5 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011 का दिन था वो। मैं और अतà¥à¤² दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में थे जबकि हमारे à¤à¤• और साथी नीरज सिंह यानी हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® हमसे बारह किलोमीटर दूर पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के पास थे। समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 3700 मीटर की ऊंचाई पर बिना सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग के उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पता नहीं कैसे रात काटी होगी। दिलà¥à¤²à¥€ से चलते समय हमने जो कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बनाया था, उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आज हमें कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° देखना था जबकि हकीकत यह है कि पिछले तीन दिनों से हम लगातार पैदल चल रहे थे, वापस जाने के लिये à¤à¤• दिन पूरा पैदल और चलना पडेगा तो अपनी हिमà¥à¤®à¤¤ कà¥à¤› खतà¥à¤® सी होने लगी थी। जाट महाराज और अतà¥à¤² महाराज दोनों à¤à¤• से ही थे।
इस हफà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° की यातà¥à¤°à¤¾ में à¤à¤• खास बात यह रही कि मैं हमेशा सबसे पहले उठा तो आज à¤à¥€ जब उठा तो सब सोये पडे थे। मेरे बाद ‘होटल’ वाला उठा, फिर अतà¥à¤²à¥¤ रात सोते समय तय हà¥à¤† था कि कफनी कैंसिल कर देते हैं और वापस चलते हैं। लेकिन उठते ही घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी जिनà¥à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ हो गई। घोषणा हà¥à¤ˆ कि कफनी चलेंगे। हालांकि अतà¥à¤² को इस घोषणा से कà¥à¤› निराशा à¤à¥€ हà¥à¤ˆà¥¤ खाने के लिये बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ-नमकीन के कई पैकेट à¤à¥€ साथ ले लिये। अगर कफनी ना जाते तो जिनà¥à¤¦à¤—ी à¤à¤° मलाल रहता कि कफनी से बारह किलोमीटर दूर से निकल गये। पता नहीं अब कà¤à¥€ इधर आना हो या ना हो।

कफनी के रासà¥à¤¤à¥‡ में अतà¥à¤²

यह है दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€à¥¤ दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° जाता है और à¤à¤• कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤°à¥¤

कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से निकलकर आने वाली कफनी नदी।
जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ करते करते à¤à¥€ सवा सात बज गये जब हमने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया। पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के मà¥à¤•ाबले कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° कम लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ है। इसलिये रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ उतना अचà¥à¤›à¤¾ नहीं है। अतà¥à¤² आदत से लाचार होकर आगे आगे चला गया और तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ ही पीछे हो गया। कारण था जाले। मकडी के जालों के ‘à¤à¥à¤£à¥à¤¡ के à¤à¥à¤£à¥à¤¡â€™ रासà¥à¤¤à¥‡ में थे और चलने में बडी दिकà¥à¤•त कर रहे थे।
पांच किलोमीटर चलने के बाद खटिया पहà¥à¤‚चे। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से खटिया तक सीधी चढाई है और पूरा रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤°à¤ªà¥‚र जंगल से होकर जाता है। सà¥à¤¬à¤¹ का टाइम और कोई हलचल ना होने के कारण पकà¥à¤•ी उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी कि कोई ना कोई जंगली जानवर जरूर मिलेगा। लेकिन कोई नहीं मिला। हां, खटिया से कà¥à¤› पहले à¤à¤• बंगाली बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— à¤à¤• गाइड के साथ वापस लौट रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि आज खटिया में ही रà¥à¤• जाना। आज कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो जायेगा, वहां रà¥à¤•ने का कोई इंतजाम नहीं है। मैंने पूछा कि आप आज रातà¥à¤°à¤¿ विशà¥à¤°à¤¾à¤® कहां करोगे तो बताया कि खाती। तब मैंने कहा कि हम आपको आज शाम को खाती में ही मिलेंगे और कफनी के फोटो à¤à¥€ दिखायेंगे। वो ‘अरे रहने दो’ वाले सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में हाथ और दांत दिखाकर चला गया।
खटिया में कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² विकास निगम का रेसà¥à¤Ÿ हाउस है और दो तीन दà¥à¤•ानें और à¤à¥€ हैं। à¤à¤• दà¥à¤•ान खà¥à¤²à¥€ थी। रेसà¥à¤Ÿ हाउस का चौकीदार ही इस दà¥à¤•ान को चलाता है और खाना खिला देता है। à¤à¤• बात और थी कि आज सà¥à¤¬à¤¹ से ही धà¥à¤‚ध थी और धूप के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤ थे। इसलिये ठणà¥à¤¡ बरकरार थी। à¤à¥‚ख à¤à¥€ लगने लगी थी। चाय का आदेश दे दिया गया। पूछा कि खाना बनने में कितना टाइम लगेगा तो बताया कि आप कफनी से होकर वापस आ जाइये, खाना तैयार मिलेगा। हमने कहा कि à¤à¤¾à¤ˆ, à¤à¥‚ख तो अब लगी है, जरूरत तो अब है, वापस आकर जरूरत पडेगी ही नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम à¤à¤¾à¤—मà¤à¤¾à¤— में रहेंगे। ये बता कि आमलेट तो बन जायेगा। बोला कि हां। à¤à¤• आमलेट का ऑरà¥à¤¡à¤° दे दिया। अतà¥à¤² आमलेट नहीं खाता है।
हां, आमलेट से याद आया कि हम तीनों में केवल मैं ही खाता हूं। घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी के दौरान खाना खाते समय अगर आमलेट à¤à¥€ मिल जाये तो सलाद के तौर पर मैं इसे रोटी सबà¥à¤œà¥€ के साथ ही खाना पसनà¥à¤¦ करता हूं। अगर सबà¥à¤œà¥€ बढिया सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ नहीं बनी है, तो आमलेट पूरà¥à¤¤à¤¿ कर देता है। अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® मेरी इस आदत से परेशान थे। इसलिये जब तक ये दोनों खाना खाकर हट नहीं जाते थे तो मà¥à¤à¥‡ खाना खाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं थी। आज जबकि मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे तो अतà¥à¤² के पेट में चूहे à¤à¥€ à¤à¥‚खे मर गये थे। और खाना मिलेगा शाम को। तब तक चाय और बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ पर ही काम चलाना मà¥à¤¶à¥à¤•िल था। अतà¥à¤² ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछा कि ये बता अणà¥à¤¡à¤¾ शाक होता है या मांस। मैंने कहा कि à¤à¤¾à¤ˆ सà¥à¤¨, मैं अणà¥à¤¡à¥‡ को दूध के साथ à¤à¤• ही शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में रखता हूं। मेरे लिये दूध और अणà¥à¤¡à¤¾ बराबर हैं। बोला कि अगर मैं खा लूंगा तो बाद में मà¥à¤•रेगा तो नहीं। मैंने ना कर दी। à¤à¤• और आमलेट का ऑरà¥à¤¡à¤° दे दिया गया।
जैसे ही अतà¥à¤² ने आमलेट का पहला टà¥à¤•डा मà¥à¤‚ह में डाला तो लग रहा था कि कोई सडी जली चीज खा रहा है लेकिन जैसे ही मà¥à¤‚ह में सà¥à¤µà¤¾à¤¦ बनना शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† तो मà¥à¤ पर ताने उलाहने बरसने शà¥à¤°à¥‚ हो गये कि तूने पहले कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बताया कि आमलेट इतना सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ होता है। खैर इसके बाद अतà¥à¤² नियमित अणà¥à¤¡à¤¾ à¤à¤•à¥à¤·à¥€ बन गया।
खटिया की समà¥à¤¦à¥à¤° तल से ऊंचाई 3200 मीटर है। इसके बाद वातावरण ही बदल जाता है। घने जंगल का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ खà¥à¤²à¥‡ बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤² ले लेते हैं। कहीं कहीं बडे बडे पतà¥à¤¥à¤° और चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ à¤à¥€ मिलती हैं जो
शà¥à¤°à¥€à¤–णà¥à¤¡ यातà¥à¤°à¤¾ की याद दिला देती हैं। इतना बदलने के बाद à¤à¥€ à¤à¤• चीज नहीं बदली- मौसम। धà¥à¤‚ध और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बढने लगी थी। यहां धà¥à¤‚ध को बादल कहा जाता है तो कह सकते हैं कि बादलों का घनतà¥à¤µ à¤à¥€ बढता ही जा रहा था। कफनी नदी हालांकि सीधी जाती है लेकिन करीब सौ मीटर के बाद कà¥à¤› नहीं दिखता। अगर बादल ना होते तो हम धरती की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤® जगह पर खडे थे। यह ननà¥à¤¦à¤¾ देवी का इलाका है। इसकी बाहरी सीमा में कई गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° हैं- सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा, पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€, कफनी, नामिक, रालम, मिलम आदि। बादल ना होते तो हरे-à¤à¤°à¥‡ बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ के उस पार बरà¥à¤«à¥€à¤²à¥‡ विराट परà¥à¤µà¤¤ दिखते।

सफर का हमसफर- पानी।
जैसे जैसे आगे बढते गये, बादल होने के कारण निराशा सी होने लगी। अतà¥à¤² ने साफ कह दिया कि वो जो बडी सी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ दिख रही है, बस वही तक जाऊंगा। तू गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक चला जा और वापसी में मैं यही बैठा मिलूंगा। अब चलने में मजा नहीं आ रहा है। खैर वो चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ आई और घेर-घोटकर मैं अतà¥à¤² को और आगे ले गया। कà¥à¤› देर बाद हलà¥à¤•ी बूंदाबांदी होने लगी। रेनकोट तो पहले से ही पहन रखा था लेकिन चलते रहे।

जहां पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ का रासà¥à¤¤à¤¾ बढिया बना हà¥à¤† है, वही कफनी का रासà¥à¤¤à¤¾ कà¥à¤› कम बढिया है। लेकिन फिर à¤à¥€ इतना तो है कि à¤à¤Ÿà¤•ते नहीं हैं।

बादलों ने धीरे धीरे सारी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ को ढक लिया।
तà¤à¥€ सामने कà¥à¤› दूर सफेद सी आकृति दिखीं। सोचा गया कि वे तमà¥à¤¬à¥‚ हैं। चलो, वहां तक चलते हैं। जाकर देखा तो तमà¥à¤¬à¥‚ वमà¥à¤¬à¥‚ कà¥à¤› नहीं था, बलà¥à¤•ि कà¥à¤› पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का मलबा सा पडा था। गौर से देखने पर पता चला कि यह फाइबर है यानी à¤à¤• तरह का मजबूत पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤•। कम से कम सौ मीटर के घेरे में यहां वहां बिखरा पडा था यह मलबा। इसमें लकडी के दरवाजे à¤à¥€ थे जो आदमकद थे। दिमाग खूब चलाकर देख लिया कि यह बला कà¥à¤¯à¤¾ है। आखिरकार नतीजा निकला कि यहां कà¤à¥€ कोई हेलीकॉपà¥à¤Ÿà¤° गिरा होगा, यह उसका मलबा है। अब महाराज हेलीकॉपà¥à¤Ÿà¤° में तो कà¤à¥€ बैठे नहीं हैं, ना ही यह पता कि इसकी दीवारें और दरवाजे कैसी होती हैं। लेकिन इसके अलावा हमारे पास कोई तरà¥à¤• à¤à¥€ तो नहीं था। अगर हेलीकॉपà¥à¤Ÿà¤° नहीं है तो कौन इसे यहां इतनी दूर से लाया और लावारिस छोडकर चला गया। मलबे के टà¥à¤•डे इतने बडे बडे और à¤à¤¾à¤°à¥€ थे कि हम उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिला तक नहीं सके। बाद में पता चला कि यह कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² विकास निगम की करामात है। वे यहां फाइबर हट बनायेंगे। सारा सामान खचà¥à¤šà¤°à¥‹à¤‚ पर ही लादकर लाया गया है।

यह है आलस। जब बादलों ने सारा नजारा ढक लिया तो आगे बढने का मन à¤à¥€ नहीं किया।

चलना तो पडेगा ही

à¤à¤¸à¥‡ पतà¥à¤¥à¤° शà¥à¤°à¥€à¤–णà¥à¤¡ यातà¥à¤°à¤¾ की याद दिला देते हैं।

बडा मजा आता है à¤à¤¸à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर चलने में

नजारे कà¥à¤¦à¤°à¤¤ के

यहां वहां बिखरा फाइबर हट को बनाने के लिये लाया गया सामान। पता नहीं कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² वाले इन हटà¥à¤¸ को कब तक बनायेंगे।
इस मलबे की दीवारों का आसरा ले लिया था हमने जब तेज बारिश होने लगी। à¤à¥‚ख फिर लगने लगी तो बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ नमकीन के पैकेट खतà¥à¤® कर दिये गये। यही आखिरी निरà¥à¤£à¤¯ ले लिया गया कि अब कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक जाने का कोई औचितà¥à¤¯ नहीं है, वापस चलो। हालांकि मेरा मन गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक जाने को कर रहा था लेकिन फिर à¤à¥€ अतà¥à¤² की इचà¥à¤›à¤¾ थी तो वापस चल पडे बिना गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक पहà¥à¤‚चे ही। और हमें इस बात का कोई मलाल à¤à¥€ नहीं है। यह हमारी असफलता à¤à¥€ नहीं है। घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी कोई दौड नहीं है कि हमें à¤à¤¾à¤—मà¤à¤¾à¤— मचानी है और हर हाल में लकà¥à¤·à¥à¤¯ तक पहà¥à¤‚चना ही है। घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी तो उस चीज का नाम है जिसमें कहा जाता है कि जिधर à¤à¥€ मà¥à¤‚ह उठजाये, चल पडो। बस हमारा वापसी की तरफ मà¥à¤‚ह उठगया और हम वापस चल पडे।
हम 3500 मीटर की ऊंचाई तक पहà¥à¤‚च गये थे। अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ था कि अà¤à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° दो किलोमीटर दूर ही होगा। और वापस दिलà¥à¤²à¥€ आकर जब गूगल अरà¥à¤¥ और जीपीà¤à¤¸ डाटा की सहायता से दूरी देखी गई तो यह डेढ किलोमीटर मिली। यानी हम गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से डेढ किलोमीटर दूर रह गये थे। लेकिन बारिश में वहां तक जाने का कोई फायदा नहीं था जबकि ठणà¥à¤¡ हाथों को काटे जा रही थी, कैमरा à¤à¤¸à¥‡ में किसी काम का नहीं था।
चार बजे से पहले ही वापस दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ पहà¥à¤‚च गये। दà¥à¤•ान वाला देखते ही अचमà¥à¤à¤¿à¤¤ रह गया कि इतनी जलà¥à¤¦à¥€ ये लोग चौबीस किलोमीटर की पैदल चढाई उतराई तय करके वापस कैसे आ गये। हमने उनसे बताया कि हम गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° देखकर लौटे हैं। बडा खराब मौसम है। यकीन नहीं हà¥à¤† तो हमने कहा कि यार ये बताओ कि गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से कà¥à¤› पहले वो मलबा बिखरा पडा है, वो कà¥à¤¯à¤¾ मामला है। इतना सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ हो गया कि छोरे वाकई गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° देखकर ही वापस आये हैं। और हमें à¤à¥€ पता चल गया कि वो मलबा कà¥à¤¯à¤¾ है।
दà¥à¤•ान वाले ने बताया कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ तीसरा साथी, बंगाली और दो गाइड-पॉरà¥à¤Ÿà¤° अà¤à¥€ घणà¥à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° पहले ही यहां से निकले हैं। तà¥à¤® तेज चलते हो, खाती तक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आसानी से पकड लोगे। मैंने कफनी जाने से पहले ही सà¥à¤¬à¤¹ अपना सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग यही रख दिया था, बैग उठाया और खाती की तरफ दौड लगा दी। हां, à¤à¤°à¤ªà¥‡à¤Ÿ खाना à¤à¥€ खा लिया था।
अब हमारी सà¥à¤ªà¥€à¤¡ देखने लायक थी। मैंने पहले à¤à¥€ बताया है कि अतà¥à¤² चलने में मà¥à¤à¥‡ हमेशा पीछे छोड देता था, तो अब à¤à¥€ मैं पीछे ही था। रासà¥à¤¤à¤¾ कà¥à¤² मिलाकर नीचे उतरने का ही था। घणà¥à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° में पांच बजे तक रासà¥à¤¤à¥‡ में पडने वाली à¤à¤• गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤® सी जगह पर जा पहà¥à¤‚चे। यहां खाने-पीने और अति जरूरत की हालत में ठहरने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ मिल जाती है। यहां पिणà¥à¤¡à¤° नदी पर à¤à¤• पà¥à¤² है और रासà¥à¤¤à¤¾ पिणà¥à¤¡à¤° के बायें हो जाता है। यहां पता चला कि हमारे बाकी साथी बीस मिनट पहले ही यहां से निकले हैं।
पांच मिनट यहां रà¥à¤•कर फिर चल पडे। अब हà¥à¤† यह कि अतà¥à¤² बेहद तेज चला गया और मैंने अपनी औकात से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चलना बनà¥à¤¦ कर दिया। थोडी ही देर में हममें इतना फासला हो गया कि हम à¤à¤•-दूसरे की निगाहों से दूर हो गये। अà¤à¥€ à¤à¥€ छह किलोमीटर दूर और चलना था। और उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ छह में से चार किलोमीटर मेरे लिये बडे डरावने साबित हà¥à¤à¥¤
साढे पांच बजे दिन छिप गया। घनघोर जंगल होने के कारण यह अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ और à¤à¥€ घना और à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• लग रहा था। हालांकि रासà¥à¤¤à¤¾ इतना चौडा था कि चलने में कोई दिकà¥à¤•त नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ कà¥à¤› देर पहले ही बूंदाबांदी बनà¥à¤¦ हà¥à¤ˆ थी, इसलिये माहौल और à¤à¥€ रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ हो गया था। पेडों से गिरती टप-टप बूंदें à¤à¥€ दिल की धडकन को बढा देती थीं। देखा जाये तो दिकà¥à¤•त कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं थी। लेकिन फिर à¤à¥€, डर लग रहा था तो लग रहा था। कà¥à¤¯à¤¾ कर सकता था। किसी जंगली जानवर खासकर à¤à¤¾à¤²à¥‚ से और à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आशंकित था। पीछे दिख जाये तो कोई दिकà¥à¤•त नहीं, बराबर में कहीं ऊपर या नीचे दिख जाये तो à¤à¥€ दिकà¥à¤•त नहीं थी। दिकà¥à¤•त थी à¤à¤¾à¤²à¥‚ के सामने आ जाने की आशंका। हिमालय में बरà¥à¤«à¥€à¤²à¥‡ पहाडों से नीचे जंगल हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ जंगलों में ये जानवर बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में रहते हैं। जंगलों से नीचे मानव आबादी रहती है तो ये वहां जाने से कतराते हैं।
à¤à¤• मोड पार करते ही कà¥à¤› बडे से जानवर दिखे। बस देखते ही जान सूख गई, ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। खैर, वे à¤à¥ˆà¤‚से थीं। जब लगने लगा कि बस दस मिनट का रासà¥à¤¤à¤¾ और रह गया है तà¤à¥€ चढाई शà¥à¤°à¥‚ हो गई। छह बज चà¥à¤•े थे। मैं इस चढाई को à¤à¥‚ल गया था। सोच रहा था कि पूरे रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° खाती तक उतरना ही है। डर के मारे जितना तेज नीचे उतर रहा था, उतना ही तेज चढाई पर चढने लगा। उनà¥à¤¨à¥€à¤¸ बीस का ही फरक आया होगा। अगर दिन होता तो कम से कम दस जगह रà¥à¤•ता और सांस लेता। अब सांस लेने की फà¥à¤°à¤¸à¤¤ किसे थी। जैसे जैसे चढता गया, सांस à¤à¥€ चढती गई और पसीना à¤à¥€ आता गया।
आखिरकार चढाई के उचà¥à¤šà¤¤à¤® बिनà¥à¤¦à¥ पर पहà¥à¤‚चा। असल में रासà¥à¤¤à¤¾ तो नीचे से ही था लेकिन यहां काफी बडे कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में कà¤à¥€ à¤à¥‚-सà¥à¤–लन हà¥à¤† था तो रासà¥à¤¤à¤¾ नीचे से हटाकर à¤à¥‚सà¥à¤–लन के ऊपर से बना दिया गया इसलिये यह चढाई चढनी पडी। मैंने अà¤à¥€ बताया था कि कà¥à¤› ही देर पहले बारिश थमी थी इसलिये पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का बना रासà¥à¤¤à¤¾ रपटीला हो गया था इसलिये चलने की सà¥à¤ªà¥€à¤¡ और à¤à¥€ कम हो गई। खैर, ले देकर डरता घबराता खाती पहà¥à¤‚च गया।

यह वहां पर आम है।

जंगल का डरावना रासà¥à¤¤à¤¾
यहां नेकी होटल में अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® चूलà¥à¤¹à¥‡ के सामने बैठे थे। दो आदमी लठलिये खडे थे। मेरे पहà¥à¤‚चते ही अतà¥à¤² ने कहा कि तेरी वजह से हम सब कितने परेशान हो रहे थे। ये देख लठवालों को, अà¤à¥€ तà¥à¤à¥‡ ढूंढकर लाने की तैयारी थी। और देख तेरा à¤à¤¾à¤ˆ जीत गया है। इनसे पहले यहां पहà¥à¤‚च गया था। हालांकि अतà¥à¤² की यह जीतने हारने की बात सà¥à¤¨à¤•र मà¥à¤à¥‡ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ तो आया लेकिन हम सà¤à¥€ नियम में बंधे थे कि हर बनà¥à¤¦à¤¾ अपनी मरà¥à¤œà¥€ का मालिक होगा। अतà¥à¤² ने वही किया जो उसके जी में था। इस बात से मà¥à¤à¥‡ कोई शिकायत नहीं है।
पता चला कि à¤à¥‚सà¥à¤–लन वाले इलाके में à¤à¤• शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ à¤à¥‚त रहता है। वो अंधेरे में आने जाने वालों को नà¥à¤•सान पहà¥à¤‚चाता है, यहां तक कि मार à¤à¥€ डालता है। लठवाले मà¥à¤à¥‡ उस à¤à¥‚त से रकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिये ही जाने वाले थे। खाती वाले सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग à¤à¥€ अंधेरा होने के बाद उधर नहीं जाते। मैंने उनका समरà¥à¤¥à¤¨ करते हà¥à¤ बताया कि हां, à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚, ठीक कह रहे हो। वो à¤à¥‚त मेरे पीछे पीछे रेसà¥à¤Ÿ हाउस तक आया था। सà¤à¥€ के कान खडे हो गये। मतलब? मतलब कि मà¥à¤à¥‡ वो दिखाई तो नहीं दिया लेकिन उसके पैरों की आवाज मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ दे रही थी। बार-बार रà¥à¤•कर पीछे देखता तो कà¥à¤› नहीं दिखता था और वो आवाज à¤à¥€ बनà¥à¤¦ हो जाती थी, जब मैं चल पडता तो आवाज फिर से आने लगती।
खà¥à¤¸à¤°-पà¥à¤¸à¤° होने लगी कि जाट महाराज तो बडे दिलवाला इंसान है। पीछे पीछे à¤à¥‚त आ रहा था और अगला डरा नहीं। à¤à¤•ाध ने कहा कि इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इस à¤à¥‚त के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, अगर जानकारी पहले से होती तो पकà¥à¤•ा डर जाते। उधर मैं सोच रहा था कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ पता, à¤à¥‚तलैणà¥à¤¡ शà¥à¤°à¥‚ होने से à¤à¤• घणà¥à¤Ÿà¥‡ पहले ही मेरा डर के मारे कà¥à¤¯à¤¾ हाल हो रहा था।
अगले à¤à¤¾à¤— में जारी
As usual brilliant write up Neeraj.
Anxiously waiting for next part now :-)
Keep traveling!!!
नीरज भाई,
बड़ा सुन्दर वर्णन तथा दिल को छू जाने वाले छायाचित्र.
तो नीरज जी, अंततः आपने शाकाहारी अतुल को अंडा भक्षी बना ही दिया. वैसे आपने सही कहा, अगर दूध शाकाहार है तो अंडा क्यों नहीं. दोनों चीजें किसी प्राणी के शरीर में ही निर्मित हो रही हैं. क्या बोलते हो?
अगली पोस्ट के इंतज़ार में.
मुकेश.
मुकेश जी, यह विषय एक लम्बी चौडी बहस का विषय है। हमें इसमें नहीं पडना चाहिये। यह हर किसी का व्यक्तिगत मामला है। उम्मीद है कि आप मेरी बात को समझेंगे।
छोटे चौस्साब… ये विवरण भी मज़ेदार है। काश मैं भी तुम्हारी तरह जवान होता तो ऐसी जगह ज़रुर चलता
बड़ा चौधरी किंगे गैब हो गया … नज़र ही न आ रया आजकल
@ मुकेश भाई – दूध से किसी प्राणी की रचना नहीं होती… पर अण्डे से होती है या हो सकती है चाहे वो अनिशेचित ही हो..
@ SS – Haha. I liked the new names :-)
@ Neeraj – I have exactly the same feelings about Anda Omleet. I use it as a ‘taste maker’ all the time. Also when you are eating out, it is much safer to have Anda then a lot of other things.
The stretch was really fast paced. I do not know about bhoot, but definitely God was with you while you were going through the last stretch.
हल्दीराम की रात कैसी गुजरी बिना स्लीपिंग बैग के ?
And yes, Ghumakkar is not a race. Insightful.
नंदन जी,
सही कह रहे हैं आप कि बाहर जाकर तली भुनी चीजों को खाने से बेहतर है कि अण्डा ही खा लिया जाये लेकिन यह नियम केवल उन लोगों पर लागू होता है जो अण्डा खा लेते हैं।
आज हमने 32 किलोमीटर की यात्रा की जो काफी ज्यादा है। पहाडों पर कुछ तो होता है जिसपर लोग विश्वास करते हैं। हमारी सोच चाहे इस बारे में कुछ भी हो लेकिन हमें हमेशा स्थानीय लोगों की हां में हां मिलानी चाहिये क्योंकि यह मामला उनकी श्रद्धा से जुडा होता है।
हल्दीराम ने बाबा की कुटिया पर डिनर कर लिया था और वहीं से एक स्लीपिंग बैग भी ले लिया था। हमारे पिण्डारी से वापस आते ही बाबा अपनी पूजा पाठ से निवृत हो गये थे। उन्होंने रात को डिनर में पूरी-सब्जी बनाई थी, जिसे सब लोगों ने भरपेट खाया।
मौनात्मा जी,
बड़ा ही प्रभावी तर्क दिया है आपने अंडे के बारे में. वैसे मैं भी शुद्ध शाकाहारी प्राणी हूँ, अंडा नहीं खाता हूँ. मैं तो बस छोटे चौधरी साब का उत्साहवर्धन कर रहा था.
neeraj ji bhai bhoot bhoot suna kar daraya mat karo, ya phir unki photo bhi khinch liya karo.
bhainso ki photo nahin lagai.
bhalu waloo se kab samna hoga.
सर्वेश साहब, आप कैसी बात कर रहे हैं? उस समय तो मेरा क्या हाल था, बस मैं ही जानता हूं। जब आदमी अकेला होता है, तभी डरता है और अगर भयानक हिमालयी जंगल हो तथा दिन छिपने लगा हो, अंधेरा होने लगा हो, तो डर क्या होता है, कंक्रीट के जंगल में रहने वाले लोग नहीं समझ सकते।
ऐसे में फोटो खींचने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती।
कृपया मेरे अण्डा खाने को तूल मत दीजिये। मैं धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति नहीं हूं और अण्डा खाना या मीट ना खाना मेरा व्यक्तिगत मामला है, कोई सर्वमान्य नियम नहीं। मेरी वजह से अतुल अण्डा भक्षी बना, मैं इस बात को नहीं मानता। उस समय हमें जबरदस्त भूख लगी थी, अण्डे के अलावा कुछ भी खाने को नहीं था तो मजबूरी में अतुल ने खा लिया। स्वादिष्ट लगने पर उसने बाद में भी अण्डा खाया।
अण्डे में भ्रूण होता है, जीव होता है, या नहीं होता है, या कुछ और होता है, मैं इसे खाते समय इस बारे में नहीं सोचता। मैं ज्यादातर भूखा रहने पर उबला अण्डा या आमलेट खाता हूं कभी कभी लेकिन सफर में अक्सर आमलेट खाता रहता हूं।
Atyant hi rochak vratant hai…. aanand aa gaya… please tell me how can I write in hindi..???
भूख लगने पर अन्डा खा लिया, जब अन्डा नहीं मिलेगा तो मीट भी खा लिया जायेगा। भूख ना हो गयी आफ़त हो गयी, अरे महाराज अन्डा हो या मीट सब मांसाहारी श्रेणी में आते है कोई किसी को नहीं बिगाडता सबको मजा पछाडता है, अन्डे से मुर्गी के बच्चे निकलते है दूध से बच्चे नहीं निकलते है बल्कि मजबूत होते है।
भाई, मैंने अण्डा ना खा लिया, कोई अपराध कर दिया। अण्डा खाना कोई अपराध नहीं है। हां, धार्मिक अपराध हो सकता है और मैं धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, पूजा-पाठ नहीं करता हूं। मैंने पहले ही कहा था कि यह मेरा व्यक्तिगत मामला है, इस बारे में कोई हस्तक्षेप ना करे। अण्डा अगर मांस है, तो मैं मांसाहारी हूं। आप मुझे मांसाहारी कहते रहो, इससे मेरी सेहत को कोई फर्क नहीं पडता।
आप खुद ही इसे तूल दे रहे है… और ये आपको किसने कह दिया कि अण्डा या मांस खाने वाले लोग धार्मिक नहीं हो सकते??
विवेकानंद और परमहंस दोनो ही मांसाहारी थे.. और उनसे बड़ा धार्मिक कौन हो सकता है ?? यहां तो मै कुछ ऐसी पोस्ट भी पढ़ता हूं जहां लेखक लिखता है – मैं सो कर उठा फिर मैने गाय का मांस खाया… फिर मै घूमने गया और रास्ते में मैने सूअर का माँस खाया.. फिर मैं घर आया और मैने बकरे का माँस खाया.. फिर मैं सो गया और उठ कर मैने गाय का माँस खाया.. इत्यादि
और लोग उन लेखों की तारीफ भी कर रहे हैं… ऐसे लोगों के सामने तो आप देवता हैं
मेरा बचपन का दोस्त चौ. शाम सिंह (जाट) कहा करता था – दो भूत खड़े हों तो एक जाट उनके बीच से निकल कर जा सकता है, पर अगर दो जाट खड़ें हो तो एक भूत उनके बीच से कभी नहीं निकलता, कन्नी काट जाता है
आप दोनो जाट देवताओं का इस बारे में क्या विचार है ??
और हां.. मैं भी सोच रहा हूं एक आधी कहानी शुद्ध हिंदी में लिखूं.. पर हिन्दी टाइप करने में बड़ी देर लगती है
बहुत खूब कहा मज़ा आ गया :-) और हाँ, यहाँ जाट भी संदीप भाई और नीरज भाई हैं, भूतों की शामत आई है जो बीच में पड़ेंगे| शायद भूतों में और आदमियों में यही अंतर होता है, हम दोनो तो आ गये बीच में :-)
मुझे उस समय जंगल में चलते हुए लग तो रहा था कि मेरे पीछे कुछ ना कुछ हलचल हो रही है। हालांकि कुछ देर पहले बारिश पडी थी तो मन को तसल्ली देने के लिये सोच रहा था कि पेडों से बारिश की बूंदें टपक रही हैं। लेकिन पीछे ही क्यों टपक रही हैं, आगे भी तो टपकनी चाहिये थीं। खैर, भूत ही सही, मैं सही सलामत आ गया। उस समय हालांकि मरने का तो कोई कारण नहीं दिखता लेकिन डर बहुत डराता है।
Amazing pics :-)
I wish I could be here soon.
Thanks Neeraj for this amazing narrative….I look forward to more :-)
Keep traveling…keep writing.
Cheers!
Nikhil
A tip for those looking forward to write in Hindi.
Go to Google translate. Select language as Hindi (in detect language). Start typing Hindi words using English letters and magic!
That’s the fastest way to write in Hindi :-)
क्या खूब कही :-) कोशिश कीजिये …आशा है आपको पसंद आएगा ये तरीका
गूगल ट्रांसलेट उतना अच्छा नहीं है। मैं baraha नामक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता हूं। गूगल में baraha सर्च करके उसका फ़्री वाला या पैसों वाला वर्जन डाउनलोड करके आप कई भारतीय भाषाओं में लिख सकते हैं। यहां तक कि ऑफलाइन रहते हुए भी। यह यूनीकोड है यानी कीबोर्ड पर आप जो भी प्रेस करेंगे, हिन्दी में वही अक्षर उपस्थित हो जायेगा। मैं इसकी सहायता से कमेण्ट बक्से में सीधा हिन्दी में लिखता हूं।
नीरज जी
आपका लेख बहुत ही रोमान्चक लगा लगा साथ मे चित्र बहुत ही सुन्दर लगे . बहुत ही हिम्मत बाली रही आपकी यह यात्रा .
भूतलैंड बाला हिस्सा बहुत ही रोमांचक लगा, ऐसे बियावान और सुनसान जंगल में दर लगना मामूली बात हैं
टिप्पड़ी में अंडे के ऊपर वाद विवाद को पढ़ा, कुछ अच्छा नहीं लगा.
भाई! जिन्दा रहने के लिए इंसान जरुरत पड़ने पर कुछ भी खा जाता, यह सब समय और उस जगह की उप्लब्धता पर निर्भर करता हैं.
यह एक वाद विवाद का विषय हैं इस बहस ना करे तोअच्छा ही होगा.
अच्छे और विस्तृत लेख के लिए धन्यवाद