3 वरà¥à¤· पहले की बात है जब हमारे आफ़िस  के सहकरà¥à¤®à¥€ पहाड़ो पर घूमने जाने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना रहे थे. इस तरह के टूर पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® के लिठहमे कंपनी के डाइरेकà¥à¤Ÿà¤° से छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€Â लेनी थी. आमतौर पर हमे 3 दिन की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€Â मिलती थी. पर इस बार सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के कà¥à¤› लोगो ने डाइरेकà¥à¤Ÿà¤° से 5 दिन की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ मनाली जाने के लिठले ली. जब मà¥à¤à¥‡ पता लगा तो मैने कहा अब जब 5 दिन की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ मिल गयी है तो मनाली से तो अचà¥à¤›à¤¾ है बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम चलो. हमलोग 5 दिन मे बहà¥à¤¤ आराम से बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम हो कर आ सकते हैं. मनाली तो फिर कà¤à¥€ हो आà¤à¤à¤—े ,पर उनके सर पर तो मनाली जाने का à¤à¥‚त सवार था. कà¥à¤› तो मेरी बात से सहमत à¤à¥€ हो गये पर अधिकतर मनाली जाने के मूड मे थे. बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम के बारे मे मैने जो पढ़ा था वह ऑफीस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के साथ मेल à¤à¥‡à¤œ कर शेयर à¤à¥€ किया
. “It has been said that “there were many sacred spots of pilgrimage in the heaven, earth and The other world but neither is there any equal to Badrinath nor shall there be one.â€
With its great scenic beauty and attractive recreational spots in the vicinity, Badrinath attracts an ever-increasing number of secular visitors each year.
पर आज कल के बहà¥à¤¤ कम यà¥à¤µà¤¾à¤“ मे धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤ देखने को मिलती हैं.जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° मौज मसà¥à¤¤à¥€ के लिठहिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर ही जाना पसंद करते है. à¤à¤• तो बोला , मेरी माठकहती हैं कि इन जगहों पर बूढ़े होने पर जाना चाहिठ. कैसे – कैसे लोग और कैसी इनकी समà¤. सà¥à¤¨ कर इन कम बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वालों पर गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आता है .जबकि मै समà¤à¤¤à¤¾ हूठकि यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मे ही इन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर जाना चाहिठतà¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ का असली आनंद लिया जा सकता है.
बात आई गयी हो गयी पर मन मे यह बात बैठगयी इस बार ना सही तो अगली बार बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जाà¤à¤à¤—े अवशà¥à¤¯ अगले वरà¥à¤· फिर पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया पर बन नहीं सका. इस बीच मे आफ़िस  की à¤à¤• लेडी बोली केदारनाथ धाम चलो तो मै à¤à¥€ अपने पति के साथ चलूंगी.केदारनाथ के बारे मे सà¥à¤¨à¤¾ था की 14 किलोमीटर की बहà¥à¤¤ कठिन चढ़ाई है.सबके लिठवहाठजाना संà¤à¤µ नही. और हम तो शहरी जीवन के कà¥à¤› इस तरह अà¤à¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ हो गये है कि  थोड़ी दूर à¤à¥€ पैदल चला नही जाता. अगर तीसरी मंज़िल पर à¤à¥€Â जाना है तो लिफà¥à¤Ÿ का इंतजार करते है. इसलिठवहाठजाने के बारे मे कà¤à¥€ सोंचा ही नही. परनà¥à¤¤à¥ पता नही किस तरह धीरे-धीरे केदारनाथ धाम जाने की अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ जाग गयी और मन मे विचार आया कि अब दोनो धाम जाà¤à¤à¤—े. साथ ही साथ सोंच लिया कि अगर चढ़ाई नही चढ़ पाà¤à¤à¤—े तो नीचे से (गौरी कà¥à¤‚ड) से ही वापस आ जाà¤à¤à¤—े, पर जाà¤à¤à¤—े ज़रूर, विचार आया,लगता है ऑफीस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के  साथ वहाठजाना नही हो सकेगा बेहतर है अपने परिवार के साथ ही चला जाय .  मैने à¤à¤• जगह पढ़ा था
If you have an invitation from the God Himself, nothing can avert your visit; and hand-in-hand with it goes the destiny of returning home with a fulfilled experience.â€
यही लगा की शायद बाकी सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के लोगो को à¤à¤—वान ने अà¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ देने का निमंतà¥à¤°à¤£ नही दिया है.Â
अब वरà¥à¤·Â 2010 मे पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया  कि  पाट खà¥à¤²à¤¤à¥‡ ही दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजाà¤à¤à¤—े. सà¥à¤¨à¤¾ था शà¥à¤°à¥‚ मे à¤à¥€à¤¡à¤¼ कम होती है और आराम से दरà¥à¤¶à¤¨ हो जाते है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ सीज़न के समय तो इतनी à¤à¥€à¤¡à¤¼ हो जाती है कि 2-3 किलोमीटर तक लाइन लग जाती है. इस वरà¥à¤· मंदिर के पाट 18 मई को खà¥à¤²à¥‡. मैने हफà¥à¤¤à¥‡ बाद का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया था. परंतà¥Â मेरे à¤à¤• जानने वाले जो वहाठगये हà¥à¤ थे उनसे फ़ोन पर बात की तो पता लगा इस समय वह केदारनाथ मे है और बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ है. गौरी कà¥à¤‚ड से 3 किलोमीटर पहले से गाडियो की कतारे लगी हà¥à¤ˆ है. सोंचा इतनी à¤à¥€à¤¡à¤¼ मे अफ़रा- तफ़री ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होगी, दरà¥à¤¶à¤¨Â होंगे नही, बेहतर है जब à¤à¥€à¤¡à¤¼ कम होगी तà¤à¥€ जाà¤à¤à¤—े. पर इस बार अगसà¥à¤¤Â - सितंबर  मे तो à¤à¤¸à¥€ मूसलाधार वरà¥à¤·à¤¾ हà¥à¤ˆ की हर तरफ बाढ़ की खबर आ रही थी. बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ ही à¤à¤¸à¥€ मूसलाधार वरà¥à¤·à¤¾ मे बह गया था. उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड मे पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ का कà¥à¤› ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही पà¥à¤°à¤•ोप हà¥à¤† था. ऋषिकेश मे तो गंगा के बीच मे लगी शिव की विशाल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ तक बह गयी थी. कà¥à¤› जगहो पर बादल फटने से पूरा का पूरा गाà¤à¤µ  ही बह गया था.
सितंबर के अंतिम सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹ तक बारिश का पà¥à¤°à¤•ोप थम गया था. बारिश के कारण टूटे हà¥à¤ मारà¥à¤—ो का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होने लगा था. मैने अकà¥à¤¤à¥‚बर मे दशहरे से à¤à¤• हफà¥à¤¤à¥‡ पहले अपनी पतà¥à¤¨à¥€ को बताया कि हम लोग दशहरे पर बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥- केदारनाथ यातà¥à¤°à¤¾ पर चल रहे है. नवमी को पूजा के बाद हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के लिठचलेंगे मैने अपनी लड़की जो कि जयपà¥à¤°  मे इंजिनियरिंग  की पढ़ाई कर रही थी को फोन कर à¤à¤•  दिन पहले बà¥à¤²à¤¾ लिया. नवमी के दिन सà¥à¤¬à¤¹ सà¥à¤¬à¤¹ पूजा के बाद लगà¤à¤— सà¥à¤¬à¤¹ 11 बजे à¤à¤• टवेरा टैकà¥à¤¸à¥€  कार जो हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जा रही थी उससे मोहन नगर से हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के लिठरवाना हà¥à¤. मेरठके बाद कार मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤ªà¥à¤° बाइ-पास पर पहà¥à¤à¤š गई . यह नया बाइ-पास बन कर तैयार  हो रहा था. अà¤à¥€ टोल  टै कà¥à¤¸ à¤à¥€ नही लिया जा रहा था. à¤à¤•  दम साफ सà¥à¤¥à¤°à¥€ सड़क थी , कार तेज़ी से फ़रà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° रही थी. सड़क के दोनो ओर दूर दूर तक हरे - à¤à¤°à¥‡ खेत नज़र आ रहे थे. à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤‚दर दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯   अब कम ही देखने को मिलता है. बचपन मे हम जब à¤à¤• शहर से दूसरे शहर बस से जाते थे तब शहर की सीमा समापà¥à¤¤ होने के बाद अवशà¥à¤¯ à¤à¤¸à¥‡ दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯  का अवलोकन होता था परनà¥à¤¤à¥ अब तो कंकà¥à¤°à¥€à¤Ÿ के जंगल तेज़ी से बढ़ते चले जा रहे हैं पता ही नही लगता है कि कब à¤à¤•   शहर की सीमा समापà¥à¤¤ हो गई और दूसरा शहर आ गया. यह नया बाइ-पास बना था , अà¤à¥€ सड़क के दोनो तरफ वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¥€à¤•रण शà¥à¤°à¥‚ नही हà¥à¤† था. परनà¥à¤¤à¥ कà¥à¤› समय बाद यह रासà¥à¤¤à¤¾ इतना सà¥à¤‚दर नही नज़र आà¤à¤—ा. यहाठपर à¤à¥€ खेतों की जगह वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤•, आवासिय गतिविधिया शà¥à¤°à¥‚ हो जाà¤à¤à¤—ी और फिर वही टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤•  जाम शà¥à¤°à¥‚ हो जाà¤à¤—ा. सरकार को चाहिठकि  कठोर शासनादेश  लागू करे कि  हाइवे दोनो तरफ कम से कम 500 मीटर तक कोई à¤à¥€ किसी à¤à¥€ तरह की वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• या आवासिय गतिविधि ना हो. और अगर कोई करता है तो वहाठके पà¥à¤²à¤¿à¤¸ ऑफीसर पर कड़ी करवाई की जाय. कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि  बिना वहाठकी पà¥à¤²à¤¿à¤¸ की मरà¥à¤œà¤¼à¥€ के गैर क़ानूनी निरà¥à¤®à¤¾à¤£  नहीं हो सकते. तà¤à¥€ हाइवे  या बाइ-पास बनाने का लाठआम लोगो को मिल पाà¤à¤—ा. इस तरह के विचार लिठहà¥à¤ हम 4 बजे हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पहà¥à¤à¤š गये. यहाठपहà¥à¤à¤š कर पहला काम रात  गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¥‡ के लिठहोटेल ढूà¤à¤¢à¤¨à¤¾ था ततà¥à¤ªà¤¶à¤šà¤¾à¤¤ आगे  की यातà¥à¤°à¤¾ का पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध करना था. हर की पौड़ी  से कà¥à¤› दूर मà¥à¤–à¥à¤¯ बाजार मे हमे   होटेल मिल गया. समान कमरे मे रख कर होटेल से बाहर आकर केदारनाथ – बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जाने के लिà¤Â टैकà¥à¤¸à¥€  आदि के बारे मे जानकारी जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ लगा. लोग टैकà¥à¤¸à¥€  कार के 10000 से 15000 माà¤à¤— रहे थे. मिनी बस का किराया 1000/- पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ था. इस बीच शाम ढल गयी ,  हम गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ शाम की गंगा आरती के लिठहर की पौड़ी  के  लिठचल दिà¤.  गंगा आरती के लिठसैकड़ो लोग हर की पौड़ी  के दोनो ओर गंगा के किनारे इकटà¥à¤ े  हो रहे थे. आरती शà¥à¤°à¥‚ होने मे अà¤à¥€ आधा घंटा था , जलà¥à¤¦à¥€ से गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया और फिर आरती मे शामिल हो गये. इस समय हलà¥à¤•ा सा अंधेरा छाने  लगा था तà¤à¥€ वातावरण मे हर - हर गंगे , जै माठगंगे  के सà¥à¤µà¤° गूंजने लगे. हर की पौड़ी  पर होने वाली गंगा आरती काफ़ी दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ होती है. जो कोई à¤à¥€ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिठआता है वह शाम की आरती मे शामिल होने की कोशिश करता है.Â
गंगा आरती से लौट कर होटेल मलिक से दो धाम जाने की चरà¥à¤šà¤¾ की. वह बोला कल दशहरा है अब कोई डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° कल जाने को तैयार  नही है. महिंदà¥à¤°Â मिनी बस जा रही है , उसमे आपकी 4 सीटे बà¥à¤• करवाठदेता हूठआपको जो सीट पसंद हो आप वहाठबैठजाना , बाकी सवारी आपके बाद बैठेंगी. अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ आपको à¤à¤• दिन और रà¥à¤•ना पड़ेगा. कà¥à¤› सोंच कर मैने मिनी बस से जाने की हाठकर दी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि अब इतना समय नहीं था कि  दूसरी जगहों पर जा कर पूछ ताछ  की जाय , इसलिठमहिंदà¥à¤° बस से जाने का ही विचार बना लिया.
दूसरे दिन सà¥à¤¬à¤¹ 5.30 बजे उठकर नितà¥à¤¯à¤•रà¥à¤® से निवृत हो कर गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिठहर की पौड़ी  पर पहà¥à¤à¤š कर गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया. इस समय गंगा मे पानी घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ तक ही रह गया था , होटेल वाले ने बताया था कि  दशहरे पर गंगा घाट की सफाई होती है इस कारण दशहरे से दीवाली तक हर की पौड़ी  पर पानी रोक दिया जाता है. लौट कर होटेल पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो 8 बज रहे थे. होटेल मा लिक हमारा इंतजार कर रहा था. बोला जलà¥à¤¦à¥€ से समान ले कर आ जाय . गाड़ी वाले के सà¥à¤¬à¤¹ से फोने आ रहे है. सब लोग आप लोगो का ही इंतजार कर रहे हैं. हमने कमरे मे आ कर समान पैक किया. नीचे उतर कर आठतो देखा होटेल मा लिक ने दो रिकà¥à¤¶à¥‡ बà¥à¤²à¤¾ रखे थे. बोला इन रिकà¥à¤¶à¥‡ वालो को 30-30 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दे देना यह लोग आपको जहाठसे बस बन कर चलेगी वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¾ देंगे और मà¥à¤à¥‡ 500 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दे दो आपको रसीद दे देता हूठबाकी 3500 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ बस मे बैठते समय दे देना. मै समठगया कि यह इसका कमीशन है , मैने होटेल मलिक को 500 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दिठऔर उससे रसीद ले कर रिकà¥à¤¶à¥‡ पर बैठकर चल दिया. रिकà¥à¤¶à¥‡ वाले ना जहाठपर उतरा यहाठपर दो – à¤à¤• टेंपो,टॅकà¥à¤¸à¥€ खड़ी थी. à¤à¤• महिंदà¥à¤° मिनी बस जाने को तैयार  खड़ी थी. सà¤à¥€ वहाठपर खड़े हम लोगो का इंतजार कर रहे थे. यूठतो महिंदà¥à¤° मिनी बस मे यह लोग 18 सवारी को बैठाते  है. पर दशहरा होने के कारण बस वाले  को पूरी सवारी नहीं मिली थी. केवल 13 लोग ही जा रहे थे. इस सफ़र मे चार हम थे , 1 गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€. और 2 बंगाली दंपति थे 3 मराठी  मानà¥à¤· , इस तरह से 13 लोग अलग- अलग पà¥à¤°à¤¾à¤‚तो  के थे पर मंज़िल सबकी à¤à¤• थी. सबका समान बस की छत पर पैक कर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से निकलते हà¥à¤ 10 बज गये. हमारा पहला पड़ाव केदारनाथ था . कई टूर आपरेटर  पहले बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ ले जाते है उसके बाद केदारनाथ. वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ सà¤à¥€ धामो के दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजाना चाहिठऔर बदà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤¶à¤¾à¤² के दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद सीधे घर जाते हैं रासà¥à¤¤à¥‡ मे फिर किसी मंदिर या तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर नही जाना चाहिà¤. केदारनाथ धाम मे à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ लिखा हà¥à¤† है.
ऋषिकेश से आगे बढ़ते ही पहाड़ी रासà¥à¤¤à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हो गया .इस यातà¥à¤°à¤¾ से पहले हम कà¤à¥€ ऋषिकेश से आगे नही गये थे. हमारी बस पहाड़ी रासà¥à¤¤à¥‡ पर तेज़ी से आगे बढ़ रही थी. हमारे बाई ओर गंगा बह रही थी. ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° रासà¥à¤¤à¤¾ धूल à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† था. अधिक बारिश के कारण सड़को की हालत काफ़ी खराब  हो गयी थी. सड़क के किनारे पहाड़ो को देख कर लग रहा था पहाड़ बाढ़  के पानी से नहाठहà¥à¤ हैं. पेड़ उखड़े पड़े थे. पहाड़ धूल मिटà¥à¤Ÿà¥€ से अटे  हà¥à¤ थे.  बस गंगा के किनारे किनारे रासà¥à¤¤à¥‡ मे छोटे – छोटे से गाà¤à¤µà¥‹Â , कसà¥à¤¬à¥‹ से होती हà¥à¤ˆ चली जा रही थी. रासà¥à¤¤à¥‡ मे देखा कई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर शादी विवाह हो रहे थे. पहाड़ो पर दशहरा के दिन शादी विवाह के लिठबहà¥à¤¤ शà¥à¤ माना जाता है.Â
ऋषिकेश से 13 किलोमीटर आगे शिवपà¥à¤°à¥€ आता है यहाठसे गंगा के किनारे रेत मे लगे टेंट दिखने शà¥à¤°à¥‚ हो गये. शिवपà¥à¤°à¥€ , बà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ और कौड़ियालिया वाटर रफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग के लिठजाने जाते हैं. विशेषकर गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹ मे यहाठकाफ़ी लोग वॉटर रफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग के लिठआते है.करीब 1 बज रहा था जब हमारी बस देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पहà¥à¤à¤šà¥€. ऋषिकेश से करीब 70 किलोमीटर देव पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है. यहाठà¤à¤¾à¤—ीरथी और अलकनंदा का संगम होता है. यहाठसे गंगा के नाम से जाना जाता हैं.
मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से अलकनंदा के पाà¤à¤š पà¥à¤°à¤®à¥à¤– पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है. पाà¤à¤š पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—ो मे यह पाà¤à¤šà¤µà¤¾ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है. पहला पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है जहाठअलकनंदा से धौली गंगा मिलती है. दूसरा पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— ननà¥à¤¦à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है यहाठननà¥à¤¦à¤•िनी नदी अलकनंदा मे मिलती है. तीसरा पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— करà¥à¤£ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है यहाठपिंडर नदी अलकनंदा मे मिलती है. चौथा पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है. रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— मे मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती हैं और पाà¤à¤šà¤µà¤¾ देव पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—. देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— से आगे  शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र   है ( यह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड का शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र है ) ऋषिकेश से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र 105 किलोमीटर है , यह उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड का à¤à¤• बड़ा शहर है. शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र से आगे  रासà¥à¤¤à¥‡ मे कई विददà¥à¤¤ परियोजनाओ पर काम  चल रहा था.
कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर देखता हूठलबालब पानी से à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ गंगा बह रही है और कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर गंगा मे बहà¥à¤¤ कम पानी नज़र आता था. à¤à¤¸à¤¾ लगता था किसी ने पानी चà¥à¤°à¤¾ लिया हो. शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र  से आगे कालिया सौर आता है यहाठधरी देवी का मंदिर है | कालिया सौर से आगे   रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— है. रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— ऋषिकेश से 140 किलोमीटर है

रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— मे मंदाकिनी अलकनंदा  का संगम
रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— से 9 किलोमीटर आगे  तिलवारा है यहाठहम लोगो ने चाय पी. 10 मिनट का रेसà¥à¤Ÿ किया और फिर आगे  के लिठचल दिà¤. तिलवारा से 19 किलोमीटर आगे  अगसà¥à¤¤à¤®à¥à¤¨à¤¿  है . यहाठअगसà¥à¤¤à¤®à¥à¤¨à¤¿ का आशà¥à¤°à¤® है.यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हà¥à¤ शाम ढलने लगी थी. हमारे बाईं ओर  मंदाकिनी सड़क के साथ साथ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹  के बीच अठखेलियाठ करती हà¥à¤ˆ बह रही थी. बहà¥à¤¤ ही खूबसूरत और मनमोहक दà¥à¤°à¤¶à¤¯ था. सामने के पहाड़ो की चोटियो  पर सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ की किरणे  पड़ने से सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ रंग से चमक रही थी.मन तो कà¥à¤› समय यहाठपर रà¥à¤• कर पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤• सौंदरà¥à¤¯ को देखने को हो रहा था पर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को अपनी मंज़िल पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ की थी. अगसà¥à¤¤à¤®à¥à¤¨à¤¿  से 19 किलोमीटर आगे  कà¥à¤‚ड है यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हà¥à¤ अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ छा गया था. अब डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ मे बस चला रहा था. गà¥à¤ªà¥à¤¤ काशी  को पार  कर लगà¤à¤— 8 बजे सोन पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—  से 7 किलोमीटर पहले हम सीतापà¥à¤° पहà¥à¤à¤š गये. यहाठडà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने रात मे रà¥à¤•ने के लिठà¤à¤• होटेल के सामने बस रोक दी और बोला रात यहीं रà¥à¤•ेंगे , आप लोग सामने होटेल मे जाकर अपने लिठकमरा   देख कर तय कर लो. यह होटेल बहà¥à¤¤ ही साधारण था कमरो मे à¤à¤• अजीब सी गंध आ रही थी. मन मे विचार आया डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को यहाà¤Â से कमीशन  मिलता होगा तà¤à¥€ यहाठरोका है. मैने अपने लड़के से नज़दीक के दूसरे होटेल देखकर आने को कहा और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दूसरी तरफ जाकर होटेल देखने लगा. मà¥à¤à¥‡ इस होटेल से 100 गज पहले à¤à¤• नया बना हà¥à¤† साफ सà¥à¤¥à¤°à¤¾ होटेल मिल गया. इस  समय सीजन ना होने के कारण बिलà¥à¤•à¥à¤² खाली था. इस  समय तक इतने बड़े होटेल मे हमारा ही परिवार था. हमे 400 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के हिसाब से 2 डबल बेड का à¤à¤• रूम मिल गया. मैने बस के दूसरे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ बोला इस बेकार से होटेल मे ना ठहर कर मेरे वाले होटेल मे ठहरे.पर वह सारे उसी होटेल मे ही ठहरे. रात  मे जब हम खाना खाने बाहर निकले , मेरे से कà¥à¤› घोड़े वाले घोड़ा तय करने के लिठकहने लगे. पहले तो मैने यह सोंचा था कि  गौरी कà¥à¤‚ड से à¤à¤•-दो किलोमीटर पैदल चलने के बाद अगर नहीं चला जाà¤à¤—ा तो घोड़े कर लेंगे पर अब जब यह लोग जिस तरह की बाते कर रहे थे उससे लगा कि तय  ही कर लेना चाहिà¤. आने जाने के लिठ800 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घोड़ा तय हà¥à¤†.
अगले दिन हम सà¥à¤¬à¤¹Â 5.30 बजे उठगये. हाà¤à¤²à¤¾à¤•ि सफ़र की थकान के कारण इतने सà¥à¤¬à¤¹ उठने की इचà¥à¤›à¤¾  नही हो रही थी. उठकर बिजली की केटली मे चाय बनाकर पी. सफ़र मे बिजली की केटली और चाय बनाने का समान साथ ले कर चलता हूठ, कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि अकà¥à¤¸à¤° इन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर इतनी सà¥à¤¬à¤¹ चाय नही मिलती  है.  7 बजे तक तैयार  होकर जब हम लोग बस के पास पहà¥à¤à¤šà¥‡Â , देखा सारे लोग हम लोंगो का इंतजार कर रहे थे. गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ बोले हम तो सà¥à¤¬à¤¹Â 5 बजे ही तैयार हो गये थे , लेकिन कà¥à¤¯à¤¾ करे हम चार लोंगो को à¤à¤• - à¤à¤•  कर तैयार  होने मे समय तो लग ही जाता है. हाà¤à¤²à¤¾à¤•ि हमे खराब à¤à¥€ लगा की हमारे कारण यह लोग इतना लेट हो गये. यहाà¤Â हमारी बस मे हमारा घोड़े वाला और à¤à¤• दो दूसरे à¤à¥€ आ कर बैठ गये. यह लोग à¤à¥€ घोड़े के मलिक थे
गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ पहà¥à¤à¤š कर हमारा घोड़े वाला ही हमारा मारà¥à¤— दरà¥à¤¶à¤¨ करता चल रहा था. पहले हमे गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ पर ले कर गया , दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ यहाठसे सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर आगे  केदारनाथ के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजाते है. हम लोग होटेल मे ही नहा चà¥à¤•े थे और देर à¤à¥€ हो रही थी , घोड़े वाला बोला आप लोंगो पर गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ का जल छिड़क देता हूà¤Â . कà¥à¤‚ड के कोने मे अपनी दà¥à¤•ान लगाठपंडा ने जब यह देखा तो à¤à¤¤à¤°à¤¾à¤œà¤¼ करने लगा कà¥à¤² मिला कर उसे लगा की यह घोड़े वाला वगैर  कà¥à¤› दान दचà¥à¤›à¤¿à¤£à¤¾ के इन यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को लिà¤Â जा रहा है. Â
पंडा को दचà¥à¤›à¤¿à¤£à¤¾ देकर कर आगे  बढ़ा. तà¤à¥€ à¤à¤• पंडित जी आ गये , बोले केदारनाथ  जाने से पहले गौरी के दरà¥à¤¶à¤¨ करने चाहिà¤. अब वह पंडित जी मà¥à¤à¥‡Â गौरी मंदिर मे लेकर गये , केदारनाथ के पात खà¥à¤²à¤¨à¥‡ से पहले ,  à¤à¤—वान केदारनाथ की डो ली रात यही विशà¥à¤°à¤¾à¤® के लिठरोकी जाती है. गौरी  मंदिर से आगे  सिर कटा गणेश  का मंदिर है . बताया गया अब गणेश जी की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ पर सिर लगा दिया गया है. पहले सिर कटे गणेश की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ लगी थी. गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ से करीब 500 गज आगे  बहà¥à¤¤ से घोड़े वाले खड़े सवारी का इंतजार कर रहे थे.यहाठपर हम लोगों को उसने दो घोड़े वालो को बà¥à¤²à¤¾ कर आगे  ले जाने के लिठबोला. वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ यह खचà¥à¤šà¤°  होते हैं हम सब खचà¥à¤šà¤°  पर बैठकर पहाड़ के उबड़-खाबड़ रासà¥à¤¤à¥‡ पर चल दिà¤. हम पहली बार खचà¥à¤šà¤°  की सवारी कर रहे थे ,  सà¥à¤¨à¤¾ था यह खाई के किनारे किनारे ही चलता है. मैने घोड़े वाले को बोला ,  पहाड़ की तरफ ही चलना है. वह बोला , आज कल . à¤à¥€à¤¡à¤¼ नही है आप जिस साइड मे कहोगे उधर ही चलाà¤à¤à¤—े पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ के समय तो हमे किनारे ही चलना होता है. यहाठखचà¥à¤šà¤°à¥‹ मे à¤à¤• विशेष बात देखने को मिली कि रासà¥à¤¤à¥‡ मे मà¥à¤¤à¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤— यह अपने दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर ही कर रहे थे. थोड़ी- थोड़ी दूरी पर इन खचà¥à¤šà¤°à¥‹ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मूतà¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤— के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ कर रखे थे. à¤à¤¸à¤¾ नही था कि इंसान  की तरह जहाठमरà¥à¤œà¤¼à¥€ आई खड़े हो गये. मैने घोड़े वाले से पूछा कि   मूतà¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤— के बारे मे तो इनके aticates   है पर मल तà¥à¤¯à¤¾à¤— के लिठइनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कà¥à¤¯à¥‹ नही बनाया है पर घोड़े वाले के पास कोई जबाव नही था. हमारे बाईं ओर मंदाकिनी बह रही थी.Â
आगे  बढ़ने पर पहाड़ की तरफ à¤à¤• छोटा सा मंदिर था घोड़े वाले ने बताया यह à¤à¥€à¤® मंदिर है. यहाठपर हर 500 मीटर पर रासà¥à¤¤à¥‡ की दूरी का बोरà¥à¤¡ लगा था जिससे यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ को पता चलता रहे कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कितनी दूरी तय कर ली है | गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ से सात किलोमीटर आगे  रामबाड़ा है. रामबाड़ा पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से 50 गज पहले मंदाकिनी का जल पतà¥à¤¥à¤°à¥‹ से टकरा कर à¤à¤• तेज शोर पैदा कर रहा था. यह शोर इतना तेज था कि लग रहा था कई फाइटर विमान उड़ान à¤à¤° रहें हो. मंदाकिनी का जल दूधया रंग का दिख रहा था. रामबाड़ा मे सà¤à¥€ खचà¥à¤šà¤°  वाले विशà¥à¤°à¤¾à¤® करते है , Â
हम लोगो को बोला आप लोग à¤à¥€ जब तक चाय नाशà¥à¤¤à¤¾ कर ले. यहाठपर हमने लंगूर को मंदाकिनी के जल के बीच मे पड़े बड़े-बड़े पतà¥à¤¥à¤°à¥‹ पर इधर से उधर कूदते हà¥à¤ देखा. रामबाड़ा मे कà¥à¤› à¤à¤• छोटे होटेल à¤à¥€ है जहाà¤Â रात मे विशà¥à¤°à¤¾à¤® à¤à¥€ किया जा सकता है. रामबाड़ा समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से करीब 8500 फिट की उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ  पर है. रामबाड़ा के पास ही à¤à¤• काफ़ी बड़ा उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ  से गिरता हà¥à¤† वाटर फॉल है. बहà¥à¤¤ लोग यहाठरà¥à¤• कर फोटो खींच रहे थे.रामबाड़ा मे 15 मिनट के रेसà¥à¤Ÿ के बाद हम फिर खचà¥à¤šà¤°  पर बैठ कर चल दिà¤.
अà¤à¥€ हम रामबाड़ा से आगे  बढ़े  ही थे कि  अचानक à¤à¤• मोड़ पर देखता हूठ सामने विराट , विशाल केदार परà¥à¤µà¤¤ शिखर, धूप मे चाà¤à¤¦à¥€ की तरह चमकता हà¥à¤† अपने वैà¤à¤µ के साथ अवलोकित हà¥à¤†. यह दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯  अचंà¤à¤¿à¤¤ करनेवाला था. à¤à¤¸à¤¾ अदà¥à¤à¥à¤¤Â , अलौकिक दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯  इससे  पहले कà¤à¥€ नही देखा था. इस की सà¥à¤‚दरता  अवरà¥à¤£à¤¿à¤¤Â   थी. हमारे पास शबà¥à¤¦ नही होते है कि  उस सà¥à¤‚दरता का वरà¥à¤£à¤¨ कर सके. à¤à¤• अलौकिक सौंदरà¥à¤¯  हमारे सामने था , हम ढ गे से उसे निहार रहे थे तà¤à¥€ बदलो के बीच छिप  गया. सच तो यह है कि  फोटो से हमे उस जगह की सà¥à¤‚दरता का आà¤à¤¾à¤¸ ही होता है. जब हम उस सà¥à¤‚दरता को अपनी नंगी आà¤à¤–ो से देखते हैं तà¤à¥€ हमे उस सौंदरà¥à¤¯   के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं. अब हमारी निगाहे. उस दà¥à¤°à¥à¤¶à¥à¤¯  को देखने को बार- बार वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² हो रही. थी पर कà¤à¥€ बदल छटते  और à¤à¤• ठलक मिलती और छड़  à¤à¤° मे फिर बदल आ जाते. रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° यही लà¥à¤•ा - छà¥à¤ªà¥€ चलती रही.Â
रामबाड़ा से 3 किलोमीटर आगे  गरà¥à¤¡à¤¼ चटà¥à¤Ÿà¥€  है. अà¤à¥€ हम 2 किलोमीटर आगे  बड़े होंगे , देखा कई विशालकाय गरà¥à¤¡à¤¼  हवा मे तैर  रहे है.à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था छोटे-छोटे हवाई जहाज़ उड़ रहे हैं. केदारनाथ मंदिर से आधा किलोमीटर पहले हमे घोड़े वाले ने उतार दिया. मंदिर के रासà¥à¤¤à¥‡ मे हमे कई पंडा मिले जो मंदिर मे पूजा करने के लिठहमसे हमारा निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पूछ रहे थे. तà¤à¥€ à¤à¤• पंडा बोले आप  लखनउ  की तरफ के है तो हमारे साथ आठ, हम आपकी मंदिर मे पूजा करवा देंगे. मेरा पहला सवाल यही था , दचà¥à¤›à¤¿à¤£à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ लेंगे. बोले जो आप की शà¥à¤°à¤§à¤¾  हो दे देना कोई ज़बरदसà¥à¤¤à¥€ नही है. मैने कहा मेरी शà¥à¤°à¤§à¤¾    251 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ देने की है. वह खà¥à¤¶à¥€Â – खà¥à¤¶à¥€ रासà¥à¤¤à¤¾ बताते हà¥à¤ हमारे साथ हो लिà¤. मंदिर से थोड़ी सी दूरी पर à¤à¤• दà¥à¤•ान पर वह बोले आप लोग अपना समान यहाठरख कर मंदिर मे पूजा के लिà¤Â था ली ले लें , यहाठज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¡à¤¼ नही थी. मंदिर के दोनो ओर दà¥à¤•ाने व खाने पीने के होटेल बने हà¥à¤ थे. केदारनाथ धाम समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से 11750 फिट की उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ  पर है. दोपहर का समय था ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठंड नही थी. मैने अपनी जैकेट à¤à¥€ उतार दी थी.
पूजा की था ली  लेकर हम सब पंडा जी के साथ मंदिर मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया. मंदिर के पà¥à¤°à¤¥à¤® à¤à¤¾à¤— मे पाà¤à¤šà¥‹ पांडव की मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. मंदिर मे ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¡à¤¼ नही थी हमारे आगे 5-7 लोग खड़े अपनी बा री की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤šà¥à¤›à¤¾ कर रहे थे. कà¥à¤› लोग शिवलिंग के चारो तरफ बैठे हà¥à¤ पूजा कर रहे थे. मै मंदिर के गरà¥à¤ गà¥à¤°à¤¹ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर खड़ा हà¥à¤† पंजो के बल उचक कर शिवलिंग के दरà¥à¤¶à¤¨ करना चाह रहा था. केदारनाथ धाम मे गरà¥à¤ गà¥à¤°à¤¹ के फोटो खींचना वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है . इंटरनेट पर à¤à¥€ विगà¥à¤°à¤¹ के कोई फोटो मैने नही देखे. यहाठके बारे मे जो पढ़ा , सà¥à¤¨à¤¾ था वह यही कि  जब पांडव पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤  के लिठà¤à¤—वान शिव को ढूंड ते हà¥à¤ यहाठआठतब शिव उनको दरà¥à¤¶à¤¨ नही देना चाहते थे वह वà¥à¤°à¤· रूप मे वहाठचर रहे अनà¥à¤¯Â जा नवरो मे शामिल हो गये. जब à¤à¥€à¤® ने यह देखा तो दो पहाड़ो के बीच अपनी टाà¤à¤—े फैला कर खड़े हो गये और नकà¥à¤² से कहा की सà¤à¥€Â जा नवरो को मेरी  टाà¤à¤—ो  के नीचे से निकालो.à¤à¥€à¤® जानते थे की शिव उनकी टाà¤à¤—ो  के बीच से नही निकल सकते. जब शिव ने यह देखा तो वहीं à¤à¥‚मि पर अपना सिर गड़ा कर  पà¥à¤°à¤¥à¤µà¥€ मे समा हित होने लगे. à¤à¥€à¤® ने जब यह देखा तो दौड़ कर पकड़ना चाहा तब तक वà¥à¤°à¤· रूपी शिव की केवल पीठही पà¥à¤°à¤¥à¤µà¥€  के उपर बची थी. और वही वà¥à¤°à¤· का पà¥à¤°à¤·à¥à¤ à¤à¤¾à¤— को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है और उसी रूप मे यहाठà¤à¤—वान शिव की पूजा की जाती है.
यह करीब 9 फिट लंबी , 3 फिट चौड़ी और 4 फिट उà¤à¤šà¥€ विगà¥à¤°à¤¹ है. करीब 5-7 मिनट के बाद ही हमारा नंबर आ गया , पंडा जी ने हमे शिवलिंग के बाईं ओर बैठा कर पूजा आरंठकी. वहीं मंदिर की दीवार पर दिवà¥à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ जल रही थी. पूजा के मधà¥à¤¯ उसके दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठकहा ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤  हम सबको घी को शिवलिंग पर मल कर जल से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करवाया और अंत मे हम सबसे कहा, अपना मसà¥à¤¤à¤• शिवलिंग मे लगाà¤. मेरी पतà¥à¤¨à¥€ कहती है . मà¥à¤à¥‡ तो à¤à¤¸à¤¾ लगा कि  मै अपना मसà¥à¤¤à¤• किसी गà¥à¤¦à¤—à¥à¤¦à¥€ चीज़ से सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ कर रही हूà¤. हम यही कह सकते है कि  “जा की रही à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ जैसी , तीन देखी मूरत  बिन वैसीâ€

हम लोगो की à¤à¤• गà¥à¤°à¥à¤ª फोटो à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने खींच दी.
Â
पढ़ा था केदारनाथ मंदिर के पीछे शंकराचारà¥à¤¯à¤¾ की समाधि  है. यहाठआ कर विचार आया की जिनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने सनातन धरà¥à¤® की और चारो धाम की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की उनकी समाधि  के तो दरà¥à¤¶à¤¨Â अ वशà¥à¤¯ करने चाहिà¤.  मैने उनसे शंकरा चारà¥à¤¯à¤¾  की समाधि  सà¥à¤¥à¤² के बारे मे पà¥à¤›à¤¾. वह हमे अपने साथ वहाठलेकर गये . शंकरा चारà¥à¤¯à¤¾  की समाधि   मंदिर के पीछे बाईं ओर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. यह à¤à¤• बड़ा सा हाल है यहाठशंकरा चारà¥à¤¯à¤¾   की मूरà¥à¤¤à¤¿ , उनकी माता की मूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ मूरà¥à¤¤à¤¿Â सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. लौटते समय वहाठबैठे हà¥à¤Â साधà¥à¤“ को दान देने लगा , पंडा जी ने देखा तो बोले आप को अगर दान करना है तो आप यह थैली इस  महिला को दे दें वह महिला मंदिर के दà¥à¤µà¤¾à¤°  के पास बैठी थी. पूछने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने बताया की यह बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम जाना चाहती है इसलिठमैने इसको सारे पैसे दिलवाà¤.
मेरे native place  वाले घर मे à¤à¤• छोटा सा मंदिर बना है. इसमे शिवलिंग à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. माता जी पूजा के समय शà¥à¤°à¥€ शिव रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤•म का पाट करती थी. पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है
री रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤•मà¥
नमामीशमीशान निरà¥à¤µà¤¾à¤£à¤°à¥‚पं , विà¤à¥à¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•ं बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¥‡à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚पं।
निजं निरà¥à¤—à¥à¤£à¤‚ निरà¥à¤µà¤¿à¤•लà¥à¤ªà¤‚ निरीहं , चिदाकाशमाकाशवासं à¤à¤œà¥‡à¤¡à¤¹à¤‚॥ 1 ॥
निराकारमोंकारमूलं तà¥à¤°à¥€à¤¯à¤‚ , गिरा गà¥à¤¯à¤¾à¤¨ गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं , गà¥à¤£à¤¾à¤—ार संसारपारं नतोडहं॥ 2 ॥
तà¥à¤·à¤¾à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤¿ संकाश गौरं गमà¥à¤à¥€à¤°à¤‚ , मनोà¤à¥‚त कोटिपà¥à¤°à¤à¤¾ शà¥à¤°à¥€ शरीरं।
सà¥à¤«à¥à¤°à¤¨à¥à¤®à¥Œà¤²à¤¿ कलà¥à¤²à¥‹à¤²à¤¿à¤¨à¥€ चारॠगंगा , लसदà¥à¤à¤¾à¤²à¤¬à¤¾à¤²à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥ कणà¥à¤ े à¤à¥à¤œà¤‚गा॥ 3 ॥
चलतà¥à¤•à¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤‚ à¤à¥à¤°à¥‚ सà¥à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤‚ विशालं , पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¨à¤‚ नीलकणà¥à¤ ं दयालं।
मृगाधीशचरà¥à¤®à¤¾à¤®à¥à¤¬à¤°à¤‚ मà¥à¤£à¥à¤¡à¤®à¤¾à¤²à¤‚ , पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤‚ शंकरं सरà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥à¤‚ à¤à¤œà¤¾à¤®à¤¿à¥¥ 4 ॥
पà¥à¤°à¤šà¤£à¥à¤¡à¤‚ पà¥à¤°à¤•ृषà¥à¤Ÿà¤‚ पà¥à¤°à¤—लà¥à¤à¤‚ परेशं , अखणà¥à¤¡à¤‚ अजं à¤à¤¾à¤¨à¥à¤•ोटिपà¥à¤°à¤•ाशमà¥à¥¤
तà¥à¤°à¤¯: शूल निरà¥à¤®à¥‚लनं शूलपाणिं , à¤à¤œà¥‡à¤¡à¤¹à¤‚ à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€à¤ªà¤¤à¤¿à¤‚ à¤à¤¾à¤µà¤—मà¥à¤¯à¤‚॥ 5 ॥
कलातीत कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ कलà¥à¤ªà¤¾à¤‚तकारी , सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥€à¥¤
चिदाननà¥à¤¦ संदोह मोहापहारी , पà¥à¤°à¤¸à¥€à¤¦ पà¥à¤°à¤¸à¥€à¤¦ पà¥à¤°à¤à¥‹ मनà¥à¤®à¤¥à¤¾à¤°à¥€à¥¥ 6॥
न यावदॠउमानाथ पादारविंदं , à¤à¤œà¤‚तीह लोके परे वा नराणां।
न तावतà¥à¤¸à¥à¤–ं शानà¥à¤¤à¤¿ सनà¥à¤¤à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾à¤¶à¤‚ , पà¥à¤°à¤¸à¥€à¤¦ पà¥à¤°à¤à¥‹ सरà¥à¤µà¤à¥‚ताधिवासं॥ 7 ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां , नतोडहं सदा सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ शमà¥à¤à¥ तà¥à¤à¥à¤¯à¤‚।
जराजनà¥à¤® दà¥:खौघ तातपà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨à¤‚ , पà¥à¤°à¤à¥‹ पाहि शापनà¥à¤¨à¥à¤®à¤¾à¤®à¥€à¤¶ शंà¤à¥‹à¥¥ 8 ॥
रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤•मिदं पà¥à¤°à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤‚ विपà¥à¤°à¥‡à¤£ हरतोषये। ये पठनà¥à¤¤à¤¿ नरा à¤à¤•à¥à¤¤à¤¯à¤¾ तेषां शमà¥à¤à¥: पà¥à¤°à¤¸à¥€à¤¦à¤¤à¤¿à¥¥ 9 ॥
2-3 घंटे मंदिर के पास बिता कर वही à¤à¤• होटेल मे खाना खाया. वापसी के लिठचल दिà¤.घोड़े वाला हमारा इंतजार कर रहा था.   उतरते समय तो बहà¥à¤¤ दिकà¥à¤•त महसूस हो रही थी. बार- बार पैर आगे शरीर  पीछे  घोड़े वाले सà¥à¤¨à¤¤à¥‡Â – सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ परे शान  हो गया. रामबाड़ा मे जब 15 मिनट का रेसà¥à¤Ÿ लिया तो थोड़ी सी राहत  मिली पर अà¤à¥€ 7 किलोमीटर और जाना था. कà¥à¤¯à¤¾ करता फिर घोड़े पर बैठकर चल दिà¤.  घोड़े पर इतनी दिकà¥à¤•त हो रही थी पर यह नही हà¥à¤† कि पैदल चल दे. यह बात जब नीचे उतर गये तब धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आई. शायद अपने आप पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नही था.  गौरिकà¥à¤£à¥à¤¡ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हà¥à¤Â अंधेरा  ढल आया था. सà¤à¥€ लोग दरà¥à¤¶à¤¨ कर के आ गये थे. बातो  ही बातो  मे पता लगा कि  à¤à¤• बंगाली दंपति गौरी कà¥à¤‚ड मे ही घूमते रहे वह उपर गये ही नही. पूछने पर बताया की वह पैदल जा नही सकते थे और घोड़े पर बैठने से डर  लग रहा था. वापस होटेल पहà¥à¤à¤šà¥‡. सà¤à¥€ खचà¥à¤šà¤°  की सवारी से इतने थके हà¥à¤ थे कि कमरे मे पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही बिसà¥à¤¤à¤° पर लंबे हो गये.Â














गौरीकुंड में काफ़ी सस्ता व अच्छा होटल मिलता, लेकिन आप तो सोनप्रयाग से भी पहले रुक गये।
वही से घोडे वाले भी मिल गये, गजब।
बहुत सताया घोडे ने आपको। होता है ऐसा भी होता है।
प्रिय संदीप
आप तो पैदल चढ़ाई चढ़ गये होंगें पर मे यह समझता हूँ कि सभी का यही हाल होता होगा.
बहुत अच्छा वर्णन है, फोटो काफी सुंदर हैं. मनाली या केदारनाथ, पहाड़ तो दोनों जगह हैं, पर केदारनाथ में भोले बाबा के सामने शीश निवाने से जो आनंद मिलता वोह दुर्लभ है. यात्रा शेयर करने का बहुत बहुत धन्यवाद
शर्मा जी
मेरे एक मित्र ने बताया था कि केदारनाथ के दर्शन से एक विशेष अनुभूति होती है. अब देखिए ना कि कहाँ तो मेरे को यह विश्वास नही था कि मे वहाँ तक जा पा उंगा और कहाँ अगले वर्ष अमरनाथ धाम के दर्शन हो गये.
Great blog, Rastogi ji. You have written very well and the pictures are simply superb. What I liked most is the darshan of the samadhi of Adi Shankaracharya, the great saint who reformed Hinduism and expounded on the Advaita, which represents the highest intellectual achievement in human history.
There are many intellectuals who claim that India was a British invention. The life of Adi Shankara, who was born in Kerala and travelled to the furthest corners of Indiain all directions, proves that the idea of India is a very ancient one even if our country was fragmented politically into several kingdoms.
thanks a lot
aapki yatra bahut achchhi rahi,varnan bhi dilchasp hai.bahut badhia laga aapka ye yatra.jaisa aapki mata ji ne kaha ki budhape me jana chahiye aisi jagah ,lekin mujhe bhi aapka khayal pasand aaya ki aisi jagaho par young age me hi jana chahiye.main pehli baar 2001 october me 30 yrs ki age me gaya tha aur rishikesh se aage badhe hi prakritik drishya dekh kar pagla gaya tha,usi ka natija ye raha ki main 2009 me fir se badri vishal aur kedar baba ke darshan ko pahunch gaya.aur irada is deshare me bhi rakha hai jane ka.wakai ye jagahe devbhumi hai yahan sach me devta niwas karte hain.
dear rajesh
मेरी माताजी जी ने नही बल्कि मेरे एक साथी की माताजी ने उससे ऐसा कहा था कि इन जगहो मे बूढ़े होने पर जाया जाता है. तब मैने उससे पूछा था , क्या तुम्हारी माता जी वहाँ गयी हैं, या इस समय वह जा सकती है. तब उसके पास कोई जबाब नही था.
बहुत अच्छी बात है आपको इस दशहरे मे वहाँ के दर्शन हो जाए.
रस्तोगी जी,
बहुत ही सुन्दर वर्णन था, पढ़ते पढ़ते मन रम गया था. तस्वीरें भी बड़ी आकर्षक थीं. केदारनाथ तथा बद्रीनाथ का वर्णन तथा तस्वीरें पढने देखने का मुझे जहाँ भी अवसर मिलता है मैं छोड़ता नहीं हूँ, इन जगहों पर जाने की बहुत तीव्र इच्छा है देखें भगवान कब बुलाते हैं. ईश्वर आपको ऐसे ढेरों अवसर सामर्थ्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करे.
धन्यवाद.
मुकेश जी,
आपकी इच्छा की तीव्रता देखते हुए भोले बाबा आपको जल्द ही दर्शन देंगे, ऐसा हमारा विश्वाश है. और हाँ, यदि मेरी मानो तो (यदि ठंड से ज्यादा डर न लगता हो तो) यहाँ का प्रोग्राम अक्टूबर में ही बना डालो, सुनहरा अवसर होता है, कोई भीड़ भाड़ नहीं, तसल्ली से दर्शन करो….
जय भोले की, जय बद्री विशाल….
अगर आपके अंदर ऐसी अभिलाषा है तो मुझे लगता है कि जल्द पूरी होगी. क्योकि अगर कोई ह्रदय से इन जगहों पर जाना चाहता है तो भगवान उसे अवश्य दर्शन देने के लिए बुलाते है.
रस्तोगी जी,
केदारनाथ का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है और चित्र भी बढ़िया हैं | मैं भी आपकी इस बात से सहमत हूँ कि धार्मिक यात्रायें जवानी मैं ही कर लेनी चाहियें तभी इनका आनंद लिया जा सकता है | बाकी एक बात कहना चाहूँगा कि इन जैसी जगहों पर जाने के लिए मन मैं इच्छा का उत्पन्न होना ही प्रभु का बुलावा समझना चाहिए | परन्तु आपकी इच्छा भी शुद्ध और पवित्र मन से होनी चाहिए फिर देखिये प्रभु आपको कैसे बुलाते हैं अपने दर पर तथा बाकी की रुकावटें जो होती हैं वो भी कहाँ छू मंतर हो जाती हैं , इसका भी कुछ पता नहीं चलता | आपकी यात्रा पड़ कर मुझे भी अपनी केदारनाथ-बद्रीनाथ यात्रा का संस्मरण हो आया जो कि मैंने जून, २०११ मैं की थी |
धन्यवाद |
raman ji
अच्छा लग पढ़ कर कि पिछले वर्ष आप को भी वहाँ जाने का सौभाग्य प्राप्त हो गया. सच कह रहे हैं आपकी इच्छा भी शुद्ध और पवित्र मन से होनी चाहिए
कम्लांश जी,
आपके नाम की तो शायद मैं पहले ही प्रशंशा कर चुका हूँ, आपकी लेखनी भी बहुत अच्छी है .
जब बात चल ही पड़ी है तो बता दूं इसी Vrash (हिंदी में मैं ठीक से लिख नहीं पा रहा हूँ) का अग्र भाग पशुपतिनाथ के नाम से नेपाल में स्थित है. और रुद्राष्टकम के तो कहने ही क्या, जब भी बोलो तो तन मन में एक अलग ही जोश का संचार होता है.
बहुत ही सुंदर वर्णन और आगे के वर्णन का इंतज़ार,
जय केदार जय बद्री विशाल……..
कौशिक जी
संजय यानी दिव्य द्रष्टी वाले. मेरे छोटे भाई का नाम भी संजय है और मेरे ताया जी उसे इसी तरह बुलाते थे. आपने मेरे नाम का सही अर्थ बताया था. सयोंग कि मेरी माता जी का नाम लक्ष्मी है
रस्तोगी जी
सबसे पहले आपको कमेन्ट के द्वारा धन्यवाद देना चाहता हूँ की आपकी अमरनाथ की पोस्ट मुझे काम में आई थी. आपको पहलगाम से फोन करने वाला था लेकिन मैं पूरा मग्न हो गया.
रही बात इस पोस्ट की तो यह एक बहुत बढ़िया जानकारी देने वाली पोस्ट है . गौरी कुण्ड और केदार धाम के बीच के रास्ते के बारे में मैंने यह पहली बार पढ़ा है. घोडो की आदते अजीब है केदार में कुछ और, और अमरनाथ में कुछ और , वहा अमरनाथ में तो कही भी शुरू हो जाते थे . हा हां हां.मंदिर के गर्बग्रिह का वर्णन पढकर मैं वहा पहुच गया था . इसलिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
और हाँ मेरी और कथा की मानो तो जगद्गुरु आदि शंकराचार्य स्वयं भोलेनाथ के अवतार थे. इसलिय वहा ज्योतिर्लिंग के बगल में उन्होंने अपनी समाधि ली और वही लिंग में लिप्त हो गए.
इस पोस्ट के चित्रों का तो जवाब ही नहीं.
फिर से धन्यावाद . आगे के लेखो का इन्तेज़ार
dear vishal
मुझे मालूम है कि आजकल तुम भी लिखने मे व्यस्त हो पर साथ ही साथ मैने देखा है कि लगभग सभी लेखो को पढ़ कर अपने कमेंट्स लिखते रहते हो. सोनाली नाराज़ नही होती कि ऑफीस के बाद लग जाते हो घुमक्काडी मे. बहुत बहुत बधाई तुम दोनो को
मेरे ओफीस में घुमाक्कर की खिडकी चालू रहती है. ज्यादा पंगे नहीं है मेरे यहाँ .
तिलवाडा में हम गये थे अपनी बाइक यात्रा से । गंगोत्री के दर्शन करने के बाद शार्टकट मारकर घनस्याली होते हुए केदारनाथ के रास्ते पर तिलवाडा में ये रास्ता निकलता है जो कि नदी के दूसरी ओर है
रस्तौगी जी आपका शुद्ध हिंदी लेखन और बेहतरीन फोटोग्राफस दोनो मिलकर आपके यात्रा वृतांत को रोचक बना देते हैं
आपका प्रोफाइल आपके बारे में काफी कुछ कहता है । अच्छा लिखने के लिये अच्छा पढना जरूरी होता है
प्रिय मनु
अभी तुम्हारी उम्र है कि इन जगहो पर मोटरसाइकल से जा सकते हो. और हाँ थोडा सा रिस्क ज़रूर रहता है पर समझदारी से चलाया जाए तो कोई हर्ज नही. , वैसे यादे तो ताजी हो ही जाती है.
सबसे पहले तो सभी पाठकों से साझा करना चाहूँगा की हम लोग पशो-पश में थे की क्या इस पोस्ट को दो हिस्सों में बांटा जाए | रस्तोगी जी से सलाह की तो उन्होंने मुझ पर छोड़ दिया | दो तीन बार पढने के बाद मुझे ऐसा लगा की बाँट कर इसका बहाव टूट जाएगा इसलिए अगर आपको ये लेख लम्बा लगा हो तो उसका सारा दोष मुझ पर है | एक बार फिर से पढ़ कर वैसे लगता है की निर्णय ठीक ही था बाकी पाठकों पर |
रस्तोगी जी – बहुत ही सरलता से आपने पूरा विविरण लिखा | बहुत से छोटी छोटी बातें (जैसी के बिजली की केतली , दशेहरा में गंगा घाट का साफ़ होना, रास्तों के दूरी वगैरह ) आपने बिना ज्यादा जद्दो-ज़हद किये बड़ी ही सुगमता से लेख में पिरोई हैं इसलिए लिए साधुवाद | प्रयागों के बारी में लिखी गयी सटीक और मुख़्तसर जानकारी बहुत ही अच्छी लगी | मेरे ख्याल से इस तरह का लेख काफी प्रभावी होता है और ये संतुलन समय के साथ ही आता है | हम लोग आप से ये सीखेंगे ऐसा मेरा विश्वास है |
आपका प्रोफाइल फोटो साफ़ नहीं है, वक़्त मिलने पर एक क्लोस अप लगायें |
चलें बद्री की और ?
नंदन जी
मैने देखा है कि हमारे लेखक गण एक ही यात्रा को कई भागो मे प्रकाशित करते है. पढ़ने वाले का तारतम्य टूट जाता है. एक अध्याय समाप्त होने बाद अगर ब्रेक लिया जाय तब तो ठीक है पर हमारे लेखक तो छोटे – छोटे से ब्रेक दे कर अगर एक यात्रा को पूरा करते है तो यह उचित नहीं लगता है.
रस्तोगी जी – धन्यवाद् आपके सुझाव के लिए | एक अध्याय के बाद ब्रेक उचित रहता है | हम अपने लेखकों के साथ इस विषय पर और गंभीरता से काम करेंगे | इस बारे में मुझे कई लोगों ने अलग से भी बोला है | पोस्ट दिशा निर्देशों को संशोधित किया जा रहा है | धन्यवाद एक बार फिर से |
नंदन जी
मै अपनी बात को इस तरह से स्पष्ट करना चाहता हूँ जैसे कि अगर किसी एक पर्यटन स्थान या धार्मिक स्थल पर हम जाते है. और यात्रा व्रतान्त को 4 भागो मे लिखते है. तो वह चारो भाग एक साथ प्रकाशित हो. जैसे कि मे मनु प्रकाश त्यागी का मणि महेश यात्रा पढ़ रहा था. मुझे उत्सुकता थी कि जल्द से जल्द पूरा पढ़ कर जानकारी हासिल की जा सके. पर लेख धारावाहिक की तरह प्रकाशित हो रहा है . अगर एक साथ चाहे वह 6 या 8 भागो मे होता तो कहीं ज़्यादा अच्छा रहता. बाकी तो सभी की अपनी अलग राय हो सकती है.
और एक छोटी से बात और, करीब करीब २० साल मैने ये शिव रुद्राष्टकम सुना है अपने मां के मुख से, रोज़ पूजा के वक़्त | पर कभी इस बारे में बात नहीं हुई, पूजा पाठ में मेरी रूचि नहीं रही | पिछले करीब २० साल से अकेले और उसके बाद अपने परिवार के साथ रह रहा हूँ तो इस बीच में कभी सुनने का खास मौक़ा नहीं लगा और आपके लेख में साथ साथ पढ़ पा रहा हूँ , कंठस्त नहीं है पर सहयोग दे सकता हूँ पूरी गति के साथ | :-) साधुवाद |
नंदन जी
इतने कम समय मे पढ़ कर घुमक्कड़ पर प्रकाशित करने के लिए बहुत धन्यवाद . सबसे बड़ी बात मुझे यह लगी कि आपने पूरा लेख बहुत ध्यान से पढ़ा, वरना रोज ही 3-4 लेख प्रकाशित हो रहे हैं. जहाँ तक शिव रुद्राष्टक का प्रश्न है तो यह पूरा तो मुझे भी पूरी तरह से कंठस्त नही है , पर जब सब लोग मिल कर पाठ करते है तब बहुत अच्छा लगता है. एक तरह से अध्यात्मिक वातावरण बन जाता है. इसी तरह से शिव तांडव स्त्रोत भी सुबह के समय अक्सर सीडी लगा कर सुनता हूँ.
Aadarniye Rastogiji, Asaadharan lekhan kala ke darshan kar rahha hoon. kisi bhi lekhan ki dharavahikta aur sampoornta uss lekh ki safalta ka bahut hi mahetvapurn paksh manaa gaya hey. keval iss bhay se ki kahi monotonous na lage hum lekho ko kai bhago mein padhtey hey. Parantu aapkey is purey sansmaran ko padhkar mujhey lagaa kisi chalachitra ko dekh rahaan hoon. mujh jaise sadharan hindi pathak ke liye isse saral koi abhivyakti nahi ho sakti. Aap ki lekhni par aapki dharmik pravittiyon ka abhas milta hey, jisme shudhhata aur bhakti ka ek jugm samavesh pratit hota hey. kshama chahta hoon ki yeh lekh thode vilamb ke baad padh paya, anyatha pehle hi ye udgaar dhanyavaad swaroop abhivyakt ho jaate. Saparivar aapko dekhkar ek poorn bhartiye sanskriti ki upasthiti evum jagriti dekhne ko mili. Shri Badrinath aur Kedarnath yatra ke iss vrittant ko bhulana kathin hoga, nishchit hi apne priye jano ke saath iska bar bar rasaswadan leta rahoonga. Iss punye karye hetu apka hriday se dhanyabad.
प्रिय विश्वजीत ,
आज काफी समय के बाद , अचानक मै अपनी पुरानी यादो को ताजा करने के लिए अपना बद्रीनाथ – केदारनाथ पर लिखा लेख पढने लगा। देखा आपने समय निकल कर बहुत मन से पढ़ा और बहुत ही सुन्दर मनोभाव प्रकट किये। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। एक सुखद अनुभूति हुई। बहुत ही अच्छी हिंदी की जानकारी आपको है.
बहुत -बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ईशà¥à¤µà¤° जिसके à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ में दरà¥à¤¶à¤¨ का सà¥à¤…वशर दे ! सैलानियों को मेरा हà¥à¤°à¤¦à¤¯ से पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® |
Har har mahadev