Ladakh Yatra

भाग8: रुम्त्से (Rumtse) – कोकसर – मणिकरण – सुंदरनगर – नॉएडा…………… 16/17/18-सितम्बर

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अगले दिन सुबह 8:00 बजे घर की तरफ दौड़ पड़े। शाम 7 बजे राहुल को घर छोड़ा और यहीं पर सबने अंकल का हिसाब-किताब भी दे दिया। वैसे तो अंकल के 2000/- प्रतिदिन के हिसाब से 20000 रुपया बनता था लेकिन अंकल ने गाड़ी की इंजन पैकिंग की मरम्मत के लिए 2000 रुपया एडवांस ले लिया था, वो कट कर उनको 18000 रुपया पकड़ा दिया। वो बहुत खुश हुए। अंकल ने आखिर मे कह डाला कि “आप लोगों की बदौलत मे भी लद्दाख देख आया हूँ। अन्यथा जिन्दगी मे कभी जाने का मौका नहीं मिलता”। राहुल को अलविदा कर दिया। हम सब लोग थोडा इमोशनल हो गए थे। 10 दिन एक साथ ऐसे सफ़र पर रहने से और एक दुसरे पर बिना संदेह भरोसा करने से दिल के तार जुड़ ही जाते हैं। यहाँ से अंकल ने मुझे घर छोड़ा। यहाँ से हरी और मनोज को वो दिल्ली एयरपोर्ट छोड़ने निकल पड़े। अगली सुबह हरी और मनोज का कॉल आया की वो सकुशल पहुँच गए थे।

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लेह – पैंगोंग – लेह…………… भाग6

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धुप ना होने की वजह से यहाँ पर ज़बरदस्त ठंड लग रही थी। मुझे छोड़ कर सब नीचे उतर गए। मेरी तो पहले से ही लगी पड़ी थी और गरम सीट को छोड़ कर बाहर ठंड मे जाने का मेरा कोई विचार नहीं था। तभी हरी ने कहा की चाय बनवा ली है और यहीं पर कुछ खा भी लेते हैं। मैंने मन मे सोचा यहाँ तो पत्थर ही मिलेंगे खाने को। मरा हुआ मन लेकर मैं हरी के साथ चल दिया। अरे वाह क्या बात है यहाँ तो मुफ्त का एक डिसपेंसरी थी, “चांग ला” बाबा का मंदिर और एक रेस्त्रौंत था। गाड़ी से बाहर निकल कर अच्छा लगा और हरी के साथ मैं रेस्त्रौंत मे घुस गया। यहाँ एक बोर्ड पर लिखा था “1st Highest Cafeteria in the world”.

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लेह – खर्दुंग ला – हुन्डर (नुब्रा वैली) – लेह – भाग5

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अब हरी का दिल तेजी से धड़कने लग गया था। इस बार मैं मज़ाक नहीं कर रहा, सही मे हरी घबरा गया था। वो इंग्लिश मे बोला “टेल हिम टु ड्राइव केयरफुली” Or “आस्क हिम टु स्टॉप एंड यू ड्राइव”। उसकी ये बात सुनकर हम हंसने लगे। इस बार अंकल की छटी इंद्री जाग गई और बोले कि “हरी तू बहुत घबराता है, मनोज भी तो पहली बार आया है वो तो चुप-चाप बैठा है”। अब अंकल को क्या पता की मनोज तो इतना घबराया हुआ था कि मुह से एक शब्द भी नहीं बोल पा रहा था। लेकिन अंकल अपनी चाल मे ही गाड़ी चलाते रहे और हरी भी “खर्दुंग ला” तक इंग्लिश मे कुछ ना कुछ बडबडाता ही रहा। सही बोलूँ तो राहुल और मेरा अच्छा एन्जोयमेंट होता रहा। हम “खर्दुंग ला” टॉप पहुँच गए। हरी ने जल्दी गाड़ी से नीचे उतरने की शिफारिश की और चैन की साँस भरी। अब जाकर बेचारा मुस्कराया था।

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