हरिद्वार से केदारनाथ

3 वर्ष पहले की बात है जब हमारे आफ़िस  के सहकर्मी पहाड़ो पर घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे थे. इस तरह के टूर प्रोग्राम के लिए हमे  कंपनी के डाइरेक्टर से छुट्टी लेनी थी. आमतौर पर हमे 3 दिन की छुट्टी मिलती थी. पर इस बार स्टाफ के कुछ लोगो ने डाइरेक्टर से 5 दिन की छुट्टी मनाली जाने के लिए ले ली. जब मुझे पता लगा तो मैने कहा अब जब 5 दिन की छुट्टी मिल गयी है तो मनाली से तो अच्छा है बद्रीनाथ धाम चलो. हमलोग 5 दिन मे बहुत आराम से बद्रीनाथ धाम हो कर आ सकते हैं. मनाली तो फिर कभी हो आएँगे ,पर उनके सर पर तो मनाली जाने का भूत सवार था. कुछ तो मेरी बात से सहमत भी हो गये पर अधिकतर मनाली जाने के मूड मे थे. बद्रीनाथ धाम के बारे मे मैने जो पढ़ा था वह ऑफीस स्टाफ के साथ मेल भेज कर शेयर भी किया

. “It has been said that “there were many sacred spots of pilgrimage in the heaven, earth and The other world but neither is there any equal to Badrinath nor shall there be one.”

With its great scenic beauty and attractive recreational spots in the vicinity, Badrinath attracts an ever-increasing number of secular visitors each year.

पर आज कल के बहुत कम युवाओ मे धार्मिक भावनाए देखने को मिलती हैं.ज्यादातर मौज मस्ती के लिए हिल स्टेशन पर ही जाना पसंद करते है. एक तो बोला , मेरी माँ कहती हैं कि इन जगहों पर बूढ़े होने पर जाना चाहिए . कैसे – कैसे लोग और कैसी इनकी समझ. सुन कर इन कम बुद्धि वालों पर गुस्सा आता है .जबकि मै समझता हूँ कि युवावस्था मे ही इन स्थानो पर जाना चाहिए तभी यात्रा का असली आनंद लिया जा सकता है.

बात आई गयी हो गयी पर मन मे यह बात बैठ गयी इस बार ना सही तो अगली बार बद्रीनाथ जाएँगे अवश्य अगले वर्ष फिर प्रोग्राम बनाया पर बन नहीं सका. इस बीच मे आफ़िस  की एक लेडी बोली  केदारनाथ धाम चलो तो मै भी अपने पति के साथ चलूंगी.केदारनाथ के बारे मे सुना था की 14 किलोमीटर की बहुत कठिन चढ़ाई है.सबके लिए वहाँ जाना संभव नही. और हम तो शहरी जीवन के कुछ इस तरह अभ्यस्त हो गये है कि  थोड़ी दूर भी पैदल चला नही जाता. अगर तीसरी मंज़िल पर भी  जाना है तो लिफ्ट का इंतजार करते है. इसलिए वहाँ जाने के बारे मे कभी सोंचा ही नही. परन्तु पता नही किस तरह धीरे-धीरे केदारनाथ धाम जाने की अभिलाषा जाग गयी और मन मे विचार आया कि अब दोनो धाम जाएँगे. साथ ही साथ सोंच लिया कि अगर चढ़ाई नही चढ़ पाएँगे तो नीचे से (गौरी कुंड) से ही वापस आ जाएँगे, पर जाएँगे ज़रूर, विचार आया,लगता है ऑफीस स्टाफ के  साथ वहाँ जाना नही हो सकेगा बेहतर है अपने परिवार के साथ ही चला जाय .    मैने एक जगह पढ़ा था

If you have an invitation from the God Himself, nothing can avert your visit; and hand-in-hand with it goes the destiny of returning home with a fulfilled experience.”

यही लगा की शायद बाकी स्टाफ के लोगो को भगवान ने अभी दर्शन देने का निमंत्रण नही दिया है. 

अब वर्ष 2010 मे प्रोग्राम बनाया  कि  पाट खुलते ही दर्शन के लिए जाएँगे. सुना था शुरू मे भीड़ कम होती है और आराम से दर्शन हो जाते है अन्यथा सीज़न के समय तो इतनी भीड़ हो जाती है कि 2-3 किलोमीटर तक लाइन लग जाती है. इस वर्ष मंदिर के पाट 18 मई को खुले. मैने  हफ्ते बाद का प्रोग्राम बनाया था. परंतु मेरे एक जानने वाले जो वहाँ गये हुए थे उनसे फ़ोन पर बात की तो पता लगा इस समय वह केदारनाथ मे है और बहुत भीड़ है. गौरी कुंड से 3 किलोमीटर पहले से गाडियो की कतारे लगी हुई है. सोंचा इतनी भीड़ मे अफ़रा- तफ़री ज़्यादा होगी, दर्शन  होंगे नही,  बेहतर है जब भीड़ कम होगी तभी जाएँगे. पर इस बार अगस्त  –  सितंबर  मे तो ऐसी मूसलाधार वर्षा हुई की हर तरफ बाढ़ की खबर आ रही थी. बद्रीनाथ धाम जाने का रास्ता ही ऐसी मूसलाधार वर्षा मे बह गया था. उत्तराखंड मे प्रक्रति का कुछ ज़्यादा ही प्रकोप हुआ था. ऋषिकेश मे तो गंगा के बीच मे लगी शिव की विशाल प्रतिमा तक बह गयी थी. कुछ जगहो पर बादल फटने से पूरा का पूरा गाँव  ही बह गया था.

सितंबर के अंतिम साप्ताह तक बारिश का प्रकोप थम गया था. बारिश के कारण टूटे हुए मार्गो का  निर्माण होने लगा था. मैने अक्तूबर मे दशहरे से एक हफ्ते पहले अपनी पत्नी को बताया कि हम लोग दशहरे पर बद्रीनाथ- केदारनाथ यात्रा पर चल रहे है. नवमी को पूजा के बाद हरिद्वार के लिए चलेंगे मैने अपनी लड़की जो कि जयपुर  मे इंजिनियरिंग  की पढ़ाई कर रही थी को फोन कर एक  दिन पहले बुला लिया. नवमी के दिन सुबह सुबह पूजा के बाद  लगभग सुबह 11 बजे एक टवेरा  टैक्सी   कार जो  हरिद्वार जा रही थी उससे मोहन नगर से हरिद्वार के लिए रवाना हुए. मेरठ के बाद कार  मुजफ्फरपुर बाइ-पास पर पहुँच गई . यह नया बाइ-पास बन कर तैयार  हो रहा था. अभी टोल   टै क्स भी नही लिया जा रहा था. एक  दम साफ सुथरी सड़क थी ,  कार तेज़ी से फ़र्राटे भर रही थी. सड़क के दोनो ओर दूर दूर तक हरे –  भरे खेत नज़र आ रहे थे. ऐसा सुंदर द्र्श्य   अब कम ही देखने को मिलता है. बचपन मे हम जब एक शहर से दूसरे शहर बस से जाते थे तब शहर की सीमा समाप्त होने के बाद अवश्य ऐसे द्र्श्य  का अवलोकन होता था परन्तु अब तो कंक्रीट के जंगल  तेज़ी से बढ़ते चले जा रहे हैं  पता ही नही लगता है कि कब एक   शहर की सीमा समाप्त हो गई और दूसरा शहर आ गया. यह नया बाइ-पास बना था  ,  अभी सड़क के दोनो तरफ व्यावसायीकरण शुरू नही हुआ था. परन्तु कुछ समय बाद यह रास्ता इतना सुंदर नही नज़र आएगा. यहाँ पर भी खेतों की जगह व्यावसायिक, आवासिय गतिविधिया शुरू हो जाएँगी और फिर वही ट्रैफिक  जाम शुरू हो जाएगा. सरकार को चाहिए कि  कठोर शासनादेश  लागू करे कि  हाइवे दोनो तरफ कम से कम 500 मीटर तक कोई भी किसी भी तरह की व्यावसायिक या आवासिय गतिविधि ना हो.  और अगर कोई करता है तो वहाँ के पुलिस ऑफीसर पर कड़ी करवाई की जाय. क्योकि  बिना  वहाँ की पुलिस की मर्ज़ी के  गैर क़ानूनी निर्माण  नहीं हो सकते.  तभी हाइवे  या बाइ-पास बनाने का लाभ आम लोगो को मिल पाएगा. इस तरह के विचार लिए हुए हम 4 बजे हरिद्वार पहुँच गये. यहाँ पहुँच कर पहला काम रात  गुजारने के लिए होटेल ढूँढना था तत्पशचात आगे  की यात्रा का प्रबंध करना था. हर की पौड़ी  से कुछ दूर मुख्य बाजार मे हमे   होटेल मिल गया. समान कमरे मे रख कर होटेल से बाहर आकर केदारनाथ  –  बद्रीनाथ जाने के लिए  टैक्सी   आदि के बारे मे जानकारी जुटाने लगा. लोग  टैक्सी   कार के 10000 से 15000  माँग रहे थे. मिनी बस का किराया 1000/- प्रति व्यक्ति था.  इस बीच शाम ढल गयी  ,   हम गंगा स्नान एवं शाम की गंगा आरती के लिए हर की पौड़ी  के  लिए चल दिए.    गंगा आरती के लिए सैकड़ो लोग हर की पौड़ी  के दोनो ओर गंगा  के किनारे इकट्ठे  हो रहे थे. आरती शुरू होने मे अभी आधा घंटा था ,  जल्दी से गंगा स्नान किया और फिर आरती मे शामिल हो गये. इस समय हल्का सा अंधेरा छाने  लगा था तभी वातावरण मे हर –  हर गंगे  ,  जै माँ गंगे  के स्वर गूंजने लगे. हर की पौड़ी  पर होने वाली गंगा आरती काफ़ी दर्शनीय होती है. जो कोई भी हरिद्वार गंगा स्नान के लिए आता है वह शाम की आरती मे  शामिल होने की कोशिश करता है. 

हर की पौड़ी

गंगा आरती से लौट कर होटेल मलिक से  दो धाम जाने की चर्चा की. वह बोला कल दशहरा है अब कोई ड्राइवर कल जाने को तैयार  नही है. महिंद्र  मिनी बस  जा रही है  ,  उसमे आपकी 4 सीटे बुक करवाए देता हूँ आपको जो सीट पसंद हो आप वहाँ बैठ जाना ,  बाकी सवारी आपके बाद बैठेंगी. अन्यथा आपको एक दिन और रुकना पड़ेगा. कुछ सोंच कर मैने मिनी बस से जाने की हाँ कर दी क्योकि अब इतना समय नहीं था कि  दूसरी जगहों पर जा कर पूछ ताछ  की  जाय  ,  इसलिए महिंद्र बस से जाने का ही विचार बना लिया.

दूसरे दिन सुबह 5.30 बजे उठ कर नित्यकर्म से निवृत हो कर गंगा स्नान के लिए हर की पौड़ी  पर पहुँच कर  गंगा स्नान किया.  इस समय गंगा मे पानी घुटने तक ही रह गया था ,  होटेल वाले ने बताया था कि  दशहरे पर गंगा घाट की सफाई होती है इस कारण दशहरे से दीवाली तक हर की पौड़ी  पर पानी रोक दिया जाता है. लौट कर होटेल पहुँचे तो 8 बज रहे थे. होटेल  मा लिक हमारा इंतजार कर रहा था. बोला जल्दी से समान ले कर आ जाय . गाड़ी वाले के सुबह से फोने आ रहे है. सब लोग आप लोगो का ही इंतजार कर रहे हैं. हमने कमरे मे आ कर समान पैक किया. नीचे उतर कर आए तो देखा होटेल  मा लिक ने दो रिक्शे बुला रखे थे. बोला इन रिक्शे वालो को 30-30 रुपये दे देना यह लोग आपको जहाँ से बस बन कर चलेगी वहाँ पहुँचा देंगे और मुझे 500 रुपये दे दो आपको रसीद दे देता हूँ बाकी 3500 रुपये बस मे बैठते समय दे देना.  मै समझ गया कि यह इसका कमीशन है ,  मैने होटेल मलिक को 500 रुपये दिए और उससे रसीद ले कर रिक्शे पर बैठ कर चल दिया. रिक्शे वाले ना जहाँ पर उतरा  यहाँ पर दो  –  एक टेंपो,टॅक्सी खड़ी थी. एक महिंद्र मिनी बस जाने को तैयार  खड़ी थी. सभी वहाँ पर खड़े हम लोगो का इंतजार कर रहे थे. यूँ तो महिंद्र मिनी बस मे यह लोग 18 सवारी को बैठाते  है. पर दशहरा होने के कारण बस वाले  को पूरी सवारी नहीं मिली थी. केवल 13 लोग ही जा रहे थे. इस सफ़र मे  चार हम थे ,  1 गुजराती. और 2 बंगाली  दंपति थे 3 मराठी  मानुष ,  इस तरह से 13 लोग  अलग- अलग प्रांतो  के थे पर मंज़िल सबकी एक थी. सबका समान बस की छत पर  पैक कर हरिद्वार से निकलते हुए 10  बज गये. हमारा पहला पड़ाव केदारनाथ था . कई टूर आपरेटर  पहले बद्रीनाथ ले जाते है उसके बाद केदारनाथ. वस्तुता सभी धामो के दर्शन के बाद बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए जाना चाहिए और बद्रीविशाल के दर्शन के बाद सीधे घर जाते हैं रास्ते मे फिर किसी मंदिर या तीर्थ स्थान पर नही जाना चाहिए. केदारनाथ धाम मे भी ऐसा लिखा हुआ है.

ऋषिकेश से आगे

ऋषिकेश से आगे बढ़ते ही पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया .इस यात्रा से पहले हम कभी ऋषिकेश से आगे नही गये थे.  हमारी बस पहाड़ी रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ रही थी. हमारे बाई ओर गंगा बह रही थी.  ज़्यादातर रास्ता धूल भरा हुआ था. अधिक बारिश के कारण सड़को की हालत काफ़ी खराब  हो गयी थी. सड़क के किनारे पहाड़ो को देख कर लग रहा था  पहाड़ बाढ़  के पानी से नहाए हुए हैं. पेड़ उखड़े पड़े थे. पहाड़ धूल मिट्टी से अटे  हुए थे.  बस गंगा के किनारे किनारे रास्ते मे छोटे  –  छोटे से गाँवो  ,  कस्बो से होती हुई चली जा रही थी. रास्ते मे देखा कई स्थानो पर शादी विवाह हो रहे थे. पहाड़ो पर दशहरा के दिन शादी विवाह के लिए बहुत शुभ माना जाता है. 

ऋषिकेश से  13  किलोमीटर आगे शिवपुरी आता है यहाँ से गंगा के किनारे रेत मे लगे टेंट दिखने शुरू हो गये. शिवपुरी ,  ब्यासी और कौड़ियालिया  वाटर रफ्टिंग के लिए जाने जाते हैं. विशेषकर गर्मियो मे यहाँ काफ़ी लोग वॉटर रफ्टिंग के लिए आते है.करीब  1  बज रहा था जब हमारी बस देवप्रयाग पहुँची. ऋषिकेश से करीब  70  किलोमीटर देव प्रयाग है. यहाँ भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है. यहाँ से  गंगा के नाम से जाना जाता हैं.

भागीरथी और अलकनंदा का संगम

मुख्य रूप से अलकनंदा के पाँच प्रमुख प्रयाग है. पाँच प्रयागो मे यह पाँचवा प्रयाग है. पहला प्रयाग विष्णु प्रयाग है जहाँ अलकनंदा से धौली गंगा मिलती है. दूसरा प्रयाग  नन्दप्रयाग है यहाँ नन्दकिनी नदी अलकनंदा मे मिलती है. तीसरा प्रयाग कर्ण प्रयाग है यहाँ पिंडर नदी अलकनंदा मे मिलती है.  चौथा प्रयाग रुद्रप्रयाग है. रुद्रप्रयाग मे मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती हैं और पाँचवा देव प्रयाग. देवप्रयाग से आगे  श्रीनगर   है ( यह उत्तराखंड का श्रीनगर है )  ऋषिकेश से श्रीनगर  105 किलोमीटर है ,  यह उत्तराखंड का एक  बड़ा शहर है. श्रीनगर से आगे  रास्ते मे कई विददुत परियोजनाओ पर काम  चल रहा था.

landslide

कुछ स्थानो पर देखता हूँ लबालब पानी से भरी हुई गंगा बह रही है और कुछ स्थानो पर गंगा मे बहुत कम पानी नज़र आता था. ऐसा लगता था  किसी ने पानी चुरा लिया हो. श्रीनगर  से आगे कालिया सौर आता है यहाँ धरी देवी का मंदिर है | कालिया सौर से  आगे   रुद्रप्रयाग है. रुद्रप्रयाग ऋषिकेश से  140  किलोमीटर है

रुद्रप्रयाग मे मंदाकिनी अलकनंदा   का संगम

रुद्रप्रयाग से  9  किलोमीटर आगे  तिलवारा है यहाँ हम लोगो ने चाय पी.  10  मिनट का रेस्ट किया और फिर आगे  के लिए चल दिए. तिलवारा से  19  किलोमीटर आगे  अगस्तमुनि  है .  यहाँ अगस्तमुनि का आश्रम है.यहाँ पहुँचते हुए शाम ढलने लगी थी. हमारे बाईं ओर  मंदाकिनी सड़क के साथ साथ पत्थरो  के बीच अठखेलियाँ  करती हुई बह रही थी. बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक द्रशय था. सामने के पहाड़ो की चोटियो  पर सूर्यास्त की किरणे  पड़ने से सुनहरे रंग से चमक रही थी.मन तो कुछ समय यहाँ पर रुक कर प्राक्रतिक  सौंदर्य को  देखने को हो रहा था पर ड्राइवर को अपनी मंज़िल पहुँचने की थी. अगस्तमुनि  से  19  किलोमीटर आगे  कुंड है यहाँ पहुँचते हुए अँधेरा छा  गया था. अब ड्राइवर अँधेरे मे बस चला रहा था. गुप्त काशी  को पार  कर लगभग 8 बजे सोन प्रयाग  से 7 किलोमीटर पहले हम सीतापुर पहुँच गये. यहाँ ड्राइवर ने रात मे रुकने के लिए एक होटेल के सामने बस रोक दी और बोला रात यहीं रुकेंगे ,  आप लोग सामने होटेल मे जाकर अपने लिए कमरा    देख कर तय कर लो. यह होटेल बहुत ही साधारण था कमरो मे एक अजीब सी गंध आ रही थी. मन मे विचार आया ड्राइवर को यहाँ  से कमीशन  मिलता होगा तभी यहाँ रोका है. मैने अपने लड़के से नज़दीक के दूसरे होटेल देखकर आने को कहा और स्वयं दूसरी तरफ जाकर होटेल देखने लगा. मुझे इस होटेल से 100 गज पहले एक नया बना हुआ साफ सुथरा होटेल मिल गया. इस  समय सीजन ना होने के कारण बिल्कुल खाली था. इस  समय तक इतने बड़े होटेल मे हमारा ही परिवार था. हमे 400 रुपये के हिसाब से 2 डबल बेड का एक रूम मिल गया. मैने बस के दूसरे यात्रियों से भी बोला इस बेकार से होटेल मे ना ठहर कर मेरे वाले होटेल मे ठहरे.पर वह सारे उसी होटेल मे ही ठहरे. रात  मे जब हम खाना खाने बाहर निकले  ,  मेरे से  कुछ घोड़े वाले घोड़ा तय करने के लिए कहने लगे. पहले तो मैने यह सोंचा था कि  गौरी कुंड से एक-दो किलोमीटर पैदल चलने के बाद अगर नहीं चला जाएगा तो घोड़े कर लेंगे पर अब जब यह लोग जिस तरह की बाते कर रहे थे उससे लगा कि तय  ही कर लेना चाहिए. आने जाने के लिए 800 रुपये प्रति घोड़ा तय हुआ.

होटेल  से  केदार 

अगले दिन हम सुबह  5.30  बजे  उठ गये. हाँलाकि सफ़र की थकान के कारण इतने सुबह उठने की इच्छा  नही हो रही थी. उठ कर बिजली की केटली मे चाय बनाकर पी.  सफ़र मे बिजली की केटली और चाय बनाने का समान साथ ले कर चलता हूँ ,  क्योकि अक्सर इन स्थानो पर इतनी सुबह चाय नही मिलती  है.   7  बजे तक तैयार  होकर जब हम लोग बस के पास पहुँचे  ,  देखा सारे लोग हम लोंगो का  इंतजार कर रहे थे. गुजराती भाई बोले हम तो सुबह  5  बजे ही तैयार हो गये थे ,  लेकिन क्या करे हम चार लोंगो को एक  –  एक  कर तैयार  होने मे समय तो लग ही जाता है. हाँलाकि हमे खराब भी लगा की हमारे कारण यह लोग इतना लेट हो गये. यहाँ  हमारी बस मे हमारा घोड़े वाला और एक दो दूसरे भी आ कर बैठ  गये. यह लोग भी घोड़े के मलिक थे

गौरिकुण्ड पहुँच कर हमारा घोड़े वाला ही हमारा मार्ग दर्शन करता चल रहा था. पहले हमे गौरिकुण्ड पर ले कर गया  ,  दर्शनार्थी यहाँ से स्नान कर आगे  केदारनाथ के दर्शन के लिए जाते है. हम लोग होटेल मे ही नहा चुके थे और देर भी हो रही थी  ,  घोड़े वाला बोला आप लोंगो पर गौरिकुण्ड का जल छिड़क देता हूँ  .  कुंड के कोने मे अपनी दुकान लगाए पंडा ने जब यह देखा तो ऐतराज़ करने लगा कुल मिला कर उसे लगा की यह घोड़े वाला वगैर  कुछ दान दच्छिणा के इन यात्रियों को लिए  जा रहा है.  

गौरिकुण्ड

पंडा को दच्छिणा देकर कर आगे  बढ़ा. तभी एक  पंडित जी आ गये  ,  बोले केदारनाथ  जाने से पहले  गौरी के दर्शन करने चाहिए. अब वह  पंडित जी मुझे  गौरी मंदिर मे लेकर गये ,  केदारनाथ के पात खुलने से पहले  ,   भगवान केदारनाथ की  डो ली रात यही विश्राम के लिए रोकी जाती है. गौरी  मंदिर से  आगे  सिर कटा गणेश  का मंदिर है . बताया गया अब गणेश जी की प्रतिमा पर सिर लगा दिया गया है. पहले सिर कटे गणेश की प्रतिमा लगी थी. गौरिकुण्ड से करीब 500 गज आगे  बहुत से घोड़े वाले खड़े सवारी का इंतजार कर रहे थे.यहाँ पर हम लोगों को उसने दो घोड़े वालो को बुला कर आगे  ले जाने के लिए बोला. वस्तुता यह खच्चर  होते हैं हम सब खच्चर  पर बैठ कर पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्ते पर चल दिए.  हम पहली बार खच्चर  की सवारी कर रहे थे ,   सुना था यह खाई के किनारे किनारे ही चलता है. मैने घोड़े वाले को बोला  ,    पहाड़ की तरफ ही चलना है. वह बोला , आज कल . भीड़ नही है आप जिस साइड मे कहोगे उधर ही चलाएँगे पर भीड़ के समय तो हमे किनारे ही चलना होता है. यहाँ खच्चरो मे एक विशेष बात देखने को मिली कि रास्ते मे मुत्र त्याग यह अपने द्वारा निश्चित स्थानो पर ही कर रहे थे. थोड़ी- थोड़ी दूरी पर इन खच्चरो ने स्वयं मूत्र त्याग के स्थान निर्धारित कर रखे थे. ऐसा नही था कि इंसान  की तरह जहाँ मर्ज़ी आई खड़े हो गये.  मैने घोड़े वाले से पूछा कि   मूत्र त्याग के बारे मे तो इनके  aticates    है पर मल त्याग के लिए इन्होने ने ऐसा कुछ स्थान क्यो नही बनाया है पर घोड़े वाले के पास  कोई जबाव नही था.  हमारे बाईं ओर मंदाकिनी बह रही थी. 

आगे  बढ़ने पर पहाड़ की तरफ एक छोटा सा मंदिर था घोड़े वाले ने बताया यह भीम मंदिर है. यहाँ पर हर 500 मीटर पर रास्ते की दूरी का बोर्ड लगा था जिससे यात्रियो को पता चलता रहे कि उन्होने कितनी दूरी तय कर ली है | गौरिकुण्ड से सात किलोमीटर आगे  रामबाड़ा है. रामबाड़ा पहुँचने से  50  गज पहले  मंदाकिनी का जल पत्थरो से टकरा कर एक तेज शोर पैदा कर रहा था. यह शोर इतना तेज था कि लग रहा था  कई फाइटर विमान उड़ान भर रहें हो. मंदाकिनी का जल दूधया रंग का दिख रहा था. रामबाड़ा मे सभी खच्चर  वाले  विश्राम करते है ,   

मंदाकिनी का दूधया रंग का जल

हम लोगो को बोला आप लोग भी जब तक चाय नाश्ता कर ले. यहाँ पर हमने लंगूर को मंदाकिनी के जल के बीच मे पड़े बड़े-बड़े पत्थरो पर इधर से उधर कूदते हुए देखा. रामबाड़ा मे कुछ एक छोटे होटेल भी है जहाँ  रात मे विश्राम भी किया जा सकता है. रामबाड़ा समुद्रतल से करीब  8500  फिट की उँचाई  पर है. रामबाड़ा के पास ही एक काफ़ी बड़ा उँचाई  से गिरता हुआ वाटर फॉल है. बहुत लोग यहाँ रुक कर फोटो खींच रहे थे.रामबाड़ा मे  15  मिनट के रेस्ट के बाद हम फिर खच्चर  पर बैठ  कर चल दिए.

सामने केदारनाथ मंदिर दिख रहा है

अभी हम रामबाड़ा से आगे   बढ़े   ही थे  कि   अचानक एक मोड़ पर देखता  हूँ   सामने विराट ,  विशाल केदार पर्वत शिखर, धूप मे चाँदी की तरह चमकता हुआ अपने वैभव के साथ अवलोकित हुआ. यह  द्र्श्य   अचंभित करनेवाला था. ऐसा अद्भुत  ,  अलौकिक  द्र्श्य  इससे   पहले कभी नही देखा था.  इस की  सुंदरता  अवर्णित    थी.  हमारे पास शब्द नही होते है  कि   उस सुंदरता का वर्णन कर सके. एक अलौकिक  सौंदर्य   हमारे सामने था  ,  हम  ढ गे से उसे निहार रहे थे तभी बदलो के बीच  छिप   गया. सच तो यह है  कि   फोटो से हमे उस जगह की सुंदरता का  आभास ही होता है. जब हम उस सुंदरता को अपनी नंगी आँखो से देखते हैं तभी हमे उस  सौंदर्य    के दर्शन होते हैं. अब हमारी निगाहे. उस  द्र्श्य   को देखने को बार- बार व्याकुल हो रही. थी पर कभी बदल  छटते   और एक  झ लक मिलती और  छड़   भर मे फिर बदल आ जाते. रास्ते भर यही लुका  –  छुपी चलती रही. 

मंदाकिनी का दूधया रंग का जल

रामबाड़ा से 3 किलोमीटर आगे  गरुड़ चट्टी  है. अभी हम 2 किलोमीटर आगे  बड़े होंगे  ,  देखा कई विशालकाय गरुड़  हवा मे तैर  रहे है.ऐसा लग रहा था छोटे-छोटे हवाई जहाज़ उड़ रहे हैं. केदारनाथ मंदिर से आधा किलोमीटर पहले हमे घोड़े वाले ने उतार दिया. मंदिर के रास्ते मे हमे कई पंडा मिले जो  मंदिर मे पूजा करने के लिए हमसे हमारा निवास स्थान पूछ रहे थे. तभी एक पंडा बोले आप    लखनउ   की तरफ के है तो हमारे साथ आए , हम आपकी मंदिर मे पूजा करवा देंगे. मेरा पहला सवाल यही  था ,  दच्छिणा क्या लेंगे. बोले जो आप की  श्रधा   हो दे देना कोई ज़बरदस्ती नही है. मैने कहा मेरी  श्रधा     251 रुपये देने की है. वह खुशी  – खुशी रास्ता बताते हुए हमारे साथ हो लिए. मंदिर से थोड़ी सी दूरी पर एक दुकान पर वह बोले आप लोग अपना समान  यहाँ रख कर मंदिर मे पूजा के लिए  था ली ले लें ,  यहाँ ज़्यादा भीड़ नही थी. मंदिर के दोनो ओर दुकाने व खाने पीने के होटेल बने हुए थे. केदारनाथ धाम समुद्रतल से 11750 फिट की उँचाई  पर है. दोपहर का समय था  ज़्यादा ठंड नही थी. मैने अपनी जैकेट भी उतार  दी थी.

मंदिर के दोनो ओर दुकाने

मंदिर के दोनो ओर दुकाने

पूजा की  था ली  लेकर हम सब पंडा जी के साथ मंदिर मे प्रवेश किया. मंदिर के प्रथम भाग मे पाँचो पांडव  की मूर्ति स्थापित है. मंदिर मे ज़्यादा भीड़ नही थी हमारे आगे 5-7 लोग खड़े अपनी  बा री की प्रतिच्छा कर रहे थे. कुछ लोग शिवलिंग के चारो तरफ बैठे हुए पूजा कर रहे थे.  मै मंदिर के गर्भ ग्रह के प्रवेश द्वार पर खड़ा हुआ पंजो के बल उचक कर शिवलिंग के दर्शन करना चाह रहा था. केदारनाथ धाम मे गर्भ ग्रह के फोटो खींचना वर्जित है . इंटरनेट पर भी विग्रह के कोई फोटो मैने नही देखे. यहाँ के बारे मे जो  पढ़ा  ,  सुना था वह यही  कि   जब पांडव  प्रायश्चित   के लिए भगवान शिव को  ढूंड ते हुए यहाँ आए तब शिव उनको दर्शन नही देना चाहते थे  वह व्रष रूप मे वहाँ चर रहे अन्य  जा नवरो मे शामिल हो गये. जब भीम ने यह देखा तो  दो पहाड़ो के बीच अपनी टाँगे फैला कर खड़े हो गये और  नकुल से कहा की सभी  जा नवरो को  मेरी   टाँगो  के नीचे से निकालो.भीम जानते थे की शिव उनकी टाँगो  के बीच से नही निकल सकते. जब शिव ने यह देखा तो वहीं भूमि पर अपना सिर गड़ा कर  प्रथवी मे  समा हित होने लगे. भीम ने जब यह देखा तो दौड़ कर पकड़ना चाहा तब तक व्रष रूपी शिव की केवल पीठ ही प्रथवी  के उपर बची थी. और वही व्रष का प्रष्ठ भाग को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है और उसी रूप मे यहाँ भगवान शिव की पूजा की जाती है.

केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर

यह करीब 9 फिट लंबी ,  3 फिट चौड़ी और 4 फिट उँची विग्रह है. करीब 5-7 मिनट के बाद ही हमारा नंबर आ गया  ,  पंडा जी ने हमे शिवलिंग के बाईं ओर बैठा कर पूजा आरंभ की. वहीं मंदिर की दीवार  पर दिव्य ज्योति जल रही थी. पूजा के मध्य उसके दर्शन के लिए कहा  तत्पश्चात   हम सबको घी को शिवलिंग पर मल कर जल से स्नान करवाया और अंत मे हम सबसे कहा, अपना मस्तक शिवलिंग मे लगाए. मेरी पत्नी कहती है . मुझे तो ऐसा लगा  कि  मै  अपना मस्तक किसी गुदगुदी चीज़ से स्पर्श कर रही हूँ. हम यही कह सकते है  कि   “जा की रही भावना जैसी ,  तीन देखी  मूरत   बिन वैसी”

हम लोगो की एक ग्रुप फोटो भी उन्होने ने खींच दी.

शंकराचार्या की समाधि


 
पढ़ा था केदारनाथ मंदिर के पीछे शंकराचार्या की समाधि  है. यहाँ आ कर विचार आया की जिन्होने ने सनातन धर्म की और चारो धाम की स्थापना की उनकी समाधि  के तो दर्शन  अ वश्य करने चाहिए.   मैने उनसे शंकरा चार्या   की  समाधि   स्थल के बारे मे पुछा. वह हमे अपने साथ वहाँ लेकर  गये . शंकरा चार्या   की  समाधि    मंदिर के  पीछे  बाईं ओर स्थित है. यह एक बड़ा सा हाल है यहाँ शंकरा चार्या    की मूर्ति ,  उनकी माता की मूर्ति एवं अन्य मूर्ति  स्थापित है. लौटते समय वहाँ बैठे हुए  साधुओ को  दान देने लगा ,  पंडा जी ने देखा तो बोले आप को अगर दान करना है तो आप यह थैली  इस   महिला को दे दें वह महिला मंदिर के  द्वार   के पास बैठी  थी. पूछने पर उन्होने ने बताया की यह बद्रीनाथ धाम जाना चाहती है इसलिए मैने इसको सारे पैसे दिलवाए.

मेरे  native place   वाले घर मे एक छोटा सा मंदिर बना है. इसमे शिवलिंग भी स्थापित है. माता जी पूजा के समय श्री शिव रुद्राष्टकम का पाट करती थी. प्रस्तुत है

री रुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ,  विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ,  चिदाकाशमाकाशवासं भजेडहं॥ 1 ॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं , गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं ,  गुणागार संसारपारं नतोडहं॥ 2 ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं ,  मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा ,  लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ 3 ॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं ,  प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ,  प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥ 4 ॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ,  अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं ,  भजेडहं भवानीपतिं भावगम्यं॥ 5 ॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी ,  सच्चिदानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी ,  प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥ 6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं ,  भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ,  प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥ 7 ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां ,  नतोडहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं ,  प्रभो पाहि शापन्न्मामीश शंभो॥ 8 ॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥ 9 ॥

2-3 घंटे मंदिर के पास बिता कर  वही एक होटेल मे खाना खाया. वापसी के लिए चल दिए.घोड़े वाला हमारा इंतजार कर रहा था.    उतरते समय तो बहुत दिक्कत महसूस हो रही थी. बार- बार पैर  आगे शरीर  पीछे   घोड़े वाले सुनते  –  सुनते परे शान   हो गया. रामबाड़ा मे जब 15 मिनट का रेस्ट लिया तो थोड़ी सी  राहत   मिली पर अभी 7 किलोमीटर और जाना था. क्या करता फिर घोड़े पर बैठ कर चल दिए.   घोड़े पर इतनी दिक्कत हो रही थी पर यह नही हुआ कि पैदल चल दे. यह बात जब नीचे उतर गये तब ध्यान आई. शायद अपने आप पर विश्वास नही था.   गौरिकुण्ड पहुँचते हुए  अंधेरा   ढल आया था.  सभी लोग दर्शन कर के आ गये थे.  बातो   ही  बातो   मे पता लगा  कि   एक बंगाली दंपति गौरी कुंड मे ही घूमते रहे वह उपर  गये ही नही. पूछने पर बताया की वह पैदल जा नही सकते थे और घोड़े पर बैठने से  डर   लग रहा था. वापस होटेल पहुँचे. सभी खच्चर  की सवारी से इतने थके हुए थे  कि  कमरे मे पहुँचते ही बिस्तर पर लंबे हो गये. 

31 Comments

  • JATDEVTA says:

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  • D.L.Narayan says:

    Great blog, Rastogi ji. You have written very well and the pictures are simply superb. What I liked most is the darshan of the samadhi of Adi Shankaracharya, the great saint who reformed Hinduism and expounded on the Advaita, which represents the highest intellectual achievement in human history.

    There are many intellectuals who claim that India was a British invention. The life of Adi Shankara, who was born in Kerala and travelled to the furthest corners of Indiain all directions, proves that the idea of India is a very ancient one even if our country was fragmented politically into several kingdoms.

  • rajesh priya says:

    aapki yatra bahut achchhi rahi,varnan bhi dilchasp hai.bahut badhia laga aapka ye yatra.jaisa aapki mata ji ne kaha ki budhape me jana chahiye aisi jagah ,lekin mujhe bhi aapka khayal pasand aaya ki aisi jagaho par young age me hi jana chahiye.main pehli baar 2001 october me 30 yrs ki age me gaya tha aur rishikesh se aage badhe hi prakritik drishya dekh kar pagla gaya tha,usi ka natija ye raha ki main 2009 me fir se badri vishal aur kedar baba ke darshan ko pahunch gaya.aur irada is deshare me bhi rakha hai jane ka.wakai ye jagahe devbhumi hai yahan sach me devta niwas karte hain.

    • rastogi says:

      dear rajesh
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    • Sanjay Kaushik says:

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  • Sanjay Kaushik says:

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      dear vishal
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  • Nandan Jha says:

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    • rastogi says:

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  • Biswajit Ganguly says:

    Aadarniye Rastogiji, Asaadharan lekhan kala ke darshan kar rahha hoon. kisi bhi lekhan ki dharavahikta aur sampoornta uss lekh ki safalta ka bahut hi mahetvapurn paksh manaa gaya hey. keval iss bhay se ki kahi monotonous na lage hum lekho ko kai bhago mein padhtey hey. Parantu aapkey is purey sansmaran ko padhkar mujhey lagaa kisi chalachitra ko dekh rahaan hoon. mujh jaise sadharan hindi pathak ke liye isse saral koi abhivyakti nahi ho sakti. Aap ki lekhni par aapki dharmik pravittiyon ka abhas milta hey, jisme shudhhata aur bhakti ka ek jugm samavesh pratit hota hey. kshama chahta hoon ki yeh lekh thode vilamb ke baad padh paya, anyatha pehle hi ye udgaar dhanyavaad swaroop abhivyakt ho jaate. Saparivar aapko dekhkar ek poorn bhartiye sanskriti ki upasthiti evum jagriti dekhne ko mili. Shri Badrinath aur Kedarnath yatra ke iss vrittant ko bhulana kathin hoga, nishchit hi apne priye jano ke saath iska bar bar rasaswadan leta rahoonga. Iss punye karye hetu apka hriday se dhanyabad.

  • rastogi says:

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  • Anil Sahu says:

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  • ईश्वर जिसके भाग्य में दर्शन का सुअवशर दे ! सैलानियों को मेरा ह्रदय से प्रणाम |

  • Rajesh says:

    Har har mahadev

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