बात वर्ष जुलाई 2011 की है बहुत समय हो चला था कहीं घुमे हुए । ऐसा सोचते ही मन मे घूमने की लौ जल पड़ी और मैंने अपने मित्र राहुल को फ़ोन लगा डाला । फ़ोन पर हुई वार्ता की एक झलक :
मैं : राहुल क्या हाल चाल ?
राहुल : बस सब ठीक । तू सुना ?
मैं : सब ठीक ठाक । यार ऐसे ही बोरियत सी हो रही थी तो सोच रहा हूँ कि कहीं घूमने चला जाये । कहीं चलने का मूड हो तो बता ?
राहुल : घूमने के कीड़े ने तो मुझे भी परशान किया हुआ है पर छुट्टी की कमी के कारण प्रोग्राम नहीं बन पा रहा है।
मैं : अरे यार कंपनी दो दिन की छुट्टी देती है उसी मे कहीं चल पड़ते हैं ।
राहुल : नहीं यार फिर तो रहने दे । मैंने मन मे लद्दाख जाने की सोची हुई है और मेरा अगला लक्ष्य वही है ।
बस फिर क्या था हमारा लद्दाख जाना तय हो चुका था लेकिन छुट्टी की कमी के कारण थोडा (पूरे दो महीने के लिए) टल गया । लद्दाख जाने-आने मे कम से कम दस दिन लगने थे । सितम्बर का महीना तय किया गया । अच्छा ही हुआ की हमने सितम्बर का महीना चुना इससे ये लाभ हुआ की हमारे पास अतिरिक्त पांच छुट्टियाँ जुड़ गई , कुछ और दोस्तों से सलाह लेने का और इस ट्रिप मे शामिल होने के लिए पूछ लिया गया, और मौसम के लिहाज़ से भी सितम्बर लद्दाख जाने के लिए सबसे उपरोक्त समय है ये भी गूगल और इन्टरनेट सर्फिंग के माध्यम से ज्ञात हुआ क्यूंकि इस वक़्त तक बारिश का मौसम ख़तम हो चुका होता है, जो कि इस यात्रा मे विलंभ डाल सकता है ।
इस ट्रिप पर जाने मे अभी दो महीने का समय था सब दोस्तों से पूछ लिया गया और सात लोग तैयार हो गए थे। सबसे फ़ोन पर बात कर ली गई और सबने ईमेल के जरिए हाँ भर दी। आगे का कारोबार सबने मुझे और राहुल को सौप दिया। यहाँ से असली काम शुरू हुआ कि ट्रिप पर कैसे जाना है मसलन बाइक , अपनी कार, किराये की कार, टूर ऑपरेटर या फिर लेह तक हवाई यात्रा और लेह से आगे टैक्सी के द्वारा। अपना तो माथा ही टनक गया,जितने लोग उतने विकल्प। इस ट्रिप मे दो लोग साउथ(आन्ध्र प्रदेश) से आने वाले थे तो उनके हिसाब से हवाई यात्रा, दो लोग सेंट्रल(मध्य प्रदेश) से उनमे से एक बाइक से जाना चाहते थे और दूसरे किराए की कार से। बाकी बचे हम तीन लोग मैं नौएडा से, राहुल और संजीव साहिबाबाद(गाजिआबाद) से, अभी एक दम चुप थे।
अरे ये क्या भसड चल रही है कुछ लोग हवा से, कुछ बाइक से, कुछ किराए की कार खुद से चला कर जाना चाहते हैं। ऐसा कैसे चलेगा इससे पहले की दिमाग का दही हो जाए एकाएक राहुल का फ़ोन आ गया कि बहुत हो गया है अब जैसा हम प्लान करेंगे वैसा ही होगा। अब ये भार मेरे कंधो पर आ गिरा, सबको उनके विकल्प से हटा कर अपने प्लान के मुताबिक राज़ी करना और इस बात का ध्यान रखना की उनको बुरा भी न लगे।
कुछ इस तरह मैंने अपने फालतू फंडे ईमेल के जरिए दे मारे……………………………..
साउथ मे – हाई हरी एंड मनोज योर आइडिया बाई एयर इज वन ऑफ़ दा बेस्ट, इट विल सेव दा टाइम, बट यू नो इट इज नौट इकनोमिकल फॉर कपल ऑफ़ अदर पीपल। वी आर लुकिंग इंटू डा अदर ओप्संस एंड लेट यू नो।
सेंट्रल मे – गौरव भाई बाइक से कोई भी तैयार नहीं हो रहा है। सितम्बर मे बारिश तो नहीं होती पर स्नो फॉल का खतरा बढ़ जाता है और ऊपर से तुझे अभी शादी भी तो करनी है। अपनी होने वाली बीवी और बच्चों के बारे मे भी तो सोच। अच्छा हुज़ेफा को भी बता देना की जो भी फाइनल होगा ईमेल के माध्यम से बता दिया जाएगा।
अब मैं और राहुल ट्रिप को अंजाम देने के लिए लद पड़े। राहुल इस मामले मे हमारे ग्रुप मे सबसे ज्यादा तजुर्बा रखते हैं सो ये काम उन्हें ही सौप दिया गया था। जैसे की किस रूट से जाना है, कहाँ रुकना है, इत्यादि। दूसरी ओर मै गाड़ी का इंतजाम करने मे जुट गया। बहुत जगह पता किया पर टूर ट्रेवल वाले लद्दाख जाने को तैयार नहीं हो रहे थे। जो तैयार हुए उन्होंने अपना मुह फाड़ डाला। अब मै क्या करू , हे भगवान कहाँ फँस गया कुछ भी नही सूझ रहा था।
दिमाग पर ज्यादा जोर न पड जाए यह सोच कर अपना कम्पयूटर लौक करके ऑफिस के सहकर्मियों के साथ गप-सप लगाने लगा। यही सब करते हुए एक और सप्ताह निकल गया। अब गाड़ी करने की ज़िम्मेदारी मेरे लिए गले मे फ़सी हड्डी के समान हो गई थी जो ना तो निगली जाए और न ही उगली जाए। इसी सप्ताह के अंत मे अपने एक दूसरे मित्र के घर जाना हुआ, एक छोटी सी पार्टी थी जो की हर सप्ताह ही होती थी, कुछ लोग समझ ही गए होंगे। वहां पहुँच कर मैंने अपनी चिंता सुनाई और मेरे मित्र ने बोला इंतजाम हो जाएगा। अगले ही दिन ऑफिस मे एक गाड़ी वाले का फ़ोन आ गया और बोला की साहब हम ले चलेगे अपनी गाड़ी लद्दाख। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मैंने गाड़ी वाले को बताया की दस दिन का ट्रिप है और सात लोग हैं। वो झट से बोला कोई दिक्कत की बात नहीं है मेरे पास 7 सीटर Xylo है। अब देखिए भगवान ने जब दिया तो छप्पर ही फाड़ दिया। गाड़ी सिर्फ दो महीने पुरानी थी या दूसरे शब्दों मे कहो तो नयी गाड़ी थी, सात लोग जाने वाले और गाड़ी भी 7 सीटर, ऊपर से गाड़ी प्राइवेट नम्बर थी इसिलए हमे सिर्फ हाईवे पर टोल टैक्स देना था। अगर गाड़ी commercial नंबर की होती तो हमें टैक्स बहुत ज्यादा देना पड़ता। ये खुसखबरी सबको सुना दी गयी थी। अब मेरा काम गाड़ी वाले से तोल-मोल करने का था, जिसमे मे माहिर तो नहीं हूँ पर फिर भी एक विस्वसनीय पात्र होने की वजह से ये ज़िम्मेदारी भी मुझे ही सौप दी गयी थी। अगले दिन मैंने गाड़ी वाले को फ़ोन लगाया और तोल-भाव शुरू किया तो गाड़ी वाला बोला बेटे तेरी अपनी गाड़ी है जो मन करे दे देना। कुछ सेकिंड लेने के बाद मैंने पूछा की अंकल आप मुझे जानते हो क्या? तो अंकल ने कहा की बेटा छत्तरपुर (साउथ दिल्ली मे एक कस्बा है) छोड़ दिया तो भूल गया। अंकल ने अपना परिचय दिया और मैंने उनको पहचान लिया। अब आप लोग भी सोचिये कहाँ तो मैं गाड़ी को लेकर परेशान था और जब गाड़ी मिली तो जान पहचान वाले की, ये सब कृपा उस एक छोटी सी पार्टी की वजह से थी जो की हर सप्ताह ही होती थी। दरअसल मेरे मित्र ने अंकल को हमारे ट्रिप के बारे मे बताया तो वो तैयार हो गए।
Rs. 2000/day के हिसाब से तेय हो गया, जिसमे की डीजल का खर्चा अलग से हमे ही देना था। अंदाजे से 10 दिन का 20000 + 15000(डीजल) = 35000 का खर्चा होने का अनुमान लगाया गया। इसके अलावा अतिरिक्त 5000/- हर एक आदमी को रखना था अपने दस दिन के खाने-पीने, रुकना, इत्यादि। सब कुछ जोड़ दिया गया और 70000/- का अनुमानित बजट तैयार हो गया।
इसको सात हिस्सों में बाँट दिया जाये तो प्रतेक आदमी का योगदान मात्र 10000/- आ रहा था जो की लद्दाख जाने के हिसाब से ठीक ही था। सब ये जान कर खुश थे। गाड़ी को फाइनल करने के बाद लद्दाख जाने का सफ़र 9-सितम्बर से 18-सितम्बर का तय हो गया था। हमारे साउथ इंडियन बंधुओं ने झट-पट दिल्ली तक की एयर टिकट बुक करा ली थी। सेंट्रल वाले भाई लोग भी दिल्ली तक आने के लिए रेलवे की टिकट बुक करने मे जुट गए थे। बाकी बचे हम तीनों को तो नोएडा से ही जाना था तो बस 9-सितम्बर के इंतज़ार मे लग गए थे। बहुत ही मुश्किल से बीत रहा था एक-एक दिन। सब लोग शांत थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी आने वाले तूफ़ान का इंतज़ार कर रहे हों। और ऐसा ही हुआ जाने से एक सप्ताह पहले तीन लोगों ने आलतू-फालतू बहाने लगा कर मना कर दिया। अब सात नहीं केवल चार लोग जाने वाले थे। फिर भी हम खुश थे की अब तो और आराम से जाएंगे। एक बात समझ मे आ गई थी की दूर के ट्रिप मे ज्यादा लोगों की भसड नहीं पालनी चाहिये। वैसे ये बात तो पहले से ही मालूम थी पर और लोगों से पूछना भी जरूरी था अन्यथा बाद मे ये सुनने को मिलता की “लद्दाख से हो आये, एक बार हमें भी पूछ लिया होता”। एसा अक्सर हुआ है मेरे साथ। एक बात थी की अब बजट 10000/- से बढ़ कर 17500/- प्रतेक वक्ति हो गया था। लेकिन किसी को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ा, बस जाने की धुन सवार थी। ट्रिप मे जाने वाले चार लोग थे मैं(अनूप), राहुल, हरी और मनोज। माफ़ कीजियेगा दरअसल पांच थे एक ड्राईवर अंकल भी थे। परिचय के लिए एक फोटो लगा रहा हूँ। इसमें राहुल नहीं है क्यूंकि फोटो उसी ने ली है।
7-सितम्बर को गाड़ी वाले अंकल को फ़ोन लगाया की गाड़ी ठीक 4 बजे शाम को नोएडा मेरे घर पहुँच जानी चाहिये, और साथ मे कुछ गरम कपड़े जैसे की स्वेटर, जैकेट, शाल, कंबल, इत्यादी। लो जी 9-सितम्बर आ ही गया। साउथ से हमारे मित्र हरी और मनोज भी 11 बजे प्रातः दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर चुके थे। इन दोनों को कुछ शौपिंग करनी थी और इनको शाम तक समय व्यतीत भी करना था तो शौपिंग से अच्छा टाइम पास क्या हो सकता था।
एक बात बताना भूल गया की नोएडा से निकलने के बाद कहाँ तक जाना है, किस जगह रुकना है, कहाँ-कहाँ जाना, और बहुत कुछ चीजों का प्रिंट आउट निकाल कर रख लिया गया था। जो की हमारे सफ़र मे काम आने वाला था।
अंकल एक घंटा पहले ही मेरे घर पहुँच गए। उन्हें घर पर बुला कर चाय-पानी की सेवा की गई। तब तक मैंने बची हुई पेकिंग भी निपटा डाली। निकलने से पहले मेरी पत्नी एवं माताजी ने रोज़ फ़ोन पर अपडेट देने की हिदायत दे डाली। मैंने भी हाँ भरी अब उनको क्या बताता की सफ़र मे हो सकता है कि कई घंटो तक नेटवर्क न मिले। उधर हमारे ड्राईवर अंकल ने भी घर वालों को आश्वासन दे डाला ” आप लोग बिलकुल चिंता मत करिए, मेरे साथ जा रहे है कोई दिक्कत की बात ही नहीं है”। हुआ बिलकुल इसका उल्टा अंकल के साथ जाना सफ़र के 2 घंटे बाद ही जान लेवा साबित हुआ। क्या हुआ कैसे हुआ वो सब कुछ अगले पोस्ट मे बताता हूँ।………………
Welcome to Ghumakkar. Waiting for the next post.
Thanks Praveen. I am a fan of you…I am following you with being a FLUTE MAESTRO…
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dhanyawad Praveen Ji.
dhamakedar entry. driver details jarur share karna bhai. others will benefited.
parveen ji ek baar jo laddakh apni gadi lekar jata wo phir jindagi mai dubara apni gadi lekar nahi jayega…..humare driver uncle ko laddakh ke bare mai pata nahi tha isiliye wo tayar ho gaye thay…….
Warm welcome.
Nice start, look forward to the next post.
Thanks Amitava…
Nice start , not able to pictures :-(
Thanks Mahesh Ji.
I shared one Photo for the introduction but it seems Nandan has missed to upload the same.
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Thanks for encouraging Sushant Ji. I am a gr8 fan of your writing….
hi anoop,
you are really a very good story teller keeping people like us waiting eagerly for the next episode.congrats.but didn’t find any photo.
Thanks for your comments Ashok.
Let me start the journey and I bet you will not complaint about the photos anymore…..
Welcome to the ghumakkar family, Anoop. You have a very inimitable chatty style of narrating your story which makes it a very enjoyable read. ?????? ?? ?????? ???, ??? ????? ??? ???? ???? ??? ??? Looking forward eagerly for the next episode.
PS: Please include pictures in your blogs. Trust me, they add a lot of value to travel blogs.
Hello D.L.
I didn’t started yet. That’s the reason there is no pic. Let me start the journey and there will be lots of pics to come….and I make sure you will enjoy them….
Thanks for your comments.
Welcome aboard Anoop.
I have restored the picture. Great beginning. Eagerly awaiting for next episodes. Wishes.
Hello Anoop
Welcome at Ghumakkar. Post is very interesting. Waiting for your remaining trip story and pics you click around Ladakh.. Please also mention all the small details related with the trip so many of us can also plan for the Ladakh trip.
Keep travelling…
Thanks for your comments Kailash. Honestly this story is all about my good/bad experience during this journey. I may not provide all the small details but surly going to provide important details….
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Thanks for the comments Ritesh…
Dear Anoop,
Welcome to Ghumakkar..
Nice story to begin but only one picture ?
Naresh Ji…Dhanyawad.
Picture abhi baki hai dost…
Anoop jee, aaj raat aap sone nahi denge mujhe, socha tha that i will sleep after reading this part, but could not afford to miss your reading
Thanks for your comments Gaurav. It is interesting to read in continuation.