दोसà¥à¤¤à¥‹ आशा है आपने मेरी पिछली यादें पढ़ी होंगी कि किस तरह घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी न केवल हमारा मनोरंजन करती है बलà¥à¤•ि हमारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वरà¥à¤§à¤¨ à¤à¥€ करती है, हमें सहिषà¥à¤£à¥ बनाती है, बहादà¥à¤° बनाती है और हमारे à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ का निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ à¤à¥€ करती है.  हिमालय में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़डी के अलावा मैने लगà¤à¤— 25 विदेशी देश व उनके 100 शहर देखे है… और यहां की खटà¥à¤Ÿà¥€ मीठी यादें à¤à¥€ कà¥à¤› कम नही…..
तो इस बार की खटà¥à¤Ÿà¥€-मीठी यादें विदेशों से !!! आशा है आप इस कड़ी को à¤à¥€ उतना ही पसनà¥à¤¦ करेंगे जैसे पिछली कड़ियों को किया
1983 – मेरी पहली विदेश-यातà¥à¤°à¤¾… वो à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ जगह जिसका नाम मेरे आस-पास किसी ने नहीं सà¥à¤¨à¤¾ था— अनतानानारीवो…चौंक गये न नाम सà¥à¤¨ कर  ?? ये है मैडागासà¥à¤•र की राजधानी… मैडागासà¥à¤•र मारिशस और साउथ अफà¥à¤°à¥€à¤•ा के बीच à¤à¤• बड़ा सा दà¥à¤µà¥€à¤ª है हिनà¥à¤¦à¤®à¤¹à¤¾à¤¸à¤¾à¤—र में । तो हमें दिलà¥à¤²à¥€ से बंबई ..वहां से मारिशस और फिर वहां से मैडागासà¥à¤•र जाना था। मारिशस में हमें 3 दिन रà¥à¤•ना था, अगली उड़ान पकड़ने के लिठ। हमारे (मैं, शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¤¿à¤œà¥€ और 1 वरà¥à¤· का शानà¥à¤¤à¤¨à¥) लिठहोटल कांटिनैनà¥à¤Ÿà¤²  जो कà¥à¤¯à¥‚रपिप नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर था, में रहने का इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤® किया गया था।
कà¥à¤¯à¥‚रपिप à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤°à¤®à¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤² है व बहà¥à¤¤ सी बालीवà¥à¤¡ फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ की शूटिंग यहां होती रहती है ।  होटल से पहाड़ियां व समà¥à¤¦à¥à¤° का नजारा देखने वाला था । खैर शाम हम खाना खाने उनके रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ में पंहà¥à¤šà¥‡ । बैरे को बड़ी मà¥à¤¶à¥à¤•िल से समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि हमें शाकाहारी खाना चाहिये। अधिकतर लोग No meat कहने पर मांस नही पर मछली व अंडा समà¤à¤¤à¥‡ हैं.  वो à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ मछली की तरकारी ले आया…फिर उसे बोला कि à¤à¤¾à¤ˆ मछली à¤à¥€ नहीं केवल सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ।  वो कà¥à¤› देर बाद चावल, उबले हà¥à¤ मटर और बà¥à¤°à¥ˆà¤¡ दे गया । जैसे ही मैने चावल में मटर मिला कर खाना शà¥à¤°à¥ किया उसमें से तेज़ मचà¥à¤›à¥€ की महक आई… जो नहीं खाते उनà¥à¤¹à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आती है। मैने खाना छोड़ दिया और शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¤¿ ने खà¥à¤¦  व बचà¥à¤šà¥‡ को बà¥à¤°à¥ˆà¤¡-मकà¥à¤–न  दे दिया । मà¥à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤› à¤à¥€ खाया नहीं गया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हर चीज़ से मचà¥à¤›à¥€ की smell आने लगी ।
मैं कà¤à¥€ कà¤à¤¾à¤° दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के साथ बीयर पी लेता था…… तो खाने के बदले मैने बीयर मंगवाई और मूंगफली व काजू के साथ बीयर पी कर पेट à¤à¤°à¤¾  और सो गये… चिनà¥à¤¤à¤¾ करते हà¥à¤ कि 3 दिन यहां à¤à¥‚खे कैसे रहेंगे। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¤¿ तो अंडा खा लेती थी सो अगले दिन का बà¥à¤°à¥‡à¤•फासà¥à¤Ÿ उनका ठीक हो गया और बचà¥à¤šà¥‡ को à¤à¥€  वही खाने को दे दिया.. रह गया मैं जो à¤à¤• कप चाय पीकर दà¥à¤–ी  मन से बालकोनी में घूमने लगा ।
थोड़ी देर बाद नीचे देखा तो à¤à¤• आदमी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में साइकल के पीछे à¤à¤• पीपा बांध कर खड़ा था..पीपे में आलू की सबà¥à¤œà¥€ थी जो वो 4 रोटियों के साथ पैक करके लोगो को दे रहा था ।  मेरी तो बांछे खिल गई.. पर सोचा नीचे कैसे जाउं वहां पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ का रासà¥à¤¤à¤¾ कहां से होगा…. à¤à¤¾à¤·à¤¾ कैसे बोलूंगा और होटल वाले तो बाहर का खाना अंदर नहीं लाने देंगे इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿-2 । वैसे à¤à¥€ उससे रोटियां लेने वाले मजदूर तबके के लग रहे थे तो काफी सोच-विचार में पड़ गया कि कà¥à¤¯à¤¾ करà¥à¤‚… à¤à¥‚खा मरूं या रोटी लेकर आऊं।
बाहर à¤à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सा लगने वाला आदमी सफाई कर रहा था उसे बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और आलू वाले को दिखा कर पूछा – ये कà¥à¤¯à¤¾ बेच रहा है… उसने आधी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤² आधी अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में बताया कि  वो आलू और बà¥à¤°à¥ˆà¤¡ है ।  अचानक वो हिंदी में बोला – आपको खाना है कà¥à¤¯à¤¾.. मैने उसे खà¥à¤¶ होकर गले लगा लिया और बोला à¤à¤¾à¤ˆ कल से कà¥à¤› नहीं खाया अगर ला दो तो आपकी मेहरबानी । वो à¤à¤• कà¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤² था जिसके पà¥à¤°à¤–े कई सौ वरà¥à¤· पहले यहां आये थे… उसकी हिंदी कà¥à¤› बिहारीयों जैसी थी पर आसानी से समठनहीं आती थी। वो à¤à¤¾à¤ˆ पैसे लेकर बाहर गया और सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ गेट से बाहर जाकर 5 मिनट में गरà¥à¤®à¤¾-गरम आलू की सबà¥à¤œà¥€ और पतली-पतली 4 रोटियां ले आया.. कीमत सिरà¥à¤« 15 रà¥à¤‚ ।  फिर तो मैने उसे कहा à¤à¤¾à¤ˆ रोज़ मà¥à¤à¥‡ ये ला देना मैं आपको लाने के अलग से पैसे दे दूंगा… और 3 दिन आराम से निकल गये ।
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अगले दिन मà¥à¤à¥‡ राजधानी Port Louis जाना था, मैडागासà¥à¤•र का वीज़ा लेने… टैकà¥à¤¸à¥€ में हम 25-30 मिनट में वहां पंहà¥à¤šà¥‡ और हम बिलà¥à¤¡à¤¿à¤‚ग में वीसा लेने गये.. जाने से पहले मैने अपने पासपोरà¥à¤Ÿ जेब से निकाले और à¤à¤µà¤¨ में दाखिल हà¥à¤… तकरीबन आधे घंटे बाद जब  बाहर आये तो à¤à¤• कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤² हमारे पास आया और किसी अंजानी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कà¥à¤› बोलने लगा..मैने उसे बताया कि à¤à¤¾à¤ˆ मà¥à¤à¥‡ सिरà¥à¤« अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ आती है.. वो अब  अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में बोलने लगा –
Have you lost your money ?
I said – No i havent..
He said – No you check again you have lost your money !
मेरी आखों के सामने दिलà¥à¤²à¥€ – मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ के ठग घूमने लगे जो à¤à¤¸à¥‡ ही बेवकूफ बना कर लोगो के पैसों पर हाथ साफ करते हैं. मैने तीखी आवाज़ में कहा – Dont you think You can befool me… why are you harassing me ? should I call the police ?
He said – no brother I am not harassing you.. you just check your money again if you have lost it
मैने धीरे से अपनी जेब में हाथ डालकर अपने à¤à¤•मातà¥à¤° 300 डालर जो उन दिनों रिजरà¥à¤µ बैंक की विशेष अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ से मिलते थे, को देखा.. तो वो वहां नहीं थे… मेरे तो होश उड़ गये इस परदेस में छोटे बचà¥à¤šà¥‡ के साथ बिना पैसों के कà¥à¤¯à¤¾ होगा…
उस à¤à¤¾à¤ˆ ने मà¥à¤à¥‡ पूछा – Tell me did you loose your money ?
I said – Yes I had 300 dollars in my pocket but they are lost
He said – What was the denomination of 300 dollars ?
I told – they were 3 notes of 100 dollar each.
उस à¤à¤¾à¤ˆ ने अपनी जेब से 300  डालर निकाले और मà¥à¤à¥‡ दिये और बताया कि जब मैं पासपोरà¥à¤Ÿ निकाल रहा था, तो साथ ही वो नोट निकल कर नीचे गिर गये… वो अपने आफिस जा रहा था पर रà¥à¤• कर उसने वो नोट उठाठआधा घंटा हमारा इंतजार करता रहा..
मà¥à¤à¥‡ इतनी शरà¥à¤® आई कि मैं उसे चोर समठरहा था और वो मेरे लिठइतनी तकलीफ उठा कर मेरे पैसे लौटा रहा था… धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ बड़ा छोटा शबà¥à¤¦ था मैने उसे पंजाबी सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ˆà¤² में जफà¥à¤«à¥€ डाली फिर माफी मांगी और धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ दिया…  वो मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¾ और सामने खड़ी अपनी शानदार Mercedes Benz में बैठकर हाथ हिलाता चला गया…
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मैडागासà¥à¤•र हवाई अडà¥à¤¡à¥‡ से सड़ी हà¥à¤ˆ टूटी फूटी रेनालà¥à¤Ÿ टैकà¥à¤¸à¥€ में शहर को जा रहे थे.  न मैं मैड़ागासà¥à¤•र के बारे में कà¥à¤› जानता था न मेरे आस पास कोई  और… तब गूगल तो था नहीं कि फट से किसी à¤à¥€ जगह के बारे में पता कर लो… तब तो कमपà¥à¤¯à¥‚टर तक नहीं थे.. सब दोसà¥à¤¤ मजाक उड़ा रहे थे कि यार लंदन जाओ… पैरिस जाओ.. दà¥à¤¬à¤‡ जाओ.. ये कहां जा रहे हो जिसका नाम ही किसी ने नही सà¥à¤¨à¤¾..
टैकà¥à¤¸à¥€ वाले ने टूटी-फूटी अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में पूछा – किस देश से आये हो
मैने बताया – ईंडिया से… कà¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤®à¤¨à¥‡ नाम सà¥à¤¨à¤¾ है à¤à¤¾à¤°à¤¤ का
टैकà¥à¤¸à¥€ वाला – Yes India.. Indira Gandhi Sanjay Gandhi Mahatama Gandhi.  I am sad that Indira Gandhi’s son died in accident.
मà¥à¤à¥‡ जोर का à¤à¤Ÿà¤•ा जोर से लगा… à¤à¤¾à¤°à¤¤ में किसी ने मैडागासà¥à¤•र का नाम नहीं सà¥à¤¨à¤¾..  और ये टैकà¥à¤¸à¥€ वाला वहां की पूरी राजनीति जानता है | पहली बार मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¤¤ पर गरà¥à¤µ हà¥à¤†… कि मेरा देश इतना महान है कि इस गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤® से टापू के लोग à¤à¥€ उसके बारे में  जानते हैं |
मेरा à¤à¤¾à¤°à¤¤ महान !!!!!!!!!
और हम होटल पंहà¥à¤š गये… यहां इस देश में मà¥à¤à¥‡ बड़ा लमà¥à¤¬à¤¾ समय गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¤¾ था

मैडागासà¥à¤•र में ननà¥à¤¹à¤¾ शानà¥à¤¤à¤¨à¥ व ननà¥à¤¹à¥€ कनà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾
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बदतमीजी à¤à¤• विशà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ है… पर कà¥à¤› देशों का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ चरितà¥à¤° ही बदतमीज़ी होता है… à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• देश है कà¥à¤µà¥ˆà¤¤… जहां मà¥à¤à¥‡ असहिषà¥à¤£à¥à¤¤à¤¾, बदतमीजी व घमंड के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤à¥¤ कम से कम 2 घटनाà¤à¤‚ तो à¤à¤¸à¥€ थी जो आज तक मन को बेचैन करती है ।
विमान जब कà¥à¤µà¥ˆà¤¤ उतरा तो हमें 1 घंटे के अंदर à¤à¤¾à¤°à¤¤ जाने वाला विमान पकड़ना था तो विमान रà¥à¤•ते ही अपना सामान पकड़ा और नीचे उतरने के लिठबेताब हो गये.  हमारे आगे à¤à¤• कà¥à¤µà¥ˆà¤¤à¥€ महिला 2 बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ खड़ी थी.. उसके आगे के लोग सब उतर गये पर वो à¤à¤• दूसरी  अरबी औरत से खड़ी गपà¥à¤ªà¥‡à¤‚ मार रही थी। उसके पीछे लमà¥à¤¬à¥€ कतार इंतजार कर रही थी पर वो आराम से कोई कहानी सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ खड़ी थी ।
अंत में मैने उकता कर उसे कहा – Hello  excuse me.. will you move forward and let us go.
वो गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ में मà¥à¤à¥‡ घूर कर बोली – कà¥à¤¯à¤¾ तकलीफ है तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡
मैने कहा – हमे दूसरा जहाज पकड़ना है और आप यहां इतमिनान से गपà¥à¤ªà¥‡à¤‚ मार रही है हमें रासà¥à¤¤à¤¾ दिजीठऔर जाने दीजिये
वो बड़ी बदतमीजी से बोली – तूने मà¥à¤à¥‡ हैलो कà¥à¤¯à¥‹ कहा … मैं कà¥à¤¯à¤¾ तेरी नौकर हूं..  ये मेरा देश है.. मैं जो मरजी करूं तू कौन है मà¥à¤à¥‡ रोकने वाला… वापस बोंमà¥à¤¬à¥‡ जाओ अपने देश में  ..
और वो जोर -2 से चीखने लगी… विमान परिचारिका à¤à¤¾à¤—ी हà¥à¤ˆ आई और पूछा – कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¬à¥à¤²à¤® है.. मैने उसे सारी बात बताई.. पर उसने उस बदतमीज़ औरत को कà¥à¤› नहीं कहा और हमें सीटों के बीच से दूसरी कतार से बाहर जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ बताया…हम चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª बाहर निकले और अपमानित से होते हà¥à¤ नीचे जाकर बस में बैठगये जो टरमिनल तक ले जाने वाली थी.
बस जब पूरी à¤à¤° गयी और चलने लगी तो à¤à¤• कà¥à¤µà¥ˆà¤¤à¥€ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाला उसमें चढ़ा और बस को चलने का ईशारा दिया.  वो पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाला बंद बस में सिगरेट के सà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ लगा रहा था । आजकल हर विमान में व हवाई अडà¥à¤¡à¥‡ पर सिगरेट पीना मना है….और बंद बस में तो सिगरट पीना मना à¤à¥€ है और बदतमीजी à¤à¥€.  उस की सिगरेट का धà¥à¤†à¤‚ आस-पास खड़ी सवारियों को परेशान कर रहा था.. खास तौर पर महिलाओं को.  पर वो बदतमीज़  आराम से धà¥à¤† उड़ाता हà¥à¤† किसी से फोन पर बातें  कर रहा था.
à¤à¤• फिलीपीनी महिला ने उसे सिगरेट बंद करने को कहा पर उसने परवाह नहीं की… फिर à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ नें , जो शायद दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ था, उसे जोर से कहा – सर सिगरेट बंद कर दो.. बस में छोटे बचà¥à¤šà¥‡ व महिलाà¤à¤‚ हैं जो परेशान हो रही हैं. यहां बस में सिगरेट पीना मना है और तà¥à¤® पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले होकर कानून तोड़ रहे हो ।
उसने फोन बंद किया और उस आदमी पर फट पड़ा – डायलाग वही थे this is my country.. go back to Bombay etc etc.
टरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤² आ गया और बस रà¥à¤•ते ही पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले ने उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को पकड़ कर कहा – अपना पासपोरà¥à¤Ÿ और वीसा दिखाओ… वो à¤à¥€ अकड़ गया कà¥à¤› देर में और पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले आये और उस शरीफ आदमी को पकड़ कर पता नहीं कहां ले गये । पता नहीं. उसे जेल में डाला या पैसे छीन लिये… या धमका कर छोड़ दिया..काफी लोग इस विषय पर बात कर रहे थे और सब à¤à¤•मत थे कि कà¥à¤µà¥ˆà¤¤à¥€ बड़े घमंडी व बदतमीज है और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ व पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को गà¥à¤²à¤¾à¤® से अधिक नहीं समà¤à¤¤à¥‡….. मैने कसम खाई कि चाहे मà¥à¤«à¥à¤¤ में टिकट मिले इस देश में कà¤à¥€ पैर नहीं रखूंगा
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
à¤à¤• बदतमीजी तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥‹à¤²à¥€ में à¤à¥€ हà¥à¤ˆ पर उसकी याद हमेशा चेहरे पर हंसी ले आती थी… हम  अपने  à¤à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मितà¥à¤° के साथ कहीं जा रहे थे… जिस रासà¥à¤¤à¥‡ पर हम चल रहे थे उस पर दांयी ओर सबà¥à¤œà¥€ मंडी थी  और बांयी ओर बड़ा सा मैदान.  हमारे आगे à¤à¤• बाबा आदम के जमाने का टैमà¥à¤ªà¥‹ चल रहा था जिस पर उपर तक तरबूज़ à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ थे.. कà¥à¤› आगे जाकर वो टैमà¥à¤ªà¥‹ धीरे हà¥à¤† और उसने बांये मà¥à¤¡à¤¼à¤¨à¥‡ का इंडिकेटर दिया.. हमारे मितà¥à¤° ने गाड़ी उस टैमà¥à¤ªà¥‚ के दांये से निकाली और अचानक वो टैमà¥à¤ªà¥‚ दांये मà¥à¤¡à¤¼ गया और हमारी गाड़ी को घसीट मार कर रà¥à¤• गया… मितà¥à¤° बड़े गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ बाहर निकले.. और टैमà¥à¤ªà¥‚ से निकले à¤à¤• बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° जो कम से कम 70 साल के थे.. चशà¥à¤®à¤¾ मोटे -2 लैंसों का जो à¤à¤• धागे से कानो पर लपेटा हà¥à¤† था… और दोनो में घमासान वाक-यà¥à¤¦à¥à¤§ शà¥à¤°à¥.. ये अरबी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में था जो बाद में मितà¥à¤° ने सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ –
मितà¥à¤° – असà¥à¤¸à¤²à¤¾à¤® आलेकà¥à¤® बड़े मिंया.. कà¥à¤¯à¤¾ हाल हैं उंटो के, à¤à¥‡à¤¡à¤¼à¥‹à¤‚ के , परिवार के व तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – वालेकà¥à¤®  सब खà¥à¤¦à¤¾ के शà¥à¤•à¥à¤° से ठीक है… तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ जानवर, परिवार व तà¥à¤® कैसे हो
मितà¥à¤° – खà¥à¤¦à¤¾ का शà¥à¤•à¥à¤° है (वहां ये डायलाग बोलने आवशà¥à¤¯à¤• हैं.. अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ बदतमीज़ी समà¤à¥€ जाती है )
मितà¥à¤° – मिंया तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ गाड़ी तो पहले ही खटारा है.. मेरी à¤à¥€ बना दी… इंडिकेटर दिया बाà¤à¤‚ का और अचानक मà¥à¤¡à¤¼ गये दायीं और.. ये तो सरासर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ गलती है.. अब मेरी गाड़ी ठीक करने के पैसे दो ।
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – तू कहां का है .. पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ या à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯
मितà¥à¤° – बड़े मियां मै तो à¤à¤¾à¤°à¤¤ से हूं  (लीबीया में 90 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ इंजीनीयर या डाकà¥à¤Ÿà¤° थे…मितà¥à¤° à¤à¥€ à¤à¤• बड़ी कंपनी में विदà¥à¤¯à¥à¤¤ -अà¤à¤¿à¤¯à¤‚ता थे)
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – तà¥à¤® लोग कैसे इंजिनीयर व डाकà¥à¤Ÿà¤° बन जाते हो और यहां आ जाते हो… अकà¥à¤² नाम की चीज़ तो तà¥à¤® में होती नहीं.
मितà¥à¤° – बड़े मियां गलती तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ है.. चाहे किसी से पूछ लो
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – कब से रह रहे हो यहां
मितà¥à¤° – 10 साल से
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – तो बताओ सबà¥à¤œà¥€ मंडी किधर है
मितà¥à¤° – दांये हाथ पर
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – मेरी टैमà¥à¤ªà¥‹ पर तरबूज़ लदे हैं.. अब बताओ तरबूज़ कहां जाते हैं???सोचो.. सोचो.. हां.. तरबूज जाते हैं सबà¥à¤œà¥€ मंडी… तो मà¥à¤à¥‡ किधर मà¥à¤¢à¤¼à¤¨à¤¾ चाहिये…. दांयी तरफ.
मितà¥à¤° – पर मिंया इंडिकेटर तो तà¥à¤®à¤¨à¥‡ बांयी ओर का दिया मैं कà¥à¤¯à¤¾ करता
बà¥à¤¢à¤¼à¤Š – तà¤à¥€ मैं कहता हूं तà¥à¤® लोगों में खà¥à¤¦à¤¾ अकà¥à¤² नाम की चीज नही डालता… अरे तू छोटी सी बतà¥à¤¤à¥€ को देख रहा है और इतने बड़े -2 तरबूज़ तà¥à¤à¥‡ नजर नही आते ??? तरबूज़ को देखो.. वो मंडी जायेगा.. बतà¥à¤¤à¥€ नहीं जायेगी मंडी में  समठमें आया… नकली इंजीनीयर ??
मितà¥à¤° ने उस से और बहस ना कर के चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª गाड़ी में आये.. और कà¥à¤› आगे जाकर हमें पूरी बातचीत बताई.. हंसते -2 हम सब बेहाल… उस मितà¥à¤° को हम आज à¤à¥€ नकली इंजीनीयर के नाम से पà¥à¤•ारते हैं.
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ये बात उन दिनों की है जब मैं पैरिस में रहा करता था.  1990 में मेरा मितà¥à¤° लकà¥à¤·à¤®à¤£ अपने परिवार के साथ मेरे पास आया… हम लोग खूब घूमे और मजे किये, फिर कà¥à¤› दूर जाने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया.  à¤à¤• मितà¥à¤° à¤à¤—त सिंह पैरिस से 600 कि.मी. दूर Strassbourg में रहते थे, व कई दिनों से अपने यहां बà¥à¤²à¤¾ रहे थे… निरà¥à¤£à¤¯ लिया कि उनके पास चलते हैं व जरà¥à¤®à¤¨à¥€ à¤à¥€ देख लेंगे….

पैरिस में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सà¥à¤•ूल छोड़ने जाते हà¥à¤
उन दिनों GPS का आविषà¥à¤•ार तो हà¥à¤† नहीं था, कि पता डाला और पंहà¥à¤š गये… नकà¥à¤¶à¥‡ मंहगे कि हर शहर का खरीदना नामà¥à¤®à¤•िन, सड़à¥à¤•े बहà¥à¤¤ बढ़िया, व Sign board perfect तो Strassbourg तक पंहà¥à¤šà¤¨à¥‡ में कोई दिकà¥à¤•त नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ à¤à¤—त सिंह ने पहले ही बता दिया था कि हाईवे के पहले Exit से बाहर निकलते ही जो पेटà¥à¤°à¥‹à¤²-पमà¥à¤ª आये वहां रà¥à¤• कर उसे फोन कर दें… फोन करने के बाद à¤à¤—त 10 मि, में वहां पंहà¥à¤š गया, व हम उसकी गाड़ी के पीछे चलते हà¥à¤  उसके घर पंहà¥à¤š गये ।
à¤à¤—त सिह वहां à¤à¤• रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ चलाता था जिसका नाम बड़ा अजीब था – Klein Hof …. रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ खूब चलता था व पिजà¥à¤œà¥‡ के लिये बहà¥à¤¤ मशहूर था…. à¤à¤—त à¤à¤¾à¤ˆ ने पंजाबी सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में बड़ी आवà¤à¤—त की और तरह-2 के परौठे खिला कर सबको खà¥à¤¶ कर दिया…कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वो खà¥à¤¦ à¤à¤• बहà¥à¤¤ जबरदसà¥à¤¤ कà¥à¤• था| अगले दिन के लिये à¤à¤—त सिंह ने पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया कि Frankfurt चलेंगे और वहां उसके  à¤à¤• मितà¥à¤° के घर रह कर अगले दिन वापिस आ जायेंगे… और  अगले दिन हम निकल पड़े.. à¤à¤—त अपनी ऩई BMW में व हम उसके पीछे अपनी बूढ़ी Renault -5 में.  à¤à¤—त को पहले ही कह दिया कि à¤à¤‡à¤¯à¤¾ धीरे चलना ताकि हम पीछे न रह जायें….वो à¤à¤¾à¤ˆ 160 की रफà¥à¤¤à¤¾à¤° में गाड़ी à¤à¤—ाता रहा (शायद ये उसके लिठधीरे होगा)… और हम हांफती रेनों-5 में उसके पीछे-2.
à¤à¤—त सिंह 22 वरà¥à¤· फà¥à¤°à¤¾à¤‚स में रहने के बाद à¤à¥€, गाड़ी होशियारपà¥à¤° सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में ही चलाता था… फà¥à¤°à¥ˆà¤‚कफà¥à¤°à¥à¤¤ पंहà¥à¤š कर उसने सीधे हाथ का  इंडिकेटर दिया, और इसी बीच हमारे बीच à¤à¤• और गाड़ी आ गयी.  जैसे ही हमें सीधे हाथ पर बाहर जाती सड़क मिली, हमने अपनी गाड़ी हाइवे से बाहर निकाल दी… ये सोचकर कि à¤à¤—त ने कà¥à¤› देर पहले इंडिकेटर दिया था….बस यहीं हम पंजाबी डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤°à¥€ को समà¤à¤¨à¥‡ में à¤à¥‚ल कर गये….à¤à¤—त सीधा निकल चà¥à¤•ा था और हम फà¥à¤°à¥ˆà¤‚कफà¥à¤°à¥à¤¤ शहर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये.
हमें न तो ये पता था कि à¤à¤—त के मितà¥à¤° का नाम कà¥à¤¯à¤¾ है और न ये कि उसका पता कà¥à¤¯à¤¾ है…. अगर तब तक mobile phones का आविषà¥à¤•ार हो जाता तो हम यूं न गà¥à¤®à¤¤à¥‡.  खैर हम कà¥à¤› दूर चलने के बाद सड़क के किनारे खड़े हो गये और ये सोचकर कि à¤à¤—त हमें पीछे न देखकर शायद  यहां पंहà¥à¤š जाये और हमें मिल जाये…पर à¤à¤—त सिंह को न आना था न आया.
मेरी पतà¥à¤¨à¥€ व बचà¥à¤šà¥€ à¤à¤—त के परिवार के साथ उसकी गाड़ी में थे, और मैं लकà¥à¤·à¤®à¤£ के परिवार व अपने लड़के के साथ अपनी गाड़ी में….मैंने पास के PCO से à¤à¤—त के रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ फोन किया, जो उसके मैनेजर ने उठाया, हमने उसे बताया कि हम à¤à¤—त से अलग हो गये है.  मैनेजर को à¤à¤—त के दोसà¥à¤¤ का नाम तो पता था, पर वो कहां रहता था, ये नहीं…. उसे हमने बताया कि हम फलां जगह पर खड़े हैं, अगर à¤à¤—त का फोन आये तो उसे बता देना | पर à¤à¤—त के दिमाग में ये नहीं आया, कि वो अपने रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ फोन कर लेता.  लगà¤à¤— 2 घंटे इंतजार करने के बाद हमने निरà¥à¤£à¤¯ लिया कि वापिस चलते हैं… यहां अंजान जगह कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे… घूमने फिरने के लिये मूढ़ खराब हो चà¥à¤•ा था, सो गाड़ी वापिस Strassbourg की ओर चला दी.
Strassbourg पंहà¥à¤šà¥‡ तो हाथों के तोते उड़ गये… हमें तो उसके रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ का पता ही मालूम नहीं था.  पैरिस से चलते हà¥à¤ उसका पता लिखा था जो शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¤¿ के पास था, जो हमसे बिछà¥à¤¡à¤¼ गयी थी… खैर Strassbourg की गलियों में उसके रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ को ढूंढने लगे।  à¤à¤• दो से पूछा à¤à¥€ कि à¤à¤¾à¤ˆ klein Hof नामक होटल कहां है.. पर किसी को मालूम नहीं…
वैसे à¤à¥€ फà¥à¤°à¥ˆà¤‚च लोग उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ को बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µ देते हैं…. अगर à¤à¤• ही शबà¥à¤¦ किसी और उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ में बोला जाये तो उसका मतलब ही बदल जाता है… मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि हम उसके होटल का नाम ठीक से बोल नहीं पा रहे. Strassbourg में घà¥à¤®à¤¤à¥‡ -2 हमें 3-4 घंटे हो चà¥à¤•े थे व हम बà¥à¤°à¥€ तरह दà¥à¤–ी, à¤à¥‚खे और पà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‡ थे.  दिमाग में आ ही नहीं रहा था कि हम कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं पंहà¥à¤š पा रहे…
à¤à¤• खà¥à¤²à¥€ सी जगह पर गाड़ी रोकी…बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को कà¥à¤› खाने पीने को ला कर दिया, और à¤à¤• à¤à¤²à¥‡ से लगने वाले फà¥à¤°à¥ˆà¤‚च को अपनी थोड़ी बहà¥à¤¤ फà¥à¤°à¥ˆà¤‚च बोल कर वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤‡… उसने कहा कि इस नाम का रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ Strassbourg में नहीं है…बिचारे ने कई जगह फोन à¤à¥€ किया पर कà¥à¤› पता नहीं चला..अचानक लकà¥à¤·à¤®à¤£ को à¤à¤• 1000 डालर का आईडिया आया…उसने कहा कि सà¥à¤¬à¤¹ उसने विडीयो कैमरे से à¤à¤—त के होटल के बाहर फिलà¥à¤® बनाई थी…शायद उसे देख कर ये à¤à¤¾à¤ˆ कà¥à¤› बता सके… हमने उसे विडीयो कैमरे के छोटे से मानिटर में à¤à¤¾à¤‚कने को कहा और उसे वो फिलà¥à¤® दिखाई…
उसने कहा… अब मैं जान गया हूं कि ये कहां है… मै अपनी गाड़ी लेकर आता हूं और आप मेरे पीछे चलो….  वो à¤à¤¾à¤ˆ अपने 10 काम छोड़ कर अपनी गाड़ी में हमे ले चला… असल में à¤à¤—त का रेसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯Â Strassbourg शहर में नही बलà¥à¤•ि Strassbourg से बाहर à¤à¤• कसà¥à¤¬à¥‡ में था…. हम उसे Strassbourg में ढूंढ रहे थे वैसे ही जैसे कोई कनाट पलेस में, नोयडा के किसी होटल को ढूंढ रहा हो…. वो à¤à¤¾à¤ˆ तकरीबन 15 किमी गाड़ी चला कर हमें KLEIN HOF के बाहर छोड़ कर चला गया… à¤à¤• फरिशà¥à¤¤à¥‡ की तरह….
बाद में बेरा पाटà¥à¤¯à¤¾ कि कलाइन हाà¤à¤«… यानी छोटा-आंगन à¤à¤• जरà¥à¤®à¤¨ शबà¥à¤¦ है… फà¥à¤°à¥ˆà¤‚च शबà¥à¤¦ है ही नहीं……
कà¥à¤› देर बाद à¤à¤—त à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ खींसे निपोरता हà¥à¤† आया… और हमें कहने लगा यार तà¥à¤® जरा से इंडिकेटर के चकà¥à¤•र में रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤Ÿà¤• गये…. वो तो गलती से मेरा हाथ लग गया और इंडिकेटर चल गया… हमें तो अà¤à¥€ 20 किमी और सीधा जाना था…  धन हो सरदार à¤à¤—त सिंह जी…. ते  धन तà¥à¤¹à¤¾à¤¡à¥€ माया.
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हम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोग, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ समय में ही काफी तकनीकी लोग रहे  हैं ।  चाहे वो आरà¥à¤¯à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ की  अंतरिकà¥à¤· संबंधी खोजें हों या, गणित के पेचीदा समीकरण, पाई की संखà¥à¤¯à¤¾, गोरों से बहà¥à¤¤ पहले हम खोज चà¥à¤•े थे और, चिकितà¥à¤¸à¤¾ तथा धातॠविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में तो हम तब माहिर थे, जब य़ूरोपियन आग जलाना सीख रहे थे.  मशहूर वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आंइसटीन तो हम से  इतना पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ था कि उसने कह डाला  – We owe to the Indians for they taught us to count without which no scientific discovery was ever possible”. Indians discovered calculations in decimals and fractions, pi value, square and cube roots while their contemporaries were struggling to write 83(LXXXIII is roman notation for 83!).
सदियों की गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ ने हमारी खोजों पर तो विराम लगा दिया पर हमारे दिमाग से तकनीकी कीड़ा नहीं निकाल पायी…अब हम बेशक नयी खोजें नही कर पा रहे, पर विदेशियों की खोजों की मां-बहन à¤à¤• करने के लिये हमारा à¤à¤• अनपढ़ॠहिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ ही काफी है।  हमारी सबसे बड़ी व अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खोज है – जà¥à¤—ाड़ – ।  जà¥à¤—ाड़ à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शबà¥à¤¦ है, जिसका संसार की किसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कोई अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ नहीं…. पर हम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ बड़े तगड़े जà¥à¤—ाड़ू हैं, à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤¸à¥‡ जà¥à¤—ाड़ लगाते हैं कि कोई सोच à¤à¥€ नही सकता ।  और हरियाणा पंजाब में तो कà¥à¤à¤‚ से पानी खीचने वाले डीजल पमà¥à¤ª से बाकायदा à¤à¤• वाहन बना दिया गया है जिसका नाम ही जà¥à¤—ाड़ है..फसल के दिनों में पानी खींचो और आगे पीछे सवारियां ढोवो।  अब कूलर का आविषà¥à¤•ार करने वाले ने कà¤à¥€ नहीं सोचा होगा कि à¤à¤• कूलर से 2 कमरे कैसे ठंडे होंगे…पर हमारे जà¥à¤—ाड़ू à¤à¤¾à¤ˆ ने à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पैंट कूलर के आगे बांधी, à¤à¤• पैर à¤à¤• कमरे में और दूसरा पैर दूसरे कमरे और दोने कमरे ठंडी हवा से à¤à¤°à¤ªà¥‚र।  अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ अगर हमारी जà¥à¤—ाड़ू वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ देखे तो शरà¥à¤® से डूब मरें.

कूलर के आगे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पैंट बांध कर हवा को 2 कमरों में à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का अविषà¥à¤•ार
(Photo courtesy Facebook – Photographer – Unknown)
और अपने पैरिस के  पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में मैने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• जà¥à¤—ाड़ता के जीते जागते पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ देखे ।
उदाहरण के तौर पर, हमारे à¤à¤• सिख यà¥à¤µà¤• नें पैसे कमाने का कà¥à¤¯à¤¾ अनोखा  अंदाज अपनाया.  पैरिस में बड़े सà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‹à¤‚ में सामान उठाने के लिये पहियों वाली बड़ी टोकरी या रेहड़ी जिसे Caddy कहते है, लोग लेते है। कैडी लेने के लिये आप 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क का à¤à¤• सिकà¥à¤•ा उसमें डालें तो उसका ताला खà¥à¤² जाता है… लोग सामान लेते हैं व कैडी à¤à¤° कर सामान अपनी कार में रख लेते हैं, और कैडी को वापिस उसके अडà¥à¤¡à¥‡ पर रखते हैं जहां ताला लगाते ही आपके 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤• कैडी से बाहर आ जाते हैं.  ये सिसà¥à¤Ÿà¤® इस लिये है कि लोग कैडी को इधर-उधर न छोड़े । कà¥à¤› वृदà¥à¤§ महिलायें, जो आस-पास ही रहती हैं, कैडी को सामान समेत घर ले जाती है ताकि à¤à¤¾à¤°à¥€ सामान उठाना न पड़े । सामान घर ले गयीं और कैडी बाहर छोड़ दी ।  अब हमारे हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ, शाम को वहां घूम कर à¤à¤¸à¥€ कैडी ढूंढते है और उसे वापिस लाकर सà¥à¤Ÿà¥‹à¤° में ताला लगा कर 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क निकाल लेते हैं, यानी जरा सी मेहनत और 70 रूपये मिल गये । ये गैर-कानूनी à¤à¥€ नहीं. बलà¥à¤•ि सà¥à¤Ÿà¥‹à¤° वाले à¤à¥€ खà¥à¤¶, और सरदार à¤à¥€ खà¥à¤¶….  à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ व पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने अपने इलाके बांटे हैं और हर आदमी रोज 400-500 रू कमा लेता है ।
à¤à¤• पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ सिंधी à¤à¤¾à¤ˆ ने तो टेलीफोन कारà¥à¤¡ की à¤à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤‚ग की, कि उसमें पैसे खतà¥à¤® ही नहीं होते थे और वो अपने जानकारों को घटी दरों पर à¤à¤¾à¤°à¤¤ -पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ फोन करवा कर, विदेशी तकनोलोजी को अंगूठा दिखाते रहते थे ।
यूरोप में तब टैकà¥à¤¸à¥€-फोन चलते थे। 10 का सिकà¥à¤•ा डालिये बात कीजिये और जितने पैसे बचे वो फोन से वापिस आ जायेंगे.  हालैंड में अपने à¤à¤• पंजाबी मितà¥à¤° के घर ठहरा…तो à¤à¤¾à¤ˆ 9 बजे नौकरी से वापिस आया और 10 मिनट बैठकर कहता है मै जरा दारू पानी का इंतजाम कर के आता हूं… मैने साथ चलने की जिद की तो ना-नà¥à¤•र करते हà¥à¤ चल दिया, पर मै चेप होकर उसके साथ गाड़ी में बैठही गया। वो à¤à¤¾à¤ˆ सीधा रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पंहà¥à¤šà¤¾, टैकà¥à¤¸à¥€-फोन केबिन में घà¥à¤¸à¤¾ और 2 उंगलियों से वो नली जिसमें से बचे हà¥à¤ पैसे वापिस आते थे…à¤à¤• छोटा रà¥à¤®à¤¾à¤² बाहर खींचा… साथ ही काफी सारे सिकà¥à¤•े छन छन करते हà¥à¤ बाहर आ गये… à¤à¤¸à¤¾ उसने बाकी पांचो फोन पर किया और इतने पैसे कमा लिये जो उसकी à¤à¤• बोतल के लिये काफी थे।  वो à¤à¤¾à¤ˆ जहां से बचे पैसे निकलते है, वहां छोटा रà¥à¤®à¤¾à¤² फंसा देता था… गोरे आते थे फोन किया, कà¥à¤› सेकंड देखा बचे पैसे नहीं निकले तो चल दिये… शाम को वो जाकर फंसी हà¥à¤ˆ रेजगारी निकाल कर अपने दारू पानी का जà¥à¤—ाड़ कर लेता था…..गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤® बैलà¥à¤² ने टैलीफोन का आविषà¥à¤•ार करते हà¥à¤ सोचा à¤à¥€ नहीं होगा कि आने वाले समय में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤—ाड़ू वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• उसके उपकरण से पैसे कमाà¤à¤‚गे और खून पसीने की कमायी दारू जैसी चीज पर  बेकार नहीं करेंगे ।  मैने उस à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤—ाड़ू वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• को सादर पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और साथ ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता को नमन किया कि उसके सपूत कितने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हैं।
मान गये हमारे टैकà¥à¤¨à¤¿à¤•ल दिमाग को ???  à¤à¤• और उदाहरण पेश है |
http://en.wikipedia.org/wiki/File:Eiffel-tower-picture.jpg )
पैरिस में लघà¥à¤¶à¤‚का के लिये, à¤à¤«à¤¿à¤² टावर व अनà¥à¤¯ टूरिसà¥à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर खूबसूरत छोटे-2 पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤§à¤¨ बने हैं. 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क का  सिकà¥à¤•ा डालिये और दरवाजा खà¥à¤² जायेगा… हलà¥à¤•ा संगीत शà¥à¤°à¥‚ हो जायेगा… परफà¥à¤¯à¥‚म की फà¥à¤¹à¤¾à¤° चलेगी और आपका काम ख़तम , जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सामानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ उस दीवार पर, जहां लिखा हो ” यहां …. करना मना है”, काफी बेशरà¥à¤®à¥€ से, तथा बिना दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ के हो जाता है… à¤à¤¸à¥€ सामानà¥à¤¯ घटना को यादगार बना देता है…आप à¤à¤«à¤¿à¤² टावर ही नही याद रखते बलà¥à¤•ि पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤§à¤¨ को à¤à¥€ याद रखते हैं।
कूछ लोग à¤à¤¾à¤°à¤¤ से आये वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° मेले में हिसà¥à¤¸à¤¾ लेने, सब के सब अमीर या सरकारी अफसर । मैं उनà¥à¤¹à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ पर ले गया और à¤à¤«à¤¿à¤² टावर के पास सबको पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤§à¤¨ की ज़रà¥à¤°à¤¤ पड़ी | । मैने उनà¥à¤¹à¥‡ बताया कि 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क खरचो इस काम के या बाहर करोगे तो 500 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क जà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ लगेगा । वो सब चीखे कà¥à¤¯à¤¾ ???? सॠसॠकरने के 70 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ??? हम लोग चाहे कितने à¤à¥€ अमीर हो जायें… पर सड़क पर पड़ा 100 का नोट उठाने à¤à¤¾à¤— पड़ते है और सॠसॠपर हम 70 रà¥à¤‚. खरचे.. ये हमारी संसà¥à¤•ृति के विरà¥à¤¦à¥à¤§ है… पर यहां तो मजबूरी थी अतः मै उनà¥à¤¹à¥‡ लघà¥à¤¶à¤‚का मशीन के पास ले गया व तरीका बताया …उनमें से जो इंजीनीयर à¤à¤¾à¤ˆ थे, ने सब धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से सà¥à¤¨à¤¾ और 10 का सिकà¥à¤•ा डाल कर दरवाजा खोल दिया। निपटने के दौरान ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ सब सिसà¥à¤Ÿà¤® समà¤à¤¾ और फिर दरवाजे में टांग अड़ा कर खड़े हो गये और बाकियों को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया, सब बारी-2 से करते रहे… दरवाजा बेचारा बार -2 बंद होने की कोशिश करता और उनकी टांग में लगता, और मशीन इसे कोई खराबी समठकर दरवाजे को वापिस खोल देती। दरवाजा खà¥à¤²à¤¤à¤¾ बंद होता रहा, परफà¥à¤¯à¥‚म की फà¥à¤¹à¤¾à¤° निकलती रही…सब निपटते रहे, फà¥à¤°à¥ˆà¤š लोग हैरान हो कर देखते रहे.. और  अंततः सब खà¥à¤¶,…  à¤à¤¾à¤ˆ लोग à¤à¥€ हलà¥à¤•े हो गये, मशीन à¤à¥€ खà¥à¤¶ हो गयी कि उसे दरवाजा बंद करने का मौका मिल गया।  हालांकि इंजिनीयर महोदय अधिक खà¥à¤¶ नही थे बोले – मियां थोड़ा पà¥à¤°à¥ˆà¤¶à¤° कम होता तो 10 फà¥à¤°à¥ˆà¤‚क डाले बिना ही, दरवाजा खोलने को कोई न कोई जà¥à¤—ाड़ बना ही लेता ।
बेचारी मशीन को कà¥à¤¯à¤¾ पता था… à¤à¤• दिन आरà¥à¤¯-à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ के वंशज यहां आयेंगे और उसकी पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤‚ग को फेल कर देंगे ।
सब मेरे पीछे दोहराओ… मेरा जà¥à¤—ाड़ू à¤à¤¾à¤°à¤¤ महान!!!!!!
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à¤à¤• जरà¥à¤°à¥€ सूचना सब घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ों के लिठ–
पà¥à¤°à¤¿à¤¯ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ो… किसी न किसी यातà¥à¤°à¤¾ में हमारे साथ कà¥à¤› न कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ अवशà¥à¤¯ घटित होता है जो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की कसौटी पर खरा नहीं
उतरता, जिसे हम चमतà¥à¤•ार की संजà¥à¤žà¤¾ दे सकते हैं… अगर आपके साथ कोई à¤à¤¸à¥€ घटना घटी हो जो आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ चकित करने वाली हो जिसे आप चमतà¥à¤•ार, या ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ कृपा या केवल à¤à¤• अजीब संयोग कह सकते है… तो कृपà¥à¤¯à¤¾ उसका विवरण हिनà¥à¤¦à¥€ या English में à¤à¤• संदरà¥à¤à¤¿à¤¤ चितà¥à¤° के साथ मà¥à¤à¥‡ à¤à¥‡à¤œ दें, कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि मैं घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी खटà¥à¤Ÿà¥€ मीठी का à¤à¤• अंक केवल à¤à¤¸à¥€ चमतà¥à¤•ारिक घटनाओं के बारे में लिखने जा रहा हूं और आप का अगर कोई à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤à¤µ है तो वो मेरे उस अंक को चार चांद लगा देगा..आपकी à¤à¥‡à¤œà¥€ हà¥à¤ˆ घटना को मैं बाकायदा आपको नाम सहित धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देते हà¥à¤ वरà¥à¤£à¤¨ करà¥à¤‚गा…
Dear Ghumakkar friends,
I am planning to post a part of this series based upon miracles in Ghumakkari. Â If you have seen any miracle during your yatra, any incident which is beyond the explanation of science or logics and which can be termed as a miracle or a strange coincidence or simply a god’s intervention, then please mail them to me so that I can include that incident in my series, (by giving due credit to you).
मेरा E-mail पता है — bhutnath@gmail.com
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तो दोसà¥à¤¤à¥‹ इस बार इतना ही… कà¥à¤› और कलम-बदà¥à¤§ किया तो फिर आपके साथ बाटूंगा… शà¥à¤-कामनाà¤à¤‚ | ये कड़ी कैसी लगी, अवशà¥à¤¯ बताइयेगा…ताकि अगली कड़ी और अचà¥à¤›à¥€ लिख सकूं ।
नमसà¥à¤•ार



अगर यह लेख किसी एक स्थल पर एक सम्पूर्ण यात्रा वृतांत होता तो बेहतर रहता, जिससे हमें किसी जगह के बारे में सब कुछ जानने को मिलता ना की एक आध बात, बाकी आपकी मर्जी, मेरी बात को विवाद का रूप ना दे | धन्यवाद |
य़े सीरिज़ है ही खट्टी-मीठी यादे… एक जगह की जानकारी के लिये मेरे बाकि लेख पढ़िये जी
संदीप भाई आप को तो मै सदी के महान घुमक्कड़ का दर्जा पहले ही दे चुका हूं.. घुमक्कड़ वाले भी आपका कई बार सम्मान कर चुके है… आपका मुकाबला मेरे जैसा साधारण पर्यटक कैसे कर सकता है …
हम तो ऐसे ही कुछ लिख कर दिल बहला लेते है… और आशा करते है कि आप जैसे छोटे भाई कुछ वाह -2 कर के हमारा दिल रख लें….वरना हमारी क्या बिसात
भाई सालंत सोल, जट्टां की वाह वाह ऐसी/इसी हो स. तन्ने बेरा कोन्या पाटता.
Well said SSS (Silent Soul Sir) I think Mr. Jatdevta havn’t read the Title of the Post …. He said “sampoorna yatra vritant hota to behtar hota” but from begining u mentioned KUCH KHATTI KUCH MEETHI .. Great SSS
Cheers!!
Tks verinion… jaatbhai kahin aur ka gussa mujh par nikal rahe hain.
मॉरिशस में तो भारतीय खाना, खासकर से पूर्वी भारत का खाना, तो आसानी से मिलना चाहिए | ऐसा मैं सोचता हूँ पर शायद इतना सरल नहीं है | वैसे भी ये बात करीब करीब ३० साल पुरानी है | शायद उन तीन दिनों में आपको आलू की सब्जी और रोटी सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगी होगी |
त्रिपोली और जर्मनी में मैं बुढ़ऊ और श्री भगत सिंह जी के साथ हूँ | इतना ‘Templatization’ है बाहर की सड़कों पर की आपको लगता है की विडियो गेम चल रहा है | lol
Salute to the guy in the consulate/Embassy. Stories like these need to be further shared, spread and talked over and over again.
धीरे धीरे एक छोटी पुस्तिका के लायक तो मटेरिअल बन ही रहा है dear SS. :-)
tks Nandan, now almost all countries have Indian restaurants… tks to hard work of our Indian brothers… but then it was difficult.
The guy who returned the money was not embassy staff.. he was just a by-passer, as I lost money outside the building, where these dollars would have blown away with wind…he just stopped his car and gathered those notes and waited for me to come out of embassy of Madagascar
सायलेंट जी,
लेख काफी शानदार लगा नाश्ते का टाइम था पर लेख पढने में इतनी रम गयी की बिना पढ़े उठी नहीं पढ़ती चली गयी पढ़ती चली गयी और अच्छा लगा सच में यादे तो यादे ही होती हैं तभी तो उन्हें सुनहरी यादे कहा जाता हैं . खाने की समस्या सबसे बड़ी समस्या होती हैं. लेख पढ़ते समय रोटी पिक्चर याद आ गयी . सच में भूखे व्यक्ति के लिए रोटी का महत्व क्या होता हैं . वो तरबूज वाला किस्सा तो बहुत ही शानदार लगा…………………….
जुगाडू प्रवृत्ति में कूलर का उपयोग देखकर लगा की ऐसा भी होता हैं कुल मिलाकर लेख शुरू से अंत तक मजेदार रहा शांतनु और नन्ही कनुप्रिया बहुत ही प्यारे लग रहे थे .उनके बड़े होने के फोटोस भी देखना हैं.अगली कड़ी के इंतज़ार में .
धन्यवाद.
धन्यवाद कविता जी, ये लिखने व बताने का मेरा मतलब है कि हम भारतीय तकनीकी मस्तिष्क वाले है.. मजाकिया लहजे मे कहा गया है पर मजाक उड़ाने के लिये नही… क्योंकि मै खुद एक तगड़ा तकनीकी जुगाड़ू हूं
Silent Soul ji,
Its so wonderful that you remember each and every detail of your trip after so many years.Its always a great adventure to face all kinds of hiccups when you are young.You have unearth my memories of
our(Mine and my wife,newly married classmates) of going off to London with just 50 Pounds in pocket,and no friend in London!By boat in October 1958,and we ended up in Rome ,before landing in London,
Coca Cola,in Rome at that time cost 54000Lire!.Shock for us!
But We enjoyed the adventure,being young.Thanks for digging up memorabilia .
Tks Sethi Ji,
1958 to London that too in boat… that must have been a great experience…
tks for comments
S.S. Ji….. -(“)_
आपकी खट्टी मीठी यादे हमें बड़ी ही दिलचस्प लगी ………
1. आखिर विदेश (मारिशस-क्यूरपिप) में आपके देशी खाने का इंतजाम हो गया चाहे कैसे भी हो……..बहुत खूब, बहुत अच्छी लगी यह कहानी |
2. विदेश में एक व्यक्ति की इमनादारी से आपके ३०० डालर वापिस हो गए…..उस समय यह रकम भी बहुत बड़ी होगी …उस व्यक्ति की ईमानदारी को सलाम …..|
3. I Love my India …. हमारा भारत वास्तव में महान हैं और इसकी पहचान दुनिया भर अच्छे विकासशील देशो में हैं …|
4. कुवैत वाली घटना बड़ी दुखद लगी…..सच कहा ऐसे बदतमीज लोगो से भरे देश में कदम भी नहीं रखना चाहिये …चलो आपके माध्यम से कुवैत की छवि जानने को तो मिली ….|
5. हा हा हा ……त्रिपोली वाली घटना ने तो हमें हसने को मजबूर कर दिया ………बड़ा ही हास्यपद वार्तालाप था आपके मित्र और बढ़ऊ में …..कैसे कैसे अकलमंद वेवकूफ भरे पड़े हैं इस दुनिया में……|
6. पेरिस वाली आपकी याद अच्छी लगी …..दुनिया में अच्छे लोग अभी भी हैं जो अपना काम छोड़कर दूसरो कि साहयता करने को आतुर रहते हैं…..भला हो उस आदमी का जिसने आपको रास्ता दिखाया ….|
7. भारत और भारतीयों की उपज हैं यह “जुगाड़ “, भारत में एक ही चीज तो चलती सबसे ज्यादा हैं वो हैं जुगाड़ …पेरिस में लघुशंका के जुगाड़ हा हा हा हा …….विदेश में भारतीयों की जुगाड़ की यह आपकी जुगाड़ू कहानी बहुत अच्छी लगी …….|
बहुत अच्छा लिखा आपने….सर जी…..
विदेशी धरती की अपनी यादें से परिचय कराने के आपका धन्यवाद ……..
रीतेशजी, आपके कमैंट देख कर ही पता चलता है कि आप ने कितने ध्यान व चाव से ये लेख पढ़ा…
धन्यवाद इतना समय निकालने के लिये….
मुझे भारत से प्रेम ही बाहर जाकर हुआ…. बाहर जाकर ही पता लगा कि हमारे देश में कितनी खूबियां है…. कैसे भारतीय जी तोड़ मेहनत करते है.. चाहे 50 डिग्री हो या -50,
दोस्त बुरा मत मानना पर बोलना चाहता हूँ
मुझे नहीं मालूम था की कुछ भारतीय लोग विदेशो में जाकर भारत का इस तरह मजाक उड़ाते है. जैसे टेलीफ़ोन बूथ, या भारतीय यांत्रिकी के बारे उल-जलूल कहना. मुझे तो पसंद नहीं आया.
देखो यार खेतों में उस सिस्टम से पानी देना भी एक टेकनिक है उसे जुगाड कहना गलत है वो जिस किसी ने भी बनाया है बड़ी मेहनत से बनाया होगा अपनी जरूरतों के लिए. उसे “जुगाड” कहना गलत है. अंग्रेजो ने अपनी जरुरत के लिए पम्प बनाये तो उसे अविष्कार का नाम दिया. पर हम अपनी जरुरत को जुगाड क्यों कहे.
Montybhai… ये जुगाड़ नाम मैने नही दिया… उस मशीन या वाहन का नाम ही जुगाड़ है… आप हरियाणा पंजाब में जाकर किसी से पूछ सकते हैं… एक बुग्गी के आगे डीजल इंजन बांध कर उस पर सवारियां ढोइ जाती है…व इस वाहन को जुगाड़ कहा जाता है
भारतीय बाहर आकर जो करते है… अगर मै सब बता दूं तो कई लोग शर्म से डूब मरें…. ये तो मैने हास्य का सहारा लेकर कुछ मजेदार बाते बताई हैं..मुझे 28 साल हो गये बाहर विदेशों मे घूमते और इस तरह के हजारो तमाशे मैने देखे है….अच्छे भी बुरे भी
भाई मेरे में हरियाणे के गुडगाँव का रहण वाला हूँ मेने भी देखे है पर यार पुरे सिस्टम को जुगाड कहना गलत है
सरजी मेरे पीछे क्यो पड़े हो… मैने थोड़ी नाम रखा हे जुगाड़…ये तो भारत सरकार तक इसे जुगाड़ कह कर पुकारती है
जरा यहां क्लिक कर के पढ़ो http://en.wikipedia.org/wiki/Jugaad
यार सरे के सरे प्रशंसा करेंगे तो आलोचना कौन करेगा भाई मेरे.
एक-आधा आलोचक भी तो होना भी चाहिए.
साइलेंट जी,
“खट्टी मीठी” का मुझे हमेशा ही इंतज़ार रहता है. आपने इतने सालों पुरानी यादों को अपनी स्मृति में संजो कर रखा है, वह सचमुच काबिले तारीफ़ है. हर एक वाकया मन मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ कर गया. पेरिस की प्रसाधन व्यवस्था के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
अगली कड़ी के इंतज़ार में.
धन्यवाद मुकेशजी…आपकी बेबाक टिप्पणी मेरे लिये बड़ी खुशी लाती है
Finished work in Pune and now On Pune – Mumbai highway with laptop and USB, reading your post in AC Volvo Bus .
वाह मजा आ गया. यह सरिस काफी चलेगी.
Nandan made a very good point. Add these small stories in the end and publish one book………………
Tks ..Vishalbhai…. what an honor tome that you are reading my article with so much interest..
I am really surprised to find that even in a bus you can access internet ? India is indeed making progress.
Book ? yes the amount of Experience I have, and the way I see the things minutely and remember them even after 28 years, a book will be good.
I am sure Gumakkar on its 100th anniversary will publish a book on my experiences… and perhaps my grand son would be taking award from Nandan’s grandson….LOL
एस एस जी बहुत बढ़िया पोस्ट, तथा बहुत ही बढ़िया चित्र. नमन करता हूँ मैं तीन सो डालर लौटने वाले को तथा पेरिस के बाहर भगत सिंह के क्लीन होफ वाले होटल तक १५ किमी. ले जाने वाले को, तथा दुआ करता हूँ की कुवैत के बत्त्मिजों को उनका खुदा कुछ तमीज सिखाये तथा वे साउथ एशिया वालों से ढंग से पेश आयें. उस तरबूज वाले का फोटो भी होता मज़ा दुगना हो जाता. अभियंता का शौच के दरवाजे में पैर फसाकर सबको मुफ्त मैं ……….
एक ही पोस्ट मैं कई जगह की खट्टी मीठी यादें मज़ा आ गया.
tks Tridev ji for your comments
नमस्कार साइलेंटसौल ,
आपकी पोस्ट आपके जैसी है . कुछ खट्टी , कुछ मीठी .
l like this combination. Great Work.
Tks Ruhiji (agar ye hi apka naam hai to)…for your good comments
excellent post with combination local hindi words.
thanks Bhagat Singh ji, apke naam rashi ki ghatna bhi hai isme
tks for your comments
हटो भाई जरा सी मुझे भी जगह दो …………..एस एस जी मै थोडा पीछे रह गया था मेरा कमेंट उठाकर सबसे उपर लगा देना ठीक है ………..
1—मारिशस का फोटो पहला वाला बढिया नही आया है इसे ठीक कर दो या दूसरा लगा दो
2—आलू पूडी खाओ प्रभु के गुण गाओ
3—हिंदुस्तान में होते तो 300 डालर तो मिलने की उम्मीद तो थी ही नही अगर एक बार किसी बंदे ने उठा लिया होता और आपने देख भी लिया होता तो भी आपको 10—20 साल में केस लडकर साबित करना होता कि ये रूपये आपके हैं
4—शांतनु के फोटो बडे के और ताजे भी आपकी पहली पोस्ट में देख चुके हैं बेटी के नही
5— इतने साल पहले फोटो आपके पास है इसके लिये बधाई हम तो ताजे ताजे भी खो देते हैं
6—दूसरे देश के टैक्सी वाले भारत को इसलिये जानते हैं क्योंकि वहां शिक्षा बहुत ज्यादा है और ब्रिटेन में सवारी के अंदर जाने के बाद तांगे वाला सीट के नीचे से अखबार निकालकर पढने लगता है
7— कुवैत के बारे में जानने की जरूरत ही नही है हमारे यहां के कुछ लोग गालिया खाकर और उनके पशुओ को चराकर भी कुछ मोटी कमाई करने के लिये वहां जाते हैं और ये फैशन है
8—त्रिपोली ………….हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
9— कूलर ………….हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
10—पेरिस जैसा जुगाड तो हमारे यहां मैट्रो में रोज होता है आप देखलो कि एक टोकन डालते हैं और दो निकलते हैं
अन्त में ………..मेरे कमेंट के बिना आपकी पोस्ट अधूरी थी इसलिये मुझे धन्यवाद देना मत भूलना और
मेरा भारत महान
मनु…मैं भी सोच रहा था.. .आज भतीजा कहां रह गया.. मजा आ गया आपके कमैट पढ़ कर, प्रूफ है कि दिल लगा कर पढ़ा है.
कुछ clarifications
1- मारीशस का और फोटो नही है.. सब एलबम दिल्ली में है.. अगली बार ज्यादा फोटो लगेंगी
3- ये बात नही है.. हिन्दुस्तान में भी बहुत ईमानदार लोग भरे पढ़े है… हमारी आबादी मे इनका प्रतिशत शायद कम है..मारिशस में ज्यादा है
6- मैडागास्कर में न तो शिक्षा है न पैसा… मेरे ख्याल से भारत का मजबूत होना एक कारण है…. हम शायद भारत में रह कर वो सब महानता नही देख पाते जो बाहर के लोग देखते है… लिबीया में इंदिरा गांधी को लोग बहुत प्यार करते है ..क्योंकि उन्होनें वहां गद्दाफी से कह कर खुले आम फांसी की सजा बंद करा दी थी
10 – LOL मैने तो अभी तक मैट्रो में सफर नही किया… शायद छोटे जाट भाई इस पर कुछ रोशनी डालें
बहुत-2 धन्यवाद
दूनपूफ
मैं मनु से असहमत हूं। खासकर पॉइण्ट नम्बर 3और 6 पर।
पहले पॉइण्ट 3 की बात करते हैं। इंसानियत और असंतानियत हर जगह होती है। हर तरह के लोग हर जगह मिलते हैं। ऐसा केवल भारत में ही नहीं होता। अखबारों में अगर बेकार की खबरें भरी रहती हैं तो बढिया खबरें भी होती हैं। कई बार पढने में आता है कि लाखों रुपये, लैपटॉप, मोबाइल आदि बडे पैमाने पर लौटाई जाती हैं। मेट्रो में कश्मीरी गेट पर खोया पाया केन्द्र है जहां लोगों के छूट गये सामान सप्ताहों तक रखे रहते हैं। और ये सब सामान उन सफाईकर्मियों द्वारा इधर-उधर से इकट्ठे किये जाते हैं जिनकी तनख्वाह तीन हजार से ज्यादा नहीं होती।
अब पॉइण्ट नम्बर 6 की चर्चा: विदेशी लोग भारत को इसलिये जानते हैं कि वहां शिक्षा ज्यादा है- ऐसा नहीं है। कुछ साल पहले मैंने एक सर्वे पढा था कि अमेरिका में नब्बे प्रतिशत लोग यह नहीं जानते कि नक्शे में भारत कहां है। रही बात तांगे वाले की अखबार पढने की तो भारत में तो इससे भी जबरदस्त नजारा देखने को मिलता है। किसी भी गांव देहात में नाई की दुकान पर पहुंच जाइये, वहां हमेशा बाल कटाने वालों से ज्यादा तादाद अखबार पढने वालों की होती है। और वहां हम जैसे ‘पढे-लिखे’ अखबार नहीं पढते बल्कि ऐसे ऐसे लोग वहां नियमित पाठक होते हैं कि क्या कहने! और फिर उसके बाद उन पाठकों से किसी भी देश की चर्चा करा लो, वे हरदम तैयार रहते हैं। ऐसे मामलों में हम जैसे ‘पढे-लिखे’ लोग फिसड्डी साबित होते हैं जो अखबार केवल इसलिये पढते हैं ताकि पता चल सके कि आइपीएल में कौन जीता, किसने कितने रन बनाये, कितने छक्के लगाए, कहां बम फटे, कहां दुर्घटना हुई, मायावती ने क्या कहा….। और आप किसी दिन बस में अखबार लेकर बैठ जाओ, आसपास की सवारियां इस ताक में रहती हैं कि यह कब अखबार पढकर बन्द करे और कब हम उससे मांगे। इस बात का सारा श्रेय विदेशी तांगे वालों पर जाना भारत की तौहीन है।
अब आखिर में साइलेण्ट साहब से कि हम लोग बस सामने वाले की हां में हां मिलाना जानते हैं। आपने त्रिपोली और कुवैत के बारे में लिखा और निष्कर्ष यह है कि दोनों घटनाएं बदतमीजी पर आधारित हैं। लोगों ने आपकी हां में हां मिलाते हुए त्रिपोली को वाह वाह दे दी और आपकी ही हां में हां मिलाते हुए कुवैत को खलनायक बना दिया।
अन्त में एक बात भारतीय जुगाड के विरोधियों से कि मैं मिस्टर बीन का पक्का भगत हूं और उसे जुगाड बादशाह मानता हूं।
अरे छोटे चौस्साब… मै तो थोड़ा उदास था कि इस बार नीरज के कमैट शायद न आये, क्योकि वो तो लम्बी यात्रा पर जा रहा है… खैर खुदा आपकी तबीयत ठीक करे…मुझे खुशी है कि आपने मेरी पोस्ट पढ़ ली.
3 और 6 पर मै आपसे सहमत हूं.. मनु को मेरा उत्तर देखिये
बात हां में हां मिलाने की नही… ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है.. हो सकता है आप जायें तो आपको अलग अनुभव हो..
भारतीय जुगाड़ का कम से कम मै विरोधी नही…ये तो हास्य में मैने उनके बारे में लिखा… मै तो खुद एक तगड़ा तकनीकी जुगाड़ू हूं और इसका प्रमाण आपको मेरी पिछली खट्टी मीठी मे मिला होगा कि कैसे हमने स्कूटर की हैड लाईट से करंट लेकर डीसी बना कर अपने स्कूटर में संगीत साधना की.
मुझे खुशी हुई आपके कमैंट पढ़ कर … शादी होने से पहले बता देना ताकि मैं समय से छुट्टी लेकर आ सकूं..
अक्सर विदेश यात्रा वर्णन करते समय लेखक बात बात में भारत को ले आता है। इस पोस्ट में यह नहीं मिला और इसीलिये इसे मैं एक आदर्श विदेश यात्रा वर्णन मानता हूं।
इस श्रंखला की और कडियों की जरुरत है साइलेण्ट साहब।
मुझे लगता है आप भी क्रिकेट को पसंद नही करते.. .. मै सोचता था पूरे भारत में मै अकेला ही ऐसा gr8 हूं.
Another nice compilation SS. All incidents are very well narrated and entertaining. About Kuwait, I am wary of generalizing the entire country based on the behaviour of a handful of people. I have several friends who have spent a considerable amount of time in the country and have never faced such behaviour. Probably a lot depends upon luck.
The series is going really weel. I hope many more parts are yet to follow.
Tks Vibhaji.. yes I know generalisation is not normally done on 1 or 2 incidents but if we get more than 50% people induldging in such badtamizi we can safely presume it as national character.
There may be some people who do not feel such in Kuwait, but my generalisation is not based on these 2 incidents only. I have lot of friends who have lived in Kuwait and Saudi Arabia and there are horrible stories, which I can not even share on public board.
On the other hand, fundamentalist country like Iran, have more India loving people than any gulf countries. Iranians are more friendly and less egoist than kuwaitis.
If you read travel stories of foreigners about India you will be shocked to see… In a very famous site someone writing about Leh and Manali spent 90% of story on how Indians are cheats, how they eat horribly and how he had to face a man vomitting in bus. 10% was about Manali and Leh
We Indians are still better that we tell about their Badtamizi in a more sensible and humorous way, not actually insulting them.
Tks for your comments
Another feather in your already distinguished hat sir!!
I thoroughly enjoyed each and every anecdote, just a question why didn’t you guy call the Bhagat Singh’s restaurant again for asking the address/directions?
Also, I didn’t like the “Holland” story, in my opinion that’s not jugaad but plain stealing.
In all, another complete, enjoyable post.
Tks Bhaskarji… yes the Restaurant was closed for the evening… that is why Bhagat went with him.
His manager came in morning for 2 hours to clear the mess of yesterevening. We in fact called him, but there was no reply since the restaurant was closed.
theft or no theft… jugaad is a jugaad
tks again
Thank you so much for sharing your khatti meethi yaadyen SS Ji… Kuwait me Tarbooz wale incident ko pad kar bahut hansi aayi… Germany me Shukar hai ki Bhagat Singh Ji ne yeh nahi kaha ke indicator dene ke bad maine wiper chala kar mana bhi to kar diya tha ki mudna nahi hai…LOL Photographs dekh kar andaza ho raha hai ki yeh sab bahut puraani ghatnayen hai…Thanks again for sharing and entertaining us…
Harish
Tks Bhatt ji. Yeh bhi khub rahi viper chala ke mana karna….LOL …ROFL yeh bilkul fresh joke ban gaya
tks
Aur haan…aap sab ke anurodh pe maine apna profile photo change kar diya hai…Bataiye aapko kaisa laga…
pata nahin mujhe to pehle bhi smart ghumakkar lag rahe thhe aur ab bhi… but in this one u look younger
आनंद आ गया! स्कूल में कुछ ऐसा अध्ययन को मिलता तो 34/35 नंबर से संतोष नहीं करना पड़ता
… अभी भी याद है हिंदी शिक्षक उपस्थिति कुछ इस तरह लेते . नंबर one, नंबर two, number three, चार, पांच, छह….मैं पूरी तरह से कुवैत की आपके टिप्पणी के साथ सहमत हूँ, कुवैती लोग बदतमीज़ी और अहंकारी होते हैं..
सीख – त्रिपोली में खरबूजे से लदी ट्रक के पीछे गाड़ी चलाना अच्छा विचार नहीं…
शुक्रिया ईनाम भाई… इतने प्यार से पढ़ने व कमैंट के लिये ।
तरबूज और जर्मनी के किस्से नायाब हैं.
जर्मनी के किस्से ने वो जमाना याद दिला दिया – प्री मोबाइल एरा.
धन्यवाद जयश्री जी…
कोई उस जमाने की कविता या शेर हो जाता तो आनंद दुगना हो जाता
हम अपनी हीं धुन हैं, गाते रहो
हम हीं बरसात हैं, नहाते रहो.
कल कल बहते झरने को
दिल खोल कर ताल दो
फूल आएँ जो चूमने को
हल्के से अपना गाल दो.
A BIG THANKS… !!!
जीती रहो जीती रहो जीती रहो
SSji,
LOL! One of the best! You can write a book of short stories like this. Loved the story of watermelon and state of the art dual cooling system. I’ve been living in US for past twenty eight years and yes…. Desis are still doing Jugaad everyday-everywhere here.
Kuwait – I guess then you’ve not been to Saudi Arabia. I often travel to MEA from work and if it was not for work, I would never visit there ever again.
Thank Bapu Nagar. Yes I know about SA… their stories of more horrible than kuwait. Vibha has perhaps not seen Kuwait and SA hence she was not happy with my generalisation.
The stories of SA and Kuwait are so horrible that If someone listens them, will never go and work there. I can not even write even one of them here.
Thanks for your comments
This was really hillarious
Thanks Priya for reading and commenting
Dear Silentsoul, Ek baar phir ussi humour aur sanyojit bhasha jiskey liye hame apni iss rashtriye dharohar par garv hey uska pura pura drishtant dikha aapke iss lekhan mey. . sarv pratham aapki smaran shakti evum use itney sunder shabdon mein pirona jaise sab kuch drishti ke samney ghattit hota pratit ho raha tha, ye keval ek ishvariye den hay apko. main kabhi kabhi sochta hoon khus naseeb hain woh log jo aapkey ghanishth aur aapki nikat ta patey hey. jiwan main avsar milla to aapsey milne ko lalayit rahoonga. Kissi bhi sabhyeta mein har tarah ke insaan hote hain , yeh keval vyaktigat anubhavon ki baat hain jisme tark ka sthan nahi ho sakta. Duniya mein koi bhi sanskriti durvichar, durvyavahar aur aneytikta ko protsahan nahi deti. In sabhi behud rochak ghatnaon ko sabhi pathko ke saath share karne ke liye aapko sahasra dhanyavad.
धन्यवाद दादा इतने खूवसूरत शब्दों में कमैट देने के लिये… मै दीवाली के आसपास दिल्ली में आऊंगा.. अगर भगवान ने चाहा तो मुलाकात होगी
गुरुदेव रविन्द्रनाथ के शब्दों में
Thou hast made me endless, such is thy pleasure. This frail vessel thou emptiest again and again, and fillest it ever with fresh life.
This little flute of a reed thou hast carried over hills and dales, and hast breathed through it melodies eternally new.
At the immortal touch of thy hands my little heart loses its limits in joy and gives birth to utterance ineffable.
Thy infinite gifts come to me only on these very small hands of mine. Ages pass, and still thou pourest, and still there is room to fill.
Dear SS sir, certainly I am looking forward to that fortunate moment when I am going to meet a person whom I consider to be a complete man possessing every aspect of wisdom, character humour and knowledge. From my childhood I was very fond of Swargiye Munshi Premchand, Sarat Chandra Chattopadhyay, Bibhuti Bhushan Bandopadhyay and except Ravindra sangeet never had good exposure to the literary work of Ravindra Nath Tagore. Deeply appreciate for introducing such a wonderful work of poetry by such great man. thanks and regards
dear SS sir i am new today i reads your blogs ,very nice funny and i like your cooler jugad story and very important after spend very long time in abroad you are deeply touch with india and respect india such a great human ,thanks very much wait for your next bolg.
warms regards
tks Balvir… keep reading my other posts
Hii SS Sir,
Just read your post and I got my answer for the incidences of foreign lands.
I like Libya incidence, really very funny.
Thanks
tks sodhaji for liking the post…which answer u got ??
I had commented on your latest post on “Ghumakkari and Security”.
In that I asked for the incidence of foreign lands, after reading this I got my answer about incidence of foreign lands.
Thanks
Dear SS, a few weeks back, I recall reading a comment by you that you had written a bilingual post for the benefit of people like DL who do not read Hindi posts. While admittedly my Hindi is far from perfect, I can and do read Hindi posts. However, this comment perplexed me till today. Now I know the reason for it.
I do not know how I missed this post since Khatti-Meethi is one of my most favourite serials; I was either travelling or I was madly busy. Whatever the reason, I apologise for the delay in reading it and would like to assure you that the loss is all mine. Thanks, Gerry Sodha, since it was your comment today which drew me here.
Khatti-Meethi is a classic series and and this installment is no exception. My reaction too is mixed, mostly meethi but kuchh khatti too. By the way, I liked the picture of a young, long haired Silent Soul clad in bell bottoms.
It was heartwarming to read about the kindness of total strangers, be it Creole gentleman who returned your money or the Frenchman who guided you to the Klein Hof restaurant; as was your delight in finding Indian food after days of surviving on bread and jam; I too have experienced such incidents. The story of the Libyan and his logic was simply hilarious. We often focus on little things and fail to see the big picture.
About the Kuwaitis, I totally agree with you. There are several Kuwaiti friends of mine who are perfect gentlemen but the majority of them are boorish louts. Even the people of other Arab countries, including Saudis consider them to be an arrogant lot. When Kuwaitis wallowed in their petrodollars in the early 70’s, the rest of the Arab world was poor. This made them feel that they were God’s chosen people and their national character got infused with arrogance; even Saddam’s occupation has not taught them a lesson. They are probably the only people about whom one can generalise without being unfair.
However, except for the use of trousers as an airflow splitter, I was not impressed with the practitioners of jugaad; most of them are acts of felony; innovative perhaps, but criminal nevertheless. We have invented countless ways of circumventing the system. Our politicians, bureaucrats and businessmen have come up with innovative ways of looting the national exchequer. In my humble opinion, honesty is much more important than intelligence.
Thaks DL…. Now my post is complete with your comments. I did not mean that you dont read Hindi, what I meant was that you would be more comfortable in English. there are many who dont even read hindi, so a bilingual post is always convenient for both audiences.
Saudis are far worse than Kuwaitis… they treat everyone else as servants. I have some horrible inside tales from my consular friends about Kuwait and SA, because they had visited jails and are met by many Indians with shocking tales.
I know they were doing dishonesty, but my purpose was to show thier Jugaad-power… uneducated indians abroad are least worried about honest and the most worried about their survival.. and we should not expect honesty from a hungry stomach… even if the hunger is for C2H5OH
Thanks again…. please see again if there is another of my post which you missed (it gives me a shock when i dont find your comments in any of my post LOL)
bahut maja aaya ..padkar ..neeraj aur sandeep ko padata hoon ..par aab aapko bhi paddna jari rahega ..likhte rahiye .thanks and namaskar.