अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 3 ) टाइगर फाल (TIGER FALL)

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था के कैसे हम बुधेर के बुग्याल और मोइल गुफा का मजा लूट, वापिस  बुधेर फारेस्ट रेस्ट हाउस पहुँच, एक अजीब सी उलझन में फंस गए थे यही की अपने अन्नू भाई की राफ्टिंग की ख्वाहिश  ………

ये लो …अब इसे क्या हुआ इतने जंगल में अब राफ्टिंग कहाँ से करें। कहाँ ऋषिकेश कहाँ हम चकराता के जंगलो में… क्या प्रोग्राम था कानासर, देवबन, टाइगर फाल???? अब उसका क्या…

बुधेर के बुग्याल के छोटे से हिस्से में छोटा सा अनुज

विशाल बुधेर बुग्याल में बौने से लगते हम

सच पूछो  तो मेरा मन तो कह रहा था वही फारेस्ट हाउस में रुक कर रात बितायी जाए और सुबह सवेरे उठ देवबन और कानासर के नजारो का मजा लेकर टाइगर फाल पर चल कर नहाया जाए! लेकिन पता नहीं क्यूँ अन्नू भाई को तो अचानक राफ्टिंग और ऋषिकेश के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था! खैर जी मेरी एक आद्त  है के जब मै किसी के साथ घुमने और उसे घुमाने लाता हूँ तो कोशिश यही रहती है की मेरे उस सहयात्री को भरपूर आनन्द प्राप्त हो। और आप सबको भी यही सुझाव दूंगा क्यूंकि किसी ने कहा है ….

“THE WAY TO BE HAPPY IS TO MAKE OTHERS HAPPY”

तो मैंने भी अन्नू भाई से साथ साथ खुद को भी खुश करने के लिए अपने घुमक्कडी दिमाग के गूगल को डूडल करा। फिर याद आया के… मोरी… अरे मोरी चलेंगे राफ्टिंग करने, पहले यहाँ घूम लेते है फिर मोरी चलेंगे राफ्टिंग करने… तब अनुज और प्रवीण बोले अब ये मोरी क्या बला है ???

मैंने कहा भाई देख तुझे राफ्टिंग करनी है और मुझे कम से कम टाइगर फाल तो देखना ही है सो अब टाइगर फाल चलते है बाद में मोरी चलेंगे और राफ्टिंग करेंगे…

वो दोनों बोले यार बिट्टू ये सब तो चल ठीक है पर ये मोरी है क्या और है कहाँ ?? आस पास है या कहीं दूर है ? कोण सी दिशा में है भाया ???

मै  बोला भाई … मोरी लगभग 3500 फीट की ऊंचाई पर टोंस नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा क़स्बा है. यह गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश, सीमा क्षेत्र त्यूनी से लगबग  २५ -३०  कि मी। होगा। यह  एक कम प्रसिद्द लेकिन  पानी के साहसिक खेल गतिविधियों यानी राफ्टिंग इत्यादि करने का एक बेहद ही सुंदर एवं मस्त स्थान है। गया तो मै भी नहीं हूँ… लेकिन पढ़ा और सुना है चलो फिर वहां राफ्टिंग करेंगे। (यहाँ मै एक चाल खेल गया जिसका उन्हें और आपको बाद में पता चल जाएगा )

भाही साहब… खैर किसी तरह उस समय तो यह निश्चित हुआ के कानासर और देवबन  को अभी रहने देते हैं कम से कम टाइगर फाल तो देख ही लेते हैं जो की भारत का दूसरा सबसे बड़ा फाल है। क्यूंकि समय की बाद्यता और शाम के ढलने का भी खौफ हमारे मन में आ रहा था …..पता चला यहाँ सिर्फ वार्तालाप ही करते रह गए और जब क्रियाकलाप का समय आया तो अँधेरा हो गया।

बुधेर रेस्ट हाउस से वापसी पर उसकी सुन्दरता को अंतिम बार कमरे में कैद किया एक फोटो

बुधेर रेस्ट हाउस से वापसी पर उसकी सुन्दरता को अंतिम बार कमरे में कैद किया एक फोटो

आगे का प्रोग्राम फ़ाइनल कर हमने उस रेस्ट हाउस के पहरेदार से उस दिन न रुक पाने की क्षमा मांग, फिर कभी आने का वादा कर ,अपनी  गाडी का स्टेरिंग टाइगर फाल की और मोड़ दिया ..इस बार रास्ते से वाकिफ होने और समय बचाने का फायदा उठाते थोडा तेजी दिखाई ….हाँ किन्तु रास्ते का मजा लेने का अब भी कोई मोका हम चूक नहीं रहे थे। रास्ते में कहीं भी कोई अच्छा सीन दिख जाता तो झट से उतर कर कभी अपनी और कभी उस प्रकृति के उस अनोखे रूप कैमरे में कैद कर लेते ….

कानासर के रास्ते में एक सुंदर सा पहाड़ी गाँव

रास्ते का में रुक जरा जंगल तो देखो

इतना बढ़िया दिन बीतने और बुधेर पर विजय का आभास किसी भी घुमक्कड़ी की भूख को उस दिन शांत करने के लिए काफी होती। परन्तु टाइगर फाल को देखने के साथ साथ  अब अनुज और प्रवीण की पेट की भूख भी जाग चुकी थी। जोकि हमें और जल्दी चलने को मजबूर कर रही थी क्यूंकि वहां उन पहाड़ो में तो कुछ खाने को मिलने से रहा। जो भी हल्का फुल्का था और सुबह खायी मैगी तो सब बुधेर की ट्रैकिंग में हजम हो चुका था। रास्ते में किसी जगह कोई दूकान वगरह दिख जाती तो पूछने पर निराशा ही हाथ लगती। चकराता में वापिस पहुँच , हमने चकराता कसबे में न जा कर टाइगर  फाल की और गाडी वापिस घुमा दी, क्यूंकि कनासर से वापिस आते हुए टाइगर फाल के लिए रास्ता चकराता बस स्टैंड कहो या टैक्सी स्टैंड से पहले ही बाई तरफ निचे की और लाखामंडल जाती रोड पर था। इधर उधर कुछ खाने के लिए देखते खोजते आगे बढ़ रहे थे।लेकिन यहाँ किस्मत हमारे साथ नहीं चल रही थी। रास्ते में दो मशहूर होटल भी पड़े पहला होटल हिल नाईट जो की लगबग ३- ४ कि .मि. आगे डाकरा नामक गावं में सड़क पर ही बाई और था उसका बोर्ड देख कर और पढ़कर मन प्रसन्न हो उठा… हुर्रॆरे रे रे रे रे  मजा आगया … गाडी साइड में लगा उस ढाई मंजिला इमारत रुपी होटल में घुसने का रास्ता ढूंढने लगे, तभी वही सड़क पर घुमती एक पहाड़ी औरत वही बगल में ऊपर चढती सीढियों की और इशारा कर ऊपर देखने को बोला।

बोर्ड देख कर और पढ़कर मन प्रसन्न हो उठा

होटल हिल नाईट के पास गाडी पार्क कर अनुज और प्रवीण

चलो जी खैर किसी न कहाँ दूध का जला, अब तो चाय भी फूक फूक कर ही पिएगा, सो हम भी सुबह के पराठों से सबक ले, खाना वाना  छोड़ कम से कम एक अदद चाय की प्याली और मैगी का स्वाद अपने मुंह में लाते हुए  ऊपर चढ़ गए …. अररररे वाह री किस्मत …..चाय छोड़ वहां कोई पानी पिलाने वाला तक मौजूद नहीं था, होटल की हालत और ऑफ सीजन के असर ने हमें यह समझने में देर नहीं लगाईं के निकल लो भैया …यहाँ कुछ न मिलेगा…

आप खुद ही अंदाजा लगा लियेजिये कितनी बढ़िया चाय मिली होगी

दूसरा प्रसिद्ध होटल हिमालयन पैराडाइस जोकि चकराता से लगभग 7-8 कि . मी . आगे किमोना नामक स्थान पर था।  यह भी रोड के बाई और सौ मीटर थोडा ऊपर जाकर था।  देखने में कुछ आकर्षक लग रहा था क्यूंकि वह थोडा लोकल शैली में पत्थरो और लकड़ी का बना हुआ था। यहीं के मालिक बिट्टू चौहान जिनके नाम पर ही उस नई गुफा का नाम बिट्टू  पडा और एक फाल जिसे किमोना फाल कहते हैं जो थोडा ऊपर जाकर था। अभी तो टाइम की कमी और टाइगर  फाल के मोह ने हमें वहां जाने से रोक लिया था लेकिन यहाँ भी हमारी किस्मत धोखा दे गयी। एक तो उसमें थोडा काम चालु था दूसरा वहां का नियम क़ानून जोकि सिर्फ फॅमिली और कॉर्पोरेट समूह के लिए ही उपलब्ध था। “BOYS ONLY NOT ALLOWED”

यहाँ भी हमने अपना गुस्सा उस महानुभाव पर न निकाल किस्मत को पकड़ा और चल दिए टाइगर फाल की और …..सच कहूं तो उन दोनों की हालत इतना भूख के कारण न होकर अभी ताजा ताजा हुए होटलों के अनुभव से और भी बुरी हो गयी ….लेकिन कहीं न कहीं हमारी घुमक्कड़ी अभी भी मजे ले रही थी। पूछते पुछाते 16-17 KM  बाद खैर जी हमने अपनी गाडी रोड से दाई साइड थोडा निचे जाती एक संकरी सडक पर मोड़ दी ,जो की टाइगर फाल जाती थी, गाडी से इधर उधर देखने पर बड़े ही सुंदर और मोहक पहड़ी खेतो  और उनसे बहती छोड़ी से पहाड़ी नदी का पानी पत्थरो पर उछल कूद करता वह दृश्य हमें अपनी और खिचे चला जारहा था।

टाइगर फाल की और जाते हुए रास्ते के दृश्य

टाइगर फाल की और जाते हुए रास्ते के दृश्य

थोडा दूर चलने पर बाए हाथ कंक्रीट का बना एक गेट नुमा और उसमे से पैदल जाने का एक रास्ता था। हमारी सड़क तो आगे भी जा रही थी लेकिन वहां हाथ से लिखे और बने निशान को पढ़ और समझ हमने गाडी साइड में लगा लोक कर ,कंक्रीट की बनी उस पखडंडी पर अपने कदम बढ़ा दिए।

फोटो खीचते और टाइगर फाल पर कुछ खाने को मिल जाने की आस में हम बढ़ते रहे। दूर से आती पानी गिरने और बहने की आवाज़ आहा हा  क्या मजा था वहां चलने का ……मजा लेते हुए एक दुसरे को गालियाँ देते (कुछ खाने को न मिलने के कारण) हम थोडा सा आगे ही गए थे कि अन्नू भाई  जो की मुझसे बिलकुल पीछे ही चल रहा था  ……बड़े जोर से उसकी आवाज आई ……मर गया यारर !!!!  हमने पीछे मुद कर देखा तो भाई निचे बैठा हुआ था …पता चला के पैर में मोच आ गयी ….ओ तेरी की ..अब के करें …झटपट अपनी अपनी डॉक्टरी झाड़  मालिश वालिश कर माहोल और अन्नू भाई को कुछ आराम दिया।

टाइगर फाल की और जाती कंक्रीट की बनी पखडंडी

लेकिन अब वो बोला अब मेरी हालत पहाड़ पर चलने की नहीं रही सो तुम ही हो आओ टाइगर फाल, मै यही बैठ आराम करता हूँ। क्या करें कुछ समझ नहीं आरहा था एक दम अचानक सारी मस्ती काफूर को गयी। कुछ देर वहीँ बैठ गप्पे लड़ाते और आगे का प्रोग्राम बनाते प्रवीण बोला भाई मेरी भी भूख से हालत पतली है सो तू हो आ मै भी यहीं बैठा हूँ ….अबे यार अब मै  अकेला वहां क्या करूँगा , शाम वैसे होने हो है और ३-४ KM अभी ट्रैक  करना पड़ेगा।

सब सोच और समझ मै बोला भाई अपना यही निश्चित हुआ था के जो मजोरटी बोलेगी वो करेंगे ,सो अब टाइगर फाल जाते ही नहीं छोड़ो उसे फिर देख लेंगे। इस सब में वैसे भी काफी समय जाया हो गया। ये पता हमें तब चला जब सूरज भैया में अपनी टोर्च को हाई बीम से हटा लो बीम पर कर लिया, यही के सूर्योदय निकट ही था। अब इस ढलते दिन ,भूख और अन्नू भाई के पैर की प्रोब्लम के साथ आगे का प्लान बनाने लगे। वो बोले चलो फिर मोरी चलते हैं लेकिन अब यहाँ उन्हें मेरी बुधेर में खेली चल का पता जब चला,जब मै बोला भाई … मोरी जाने के लिए तो हमें वापिस जाना होगा वहीँ से जहाँ से हम आये है …..और दूसरा रास्ता जो की लाखामंडल से होकर यमनोत्री मार्ग से जाकर नौगाव और और पुरोला होकर पड़ेगा

यही पर चलते हुए अन्नू भाई के पैर में मोच आगई थी

अन्नू बोला …अबे यार ….अब के करें???  टाइगर  फाल भी नहीं जा सकते। जब तक हम लोग यह सोचे के आगे क्या करना है और क्या नहीं? तब तक आप लोग निराश न हो, हम उस दिन भले ही न टाइगर फाल गए न हो लेकिन मैं आपको अपनी एक दूसरी यात्रा के माध्यम से टाइगर फाल तक जरुर ले चलूँगा (जो मैंने और मेरी अर्धांगनी ने की थी)

टाइगर  फाल 

दोस्तों जैसा की मेरी पिछली पोस्ट में महेश जी ने कहा के टाइगर फाल को देखे बिना चकराता की यात्रा अधूरी है सो यही अधूरी यात्रा और टाइगर फाल न देखने का मलाल मेरे दिमाग में रहता था सो इस मलाल हो मैंने जल्दी ही हलाल कर दिया। जब मै अपनी श्रीमती जी के साथ चकराता की यात्रा पर आया था सो आपकी इस ब्लॉग यात्रा को अधुरा न छोड़ उस यात्रा के दोरान देखे टाइगर फाल तक ले चलता हूँ।

कंक्रीट का दरवाजा जहाँ से टाइगर फाल की पैदल यात्रा शुरू होती है

अन्नू भाई यही तक आ पाए थे ….कंक्रीट की पखडंडी पर छोटे मियाँ हिमांशु

खैर जी वही कंक्रीट के गेट से के पास इस बार भी हमने अपनी गाडी लगाईं और हम दोनों मिया बीवी और हमारे एक चचरे छोटे भाई हिमांशु हम तीनो चल पड़े। रास्ता बहुत ही खुबसूरत और मनोहर है,  दोनों तरफ घाटी में छोटे छोटे, हरे- भूरे रंग के खेत ऐसे लगते है जैसे किसी मिठाई वाले की दूकान में ट्रे में लगी बर्फी ….और उनके बीच पत्थरों से होकर बहती दोनों साइड एक एक छोड़ी सी नदी रुपी जलधारा …जिनमे से बाई और वाली ही आगे जाकर टाईगर  फाल में बदल जाती है और उसमे बाद दाई वाली में मिल जाती है.

परत दर परत …….पहाड़ी खेत

टाइगर फाल जाते दिखाई देते पहाड़ी खेत

साधारण लेकिन मजेदार ट्रेकिंग करते हुए पहाड़ से उतरते हुए कुछ जोंसारी मकान दिखाई दिए जहाँ इधर उधर लोग काम करते नजर आ रहे थे कोई अपने बैलो से खेत जोह रहा था तो लकड़ी बीन रहा था तो कोई कुछ …..वही मकानो के थोडा सा आगे पखडंडी दोनों तरफ जारही थी, कुछ असमंजस के बाद आवाज लगा दूर काम करते लोगे से पूछ तो दूर से आई आवाज के भरोसे हम अपनी बाई तरफ चल पड़े

1. लकड़ियाँ बीन कर घर जाती जोंसारीमहिलाये ,
2 एक जोंसारी मकान के आकर्षण में हमारी श्रीमती जी

अभी ४-५ मीटर ही गए थे की एक जोंसरी औरत वही उस बहते पानी से अपने बर्तन धोकर लोट रही थी, पूछने पर उसने बताया के फाल का रास्ता दाई तरफ था आप गलत जा रहे हो दूसरी तरफ से जाओ ….उस जोंसारी औरत और उसके लाल लाल गालो वाले छोटे से बच्चे से बाते कर और उसे आपने साथ लाये केले और बिस्कुट देकर, हम दूसरी तरफ उसी कंक्रीट वाली पख्डंडी पर चल पड़े। उस पर कहीं कहीं पानी बहने की वजह से काई जमी हुयी थी। सावधानी से निचे उतरने पर अब हम अपनी दाई तरफ बहने वाली ऊपर पहाड़ से देखी देती छोटी सी नदी के किनारे पहुंचे।

1. पखडंडी पर जमी काई और पानी
२. बहुत कठिन है डगर इसके घर की ….जोंसारी महिलायें

लेकिन वहां आकर पता चला इतनी छोटी भी नहीं …..पूरी पहाड़ी नदी थी। अब  दूर उसी के किनारे चलते चलते एक सा सुंदर सा पुल था वहाँ एक दो फोटो खीच हम जैसे ही चले थोडा सी आगे जाने पर  देखा के, वैसे ही नदी दूसरी दिशा से आकर उसमे मिल रही है! वही बड़े जोर जोर से झरने की आवाज भी आ रही थी लेकिन झरना दिखाई नहीं दे रहा था

छोटी पहाड़ी नदी जो अब बड़ी लगने लगी थी

पहाड़ी नदी के साथ साथ टाइगर फाल को जाती पखडंडी और हिमांशु

छोटा सा पुल …छोटी सी नदी को पार करने के लिए

बिलकुल थोडा सा आगे जाते ही मन एक दम खुश हो गया होता भी क्यूँ नहीं …हम एक बेहद ही खुबसूरत सफ़ेद झरने का कुछ  हिस्सा जो देख रहे थे। मन एक दम लालयित हो उठा चलो जल्दी …अरे पर जल्दी तो चले लेकिन चले कहाँ से सामने तो दोनों पहांड़ी नदिया मिल रही रास्ता कुछ दिख नहीं रहा था। एक बार लगता के इन्ही नदी में पड़े पत्थरों से होकर जाना होगा। लेकिन २ दिन पहले से बंद हुयी बारिश अब तक हमें इसी और खड़े रहने का इशारा कर रही थी।

बस समझो पहुच गये ……टाइगर फाल

इधर उधर देखा जाच पड़ताल करी तो वही पास में एक अच्छा व्यस्क लड़का खेत में काम करता मिला। उसमे बताया के हाँ इसी नदी को पार करके चले जाओ। लेकिन हमने भी उस भाई से मदद मांगने में कोई कंजूसी न कर उसे पास बुला लिया तो उसने दुसरी तरफ से ही हमें इशारा कर बताया के पत्थरो से मत आओ फिसल सकते हो आराम से पानी  में से आजो , तब हमें अपने जूते उतार वही छोड़ , जींस घुटनों तक चढ़ा  घुस गए उस कल कल बहते शीशे से चमकते पानी में …एक दम साफ़  crystal clear  पानी से होकर जब दूसरी साइड पहुच झरने की तरफ बढे तो हवा में उडती पानी की बहुत ही हलकी हलकी बुँदे (drizzle) हमारे ऊपर ऐसे आ रही थी जैसे मानो बहुत सालो के बाद कोई खास मेहमान घर आ गया हो और हम दोड़कर उसे गले लगा एक अलग ही ठंडक पाते हैं, (लेकिन इस भोतिक्तावादी युग में ऐसा अब बहुत  ही कम रह गया है) वो पानी की बोछारे भी हमें ऐसे ही गले लगा रही थी, कभी हमारे मुह को किस करती ……कभी हाथो  को छूती ….कभी कैमरे के ऊपर …….

1 . नदी के दूसरी तरफ पहली बार दिखाई देता टाइगर फाल
2 . भव्य फाल का भव्य नजारा …..

हम भी पगलाए से कैमरे में उसे कैद करते उसकी और बढे जारहे थे। लकिन ठीक सामने से झरने  तक नहीं पंहुचा जा सकता था क्यूंकि पीछे हफ्ते की बारिश से बढे पानी के कारण हम  थोडा घूम कर उसके सामने जा दूर से ही उसके दर्शन कर ठंडी फुहारों का मजा लेते रहे।

ये लीजिये , जी भर के देखे लीजिये ..टाइगर फाल

थोड़ी देर ऐसे ही बैठे चुपचाप वहां बहते उस पानी , झरने , हवा  और चिडयों के अद्भुत एवं प्राकृतिक संगीत को सुनते रहे। कई तरह की चिड़ियां उस झरने के आगे पीछे और उसके दोनों साइड बने इन्द्रधनुष से खेल रही थी। क्या भव्य नजारा था दोनों तरफ इन्द्रधनुष  बीच में सैकड़ो फुट ऊपर से गिरती विशाल गरजती सफ़ेद पानी की धारा …..थोड़ी देर वहां बैठ उस लड़के और झरने से बाते करने के बाद , नीचे आ उस नदी में हाथ मुह धो पानी पी …वहां से विदा ली ……

टाइगर फाल के चारो और अठखेलिया करती अनेको चिड़ियाँ और फूल देखने योग्य थे …

इस प्रकार हमने अपनी चकराता की आधी अधूरी यात्रा भी पूरी कर ली थी। आशा है आप लोगो को भी 312 ft. ऊपर से गिरते टाइगर फाल को देखकर और उसके बारे में पढ़कर थोडा बहुत मजा तो आया होगा। लेकिन भूल मत जाना …अन्नु भाई और प्रवीण और मैं अभी भी ऊपर बैठे इस अद्भुत नज़ारे से अनजान आगे की यात्रा की योजना बनाते हुए आप ही का इंतज़ार कर रहे है की कब आप लोग टाइगर फाल देखकर  हमारे पास आओ और हम आगे कहीं तो चले…. ठीक है चलेंगे तो जरुर लेकिन अब अगली पोस्ट में ..सो साथ बनाए रखियेगा …देखे कहाँ पहुचते है? जोंसार के इन पहाडो में…. हम और आप….

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