अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2010 की 18 तारीख को रात को दस बजे से अगले दिन छह बजे तक मेरी नाइट शिफà¥à¤Ÿ की डà¥à¤¯à¥‚टी थी। इस नाइट का मतलब था कि 19 को फà¥à¤°à¥€, 20 का मेरा सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• अवकाश था और 21 तथा 22 की मैने ले ली छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€; देखा जाये तो कितने दिन हो गये? चार दिन। ये चार दिन घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी में बिताने थे। हमेशा की तरह वही दिकà¥à¤•त, कहां जाऊं, किसे ले जाऊं? कोई à¤à¥€ मितà¥à¤° तैयार नहीं हà¥à¤†à¥¤ अब अकेले ही जाना था। कहां? पता नहीं। खोपोली वाले नीरज गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी को फोन मिलाया। वैसे तो वे हमेशा और सà¤à¥€ से कहते हैं कि खोपोली आओ, लेकिन आज उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ सिरे से पतà¥à¤¤à¤¾ साफ कर दिया। बोले कि यहां मत आओ, बहà¥à¤¤ गरà¥à¤®à¥€ पड रही है। मैने कहा कि साहब, गरमी-सरदी देखने लगे तो हो ली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी। बोले कि बरसात के मौसम में आ जाओ या फिर बरसात के बाद। ठीक है जी, बरसात के बाद आ जायेंगे।इस बार पकà¥à¤•ा सोच रखा था कि हिमालय की ठणà¥à¤¡à¥€ वादियों में नहीं जाऊंगा। बहà¥à¤¤ बार हो आया हूं। इस बार कहीं और चलूंगा। तय किया कि माउणà¥à¤Ÿ आबू चलो। फिर सोचा कि जबलपà¥à¤° की तरफ चलो। चाहे जाना कहीं à¤à¥€ हो, मà¥à¤à¥‡ 19 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की सà¥à¤¬à¤¹-सà¥à¤¬à¤¹ निकल पडना था। 18 की शाम हो गयी, अगले का हिसाब ही नहीं बना कि जायेगा कहां। रात को डà¥à¤¯à¥‚टी पर पहà¥à¤‚चा। खूब सोच-विचार किया। हालांकि इतना सोचने के बावजूद à¤à¥€ कहीं का रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨ नहीं कराया। इसलिये राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ या मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ का काम खतà¥à¤®à¥¤ इस बार फिर हिमालय की तरफ ही जाना पडेगा। दो विकलà¥à¤ª थे – पहला हिमाचल और दूसरा उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡à¥¤ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में रात को बसें नहीं चलतीं इसलिये मैं वहां जाने से हिचकिचाता हूं। लेकिन कब तक? इस तरह तो उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ अधूरा ही रह जायेगा। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ जाऊंगा। लेकिन फिर वहीं बात। कहां? गढवाल या कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚?
अगर गढवाल में जाना हो तो सà¥à¤¬à¤¹ छह बजे शाहदरा आने वाली हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° मेल पकडूंगा, और कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ के लिये साढे छह बजे आने वाली बरेली मेल पकडनी पडेगी। तà¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया कि अकà¥à¤·à¤¯ तृतीया वाले दिन गंगोतà¥à¤°à¥€ – यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के कपाट खà¥à¤²à¤¤à¥‡ हैं। उसके à¤à¤•-दो दिन बाद केदारनाथ-बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ के कपाट à¤à¥€ खà¥à¤² जाते हैं। मैने हिसाब लगाया। मेरे हिसाब से 16 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को अकà¥à¤·à¤¯ तृतीया थी। यहीं गडबड हो गयी। असल में 16 मई को है। मैने सोचा कि 16 तारीख को गंगोतà¥à¤°à¥€-यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के कपाट खà¥à¤² गये होंगे, अब आजकल में केदारनाथ-बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ के à¤à¥€ खà¥à¤² जायेंगे। केदारनाथ चलते हैं।
सà¥à¤¬à¤¹ साढे पांच बजे ही ऑफिस से निकल पडा। कल रात को ही अपना बैग तैयार कर लिया था। जरà¥à¤°à¤¤ का कम से कम सामान रख लिया था। शाहदरा से छह बजे अहमदाबाद से आने वाली 19105 हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° मेल पकडी और नौ बजे तक मà¥à¤œà¤¼à¤«à¤¼à¥à¤«à¤¼à¤°à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च गया। हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤‚चने के लिये मà¥à¤à¥‡ बस पकडनी थी। इस टà¥à¤°à¥‡à¤¨ का हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का समय था साढे बारह बजे, लेकिन बस दो घणà¥à¤Ÿà¥‡ में यानी गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे तक ही हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤‚चा देती है। मà¥à¤œà¤¼à¤«à¤¼à¥à¤«à¤¼à¤°à¤¨à¤—र से à¤à¤• अखबार लिया और रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के सामने से ही हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° की बस मिल गयी। अखबार पढने लगा। à¤à¤• जगह लिखा था कि केदारनाथ के इलाके में कल à¤à¤¯à¤‚कर मूसलाधार बारिश और ओले पडे थे। कई घर तबाह हो गये। कई लोग मर गये। अब छठी इनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ ने दिमाग में घणà¥à¤Ÿà¥€ बजायी। शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं मरे, गांव वाले कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मरे? तो कà¥à¤¯à¤¾ अà¤à¥€ तक कपाट नहीं खà¥à¤²à¥‡?
अब मà¥à¤à¥‡ केदारनाथ पर शक होने लगा। पता नहीं मेरे जाने तक खà¥à¤²à¥‡à¤‚गे या नहीं। इरादा बदल गया। यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ चलो। यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ जाने के लिये सबसे बेहतर है कि देहरादून से बडकोट जाया जाये, ना कि ऋषिकेश से। इस बस में मैने रà¥à¤¡à¤•ी तक का टिकट लिया। रà¥à¤¡à¤•ी से तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ ही देहरादून की बस मिल गयी। कà¥à¤² मिलाकर मैं दो बजे तक देहरादून पहà¥à¤‚च गया। देहरादून में पहाड पर जाने वाली बसें रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के पास वाले परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ बस अडà¥à¤¡à¥‡ से मिलती हैं। वहां से बडकोट जाने वाली आखिरी बस दो घणà¥à¤Ÿà¥‡ पहले यानी बारह बजे निकल चà¥à¤•ी थी। तà¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ याद आया कि जब मैं हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में रहता था तो वहां मेरा à¤à¤• दोसà¥à¤¤ बडकोट का रहने वाला था। मैने उससे समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• किया। उसने बताया कि बनà¥à¤§à¥, गंगोतà¥à¤°à¥€-यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के कपाट तो अगले महीने की 16 तारीख को खà¥à¤²à¥‡à¤‚गे। लेकिन कोई बात नहीं, तू चला जा। मैने पूछा कि à¤à¤¾à¤ˆ, कोई à¤à¤¸à¤¾ तरीका बता कि मैं जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ बडकोट पहà¥à¤‚च जाऊं। बोला कि पटेल नगर में दैनिक जागरण के पास से à¤à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤¸ वाली जीप जाती है। रात को बारह बजे चलती है और सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे तक बडकोट पहà¥à¤‚च जाती है।
अब मà¥à¤à¥‡ कम से कम नौ घणà¥à¤Ÿà¥‡ तक देहरादून में ही रहना था। समय बिताने के लिये मैं सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ चला गया। चूंकि रात का सफर था, यह सोचकर मैं सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ से वापस आकर देहरादून रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर खाली पडी बेंच पर ही सो गया। शाम को सात बजे सोया था, आंख खà¥à¤²à¥€ साढे दस बजे। वो à¤à¥€ पता नहीं कैसे खà¥à¤² गयी। मनà¥à¤¦ मनà¥à¤¦ हवा चल रही थी, मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› थकान à¤à¥€ थी और सबसे बडी बात कि मचà¥à¤›à¤° नहीं थे। हां, याद आया, सफाई वाले ने उठाया था। खाज होती है ना कà¥à¤› लोगों को। à¤à¤ˆ, तà¥à¤à¥‡ à¤à¤¾à¤¡à¥‚ मारनी थी, चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª बेंच के नीचे मार लेता, मैने तो वहां जूते à¤à¥€ नहीं निकाल रखे हैं। à¤à¤• रेलवे पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ ही होते हैं। खैर, जैसे जैसे रात होने लगी, मौसम खराब होने लगा। गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजने तक बूंदाबांदी à¤à¥€ होने लगी। पटेल नगर पहà¥à¤‚चा। वहां बडकोट, उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी, पà¥à¤°à¥‹à¤²à¤¾, शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र कई जगहों की पà¥à¤°à¥‡à¤¸ की गाडियां खडी थीं। ये गाडियां यहां से वहां तक अखबार की आपूरà¥à¤¤à¤¿ करती हैं। मà¥à¤à¥‡ चूंकि बडकोट जाना था इसलिये अपन बडकोट वाली में विराजमान हो गये। साढे बारह बजे जीप चल पडी।
मसूरी होते हà¥à¤ फिर डामटा, नौगांव होते हà¥à¤ बडकोट पहà¥à¤‚चे। मैं डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° के पीछे बैठा था। जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° समय सोता रहा। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने खिडकी का शीशा खोल रखा था, ठणà¥à¤¡à¥€ हवा आ रही थी, मैने टीशरà¥à¤Ÿ पहन रखी थी, ठणà¥à¤¡ लगने लगी। टीशरà¥à¤Ÿ निकाल दी, गरà¥à¤® इनर पहना, ऊपर à¤à¤• शरà¥à¤Ÿ पहन ली, फिर à¤à¤• चादर ओढ ली। तब जाकर तसलà¥à¤²à¥€ मिली। वैसे चादर में à¤à¤• छेद à¤à¥€ था।
बडकोट – सà¥à¤¬à¤¹ के साढे चार बजे। समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 1828 मीटर की ऊंचाई पर। ठेठहिमालयी कसà¥à¤¬à¤¾ – गढवाली। यमà¥à¤¨à¤¾ तट पर बसा हà¥à¤†à¥¤ यहां का मौसम सालà¤à¤° खासकर गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में मसà¥à¤¤ रहता है। यह उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी जिले में पडता है। यहां हर सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ उपलबà¥à¤§ है – खाने की, पीने की, रहने की, आने-जाने की। मेरे साथ उसी जीप में तीन-चार सवारियां और थीं। जाते ही मोटे-मोटे à¤à¤¬à¤°à¥‡ पहाडी कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। à¤à¥Œà¤‚के à¤à¤¾à¤‚के नहीं, बलà¥à¤•ि हमारी तरफ देखा तलक नहीं, वे तो अपनी मैडम को पटाने में लगे थे। जीप वाले ने à¤à¤• दà¥à¤•ान के चबूतरे पर अखबार पटके और चला गया वापस देहरादून। बाकी लोग à¤à¥€ यहीं के थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ à¤à¤• दà¥à¤•ान के शटर को दो तीन बार पीटा, शटर खà¥à¤² गया। यह à¤à¤• हलवाई की दà¥à¤•ान थी। चाय बनने लगी। कम से कम बैठने को जगह तो मिली। नहीं तो इंसान कैसा होता है, पता ही नहीं चल रहा था। इंसान की जात हमारे अलावा दूर दूर तक दिख ही नहीं रही थी।
पांच बज गये, उजाला होने लगा। हलचल होने लगी। बडकोट इतना बडा कसà¥à¤¬à¤¾ है लेकिन बस अडà¥à¤¡à¤¾ नाम की कोई जगह नहीं। हालांकि यह विकासनगर, देहरादून, जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€, पà¥à¤°à¥‹à¤²à¤¾, उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी से आने वाली जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° बसों का टरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤² है। बसें मà¥à¤–à¥à¤¯ बाजार में सडक पर ही खडी होती हैं। à¤à¤• तो मà¥à¤–à¥à¤¯ बाजार, फिर पहाडी सडक, दो लेन वाली। जहां à¤à¤• दà¥à¤•ान के सामने उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी जाने वाली बस खडी है, वहीं उस बस के पीछे दूसरी तरफ मà¥à¤‚ह करके देहरादून वाली बस à¤à¥€ खडी है। सà¤à¥€ बसों के पहिये सात बजे के बाद ही घूमते हैं। मà¥à¤à¥‡ जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ जाना था। वहां जाने वाली पहली बस थी साढे नौ बजे यानी तीन घणà¥à¤Ÿà¥‡ बाद। यहां से थोडी ही दूरी पर जीप सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤£à¥à¤¡ à¤à¥€ है। मालूम पडा कि चूंकि अà¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ सीजन शà¥à¤°à¥‚ नहीं हà¥à¤† है, इसलिये जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ वाली जीप मà¥à¤¶à¥à¤•िल से ही मिलेगी। काफी देर बाद à¤à¤• जीपवाला अनà¥à¤¯ सवारियों के अनà¥à¤°à¥‹à¤§ पर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ तक जाने को राजी हà¥à¤†à¥¤ वे सवारियां हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ और रासà¥à¤¤à¥‡ में पडने वाले गांवों के निवासी थे, कà¥à¤› मासà¥à¤Ÿà¤°à¤œà¥€ थे, सà¥à¤•ूल में पढाने जा रहे थे। जानकीचटà¥à¤Ÿà¥€ की कोई सवारी नहीं थी।
बडकोट से करीब 40-45 किलोमीटर दूर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ है। साढे सात बजे चलकर जीप नौ बजे वहां पहà¥à¤‚ची। रासà¥à¤¤à¥‡ की हालत उस समय बहà¥à¤¤ खराब थी। लोगों का कहना है कि उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ शासन में तो à¤à¤¸à¥€ सडक à¤à¥€ नहीं थी। कम से कम अब सडक बन गयी है, गाडियां à¤à¥€ चल रही हैं, राजधानी देहरादून से सीधी बस सेवा चल रही है। असल में अब पहाड को और काटकर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चौडी सडक बनायी जा रही है। जगह-जगह मलबा पडा है। जगह-जगह गडà¥à¤¢à¥‡ है।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ – समà¥à¤¦à¥à¤° तल से ऊंचाई लगà¤à¤— 2134 मीटर। रासà¥à¤¤à¥‡ में कई चटà¥à¤Ÿà¥€ और à¤à¥€ पडती हैं जैसे सà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€, रानाचटà¥à¤Ÿà¥€à¥¤ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ में यमà¥à¤¨à¤¾ और हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ गंगा का मिलन होता है। यहां से हिमालय की बरफ à¤à¥€ दिखने लगती है।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¥€ ने तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ गंगा पर बना पà¥à¤²à¥¤ यह सडक आगे जानकी चटà¥à¤Ÿà¥€ तक जाती है।
अà¤à¥€ मैं हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ तक ही पहà¥à¤‚चा हूं। कैमरे ने अब अपना काम शà¥à¤°à¥‚ किया है। इसलिये कम फोटो हैं। अगले à¤à¤¾à¤—ों में तसलà¥à¤²à¥€ से फोटो दिखाये जायेंगे।
Very good description Neeraj ………………………
Waiting for next one ………………………
धन्यवाद विशाल जी।
कई बार जाना हुआ है यहाँ पर, लेकिन बाइक से।
हां, भईया, बाइक के अपने मजे हैं लेकिन अखबार वाली गाडी से रात को जाने के अपने मजे हैं। देहरादून से बारह साढे बारह बजे के करीब बडकोट, उत्तरकाशी, श्रीनगर आदि जगहों के लिये अखबार की गाडियां चलती हैं जो सुबह सवेरे तय स्थान पर पहुंच जाती हैं। ये गाडियां इसलिये भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उत्तराखण्ड के पहाडों में रात को कोई वाहन नहीं चलता।
बढिया जानकारी नीरज जी , स्वागत है दोबारा से ……………फोटो कम ही सही पर आपकी तो लेखनी ही इतनी मस्त है कि फोटो की ज्यादा जरूरत नही पडती……………अगले भाग के इ्ंतजार में
यह यात्रा दो साल पहले की है। तब मैं ऐसे ही निकल जाया करता था। आजकल इस तरह निकलना नहीं हो पा रहा। लेकिन इस तरीके में मजे बहुत हैं।
कुच्छ लोगो को सच में खाज होती है! घुमक्कड़ी की खाज! हा हा हा हा
इतना अच्छा लिखा अपने की फोटो की जरुरत ख़ास महसूस नहीं हुई!
ये कपाट खुलने का क्या कांसेप्ट है? यमनोत्री, गंगोत्री, केदार और बद्री के कपाट कब खुलते हैं और इन जगहों पर जाने का सही समय कब है?
कृपया बताये!
विनय जी,
आपको पता ही होगा कि उत्तराखण्ड के चारों धाम- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ सर्दियों के दौरान बन्द रहते हैं। अक्टूबर-नवम्बर में दीवाली के आसपास इन चारों के कपाट बन्द हो जाते हैं और मई में अक्षय तृतीया पर खुलने शुरू होते हैं। अक्षय तृतीया के दो तीन दिन बाद इन सभी के कपाट खुल जाते हैं।
कपाट बन्द होने का कारण यह है कि ये चारों स्थान हिमालय में दस हजार फीट से ऊंचाई पर हैं। सर्दियों में यहां जबरदस्त बर्फ गिरती है। कपाट बन्द करते समय इनकी मूर्तियों को निचले तय स्थानों पर ले जाया जाता है- यमुनोत्री को जानकीचट्टी के पास खरसाली, गंगोत्री को मुखबा, केदारनाथ को ऊखीमठ और बद्रीनाथ को जोशीमठ ले जाया जाता है और सर्दियों भर उनकी पूजा निचले स्थानों पर ही की जाती है। जब कपाट खुल जाते हैं तो यह कह दिया जाता है कि गढवाल में यात्रा सीजन शुरू हो गया है। यानी मई से नवम्बर तक का सीजन यात्रा सीजन और नवम्बर से मई तक का सीजन ऑफ सीजन होता है। ऑफ सीजन में यहां अक्सर कोई नहीं जाता और होटल काफी सस्ते हो जाते हैं। बसों का टाइम टेबल भी दोनों सीजनों में अलग अलग रहता है। ऑफ सीजन में आप बिना परमिट के केदारनाथ और बद्रीनाथ नहीं जा सकते।
मैं यमुनोत्री गया था तो अप्रैल के शुरू में गया था यानी ऑफ सीजन में। आगे आप पढेंगे कि मैं उस दिन यमुनोत्री में किस तरह रुका था और अकेला ‘पर्यटक’ था।
नीरज जी ….
घुमक्कड़ पर वापसी पर आपका स्वागत हैं |
बिना किसी योजना के घूमने की तैयारी वो तो आप ही कर सकते हैं ….
जब मन किया, जहा मन किया चल दिए, जो मन आया खा लिया…..आपकी घुमक्कड़ी भी लाजबाब हैं |
बहुत अच्छा लेख …..फोटो कम हैं पर बहुत अच्छे हैं …..अगले लेख की प्रतीक्षा में………..
आपका दोस्त रीतेश …..
बहुत बहुत धन्यवाद रीतेश जी।
यही घुमक्कडी है, बाकी सब तो पर्यटन है। मैं असल में निकला तो केदारनाथ के लिये था लेकिन पहुंच गया यमुनोत्री। मजा आता है इस तरह।
You are blessed Neeraj to be able to do as you wish. Wishing you this streak for all times. Look fwd to next one. May be just like Sandeep and Manu, you can pick a day of the week to have a regular update for this series.
नन्दज जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
मैं अपने लिये वैसे तो दिन नहीं चुनना चाहता लेकिन फिर भी… मैं सप्ताह में एक नहीं बल्कि दो दिन चुनना चाहूंगा। पोस्ट लिखने और फोटो अपलोड करने की मेरी सारी तैयारी है। और वो तैयारी इतनी है कि मैं रोजाना पोस्ट लिखूं तो एक साल से ज्यादा चल जायेगी। इसमें मुझे नगण्य समय लगाना पडता है।
आप ही देख लो कि मुझे कौन कौन से दो दिन दोगे। फिर भी मैं मंगल और शुक्र को पसन्द करूंगा
ठीक है | मैं संपादकीय विभाग से मंत्रणा करके आपको मेल करता हूँ |
इसे कहते हैं असली यायावरी… जहां स्थान नही, यात्रा ही मंजिल होती है. पोस्ट बहुत छोटी थी संख्या मत बढाओ, विवरण बढ़ाओ ताकि कुछ देर पढ़ तो सकें.
साइलेण्ट साहब, कोशिश करूंगा। हालांकि ऐसा करना अब सम्भव नहीं है क्योंकि यह पहले से ही लिखी रखी है मेरे पास। हां, दो चार लाइनें बढ सकती हैं। फिर भी कोशिश करूंगा और ज्यादा विवरण देने की।
विस्तृत विवरण के लिए धन्यवाद!
आपका ब्लॉग देखा मैंने आज, अच्छा बनाया है! जैसे जैसे समय मिलेगा, पढ़ा करूँगा!
तो आपकी यह यात्रा ऑफ सीज़न के कारण कुछ हटके रहेगी! पढने के लिए और भी उत्सुक हो गया हूँ! जल्दी ही अगला भाग लिखयेगा!
लगे रहिये विनय भाई। घुमक्कडी जिन्दाबाद।
ऑफ सीजन में यात्रा करने के अपने मजे हैं। जो कमरा सीजन में 600 तक का मिलता है वही ऑफ सीजन में 100-150 का हो जाता है।
नीरज जी , आपकी यह घुमक्कड़ी बहुत ही सुंदर तथा साहसिक थी यह मैंने पहले भी पड़ी हे कृपया इस यात्रा के पुरे फोटो देना.
आपके एक मास पश्चात् मैंने भी यह यात्रा की थी तथा सारे फोटो में बरफ गायब थी
काश! मेरे समय में भी गायब होती तो मैं सप्त ऋषि कुण्ड चला गया होता।
नीरज भाई, आप जैसा जिंदादिल इंसान मिलना मुश्किल है. घुमक्कड़ी एक धर्म है और आप इसे धर्म कि तरह मानते है. आपके इस जज्बे को मैं सलाम करता हू. काफी शानदार यात्रा चल रही है, और अच्छी जानकारी भी मिली. सुन्दर यात्रा वृतांत के लिए धन्यवाद.
मैं भी ७ मई को चार धाम कि यात्रा पर जा रहा हू. कुछ बातों को आपसे जानना चाहता हूँ-
१. ९ मई को सुबह मैं ऋषिकेश से या देहरादून से बस बस द्वारा यमुनोत्री के लिए जाऊ. और बस मुझे कितने बजे मिलेगी या बसों का टाइम टेबुल क्या है? देहरादून के और ऋषिकेश के बस स्टैंड का फोन नंबर क्या है?
२. गोमुख जाने के लिए परमिसन कहाँ से मिलती है? क्या इंटरनेट से भी गोमुख जाने कि परमिसन (बुकिंग)मिल सकती है?
नीरज भाई, आप जैसा जिंदादिल इंसान मिलना मुश्किल है. घुमक्कड़ी एक धर्म है और आप इसे धर्म कि तरह मानते है. आपके इस जज्बे को मैं सलाम करता हू. काफी शानदार यात्रा चल रही है, और अच्छी जानकारी भी मिली. सुन्दर यात्रा वृतांत के लिए धन्यवाद.
मैं भी ७ मई को चार धाम कि यात्रा पर जा रहा हू. कुछ बातों को आपसे जानना चाहता हूँ-
१. ९ मई को सुबह मैं ऋषिकेश से या देहरादून से बस बस द्वारा यमुनोत्री के लिए जाऊ. और बस मुझे कितने बजे मिलेगी या बसों का टाइम टेबुल क्या है? देहरादून के और ऋषिकेश के बस स्टैंड का फोन नंबर क्या है?
२. गोमुख जाने के लिए परमिसन कहाँ से मिलती है? क्या इंटरनेट से भी गोमुख जाने कि परमिसन (बुकिंग)मिल सकती है??
चन्द्रेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी यात्रा पसन्द आई।
और असली बात यह है कि आपकी दोनों बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मैं यमुनोत्री मात्र एक बार गया हूं और वो भी अखबार वाली में अखबारों के ऊपर बैठकर। और गंगोत्री तो मैं आजतक नहीं गया।
फिर भी, देहरादून और ऋषिकेश दोनों जगहों से सुबह सवेरे खूब बसें मिलेंगीं बडकोट या फिर जानकीचट्टी के लिये। आप अगर ऋषिकेश से बस पकडोगे तो यह ध्यान रखना कि सरकारी बस अड्डे से मत पकडना। अगर वहां जाते ही आपको बस खडी दिख जाये तो पकड लेना नहीं तो तुरन्त टिहरी बस अड्डे चले जाना। वह प्राइवेट बस अड्डा है और पहाड पर जाने वाली प्राइवेट बसें वहीं से संचालित होती हैं। उत्तराखण्ड में सरकारी बसों के मुकाबले प्राइवेट बसें ज्यादा चलती हैं।
Thanks for refreshing the old memories, I also have been to Yamnotri & Gangotri.
https://www.ghumakkar.com/2010/07/02/scenic-spots-on-the-way-to-divine-yatra-yamnotri/
Beautiful narration Neeraj Bhai… I have the same problem as yours. It becomes very difficult for me to chose a place in advance. It really is the journey that matters not the destination. I have also have had experience of traveling by Press Jeeps a when i went to Vally of flowers. They charge a bit extra but save a lot of waiting time. Aap ke agle post ka intezaar rahega…
धन्यवाद हरीश जी,
देहरादून के साथ साथ हल्द्वानी से भी प्रेस की गाडियां चलती हैं, जो कुमाऊं के अंदरूनी हिस्सों तक सुबह सवेरे तक पहुंचा देती हैं। लेकिन मुझे यह नहीं पता कि वे मिलती कहां से हैं।
नीरह भाई ………. मज़ा आ गया
आपका यात्रा करने का और प्लानिंग करने का तरीका बहुत लाजवाब है …….. और लोगों की खाज का तो क्या कहना !!!!!! हा हा हा
आपकी अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा ……… और हाँ अगली बार आप हमें कहीं और की सेर कराओ ……. जैसे मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र
धन्यवाद
गिरिराज की,
मेरा इरादा है कि घुमक्कड डॉट कॉम पर मैं केवल ट्रेकिंग और रेल यात्रा ही लिखा करूंगा। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की यात्रा पढने के लिये आपको मेरे ब्लॉग पर जाना पडेगा।
नीरज भाई,
हमारी विनती स्वीकार करने तथा थोड़े समय की नाराज़गी के बाद घुमक्कड़ पर दोबारा अवतरित होने के लिए के लिए ह्रदय से आभार. आपकी पोस्ट के बिना घुमक्कड़ पर कुछ मज़ा नहीं आ रहा था. आशा है अब आप हमेश अपनी पोस्टों के माध्यम से हमसे जुड़े रहेंगे.
धन्यवाद मुकेश जी,
आप लोगों से नाराज होकर मैं कहां जाऊंगा? कोशिश करूंगा कि अब लगातार लिखता रहूं।