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Exploring Udaipur City Palace

प्रिय मित्रों,

अभी तक हम माउंट आबू घूम रहे थे और दो दिन ज्ञान सरोवर में ज्ञान-गंगा में डुबकियां लगा कर, नक्की लेक में बोटिंग करके, पीस पार्क में पिकनिक मना कर और बाबा के कमरे में समाधिस्थ होकर वापस उदयपुर लौट चुके हैं।  उदयपुर में भी भारतीय लोक कला भवन, राणा प्रताप मैमोरियल (मोती मागड़ी), वीर स्थल और शिल्पग्राम देखा जा चुका है। थोड़ी सी सैर बाज़ार की भी कर ली गई है। अब आज का दिन सिटी पैलेस के नाम ….

हमारे होटल के कमरे की बालकनी से हमें बुलाता हुआ सिटी पैलेस !

उदयपुर पहुंच कर हम अपने होटल के बरामदे से जिन दो महलों को टकटकी लगाये देखते रह गये थे, वह थे लेक पैलेस और सिटी पैलेस!  रात हो या दिन, पिछोला झील के मध्य, अपनी सुन्दरता से मुग्ध करता हुआ लेक पैलेस विश्व भर में प्रसिद्ध है और the most romantic hotel of the world के रूप में चयनित हो चुका है।  वहीं दूसरी ओर, सिटी पैलेस लेक पिछोला के दूसरे तट पर एक राणा मागड़ी नामक पहाड़ी पर स्थित है और एक विशाल दुर्ग जैसा अनुभव होता है। इसकी छवि भी पिछोला झील में जब झिलमिलाती है तो मन मोह लेती है।  अंबराई होटल में भी जब हम भोजन करने गये थे तो मेरे ठीक सामने सिटी पैलेस था, होटल में अपने कमरे की बालकनी से बाहर झांका तो वहां भी, सिटी पैलेस आवाज़ लगा कर बुलाता सा अनुभव हुआ। माउंट आबू से वापिस आने के बाद मैं बेताब था कि सिटी पैलेस देखने का नंबर कब आयेगा। हमें बताया गया था कि लेक पैलेस देखना तो बहुत महंगा पड़ेगा। जहां तक मुझे ध्यान आ रहा है, एक टिकट 800 रुपये के आस-पास का था जिसमें एक कोल्ड ड्रिंक भी शामिल था।  कैमरे का टिकट अलग !  ऐसे में हमने उधर की ओर रुख भी नहीं किया क्योंकि हम घर से यह प्रण करके चले थे कि जाने-आने, घूमने-फिरने और होटल में ठहरने पर प्रति परिवार अधिकतम 20,000 खर्च करेंगे इससे अधिक कतई नहीं! अगर सामान खरीदना हुआ तो वह खर्च अलग रहेगा।  ऐसे में लेक पैलेस से “कोई दूर से आवाज़ दे, चले आओ!”  आवाज़ें सुन कर भी अनसुना करने के लिये हम विवश थे।  पर दूर पहाड़ी से सिटी पैलेस गाये जा रहा था – “आयेगा !  आयेगा !! आयेगा आने वाला, आयेगा !!!  और मात्र 30 रुपये प्रति व्यक्ति में हमें लालच भरा आमंत्रण दे रहा था।  (कैमरे के 200 रुपये अलग अर्थात्‌ कुल खर्चा 320 रुपये!)

तो साहब, सुबह पोहा, जलेबी, भरवां परांठे और दही का नाश्ता लेकर हमने सीधे सिटी पैलेस की ओर रुख किया। सिटी पैलेस की पश्चिमी दिशा की दीवारें लेक पिछोला की ओर से दिखाई देती है और पूर्वी दिशा उदयपुर शहर की ओर है।  हम अपने होटल में से सिटी पैलेस का जो हिस्सा देख पा रहे थे, वह इस महल की पूर्वी दिशा थी।  सिटी पैलेस खुद उत्तर – दक्षिण दिशा में लंबाई में राणा मागड़ी नामक पहाड़ी पर बसा हुआ है।

सिटी पैलेस की शुरुआत महाराणा प्रताप के पूज्य पिताजी महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय ने सन्‌ 1559 में अपने पोते अमर सिंह प्रथम के जन्म के बाद एक साधु गोस्वामी प्रेम गिरि जी महाराज के निर्देश पर कराई थी।  बाद में इसमें निरंतर संवर्द्धन होता रहा है जिसका श्रेय विशेष रूप से राणा करण सिंह, राणा संग्राम सिंह द्वितीय, महाराणा सज्जन सिंह और महाराणा फतेह सिंह को जाता है। बावजूद इस तथ्य के कि इसका निर्माण कई राजाओं ने अपने अपने काल खंड में कराया है, इस विशालकाय परिसर का डिज़ाइन और वास्तुकला इस प्रकार की है कि यह सब विस्तार अलग से थोपे हुए नहीं बल्कि मूल योजना के ही अभिन्न अंग लगते हैं।  सिटी पैलेस में उपलब्ध सामग्री को समय के साथ – साथ नष्ट होने से बचाने के लिये वर्ष 1969 से महाराणा भागवत सिंह द्वारा इसे एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है ।

Uphill towards City Palace (South entrance)

The Security Guard at the Sourthern Entrance.

इस सिटी पैलेस  में प्रवेश के लिये दो मुख्य मार्ग हैं।  मुख्य मार्ग उत्तर दिशा में बाडी पोल की ओर से जगदीश मंदिर के आगे से होता हुआ त्रिपोलिया पर आकर समाप्त होता है।  दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में चन्द्र चौक की ओर से है और सूरज पोल पर आकर समाप्त हो जाता है। इस प्रकार त्रिपोलिया और सूरज पोल उत्तर और दक्षिण छोर पर स्थित प्रवेश द्वार हैं। सूरज पोल के पास फतेह प्रकाश हैरिटेज होटल और शिव निवास हैरिटेज होटल हैं जो वास्तव में सिटी पैलेस का ही हिस्सा हैं और सिटी पैलेस के वर्तमान संरक्षक श्री अरविन्द सिंह मेवाड़ और उनकी संतानों की  संपत्ति हैं और उनके ही दिशा-निर्देश में चल रहे हैं।

Tripolia – the northern entrance to the Manik Chowk courtyard of City Palace, Udaipur

Car Parking inside Tripolia at Manik Chowk.

उत्तर दिशा में स्थित त्रिपोलिया प्रवेश द्वार की भी अपनी एक दास्तान है। त्रिपोलिया अर्थात्‌ तीन पोल या तीन गेट! इसका निर्माण सन्‌ 1710 में महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने कराया था और इसके ऊपर हवा महल लगभग 100 वर्ष बाद महाराजा भीम सिंह ने बनवाया था। वास्तुकला की दृष्टि से त्रिपोलिया का महत्व बहुत अधिक है पर अपुन को वास्तुकला की कोई गंभीर जानकारी नहीं है।  इस प्रवेश द्वार के दायें हिस्से में उसी समय से चला आ रहा हनुमान मंदिर है जिसमें आज भी प्रतिदिन पूजा की जाती है। यह बहुत भव्य प्रवेश द्वार है, इतना भव्य कि हमने इसमें से सिटी पैलेस में प्रवेश ही नहीं किया!  इसका उपयोग हमने बाद में पैलेस से बाहर शहर में आने के लिये किया था।  दर असल, जो लोग अपनी कार या चार्टर्ड बस से सिटी पैलेस देखने आते हैं, उनको दक्षिण दिशा से, यानि सूरज पोल की ओर से प्रवेश करना होता है। त्रिपोलिया की तरफ केवल 15-20 कारों की पार्किंग के लायक ही स्थान उपलब्ध है।

A tourist bus on its way back to the city from City Palace.

रास्ते में एक बैरियर से पहले म्यूज़ियम में प्रवेश हेतु टिकट खरीदने के लिये टैक्सी रोकी गई और हम चारों के लिये और साथ ही मेरे कैमरे के लिये कुल मिला कर 320 रुपये के टिकट खरीदे गये और इसके बाद पूरे ठसके से हमारी टैक्सी ने राणा मागड़ी नामक इस पहाड़ी पर आगे बढ़ना आरंभ किया।  हमारे दाईं ओर पिछोला झील चल रही थी।  अचानक एक मोड़ पर आकर टैक्सी रुकी और हम सब को उतरने का इशारा हुआ। बाहर आकर इधर – उधर गर्दन घुमाई तो गर्दन घूम ही गई। वाह जी वाह! क्या धांसू दृश्य था!  पिछोला के तट पर एक अति सुसज्जित open air रेस्टोरेंट था जिसमें मेजें और मेजों पर क्राकरी और नैपकिन हमें जोर जोर से आवाज़ लगा कर बुला रहे थे। इसे Sunset Terrace कहते हैं ! अगर जेब में काफी सारे गांधी जी हों तो शाम को आप यहां बैठ कर चाय पीते हुए लेक पैलेस के पीछे सूर्यास्त होता हुआ देख सकते हैं । महंगी वाली चाय पीने के बाद अगर लेक पैलेस को और नज़दीक से देखने की तमन्ना सिर उठाने लगे और सिर झुका कर यहां से झील में छलांग लगा दी जाये तो मात्र 50 बार हाथ-पैर मार कर आप लेक पैलेस के प्रवेश द्वार तक पहुंच सकते हैं।

Sunset Terrace Restaurant against backdrop of Fateh Prakash Palace HRH Hotel, Udaipur

The soothing presence of Lake Pichhola and the Lake Palace as seen from Sunset Terrace, City Palace

Majestic Fateh Prakash Heritage Hotel at City Palace

Let’s pose before entering City Palace from Southern Gate (Suraj Pol)

दायें ओर का दृश्य देखने के बाद गर्दन सामने की ओर घुमाई तो हमारे ठीक सामने गर्व से सीना ताने फतेह प्रकाश पैलेस हैरिटेज होटल खड़ा था।  बाईं ओर गर्दन घुमाई तो सिटी पैलेस की सबसे ऊंची मंजिल देखने के प्रयास में गर्दन को 90 डिग्री ऊपर आकाश की ओर घुमाना पड़ गया।  हमने बड़ी उत्सुकता से होटल फतेह प्रकाश पैलेस की ओर बढ़ना शुरु ही किया था कि किसी ने बड़े प्यार और इज़्ज़त से समझाया कि वह द्वार 30 रुपये टिकट वालों के लिये नहीं है। 30 रुपये में सिर्फ म्यूज़ियम ही देखा जा सकता है। हम अपना सा मुंह लेकर उधर चल दिये जिधर म्यूज़ियम था।  यह म्यूज़ियम फाग वाले दिन को छोड़ कर पूरे वर्ष खुलता है।  खुलने का समय सुबह 9.30 बजे है और म्यूज़ियम में प्रवेश हेतु टिकट 4.45 सायं तक मिलते हैं।  संग्रहालय शाम को साढ़े पांच बजे बन्द हो जाता है।  शाम को 4.45 पर टिकट खरीदने की एक ही वज़ह हो सकती है कि आप सिटी पैलेस म्यूज़ियम में अपनी पत्नी या अपना कैमरा भूल आये हों और उसे लेने वापिस महल में प्रवेश करना चाहें। वरना भला पौन घंटे में सिटी पैलेस को कैसे देखा जा सकता है?

खैर जी,  सूरज पोल से प्रवेश कर हम आगे बढ़े तो एक विशाल प्रांगण में आ पहुंचे।  इतना बड़ा प्रांगण कि बस आपको क्या बतायें ! पढ़े लिखे लोगों का कहना है कि इस आयताकार प्रांगण का आकार 3547.16 वर्ग मीटर है। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि यह राजस्थान का सबसे बड़ा प्रांगण है।  और एक भयानक बात !  विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि ये प्रांगण वास्तव में एक छत है और इसके नीचे अनाज रखने के लिये विशाल आकार के कई सारे गोदाम हैं। अगर युद्ध की स्थिति आ जाये तो पूरी सेना का कई मास तक पेट भरने के लिये पर्याप्त अन्न का भंडार इसके नीचे सुरक्षित रहा करता था।  इस प्रांगण को हिन्दी में माणिक चौक कहते हैं (अंग्रेज़ी में भी)।

Entering the Manik Chowk, Rajasthan’s largest and the most beautiful courtyard.

 

Rectangular, low height fountains in Manik Chowk, City Palace.

The majestic, imposing 4-storied structure of City Palace – an architectural marvel.

Palkikhana and Aashka Boutique at Southern End of Manik Chowk courtyard

Another view of Palkikhana Restaurant

Palkikhana Restaurant in Manik Chowk courtyard at City Palace Udaipur

जब हम इस प्रांगण में पहुंचे तो वहां छोटे – छोटे चौकोर हौद में पानी के फव्वारे चल रहे थे।  फव्वारों के बाईं ओर सिटी पैलेस की चार-मंजिला इमारत खड़ी थी – हमारे ठीक सामने त्रिपोलिया था (इतनी जल्दी भूल भी गये?  अरे, वही दूसरा वाला प्रवेश द्वार जिसमें से बाहर निकलते ही जगदीश मंदिर आ जाता है।)  फव्वारों के पास में एक रेस्तरां था।  इसका नाम पालकीखाना रेस्तरां हैं।  ये रेस्तरां भी बड़ी हाई-फाई टाइप की चीज़ लग रही थी, कुछ कुछ ऐसी कि जहां 10 रुपये का शीतल पेय शायद 100 रुपये का बिकता होगा।  अपुन ठहरे हाई-वे पर ढाबों की 40 रुपये की मदमस्त मक्खन वाली दाल-फ्राई का लुत्फ उठाने वाले और खाना खाने के बाद मटके का शीतल जल पीने वाले!  हम भला 10 रुपये के कोल्ड ड्रिंक के 100 रुपये क्यों देने लगे?  चलिये खैर, आप तो माणिक चौक का किस्सा सुनिये।

ये माणिक चौक कोई ऐसा – वैसा प्रांगण नहीं है। इस माणिक चौक में सदियों से महाराणा और उदयपुर की जनता होली – दीवाली – दशहरा का आनन्द उठाते आये हैं और पहले कभी यहां हाथियों की लड़ाई भी एक खेल के रूप में खेली जाती थी। अंग्रेज़ों द्वारा यहां पर पोलो खेले जाने के भी समाचार हमें प्राप्त हुए हैं।  महाराणा और उनके दरबारी और राजकीय अतिथि मुख्य भवन की मर्दानी ड्योढ़ी में बैठ कर यह खेल देखते थे, महारानियां प्रथम तल पर स्थित जनानी ढ्योढ़ी में बैठती थीं और जनता सिटी पैलेस के ठीक सामने एक मंजिला इमारत की टैरेस पर जिसे हथनल का पैगा जैसा कुछ कहते हैं।

बताया जाता है कि आज भी यहां पर साल में दो-चार प्रोग्राम होते रहते हैं और महाराणा के परिवार की आजकल 76वीं पीढ़ी के रूप में श्री अरविन्द सिंह मेवाड़ हैं जो अति विशिष्ट अतिथियों की मेज़बानी करने के लिये सपरिवार उपस्थित रहते हैं।  सिटी पैलेस के ठीक सामने वाली दीवार वास्तव में कमरों की एक लंबी श्रॄंखला है। इन कमरों के ऊपर छत पर जनता के बैठने की व्यवस्था की जाती है।

अगर आपको श्री जी अरविन्द सिंह मेवाड़ के बारे में और जानने की उत्सुकता हो तो उनकी शिक्षा- दीक्षा पहले उदयपुर के स्कूल और कालेजों में हुई और फिर उन्होंने होटल मैनेजमैंट का कोर्स इंग्लैड से किया है।  आप धुआंधार क्रिकेटर हैं और पहले अपने स्कूल, कॉलिज, फिर विश्वविद्यालय और अन्ततः राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।  आप वायुयान उड़ाने के भी शौकीन हैं और प्रयास कर रहे हैं कि उनके व्यक्तिगत एयर पोर्ट को कॉमर्शियल एयरपोर्ट के रूप में मान्यता मिल जाये। उनके पास अपने कुछ वायुयान भी हैं।  मैने उनका मोबाइल नंबर जानना चाहा था पर किसी ने बताया ही नहीं !

Toran Pol i.e. the entry into the main City Palace complex

माणिक चौक के महात्म्य का वर्णन करने के बाद अब हम सिटी पैलेस के मुख्य भवन में प्रवेश कर सकते हैं।  इस द्वार का नाम तोरण पोल है। सबसे पहले हमारे सम्मुख आता है – राय आंगन !  इसे आप शाही आंगन भी कह सकते हैं! यह सिटी पैलेस का सबसे पहले निर्मित वर्गाकार आंगन है जो सन्‌ 1620 में राणा कर्ण सिंह ने बनवाया था। पहले यह महिलाओं के लिये था पर बाद में यह पुरुषों के प्रयोग के लिये आरक्षित कर दिया गया।  थैंक गॉड !  एक चीज़ तो ऐसी देखने को मिली जो पहले महिलाओं की थी, बाद में पुरुषों की हो गई।  हमारे सहारनपुर में तो मेयर की सीट भी पुरुषों की नहीं रही, महिलाओं के लिये आरक्षित हो गई है।  इस राय आंगन में न जाने कितने राणाओं का राज्याभिषेक हुआ है और इसी कारण इस राय आंगन का आज भी सर्वाधिक महत्व है।

Rai Angan (Royal Courtyard) where several Maharana’s coronation have been taking place.

अब अगर मैं आपसे अपने दिल की सच्ची सच्ची बात बताऊं तो अन्दर इतने सारे कमरे, इतने सारे दालान और इतने सारे जीने थे कि सब गड्ड – मड्ड हो गया है। पर मेरी इसमें कुछ खास गलती नहीं है।  दर असल हम लोगों के साथ ढेरों अंग्रेज़ भी चल रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि इन तीन सौ साल पहले के महाराणाओं के उपयोग में आने वाले विभिन्न कमरों, दालानों, बिस्तरों, गाव – तकियों, सिंहासनों पर ध्यान दूं या या इन अंग्रेज़ों के शानदार कैमरों को देखूं!  मैं तो उनके कैमरों की लंबी – लंबी ज़ूम लैंस को देख-देख कर ही मस्त हुआ जा रहा था। क्या करें भई, अपना अपना इंटरेस्ट है।

फिर भी, मुझे मोर चौक की भली भांति याद है जिसकी मैने कुछ फोटो भी ली थीं।  राजस्थान में मोर पक्षी का हमेशा से विशेष महत्व रहा है।  ये पहली, दूसरी या तीसरी मंजिल पर एक ऐसा प्रांगण था जिसकी दीवारों पर हरे, नीले, सुनहरे रंग के कांच शीशों से पांच मोर बने हुए हैं। एक उत्तर में, एक दक्षिण में और तीन मोर चौक नामक उस प्रांगण की पूर्वी दीवार में।  जहां तक मुझे याद है, इस मोर चौक की पश्चिमी दिशा की एक खिड़की में अपनी धर्मपत्नी को बैठा कर यह कहते हुए एक फोटो भी मैने खींची थी कि मैं उनकी झील सी गहरी आंखों की फोटो खींचना चाहता हूं पर उनका धूप का चश्मा उतारने के लिये कहना भूल गया। सांत्वना स्वरूप उनके पीछे दिखाई दे रही पिछोला झील और उसमें मौजूद लेक पैलेस तो फोटो में आ ही गये।

Mor Chowk, a courtyard of peacocks.

चश्मे के पीछे पिछोला झील सी आंखें और लेक पैलेस से सफेद चमचमाते दांत ! :D

एक कमरा पुस्तकालय के रूप में था जिसे वाणी विलास नाम दिया गया था।  यदि आपको महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा फतेह सिंह, महाराणा जगत सिंह आदि आदि महाराणाओं के दरबार, उनकी बैठकें, उनकी जनानी दहलीज आदि के बारे में बहुत विस्तार से समझने में बहुत रुचि है तो आप यहां पर हर रोज़ आते रहें और अपना शोध प्रबंध लिख लें।  मुझे तो वहां एक कमरे में रखा हुआ एक पंखा बड़ा मज़ेदार लगा जिसको चलाने के लिये 220 वोल्ट का करेंट नहीं, बल्कि मिट्टी का तेल चाहिये होता है।  तेल जलता है तो उसकी गर्मी से वायु का दबाव बनता है।  वायु के इस दबाव से टरबाइन जैसा पंखे का कुछ अंदरूनी हिस्सा घूमता है और उससे पंखड़ियां घूमती हैं।  भई, वाह !  मैने कहा कि भई, इसे चला कर दिखाओ तो किसी ने कह दिया, सिर्फ 30 रुपये का टिकट है ना? तुम कोई राहुल गांधी या रॉबर्ट वाड्रा नहीं हो!  चुपचाप आगे बढ़ चलो!

Royal room inside City Palace.

Coloured glasses were a favourite of Maharanas

Let’s sit in this balcony inside City Palace.

Kerosene powered fan in Vani Vilas library inside City Palace.

आगे बढ़े तो छत से झांकने पर एक और प्रांगण दिखाई दिया।  बताया गया कि यहां रवीना टंडन की शादी हुई थी।  जरूर हुई होगी, हमें तो निमंत्रण मिला नहीं था शादी का, हमारी बला से!  सच पूछो तो रवीना शादीशुदा है या कुंवारी है – हमें इसमें भी कोई रुचि नहीं है। हमारे लिये तो हमारी अपनी श्रीमती जी ही रवीना, ऐश्वर्या, माधुरी, सीता, सावित्री, गार्गी, विद्योत्तमा, तिलोत्तमा सब कुछ हैं। (यह लाइन मैने उनको पढ़वाने के लिये ही लिखी है!)

सिटी पैलेस को समझना हो तो आप कुछ कुछ यूं समझें कि ये उत्तर – दक्षिण दिशा में लंबाई में बनाया हुआ महल-कम-दुर्ग-कम-होटल-कम-संग्रहालय है।  अगर आप 49,999 रुपये तथा उस पर विलासिता कर यानि luxury tax और  VAT दे सकते हैं तो आप फतेह प्रकाश पैलेस या शिव निवास पैलेस होटल में से किसी एक होटल में एक रात रुक भी सकते हैं।  अगर आप सोनिया गांधी के दामाद हैं और रातोंरात अरबपति बन चुके हैं तो आप अपने बच्चों का विवाह भी इन HRH Heritage hotels में से किसी एक में आयोजित कर सकते हैं।  पर अगर आप 30 रुपये में सिटी पैलेस म्यूज़ियम देखने आये हैं तो आप शानदार हवेलियां देखिये, कमरों में सजाये हुए पंखे, बिस्तरे, मूढ़े आदि देखिये, अद्‍भुत  वास्तुकला देखिये, अंग्रेज़ पर्यटकों को निहारिये,  200 रुपये कैमरे के लिये देकर फोटो वगैरा खींचिये और संकरी गली से बाहर निकल लीजिये।

चलिये सिटी पैलेस के संरक्षकों के बारे में थोड़ा सा ज्ञान और दे दिया जाये।  श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ की बड़ी सुपुत्री श्रीमती भार्गवी कुमारी मेवाड़ बहुत भव्य व्यक्तित्व की मालकिन हैं। उन्होंने माणिक चौक में पालकीखाना रेस्तरां के ऊपर एक बुटीक खोला हुआ है जिसमें भारत भर की हस्तकला के विश्वसनीय नमूने बिक्री हेतु उपलब्ध हैं। इस बुटीक का नाम है – Aashka।  खुद भार्गवी जी अपने क्रिकेटर पतिदेव के साथ जयपुर में निवास करती हैं।

भार्गवी कुमारी मेवाड़ की एक छोटी बहिन भी हैं जिनका शुभ नाम पद्मजा कुमारी मेवाड़ है जो फतेह प्रकाश होटल और शिव निवास होटल आदि की एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर वगैरा कुछ हैं। श्री अरविन्द कुमार मेवाड़ के एक पुत्र भी हैं – श्री लक्ष्यराज मेवाड़ जिनको आप चाहें तो फेसबुक पर भी देख सकते हैं।

क्रमशः श्री अरविन्द मेवाड़, श्रीमती विजयराज कुमारी मेवाड़, श्रीमती भार्गवी कुमारी मेवाड़, श्रीमती पद्मजा कुमारी मेवाड़, श्री लक्ष्यराज मेवाड़ ! साभार – Eternal Mewar.

पूरा सिटी पैलेस देखने और समझने के लिये 250 रुपये में ऑडियो टूर भी उपलब्ध है जिसमें प्रवेश शुल्क भी शामिल है।  मैने इसका सदुपयोग नहीं किया पर मुझे लगता है कि अगर किया होता तो आपको और विस्तार से सिटी पैलेस के बारे में बता सकता था।

सिटी पैलेस से हम बाहर निकले तो त्रिपोलिया की ओर से हमें बाहर निकलने का रास्ता दिखा दिया गया।  हमारी चिन्ता ये थी कि गाड़ी तो हमने Sunset Tarrace और फतेह प्रकाश होटल के पास वाली पार्किंग में खड़ी की थी और हम आ पहुंचे हैं त्रिपोलिया के पास जगदीश मंदिर के पास यानि शहर के मध्य में।  अपने बाबू राम को कहां ढूंढें?  पर तभी हमें ईश्वर की अनुकंपा और आप सबके आशीर्वाद से अपना बाबूराम सामने ही हाथ से इशारा करता हुआ दिखाई दे गया। मैने उससे पूछा कि वह बाबू का जुड़वां भाई है क्या क्योंकि अपने बाबूराम को तो हम पिछोला झील पर पार्किंग में छोड़ आये थे।  इस पर वह हंसने लगा और बोला कि हम अब भी पिछोला के बिल्कुल नज़दीक ही हैं।  यहां त्रिपोलिया के पास एक फैंसी शोरूम देख कर श्रीमती जी ने इशारा किया कि चलो, यहां कुछ देर पैरों को विश्राम देते हैं।  वहां से २,००० के करीब का सामान लेकर वह निकलीं और आज पांच साल बाद भी मुझे उलाहना देती हैं कि मेरी वज़ह से ही ये सब बेकार का सामान उन्होंने खरीदा था। पर चलो, ये तो पुरुषों की किस्मत में लिखा ही होता है। पैसे भी खर्चते हैं और फिर उलाहना भी सुनते हैं।

सिटी पैलेस घूमते और घुमाते – घुमाते मैं भी थक गया हूं, अतः अब आपको लंच के लिये एक ऐसी जगह लेकर चलते हैं जहां वर्ष 1924 की Rolls-Royce से लेकर 1956 की Morris तक सारी विंटेज कार देखने को मिलती हैं – यानि मेवाड़ के महाराणा परिवार की नितान्त पर्सनल कारों का गैराज़ जहां राजस्थानी खाना भी आपको खिलाया जायेगा।  पर अभी एक छोटा सा कॉमर्शियल ब्रेक! तब तक के लिये विदा दें!

Exploring Udaipur City Palace was last modified: December 30th, 2024 by Sushant Singhal
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