4 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011 की सà¥à¤¬à¤¹ करीब छह बजे मेरी आंख खà¥à¤² गई। देखा कि ‘होटल’ मालिक समेत सब सोये पडे हैं। होटल में अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® à¤à¥€ थे। तय कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आज हमें 29 किलोमीटर चलना था- दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ 12 किलोमीटर, पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ से दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ वापस 12 किलोमीटर और दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से खटिया 5 किलोमीटर। खटिया कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के रासà¥à¤¤à¥‡ में पडता है। दिन à¤à¤° में 29 किलोमीटर चलना आसान तो नहीं है लेकिन सोचा गया कि हम इतना चल सकते हैं। मà¥à¤à¥‡ अपनी सà¥à¤ªà¥€à¤¡ पर तो à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ है, अतà¥à¤² चलने में मेरा à¤à¥€ गà¥à¤°à¥‚ साबित हो रहा था, और रही बात हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® की तो उसके साथ à¤à¤• पॉरà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह था जिसकी वजह से हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® बिना किसी बोठके चल रहा था और सà¥à¤ªà¥€à¤¡ à¤à¥€ ठीकठाक थी। कहीं à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ नहीं लगा कि हम आज खटिया नहीं जा पायेंगे।
मेरे उठने की आहट सà¥à¤¨à¤•र होटल वाला à¤à¥€ उठगया। उठते ही चूलà¥à¤¹à¤¾ सà¥à¤²à¤—ा दिया और चाय बनाने लगा। वैसे तो हमारे साथ बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड à¤à¥€ था लेकिन आज उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मातà¥à¤° बारह किलोमीटर चलकर पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° के पास टेणà¥à¤Ÿ लगाना था। इसलिये आज उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चलने की कोई जलà¥à¤¦à¥€ नहीं थी। वे दोनों यानी बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड और उसका गाइड देवा सोते रह गये और हम पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ के लिये चल दिये।
जितनी चरà¥à¤šà¤¾ मैंने दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से पांच किलोमीटर आगे फà¥à¤°à¤•िया तक के रासà¥à¤¤à¥‡ के बारे में सà¥à¤¨à¥€ थीं, वे सब à¤à¤• तरह से अफवाह सी साबित हà¥à¤ˆà¤‚। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ निवासी कहते हैं कि पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ का सबसे कठिन à¤à¤¾à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€-फà¥à¤°à¤•िया खणà¥à¤¡ ही है। लेकिन चलते समय à¤à¤• बार à¤à¥€ महसूस नहीं हà¥à¤† कि हम अपनी यातà¥à¤°à¤¾ के कठिनतम à¤à¤¾à¤— पर चल रहे हैं। हां, à¤à¤• मà¥à¤¶à¥à¤•िल यह थी कि इस रासà¥à¤¤à¥‡ पर आज जाने वाले हम पहले इंसान थे, इसलिये घनघोर जंगल में पतली सी पगडणà¥à¤¡à¥€ पर चलते समय जगह-जगह जाले मिल जाते थे। जालों से परेशान होकर कà¥à¤› देर तक अतà¥à¤² मà¥à¤à¤¸à¥‡ पीछे पीछे चला लेकिन मेरी धीमी चाल की वजह से आगे निकल गया। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® मà¥à¤à¤¸à¥‡ पीछे ही रहा।
बात चल रही थी कठिन à¤à¤¾à¤— की तो मैं इस यातà¥à¤°à¤¾ के शà¥à¤°à¥‚आती 11 किलोमीटर को कठिनतम मानता हूं जब हमें धाकà¥à¤¡à¥€ धार पार करके सरयू घाटी को छोडकर पिणà¥à¤¡à¤° घाटी में पहà¥à¤‚चना था। धाकà¥à¤¡à¥€ धार पार करने के बाद 8 किलोमीटर दूर खाती तक नीचे उतरना होता है, फिर 11 किलोमीटर आगे दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ तक मामूली चढाई है। à¤à¤• तरह से धाकà¥à¤¡à¥€ धार की चढाई शरीर को आबोहवा के अनà¥à¤•ूल बनाती है, तो जिसने यह चढाई सही सलामत पूरी कर ली, उसे मैं गारणà¥à¤Ÿà¥€ दे सकता हूं कि गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक कोई दिकà¥à¤•त नहीं आयेगी।

दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ का रासà¥à¤¤à¥‡ में बहà¥à¤¤ à¤à¥‚-सà¥à¤–लन मिलता है।
ढाई घणà¥à¤Ÿà¥‡ बाद साढे नौ बजे फà¥à¤°à¤•िया पहà¥à¤‚चे। अतà¥à¤² आधे घणà¥à¤Ÿà¥‡ पहले ही यहां पहà¥à¤‚च गया था। यहां पहà¥à¤‚चते ही अतà¥à¤² ने à¤à¤²à¥à¤²à¤¾à¤•र कहा कि यार, तू कितना धीमा चलता है। मà¥à¤à¥‡ आधा घणà¥à¤Ÿà¤¾ हो गया है यहां आये हà¥à¤à¥¤ मैंने कहा कि हमने चलने से पहले ही नियम बना दिया था। उस नियम के तहत तू अगर किसी दूसरे की वजह से लेट हो रहा है तो उसे छोडकर आगे निकल सकता है। लेकिन इस तरह दूसरे पर आरोप नहीं लगा सकता। अतà¥à¤² को गलती का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हà¥à¤† और उसने फिर यह बात नहीं कही।
फà¥à¤°à¤•िया समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 3210 मीटर की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यहां से पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° सात किलोमीटर दूर है। ननà¥à¤¦à¤¾ देवी समूह की कई चोटियां खासकर पंवालीदà¥à¤µà¤¾à¤° चोटी यहां से बडी शानदार दिखती है। अब जंगल à¤à¥€ खतà¥à¤® हो गया और आगे का रासà¥à¤¤à¤¾ बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ से होकर जाता है। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ की ही तरह फà¥à¤°à¤•िया à¤à¥€ कोई गांव नहीं है बलà¥à¤•ि रà¥à¤•ने-खाने की à¤à¤• जगह है। यहां कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚ मणà¥à¤¡à¤² विकास निगम का रेसà¥à¤Ÿ हाउस à¤à¥€ है और पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ होटल à¤à¥€à¥¤ इन होटलों को à¤à¥Œà¤‚पडियां कहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठीक लगता है। à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• होटल में चाय बनवाई गई और बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ का à¤à¤• पैकेट खाली किया गया।

फà¥à¤°à¤•िया
हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® के पॉरà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª ने पूछा कि ऊपर ही रà¥à¤•ना है या वापस आना है। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ने इशारा मेरी तरफ कर दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पूरी यातà¥à¤°à¤¾ में दिमाग खरà¥à¤š करने की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ जाट महाराज की ही थी। इधर तो वापस आकर दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ से à¤à¥€ आगे कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° मारà¥à¤— पर जाने की सोचे बैठे थे। हमारी वापसी की खबर सà¥à¤¨à¤•र पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª ने हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® से कहा कि जब वापस ही आना है तो आपका सामान यही रख देते हैं, वापसी में उठाते चलेंगे। यह आइडिया मà¥à¤à¥‡ पसनà¥à¤¦ आया और अपना सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग यही रख दिया जबकि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® को यह बात बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ पसनà¥à¤¦ नहीं थी कि ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ लेने पर à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सामान उठाकर ना चले। और पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª की बात ठीक ही थी, जब ऊपर रà¥à¤•ना ही नहीं है तो फालतू में सामान उठाकर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चलें?
हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ने बहाना बनाया कि मà¥à¤à¥‡ ऊपर ही रà¥à¤•ना है। पता चला कि अगर ऊपर रà¥à¤•ना है तो अपने साथ कम से कम सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग तो होना ही चाहिये। मैं अपना सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग देने से तो रहा। फà¥à¤°à¤•िया में à¤à¥€ वैसे तो सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग मिल जाते हैं लेकिन उस दिन नहीं मिला। à¤à¤•मातà¥à¤° चारा यही था कि वापस पांच किलोमीटर नीचे दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ जाओ और दो सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग (हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® और पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª दोनों के लिये) लेकर आओ। इसके लिये पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª राजी नहीं था। मैं समठगया कि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® जिद कर रहा है। खूब समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि अगर आपको ऊपर ही रà¥à¤•ना था तो यह डिसीजन पहले कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं लिया।
जब सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग का इंतजाम नहीं हà¥à¤† और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® को लगने लगा कि अब सामान यही छोडने से बचाने के लिये कोई तरà¥à¤• नहीं है तो उसने सीधे सीधे कह दिया कि मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ दे रहा हूं, सामान साथ ले जाना पडेगा।

ननà¥à¤¦à¤¾à¤–ाट और पंवालीदà¥à¤µà¤¾à¤° चोटियां

फà¥à¤°à¤•िया के बाद à¤à¤¸à¤¾ रासà¥à¤¤à¤¾ हो जाता है।
खैर, आगे चल पडे। अतà¥à¤² चलने में हवा से बातें कर रहा था इसलिये तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ ही आंखों से ओà¤à¤² हो गया। फà¥à¤°à¤•िया से करीब आधा किलोमीटर बाद à¤à¤• तेज नाला मिलता है। हमने वैसे तो अब तक कई नाले पार किये थे, लेकिन इतना बडा नहीं। जहां पगडणà¥à¤¡à¥€ इसमें जाकर समाती है वहां इसे पार करने का कोई तरीका नहीं है। ना ही कोई à¤à¤¸à¤¾ पतà¥à¤¥à¤° दिखा जिसपर पैर रख-रखकर इसे पार कर सकें। मैं अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¥‡ से कà¥à¤› ऊपर चढा तो पानी में पडे कà¥à¤› पतà¥à¤¥à¤° दिख गये। पार कर लिया। पार करने के बाद कà¥à¤› आगे निकलकर पीछे देखा तो उसी जगह पर हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® और पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª खडे थे, जहां पगडणà¥à¤¡à¥€ नाले में समाती है। सीधी सी बात है कि पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª à¤à¥€ रासà¥à¤¤à¤¾ ढूंढने के लिये ऊपर चढने लगा। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® उसके पीछे-पीछे। तà¤à¥€ अचानक हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® का पतà¥à¤¥à¤° से पैर फिसला और वो सीधा नाले में जा पडा। हलà¥à¤¦à¥€ का नसीब अचà¥à¤›à¤¾ था कि वो नाले के किनारे की तरफ गिरा, नहीं तो अगर दूसरी तरफ गिरता तो पानी का बहाव इतना तेज था कि बचना नामà¥à¤®à¤•िन था।
हिमालय की ऊंचाईयों पर à¤à¤• खास बात है कि दोपहर बाद बादल आने लगते हैं। ये बादल कहीं बंगाल की खाडी या अरब सागर से नहीं आते बलà¥à¤•ि यही बनते हैं। होता यह है कि जैसे ही सà¥à¤¬à¤¹ होती है तो मौसम बिलà¥à¤•à¥à¤² साफ-सà¥à¤¥à¤°à¤¾ होता है। जैसे जैसे दिन चढता है, वातावरण में गरà¥à¤®à¥€ बढती है तो हवा à¤à¥€ चलने लगती है। बस यही गडबड हो जाती है। हवा चलती है तो परà¥à¤µà¤¤ इसे मनचाही दिशा में नहीं चलने देते बलà¥à¤•ि नदी घाटियों में धकेल देते हैं जहां से हवा नदियों के साथ धीरे धीरे ऊपर चढती जाती है। जितनी ऊपर चढेगी, उतनी ही ठणà¥à¤¡à¥€ होगी और आखिरकार संघनित होकर धà¥à¤‚ध का रूप ले लेती है और बादल बन जाती है। बादल बनते बनते दोपहर हो जाती है।
यहां à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही हà¥à¤†à¥¤ बादल आने लगे और गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° की ओर बढने लगे। पता था ही कि जब तक हम गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक पहà¥à¤‚चेंगे तब तक बादल उसे अचà¥à¤›à¥€ तरह ढक लेंगे। लेकिन अपने हाथ में होता कà¥à¤¯à¤¾ है?
मैंने पहले ही बता दिया था कि फà¥à¤°à¤•िया के बाद कोई पेड नहीं है। बस है तो सिरà¥à¤« दूर तक फैला हरा-à¤à¤°à¤¾ मैदान यानी बà¥à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥¤ हम बिना कà¥à¤› खाये-पीये चले थे। दो गिलास चाय से होता कà¥à¤¯à¤¾ है? à¤à¥‚ख लगने लगी। अतà¥à¤² ‘मीलों’ आगे जा चà¥à¤•ा था, हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ‘मीलों’ पीछे था। महाराज बैठगये à¤à¤• चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ पर और बैग से निकालकर नमकीन खाने लगे। मेरे पास नमकीन के दो पैकेट और बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ के à¤à¥€ इतने ही पैकेट थे। तà¤à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° की तरफ से कà¥à¤› घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड आते दिखे। उनसे मैंने अतà¥à¤² के बारे में पूछा तो बताया कि वो बहà¥à¤¤ आगे चला गया है।
जब देखा कि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® और पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª पास ही आने वाले हैं तो बची-खà¥à¤šà¥€ नमकीन बैग में रखी और चल पडा। हलà¥à¤¦à¥€ ने देखते ही आवाज लगाई कि à¤à¤¾à¤ˆ, रà¥à¤• जरा। बोला कि जबरदसà¥à¤¤ à¤à¥‚ख लगी है, कà¥à¤› दे दे। मैंने वही बची-खà¥à¤šà¥€ नमकीन दे दी।

पिणà¥à¤¡à¤° नदी
करीब à¤à¤• बजे मैं बाबाजी के आशà¥à¤°à¤® पर पहà¥à¤‚चा। अतà¥à¤² पहले से ही बैठा था। यहां से पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ जीरो पॉइणà¥à¤Ÿ à¤à¤• किलोमीटर आगे है। यहां à¤à¤• बाबाजी रहते हैं- बारहों महीने। लेकिन मà¥à¤à¥‡ नहीं लगता कि वे बारहों महीने यहां रहते होंगे। खैर, उनकी तारीफ करनी पडेगी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे आने-जाने वालों को खाना मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ कराते हैं- फà¥à¤°à¥€ में। जरà¥à¤°à¤¤ पडने पर ओढने-बिछाने के कपडे à¤à¥€ दे देते हैं। समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 3650 मीटर की ऊंचाई पर गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° की नाक के तले घणà¥à¤Ÿà¥‡ à¤à¤° तक रà¥à¤•ना ही महान हौंसले का काम होता है, फिर बाबाजी की जितनी à¤à¥€ तारीफ हो, कम है। जिस टाइम हम वहां पहà¥à¤‚चे, बाबाजी मेन गेट पर ताला लगाकर अनà¥à¤¦à¤° पूजा-धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ थे इसलिये उनसे मिलना नहीं हो सका।
कà¥à¤› देर बाद पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® à¤à¥€ आ पहà¥à¤‚चे। तब तक मैंने और अतà¥à¤² ने बची-खà¥à¤šà¥€ नमकीन और बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ खतà¥à¤® कर दिये थे। जब पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª को पता चला कि बाबाजी धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में बैठे हैं, तो उसने आगे गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° तक जाने से सीधे मना कर दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसे जबरदसà¥à¤¤ à¤à¥‚ख लगी थी। वो बाबाजी के à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ ही आया था कि वहां तो खाना मिल ही जायेगा।

नीचे मैदान में कई à¤à¥Œà¤‚पडियां दिखाई दे रही हैं जिनमें लाल छत वाला बाबाजी का आशà¥à¤°à¤® है।

मनोरम रासà¥à¤¤à¤¾

खतरनाक रासà¥à¤¤à¥‡ की शà¥à¤°à¥‚आत
आधे घणà¥à¤Ÿà¥‡ और चलने के बाद हम उस जगह पहà¥à¤‚चे जहां जीरो पॉइणà¥à¤Ÿ का बॉरà¥à¤¡ लगा हà¥à¤† है। अब तक बादलों ने सारे दृशà¥à¤¯ को कैद कर लिया था। पहले मैं सोचा करता था कि जीरो पॉइणà¥à¤Ÿ का मतलब है कि अब बस। आगे ठोस बरà¥à¤« का इलाका यानी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° शà¥à¤°à¥‚ होता है। लेकिन यहां तो करीब à¤à¤• किलोमीटर तक निगाह जा रही है, बरफ-वरफ कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं दिख रही है। घास-फूस और पतà¥à¤¥à¤° ही दिख रहे हैं। जीरो पॉइणà¥à¤Ÿ के बॉरà¥à¤¡ से आगे à¤à¥€ पगडणà¥à¤¡à¥€ जा रही थी। हम दस मीटर à¤à¥€ आगे नहीं गये, तà¤à¥€ समठमें आ गया कि इसे जीरो पॉइणà¥à¤Ÿ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कहते हैं और इसपर चेतावनी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लिखी है कि आगे खतरा है।
असल में यह महान à¤à¥‚सà¥à¤–लन कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° है। हम à¤à¤• धार पर खडे थे और हमारे बराबर में जहां तक निगाह जाती है, à¤à¥‚सà¥à¤–लन ही दिखता है। à¤à¤• बार अगर कोई पतà¥à¤¥à¤° à¤à¥€ गिर गया तो समà¤à¥‹ कि वो कम से कम 1500 फीट नीचे बह रही पिणà¥à¤¡à¤° नदी में ही जाकर रà¥à¤•ेगा। जानलेवा और महा खतरनाक जगह। पगडणà¥à¤¡à¥€ पर à¤à¥€ जगह जगह दरारें पडी थीं जिनका मतलब था कि कà¤à¥€ à¤à¥€ यह जगह नीचे गिर सकती है। और ऊपर से नीचे देखने पर 25000 वोलà¥à¤Ÿ का करंट सा लगता था। यह वो जगह है जहां से आगे जा ही नहीं सकते।
अगर जाना ही है तो किसी तरह नीचे उतरकर पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ नदी तक पहà¥à¤‚चो और नदी के साथ साथ आगे बढो। और हां, इससे आगे बढने वालों को परà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¥€ कहते हैं। हम जैसे पदयातà¥à¤°à¥€ यानी टà¥à¤°à¥‡à¤•र इससे आगे जा ही नहीं सकते। परà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ और टà¥à¤°à¥‡à¤•िंग में यही फरक है कि जहां टà¥à¤°à¥‡à¤•र के कदम रà¥à¤• जाते हैं, वही से परà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¥€ के कदम शà¥à¤°à¥‚ होते हैं।

अतà¥à¤² à¤à¥‚सà¥à¤–लन देख रहा है। यहां हर साल कà¥à¤› ना कà¥à¤› à¤à¥‚सà¥à¤–लन होता रहता है।

साहस की पराकाषà¥à¤ ा। इतनी ऊंचाई, मौसम खराब, गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° नजदीक और मातà¥à¤° à¤à¤• हाफ बाजू की शरà¥à¤Ÿà¥¤
वापस बाबाजी के आशà¥à¤°à¤® पर पहà¥à¤‚चे। तब तक बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड और देवा à¤à¥€ आ गये थे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ से कà¥à¤› दूरी पर तमà¥à¤¬à¥‚ लगा लिया था। साढे तीन बज चà¥à¤•े थे। दो घणà¥à¤Ÿà¥‡ में अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो जायेगा और अà¤à¥€ हमें 12 किलोमीटर वापस जाकर दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ तक पहà¥à¤‚चना à¤à¥€ है। इसलिये मैंने चेतावनी दी कि जलà¥à¤¦à¥€ निकलो, नहीं तो दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ नहीं पहà¥à¤‚च पायेंगे। मेरी चेतावनी का कोई असर नहीं होता अगर मैं अतà¥à¤² और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® को छोडकर ना चल पडता। मेरे चलते ही अतà¥à¤² à¤à¥€ चल पडा और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® बैठा रहा। मैं हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® की तरफ से बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ चिनà¥à¤¤à¤¿à¤¤ नहीं था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसके साथ à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लडका पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª à¤à¥€ था। आ जायेंगे धीरे-धीरे।
अतà¥à¤² तो गोली की सà¥à¤ªà¥€à¤¡ से निकल गया। मैंने à¤à¥€ अपनी औकात से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ तेज चलना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया। अब ऊपर तो चढना था नहीं, नीचे ही उतरना था। सवा घणà¥à¤Ÿà¤¾ लगा मà¥à¤à¥‡ सात किलोमीटर दूर फà¥à¤°à¤•िया तक जाने में। यहां मेरा सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग रखा था। चाय बनवा ली और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगा। चाय वाले ने बताया कि अतà¥à¤² तो à¤à¤¾à¤—मà¤à¤¾à¤— में था और यहां रà¥à¤•ा à¤à¥€ नहीं।
दस मिनट बाद पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª आ गया- हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® का गाइड। उसने बताया कि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ऊपर ही रà¥à¤• गया है। वो आज बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड के तमà¥à¤¬à¥‚ में सोयेगा। और उसके पास तो सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤¿à¤‚ग बैग à¤à¥€ नहीं है। रात को पारा माइनस ना à¤à¥€ पहà¥à¤‚चेगा तो जीरो तक जरूर पहà¥à¤‚च जायेगा। यही सब खà¥à¤¯à¤¾à¤² जाट के मन में चल रहे थे। मगर हमारे हाथ में कà¥à¤› ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ नहीं था। वो तो बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड के गाइड देवा से à¤à¥€ वापस जाने को कह रहा था लेकिन देवा ने अपने गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• को इस तरह छोडना ठीक नहीं समà¤à¤¾à¥¤
मैंने पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª को बताया कि कल उससे कह देना कि जाट महाराज कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° नहीं जायेगा, बलà¥à¤•ि वापस जायेगा। अब तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ जाट कहीं नहीं मिलेगा। और जंगल का आधा रासà¥à¤¤à¤¾ अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में तय करता हà¥à¤† मैं दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ पहà¥à¤‚च गया। अतà¥à¤² आधे घणà¥à¤Ÿà¥‡ पहले आ चà¥à¤•ा था। मैंने अतà¥à¤² को बताया कि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® ऊपर ही रà¥à¤• गया है तो उसे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हà¥à¤†à¥¤ जब घणà¥à¤Ÿà¤¾à¤à¤° और बीत गया तो उसे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ होने लगा। मैंने कहा कि योजना के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कल हमें कफनी गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° जाना है। लेकिन अब हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® के बिना हम कफनी नहीं जायेंगे, बलà¥à¤•ि वापस हो लेंगे।
निरà¥à¤£à¤¯ हो गया कि कल सà¥à¤¬à¤¹ वापस खाती और अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ के लिये निकल लेना है। हिसाब लगाया तो पता चला कि अà¤à¥€ हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® पर मेरे ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ बाकी हैं। लेकिन संतोष कर लिया कि ढाई सौ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ तो हमने उसके बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ, नमकीन, मिठाईयां खा लीं और अतà¥à¤² के पास उसका विणà¥à¤¡à¤šà¥€à¤Ÿà¤° à¤à¥€ था, à¤à¤• चादर à¤à¥€ थी। कà¥à¤² मिलाकर ढाई सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ वसूल हो रहे थे। वापस जाने की सोचकर हम लमà¥à¤¬à¥€ तानकर सो गये।

यह है आज का सफर। दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€ में दो नदियां मिलती हà¥à¤ˆ दिख रही हैं। जिस पर लाल लाइन बनी है, वो है पिणà¥à¤¡à¤° नदी और नीचे कफनी नदी। पिणà¥à¤¡à¤° और कफनी दोनों के बीच में 15000 से लेकर 18000 फीट तक के बरà¥à¤«à¥€à¤²à¥‡ परà¥à¤µà¤¤ हैं।
शेष अगले à¤à¤¾à¤— में
वाह नीरज भाई… बहुत बढ़िया विवरण… और चित्र तो कमाल के हैं… खास तौर पर मनोरम रास्ता, पिण्डर और फुरकिया वाले चित्र तो लाजवाब हैं. पिण्डर गलेशियर यात्रा में अधिकतर लोग ग्लेशियर नहीं देख पाते… क्यों ??
मैने जो आपको शताब्दी का घुम्मकड़ कहा है.. गलत नहीं है.
thanks neeraj bhai `bugyal` kya hota hei, pata chal gaya.
paharon mein dophar baad barish ka karan bhi samjhane ke liye dhanyawad.
kya dhi baju wali shirt mein pen ki ink nahin jamin. yah kis kam aata hei.
नीरज जी,
आपकी पोस्ट पढ़कर सच में ठण्ड लगने लगी, एक तो ठण्ड का मौसम और उस पर पहाड़ो और नदियों का वर्णन. पोस्ट बहुत मनोरंजक लगी.
धन्यवाद.
नीरज – आपके लेख पढ़कर बहुत मज़ा आया. यूँ तो पिंडारी पर बहुत ब्लॉग हैं पर आपकी सरल, सहज और नमकीन वृतांत की अपनी एक बात है.
पिंडारी दर्शन हो गए यहीं घर में बैठे बैठे | हल्दीराम से दोबारा मुलाक़ात हुई की नहीं, कैसी गुजरी उनकी वो रात ?
सुबह रास्ते में मिले जाले का थोडा और विवरण दीजिये ? बादलों की जानकारी insightful लगी जो शायद ट्रेक्किंग करने के अनुभव से आती होगी. अगले भाग की ओर |
Excellent