Devbhoomi Uttarakhand ….3

Devbhoomi Uttarakhand Yatra …3    : Badrinath

 

26 अक्टूबर 2010 चायवाले के पास चाय पीते समय एक युवक आया और अपनी बस छूट जाने की बात बताते हुये रामपुर तक साथ ले चलने के लिये पूछा। वह वहाँ बैंक में कार्यरत था। शीघ्र ही हम दोनों रवाना हुये। रस्ते में उसने बताया कि पूजा करवाने वाले उसके मामाजी हैं | सन्यासियों के प्रति उसकी अभिभूत भावना के प्रति अपने विचार व्यक्त किये कि उसका अभी गृहस्थ आश्रम है, बच्चों की परवरिश कर, समाज में स्थापित करने तक तो उसे इस तरफ समय देना तो दूर, सोचना ही नहीं चाहिये। रामपुर में उसे उतारते हुये उखीमठ चोपटा, चमोली, पीपलकोटी होते हुये जोशीमठ पहूँचते अन्धेरा हो गया। जोशीमठ में बद्रीनाथ के लिये समयानुसार ट्रेफिक के लिये बैरियर है जो उस दिन कि लिये बन्द हो चुका था। परंतु मेरी जानकारी में नहीं होने से बैरियर में अल्टो जितनी जगह पाकर मैं आगे निकल गया। सड़क पर गाड़ीयों का आवागमन नहीं देख रुककर पास दुकान में किसी से बात की तो उसने आश्चर्य से पूछा कि आप इस वक्त आ कैसे गये ? संकड़ी सड़क पर कार घुमाने की बजाय वहीं जगह देखकर पार्क की और पैदल ही वापिस जा रेस्टोरेण्ट में चाय पीते व मेडिकल स्टोर से बी.पी.की दवाई लेते जानकारी मिली कि सुबह सात बजे बैरियर खुल जायेगा। पास करीबन 30-40 फिट नीचे मन्दिर से आरती की आवाज आ रही थी। आखिरी दर्शन के लिये पट खुले थे। ऑफ सीजन के कारण दर्शनार्थी कम ही थे।

27 अक्टूबर 2010 की सुबह मैं जोशीमठ से रवाना हुआ। गोविन्दघाट के पास एक और बैरियर मिला। जानकारी न होने से मैं लाईन मे खड़े 6-7 वाहनों से आगे तक चला गया, बैक लौटाने के प्रयास मे देखा कि अब संख्या 15-16 तक हो गई है। वहीं बसों के बीच कार को ‘एडजस्ट’ किया। ठण्डी सुबह का समय। दुकानों पर चाय व गर्म पकौड़ीयों के लिये गहमागहमी थी। भू-स्खलन के कारण कई जगह रेंगते हुये चलना पड़ा। सड़क दुरुस्त होने का कार्य तीव्र गति से चल रहा था। बद्रीनाथ दोपहर को पहूँचा। मुख्य सड़क से मन्दिर व माना, तिराहे पर स्थित गढवाल मण्डल के विश्रामस्थल से किसी सभ्रांत परिवार को रवाना होते देख वहाँ एक कमरा ले स्नानादि से निवृत हो टहलते हुये मन्दिर की ओर चला। नर और नारायण दोनों पर्वतों की चोटियाँ शुभ्र बर्फ से ढक़ीं, सूर्य-प्रकाश से चमक रहीं थीं। मुझे श्री खुशवंतसिंह के लेख में वर्णित घटना याद आई जिसमें उन्होंने जिक्र किया था कि किस प्रकार वहां होटल में रुके हुये उनकी आँख अकस्मात अलसुबह खुल गई और खिड़की का पर्दा हटाने पर उन्हें पहाड़ों पर नर और नारायण की विशाल आकृतियाँ दिखाई दीं, जो देखते देखते विलीन हो गईं। वे लिखते हैं कि उनकी इन देवताओं के प्रति कोई आस्था नहीं है परंतु उन्होंने उनके साथ घटी यह घटना विवश करती है मानने को कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति तो अवश्य है। अलकनन्दा के किनारे स्थित बद्रीनाथ मन्दिर के लिये पैदल पुल से जाना पड़ता है। मन्दिर के बगल में तप्त कुण्ड से भाप छोडता गर्म पानी अलकनन्दा में गिर रहा था। मन सुबह दर्शन करने का था परंतु पुल पार करते ही दुकानदार ने प्रसाद की थाली आगे कर दी तो वहाँ चप्पल खोल थाली ले मन्दिर में प्रसाद चढा दर्शन कर लिये। मन्दिर के चारों ओर विशाल आहाते का फर्श सुन्दर तरीके से लकड़ी का बना हुआ है। लौटकर रेस्टोरेण्ट में चाय लेते वक्त यू.पी.से आये एक दम्पति से बाते होने लगी। पुरुष कई सालों से आ रहे हैं, इस बार पत्नि के साथ आये हैं, यहाँ कम से कम चार-पाँच दिन तो रुकेंगें। उनका कहना था कि अगला दिन वृहष्पतिवार है जो कि विष्णु भगवान का होने के कारण बद्रीनाथ दर्शन के लिये अहम् वार है।

 

28 अक्टूबर 2010 को सुबह जल्दी उठ मन्दिर के पास स्थित तप्त कुण्ड में स्नान व निकटस्थ नारदकुण्ड आदि पर नमन-अर्चना कर तैयार होने में करीबन एक घण्टा लग गया होगा। कुण्ड में कपड़े भिगोना-निचोड़ना, कुल्ले करना, साबुन लगाना सर्वथा वर्जित है। पानी इतना गर्म कि इसमें एकसाथ पूरा उतर नहीं सकते और पन्द्रह-बीस मिनट बाद तो एकबार बाहर आना ही पड़ता है। देव-दर्शन के लिये कोई दर्शनार्थी विशिष्ट परिवार आया हुआ था। सभी प्रमुख पण्डित पुजारी उपस्थित थे। विधिवत व्याख्या सहित आरती व दर्शन मिला। प्रदक्षिणा कर आहाते में ध्यानावस्थित कुछ समय उपरांत प्रसाद लेने की आवाज व गहमागहमी सुनाई दी। मन्दिर की तरफ से चावल, दाल, खिचड़ी का भोग-प्रसाद था। दुकान से खाली पत्तल खरीद भीड़ का हिस्सा बन प्रसाद लिया। आम दर्शनार्थी प्रसाद को देवकृपा स्वरूप आशीर्वाद मानते हैं और इसे प्राप्त करने-देने में अमीरी-गरीबी आदि का कोई भेद-भाव नही होता है। मन्दिर से लौटते रास्ते होटल में थाली सिस्टम से खाना लिया। खाना बहुत अच्छा था परंतु खिचड़ी प्रसाद खाये हुये होने के कारण, पूरा नहीं खा पाया। टी.सिरीज दुकान से महामृत्युंजय की ऑडियो सी.डी. खरीदी जो वापिसी यात्रा मे बहुत उपयोगी रही। बॉर्डर के आखिरी गाँव माना से कुछ दूर आगे गणेश मन्दिर तक गया उससे आगे व्यास गुफा, भीमपुल आदि तक पैदल ऊपर चढने में कठिनाई महसूस कर तथा वापिस जयपुर 30 तारीख तक पहूँचना निश्चित किये होने के कारण, नहीं गया। मेरी सबसे छोटी चौथी पुत्री, सुनीता जो कि हैदराबाद रहती है, जयपुर आई हुई थी और उसके श्वसुर श्रीकैलाशजी ने 30 तारीख को अपने साथ ले जाने के लिये प्रोग्राम निश्चित किया था और सुनीता फोन पर मुझसे बातें करते वक्त काफी भावुक हो गई थी इसकारण ऋषिकेश स्थित शिवानन्द आश्रम में कुछ समय बिताने, बाबा रामदेव आश्रम अवलोकन आदि प्रोग्रामों को स्थगित कर शीघ्रताशीघ्र जयपुर लौटना निश्चित होने से रास्ते में अवलोकनार्थ जगहों को भी नजरान्दाज करते हुये यात्रा करनी थी। बद्रीनाथ में साढे ग्यारह बजे बैरियर खुलने के इंतजार में दो घण्टे लाइन में लगे रहना पड़ा। रुद्रप्रयाग में रात्री विश्राम लेने का विचार किया था परंतु इच्छित धर्मशाला जाने का रास्ता निकल जाने से किसी दुकान पर सुझाव मिला कि मैं समय रहते श्रीनगर पहुँच सकता हूं और मुझे वहाँ रात्री विश्राम लेना चाहिये।

 

Contd….

4 Comments

  • Sandeep says:

    बहुत अच्छा रहा, यात्रा का वर्णन। ऐसी यात्रा अकेले करना भी कुछ कम नहीं है। शिवान्नद आश्रम फ़िर कभी हो जायेगा।

  • vinaymusafir says:

    बहुत ही सुनदरता से लिखा गया लेख है. यात्रा वर्णन उम्दा है. काफी पसंद आया.

  • maheh semwal says:

    very informative post for follow Ghumakkars.

  • Nandan says:

    With so much detail, I wonder how you remember all this. Being all by yourself all through is simply inspiring.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *