दोस्तों जैसा कि आपको ज्ञात है पिछली गढ़वाल यात्रा विपरीत परिस्थितियों के कारण अचानक ही समाप्त करनी पड़ी. केदार हमेशा से ही मुझे बद्रीनाथ की तुलना में ज्यादा प्रिय रहा है इसका मुख्य कारण है इसका खुबसूरत हिमाच्छादित चोटियों से घिरा होना और यहाँ तक पहुँचने का खुबसूरत पैदल रास्ता…हालाँकि पिछली यात्रा में ये भी शामिल था और यहाँ तक ना पहुँच पाने के कारण थोडा दुःख जरुर था. लेकिन यहाँ आने के लिए मन बैचेन था. पिछले साल पूरा मन बनाया था कि इसकी यात्रा अप्रैल/मई में पट खुलने के दौरान ही की जायेगी, चाहे अकेले ही क्यों ना करनी पड़े. कार्यक्रम तय था, 27 अप्रैल की रात को दिल्ली से रवानगी और 1 मई को दिल्ली वापसी, कुछ साथियों की इसकी सुचना दी गयी ताकि अगर कोई उत्साहित हो तो वो भी इस खुबसूरत जगह का आनंद ले सके, हालाँकि कोई राजी नहीं हुआ. 26 अप्रैल की शाम घर के समीप स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर में एक पुराने दोस्त कुंदन से काफी समय के बाद अचानक मुलाक़ात हुई. इधर उधर की बातों के बाद अचानक से घुमक्कड़ी का जिक्र आया तो कुंदन को केदार यात्रा के बारे में बताया और ये क्या कुंदन एकदम राजी, शायद भोले का बुलावा आया था उसके लिए, चलो एक से भले दो. अगले दिन दोपहर को कुंदन का फोन आया कि उसके घर में अचानक से कोई मेहमान आ गए हैं जो 28 अप्रैल की सुबह अपने घर वापसी करेंगे इसलिए कार्यक्रम में बदलाव करके 28 अप्रैल की दोपहर तक ही दिल्ली से निकल पाए. ऋषिकेश पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी और ऋषिकेश से आगे जाने के लिए आज कोई दूसरा जुगाड़ नहीं मिल पाया. पूछ्तात की तो पता चला कि आगे की पहली बस सुबह लगभग सवा तीन बजे चलेगी.
जैसे ही हम लोग लक्ष्मण झुला की ओर बढ़ने लगे, तेज हवाएँ चलने लगी और झुला तेज तेज हिलने लगा. हवा का वेग इतना तेज था कि बिना सहारे के झूले पर चलना बहुत मुश्किल लग रहा था, ऐसा लग रहा था मानो ये हवा अपने साथ उड़ाकर ले जायेगी. सभी लोग झूले को पकड़कर किसी तरह पार करने की कोशिश कर रहे थे, ऐसे में मुझे लग रहा था कि हमारी जगह अगर कोई छोटा बच्चा या कोई पतला सा इंसान होता तो नि:संदेह उड़ ही जाता. ऐसे में कई बार फोटो लेने की बेकार कोशिश भी की लेकिन स्थिरता ना मिल पाने की वजह से फोटो भी अच्छे नहीं आ रहे थे, ऊपर से उड़ने या गिरने का डर अलग से लग रहा था. खैर जैसे तैसे पुल पार कर ही लिया, बड़ा रोमांचक अनुभव था यह.
अब आज रात के लिए रुकने का ठिकाना ढूँढना था, खोज शुरू हो गयी, सोचा जब जगह मिल जायेगी तो गीता प्रेस के ढाबे में इत्मिनान से लजीज भोजन का आनंद उठाएंगे. थोडा आगे बड़े ही थे की जिसका डर था वही हुआ, अचानक ही मोटी मोटी बारिश की बूंदों ने धावा बोल दिया, सर छुपाने के लिए एक भोजनालय के बाहर खड़े थे कि अन्दर पक रहे स्वादिष्ट भोजन की सुगंध ने अन्दर घुसने का न्योता दे डाला, भला हम कहाँ पीछे रुकने वाले थे, सोचा जब तक बारिश बंद नहीं होती थोडा यहाँ का जायका भी चख लें. लगभग एक घंटे बाद बारिश बंद हुई और हमारा खाना भी. परमार्थ निकेतन आश्रम पर पहुंचे तो ये भी बंद होने वाला था, द्वारपाल से प्रार्थना करके जल्दी से अन्दर का एक चक्कर लगा आये. चूँकि सूरज ढल चूका था और सूरज ढलते ही मेरा कैमरा भी फेल हो जाता है उसे अँधेरे में कम दिखने वाली बिमारी हो जाती है, पर कुछ फोटो यादगार स्वरूप जैसी भी हो खींच ही ली. वैसे स्वर्गाश्रम गंगा घाट का रात्री दृश्य इतना मनोहारी था कि वहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा था, मेरा तो रात यहीं घाट पर बिताने का मन कर रहा था. पर समूह में यात्रा करते समय अन्य साथियों की सहमति भी जरुरी होती है, कुंदन से पूछा तो वो आश्चर्यभाव से मेरी ओर देखने लगा, उसे शायद इसकी उम्मीद नहीं थी, वैसे भी ये उसकी पहली गढ़वाल यात्रा थी. उसने कहा कि रात खुले में सोना अच्छा नहीं है इसलिए हमें कहीं कोई जगह ढूँढनी चाहिए, उसकी बात मानते हुए हम लोग फिर खोज में जुट गए.
हालाँकि अभी यात्रा सीजन की शुरुआत बस हुई ही थी, फिर भी दो तीन जगह पूछने के बावजूद भी हमें हमारे हिसाब से कोई ठिकाना नहीं मिला. रात हो गयी थी और हम लोग यहाँ से ज्यादा दूर जाना भी नहीं चाहते थे. इतने में गीता प्रेस के भोजनालय की याद आई, यहाँ भोजन करने का एक निर्धारित समय होता है. तेज कदम उसी ओर दौड़ाने शुरू कर दिए इस आशा में कि यहाँ पर स्वादिष्ट भोजन करेंगे. पर एक और निराशा हाथ लगी, पहले तो रुकने की जगह नहीं मिल रही थी, उस पर यहाँ पहुंचे तो भोजनालय बंद मिला, हमें थोड़ी देर हो गयी थी. खैर कोई बात नहीं, भोजन तो हम वैसे कर चुके थे, पर यहाँ के भोजन की तारीफ़ सुनकर यहाँ का स्वाद चखने का मन बनाया था. कुंदन बड़ा धार्मिक प्रवृति का है, कहने लगा रात को कई जगह सत्संग होता है वहीँ चलते हैं सत्संग सुनेंगे और रात भी वहीँ बिताएंगे. मैंने भी उसका मन रखते हुए हामी भर दी और फिर सत्संग वाली जगह ढूँढने लगे, कई लोगों से पूछ्तात करते करते यहाँ से वहां घूमते घूमते रात गहराती जा रही थी, पर संयोगवश उस दिन हमें किसी भी जगह सत्संग होता नहीं मिला या शायद हमें वो जगह नहीं मिली जहाँ सत्संग हो रहा था. लगभग रात के साड़े दस बज चुके थे और हम लोग अभी भी ऋषिकेश की सुनसान गलियों में घूम ही रहे थे जहाँ कुछ साधुजनों और गायों के आलावा और कोई नहीं दिख रहा था. अंत में घूमते घामते हम लोग दुबारा स्वर्गाश्रम वाले गंगा घाट पर ही पहुँच गए, मैंने मौके का फायदा उठाते हुए कुंदन से एक बार फिर यहाँ सोने की इच्छा जताई तो थोड़ी ना नुकुर के बाद वो राजी हो गया और मैं भी बड़ा खुश हुआ. चाँदनी रात में नहाया हुआ गंगा घाट का वो दृश्य आज भी कल्पना करने पर आँखों के सामने जीवंत हो उठता है. शहर की चमचमाती रौशनी में बहती गंगा और घाट के किनारे ध्यानवस्था में भगवान् शंकर की प्रतिमा एक अध्यात्मिक अनुभूति को जन्म देते हैं. हम लोग सत्संग में तो नहीं जा पाए लेकिन जो अनुभूति यहाँ आकर हुई, ये लगभग सत्संग जाने के सामान ही थी, बल्कि सच कहूँ तो उससे बढ़कर थी.
घंटा भर घाट के किनारे बैठने के बाद अब नींद आ रही थी, वैसे भी हमें सुबह की पहली बस पकड़ने के लिए दो बजे यहाँ से ऋषिकेश बस अड्डे के लिए कूच करना था जो कि यहाँ से करीब 2 या 3 किलोमीटर दूर था. हम गंगा घाट के किनारे सोने की एक सुरक्षित जगह मे गए तो वहां एक साधू महाराज पहले से थी बैठे थे जो अभी भी जाग रहे थे. हम अपनी चादर बिछाने लगे तो एकदम से भड़क कर बोले ‘तुम लोग यहाँ नहीं सो सकते’, हमने इसका कारण पूछा तो बोले ‘इस ओर स्त्रियों का घाट है, यहाँ पुरुष नहीं आ सकते’. साधू का इस तरह का व्यवहार देखकर कुंदन भी उसी लहज़े में उनसे बोला ‘आप भी तो इस घाट पर सो रहें हैं’. साधू और भी भड़क गया और बोला में तो साधू हूँ, इस पर कुंदन भी साधुओं की प्रवृति उस साधू को समझाने लगा. इस तरह कुंदन और साधू में कुछ समय तक ये तर्क वितर्क चलता रहा, मैंने कुंदन को शांत करते हुए कहा कि हमें तो सिर्फ दो तीन घंटे गुजारने हैं इस साधू से उलझे रहे तो सवेरा तो वैसे ही हो जायेगा. अब तक साधू भी थोडा ठंडा पड़ चुका था, फिर भी हमने घाट के दूसरी तरफ जाना उचित समझा और दो बजे का अलार्म लगाकर हम लोग सो गए…क्रमशः…
Very interesting good photos. Nice to know about sadhu who can sleep there, may be ladies not bother as he is Sadhu.
Thanks a lot of share wonderful journey.
Thanks Surinder Ji for liking the post. Sadhu’s arguments were quite strange, it was midnight there were no ladies still…
Nice start Vipin….sleeping in the Ghats of Rishikesh…wonderful thought
story of the Sadhu Babaji is hilarious
you could have posted slightly larger photos, otherwise, post is very nice…(first I tried to convert it in English but it was pathetic…so it took sometime to read)
Look forward to the next…
Thank you Amitava Ji for reading the post and leaving your comments. I checked with Nandan and have enlarged the pics. Will try to write my next post on Himachal in English…
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Acchchi shuruat hai. Meri bhi tivr ichcha hai Kedarnath darshan ki, dekho Bhole baba kab bulayein.
agla post jaldi likhiyega
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Dear Vipin jee
jaldi se kedar yatra prarmbh karne ka shukriya.
vese bhi hindi me post bahut kam aa rahi hai. roj mail check karta hoo. ghoomakar ka mail bhi milta hai lekin kholo to ye kya sabhi post english me.bhai hum thare dal roti khane vale bhartiy hame pizza noodles thode hi pasand.
aapki post hindi me dekhte hi sari mansik bhookh samapt. padakar achha laga lekin bahut choti post hai.photo to aapne bata hi diya ki rat me kam thaapp so uske bare me kuch kah nahi sakte.
jaldi se vapsi ke liye aapka bahut aabhar.
bhupendra
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Now anxiously waiting for next 2-3 parts :-)
Thanks once again.
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Vipin bhai ,
bahut badhia ….sabko mana hi lete ho aasman ke neeche sone ke liye …. bhai acha hua satsang mein nahi gaye …kyunki raat ko jo thodi bahut neend aayi vo bhi na aati … baaki kasar to ladaku baba ne puuri kar hi di … ek baat batao ..vahan sirf striyan hi kyun aa sakti hai …kya baba ji ne koi tark rakha ..?????behar haal unse ladai karne ka koi fayda nahi hota kyunki aadhikaansh baba log nashe mein hote hain …aapne kundan ko rok kar acha kia …
mein feb 2012 mein rishikesh gaya tha … mujhe itni shanti apne ghar mein bhi nahi mili jo ganga maa ko dekhne mein mili …mein lakshman jhule ke neeche bane kinare par ghanto apne mitr ke saath baitha rha …ganga ke tez veg ko aur sundar aakriti ko dekh matrmughd hota raha ….
Ab zaldi se kuch aur likho bhaisab