मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, अà¤à¥€ तक आप पॠचà¥à¤•े हैं कि कैसे मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ अपने बैंक की दो शाखाओं का ’निरीकà¥à¤·à¤£-परीकà¥à¤·à¤£â€™ करने के निमितà¥à¤¤ मैं अपने पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ से, दà¥à¤²à¤¾à¤°à¥‡ से सहारनपà¥à¤° से अमृतसर इनà¥à¤¦à¥Œà¤° à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ पकड़ कर अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ 7 बजे इनà¥à¤¦à¥Œà¤° पहà¥à¤‚चा। वहां से धार जाने हेतॠबस नहीं मिली तो टैकà¥à¤¸à¥€ से जाने का à¤à¤°à¤¸à¤• पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ किया पर बसंत पंचमी यानि 15 फरवरी के दिन वहां करà¥à¤«à¥à¤¯à¥‚ और धारा 144 लगा दिये जाने के कारण धार में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ हेतॠअनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं मिली। तीन घंटे में इनà¥à¤¦à¥Œà¤° के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजमारà¥à¤—ों की खाक छान कर वापिस इनà¥à¤¦à¥Œà¤° ही आना पड़ा, आर à¤à¤¨ टी मारà¥à¤— पर होटल में सामान टिका कर बैंक पहà¥à¤‚चा। दिन में खाने का मैनà¥à¤¯à¥‚ था – खसà¥à¤¤à¤¾ कचौरी जिसके इनà¥à¤¦à¥Œà¤°à¤¿à¤¯à¥‡ दीवाने हैं। शाम को सैंटà¥à¤°à¤² मॉल देखा जो आर à¤à¤¨ टी मारà¥à¤— और महातà¥à¤®à¤¾ गांधी मारà¥à¤— के संगम पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ इनà¥à¤¦à¥Œà¤° की सड़कों से पà¥à¤¯à¤¾à¤° की पींगें बà¥à¤¾à¤ˆà¤‚। शनिवार यानि 16 फरवरी को दिन में बैंक से दो बजे सेजवाया के लिये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया जो इनà¥à¤¦à¥Œà¤° – धार राजमारà¥à¤— कà¥à¤°à¤‚० 59 पर घाटाबिलà¥à¤²à¥‹à¤¦ से कà¥à¤› आगे अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। घाटाबिलà¥à¤²à¥‹à¤¦ में मà¥à¤•ेश à¤à¤¾à¤²à¤¸à¥‡ मिले और मà¥à¤à¥‡ अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर सेजवाया के लिये चल पड़े। अब आगे…. ।
सेजवाया धार जनपद का à¤à¤• पिछड़ा हà¥à¤† गांव रहा है जिसमें रà¥à¤šà¤¿ सोया गà¥à¤°à¥à¤ª ने रà¥à¤šà¤¿ सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤¸ à¤à¤‚ड अलॉय लि. (RSAL)  की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ यह सोच कर की थी कि पिछड़े कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उदà¥à¤¯à¥‹à¤— सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने से सरकार की ओर से टैकà¥à¤¸ आदि में विशेष पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ मिलता है।  इस बहाने इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में रोजगार के अवसर बà¥à¥‡à¤‚गे, फैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ में काम करने के लिये इतने सारे लोग यहां रहेंगे तो मकान – दà¥à¤•ान आदि सà¤à¥€ चीज़ों की आवशà¥à¤¯à¤•ता होगी ।  आज इस फैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ के उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦Â देश विदेश में बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ जनक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखते हैं।  यह कंपनी आई à¤à¤¸ ओ 9001:2008 तथा 14001:2009 पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक इकाई है जो Cold Rolled Steel Coils & Sheets बनाती है जिनका इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤¨ अनेकानेक उदà¥à¤¯à¥‹à¤— अपने कचà¥à¤šà¥‡ माल के रूप में करते हैं।  शेड बनाने हेतॠपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में आने वाली सà¥à¤Ÿà¥€à¤² की नालीदार चादरें à¤à¥€ यहां उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ सà¥à¤Ÿà¥€à¤² से ही बनाई जाती हैं। इसके अतिरिकà¥à¤¤ आटोमोबाइल इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ के लिये coil आदि बनाने हेतॠकचà¥à¤šà¤¾ माल यही उदà¥à¤¯à¥‹à¤— उपलबà¥à¤§ कराता है।  यहां के उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ का बहà¥à¤¤ बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ कई देशों को निरà¥à¤¯à¤¾à¤¤ किया जाता है। खैर !
कितनी विचितà¥à¤° बात है न? मैं मà¥à¤•ेश की मोटर साइकिल पर पीछे बैठा था, मेरे कंधे पर मेरा पिठà¥à¤ ू बैग लटका हà¥à¤† था। चार-चार फीट गहरे गढà¥à¤¢à¥‡ वाली उस सड़क पर हमारी बाइक डूबती – उतराती चली जा रही थी और हम सड़क की दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ देख कर à¤à¥€ हंसते चले जा रहे थे। हम दोनों का कितना परिचय था? सिरà¥à¤« यही कि घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम के लिये हम दोनों अपने – अपने यातà¥à¤°à¤¾ संसà¥à¤®à¤°à¤£ लिखते हैं और à¤à¤• दूसरे का लेखन पसनà¥à¤¦ करते हैं। इस अपरिचय के बावजूद हम दोनों ही à¤à¤• दूसरे को देखकर आहà¥à¤²à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ थे और आपसी परिचय को और गहन करने की लालसा लिये कà¥à¤› समय साथ बिताने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से साथ-साथ जा रहे थे। वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त रूप से मà¥à¤•ेश के बारे में मेरी जानकारी इतनी ही थी कि वह रà¥à¤šà¤¿ सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤¸ à¤à¤‚ड à¤à¤²à¥‰à¤¯ लि. नामक विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ सà¥à¤Ÿà¥€à¤² निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ कंपनी में गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ नियंतà¥à¤°à¤£ अधिकारी हैं। उनकी पतà¥à¤¨à¥€ कविता हैं, दो छोटे बचà¥à¤šà¥‡ हैं – संसà¥à¤•ृति à¤à¤µà¤‚ शिवमà¥â€Œ!  कविता à¤à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साइट पर यदाकदा लिखती हैं। कà¥à¤¯à¤¾ इतनी संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ जानकारी दो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¨à¥‡à¤¹à¤¸à¥‚तà¥à¤° में जोड़ने के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है? जी हां, बिलà¥à¤•à¥à¤² !  शरà¥à¤¤ à¤à¤• ही है और वह ये कि दोनों वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम से जà¥à¥œà¥‡ हà¥à¤ लेखक हों !  सच कहूं तो घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ में à¤à¤• अनूठी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ है जिसके लेखक, संपादक व टिपà¥à¤ªà¤£à¥€à¤•ार सब à¤à¤• परिवार के सदसà¥à¤¯ जैसे अनà¥à¤à¤µ होने लगे हैं।  किसी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लेखन से यदि उसके वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को समà¤à¤¾ जा सकता है तो मà¥à¤•ेश और मैं à¤à¤• दूसरे से कतई अपरिचित नहीं थे। असà¥à¤¤à¥ !
लगà¤à¤— 4 किमी चलने के बाद कà¥à¤› बसà¥à¤¤à¥€ सी महसूस होने लगी । हाई वे पर दस-बीस दà¥à¤•ानें आईं तो बाइक धीमे करते हà¥à¤ (धीमे करने की बात सिरà¥à¤« आलंकारिक ही है, उस सड़क पर 10 किमी पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटा की गति à¤à¥€ बहà¥à¤¤ अधिक अनà¥à¤à¤µ हो रही थी।) मà¥à¤•ेश ने रà¥à¤šà¤¿ सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤¸ परिसर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया। लंबे – लंबे अशोक वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ की शà¥à¤°à¥„ंखला के साथ – साथ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿà¥à¤¸ बने हà¥à¤ थे जो सारे के सारे पीले रंग से पà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ थे। à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• तीन मंजिला (या शायद चार मंजिला) à¤à¤µà¤¨ के आगे बाइक रोकी गई – यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ उस à¤à¤µà¤¨ की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर चिपकाये गये नोटिस पर गौर करें तो निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ पारà¥à¤•िंग सà¥à¤¥à¤² के अतिरिकà¥à¤¤ सड़क पर कहीं à¤à¥€ वाहन खड़ा न करने हेतॠकंपनी की ओर से सखà¥à¤¤ ताकीद की गई थी। पर कंपनी के बड़े अधिकारी à¤à¥€ अपने बनाये कानूनों का पालन करने लगे तो फिर तो चल लिया हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ !
ढेर सारी उतà¥à¤¸à¥à¤•ता मन में लिये मैं मà¥à¤•ेश के पीछे – पीछे सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ चà¥à¤¤à¤¾ चला गया और à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर घंटी बजाई गई जिसमें से अगरबतà¥à¤¤à¥€ की पवितà¥à¤° सà¥à¤—नà¥à¤§ बाहर तक आ रही थी। कविता ने दà¥à¤µà¤¾à¤° खोल कर हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। जूते फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿ के बाहर ही उतार कर मैने घर में कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡Â पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया मानों मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर रहा होऊं ! सच कहूं तो अपने घर में मैं जूते पहने पहने अपने शयनककà¥à¤· तक पहà¥à¤‚च जाता हूं पर मà¥à¤•ेश-कविता के घर का वातावरण इतना सातà¥à¤µà¤¿à¤• और पावन लगा कि जूते पहने हà¥à¤ घर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने की बात संसà¥à¤•ार – विहीनता लग रही थी। बैठक यानि डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤‚ग – कम – डायनिंग हॉल में हर कोना और हर दीवार कविता की सà¥à¤°à¥à¤šà¤¿ – संपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ के साकà¥à¤·à¥€ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने घर को महंगे उपकरणों से नहीं, कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ और सà¥à¤°à¥à¤šà¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤£ ढंग से सजाया हà¥à¤† था।
किसी अपरिचित से आप मिलते हैं तो कà¥à¤¶à¤²-कà¥à¤·à¥‡à¤® पूछने के बाद कई बार सोचना पड़ जाता है कि अब कà¥à¤¯à¤¾ बात की जाये पर यहां तो मामला बिलà¥à¤•à¥à¤² उलटा ही रहा। पांच-सात मिनट में ही हम तीनों बातचीत में à¤à¤¸à¥‡ तलà¥à¤²à¥€à¤¨ हो गये जैसे बातचीत अधूरी छोड़ कर सà¥à¤¬à¤¹Â अपने-अपने ऑफिस गये हों और अब आकर बातें पूरी की जा रही हों।  आधा – पौने घंटे में ही यह विचार मन से पूरी तरह से निकल गया कि शाम को इनà¥à¤¦à¥Œà¤° वापिस जाना à¤à¥€ à¤à¤• विकलà¥à¤ª था। शिवमà¥â€Œ और संसà¥à¤•ृति कà¥à¤› घंटे तक तो शायद अपरिचित मेहमान के सामने आने से बचते रहे पर जब उनको लगा कि ये तो बंदा टल ही नहीं रहा है और रात को à¤à¥€ यहीं रà¥à¤•ने वाला है तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ अपनी सतà¥à¤¸à¤‚गति से हम तीनों को लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ किया।
अंधेरा होने लगा तो मà¥à¤•ेश बोले, मैं अà¤à¥€ मंदिर होकर आता हूं, आप बैठिये। मà¥à¤à¥‡ लगा कि अगर मैं à¤à¥€ साथ साथ मंदिर में चला जाऊं तो à¤à¤—वान से यह तो कहना नहीं पड़ेगा, “आज खà¥à¤¶ तो बहà¥à¤¤ होगा तू !” सो फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿ से नीचे उतर कर फिर बाइक पर लपक कर बैठगया और मà¥à¤•ेश को पीछे की सीट पर बैठने का इशारा किया! हंसते हà¥à¤ वह पीछे बैठगये और हम दोनों मंदिर की ओर चल पड़े। बाहर हाई वे पर आये तो धार की दिशा में मà¥à¥œà¤¨à¥‡ की आजà¥à¤žà¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤Â  बमà¥à¤¶à¥à¤•िल आधा किमी चल कर बाईं ओर à¤à¤• छोटे से मंदिर के बाहर पà¥à¤¨à¤ƒ रà¥à¤•ने की आजà¥à¤žà¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤Â  यह दस गà¥à¤£à¤¾ दस फीट वरà¥à¤—ाकार à¤à¥‚मि पर बना हà¥à¤† à¤à¤• छोटा सा मंदिर था जिसमें शनि देव और हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ थे। कविता ने जो गीले आटे के दिये बना कर मà¥à¤•ेश को दिये थे, उनमें तेल व बतà¥à¤¤à¥€ रख कर मà¥à¤•ेश ने à¤à¤—वान जी के घर में उजाला किया, हाथ जोड़े और हम कà¥à¤› सबà¥à¥›à¥€ खरीदते हà¥à¤ पà¥à¤¨à¤ƒ घर की ओर चल पड़े।
रातà¥à¤°à¤¿ à¤à¥‹à¤œ में कविता ने घर आये मेहमान के आतिथà¥à¤¯ के लिये दाल-बाटी की विशेष वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कर रखी थी। दाल-बाटी तो हाथ से ही, उंगलियों से मसल – मसल कर खाने वाली चीज़ है अतः उंगलियां चाट-चाट कर à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया गया। इसके बाद शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† गीत – संगीत का दौर।  मà¥à¤•ेश को घूमने के अलावा जो दूसरा शौक है वह है – गायन का ! वह किशोर कà¥à¤®à¤¾à¤° के गीतों के दीवाने हैं।  थोड़ा सा इसरार करने पर वह शà¥à¤°à¥ हो गये। “तू इस तरहा से मेरी ज़िनà¥à¤¦à¤—ी में शामिल है… रिमà¤à¤¿à¤® गिरे सावन, मचल – मचल जाये मन… गीत सà¥à¤¨à¥‡ और सराहे गये। फिर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ फरमाइश की कि मैं कà¥à¤› सà¥à¤¨à¤¾à¤Šà¤‚ !  येलà¥à¤²à¥‹ जी, कर लो बात! मैने कहा कि बिना हेलà¥à¤®à¥‡à¤Ÿ पहने मैं कà¤à¥€ कोई गीत गाने के लिये मà¥à¤‚ह नहीं खोलता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसमें मेरे जीवन को खतरा है। पर फिर à¤à¥€ जब मांग जारी रही तो मैने गरà¥à¤¦à¤ राग सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤Â  ‘जलते हैं जिसके लिये, तेरी आंखों के दिये ! “  जब मà¥à¤à¥‡ लगा कि तलत महमूद साहब की रूह बहà¥à¤¤ बेचैन होने लगी है तो बाद में, अपने à¤à¤• कवि मितà¥à¤° की à¤à¤• रचना सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ –
“कंठलगा पी ने कहा, पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ कà¥à¤› तो मांग !
रहो सदा इस मांग में, यही हमारी मांग !”
रविवार यानि 17 फरवरी को हम सब कार से मांडू चलेंगे, जब यह पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ पारित हो गया तो कविता तो विशà¥à¤°à¤¾à¤® करने के लिये शयन ककà¥à¤· की ओर चली गईं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनको सà¥à¤¬à¤¹ की इस पिकनिक के लिये तैयारियां करनी थीं। वैसे à¤à¥€ वह सà¥à¤¬à¤¹ को पांच बजे उठकर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में लगà¤à¤— २ घंटे का समय लेती हैं। पहले सबके लिये नाशà¥à¤¤à¥‡ का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ करना था फिर सब के लिये दोपहर का à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¥€ बना कर ले जाना था। मà¥à¤•ेश और मैं रात को न जाने कितने बजे तक जागते रहे, बार-बार विशाल राठौड़ का ज़िकà¥à¤° आता रहा जिनके साथ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कई दिन का समय बिताया था, मà¥à¤‚बई में उनके घर पर रहे थे, साथ-साथ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी की थी।
सà¥à¤¬à¤¹ शंख धà¥à¤µà¤¨à¤¿, घंटे – घड़ियाल की मंगल धà¥à¤µà¤¨à¤¿ से आंख खà¥à¤²à¥€ तो देखा कि 7 बज रहे हैं। कविता घर में बने हà¥à¤ अपने मंदिर से बाहर आ चà¥à¤•ी थीं और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को हिला-हिला कर जगा रही थीं कि घूमने चलना है अतः अलस तà¥à¤¯à¤¾à¤—ो और फटाफट तैयार हो जाओ ! बचà¥à¤šà¥‡ पहले तो उठने के मूड में नहीं थे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि रविवार का छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ का दिन था पर जब धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिलाया गया कि पिकनिक पर जाना है तो फटाफट बिसà¥à¤¤à¤° में से निकल आये। शिवमà¥â€Œ को यह à¤à¥€ लालच दिया गया कि नीचे चल कर कार की सफाई में à¤à¥€ उसकी सहायता ली जायेगी।  लड़कों को पता नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ अजीबो-गरीब कामों में बहà¥à¤¤ मज़ा आता है। मेरे बेटे à¤à¥€ जब छोटे थे तो खेल – खिलौनों के बजाय पà¥à¤²à¤¾à¤¸, पेचकस, संडासी जैसे सामान में अधिक रà¥à¤šà¤¿ लेते थे।
मà¥à¤•ेश ने गैराज़ में से अपनी शेवरले सà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥à¤• निकाली और फिर शिवमà¥â€Œ के साथ à¤à¤• बालà¥à¤Ÿà¥€ पानी, कà¥à¤› अखबार और डसà¥à¤Ÿà¤° आदि लेकर नीचे पहà¥à¤‚चे। मैं à¤à¥€ अपना कैमरा उठाने लगा तो बोले, अà¤à¥€ इसका कà¥à¤¯à¤¾ काम ! जाने में तो अà¤à¥€ दो घंटे हैं। मैने कहा कि पिकनिक तो उसी समय से शà¥à¤°à¥ हो जाती है जब हम यह निशà¥à¤šà¤¯ कर लेते हैं कि पिकनिक पर जाना है। उसके बाद में की जाने वाली सà¤à¥€ तैयारियां à¤à¥€ पिकनिक का अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं। कार की धà¥à¤²à¤¾à¤ˆ – पà¥à¤›à¤¾à¤ˆ – सà¥à¤–ाई सब इस अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ पिकनिक का अविà¤à¤¾à¤œà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— है। इसलिये इन सब की फोटो à¤à¥€ जरूरी है!  सब कà¥à¤› पिकनिक की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से करो तो हर काम में मज़ा आने लगता है। आधा घंटे तक MP 11 CC 0470 कार की मसà¥à¤•ा पालिश की गई। फिर ऊपर आकर नहाये – धोये ! कविता तब तक धांसू वाली सà¥à¤Ÿà¤«à¥à¤¡ पूरियां और सबà¥à¥›à¥€ बना चà¥à¤•ी थीं जिनका हमने जी à¤à¤° के à¤à¥‹à¤— लगाया। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने कार में सारा सामान बूट में रखा। à¤à¥‹à¤²à¥‡ बाबा को बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करके हम सब फà¥à¤²à¥ˆà¤Ÿ से नीचे उतर आये और मà¥à¤•ेश ने कार की चाबी मेरे हाथों में सौंप दी।
यूं के, अब आयेगा मज़ा ज़िनà¥à¤¦à¤—ी का!






क्या बात है। वाकई मे पढ़कर एक बार भी नहीं लगा कि आप पहली बार मिले है। घर से बाहर जाकर ऐसी मेहमान नवाजी मिल जाए तो घुमने का मजा दुगना हो जाता है।
वैसे तो इंदौर मै ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती लेकिन शिवम् का कम्बल मे लिपटा फोटो देखकर लगता है कि वहा भी सर्दी थी। मुकेश जी और कविता जी की मेहमाननवाजी देखकर मन प्रसन्न हो गया।
धन्यवाद ये सब घुमाक्कर के मंच पर लाने के लिए।
प्रिय सौरभ गुप्ता,
सच कहा आपने! प्रिय मुकेश और कविता के परिवार से जो अपार स्नेह और आदर मुझे मिला, वह मुझे अभिभूत करने वाला है और अविस्मरणीय हो गया है।
शिवम् की कंबल में छुपने की वज़ह कुछ और भी थी जो मैं उसकी अनुमति के बिना शेयर नहीं कर सकता! ये अन्दर की बात है! lol
सुशान्त सिंहल
Well finally two stars met and I have a very happy feeling.
I also visit Indore often but in recent years I was unable to make it there.
Eager to read about Bajbahadur and Roopmati’s story again.
Dear Praveen Wadhwa,
Thank you for coming to the post and leaving a pleasant comment here. I am trying to write about Roopmati and Baj Bahadur and should be able to present it in near future. Thanks again. You not only write at tremendous speed but devote time to read other’s posts and comment thereon. That is pretty nice of you. :)
Loved this post for many reasons.
अतिथि देवो भवः, in its’ true sense of words.
वाह, सुशांत जी, दो घुमक्कडो का मिलन देख कर अच्छा लगा. और आपके चित्र और लेखन का तो जवाब ही नहीं. क्या बात हैं. धन्यवाद…वन्देमातरम…
धन्यवाद प्रवीण जी !
Dear Amitava,
Whatever could be the reasons of your liking the post, I must say thanks to you. Yester night I writing a detailed comment on your Nainital post but before I could submit it, my PC hung and I had to forcibly shut it down.
मुकेश जी ने तो जैसे अपने कार, घर और दिल तक के दरवाज़े खोल के चाबी आप को दे दी। आप जैसे लोगों से ही दुनिया खूबसूरत है। और सुशान्त जी आपकी चुटीली हिन्दी का भी जवाब नहीं। जब आप मुकेश और कविता जी के घर का वर्णन कर रहे थे तो ‘गोलमाल’ के उत्पल दत्त की याद आ गई। ‘कैसा पवित्र वातावरण।’
हार्दिक आभार राजराजेश्वरी जी ! (मैने अक्सर राजेश्वरी नाम का पूरा स्वरूप ऐसा ही देखा है) ।
परम आदरनीय सुशांत सिंघल जी
में मध्य प्रदेश का ही निवासी हूँ और इंदौर से १३५ किलोमीटर दूर नागदा में रहता हूँ. कई बार इंदौर गया हूँ लेकिन जब आपकी नजरो से इंदौर को देखा तो मज़ा आ गया. आप सभी घुमक्कर के लेखक गन एवं आदरनीय नंदन जी से विनती है की जाट देवता को मनाकर वापस लाये.घुमक्कर पर जाट देवता की कमी बहुत खलती है. एक अंतिम बात और सुशांत जी आपसे – यदि आप उपन्यास लिखेगे तो आपका उपन्यास चेतन भगत के उपन्यास और आमिर खान की फिल्म की तरह सुपरहिट होगा. कृपया एस दिशा में सोचे और आगे बड़े आपकी जेसी लेखन कला बहुत कम लोगो में पाई जाती है. माँ सरस्वती के आशीर्वाद को सार्थक करते रहेंगे इसी आशा और विश्वास के साथ….
भूपेंद्र सिंह रघुवंशी
भूपेंद्र सिंह रघुवंशी
प्रिय भूपेन्द्र रघुवंशी,
आपका संक्षिप्त परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा। अमृतसर / देहरादून से मुंबई जाने वाली (वापिस आने वाली भी !) सभी ट्रेन न सिर्फ सहारनपुर होकर जाती हैं बल्कि नागदा से भी हैलो ! हैलो !! कहती हुई जाती हैं। अतः नागदा स्टेशन से तो मेरा भी किंचित् परिचय है।
जाट देवता को ’मना कर’ वापिस लाने का जहां तक प्रश्न है, वह कोई रूठ कर थोड़ा ही गये होंगे जो मान-मनौवल करने की नौबत आये। यदि कोई लेखक अपनी खुद की वैबसाइट या ब्लॉग पर लिखना अपने लिये ज्यादा बेहतर मानता है तो वह ऐसा करने के लिये पूर्णतः स्वतंत्र है। हम उनके लेखन के मुरीद हैं, तो “तू जहां – जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा!” वाली अदा में उनके पीछे – पीछे चलते रहेंगे। वैसे जाट देवता जब कुछ नया लिखते हैं तो मुझे उनके ब्लॉग की ओर से मेल आ जाती है – ठीक वैसे ही, जैसे घुमक्कड़ डॉट कॉम से आती है।
आपने उपन्यास लिखने के लिये कहा है। आप मुझे इस लायक मानते हैं कि मैं उपन्यास लिख सकता हूं तो इसके लिये आपका बहुत – बहुत आभार ! देखिये, भविष्य के गर्भ में क्या-क्या छिपा है। हो सकता है, आप की इच्छा ही मेरा भविष्य का मार्ग निश्चित कर डाले।
प्रिय सुशान्त जी….
मुझे आपका और मुकेश जी (दोनो ही महान घुमक्कड़) के मिलन बिंदु पर टिका यह बहुत पसंद आया | आपका यह लेख पढ़कर हमने भी अपने वोही पल फिर से याद कर लिए जब मेरे और मुकेश जी का परिवार श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में मिले थे… उसके बाद फिर दूसरी बार आगरा में मुलाकात हुई थी…| हम लोगो को मुकेश जी मिलकर वोही अनुभति हुई थी जो आपको हुई….|
सुन्दर भाषा शैली और फोटोओ से अलंकृत लेख के लिए …आभार……..
Sushant Ji, It was very kind of you to dedicate this post to Mukesh Ji and his family. True demonstration of atithi devo bhava by Mukesh Ji and Kavita Ji. I love the names Sanskriti and Shivam…
Dear Bhatt Saheb,
Thanks a ton for your kind comment. It is only in our culture perhaps that we equate a guest with God.
प्रिय सुशान्त जी….
आपको आपके जन्मदिन के इस सुअवसर आपके हार्दिक शुभकामनाएँ……..!
:)
प्रिय रितेश, फेस बुक पर और यहां घुमक्कड़ पर आपकी शुभ कामनायें पाकर मैं कृतज्ञ हूं । हार्दिक आभार एवं स्नेह !
Singhal Ji,
thanks for sharing the hospitality you received from Mukesh Ji and Kavita ji at their home. First Vishal wrote about their goodness and now its from your end. I would also like to thanks Mukesh Ji and Kavita ji for their warm welcome to Sh. Sushant Ji.
Thank you Naresh Ji for the sweet words.
श्रद्धेय सुशांत जी,
आपने तो एक पूरी पोस्ट हमारे नाम करके हमें कर्ज़दार कर दिया है, पता नहीं यह क़र्ज़ कैसे चुका पाएंगे। आपसे इतना स्नेह पाकर मैं तो ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा हूँ। धन्य हैं आप, आपकी कलम और आपका कैमरा।
आपके साथ बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने की तमन्ना है …………………………..सही समय का इंतज़ार कर रहे हैं।
मुकेश एवं कविता भालसे …………….
मुकेश जी…..
आपने हमारे साथ भी बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने का वादा किया हुआ….भूलना नहीं जी….. :)
भाई, झगड़े की इसमें कोई बात नहीं है! एक ही हल है – हम तीनों परिवार साथ-साथ चलेंगे ! अब तो हैप्पी? खूब रंग जमेगा – मैं, तुम और बैग पाइपर !!!! पर ये बैग पाइपर कौन है? कम से कम मैं तो नहीं !
प्रिय मुकेश एवं कविता,
जो दिल में उमड़ रहा था, लैपटॉप की स्क्रीन पर उभर कर आता रहा। अगर कर्ज़ वाली बात है, तो आप हमें आतिथ्य का अवसर देकर इस कर्ज़ से मुक्ति पा सकते हैं !!! :D
जब चलने की योजना बने, दो-एक मास पहले इंगित कर दीजियेगा, चले चलेंगे ! रितेश गुप्ता को भी ले जायेंगे वरना… :D
बहुत बढ़िया विवरण… लग रहा है कि मैं मुकेश जी के घर आया हूं….और ये सब मेरे साथ हो रहा है
ROFL
“मैने कहा कि बिना हेल्मेट पहने मैं कभी कोई गीत गाने के लिये मुंह नहीं खोलता क्योंकि इसमें मेरे जीवन को खतरा है। पर फिर भी जब मांग जारी रही तो मैने गर्दभ राग सुनाया”
he he he. Thank you Sir Ji ! jab 3 ghumakkar (Mukesh – Kavita and yours truly) mil kar itna hungama kar sakte hain to 72 mil kar kitnaa hungaama karenge !!! Socho, socho !! and then please decide in favour of a ghumakkar meet.
Nice blog and photos.
Happy Birthday to you.
Thank you Surinder Sharma Ji.
Actually, “खुश तो बहुत हैं आज हम ” :-)
I think you are enjoying as much while writing as we do while reading. Mukesh probably has met a lot of writers from here. This is indeed humbling.
Yeah, truly enjoying while reliving those golden moments. I just wanted my wife also to be there with us…. but ये हो न सका, और अब ये आलम है कि तू नहीं, तेरी ज़ुस्तजू भी नहीं ! :D
I agree with ALL the comments written before mine! About time you should write a book, Sushant ji! I read most of your stories but can never find enough words to express in comments. Superbly written, and lovely to see the Bhalse home through your eyes.
Best regards.
Welcome aboard Smita Dhall ! So, you have always been enjoying the show silently? :D Penalty lagegi !
Thank you very much for your superbly expressed sentiments which made me quite ‘senti’ and thus served their purpose well ! :D I have always wanted to write books on two topics – The woodcraft of Saharanpur and “Before you click the shutter…” on photography. But I not a disciplined man so didn’t give time to these projects on regular basis. अब आप सब मुझे चने के झाड़ पे चढ़ाये दे रहे हैं तो ठीक है, ओखली में सिर अवश्य देने का प्रयत्न करूंगा ! But the million dollar question, “Who is going to publish / buy my books?”
Ghumakkar.com ke resources ka istemaal kijiye book chhapney ke liye. Am sure, their machinery will work :-)
Hi Sushantji,
Mazaa aa gaya. That is all I got to say. I was thinking of ordering a tea to overcome the post lunch symptoms of a hot Delhi summer afternoon. But then reading your post woke me up and has suddenly put me in a good mood.
I can see Mukesh and Kavita were perfect hosts and took good care of you.
Hi Nirdesh Ji,
It is really a blessing from the Almighty if my post helped to relieve your post-lunch symptoms! Nothing could be more gratifying than this for me.
Yes, Mukesh, Kavita, and the shy kids Sanskriti and Shivam played perfect hosts and friends to me and I am sure all other ghumakkar authors would be no different from them. We are connected to each other through our writings which is a spiritual faculty. So, if spirits are the same in all of us, differences in outward forms, individual vocations, age mean nothing. Our souls transcend across such petty differences.
आज चुप नहीं रहूँगा…..
शौमेन राज साहब की फ़िल्म सत्यम् शिवम् सुंदेरम शुरू होती है एक पत्थर से जिसे वही अपने शब्द देते हैं कि इसे भगवान किसने बनाया? आपकी भावना/श्रद्धा/आस्था और विश्वास ने….
तनावांतजी, घुमक्कड़ के माननीय लेखकों ने इस परिवार को न जाने कितने तीर्थ कराए हैं, आपके इस लेख ने एक और तीर्थ कराया है वह् है कविता भाल्से मन्दिर, आपके शब्दों द्वारा जो सकारात्मक तथा आध्यात्मिक उर्जा का प्रसार हुआ है वह् यहीं नहीं बल्कि उसने विदेशों में भी जाकर दिलों को छुआ है(इस मंच पर प्रायः टिप्पणी करना भूल चुकी आदणीय स्मिता ढल जी भी इससे अछूती न राह सकी).
वैसे तो मैं अपनी टिप्पणियाँ इस मंच से मिटी हुई देखने का आदी हो चुका हूँ, मगर फिर भी….
तनावांत जी के शब्दों में व्यापकता है, जिनके विराटत्व की घुमक्कड़ परिवार पर एक पहचान है, जिनके शब्द भारहीन तो हो सकते हैं मगर हल्के नहीं, सूक्ष्म तो होते हैं पर छोटे नहीं, यह शब्द एक आभा लिए हैं जिनकी कांति से घुमक्कड़ का एतिहास सदैव चमकता रहेगा आज कि पीढ़ी इसे पीढियों के लिए, पीढियों तक सहेज कर रखेगी, क्योंकि यह शब्द अन्तस् के धरातल से फूटे हैं, आत्मा की गहराई से निकलकर आकाश की ऊँचाई को छुए हैं, किसी पेंग की डाली से गिरे या हाट बाज़ार से खरीदे हुए नहीं.
आदरणीय त्रिदेव जी,
आपके स्नेह की वर्षा से मैं प्रारंभ से ही भीगता चला आ रहा हूं और आप हैं कि मानसून के काले – काले बादलों की तरह से अपना कोष मुझ अकिंचन पर लुटाये चले जा रहे हैं। आपके अपरिमित स्नेह के लिये धन्यवाद तो बहुत छोटा सा शब्द है। भारी भरकम सा शब्द डिक्शनरी में ढूंढ़ता रहा और इस चक्कर में इतने दिन तक आपके इस सुपर – डुपर कमेंट का उत्तर भी डिले हो गया।
परमपिता परमात्मा से यही विनती है कि आप का यह स्नेह मुझ पर सदैव बनाये रखें और मुझे इस स्नेह और प्रशंसा के योग्य बनायें।
’आपकी टिप्पणियां इस मंच से मिटी हुई देखने के आप आदी हो चुके हैं’ ये बात कुछ हज़म नहीं हुई ! भला, आपकी इन प्यारी प्यारी टिप्पणियों को कौन मिटाने की सोच सकता है? मेरे लिये तो आपके ये उद्गार जीवन की अमूल्य निधि हैं । घुमक्कड़ का यही वैशिष्ट्य तो मुझे यहां बार-बार खींच लाता है।