Site icon Ghumakkar – Inspiring travel experiences.

Dhuandhar Fall and Bhedaghat

जुलाई के इस महीने में अब जब गर्म हवाओं का रुख नर्म हो चला है, और बारिश की ठंढी फुआरों से तन-मन को थोड़ी राहत नसीब हुई है, तो आइए मैं आपको लेकर चलता हूँ एक ऐसे मुकाम की ओर जहां सब कुछ जलमग्न है, फिर चाहे वो धरा हो या फिर भिगने को बेकरार हमारा मन।

जबलपुर के मुख्य बस अड्डे से 25 रुपए में ऑटो की सवारी कर मैं भेड़ाघाट पहुँचा। सफ़र का रोमांच टूटी-फूटी सड़कों से कुछ कम जरुर हुआ था लेकिन मंजिल पर पहुँचने की ललक ने मेरी बेकरारी को कम नहीं होने दिया। जबलपुर से तकरीबन 20 किमी की दूरी पर स्थित है भेड़ाघाट। चौंसठ-योगिनी का मंदिर, धुआंधार जल-प्रपात और पंचवटी घाट पर नौका विहार मेरी सूची में शामिल थे।

अमरकंटक से निकलती नर्मदा नदी जब भेड़ाघाट तक आती है तो उसका यौवन अपने उफान पर होता है। हालांकि ना ही ये किसी किस्म के आक्रोश की गर्जन है और ना ही किसी दर्प का प्रर्दशन, लेकिन एक स्वाभाविक आवेग जब क्रीड़ा करने पर उतारु हो तो उसका प्रतिलक्षण शायद इतना ही विहंगम होगा। जी हां धुआंधार प्रपात को भारत के नियाग्रा प्रपात की संज्ञा दी जाती है और इसका अहसास इस जगह पर आकर ही किया जा सकता है। नर्मदा की लहरों का शोर, उस तेज बहाव के चट्टानों पर टकराने से उठती धुंध और उसकी वजह से बनता एक रहस्मयी आवरण, पल भर में ही आपको सम्मोहित कर देगा।



भेड़ाघाट पर रोपवे के द्वारा भी आप धुआंधार प्रपात का नज़ारा देख सकते हैं। रोपवे के दूसरी ओर के हिस्से को न्यू- भेड़ाघाट के नाम से जाना जाता है। यहां से धुआंधार प्रपात का बेहद करीबी दीदार संभव है। तट के इस छोर की उर्जा भी दूसरे छोर से जुदा है। लहरों के शोर में सुकून के चंद लम्हें तलाशते लोग या फिर अपनी भावनाओं के भंवर में डूबते-उबरते लोगों से इस अपेक्षाकृत शांत हिस्से की ओर मिला जा सकता है।

तट के दूसरी ओर आस्था और भवनाओं का सतत प्रवाह देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में नर्मदा नदी का विशेष महत्त्व है। जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा-यमुना नदियों की महिमा है, उसी प्रकार मध्य भारत में नर्मदा नदी जन-जन की आस्थासे जुड़ी हुई है। स्कंदपुराण के रेवाखंड में नर्मदा के माहात्म्य और इसके तटवर्ती तीर्थों का वर्णन है। नर्मदा के पत्थर के शिवलिंग नर्मदेश्वर के नाम से विख्यात हैं । शास्त्रों में नर्मदा में पाए जाने वाले नर्मदेश्वर को बाणलिंग भी कहा गया है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि नर्मदेश्वर को स्थापित करते समय इसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं पडती । नर्मदेश्वरड बाणलिंग को साक्षात् शिव माना जाता है । नर्मदेश्वर को बिना किसी अनुष्ठानके सीधे पूजागृहमें रखकर पूजन भी प्रारंभ किया जा सकता है ।

लहरों के इस अप्रतिम सौंदर्य और अकल्पनीय वेग को थामती हैं संगेमरमर की वो चट्टानें जिनका श्वेत वर्ण अब मटमैला हो चला है। हालांकि यदि शाम के वक्त आपने नर्मदा नदी में नौका विहार का मन बना रखा हो तो आपको इनका एक अलग ही रुप देखने को मिलेगा। शाम को सूरज की सुनहरी किरणों में कभी ये नीली, कभी गुलाबी तो कभी हरी प्रतीत होतीं है। नौका विहार में लगने वाले एक घंटे के अंतराल में भूलभुलैया, बंदर कूदनी जैसे दर्शनीय स्थल हैं। बंदर कूदनी के बारे में तो कहा जाता है कि बरसों पहले ये दोनों पहाड़ियां इतनी पास थीं कि एक ओर से दूसरी ओर बंदर कूद जाते थे पर बाद में पानी के कटाव ने इन दोनों पहाड़ियों में काफी फासला कर दिया। और इन सब के बीच नर्मदा की लहरों पर झिलमिलाते सूरज का अक्स मन को मोह लेता है।

नर्मदा नदी के किनारे मौजूद ये बच्चे आपसे नदी में पैसा फेंकने को कहेंगें और फिर ये उसे पानी में से ढ़ूढ लाते हैं

नर्मदा नदी में नौका विहार का एक मनोरंजक पहलू है वहां के नाविकों के द्वारा किया जाने वाला वर्णण। किस्तों में फिल्माने की वजह से पूरा विडियो तो नहीं दिखा पाऊँगा पर इसकी एक बानगी जरुर देखिए।

नर्मदा नदी के किनारे लगी नौकाओं में आम तौर पर 40 से 50 लोगों को बिठाया जाता है। लकड़ी से बनी इन पुरानी नावों की देख-रेख या यात्रियों की सुरक्षा का प्रशासन की ओर से कोई खास इंतजाम देखने को नहीं मिला। नदी की गहराई 100 फिट से भी ज्यादा है लेकिन प्रशासन की लापारवाही की वजह से श्रद्धालुओं के लिए खतरा हमेशा मंडराता रहता है।  नौका विहार से फारिग होने में इतना वक्त लग गया की चौंसठ-योगिनी मंदिर का दर्शन नहीं कर पाया। इसका मलाल तो जरुर था लेकिन जो पाया उसकी मिठास नि:संदेह खोने पर हावी थी।

और चलते-चलते आपको छोड़े जा रहा हूँ नर्मदा नदी की लहरों के संग…

 

Dhuandhar Fall and Bhedaghat was last modified: October 3rd, 2024 by Amit Kumar
Exit mobile version