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Mt. Abu – Sunset Point – Nakki Lake

मित्रों, अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि हम सहारनपुर से चल कर गाज़ियाबाद और फिर एयर डेक्कन के विमान से नई दिल्ली से उदयपुर पहुंचे ।  एयरपोर्ट से ही पांच दिनों के लिये एक टैक्सी ली जो हमें पांच दिनों में उदयपुर और माउंट आबू घुमा कर वापिस एयरपोर्ट पर ही छोड़ने वाली थी ।  शाम को ब्रह्मपोल के पास पिछोला झील के तट पर हमने होटल वंडर व्यू पैलेस में ठहरने का निश्चय किया और फिर शाम को सहेलियों की बाड़ी देखने गये, लौट कर आमेट हवेली के अंबराई रेस्टोरेंट में शाही अंदाज़ में भोजन किया ।  अगले दिन सुबह अंबा माता और जगदीश मंदिर के दर्शन करने के बाद हम उदयपुर से माउंट आबू के लिये निकल पड़े और दोपहर को ज्ञान सरोवर में आकर ठहर गये ।  ज्ञान सरोवर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का ही एक विशाल परिसर है जो माउंट आबू में स्थित है।   आइये, अब आगे चले चलते हैं !

सूर्य को हाथों में थाम लेने की चाह !

शाम को साढ़े चार बजे हसीन का फोन आया कि वह और टैक्सी घूमने चलने के लिये तैयार हैं अतः हम पन्द्रह मिनट में अपनी बिल्डिंग के गेट पर आ जायें!  पहले Sunset Point पर चलेंगे और फिर नक्की लेक के आस-पास घूम सकेंगे!  मैने महिलाओं को बोल दिया कि सूर्य देवता सूर्यास्त के लिये हमारी प्रतीक्षा नहीं करने वाले हैं अतः मेक अप में ज्यादा समय व्यर्थ करना समझदारी नहीं होगी। बस, चल पड़ो !  बिना समय व्यर्थ किये हम टैक्सी में बैठे और ज्ञान सरोवर से, पता नहीं किस – किस सड़क से होते हुए उस बिन्दु पर पहुंच गये जहां से Sunset Point के लिये पैदल या बग्घी में जाना होता है।  लगातार चढ़ाई थी, पैदल चलने का हम चारों का ही मूड नहीं था अतः मन को ये बहलाते हुए कि पैदल पहुंचते पहुंचते तो सूर्यास्त हो जायेगा, दो बग्घी कर ली गईं और तीन – तीन लोग हमें धकेलते हुए Sunset Point पर ले गये।  रास्ते में उबले हुए भुट्टे खरीद कर टाइम-पास का जुगाड़ किया गया। अंत्याक्षरी के बारे में तो दुनिया जानती ही है कि समय बिताने की सामर्थ्य उस से बेहतर और किसी चीज़ में नहीं है, पर मूंगफली और भुट्टे भी समय बिताने के लिये उत्तम पदार्थ हैं।

जैसा कि अक्सर पहाड़ों पर व अन्य पर्यटन स्थलों पर खतरा रहता है, यहां भी फैंसी ड्रेस वाले हमारे पीछे पड़ गये कि राजस्थानी ड्रेस में फोटो खिंचवा लो जी!  एक बन्दे ने जब मेरी नाक के ठीक नीचे अपनी फोटो एल्बम घुसाई तो मैने उसे अपना कैमरा दिखाया कि भाई, हम तो खुद ही,  रिश्ते में तुम्हारे बाप लगते हैं !  तुम हमारी क्या फोटो खींचोगे ?  लाओ, हम तुम्हारी ही फोटो खींच दें। पर वह भी कम नहीं था ।  बोला, ड्रेस पहन कर आप अपने ही कैमरे से फोटो ले लो जी!  श्रीमती जी ने कहा कि चलो, जब इतना कह रहा है तो एक ड्रेस पहन लेती हूं, फोटो खींच लो !  यादगार रह जायेगी।

आगे बढ़े तो पहाड़ की चोटी पर ढेरों लोग ऐसी व्यग्रता से आसमान को निहार रहे थे जैसे जिन्दगी में कभी सूर्यास्त न देखा हो!  उनकी देखा देखी हमने भी व्यग्रता दिखानी शुरु कर दी।  मैने ऐसे ऐसे पोज़ बना कर फोटो खींचना शुरु किया कि बाकी सब लोगों ने भी हमारी देखादेखी वैसी ही हरकतें करनी शुरु कर दीं।

हमारी बग्घी को सनसेट प्वाइंट तक लेजाते एक दम्पत्ति !

Route from Sunset Point to Nakki Lake

सूर्यास्त होगया तो मैने कहा कि चलो, खेल खतम, पैसा हज़म !  अब यहां से पैदल ही नीचे चलेंगे। लुढ़कते – लुढ़कते हम नीचे पहुंचे और टैक्सी में बैठ कर नक्की लेक की ओर चल दिये।  इससे पहले मैं 2003 और 2005 में भी माउंट आबू गया था।  वर्ष जून 2003 में तो नक्की लेक सूखी हुई मिली थी और उसमें हज़ारों मज़दूर पुरुष और महिलाएं तसले सिर पर लिये हुए घूम रहे थे।  (उस समय की खींची हुई एक फोटो भी सौभाग्य से मिल गयी है जो अपने पाठकों के सौभाग्य के लिये संलग्न किये दे रहा हूं ।)  परन्तु सौभाग्य से इस बार नक्की में भरपूर पानी था और नावों में लोग सवारी कर रहे थे।  हमने भी एक नाव ले ली जिसे पैडल बोट कहते हैं । बेचारे दो पुरुष पैडल मारते हुए नाव को आगे बढ़ाते हैं और पीछे दो बीवियां आराम से झील का नज़ारा देखती हुई चलती हैं।  संभवतः एक घंटे तक हम नक्की में यूं ही पैडल मारते घूमते रहे।  इस नक्की लेक के बारे में बहुत प्रचलित किंवदंती, जो अक्सर पढ़ने को मिलती है वह ये है कि देवताओं ने एक खूंखार राक्षस से बचने के लिये नख से धरती में झील बना डाली थी ।  यही नहीं, नक्की झील को लेकर एक और रोमांटिक कहानी रसिया बालम की भी चली आ रही है जिसने एक राजकुमारी से विवाह की लालसा में एक रात में ही आधा किलोमीटर लंबी और चौथाई किमी चौड़ी और २०-३० फीट गहरी झील खोद डाली थी।  हे भगवान, कैसे – कैसे राजा होते थे उस जमाने में!  मुनादी करा दी कि जो कोई एक रात में नक्की झील खोद देगा, उससे अपनी बिटिया का ब्याह रचा दूंगा ! सौभाग्य से इस झील को खोदने के बाद भी रसिया बालम फिर भी कुंवारा ही रहा क्योंकि राजा की घोषणा को रानी ने वीटो कर दिया।  राजा को रानी से डांट पड़ी सो अलग!

सूखी हुई नक्की झील में कार्य करते मज़दूर

 

नक्की तट पर सुकून के दो पल !

नक्की झील में बोटिंग

नक्की झील के तट पर स्थित फव्व्वारा

नक्की झील माउंट आबू के हृदय स्थल में स्थित है और यहां का प्रमुखतम आकर्षण है। माउंट आबू के बाज़ार मुख्यतः नक्की झील के आस-पास ही केन्द्रित हैं।  बात सही भी है, जब सारे टूरिस्ट नक्की पर ही आने हैं तो दुकान कहीं और खोलने का क्या लाभ?  एक और बड़ी विशेष जानकारी जो विकीपीडिया से प्राप्त हुई है, वह ये कि 12 फरवरी 1948 को यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित की गई थीं और गांधी घाट का निर्माण किया गया था।  पर मुझे याद नहीं पड़ता कि हमने नक्की झील पर कहीं गांधी घाट के दर्शन किये हों!    सॉरी बापू !  अगली बार जायेंगे तो ऐसी गलती पुनः नहीं होगी!  नक्की झील के आस-पास के एक रेस्टोरेंट में भोजन लेकर (कहां, ये याद नहीं !  भोजन कैसा था, ये तो कतई याद नहीं)।  हम लोग वापिस ज्ञान सरोवर में आ पहुंचे और अपने – अपने कमरों में नींद के आगोश में समा गये।  (किसी इंसान के आगोश में समाने की तो वहां अनुमति भी नहीं थी !)

बोट से नक्की झील में झिलमिलाते प्रकाश का एक दृश्य

अरे हां !  नक्की झील में बोटिंग करने के बाद हम पार्किंग पर आये तो हमारे ड्राइवर का चेहरा बहुत बुझा हुआ था।  अपनी आदत के विपरीत वह हंसी-मज़ाक भी नहीं कर रहा था।  मैने पूछा, क्या हो गया तो उसने बताया कि वह बहुत शर्मिन्दगी महसूस कर रहा है, पर उसे अपनी सास की तबियत बहुत खराब होने के कारण वापिस उदयपुर जाना पड़ रहा है।  हमारी तो हालत खराब !  हमने पूछा कि हमारा क्या होगा तो इस पर वह बोला कि आप लोगों का बाकी टूर बिल्कुल ऐसे का ऐसा ही चलता रहेगा।  एक दूसरी टैक्सी कल सुबह आप लोगों के लिये यहां हाज़िर हो जायेगी। उसका प्रबंध तो उसने कर दिया है अतः हमें उसकी चिन्ता करने की तो कतई आवश्यकता नहीं है पर वह अपनी सास को लेकर बहुत चिन्तित है और हो सकता है कि उसके उदयपुर पहुंचने से पहले ही वह अल्लाह को प्यारी हो जाये।  भाई साहब ने कहा कि इन दो दिनों में हमें तुम्हारा स्वभाव बहुत अच्छा लगा है।  तुम्हारी गाड़ी भी बिल्कुल ठीक – ठाक है।  दूसरा आदमी पता नहीं कौन हो, कैसा हो?  उसकी गाड़ी का भी पता नहीं, कैसी हो!  यह सुन कर हसीन ने जो बात कही, वह मैं जीवन भर भुला नहीं पाऊंगा !  वह बोला, “सर जी, आपको अगर मैं अच्छा लगा हूं तो दूसरा आदमी जो कल से आपके साथ रहेगा वह तो और भी अच्छा लगेगा।  उसका नाम बाबूराम है।  उसकी गाड़ी तो सिर्फ छः महीने पुरानी है।  आपको उसके साथ कोई भी तकलीफ नहीं होगी। वैसे भी वह आपके ही धर्म का है। मैं तो मुसलमान हूं।  सच तो ये है कि उदयपुर में आपको एक भी टैक्सी वाला खराब नहीं मिलेगा !  उदयपुर की यही तो खासियत है।  यहां के सब लोग आपको अच्छे और भले ही मिलेंगे।“  वाह, क्या बात कही थी उसने !   हसीन का अपने शहर और अपने शहर वासियों के प्रति यह सम्मान का भाव मुझे अन्दर तक छू गया।

ज्ञान सरोवर का प्रवेश द्वार !

माउंट आबू में घूमते हुए ये प्रतिमा कहीं दिखाई दी थी।

कच्ची सब्ज़ी और फल आदि के लिये रैक

रसोई में दाल सब्ज़ी आदि बनाने हेतु लगाई गई मशीनें

नई जगह, नया कमरा, नया बिस्तरा !   सुबह जल्दी आंख खुल गई तो हम ज्ञान सरोवर में प्रातःकालीन कक्षा में पहुंच गये जो वहां के बड़े सभागार में नित्य होती है।  इस प्रातःकालीन कक्षा में योग और स्वास्थ्य पर एक चिकित्सिका बहिन का वचन था जो हमें बहुत उपयोगी लगा।  वहां से लौट कर आये, नहाये – धोये।  ज्ञान सरोवर में हर किसी को श्वेत परिधान में देखते देखते हम इतने अभ्यस्त हो गये थे कि सुबह श्रीमती जी और बड़ी दीदी जब अपने अपने कमरे से बाहर निकलीं तो एक दूसरे को देख कर हंस पड़ीं !  दोनों ने ही श्वेत परिधान धारण किये हुए थे।  दोनों ने आज के लिये सफेद सूट छांटने का एक ही कारण बताया – यहां सब महिलायें बिल्कुल चकाचक सफेद साड़ी पहने रहती हैं तो उनके बीच में रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए घूमना विचित्र सा लग रहा था ।  अतः सोचा कि जहां तक संभव हो सके, हम भी सफेद कपड़े ही पहन लें।

टमाटर ही टमाटर

नाश्ते का समय हो गया था अतः हम सब विशालकाय रसोई और भोजन कक्ष की ओर चल पड़े।  रास्ते में ज्ञान सरोवर की संचालिका बहिन जी मिलीं जिनसे कल आते ही परिचय हुआ था।  पूछने लगीं कि यहां कोई असुविधा तो नहीं हो रही है?  रात को सर्दी तो नहीं लगी?  आज कहां – कहां घूमने जायेंगे? आदि आदि ! जब हमने उनको बताया कि आज दिन भर माउंट आबू का स्थानीय भ्रमण करना है तो उन्होंने कहा कि अपने ड्राइवर से कहियेगा कि दोपहर १ बजे के लगभग वह आपको पांडव भवन ले आये ताकि आप उस समय वहां भोजन भी कर लें और पांडव भवन भी देख लें।  उनका ये अपनेपन का व्यवहार हमारी दोनों महिलाओं को भी बहुत अच्छा लगा।  हम लोग उस पहाड़ी रास्ते पर धीमे – धीमे बात करते करते भोजन कक्ष में पहुंच गये और वह एक अन्य बहिन जी के साथ बात करते हुए एक अन्य कक्ष की ओर चली गईं!

नाश्ता करके हम रसोई आदि की आश्चर्यजनक व्यवस्था देखते-भालते वापिस अपने कमरों की ओर आये तो हमें एक बिल्कुल नयी इंडिका टैक्सी और सांवला सा एक व्यक्ति हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिले।  पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम बाबू है और अब आने वाले तीन दिनों तक वह ही हमारे साथ रहेगा।  कमरे बन्द करके हमने टैक्सी से कहा कि माउंट आबू में जो कुछ भी देखने लायक है, वह सब आज देखेंगे और बीच में १ बजे पांडव भवन भी पहुंचना है क्योंकि हमें दोपहर का खाना वहीं पर खाना है।  शाम को दोबारा नक्की झील पर ही चलेंगे, बाज़ार घूमेंगे और रात को ज्ञान सरोवर में ही रुकेंगे और सुबह पांच बजे यहां से उदयपुर के लिये वापसी करेंगे।

Mt. Abu – Sunset Point – Nakki Lake was last modified: December 25th, 2024 by Sushant Singhal
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