14 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2006 की सà¥à¤¬à¤¹ आ चà¥à¤•ी थी । और हम नागपà¥à¤° (Nagpur) की ओर कूच करने को तैयार थे। वहीं मेरी बहन का अà¤à¥€ का निवास है। दरअसल इस बार सारे परिवार को इकठà¥à¤ ा होने के लिये हमने पचमà¥à¥€ को चà¥à¤¨à¤¾ था । नागपà¥à¤° तक टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से जाना था और उसके बाद सड़क मारà¥à¤— से पचमà¥à¥€ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था । समय से आधे घंटे पहले हम हटिया सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर मौजूद थे ।
अब यातà¥à¤°à¤¾ की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ à¤à¤•दम सामानà¥à¤¯ रहे तो फिर उसका मजा ही कà¥à¤¯à¤¾ है । कार की डिकà¥à¤•ी खà¥à¤²à¤¤à¥‡ ही इस रहसà¥à¤¯ से परà¥à¤¦à¤¾à¤«à¤¾à¤¶ हà¥à¤† कि माठकी à¤à¤• अटैची तो घर ही में छूट गयी है। गाड़ी खà¥à¤²à¤¨à¥‡ में 25 मिनट का समय शेष था और सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से वापस घर का रासà¥à¤¤à¤¾ कार से 8-10 मिनट में तय होता है । आनन फानन में कार को वापस दौड़ाया गया । खैर गाड़ी खà¥à¤²à¤¨à¥‡ के 7-8 मिनट पहले ही अटैची वापस लाने का मिशन सफलता पूरà¥à¤µà¤• पूरा कर लिया गया।
आगे की यातà¥à¤°à¤¾ पारिवारिक गपशप में आराम से कटी । दà¥à¤°à¥à¤— (Durg) पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ 2 घंटे विलंबित हो चà¥à¤•ी थी। यानि 11.30 बजे रात की बजाय हम 1.30 बजे पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ वाले थे । पूरी यातà¥à¤°à¤¾ शांति से कट जाठये à¤à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेल में संà¤à¤µ है । हम अलसाते हà¥à¤¯à¥‡ नीचे उतरने का उपकà¥à¤°à¤® कर ही रहे थे कि सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° के अतिरिकà¥à¤¤ डिबà¥à¤¬à¥‡ को सामानà¥à¤¯ डिबà¥à¤¬à¤¾ समठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ की फौज ने बोगी में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने के लिये धावा बोल दिया । अब न हम गेट से बाहर निकल पा रहे थे और ना उनका दल पूरी तरह घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ में कामयाब हो रहा था । à¤à¤¾à¤·à¤¾ का à¤à¥€ लोचा था । खैर अंत में हमारी समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ जिहà¥à¤µà¤¾ शकà¥à¤¤à¤¿ काम में आई और किसी तरह धकà¥à¤•ा मà¥à¤•à¥à¤•ी करते हà¥à¤¯à¥‡ हम बाहर निकल पाठ। खैर इस पà¥à¤°à¤•रण से à¤à¤• फायदा ये रहा कि हम सब की नींद अचà¥à¤›à¥€ तरह खà¥à¤² गई ।
अगला दिन आराम करने में बीता । शाम को हम दीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥‚मि पहà¥à¤à¤šà¥‡ । सन 1956 में लाखों समरà¥à¤¥à¤•ों के साथ डा. बाबासाहेब आंबेडकर ने यहीं बौदà¥à¤§ धरà¥à¤® की दीकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ की थी । दीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥‚मि सà¥à¤¤à¥‚प का गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ करीब 120 फीट ऊà¤à¤šà¤¾ और इतने ही वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का है । बाहर से देखने में पूरी इमारत बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर लगती है । अंदर के हॉल में बà¥à¤¦à¥à¤§ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के आलावा पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ ककà¥à¤· à¤à¥€ है जिसमें à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ और बाबा साहेब के जीवन से जà¥à¥œà¥€ जानकारी दी जाती है । à¤à¤• बात जरूर खटकी कि इतनी à¤à¤µà¥à¤¯ इमारत के अंदर और सà¥à¤¤à¥‚प परिसर में साफ सफाई का उचित इंतजाम नहीं था ।
शाम à¥à¤²à¤¨à¥‡ लगी थी । पास के à¤à¤• मंदिर से लौटते हà¥à¤¯à¥‡ हमें à¤à¤• नई बात पता चली कि संतरे के आलावा नागपà¥à¤° के समोसे à¤à¥€ मशहूर हैं । और तो और यहाठतो इन की शान में पूरी दà¥à¤•ान का नाम à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पर रखा गया है , मसलन समोसेवाला, पकौड़ीवाला.. .
खैर सबने चटपटी पीली हरी चटनी के साथ समोसों का आनंद उठाया और चल पड़े तेलांगखेड़ी à¤à¥€à¤² (Telangkhedi Lake) की तरफ ।
à¤à¥€à¤² तो आम à¤à¥€à¤²à¥‹à¤‚ की तरह ही थी पर आस पास का माहौल देख के ये जरूर समठआ गया कि इस à¤à¥€à¤² का नागपà¥à¤° के लोगों के लिये वही महतà¥à¤¤à¥à¤µ है जो मà¥à¤‚बई वासियों के लिये मैरीन डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ का ये कलकतà¥à¤¤à¤¾ के लोगों के लिठविकà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ गारà¥à¤¡à¤¨ का । उमस काफी हो रही थी सो कà¥à¤› समय बिता, इस लाल रंगत बिखेरते फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की छवि लेकर हम वापस लौट गठ।
पचमà¥à¥€ के लिठअगली सà¥à¤¬à¤¹ 9 बजे तक चलने के बजाय हम 10 बजे ही निकल पाठ। 8 लोगों और सामान से पैक टà¥à¤°à¥ˆà¤µà¥‡à¤°à¤¾ में मà¥à¤à¥‡ पीछे ही जगह मिल पाई थी। साथ में जीजा शà¥à¤°à¥€ बैठे थे। मौसम साफ था । संगीत का आनंद उठाते और à¤à¤• दूसरे की खिंचाई करते सफर आराम से कट रहा था। करीब 50-60 किमी. का सफर शायद तय हो चà¥à¤•ा था । बीच-बीच में, रासà¥à¤¤à¥‡ के दोनों ओर संतरे के बाग दिख जाया करते थे। अचानक विचार आया कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना संतरे का बाग अगर सड़क के पास दिखे तो अंदर जाकर तसवीर खींची जाà¤à¥¤ खैर वैसा बाग पास दिखा नहीं और फिर हम गपशप में मशगूल हो गठ। हमारी मसà¥à¤¤à¥€ का आलम तब टूटा जब हमें à¤à¤• जोर का à¤à¤Ÿà¤•ा नीचे से लगा और पीछे की सीट में हम अपना सिर बमà¥à¤¶à¥à¤•िल बचा पाठ। गाड़ी के बाहर नजर दौड़ायी तो à¤à¤• तखà¥à¤¤à¥€ हमारी हालत पर मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ घोषणा कर रही थी
मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ आपका सà¥à¤µà¤¾à¤—त करता है !
अगले à¤à¤• घंटे में ही मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की इन ‘मखमली सड़कों’ पर चल-चल कर हमारे शरीर के सारे कल पà¥à¤°à¥à¤œà¥‡ à¥à¥€à¤²à¥‡ हो चà¥à¤•े थे । और बचते बचाते à¤à¥€ जीजा शà¥à¤°à¥€ के माथे पर à¤à¤• गूमड़ उà¤à¤° आया था । अब हमें समठआया कि उमा à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ ने कà¥à¤¯à¥‚ठसड़कों को मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ बनाकर दिगà¥à¤—ी राजा की सलà¥à¤¤à¤¨à¤¤ हिला कर रख दी थी । खैर जनता ने सरकार तो बदल दी पर सड़कों का शायद सूरत-à¤-हाल वही रहा ।
सौसर (Sausar) और रामकोना(Ramkona) पार करते हà¥à¤¯à¥‡ हम करीब साà¥à¥‡ तीन घंटे में करीबन 130 किमी की यातà¥à¤°à¤¾ पूरी कर जलपान के लिये छिंदवाड़ा (Chindwara) में रà¥à¤•े । रानी की रसोई ( Rani ki Rasoi) हमारी ही पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रही थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमारे सिवा वहाठकोई दूसरा आगà¥à¤‚तक नहीं था । जैसा कि नाम से इंगित हो रहा है खान-पान की ये जगह छिंदवाड़ा नरेश की थी । à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ के ठीक पीछे राजा साहब ने à¤à¤• महलनà¥à¤®à¤¾ खूबसूरत सा मैरिज हॉल बना रखा था जिसे देख कर हम सब की तबियत खà¥à¤¶ हो गई।
छिंदवाड़ा के आगे का रासà¥à¤¤à¤¾ अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत बेहतर था यानि गà¥à¥à¥à¥‡ लगातार नहीं पर रह रह कर आते थै । परासिया (Prasia) से तामिया तक का रासà¥à¤¤à¤¾ मोहक था । सतपà¥à¥œà¤¾ की पहाड़ियाà¤, उठती गिरती सड़कें और पठारी à¤à¥‚मि पर सरसों सरीखे पीले पीले फूल लिये खेत à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ दृशà¥à¤¯ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर रहे थे। देलाखारी (Delakhari) पार करते करते सांठà¥à¤² आयी थी पर परासिया के बाद हमें उस रासà¥à¤¤à¥‡ पर पचमà¥à¥€ की तखà¥à¤¤à¥€ नहीं दिखी थी । देलाखारी के 20-25 किमी चलने के बाद फिर जंगल शà¥à¤°à¥ हो गठपर मील का पतà¥à¤¥à¤° ये उदघोषणा करने को तैयार ही नहीं था कि यही रासà¥à¤¤à¤¾ पचमà¥à¥€ को जाता है । या तो मटकà¥à¤²à¥€ (Matkuli) का नाम आता था या फिर à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² का। मन ही मन घबराहट बॠगई की हम कहीं दूसरी दिशा में तो नहीं जा रहे। सांठके अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ के साथ ये शक बà¥à¤¤à¤¾ जा रहा था। पचमà¥à¥€ के 45 किमी पहले à¤à¤• जगह à¤à¤• बेहद पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ साइनबोरà¥à¤¡ जब दिखा तब हमारी जान में जान आई । बलिहारी है मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ की कि इंडिया टà¥à¤¡à¥‡ जैसी पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं में लगातार दो तीन हफà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से दो दो पनà¥à¤¨à¥‡ के रंगीन इशà¥à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤° देने में कंजूसी नहीं करते पर पचमà¥à¥€ जाने वाली इन मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़कों में इतनी मामूली जानकारी देने में à¤à¥€ कोताही बरतते हैं ।
मà¥à¤Ÿà¤•ली आते ही हमारी सड़क पिपरिया पचमà¥à¥€ मारà¥à¤— से मिल गई और। पचमà¥à¥€ जाने का ये अंतिम 30 किमी का मारà¥à¤— पीछे के रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से बिलकà¥à¤² उलट था । सीधी सपाट सफेद धारियाठयà¥à¤•à¥à¤¤ सड़कें, हर à¤à¤• घà¥à¤®à¤¾à¤µ पर चमकीले यातायात चिनà¥à¤¹ और सड़क के दोनों ओर हरे à¤à¤°à¥‡ घने जंगल ! अब सही मायने में लग रहा था कि हम सतपà¥à¥œà¤¾ की रानी के पास जा रहे हैं।
वैसे सतपà¥à¥œà¤¾ के इन जंगलों के साथ हम दिन à¤à¤° कई बार आà¤à¤– मिचौनी कर चà¥à¤•े थे । à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ मिशà¥à¤° की पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पूरे सफर में रह रह कर याद आती रही थीं
à¤à¤¾à¥œ ऊà¤à¤šà¥‡ और नीचे
चà¥à¤ª खड़े हैं आà¤à¤– मींचे
घास चà¥à¤ª है, काश चà¥à¤ª है
मूक साल, पलाश चà¥à¤ª है
बन सके तो धà¤à¤¸à¥‹à¤‚ इनमें
धà¤à¤¸ ना पाती हवा जिनमें
सतपà¥à¥œà¤¾ के घने जंगल
नींद में डूबे हà¥à¤ से
डूबते अनमने जंगल
शाम के करीब साà¥à¥‡ सात तक हम पचमà¥à¥€ में अपने आरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ ठिकाने पर पहà¥à¤à¤š चà¥à¤•े थे।पचमà¥à¥€ के इस यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त के अगले à¤à¤¾à¤— में आपको बताà¤à¤à¤—े कि कैसे बीता पचमà¥à¥€ में हमारा पहला दिन!





Wow writing in Hindi … tough task.
Nice writeup
Thanks Virag ! No it’s not so difficult to write in hindi. There are so many Hindi phonetic softwares available. The only thing is that you ned some practice.
Dear Manish,
A nice post with mix experiences :-) supported with beautiful pictures , specially Fountain – Telangkhedi Lake.
Bhopal – Panchmari is my radar. Waiting for your next post.
Well Mahesh, after reaching Pachmadhi our experience was all +tive as you will see in next few posts.
Manish ji,
Aap ka aalekh pad kar anand aa gaya. A brilliant description of your journey to Pachmari.
My wife is very fond of samosas. Seeing your post, I am afraid, she may insist on taking her to Nagpur.
Shall await the next post.
राम साहब हम लोग तो सिर्फ समोसे पर हाथ साफ कर सके पर वो सचमुच काफी स्वादिष्ट था वैसे पकौड़ीवाला भी वहाँ का एक नामी भोजनालय है।
aap ka sundar sa aalekh pakorha bala aur bhojnanay ki photography achhi thi Thanking you
sskagra
Shukriya Kagra ji !
That was good!
waiting for your next episode f panchamarhi proper.
I hope u will like the coming parts too :)
हमेशा की तरह एक बहुत ही सुंदर आलेख|आपके लिखने का अंदाज़ हमेशा ही बहुत लुभाता है| पढ़कर लगा अर्रे इतना जल्दी ख़तम हो गया :-(
भवानी प्रसाद मिश्र जी की पंक्तिया याद दिलाने के लिए साधुवाद |
भवानी प्रसाद जी इस पूरे यात्रा वृत्तांत में साथ ही रहेंगे। बचपन में अज़ीब सी लगती उस कविता का मर्म मैंने यहीं आकर समझा।
Satpura ke Ghaney Jungle. Wow
सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल मे पले पत्ते।
I did a long road-trip last december and things are getting better in terms of tourism (cleaner govt hotels, information avail, nice polite staff, enough focused marketing etc etc) but I believe roads are with greater powers and they are not doing much.
looking fwd to part 2.
पचमढ़ी तक पहुँचने में भले जो कष्ट हुआ हो उसके बाद का समय बड़े सुकून से बीता था। मुझे याद है कि मेरे एक मध्यप्रदेश के मित्र ने मेरी इस दास्तान को सुनने के बाद ये कहा था…
राह खड्डदार हो
ठोकरों की मार हो
औ’ किनारे हो रहा
चाय का व्यापार हो
टिको नहीं
डिगो नहीं
बहादुरो ! बढ़े चलो
और इसी ‘spirit’ को हम पूरे सफ़र में बरकरार रख पाए :)
मनीष
हिन्दी में पढ़कर तृप्ति हुई, वैसी ही जैसी प्यास लगने पर घड़ेका पानी पीने से होती है.
कुछ समय से रचित के साथ युद्ध का वातावरण है. वह हिन्दी में कुछ नहीं पढ़ना चाहता. हम दोनो घर पर इतना हिन्दी पढ़ते हैं किंतु उसे हिन्दी में पढ़ने को प्रेरित करना मेरे लिए चुनौती है. अभी तो फिर भी मैं ज़ोर-ज़बरदस्ती से उसे पढ़ने को मनाती हूँ किंतु ऐसा कब तक चलेगा पता नहीं.
मुझे अफ़सोस होता है की हमारे बच्चे किस अमूल्या निधि से अपने को वंचित कर रहें हैं
जयश्री, मुझे लगता हे कि इसमें बच्चों से ज्यादा हमारे आस पास के समाज का दोष है। अब आप ही बताओ आजकल स्कूल में डिबेट हो या क्विज सब अंग्रेजी में होते हें। बात कक्षा में हिंदी में करें तो डाँट पड़नी हे। फिर इस भाषा के प्रति अनुराग कैसे बढ़ेगा। +२ में एडमिशन में हिंदी के अंक जुड़्ते नहीं तो फिर प्रतिस्पर्धा के इस युग में क्यूँ अपने सर का बोझ बढ़ाएँ बच्चे। जब तक इस देश में हिंदी और आंचलिक भाषाओं को पढ़कर रोजगार के अवसर मिलने बढ़ नहीं जाते , नई पीढ़ी का इस ओर रुझान कर पाना मुश्किल है।
दुख इस बात का है कि भविष्य में भी ऐसा होता दिख नहीं रहा है।
Dear Manish,
Aapka Aalekh padha. Padhkar man ati prasanna tatha bhav vibhor ho gaya. Yatra Sansmaran, hindi sahitya ki ek ati ruchikar vidha hai par lagbhag marnasanna avastha men. Aapka yatra sansmaran padhkar aisa prateet hua ki aapne internet ke madhyam se is vidha men nayee jaan funk di hai. Yatra ka itna sajeev thatha rochak bhasha men varnan kaee salon ke baad padhne ko meela, aapki bhasha shaili bahoot pasand aayi.
Thanks.
मुकेश भाई आपको ये यात्रा वृत्तांत पसंद आया जानकार प्रसन्नता हुई। आपके उदार शब्दों के लिए दिल से शुक्रिया !
पचमढ़ी पर खोजबीन करते यह दोबारा प्रकट हुआ. फिर से पढ़कर आनंद आया.
शुक्रिया रवि भाई !
SOOOOOOOOOOOOOOOO NICE MANISH IT HELPS ME IN MY PROJECT ALSO ND WRITTING IN HINDI IS VERY TOUGH …………………:)