool jatey hain log. Humour ek bahoot bada gun hay yeh bilkul bhi asaan nahi, Narkanda main chowkidaar ka kehna 10 rupay main kya Tajmahal me rahogey ultimate thaa. Abhhi bhi hans rahaa hoonmain uss drishya ki kalpana karkey. Aap behud sanjidgi bharey insaan hain shayad issliye jindagi ki bahoot saari baarik baaton ko itni gehrai se pad lete hain. Aapme prachin, madhya aur adhunik sabhi sanskaron kaa samavesh hey isliye aap sabhi paristhityon ko enjoy kar lete hain. My deepest regards to your parents for their extremely creditable upbringing. It is pure entertainment and pleasure reading such experiences. God bless you sir….
Dhonnbad ganguli dada… ???? ???? ???? ?? ????? ?????? ??… ?????, ? ???????.. ???? ?? ???? ???? ???? ??????? ???? ????? ?? ???? ??… ?? ???? ??? ??…??? ????? ????? ?? ?? ????? ?? ??? ????? ?? ???? ??
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