शीर्षक पढ़कर आपको थोडा आश्चर्य तो जरुर हुआ होगा कि अरे ये क्या अभी तो यात्रा का मजा आने लगा था और अभी दिल्ली वापसी. जब आपको पढ़कर ऐसा लगा तो सोचिये भला मुझे कैसा लगा होगा जब ये यात्रा बीच में ही अधूरी छोड़नी पड़ी. जैसा की आपने पिछले लेख में पढ़ा कि हम लोग मनमोहक भविष्य बद्री के दर्शन करके कई जगह तीखी ढलानों से उतरते हुए मलारी वाले सड़क मार्ग तक पहुँच चुके थे. हमारा आगे का कार्यक्रम केदारनाथ की ओर रुख करने का था जिसके लिए हमें दुबारा रुद्रप्रयाग से होकर गुजरना था. वैसे इस सड़क पर दूर दूर तक किसी वाहन की उम्मीद नहीं दिख रही थी, सोचा चलो तपोवन से तो कुछ ना कुछ जुगाड़ मिल ही जाएगा. हम सभी गाइड साब को वापस भेजने की नाकाम कोशिश करते हुए आगे बढे चले जा रहे थे कि एक जीप आती दिखाई दी. हाथ दिया तो चालक साब ने रोक दी. हमने जोशीमठ जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें बिठा लिया और गाइड साब भी थोड़ी देर पीछा करने के बाद सलधार से वापस लौट गए. रास्ते में हमने पूछा कि भाई कहाँ तक जाओगे, तो चालक साब बोले जहाँ तक चलोगे वहीँ ले चलेंगे. ऐसे निर्जन स्थान से सीधा रुद्रप्रयाग के लिए जीप पाकर हम लोग बड़े खुश हुए.
सुबह सुबह जिस तूफानी रफ़्तार से हमने तीखी ढलानों पर उतराई की थी उसका प्रभाव अब दिखने लगा था. दोनों साथियों के पैर दर्द के मारे जवाब दे रहे थे और पुनीत का तो आगे बढ़ते बढ़ते दर्द भी बढ़ने लगा था. ऐसे में मुझे आगे की यात्रा कुछ धुंधली सी पड़ती नज़र आ रही थी पर मैं अभी भी इस यात्रा को लेकर आशान्वित था. यात्रा के दौरान मैं पैर का दर्द भगाने के लिए ‘मूव’ आदि साथ रखता हूँ ताकि आगे आसानी से मूव किया जा सके. थोडा ‘मूव’ लगाने से सबको आराम तो महसूस हुआ पर आगे बढ़ने की ईच्छा कमजोर सी पड़ती जा रही थी. थोडा आगे आने पर पुनीत ने चालक साब से पूछा कि कहाँ तक जाओगे तो इस बार उसने कहा कि मुझे रात होने से पहले श्रीनगर पहुँचना है जहाँ से उसकी एक यात्रा की बुकिंग थी. रुद्रप्रयाग पहुँचने से पहले ही पुनीत और दीपक ने आगे यात्रा जारी रखने में अपनी असमर्थता जताई. मैं हालांकि यात्रा को पूरी करना चाहता था, पर दोनों को ऐसी हालत में देखकर मुझे उनका साथ देना ही मुनासिब लगा.
रास्ते में हम लोग लोग थोड़ी देर रुद्रप्रयाग में रुके और फिर चल दिए श्रीनगर की ओर. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते हमें काफी देर हो चुकी थी और आज रात इससे आगे जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था. कोई जीप या बस मिलने की तो संभावना बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि यहाँ हिमाचल की तरह रात को बसें नहीं चलती. ऐसे में हमारे चालक साब ने हमें रात श्रीनगर में ही बिताने का सुझाव दिया और हमें रात गुजारने का एक ठिकाना भी दिखाया. हमने ठिकाना तो देख लिया पर अब किसी का भी यहाँ रुकने का मन नहीं था और सब जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे. उत्तरांचल में वैसे तो रात को कोई वाहन नहीं चलते पर सब्ज़ी फल आदि रसद पहुँचाने वाले ट्रकों की आवाजाही रात भर चालू रहती है, सोचा क्यों ना इसे ही आजमाया जाए. आज शायद किस्मत हम पर मेहरबान थी, थोडा पूछ्तात करने पर ही हमें एक ट्रक मिल गया जो हरिद्वार तक जा रहा था. ट्रक चलने में अभी लगभग आधा घंटा बाकी था और सुबह सिर्फ आश्रम में ही भोजन किया था इसलिए एक ढाबे पर जाकर थोड़ी पेट पूजा की गई.
ट्रक पर वापस लौटे तो देखा की चालक के साथ वाली सीट पर पहले ही दो लोग बैठे हुए थे. ऐसे में वहाँ हम तीनों का एक साथ बैठना संभव और सुरक्षित नहीं था. इसलिए दोनों की बुरी हालत देखकर मैं ट्रक के पीछे चला गया जहाँ कुछ अन्य लोग पहले से ही लेटे थे. इस ट्रक के ऊपर एक बरसातीनुमा दरी थी जो शायद सब्जियों को धूल और बारिश से बचाने के लिए डाली गयी थी और नीचे खाली प्लास्टिक के डब्बे रखे हुए थे जिनमे सब्जियाँ रखी जाती हैं. इन्ही हिलते डुलते प्लास्टिक के डब्बों के ऊपर हम सभी मुसाफ़िर लेटे हुए थे. ट्रक चलने पर कुछ समय तो बड़ा मजा आया पर जैसे जैसे रात गहराती गयी और नींद आने लगी तो इन हिलते हुए डब्बों पर सोना बड़ा दुखदायी लग रहा था क्योंकि एक तो ये डब्बे आपस में टकराकर हिल रहे थे और टेढ़े मेढ़े होने की वजह से चुभ भी रहे थे. खैर मेरे लिए तो ये सब रोमांच था, लेकिन रोमांच धीरे धीरे बढ़ने लगा जब इन्द्रदेव अर्धरात्रि में जागे और हम पर जमकर मेहरबान हुए. तिरछी पड़ती हुई मोटी मोटी बारिश की बूँदे हमारे ऊपर एक शॉवर की तरह पड़ रही थी जो एक मंद मंद शीतल रात को एक बर्फ़ीली सी महसूस होने वाली रात में बदलने के लिए काफी थी. ऐसे में ऊपर रखी हुई दरी ने ठण्ड से तो नहीं पर भीगने से तो बचा ही लिया. ठण्ड में किटकिटाते हुए, बिना सोये जैसे तैसे करीब चार बजे के आस पास ट्रक चालक ने हमें हरिद्वार में एक सुनसान मोड़ पर उतार दिया. जितना दर्द मेरे शरीर में उस ट्रक में सवारी करते हुए हुआ उतना पूरी यात्रा कहीं नहीं हुआ, शरीर इतना अकड़ गया था कि ट्रक से बाहर निकलने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी. ठण्ड के मारे बुरा हाल था, सुनसान गलियों से होकर गुजरते हुए हम लोग बस स्टेशन की ओर बढ़ने लगे. ऐसे में रास्ते में एक चाय का ठेला देखकर चेहरे पर कुछ ख़ुशी आयी, भाईसाब के हाथ की गर्मागरम चाय और बंद खाकर शरीर में कुछ ऊर्जा आई. फिर तो बस जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए हरिद्वार बस स्टेशन पहुँचकर, दिल्ली की बस पकड़ी तो लगभग दस या ग्यारह बजे तक दिल्ली पहुँच कर ही राहत की साँस ली. यात्रा समाप्त!
अब थोडा सम्पूर्ण यात्रा की समीक्षा! ये एक बजट यात्रा थी, कुल मिलाकर 7 रातें जिनमे से 2 रातें वाहनों में (दिल्ली से ऋषिकेश + श्रीनगर से हरिद्वार), 2 रातें डोरमेट्री में (बद्रीनाथ – 60 रुपए प्रति घुमक्कड़ + जोशीमठ – 70 रुपए प्रति घुमक्कड़) और बाकी 3 रातें मुफ्त के ठिकानों में (उमरा नारायण मंदिर रुद्रप्रयाग भोजन समेत + मास्टर सलीम का आशियाना जोशीमठ + साधू आश्रम भविष्य बद्री भोजन समेत). जहाँ तक याद पड़ता है यात्रा का कुल खर्चा (दिल्ली से दिल्ली तक) 2000 रुपए प्रति घुमक्कड़ से नीचे ही रहा था जिसमे अधिकतर खर्चा सार्वजनिक वाहनों पर ही किया गया था. पूरी यात्रा में हमारा ज्यादा से ज्यादा प्रयास पैदल यात्रा करने का था जो जितना हो पाया हमने निभाने की कोशिश की और सफलता भी पायी. इस यात्रा से मुझे अपने एक विदेशी मेहमान की एक खुबसूरत सोच की याद आती है जिसे आपके साथ साझा करना चाहता हूँ. कुछ साल पहले हमारे एक अमरीकी मेहमान अपने दो छोटे बच्चों जिनकी उमर करीब 12 या 13 साल रही होगी और बीवी समेत लगभग 40 दिन की भारत यात्रा पर आये थे. उनसे बातचीत के दौरान एक बड़ी रोचक बात पता चली, दरअसल ये परिवार एक साल के लिए विश्व यात्रा पर निकला था जिसका अधिकतर हिस्सा ये लोग भारत में बिता रहे थे. ऐसे में मेरे दिमाग में एक सवाल कुलबुलाहट ले रहा था और मैं भी इसे पूछे बिना रह नहीं पाया. सवाल बड़ा साधारण और स्वाभाविक सा था कि इतने लम्बे समय तक बाहर रहने से बच्चों की पढाई अवश्य ही प्रभावित होगी, तो भला ऐसा रिस्क क्यों? जवाब सुनकर मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका, उन महाशय का मानना था कि ये बच्चे एक वर्ष में घूमने से जितना ज्ञान व अनुभव प्राप्त करेंगे वो एक साल की पढाई से कई गुना ज्यादा और प्रभावी होगा और इन्हें एक अच्छा इंसान बनाने में एक निर्णायक भूमिका अदा करेगा. खैर हमारे लिए भी ये यात्रा कुछ इसी तरह की थी अलग अलग तरह की परिस्थितियाँ, भिन्न भिन्न अनुभव, कई प्यारे साथी, ढेर सारी रोचक जानकारी, भरपूर रोमांच और मजा ही मजा. अपने इन दोस्तों के साथ इसके बाद और भी कई यादगार यात्राएँ की और भविष्य में भी कई यात्राएँ प्रस्तावित हैं, फिलहाल इनके अमरीका से लौटने का इंतज़ार है. इस यात्रा को लिखित रूप देने की मुख्य वजह थी उन सभी पलों को संजोये रखने और दुबारा जीने की कोशिश करना, जिसमे लगता है कुछ हद तक सफलता भी पायी. हालाँकि उन यादगार पलों को दुबारा जीने के लिए ऐसी ही किसी यात्रा पर दुबारा निकल पड़ना होगा, इंशाल्लाह ऐसा वक्त जल्द ही आयेगा…तब तक के लिए घुमक्कड़ी जिंदाबाद!
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A very good & adverntures series.
Your adventure & experience can be felt by us but you have physically faced this. You have done all this only in Rs. 2000/- per head.
Great……….. Thanks for sharing your experience.
Regards.
Thank you Saurabh Ji for your kind words!
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https://www.ghumakkar.com/2012/09/01/from-the-editor-if-we-had-a-year/
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dear vipin jee
bahut hi uttam koti ka yatra vivran aur bahut hi sunder photo, dekhkar man purntah santusht hua lekin ye kya asha thi ki ye safar bahut dhoor tak jayega aur intervel me hi film samapti ki ghoshna.
man nahi man raha aapke agale yatra vartant ka intajar ……
bhupendra
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This whole journey was well written. Espacially – Tapovan part, pictures as well description were mesmerizing.
I am glad that you liked the entire journey, Praveen Ji.
Lovely pics. I have not read the text due to poor Hindi reading skills but will try when I have some time.
Thank you, Gita Ji for liking the photos.
Hi Vipin,
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Auro
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???? ?? gap year ?? ???? ??, it is an idea whose time has come. The purpose of an education is to learn how to become a good and productive member of the society we live in. In India, we equate the ability to read or write or know calculus or accounting with education. They are just skills and can not be truly called an education. We need to learn the dignity of hard work and labour, to respect the laws of the land, to respects others and see them as our equals irrespective of their social or financial status, to be sensitive to the environment we live in. Which is why I say that in spite of growing literacy, we remain largely uneducated. Travel, reading, learning subjects which are not related to the way we make a living are important and education is a life-long process. And, what better way to learn than to travel….In this respect, your generation are far better than those of my generation.
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Sorry for the typo…the last English sentence in the above post should read “In this respect, your generation is far better than my generation.”
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Good written post nice photos. But in future you can well planned your journey and Budget should be arrange properly. Proper rest and transportation can be arranged. Thanks a lot share your journey.
Thank you Surinder Ji for your valuable words!
Dear Vipin ,
This is a great series . I loved every bit of it. Garhwal attracts me more than anything else . Once I come I want finish each and everything . I hope Lord fulfills my wish.This series will be helpful in my Garhwal trip . Thanks for sharing .
Hope you get well and fully fit soon and do ghumakkari soon.
Thanks Vishal bhai for your wishes. May you soon get to visit this devbhumi! Though it is difficult for anyone to cover each & everything in one visit (until & unless one decides to stay back for years & years), hope you won’t mind coming here again & again…:)…the entire land is scattered with gems here & there…
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Hello Vipin Jee,
Mein last 6 Month Se Ghumakkar.com ko Pad Raha houn or aaj finaly meine ise join bhee kara hai
meine aapki puri trip ek sath padi, Thanks itna shandar likhne k liye or ham jaisee naye logo ko likhne k prerna dene k liye.
ye mere 1st comment hai, aabhi pata nahi kaisee likhte hai par i wish mein bhee jaldi hee seekh jaunga.
Regards
Jitendra Upadhyay
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I read number of times,every time i feel that it is a fresh one,beautiful defined visit,no words to say thanks,nice clicks,though every click is beautiful but i liked most Tapovan side clicks.Thanks a lot Vipin n party.