अब तक इस शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला में आपने पढ़ा कि कैसी रही हमारी हटिया से नागपà¥à¤° की रेल और फिर नागपà¥à¤° से पचमढ़ी तक की सड़क यातà¥à¤°à¤¾ और कैसे बिताया हमने पचमढ़ी में अपना पहला दिन महादेव की खोज में। अब आगे पढ़ें…
पचमढ़ी पर अà¤à¥€ तक गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों ने धावा नहीं बोला था । पर सारे रेसà¥à¤¤à¤°à¥‰à¤‚ उनके आने की तैयारी में जी जान से जà¥à¤Ÿà¥‡ थे। कहीं होटल की पूरी साज सजà¥à¤œà¤¾ ही बदली जा रही थी तो कहीं रंगाई-पà¥à¤¤à¤¾à¤ˆ चल रही थी ।वैसे à¤à¥€ दीपावली पास थी और उसी के बाद ही à¤à¥€à¤¡à¤¼ उमड़ने वाली थी । पर अà¤à¥€ तो हालात ये थे कि जहाठà¤à¥€ खाने जाओ लगता था कि पचमढ़ी में हम ही हम हैं ।
पचमढ़ी में दूसरे दिन का सफर हमें अपनी गाड़ी छोड़ कर, खà¥à¤²à¥€ जिपà¥à¤¸à¥€ में करना था । सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ को देखने के बाद हमें सीधे राह पकड़नी थी डचेश फॉल की । और डचेश फॉल के उन बेहद कठिन घà¥à¤®à¤¾à¤µà¤¦à¤¾à¤° रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को कोई फोर वà¥à¤¹à¥€à¤² डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µ वाली गाड़ी ही तय कर सकती थी ।
जिपà¥à¤¸à¥€ मंजिल से करीब करीब १.५ किमी पहले ही रà¥à¤• जाती है । जो परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• दो दिन के लिये पचमढ़ी आते हैं वो डचेश फॉल को देख नहीं पाते। वेसे à¤à¥€ ये पचमढ़ी का सबसे दà¥à¤°à¥à¤—म परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ सà¥à¤¥à¤² है । पहले 700 मीटर जंगल के बीचों – बीच से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ हम उस मील के पतà¥à¤¥à¤° के पास रà¥à¤•े जहाठसे असली यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ होती है ।
यहाठसे 800 मीटर का रासà¥à¤¤à¤¾ सीधी ढलान का है और इसके 10 % हिसà¥à¤¸à¥‡ को छोड़कर कहीं सीढ़ी नहीं है । पहाड़ पर तेज ढलान पर नीचे उतरना कितना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है ये पहले 200 मीटर उतर कर ही हम समठचà¥à¤•े थे । नीचे उतरने में चढ़ने की अपेकà¥à¤·à¤¾ ताकत तो कम लगती है पर आपका à¤à¤• कदम फिसला कि आप गठकाम से । जब – जब हमें लगता था कि जूते की पकड़ पूरी नहीं बन रही हम रेंगते हà¥à¤¯à¥‡ नीचे उतरते थे ।
à¤à¤• चौथाई सफर तय करते करते हम पसीने से नहा गठथे ।
अगर लगे रहो मà¥à¤¨à¥à¤¨à¤¾à¤à¤¾à¤ˆ …. में संजय दतà¥à¤¤ को जब तब गाà¤à¤§à¥€à¤œà¥€ दिखाई देते थे तो यहाठआलम ये था कि घने जंगलो के बीच फिसलते लड़खड़ाते और फिर सà¤à¤à¤²à¤¤à¥‡ हम सà¤à¥€ के कानों के पास à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ मिशà¥à¤° जी आकर गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾ जाते थे…
अटपटी उलà¤à¥€ लताà¤à¤
डालियो को खींच खाà¤à¤
पेरों को पकड़ें अचानक
पà¥à¤°à¤¾à¤£ को कस लें कपाà¤à¤
साà¤à¤ª सी काली लताà¤à¤
लताओं के बने जंगल
नींद में डूबे हà¥à¤ से
डूबते अनमने जंगल
सà¥à¤•ूल में जब मिशà¥à¤° जी की कविता पढ़ी थी तो लगता था कà¥à¤¯à¤¾ बकवास लिखा है घास पागल…काश पागल..लता पागल..पात पागल पढ़कर लगता था कि अरे और कोई नहीं पर ये कवि जरूर पागल रहा होगा। कितने मूढ़ और नासमठथे उस वकà¥à¤¤ हम ये अब समठआ रहा था । आज उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ जंगलों में विचरते उनकी कविता कितनी सारà¥à¤¥à¤• पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ हो रही थी ।
सतपà¥à¤¡à¤¼à¤¾ के हरे à¤à¤°à¥‡ जंगलों में à¤à¤• अजीब सी गहन निसà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§à¤¤à¤¾ है। ना तो हवा में कोई सरसराहट, ना ही पंछियों की कोई कलरव धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¥¤ सब कà¥à¤› अलसाया सा, अनमना सा। पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का रासà¥à¤¤à¤¾ काटती पतली लताà¤à¤ जगह जगह हमें अवलमà¥à¤¬ देने के लिये हमेशा ततà¥à¤ªà¤° दिखती थीं। पेड़ कहीं आसमान को छूते दिखाई देते थे तो कहीं आड़े तिरछे बेतरतीबी से फैल कर पगडंडियों के बिलकà¥à¤² करीब आ बैठते थे।
हमारी थकान बढ़ती जा रही थी। और हम जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ विराम ले रहे थे। पर मजिल दिख नहीं रही थी । साथ में ये चिंता à¤à¥€ दिमाग में घर कर रही थी कि इसी रासà¥à¤¤à¥‡ से ऊपर à¤à¥€ जाना है। हमारे हौसलों को पसà¥à¤¤ होता देख मिशà¥à¤° जी फिर आ गठहमारी टोली में आशा का संचार करने
धà¤à¤¸à¥‹à¤‚ इनमें डर नहीं है
मौत का ये घर नहीं है
उतरकर बहते अनेकों
कल कथा कहते अनेकों
नदी, निरà¥à¤à¤° और नाले
इन वनों ने गोद पाले
सतपà¥à¤¡à¤¼à¤¾ के घने जंगल
लताओं के बने जंगल
इधर मिशà¥à¤° जी ने निरà¥à¤à¤° का नाम लिया और उधर जंगलों की शूनà¥à¤¯à¤¤à¤¾ तोड़ती हà¥à¤ˆ बहते जल की मधà¥à¤° थाप हमारे कानों में गूà¤à¤œ उठी। बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था बची – खà¥à¤šà¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ के साथ हमारे कदमों की चाप फिर से तेज हो गई । कà¥à¤› ही कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में हम डचेश फॉल के सामने थे। पेड़ों के बीच से छन कर आती रोशनी और बगल में गिरते पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ का दृशà¥à¤¯ आखों को तृपà¥à¤¤ कर रहा था । शरीर की थकान को दूर करने का à¤à¤•मातà¥à¤° तरीका था à¤à¤°à¤¨à¥‡ में नहाने का । सो हम गिरते पानी के ठीक नीचे पहà¥à¤à¤š गठ। जहाठशीतल जल ने तन की थकावट को हर लिया वहीं पानी की मोटी धार की तड़तड़ाहट ने सारे शरीर को à¤à¤¿à¤‚à¤à¥‹à¤¡à¤¼ के रख दिया । वैसे डचेस फॉल तक ही ये टà¥à¤°à¥‡à¤• खतà¥à¤® नहीं हो जाता। पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ की धारा के साथ साथ चलकर आप ‘à¤à¤¾à¤°à¤¤ नीर’ तक पहà¥à¤à¤š सकते हैं।
पौन घंटे के करीब फॉल के पास बिता कर हमारी चढ़ाई शà¥à¤°à¥ हà¥à¤ˆ । हमारा गाइड तो पहाड़ पर यूठचढ़ रहा था जैसे सीधी सपाट सड़क पर चल रहा हो। उसके पीछे मेरे सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° और जीजा शà¥à¤°à¥€ थे । चढ़ते चढ़ते अचानक लगा कि रासà¥à¤¤à¤¾ कà¥à¤› संकरा हो गया है । लताà¤à¤ मà¥à¤à¤¹ को छूने लगीं और à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾à¤ कपड़ों में फà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगीं। अचानक जीजी शà¥à¤°à¥€ की आवाज आई कि अरे यहाठसे ऊपर चढ़ना तो बेहद कठिन है । हम जहाठथे वहीं रà¥à¤• गठओर गाइड को आवाजें लगाने लगे । गाइड ने जब हमारी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ देखी तो दूर से ही चिलà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ कि अरे ! आप लोग तो गलत रासà¥à¤¤à¥‡ पर चले गठहैं । अब नीचे मà¥à¤¡à¤¼à¤¨à¥‡ के लिठजैसे ही मेरे à¤à¤¾à¤‚जे ने कदम बढ़ाठदो तीन पतà¥à¤¥à¤° ढलक कर मेरे बगल से निकल गठ। मैंने उसे तो वहीं रà¥à¤•ने को कहा पर अपना पैर नीचे की ओर बढ़ाया तो तीन चार छोटे बड़े पतà¥à¤¥à¤° मेरे पीछे नीचे की ओर पिताजी की ओर जाने लगे । मेरे नीचे की ओर समूह के सारे सदसà¥à¤¯ जोर से चिलà¥à¤²à¤¾à¤¯à¥‡ मनीष ये कà¥à¤¯à¤¾ कर रहे हो ? मैं जहाठथा वहीं किसी तरह बैठगया और नीचे वाले सब लोगों को गिरते पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के रासà¥à¤¤à¥‡ से हटने को कहा । फिर à¤à¤• बार में à¤à¤• – à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ रेंगता जब पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ तक पहà¥à¤à¤šà¤¾ तो सबकी जान में जान आई।
वापस लौटने के पहले हम लोग कà¥à¤› देर के लिये इको पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट पर गठ। सबने अपने गले का खूब सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— किया और अपने चिर – परिचित नामों को पहाड़ों से टकराकर गूà¤à¤œà¤¤à¤¾ पाया ।
डचेश फॉल तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ ने हमें बà¥à¤°à¥€ तरह थका दिया था । à¤à¥‹à¤œà¤¨ के बाद कà¥à¤› देर का आराम लाजिमी था । सवा चार बजे हम पचमढ़ी à¤à¥€à¤² की ओर चल पड़े । यहाठकी à¤à¥€à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक नहीं है । जल के किसी सà¥à¤°à¥‹à¤¤ पर चेक डैम बनाकर ये à¤à¥€à¤² अपने वजूद में आयी है । पर à¤à¥€à¤² कै फैलाव और उसके चारों ओर की हरियाली को देखकर à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगा पाना काफी कठिन है ।
दिन की चढ़ाई के बाद कोई पैडल बोट को चलाने में रà¥à¤šà¤¿ नहीं ले रहा था । पर धूपगढ़ जाने के पहले कà¥à¤› समय à¤à¥€ बिताना था। सो à¤à¤• नाव की सवारी कर ली गई। à¤à¥€à¤² के मधà¥à¤¯ में पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो दो ऊà¤à¤šà¥‡ वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बीच इस छोटे से घर की छवि मन में रम गई। à¤à¤¾à¤‚जे को तà¥à¤°à¤¤ तसवीर खींचने को कहा ! नतीजन वो दृशà¥à¤¯ आपके सामने है।
à¤à¥€à¤² में सैर करते-करते पाà¤à¤š बज गठ। अब आज तो सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ किसी à¤à¥€ हालत में छूटने नहीं देना था जैसा कि पहले दिन राजेंदà¥à¤° गिरि में हà¥à¤† था। इस यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त के अंतिम à¤à¤¾à¤— में देखिà¤à¤—ा धूपगढ़ का सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ और पचमढ़ी का सबसे सà¥à¤‚दर पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤à¥¤






Another masterpiece with a brilliant story telling thread keeping you almost bound.
Pachmarhi, this winter for sure :-)
नंदन आपने तो High Altitude पर भी ट्रेकिंग की हुई है इसलिए आपको निश्चय ही पचमढ़ी सूट करेगा, खासकर अगर आपको इन अलसाए जंगलों से प्रेम हो जाए। डचेस फॉल जाकर मुझे अपनी फिटनेस लेवल का अंदाजा हुआ जब मैंने अपने आप को अपने पिताजी से भी ज्यादा थका पाया। पर पूरी यात्रा में डचेस फॉल तक का सफर सबसे रोमांचकारी और यादगार रहा मेरे लिए।
बहुत ही सुंदर मनीष, मज़ा आ गया| और हाँ , स्कूल में मैं भी यही सोचता था, क्या बेकार कविता है, कवि ने अटपाटॅंगतुकबंदी कर दी है और इसे हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया गया है| पर आपका यात्रा वृतांत पढ़कर यह कविता फिर याद आगयी| सिर्फ़ इतना ही नही आज तो कॅंटीन में जैसे मैं इसे गुनगुना रहा था|
मैं भी कविता का मर्म वहाँ जाकर ही महसूस कर पाया। आलेख पसंद करने का शुक्रिया।
aap ka behad achchha prayash ki sundar chitr aur sundar bayakhaya parh kar aannd aa jata hai
Thanking you
आपको ये प्रयास रुचिकर लगा जानकर खुशी हुई।