यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ मैं रात को लगà¤à¤— दो बजे सोया था, सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ ही आंख खà¥à¤² गई।  कहते हैं कि हम सबके मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• में à¤à¤• बायोलॉजिकल कà¥à¤²à¥‰à¤• है। यदि आप अपने आप को यह कह कर सोयें कि सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे हर हालत में उठना है तो पौने पांच बजे ही आपकी आंख सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥‡à¤µ खà¥à¤² जायेगी।  नाइट लैंप के धीमे-धीमे पà¥à¤°à¤•ाश में मैं समय नहीं देख पा रहा था तो मोबाइल का बटन दबा कर, आंखें सिकोड़ कर देखा तो 5:45 हà¥à¤ थे।
à¤à¤• बार इचà¥à¤›à¤¾ हà¥à¤ˆ कि दोबारा सो जाऊं पर फिर खयाल आया कि यहां घूमने आया हूं, सोने के लिये नहीं !  सà¥à¤¬à¤¹ – सà¥à¤¬à¤¹ जाकर देखना चाहिये कि सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ के समय कैसा लगता है।  बस, आलसà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— गया।   फटाफट नहा-धोकर पà¥à¤¨à¤ƒ कैमरा कंधे पर डाला, सर पर à¤à¤—वा वसà¥à¤¤à¥à¤° बांधा, अपनी चरण-पादà¥à¤•ायें नीचे रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर रखीं और छोटे वाले गेट से बाहर!

जोड़ाघर – बड़े-छोटे के अहं का संपूरà¥à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤— करके ही à¤à¤¸à¥€ कारसेवा संà¤à¤µ है।
सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर के बाहर इतनी सà¥à¤¬à¤¹ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ कम ही थे। सड़क पर कà¥à¤› सेवादार à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ लगा रहे थे।  à¤à¤• अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ बात जो अमृतसर जाकर बड़ी शिदà¥à¤¦à¤¤ से सीखने को मिली वह ये कि किसी à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को उसके काम के आधार पर छोटा या बड़ा समà¤à¤¨à¤¾ सबसे बड़ी मूरà¥à¤–ता है। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर में कोई à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ लगा रहा हो, आपकी चपà¥à¤ªà¤² उठा रहा हो, फरà¥à¤¶ पर पोचा लगा रहा हो तो ये समà¤à¤¨à¥‡ की à¤à¥‚ल कतई नहीं करनी चाहिये कि ये लोग यहां कोई नौकर-चाकर है।  हो सकता है, आपकी चपà¥à¤ªà¤² उठा कर रैक में रख कर आपको टोकन देने वाला वासà¥à¤¤à¤µ में कोई करोड़पति बिज़नेस मैन हो जो धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के वशीà¤à¥‚त अपने सारे अहं को दरकिनार कर, आपकी सेवा करने में अपना पà¥à¤£à¥à¤¯à¤²à¤¾à¤ देख रहा हो।    सच तो यह है कि उनके हाथ में चपà¥à¤ªà¤² सौंपते हà¥à¤ मन में अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• संकोच होता है कि ये à¤à¤•ाà¤à¤• सफेद कपड़े पहने, सफेद दाढ़ी वाले वयोवृदà¥à¤§ सजà¥à¤œà¤¨ मेरी चपà¥à¤ªà¤² उठा कर अपना परलोक सीधा कर रहे होंगे पर मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पाप लिपà¥à¤¤ कर रहे हैं?  अपनी चरण पादà¥à¤•ायें होटल में ही छोड़ आने की मà¥à¤–à¥à¤¯ वज़ह यही थी!  जिन महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ ने कारसेवा की ये अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ डाली है, उनके शà¥à¤°à¥€à¤šà¤°à¤£à¥‹à¤‚ में मेरा सादर नमन!

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर दà¥à¤µà¤¾à¤° के बाहर लगी टोंटियां।

हरमंदिर साहब के परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर बैठे शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥
पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के बाहर लगी टोंटियों पर हाथ धोकर, फिर पानी में से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ पैर धोकर मैने घंटाघर में से परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो लगा कि शà¥à¤°à¥€ हरमंदिर साहब à¤à¥€ रातà¥à¤°à¤¿ में à¤à¤• पà¥à¤°à¤¹à¤° विशà¥à¤°à¤¾à¤® करके बिलकà¥à¤² तरोताज़ा लग रहे हैं। अकà¥à¤¤à¥‚बर की सà¥à¤¬à¤¹ साढ़े छः बजे अमृतसर का मौसम à¤à¤•दम à¤à¤¸à¤¾ था जैसे कि खास तौर पर आरà¥à¤¡à¤° देकर मंगवाया हो! अमृत सरोवर के घाट पर मैने आलथी – पालथी जमाई और वहां के मनोरम दृशà¥à¤¯ को मानों अपनी पांचों जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से सहेजना शà¥à¤°à¥ कर दिया। दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ आते, परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर चमचमाते हà¥à¤ फरà¥à¤¶ पर साषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚ग दंडवतà¥â€Œ करते रहे और आगे बढ़ते रहे। जाने कितनी देर वहीं बैठा रहा, जब कà¥à¤› धूप उस पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में उतरी तो मà¥à¤à¥‡ लगा कि मंदिर में à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया जाये।

दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¥à¥€ से बाहर तक शानà¥à¤¤à¤¿ से खड़े हà¥à¤ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚
दाईं ओर अकाल तखà¥à¤¤ के सामने दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¤¢à¤¼à¥€ से बाहर तक दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की लमà¥à¤¬à¥€ – लमà¥à¤¬à¥€ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ लगी हà¥à¤ˆ थीं। सब लोग शानà¥à¤¤à¤¿ से खड़े हà¥à¤ थे, कोई बेचैनी नहीं, धकà¥à¤•ा – मà¥à¤•à¥à¤•ी करके आगे निकलने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नहीं। à¤à¤•-दो वृदà¥à¤§ पà¥à¤°à¥à¤· यदि आगे निकले à¤à¥€ तो शांति से, सहज à¤à¤¾à¤µ से उनको आगे जाने दिया गया। à¤à¤¸à¤¾ नहीं कि अनà¥à¤¯ लोग कहें, “à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¬, हम कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤• मार रहे हैं सà¥à¤¬à¤¹ से लाइन में खड़े हà¥à¤? लाइन में पीछे लगिये !â€Â मà¥à¤à¥‡ तो वैसे à¤à¥€ कोई जलà¥à¤¦à¥€ नहीं थी। मैं तो à¤à¤•-à¤à¤• कà¥à¤·à¤£ को जीने के लिये, घूंट – घूंट कर पीने के लिये ही तीन दिन का समय निकाल कर यहां आया था। कà¥à¤› लोगों ने कहा à¤à¥€ था कि अमृतसर छोटी सी जगह है। रात की टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़ कर सà¥à¤¬à¤¹ छः बजे अमृतसर पहà¥à¤‚चो। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर के दरà¥à¤¶à¤¨ करो, फिर जलियांवाला बाग जाओ जो बगल में ही है। वहां से फà¥à¤°à¥€ होकर लंच लो, तीन बजे वाघा बारà¥à¤¡à¤° के लिये चल दो। वहां से सात बजे तक वापिस आओ, à¤à¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤‚ ढाबे में खाना खाओ, रात को दस बजे अपनी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ पकड़ो और सà¥à¤¬à¤¹ अपने घर !   पर मैं इतनी फà¥à¤°à¤¸à¤¤ में था कि बस, कà¥à¤¯à¤¾ बताऊं ! तीन रातें अमृतसर में ही बिताने की सोच कर आया था।

दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¥à¥€ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤œà¤Ÿà¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंडित दीवारों पर चितà¥à¤°à¤•ारी à¤à¤µà¤‚ इतिहास

दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¥à¥€ में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ जटित दीवारों पर बने हà¥à¤ कथा-चितà¥à¤°

दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¥à¥€ से मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ तक दोनों ओर दस-दस पà¥à¤°à¤•ाश सà¥à¤¤à¤‚à¤

दीवारों पर कलाकारों ने अपना दिल निकाल कर रख दिया लगता है।

शबद-कीरà¥à¤¤à¤¨ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ आगे बॠरहे दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ !

अमृत सरोवर की पैड़ियों पर काई न जम जाये अतः नितà¥à¤¯ कारसेवा चलती है।
लाइन में लगे – लगे à¤à¥€ मेरा कैमरा कà¥à¤²à¤¿à¤• – कà¥à¤²à¤¿à¤• करता रहा, धीरे – धीरे पंकà¥à¤¤à¤¿ आगे सरकती रही। पंकà¥à¤¤à¤¿ में लगे – लगे अमृत सरोवर की सीढ़ियों को रगड़-रगड़ कर साफ करते हà¥à¤ कार सेवक दिखाई दे रहे थे।  अंततः वह कà¥à¤·à¤£ à¤à¥€ आया जब मैने हरमंदिर साहब के मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया। शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ सà¥à¤®à¤¨ अरà¥à¤ªà¤£ करने के बाद à¤à¤• कोना ढूंढ कर वहां दस मिनट के लिये बैठा à¤à¥€à¥¤  सीढ़ियां चढ़ कर पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर पहà¥à¤‚चा तो वहां से परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ और चारों दिशाओं में à¤à¤•ाà¤à¤• सफेद रंग की दोमंजिला इमारत को निहारता रहा। दो-à¤à¤• फोटो à¤à¥€ लीं पर फिर बाद में à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ ने फोटो लेने के लिये मना कर दिया। नीचे उतर कर आया तो वापस दरà¥à¤¶à¤¨à¥€ डà¥à¤¯à¥‹à¤¢à¤¼à¥€ जाने के लिये कोई à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¤°à¥€ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दिखाई नहीं दे रही थीं ! आराम से बाहर आया, कडाह पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया। à¤à¤• दोना à¤à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ खा कर à¤à¥€ मन नहीं à¤à¤°à¤¾, तो दूसरे सजà¥à¤œà¤¨ के सामने फिर हाथ फैला कर खड़ा हो गया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूछा कि आप दरà¥à¤¶à¤¨ कर आये? मैने कहा, “जी हां !â€Â वे बोले, “वहां से आते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ नहीं मिला?†मैने कहा, “जी मिला, पर शायद कम था, और इचà¥à¤›à¤¾ है!â€Â हंसते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• दोना पà¥à¤¨à¤ƒ मेरे हाथों में रख दिया। दो – दो दोने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के पेल के, सचà¥à¤šà¥‡ हृदय से उनको आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ देकर मैने हाथ धोये और फिर अपना कैमरा ऑन कर लिया और à¤à¤Ÿà¤•ती आतà¥à¤®à¤¾ की तरह अकाल तखà¥à¤¤ की ओर बढ़ा।

सरोवर के उस पार परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ पर à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• बेरी का पेड़ नज़र आरहा है।
हे à¤à¤—वान! इतने सारे कमरे? हर कमरे में शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥à¤—à¥à¤°à¤‚थ साहिब का पाठचल रहा था।  à¤à¤• से पूछा कि à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¤¬, ये हर कमरे में पाठकैसा चल रहा है? तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से उधर देखा फिर दोबारा मेरी ओर देखा, फिर वापिस उधर देखा और फिर मेरी ओर देख कर पूछा, “आपको नहीं पता?â€Â मैने कहा, नहीं!â€Â बोले, “मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ नहीं पता!â€
बाद में वापसी यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान मेरे सहयातà¥à¤°à¥€ सरदार जी ने बताया कि हमारे आपके जैसे अनेक गृहसà¥à¤¥ परिवार मनोकामना पूरी होने पर पाठकराने का संकलà¥à¤ª लेते हैं तो उन कमरों में à¤à¤¸à¥‡ ही गृहसà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की ओर से पाठचलते रहते हैं। आप चाहें तो वहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रह सकते हैं और चाहें तो à¤à¥à¤—तान करके आ सकते हैं। आपकी ओर से पाठकरा दिया जाता है। जैसे लोग माता की चौकी, à¤à¤—वती जागरण या सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कांड का पाठकराते हैं, à¤à¤¸à¥‡ ही ये à¤à¥€ पाठहोता है परनà¥à¤¤à¥ इसमें धन का अशà¥à¤²à¥€à¤² पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ नहीं होता।

सिर पर गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤‚थ साहब को लेकर आते शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ !
वहां घूमते – घूमते, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¨ करते-करते बड़ी देर हो चà¥à¤•ी थी। मैने घड़ी की ओर देखा तो केवल दस बज रहे थे जबकि मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि शायद १ या २ बजने वाले होंगे। अकाल तखà¥à¤¤ की ओर से ही बाहर निकल आया तो नेसà¥à¤•ेफे का सà¥à¤Ÿà¥‰à¤² देखा। अरे वाह, कॉफी सिरà¥à¤« आठरà¥à¤ªà¤¯à¥‡! उससे कहा कि à¤à¤ˆ, à¤à¤• कॉफी दो तो बोला, “पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡â€ । यह राग हमें समठनहीं आया। जब उसने समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ तब à¤à¥€ समठनहीं आया। मैने उसे गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ में घूरते हà¥à¤ उसके सà¥à¤Ÿà¥‰à¤² की फोटो खींची मानों ये केस सीधे सी.बी.आई. को विशेष जांच के लिये à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ की योजना हो !  आगे à¤à¤• दà¥à¤•ान देखी तो दस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का सà¥à¤Ÿà¥€à¤² का à¤à¤• कड़ा खरीद कर पहन लिया और फिर घंटाघर की ओर कदम बढ़ा दिये।
घंटाघर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से पà¥à¤¨à¤ƒ अंदर कदम रखा तो सिकà¥à¤– संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ नज़र आया। सोचा कि चलो, इस संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ ने मेरा कà¥à¤¯à¤¾ बिगाड़ा है !  इसे à¤à¥€ देखे लेते हैं।  दरबार के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से अनà¥à¤¦à¤° आते ही दाईं ओर ऊपर जाने के लिये सीढ़ियां थीं । ऊपर पहà¥à¤‚चा तो लिखा मिला, “फोटो खींचना मना है जी।“ पहले तो बड़े धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से à¤à¤• – à¤à¤• चितà¥à¤° को देखना और उसके नीचे दिये गये विवरण को पढ़ना शà¥à¤°à¥ किया पर फिर लगा कि इतने शहीदों का वरà¥à¤£à¤¨ पढ़ते-पढ़ते मैं à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ ही शहीदों की लिसà¥à¤Ÿ में अपना नाम लिखवा लूंगा। हे à¤à¤—वान ! इतने शहीद यहां और इनके अलावा उनà¥à¤¨à¥€à¤¸ सौ के करीब जलियांवाला बाग में! अब मà¥à¤à¥‡ इस बात का कोई आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ नहीं हो रहा था कि अमृतसर में हर सड़क का नाम किसी न किसी शहीद के नाम पर ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है?
शहीदों के चितà¥à¤° देखते देखते सब नाम गडà¥à¤¡ – मडà¥à¤¡ होने लगे थे परनà¥à¤¤à¥ अंतिम ककà¥à¤· में पहà¥à¤‚चा तो देखा कि नवीनतम शहीदों की पंकà¥à¤¤à¤¿ में बेअंत सिंह और सतवंत सिंह के à¤à¥€ बड़े – बड़े तैल चितà¥à¤° लगे हà¥à¤ हैं। पहचाने आप? बेअंत सिंह और सतवंत सिंह वे दोनों अंगरकà¥à¤·à¤• थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अंगरकà¥à¤·à¤• के रूप में पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ अपने सिर पर लेकर à¤à¥€ निहतà¥à¤¥à¥€ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ इंदिरा गांधी की हतà¥à¤¯à¤¾ की थी।  मन में सहसा विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ ने सर उठाया। फिर देखा कि à¤à¤• तैल चितà¥à¤° और लगा हà¥à¤† है जिसमें गोलों – बारूद की मार से कà¥à¤·à¤¤-विकà¥à¤·à¤¤ लगà¤à¤— खंडहर अवसà¥à¤¥à¤¾ में अकाल तखà¥à¤¤ का चितà¥à¤° था। अकाल तखà¥à¤¤ की यह दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आपरेशन बà¥à¤²à¥‚ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° के समय आतंकवादियों को अकाल तखà¥à¤¤ से बाहर निकलने के लिये विवश करने के दौरान हà¥à¤ˆ थी। à¤à¤• आम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ की तरह मेरा à¤à¥€ मानना है कि अकाल तखà¥à¤¤ की à¤à¤¸à¥€ कषà¥à¤Ÿà¤•र, वेदनाजनक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के लिये यदि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना को दोषी माना जाता है तो वे लोग à¤à¥€ कम से कम उतने ही दोषी अवशà¥à¤¯ हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¿à¤‚डरवाले को अकाल तखà¥à¤¤ में छिप कर बैठने और वहां से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना पर वार करने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की थी।  अकाल तखà¥à¤¤ की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ तो उसी कà¥à¤·à¤£ à¤à¤‚ग हो गई थी जब उसमें हथियार, गोले और बारूद लेकर à¤à¤¿à¤‚डरवाले और उसके अनà¥à¤¯ साथियों ने पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया और इस बेपनाह खूबसूरत और पवितà¥à¤° à¤à¤µà¤¨ को शिखंडी की तरह इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया।  वैसे जो लोग राजनीति की गहराइयों से परिचित हैं उनका कहना है कि à¤à¤¿à¤‚डरवाले à¤à¥€ तो कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ का ही तैयार किया हà¥à¤† à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° था जिसे कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ ने अकाली दल की काट करने के लिये संत के रूप में सजाया था। असà¥à¤¤à¥ !

वाहà¥à¤¯ परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ को हरा à¤à¤°à¤¾ रखने के लिये à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ को जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ मिली है।

आपरेशन बà¥à¤²à¥‚ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° के बाद इस गलियारे की आवशà¥à¤¯à¤•ता अनà¥à¤à¤µ की गई थी।
आपरेशन बà¥à¤²à¥‚ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° के बाद सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤‚दिर को पà¥à¤¨à¤ƒ à¤à¤¸à¥€ अशोà¤à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से बचाने के लिये सरकार ने गलियारा बनवाया है जिसको वाहà¥à¤¯ परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ पथ के रूप में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया। इस गलियारे को खूबसूरत ढंग से सजाने का जिमà¥à¤®à¤¾ à¤à¥€ à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ को दे दिया गया है। इस गलियारे में किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार का वाहन लाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं है अतः ये सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर परिसर के लिये à¤à¤• सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ चकà¥à¤° का कारà¥à¤¯ करता है।
इस गलियारे तक आते-आते रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• छोटा सा जलाशय मिला जिसमें खूब सारे कबूतर बेचारे कबूतरियों को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने का अनथक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहे थे और जो जो अपने इस पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ में सफल हो रहे थे, वे सब कबूतरियों के साथ किलà¥à¤²à¥‹à¤² कर रहे थे। कबूतरों की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—त रखते हà¥à¤ जिस किसी ने à¤à¥€ इस सूकà¥à¤·à¥à¤® तरणताल का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया होगा, उसकी कोमल à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को शत शत नमन !
घंटों से नंगे पांव चलते – चलते काफी थकान होचà¥à¤•ी थी और गलियारे से बाहर सड़क पर चलने से अब तक मेरे पांव में काफी सारे कंकड़ – पतà¥à¤¥à¤° और à¤à¤• आधी फांस चà¥à¤ चà¥à¤•े थे अतः मà¥à¤à¥‡ अपनी à¤à¤²à¤¾à¤ˆ इसी में नज़र आई कि अपने कमरे में जाऊं, पैरों को कà¥à¤› देर गरà¥à¤® पानी में रख कर थोड़ा सा विशà¥à¤°à¤¾à¤® दूं और तब आगे का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® सोचूं ! होटल के कमरे में आया, कैमरा बिसà¥à¤¤à¤° पर टिकाया।  खà¥à¤¦ à¤à¥€ बैठा और अपने तलवों की ओर देखा तो आंखों में आंसू आ गये! हाय राम, à¤à¤• दिन में कà¥à¤¯à¤¾ से कà¥à¤¯à¤¾ हालत कर ली मैने अपने पैरों की ! अब अपनी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी को कà¥à¤¯à¤¾ मà¥à¤‚ह दिखाऊंगा! उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खास तौर पर चलते चलते ताकीद की थी – “आपके पांव बहà¥à¤¤ खूबसूरत हैं, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जमीन पर मत उतारियेगा। मैले हो जायेंगे ।“ कà¥à¤› न कà¥à¤› तो करना ही पड़ेगा! पर, मà¥à¤ सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ के लिये होटल के उस कमरे में कोई कृषà¥à¤£ सरीखे सखा तो उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे नहीं जो “पानी परांत को हाथ गहà¥à¤¯à¥‹ नहीं, नैनन के जल सों ही पग धोà¤à¥¤â€œÂ के अनà¥à¤¦à¤¾à¥› में मेरे पांव धो देते।  मजबूरन खà¥à¤¦ ही उठा, गीज़र से गरà¥à¤®à¤¾ – गरà¥à¤® पानी बालà¥à¤Ÿà¥€ में लिया, उसमें थोड़ा ठंडा पानी à¤à¥€ मिलाया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बैग में बरनौल रखना à¤à¥‚ल गया था।  दस-पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ मिनट तक पानी में पैर लटकाये रहा, होटल वालों के साबà¥à¤¨ और फिर à¤à¤•ाà¤à¤• सफेद तौलिये का सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— अपने पैरों को पà¥à¤¨à¤ƒ चमकाने में किया तब कहीं जाकर आतà¥à¤®à¤¾ को (और पैरों को à¤à¥€ ) शांति मिली।
यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ सà¥à¤¬à¤¹ – सà¥à¤¬à¤¹ मैं दो दोने à¤à¤° के पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर चà¥à¤•ा था पर न जाने कà¥à¤¯à¥‚ं à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था कि वह सदियों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बात हो। à¤à¥‚ख पà¥à¤¨à¤ƒ लग आई थी। कमरे से बाहर निकला और खाने की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ की तलाश में नथà¥à¤¨à¥‡ फड़काता हà¥à¤† बाज़ार की ओर बढ़ा !  सामने ही à¤à¤• तिमंजिला à¤à¤µà¤¨ में अमृतसर के “मशहूर कà¥à¤²à¤šà¥‡ और ताजा ठंडी लसà¥à¤¸à¥€” लिखा देख कर फटाफट à¤à¤• सीट à¤à¤¸à¥‡ घेर ली मानों मà¥à¤‚बई की लोकल टà¥à¤°à¥‡à¤¨ हो।  तीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का कà¥à¤²à¤šà¤¾ – सबà¥à¤œà¤¼à¥€ और पचà¥à¤šà¥€à¤¸ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की लसà¥à¤¸à¥€ कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾ को शानà¥à¤¤ करने के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सिदà¥à¤§ हà¥à¤ˆ ! तथाकथित अमृतसरी कà¥à¤²à¤šà¥‡ में वैसी कोई विशेषता नज़र नहीं आई जैसा कि उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥‡à¤‚ लगा रखी थीं।

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर से कà¥à¤› ही कदमों की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जलियांवाला बाग !
मà¥à¤¶à¥à¤•िल से सौ कदम आगे बढ़ा तो जलियांवाला बाग का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° मिला – ठीक वहीं जहां “गूगल कौर” ने बताया था। मेरे निरपराध देशवासियों के खून से रंगी इस धरती की रज माथे पर लगा कर à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया। सबसे पहले बाहर पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में à¤à¤• सूचना पटà¥à¤Ÿ और नाम शलाका ! विशाल ककà¥à¤· में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो दीवारों पर शà¥à¤µà¥‡à¤¤ शà¥à¤¯à¤¾à¤® चितà¥à¤° लगे हà¥à¤ थे जो उस दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤•, अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ घटनाकà¥à¤°à¤® के गवाह थे। ककà¥à¤· में से होकर बाहर उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो दायें हाथ पर शहीदों के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में अखंड जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ जलती दिखाई दी। मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि मैं à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ विशिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मौजूद हूं जिसकी गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ और गरिमा का निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ करना हर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नागरिक का करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है।  पर कà¥à¤› यà¥à¤µà¤• – यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ नज़र आये जो कà¥à¤› पल साथ बिताने की लालसा में उसे à¤à¤• आम कंपनी बाग समठकर आते रहते होंगे। निशà¥à¤šà¤¯ ही अमृतसर के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ निवासी तो जलियांवाला बाग में तब ही आते होंगे जब उनके घर में मेहमान आये हà¥à¤ हों और उनको जलियांवाला बाग दिखाना हो ! बाहर से आये हà¥à¤ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों की चिनà¥à¤¤à¤¾ ही कà¥à¤¯à¤¾?
- अनाम शहीदों की पावन सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में अमर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ सततà¥â€Œ जलती रहती है।

जलियांवाला कांड की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में डूबी दो साधà¥à¤µà¥€ !

दीवारों में गोलियों से जो जखà¥à¤® हà¥à¤ थे, वे आज à¤à¥€ जस के तस हैं।

शहीदी कà¥à¤à¤‚ को à¤à¤• सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• का सà¥à¤µà¤°à¥‚प दे दिया गया है।
जलियांवाला बाग के à¤à¤•मातà¥à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° को बनà¥à¤¦ करके जनरल डायर ने जिस पà¥à¤°à¤•ार शांति से सà¤à¤¾ कर रहे निहतà¥à¤¥à¥‡ नागरिकों पर, बिना उनको बचने का अवसर दिये, गोलियों के राउंड पर राउंड खाली कर दिये थे, वह कोई à¤à¤¸à¤¾ ही सैनà¥à¤¯ अधिकारी कर सकता था जिसके संसà¥à¤•ारों में ही बरà¥à¤¬à¤°à¤¤à¤¾ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हो! सà¥à¤¨à¤¾ है कि पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जमाने में यूरोप में जब किसी को मौत की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ जाती थी तो शहर के नागरिकों के लिये ये à¤à¤• मेले जैसा आननà¥à¤¦à¤ªà¥‚रà¥à¤£ अवसर होता था। घर से सज-धज कर, संवर कर सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ – पà¥à¤°à¥à¤· और बचà¥à¤šà¥‡ पिकनिक के से माहौल की इचà¥à¤›à¤¾ में सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® में आते थे जहां मदमतà¥à¤¤ हाथी के पांव तले कà¥à¤šà¤² कर अपराधी को मौत की सजा दी जाती थी। अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की रकà¥à¤·à¤¾ के लिये वह सजायाफà¥à¤¤à¤¾ अपराधी सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® में इधर से उधर à¤à¤¾à¤—ता था और महावत उसे पल – पल तड़पाते हà¥à¤ जीवन की à¤à¥€à¤– मांगते हà¥à¤ देख कर अटà¥à¤Ÿà¤¹à¤¾à¤¸ करता था। जनता à¤à¥€ पॉपकारà¥à¤¨ खाती हà¥à¤ˆ, अपने अपने मग में से कॉफी पीती हà¥à¤ˆ इस दृशà¥à¤¯ से आहà¥à¤²à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ अनà¥à¤à¤µ करती थी। अंततः जब वह कैदी मारा जाता था तो “खेल खतà¥à¤® – पैसा हज़म†की सी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से लोग अपने अपने घर को चल पड़ते थे। असà¥à¤¤à¥ !
जलियांवाला बाग में गोलियों की बौछारों का सामना करती वे तीन दीवारें आज à¤à¥€ उस बरà¥à¤¬à¤° नरपशॠकी हृदयहीनता की कहानी कहती हैं। दीवारों पर गोलियों के चिहà¥à¤¨ आज à¤à¥€ मौजूद हैं जिनको शहीदी सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• के रूप में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ कर दिया गया है। वहीं à¤à¤• शहीदी कà¥à¤†à¤‚ है जिसमें सैंकड़ों लोग इसलिये कूद पड़े थे कि शायद गोलियों की बौछार से बच जायें तो जान बच जायेगी । बताया जाता है कि वह गहरा कà¥à¤†à¤‚ à¤à¥€ लाशों से ऊपर तक पट गया था।

दीवार के आगे कांच की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ ताकि परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• यहां à¤à¥€ दीवार पर अपना नाम न लिख जायें!
à¤à¤• अजीब सी वेदना का à¤à¤¾à¤µ मन में लिये मैं उस उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में इधर से उधर घूमता रहा, à¤à¤Ÿà¤•ता रहा, जो कà¥à¤› à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£Â लगा, उसे अपने कैमरे में संकलित करता रहा। वहां से बाहर निकलते समय देखा कि इस मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम जैसे ककà¥à¤· में पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर कोई शो दिखाया जाता है। अà¤à¥€ शो का समय होने में दो घंटे बाकी थे अतः ये सोच कर मैं बाहर चला आया कि पà¥à¤¨à¤ƒ आ जाऊंगा पर फिर दिमाग़ से बात आई-गई हो गई।
शायद पैदल घूमने फिरने से मेरी कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾ में अपार वृदà¥à¤§à¤¿ हो जाती है। बाहर अपना मूड संवारने के लिये सोचा कि कà¥à¤› खा लिया जाये। à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट दिखाई दिया तो उसमें पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गया। रवा मसाला डोसा का आरà¥à¤¡à¤° थमा दिया पर जब सामने डोसा आया तो लगा कि गलती हो गई है। आप अगर पंजाब में घूम रहे हैं तो आपको पंजाबी खाना मंगाना चाहिये। सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जलवायॠमें सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¥‹à¤œà¤¨ अधिक सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ à¤à¥€ लगता है और हज़म à¤à¥€ बेहतर ढंग से होता है। वैसे à¤à¥€, पंजाब के रसोइये अपने पंजाब का परंपरागत खाना बनाने में जितने निपà¥à¤£ होंगे उतने ही निपà¥à¤£ वह दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ का खाना बनाने में थोड़ा ही होंगे! निषà¥à¤•ाम à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से खाना खाकर मैं वापस होटल आ गया जो मà¥à¤¶à¥à¤•िल से सौ कदम के फासले पर ही था। रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर कà¥à¤› अनà¥à¤¯ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• वाघा बारà¥à¤¡à¤° के बारे में पूछ रहे थे कि कैसे जाना सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• रहेगा। होटल वालों ने बताया कि डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° 3.30 पर यहीं आकर आपको ले जायेगा ! दो पà¥à¤°à¤•ार की टैकà¥à¤¸à¥€ हैं – à¤.सी. जिसका किराया 120 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ है, सादी का किराया 100 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ है। मैने 120 वाली तय कर ली और सà¥à¤¬à¤¹ से अब तक की फोटो लैपटॉप में अंतरित करने और कैमरे की बैटरी चारà¥à¤œ करने के लिये कमरे में आ गया। मेरे पास ढाई घंटे थे जिसमें मैं आराम फरमा सकता था।
कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ
वाघा बारà¥à¤¡à¤° का वरà¥à¤£à¤¨ और चितà¥à¤° आपकी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ में हैं !  किंचितà¥â€Œ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करें!
 
    





 
                
Main aksar ghumakkar.com pe amritsar ke post ignore kar deta hoon, par is post ko ignore karna matlab apko ignore karna, Apko ignore karna to bewakufi hai…
Maja aya dono post padhke. sugathit post hai.
Jaliyawala bagh aur Golden Temple dono se hi badi dard bhari yaadein jud gayin hain, aur waise bhi Amritsar ne border pe hone ke kaaran, partition ke samay kafi trasdi jheli hain.
Photos sabhi bahut acche hain, kaunsa camera hai apke paas?
You are an institution, apko padhna hamesha naya sikhne jaisa hota hain.
सुशांत जी,
अति रोचक लेख तथा सुन्दर तस्वीरें, कुल मिला कर मज़ा आ गया सुबह सुबह. जलियांवाला बाग के बारे में पढ़कर तथा दीवार पर गोलियों के निशान एवं शहीदी कुवां देखकर मन द्रवित हो गया. छोटी छोटी सी व्यंग्यात्मक चुटकियाँ मन में गुदगुदी पैदा कर रहीं थीं. आपकी इस पोस्ट के एक एक शब्द को एवं एक एक चित्र को इंजॉय किया अब वाघा बॉर्डर का इंतज़ार है.
सुशांत जी
पढ कर लगता है काफी कुछ चिंतन करके इस लेख को लिखा है.
सच कह रहे हैं भस्मासुर के बारे मे. पहले मै भी बहुत कुछ लिख गया पर बाद मे लगा हो सकता है हमारे कुछ एक पाठक कांग्रेस की फालोअर हो इसलिये डिलीट कर दिया. यह सोंच कर कि यह कोई राजनीति का मंच नही है.
लेकिन सच यह भी है कि जब भी कुछ गलत कोई भी सरकार करती है तो स्वभाविक रूप से प्रतिक्रिया तो होती ही है. कुल मिला कर बहुत ही सुन्दर पोस्ट और फोटो भी बहुत सुन्दर.
बहुत- बहुत बधाई
I am really indebted to you for sparing some moments to read the post and taking pains to pen your encouraging comments.
@vinaymusafir – Aap Amritsar ko ignore kar dete hain? Aisa kyon? Amritsar ab mere to favourite cities me shaamil ho chuka hai.
@mukeshbhalse – भाईजान, कभी कुछ आलोचना भी तो किया करो, सब के सब चने के झाड़ पर चढ़ा देते हैं ! सुधार की संभावना तो तभी तक है जब तक खट्टे और मीठे, दोनों प्रकार के कमेंट आते रहें !
@rastogi – यह बिल्कुल सही है कि घुमक्कड़ को राजनीति का मंच बना देना बिल्कुल गलत और घातक हो सकता है। एक बहुत प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट हुए हैं जिन्होने लिखा था कि वह दिन – रात राजनीतिज्ञों पर कार्टून बनाते हैं, वही उनकी रोजी-रोटी है, उसी से उनको इतना मान-सम्मान मिला है । पर इस सब के बावजूद, उन्होंने अपने घर में खाने की मेज़ पर राजनीति पर बातचीत बिल्कुल प्रतिबंधित की हुई है। ये नेता लोग इस योग्य नहीं हैं कि खाना खाते हुए इनका ज़िक्र करके अपने खाने का स्वाद बिगाड़ लिया जाये!
एक बार पुनः आप सबको आभार !
Wow, Sushant, you have this amazing ability to capture the essence of the places you visit and the people you encounter; above all of course, the ability to express yourself with so much elegance. Usually I consider reading Hindi posts as an imposition of sorts but in your case, it is sheer pleasure. This time, your humour was a bit subdued, and justified too, considering the sanctity of the places you have visited. Yet, your humourous streak can never be suppressed for long and I found the caption “दीवार के आगे कांच की सुरक्षा ताकि पर्यटक यहां भी दीवार पर अपना नाम न लिख जायें!” vintage Sushant Singhal – a sugar-coated criticism of our inherent tendency to deface monuments.
Regarding comments of a political nature, I see no harm, as long as it is not offensive. A wise and mature person like you knows how to strike the right balance. Ghumakkar is not just a travelogue of the been-there-done-that variety. It is important to write about the historical, social and political underpinnings for better appreciation of a place; in fact it helps us to understand life itself.
Thank you once again.
I forgot to mention that the artwork on the right side of the picture captioned “दीवारों पर कलाकारों ने अपना दिल निकाल कर रख दिया लगता है” looks like an exquisite example of the Parchin Kari technique. I wrote about it in one of my blogs https://www.ghumakkar.com/2012/06/20/the-shaikh-zayed-grand-mosque/
Dear DL,
My post remains incomplete till my ears are able to hear the music coming from your pen ! Thank u for the generous praises. People say, “निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय” but it is not useless to have some people around who boost your morale every now and then. You have really done a great service to me by providing this link back to your post. I shall ever remain grateful to you for that. I must explore this ghumakkar.com more and more. Many a gems are buried here which must not be allowed to remain unexplored.
Thanks for every word of yours.
Sushant Singhal
Sushant ji,
Very nice post. Gurudware me sewa karna , ek aisa kaam hai jo mujhe bahut impress karta hai. Delhi ke bangla sahib Gurudware me maine logo ko Jutaghar me line lagate hue dekha tha sewa karne ke liye…Tab mujhe bahut surprise hua tha, par wo actually hota hai, jab repeat scenario maine Golden temple mai bhi dekha tha.Aap ne Swarn madir a langar khaya ki nahi? Waha ki roti banane ki machine bhi world famous hai…Humari generation me history padna aur history ke liye emotions lana thodi mushkil baat hoti hai kyoki hum log (kuch hum mere jaise , saare nahi) wo sab itna deep imagine nahi kar paate. Par jab maine Jaliawala baag ka kuan (well) aur diwar dekhi thi to sach me meri aankh main aansu aa gaye the…
प्रिय अभी के,
मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जैसे हम गुरुद्वारे की संपूर्ण व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिये कार-सेवा करते देखते हैं, ऐसे ही समाज के व्यापक स्तर पर कार सेवा की सी भावना से ही अपने अपने दुकान – फैक्टरियों में काम करें, नौकरी भी इसी भावना से करें कि यह सब करके हम भारत माता की सेवा कर रहे हैं, समाज रूपी विराट् पुरुष की सेवा में लगे हुए हैं तो न केवल समाज से ऊंच-नीच की भावना समाप्त हो जायेगी बल्कि ईर्ष्या, द्वेष, अपराध, काहिली, भ्रष्टाचार भी समाप्त हो जायेगें! फिर तो, हम चाहे जिस सीट पर बैठ कर भी काम करें, सब कारसेवा ही होगी। हम जो भी काम करेंगे – सब उस निराकार ब्रह्म को ही अर्पित कर रहे होंगे। जैसे गुरुद्वारे में कोई चप्पल उठाये, खाना बनाये, बर्तन मांजे, पोचा लगाये, अमृत सरोवर की सफाई करे, शबद कीर्तन सुनाये, प्रसाद वितरण करे – सब एक बराबर हैं । सब एक व्यवस्था के अन्तर्गत काम कर रहे हैं – वैसे ही समाज में भी होना चाहिये! यही सनातन भारतीय संस्कृति और पूजा पद्धति है। यही भगवान श्री कृष्ण ने गीता के अध्याय 18 में कहा है। परन्तु अब व्यवहार में ऐसा सिर्फ गुरुद्वारों में ही होता दिखाई दे रहा है।
मेरी उक्त रचना को पसन्द करने के लिये आपका आभार हार्दिक आभार ।
सुशान्त
One more fine piece of work from you Sirjee. Pictures are fantastic and wonderful capturing expressions .I dont have much to say about your classy description . Continue with more and more works like this and Thansk for sharing .
I was trying my best to find some thing so that I can criticize but couldn’t find. :-)
Dear Vishal,
Thank you for liking the post. You are so kind to overlook all the shortcomings that I know about.
Dear Sushantji,
Great anecdotal post.
The photos make me want to go there again.
Heartwarming words in the reply to Abhee.
Nirdesh
सुशांत जी, मैं बोलचाल की भाषा का समर्थक हूँ इसलिए मेरी रोज़-मर्रा की जुबान में लिखे हुय कमेंट को अन्यथा न लें , वैसे ये लिखने की क्या ज़रुरत थी, पर किसी पीर ने कहा है की दुनिया एक रंगमंच है तो जहाँ परफॉरमेंस दिखाने का मौका मिले, वहां चौका लगा देना चाहिए |
विवरण के बारे में सबने कह ही दिया | बहुत से नयी बातें पता चलीं और दुबारा अम्बरसर जाने के लिए नया मसाला मिला , धन्यवाद |
अब थोडा निट पीकिंग हो जाए, फोटोज को दायें बायें वाला प्रयास सराहनीय है पर अंत में फोटो चलते रहे और लेख ख़तम हो गया | मेरे पास कोई सटीक (अंग्रेजी में कहें तो चांदी की गोली) उपाय नहीं है पर जब लेख ख़तम हुआ तब अगर एक पूरा पद्य शब्दों का होता तो लुक-न-फील में लेख संतुलित दीखता |
बाकी आपके लेख पर एक अच्छे कमेंट के संतुष्टि भी अपने आप में एक सुख्दानुभुती है | बोले सो निहाल , सत श्री अकाल |
Sat Siri Akaal ! Aapki baat par gaur avashya farmaya jaayega. I agree and was worried about it. I want uninterrupted text. Photos must not break the flow of reading. Slide show or gallery could be a great idea. let me try it next time. :D
प्रिय सुशान्त जी…..
बहुत ही उत्कृष्ट लेखन …हल्की-फुल्की हँसी की गुदगुदी के साथ-साथ लेख पढ़कर का मन प्रसन्न हो गया….| फोटो बहुत ही अच्छे आये पर यह फोटो छोटे कैसे लगा दिए आपने…..थोड़े बड़े होने चाहिये थे….|
मैंने तो पहले आपका लेख पढ़ा फिर उसके बाद ही आपके फोटोओ अवलोकन किया हैं…..| स्वर्ण मंदिर , जलियाँवाला बाग और वहाँ स्थिति के बारे काफी अच्छे से लिखा हैं…..| इससे कुछ समय पहले विशाल की पोस्ट में पढ़ चुका हूँ…..दुबारा पढ़कर अच्छा लगा और काफी कुछ अलग मिला….|
अगले लेख वाघा बार्डर का वर्णन और चित्रों की प्रतीक्षा में हैं ! किंचित् प्रतीक्षा कर रहे हैं…..|
रीतेश…..आगरा !
Thank you Ritesh ! Wagah border episode is reaching you soon.
सुशांत जी, बेहतरीन प्रस्तुति। आपने अपने भावों को अपने कैमरे और कलम दोनों के माध्यम से बखूबी पेश किया है। इस लेख ने ना सिर्फ हमें हमारी अमृतसर यात्रा की याद दिलाई बल्कि नरोत्तमदास जी द्वारा रचित मेरी एक पसंदीदा कविता भी कई वर्षों बाद स्मृतिपटल पर यकायक लौट आयी, आपका हार्दिक आभार।
जहाँ तक खाने की बात है, हमने अमृतसर की दूसरी यात्रा सिर्फ अमृतसर के मशहूर ‘केसर दा ढाबा’ (www.kesardadhaba.com)’ के लजीज़ खाने के लिए ही की थी, कभी इसे भी आज़माईयेगा।
थैंक यू विपिन ! अगली बार केसर दा ढाबा को भी अपने “चरणों की धूल” से पवित्र कर देंगे !
very good descriptive post with almost all the details beautifully knitted.photographs are real gem.