आज अपना पहला यात्रा अनुभव आप लोगे से साझा करने जा रहा हूँ हिंदी लिखे हुए वैसे भी अरसा हो गया! इस ब्लॉग को शुरू करने से पहले याद भी नहीं पड़ता की अंतिम बार कब हिंदी में लिखा होगा! नौकरी के झमेले और आज कल की जिंदगी हो ही ऐसी गयी है….चलिए खैर मेरे हिंदी लेखन में होने वाली गलतियों/त्रुटियों पर आप सब से पहली और अंतिम बार क्षमा माग लेता हूँ ….आशा है आप सब मेरा उत्साहवर्धन कर त्रुटियों पर ध्यान न दे यात्रा अनुभवों का मजा लेंगे!!
2011 दिवाली से कुछ दिन पहले मेरे खासम ख़ास दोस्त अनुज उर्फ़ अन्नू का फोन आया जॉब के कारण वो आज कल बंगलौर में रहता है ! अन्नू को हम यार दोस्त कीड़ा भी कहते है आप लोग समझ ही गए होंगे के कीड़ा मतलब….बोला भाई इस बार दिवाली की छुट्टियों में घर आऊंगा तो कही घुमने चलेंगे! हमारी घुमक्कड़ी की वजह से हम वैसे ही बदनाम रहते है सो उसे भी मैं ही याद आया, बोला प्रोग्राम ऐसा हो के बस हमेशा याद रहे, एक दम एडवेंचर से भरपूर! चलो खैर काफी कुछ दिन विचार विमर्श के बाद आखिर हमारे कहे अनुसार प्रोग्राम बना मेरे सबसे पसंदीदा प्रदेश उत्तराखंड में चकराता और लाखामंडल का, साथ में हमारे एक छोटे भाई साहब(मौसेरे भाई) प्रवीण भी तैयार हो लिए, इन दिनों उनकी भी घुमक्कड़ अन्तरात्मा जागने लगी थी! समय की बाध्यता को देखते हुए दो रातें और दिन दिन का प्रोग्राम बना, क्यूंकि भाई साहब की बंगलौर वापसी तय थी और हमारी भी ऑफिस की मज़बूरी ……सो सोचा भैया दूज वाले दिन तडके तड़क निकल शाम 3-4 बजे तक चकराता पहुचेगे बाकी बाद में देखेंगे …..
हमारे कीड़े भाई साहब अनुज जैन जी |
घुमक्कड़ी के नए सूरमा प्रवीण कोशिक जी |
आखिर कार हंसी ख़ुशी दिवाली मनाकर मैं और प्रवीण दोनों लोग भैया दूज के दिन सुबह सुबह गाजियाबाद से चल दिए हमारे कीड़े भाई साहब को यमुनानगर से हमे मिलना था और भैया दूज के कारण हमे शामली अपनी बहन के यहाँ से होकर जाना था! सो यह निश्चित हुआ के वो हमे सहारनपुर से आगे छुटमलपुर मिलेंगे! क्यूंकि वो बस से आने वाला था और हम अपने शवरले बीट कार से निकल पड़े! भाई साहब क्या बताये बहन जी के युपी के रास्तो का हाल…. जिनकी मेहरबानी की बदोलत यात्रा में पहले से लेट हो गए, दोपहर लघभग ढाई बजे हम छुटमलपुर पहुंचे, साल भर बाद अपने कीड़े भाई से गले मिलने का मजा ही अलग था!
यूंपी के रास्ते….. |
यहाँ से हमने देहरादून -मसूरी होते हुए चकराता जाना था यहाँ से चकराता जाना काफी सरल है. जाने के दो तरीके हैं, एक देहरादून से मसूरी और यमुना ब्रिज (155kms) होते हुए एक दम पहाड़ी रास्ता और दूसरा एक पारंपरिक रास्ता देहरादून से विकासनगर और कलसी (130kms) होते हुए जो की कम पहाड़ी है लेकिन हम भी पुरे पक्के खिलाडी बन (वैसे भी अब तो तीनो ही वाहन चालक थे ) मसूरी वाला रास्ता चुन लिया!
रास्तो पर चलने के लिए एक रास्ता जिसे नक्शा कहते हैं
लेकिन किसी ने कहा है समय बड़ा बलवान हम देहरादूँन पहुचने वाले थे ही लगभग 10-12 किलोमीटर पहले हम जाम में फंस गए! रास्ता थोडा पहाड़ी था, सोचा हो गया होगा कुछ …..लेकिन भाई साहब 10-15 मिनट बाद हमारे अनुज भाई का कीड़ा जाग गया, बोला कुछ ज्यादा ही समय लग रहां है देख कर आता हु क्या बात है , वो चला गया! मैं और प्रवीण अपना गाने सुनने में मस्त हो गए जब काफी देर बाद भी अनुज नहीं आया तो मैं उसे देखने के बहाने पैदल ही चल पड़ा भाई साह्ह्हह्ह्ह्ब ….क्या लम्बा जाम था लगभग दो किलोमीटर आगे जाकर देखता क्या हूँ के सड़क में बीचो बीच एक एल पी जी गैस सिलेंडर का ट्रक उलट गया था पहाड़ी रोड होने की वजह न आ सकते थे न जा सकते थे…लकिन हिन्दुस्तानी मोटरसाइकिल वाले कहीं रुकते है उनकी तो शान में फर्क आ जाता…..घुसे चले जा रहे थे …
कार से देखने पर जाम का दृश्य |
पैदल चलते हुए लोग और उनके पीछे हम …. |
कुछ देर बाद आर्मी वाले पहुचे लकिन बिनो साजो सामान यानी बिना क्र्रेन के सब व्यर्थ था! गाडी लोक कर मेरे पीछे पीछे प्रवीण भी आ पहुंचा! अब हम तीनो को आगे जाने की जल्दी लगी थी… हमने वहाँ अपनी मजोरटी का फायदा देख कुछ और नेता टाइप कर्मठ लोगो के साथ मिल रास्ता खोलने की जुगत लगाई! सभी मोटर साइकिल वालो को पीछे रोक, लोगो को तितर बितर कर एक बस में रस्सा ड़ाल ट्रक को खीच कर रोड से हटाने का एक और व्यर्थ प्रयास किया!
जय जवान ….जनता के साथ ये भी परेशान |
ये जो पब्लिक है ….ये कहा मानती है |
थक हार कर कुछ और सोच हम वापिस अपनी कार की तरफ चल दिए यही विचार विमर्श करते हुए के क्या किया जाए? शाम के पांच बजने वाले थे प्रकृति ने भी अपनी धुंदली सी चादर ओढ़ ली थी! क्या करे कहाँ जाए? कभी सोचते, एक कच्चे पक्के अनजान रास्ते बेहट होते हुए जहा तक हो सके कम से कम विकास नगर पंहुचा जाए, या फिर यहाँ से वापिस जाकर रूडकी होते हुए आज रात हरीद्वार पंहुचा जाए… आगे तो जाम था ही जब तक हम अपनी कार पर पहुचे हमारे पीछे भी गाड़ियों की एक लम्बी क़तार लग चुकी थी ! ये लो… आसमान से टपके, खजूर में अटके… आपको क्या लगता है क्या किया होगा हमने और क्या हमें करना चाहिये था ? आप लोग कुछ सुझाव दीजिये, ताकि हम जैसे अन्य लोग जब ऐसे फंसे तो क्या करना चाहिये!
आखिरकार कुछ देर उठाक पटक के बाद हमने अपनी गाडी वापिस छुटमलपुर की और दौड़ा दी! सी बी आई की तरह पूछताछ कर, छुटमलपुर से पहले ही हमने एक अनजान सा रास्ता (जस्मोर- बिहारीगढ़) पकड़ लिया, जो कहीं आगे जाकर मिर्ज़ापुर पर निकलता था! मिर्ज़ापुर सहारनपुर से विकासनगर वाले हाईवे पर था!हमारी देखा देखी एक दो गाड़ियां और हमारे पीछे लग गयी! निहायत ही देसी और ग्रामीण इलाको से होते हुए हम मिर्ज़ापुर पहुंचे!
यहाँ से हरबेर्टपुर होते हुए विकास नगर लगभग 35-36 कि.मी. है! रास्ता लगभग साफ़ सुथरा है! हरबेर्टपुर नॅशनल हाईवे न. 7 पर स्थित है! जो देहरादून से आसन बैराज पक्षी विहार और पोंटा साहिब (हिमाचल) को जाता है! और यहाँ से 5 कि. मी. आगे विकासनगर है! जो के एक अच्छा बडा टाउन है! खाने पीने के लिए वेज और नॉन वेज ढाबे, पेट्रोल पम्प और ऐ टी म आदि की सभी सुविधाए यहाँ उपलब्ध है! यही से 3 कि. मी. बाएं जाने पर प्रसिद्ध डाक पत्थर है जो यमुना नदी पर बने अपने ह्यडरो प्रोजेक्ट के लिए जाना जाता है, परिवार के लिए एक बहुत ही सुंदर एवं सुरक्षित पर्यटन स्थल है ! विकासनगर पहुँचते- पहुँचते हमे लगभग 8 बज चुके थे! आखिर मन में थोडा चैन पड़ा, के चलो कहीं सही सी जगह तो पहुंचे!
हम थोडा थके और भूखे थे! साथ साथ हमारी गाडी भी बेचारी सुबह से हमे ढोकर थक चुकी थी और भूखी भी थी! यानी उसे भी तो पेट्रोल चाहिये था! वैसे भी आगे एक दम पहाड़ी सफ़र जो करना था और हमे पता नही था के आगे पेट्रोल पम्प कब और कहाँ मिलेगा! गाडी साइड लगा कर इधर उधर जांच पड़ताल चालू की! ढाबे तो कई दिखाई दिए परन्तु हम ठहरे पक्के शाकाहारी और हमारे कीड़े भाई पक्के जैनी….. तो पता चला की आगे मेन रोड पर ही जो चकराता जाता है, वहां का एक प्रसिद्ध प्रकाश वैष्णव भोजनालय स्थित है! हम आगे के सफ़र के लिए बाकी का खाने पीने का सामान खरीद, प्रकाश वैष्णव भोजनालय जा पहुंचे! जो एक दम साफ़ सुथरा माहोल लिए जैसे हमारे ही इंतज़ार में था! यहाँ पर ऊपर ठहरने की उचित व्यवस्था भी मौजूद थी! प्रकाश वैष्णव भोजनालय एवं लोज के मालिक एक बुजर्ग लेकिन बहुत ही सोम्य और धार्मिक विचारो के व्यति थे! जो की भोजनालय में लगी भगवानो की विभिन्न तस्वीरो को देखकर पता चलता है! चलो जी खैर उस प्रभु की कृपा से हमे बड़ा ही स्वादिष्ट और गरमा गरम खाना खाने को मिला! वाकई में सिर्फ लिखने के लिए नहीं कह रहा अपितु खाना था ही बहुत शानदार और हमे खाना खिलाने वाले उस गढ़वाली लड़के की सर्विस भी! दाम की एक दम वाजिब थे!
चमचमाता प्रकाश वैष्णव भोजनालय एवं लोज |
साफ़ सुथरा पारिवारिक माहोल |
ये बेचारा भूख का मारा , हमारे कीड़े भाई साहब |
नप्किन और पानी नहीं खाना लाओ बस जल्दी ! |
मैं और प्रवीणरात के लगभग 9 बज चुके थे और हम खाना खाकर एक प्याली चाय के इंतज़ार में वहीँ टेबल को संसंद में बदल चुके थे! संसद से मेरा मतलब फिर वही बहस चालू हो गयी थी के अब क्या किया जाए ! आगे चकराता चला जाए या नहीं ? क्यूंकि एक तो आगे आर्मी एरिया होने की वजह से रास्ते में गेट सिस्टम रहता था सो वो रात में आगे जाने नहीं देंगे, दूसरा रास्ता पता नहीं कैसा होगा ? फिर सोचा यही प्रकाश लोज में रुका जाए या फिर 3 कि.मी. जाकर डाक पत्थर में रात बिता कर वही पत्थर तोड़े जाए….और सुबह सवेरे चकराता निकला जाए! इसी शोर शराबे में हमे उन बुजुर्गवार से पता चला के अब गेट सिस्टम ख़तम हो गया है और इतनी रात में भी आगे जाने में कोई दिक्कत नहीं! हमने भी चाय ख़तम करी और पैसे देकर उन साहब का ढेरो शुक्रिया अदा कर अपनी गाडी की और चल पड़े! क्या सज्जन व्यक्ति था… चाहता तो हमें गलत बता कर अपनी लोज में ठहरने के लिए उकसा सकता था लेकिन नहीं ……. यहीं तो पता चलता के ये कहीं न कहीं लोग अभी भी पूरी तरह भारतीय है…. आजकल के इंडियन नहीं बने!
गढ़वाली लड़का और सज्जन बुजुर्गवार लोज के मालिक |
लड़ते झगड़ते आखिर घुमक्कड़ी जीत गयी और हमने आगे चकराता बढ़ते हुए गाडी पेट्रोल पम्प की और दौड़ा दी! यहाँ से चकराता, कलसी होते हुए 52-53 कि.मी. है! कलसी अपनी प्राकृतिक सोंदर्य और वहां स्थित सम्राट अशोक द्वारा स्थापित करायी गयी शिलालेख के लिए जाना जाता है! रात होने की वजह से अब शिलालेख तो देखना मुश्किल था! जैसे जैसे अनुज गाडी को वहां पहाड़ियों की गोद में ऊपर की और बढाए जा रहा था! वैसे वैसे ही ना जाने कौन सी सुखद एवं अनजानी ख़ुशी का एहसास भी हमारे मन में बढ़ता जा रहा था! रात के अँधेरे में ना तो कोई खाई दिखाई दे रही थी बस कार से पड़ने वाली रौशनी में पहाड़ी घूम और पेड़ पोधे दिखाई दे जाते थे! लगता था के मानो हमसे पुछ रहे के भाई साहब इतनी रात में कहाँ? बाते करते करते हमे एहसास हुआ के आसमान के चमचमाते लाखो तारे और सुनसान सी पहाड़ी सडक जैसे हमे कुछ कह रही है! हमने भी उनसे दो चार बाते करने की सोच घोर अँधेरे में गाडी साइड में लगा, सब लाइट ऑफ कर दी! गाडी से बहार निकल शरीर की अकडाहट कम करने लगे! क्या शांति थी उस सर्द रात में, च्यूंटी काटती बर्फीली हवाएं , जंगल के जिन्गुरो की आवाज़ …………आहह्ह्ह्हहह्ह्ह्ह का सा एहसास निकला हमारे मन से!
गाडी की रौशनी से लुका छिपी खेलते पहाड़ी रस्ते के घूम |
पहाड़ो की ख़ामोशी और तारों से बाते करते हम |
फिर कुछ देर उन टीमटीमाते तारों को देखने के बाद हमे लगा के वहाँ चकराता में कोई हमारा इंतज़ार नहीं कर रह होगो वो भी सर्दी भरी रात में के बाउजी आयेंगे और कमरा तैयार….. जल्दी जल्दी चकराता पहुचने के प्रयास में हम उस एक दम पहाड़ी रास्ते से फिर उलझ पड़े! आखिर 11:40 पर हम अपनी मंजिल का प्रथम दर्शन कर रहे थे जो के एक तिराहा सा था! एक दम सुनसान , न कोई आदमी, न कोई सुचना बोर्ड, किधर जाए………..? लगा भैया फिर फंस गए, चकराता एक टिपिकल आर्मी एरिया है! यहाँ विदेशी सैलानीओं का आना मना है! खैर जी एक फोजी जो की न तो हिंदी ही जानता था न इंग्लिश, लेकिन उसे इतनी ठण्ड में ड्यूटी पर तैनात देखकर हमें ये पता चल गया था के ये देशभग्ति जरुर जानता है! हमने भी उसकी देशभग्ति को सलाम कर! एक प्रसिद्ध होटल स्नो विऊ के बारे में पूछा, लेकिन वो कुछ न बता कर एक साइड में हाथ से इशारा कर बस एक शब्द बोला होत्लू …होत्लू …
फोजी भाई को धन्यवाद कर हमने भी अपनी गाडी उसी और चढ़ा दी! थोडा आगे जाकर और चढाई चढ़ घूमते ही सामने कुछ गाडिया पार्क थी और एक गेट लगा था! गाडी खड़ी कर हम बहार निकले तो पता चला के ठण्ड ने भी पूरा जोर लगा रखा था उस सन्नाटे को बढाने में! तभी हमारी गाड़ी की आवाज़ सुन गेट के बगल में ही एक टिकटघर नुमा कमरे से एक छोटे से कद का (हिंदी फिल्मो का राजपाल यादव टाइप ) एक पहाड़ी आदमी निकला, देखते ही लगा के यही तो टिपिकल जौनसारी है, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ के उत्तराखंड में मुख्यत: तीन इलाके और लोग पाए जाते है एक है गढ़वाल के गढ़वाली, दुसरे कुमाउ के कुमाँउनी, और तीसरे जौनसार के जौनसारी! सो चकराता उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में पड़ता है! वह जौनसारी व्यक्ति हमसे बोला के यहाँ यही एक मुख्य बाज़ार है और यह उसी का गेट है जो की रात के समय बंद रहता है! गाडी आगे लेजाने के लिए मुनिसिपल कमेटी की पर्ची कटवानी होगी! वही अन्दर आपको कोई लोज मिल जायेगी! लेकिन हम भी होटल स्नो वीऊ के लिए अड़े थे! और वो भाई अपनी पर्ची पर…. कुछ न बताकर हमारी पर्ची काटने में लगा था! हमने भी उसे अभी लोटकर आने की बोल वापिस गाडी दौड़ा दी! होटल स्नो वीऊ की तलाश में! उसका कारण यह था की यह होटल अपने आप में एक देखने और रहने के जगह है! हमने सुना था के वो अंग्रेजो ने 1836 में बनवाया था जो की सुर्योदय की खूबसूरती निहारने के लिए उत्तराखंड की बेहतरीन जगहों में से एक था! आधा घंटा भटकने के बाद आखिर हम होटल स्नो वीऊ पहुचे! जो की उसी सबसे पहले तिराहे से सीधे आगे जाकर थोडा दाहिने हाथ पर एक निचे उतरते बहुत ही संकरे से रास्ते पर था! जो सिर्फ उसी पर जाकर ख़तम होता था! वह सचमुच ही एक पुरानी सी ब्रितानी बिल्डिंग थी! जो कभी किसी जमाने में रहिसियत ही गवाह रही होगी! अँधेरे में आवाज़ सुन कर दो पहाड़ी लड़के बहार आये, पूछने पर बड़े अकड़े से लहजे में बोले, कमरा तो खाली है लेकिन किराया 1200 रुपये होगा तीनो का! हमने कहा भाई, वेब साईट पर तो तुमने डबल बेड का किराया 800 रुपये लिखा है! तो वो बोला ये सुइट है और बाकी सब कमरे लगे है कोई खाली नहीं! हमने कहा एक बार दिखा तो दो कैसा है! देखा तो कमरा क्या पूरा का पूरा 2 बी एच के फ्लैट था! पहले एक कमरा जिसमे डबल बेड और एक कोने में चिमनी थी! दूसरा भी वैसा ही पर उससे भी बड़ा, एक कोने में स्टोर रूम जो की बंद पड़ा था और दूसरी कोने में सबसे बाद में एक बाथरूम था जिसका एक दरवाज़ा होटल में पिछवाड़े में खुलता था! पिछवाड़े की हालत देखकर वहां फैले कूड़े कबाड़े को देखकर बडा दुःख हुआ के हम जैसे ही लोग आकर इस प्रकृति और पर्यावरण का अनदेखा कर जाते है!
दुसरे कमरे में आराम फरमाता मैं साथ में हमारे जूते भी थक गए थे |
बाथरूम और स्टोर रूम की पहरेदारी करता अन्नू भाई |
ठण्ड दूर करने का अंग्रेजी तरीका |
हाल जैसे कमरे की छत भी अजीब ही थी |
खैर जी हमने उस से कुछ रियायत करने को कहा, के भाई हम इतने बड़े कमरे का क्या करेंगे? हम तो एक रूम में ही सेटेल हो जायेंगे और सुबह जल्दी निकलेंगे, सो कुछ तो कम करो! उसने ना, एक रुपैया भी कम किया! जानता था इतनी रात और ठण्ड में कहाँ जायेंगे! लेकिन तभी हमारी कीड़े भाई साहब बोल पड़े अगर नहीं कम करता तो रहने दो कहीं और चलते है!
और इतना कह हम तीनो वापिस अपनी गाडी की और चल दिए! गाडी पर पहुच कर देखा के उन लडको ने भी दरवज्जा बंद कर लिया! मैंने और प्रवीण ने कहा यार अन्नू इतनी रात में अब और कहाँ जायेंगे? तो अनुज बोला यार मैंने तो ऐसे ही हूल देने को कह दिया था! के जब हम वापिस जाने लगेंगे, तब तो कुछ कम कर ही लेगा! लेकिन यहाँ तो पासा उल्टा ही पड गया था! अब रात के सवा बारह बज चुके थे और सुनसान अनजान चकराता की सर्द हवा हमे उस बंद दरवज्जे की और जाने को कह रही थी! सो हमने उसकी बात मान वापिस दरवाजे पर द्स्तक दे, अपने हथियार डाल दिए!
चाय पीने की बड़ी तलब लगी थी! लेकिन उन पट्ठो ने भी एक जग पानी का देकर हाथ झाड दिए! चलो जी, पानी पिकर ही सही हम तीनो एक ही बिस्तर पर लमलेट हो लिए! आखिर हम चकराता के सबसे बेहतरीन होटल के सुइट में आराम जो फरमा रहे थे! यही सोच कर के सुबह जल्दी उठकर हम भी अंग्रेजो के बनाये इस होटल से कल के खुबसूरत सूर्योदय का मजा आज छुट गयी चाय की चुस्की के साथ कल तो लेंगे ही! और लाइट बंद कर पता नहीं कब इसी इंतज़ार आँख लग गयी! आगे क्या क्या हुआ? चाय मिली या नहीं? सूर्योदय देखा या नहीं? ये सब भी जल्द ही बताऊंगा अपनी अगली पोस्ट में जाईयेगा नहीं ……. तब तक मैं अपने हाथो को विश्राम दे ऑफिस का कुछ कार्य निपटा कर, आगे की कहानी के लिए जल्दी ही वापिस आता हूँ! जाइयेगा नहीं अपनी सुझाव देते रहिये…… (क्रमशः)
Wow Man! Very enjoyful reading. When it comes to finding a room in Chakrata, everybody gets frustrated.
Thanks Praveen Ji, people like you & your stories are a energy sources for me.
Well rightly said its very frustrated to get Room in Chakrata as no much options are available.. except rudimentary 2-3 lodges there are only two good hotels one is Hotel snow view (my suggestion to every one) 2nd one is hotel Himalyan paradise which aprox 5-6 km ahead from main town on towards Tigar fall -lakhamandal road & they are not giving rooms to boys only
very well narrarted !!!
My father almost spent his childhood time in Chakrata only as my grandfather was posted their in forest department. I have been to Chakrata almost 2 years back , beautiful place.
If you get time go through the below three post on Chakrat / Lakhamandal :——-
https://www.ghumakkar.com/2011/06/28/the-hidden-places-of-uttrakhand-%E2%80%93-chakrata-lakhamandal-day-1/
https://www.ghumakkar.com/2011/07/01/the-hidden-places-of-uttrakhand-%E2%80%93-chakrata-lakhamandal-day-2/
https://www.ghumakkar.com/2011/07/05/the-hidden-places-of-uttrakhand-%E2%80%93-chakrata-lakhamandal-day-3/
Looking farward to your next post…………….
Thanks Mahesh Ji,
Well i have already gone through your chakrata lakhamandal post …really nice & very much informative for me too even though after visiting chakrta thrice .
kutchh dino k gap par aane se kutchh jyada hi intresting post mil raha hai .mast post hai pankaj bhai.jaam me ghum kar wapis kaise hue?sach puchho to ghumne ka maza apni hi vehicle se hai.last durga puja ki chhutti me main bhi apni car se patna se nainital pahunch gaya tha ghumte hue. ek baat jo maine mehsoos ki hai ghumne me ki kira bhai ki tarah hotel me maine bhi hool di hai aur kai jagah bargain karne me safal bhi hua hun.wo jo tata sky ka ad hai, puchhne me kya jaata hai ,to bargain karna hi chahiye.jald dusra post daalo ,break achchha nahi lagta hai
Rajesh Ji bahut bahut shukriya!!!
Well hul dene wali barging to jyadatar success full hi rahi hai , parantu us raat haalat hamare paksh me nahi rahe…..
waise jaam se haum kaise nikle wo to maine upar post& fotos me sapast kiya hai baaki ek video linak hai jo ki humhe wahan se nikalte huye apne phon se banayi thi , aap se share karan cahunga….
http://www.youtube.com/watch?v=jTD2tuCmehs
Welcome aboard Pankaj.
Very pacy narration and you do have a unique style with enough condiments spread all over. Loved it. I have been to the roads you have mentioned. Salute to spirit of Ghumakkari that you managed to reach your destinations. We also stayed at the same hotel many years back and it is indeed located at a super place. During that time, the way to the hotel was pretty adventurous. I dont know whether now , there is a better road or not. Also when we went, the gate system was there.
Look forward to next part. Wishes.
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Very nice Pankaj. Seems like your adventure started in the plains itself. After an eventful first day, I look forward to the sunrise next morning!
Thank you dear for your comments
Ya of-course on that day even after so much adventure we were also looking forward to the beautiful sunrise….by tomorrow you ll be able to see my next post
Thanks Pankaj for the informative Post.
Chakrata is a new place to me and has been added to the wish list.
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