दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚,
इस शà¥à¤°à¤‚खला की पिछली पोसà¥à¤Ÿ में मैनें आप लोगों को यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² के बारे में जानकारी दी थी जो सà¤à¥€ को पसंद आई. पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा, पà¥à¤°à¥‡à¤® तथा पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ से ओतपà¥à¤°à¥‹à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं के लिठआप सà¤à¥€ का हारà¥à¤¦à¤¿à¤• धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦. चलिठआज चलते हैं मनाली की सैर पर…..
दिनांक 19.05.2014 को सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे के लगà¤à¤— हमने यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² के कैंप मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तथा अपने टैंट में जाकर लेट गà¤, सà¥à¤¬à¤¹ सात बजे कैंप में लाउड सà¥à¤ªà¥€à¤•र पर बज रहे सà¥à¤®à¤§à¥‚र à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से नींद खà¥à¤²à¥€ तथा कà¥à¤› ही देर में पहले चाय तथा बाद में नाशà¥à¤¤à¥‡ का अनाउंसमेंट हà¥à¤†, हम चारों चाय नहीं लेते हैं अत: कà¥à¤› देर और बिसà¥à¤¤à¤° में पड़े रहे लेकिन नाशà¥à¤¤à¥‡ के लिठतो उठना ही था सो बैग में से सà¤à¥€ के टà¥à¤¥à¤¬à¥à¤°à¤¶ तथा अनà¥à¤¯ समान निकाला और वाश रà¥à¤® की ओर रà¥à¤– किया और फ़à¥à¤°à¥‡à¤¶ वगैरह होकर फ़ूड ज़ोन की ओर चल पड़े, नाशà¥à¤¤à¥‡ में मेरे पसंदीदा पोहे और मीठी सिवईयां थीं जो की बहà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ थीं, जैसे की मैने पहले à¤à¥€ बताया की यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² में हमने सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अगर किसी चीज को इनà¥à¤œà¤¾à¤¯ किया वो था वहां का नाशà¥à¤¤à¤¾ और खाना.
कविता का सोमवार का उपवास था सो हम लोगों ने शिमला से ही केले ले लिठथे, लेकिन वो अब तक काले पड़ चà¥à¤•े थे और यहां आस पास फ़लाहार के लिठऔर कà¥à¤› उपलबà¥à¤§ नहीं था अत: हम तीनों ने ही नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और वापस अपने टैंट में आकर लेट गठऔर आगे की पà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¿à¤‚ग करने लगे.

खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत वादियां…मनाली
आज यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² में हमारा पहला दिन था और यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² के पà¥à¤²à¤¾à¤¨ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• पहले दिन कहीं घà¥à¤®à¤¨à¥‡ जाने की सलाह नहीं दी जाती कà¥à¤¯à¥‹à¤‚की हमारे शरीर को नठवातावरण में ढलने के लिठà¤à¥€ कà¥à¤› समय देना होता है. पहले दिन यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² की ओर से ही आसपास के किसी गांव में टà¥à¤°à¥ˆà¤•िंग के लिठले जाया जाता है और उसके बाद टैंट में आराम करने की सलाह दी जाती है. कैंप के सारे लोगों ने यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² के इस नियम का पालन किया लेकिन हमारे पास समय कम होने तथा जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जगहें देखने की खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶ की वजह से हमने निरà¥à¤£à¤¯ लिया की यà¥à¤¥ होसà¥à¤Ÿà¤² की टà¥à¤°à¥ˆà¤•िंग में हिसà¥à¤¸à¤¾ लेने और फिर टैंट में आराम करने के बजाय आज के दिन का उपयोग किया जाठऔर दोपहर का खाना खाने के बाद मनाली घà¥à¤® लिया जाà¤. बाकी के दिनों के लिठपà¥à¤²à¤¾à¤¨ कà¥à¤› इस तरह था, दिनांक 20 को मणिकरà¥à¤£, 21 को रोहतांग, 22 को बिजली महादेव और 23 की सà¥à¤¬à¤¹ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨.
दोपहर करीब 12 बजे लंच की घोषणा हà¥à¤ˆ, हम तो बस इसी की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे थे जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ अपने खाने के बरà¥à¤¤à¤¨ जैसे थाली, कटोरी, गिलास, चमà¥à¤®à¤š आदी निकाले और à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¸à¥à¤¥à¤² पर पहà¥à¤‚चे. खाने में दाल, चावल, रोटी, दो सबà¥à¤œà¥€, खीर, पापड़ और सलाद था, हम सबने लाईन में लगकर अपनी अपनी थालियां फ़à¥à¤² कर लीं. कविता का उपवास होने से वो यह सब नहीं खा सकती थी अत: मैनें उनकी थाली में सलाद जैसे ककड़ी, गाजर जो à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ था लाकर दे दिया. इस तरह से आज कैंप में हमारा पहला à¤à¥‹à¤œà¤¨ हà¥à¤† जो की बहà¥à¤¤ ही मजेदार था. जैसे जैसे दिन बढता जा रहा था, कैंप में नठनठपरिवार जà¥à¥œà¤¤à¥‡ जा रहे थे.
लंच लेने के बाद करीब à¤à¤• बजे हम लोग मनाली के लिठतैयार होकर कैंप से निकले. कैंप से मनाली की दà¥à¤°à¥€ करीब 15 किलोमीटर थी और कैंप कà¥à¤²à¥à¤²à¥ मनाली हाईवे के à¤à¤•दम किनारे पर था, और हर दस मिनट में यहां से मनाली के लिठबस उपलबà¥à¤§ है. हमलोग कà¥à¤› ही मिनटों में रोड़ के साईड में आकर बस के लिठखड़े हो गà¤. कà¥à¤› ही देर में बस आ गई और हम उसमें सवार होकर मनाली के लिठनिकल पड़े.
मनाली के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठमन अति उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ था, मौसम सà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¤¾ था और रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ बड़ा खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत था. बस की खिड़की से हम हिमाचल की खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत वादियों तथा बेपनाह पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सौंदरà¥à¤¯ का रसासà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ कर रहे थे. पà¥à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ सड़क बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के समानांतर चल रही थी, नदी का à¤à¤•दम सà¥à¤µà¤šà¥à¤› पानी और तेज पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ देखने लायक था, सच कहà¥à¤‚ तो मैनें इससे पहले किसी नदी का पानी इतना निरà¥à¤®à¤² और साफ़ नहीं देखा था.

सड़क के समानांतर बहती बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी
जैसे ही बस मनाली के सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड पर रà¥à¤•ी और हम निचे उतरे, कई सारे औटो वाले पिछे लग गà¤. à¤à¤• औटो वाले से बात हà¥à¤ˆ तो उसने मनाली के सà¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¥à¤£ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ करवाने के 400 रà¥. मांगे, आखिर मोल à¤à¤¾à¤µ के बाद 350 रà¥. में बात पकà¥à¤•ी हो गई और हमारा मनाली दरà¥à¤¶à¤¨ का सफ़र शà¥à¤°à¥‚ हो गया.
सबसे पहले औटो वाला हमें लेकर गया हिडिमà¥à¤¬à¤¾ मंदिर. यह मंदिर पांच पांडवों में से à¤à¤• à¤à¥€à¤® की पतà¥à¤¨à¥€ हिडिमà¥à¤¬à¤¾ देवी को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ à¤à¤• सà¥à¤‚दर मंदिर है जो देवदार के लंबे घने वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ से के मधà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर हिडिमà¥à¤¬à¤¾ अपने à¤à¤¾à¤ˆ हिडिमà¥à¤¬ दैतà¥à¤¯ के साथ रहती थी जो की बहà¥à¤¤ बलशाली था और उसने हिडिमà¥à¤¬à¤¾ ने यह पà¥à¤°à¤£ लिया था की वह उसी से विवाह करेगी जो उसके à¤à¤¾à¤ˆ को यà¥à¤¦à¥à¤§ में हरा देगा. पांचों पांडव अपने वनवास के दौरान इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आठतो हिडिमà¥à¤¬ और à¤à¥€à¤® में लड़ाई हà¥à¤ˆ जिसमें हिडिमà¥à¤¬ मारा गया. हिडिमà¥à¤¬à¤¾ ने अपने पà¥à¤°à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¥€à¤® से शादी कर ली और घटोतà¥à¤•च नाम के पà¥à¤¤à¥à¤° को जनà¥à¤® दिया.
मंदिर में उतà¥à¤•िरà¥à¤£ à¤à¤• अà¤à¤¿à¤²à¥‡à¤– के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इस मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सन 1553 में राजा बहादà¥à¤° सिंघ ने करवाया था. पगौड़ा शैली में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ यह मंदिर लकड़ी तथा पतà¥à¤¥à¤° से बना है जिसके गरà¥à¤à¤—ृह में हिडिमà¥à¤¬à¤¾ देवी की कांसे की मà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. कà¥à¤²à¥à¤²à¥ मनाली में माता हिडिमà¥à¤¬à¤¾ को देवी दà¥à¤°à¥à¤—ा तथा काली का अवतार माना जाता है. मंदिर के अंदर माता की चरण पादà¥à¤•ाà¤à¤‚ à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं जिनकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पूजा होती है. मंदिर से थोड़ी ही दà¥à¤°à¥€ पर वह वृकà¥à¤· à¤à¥€ है जिसके निचे घटोतà¥à¤•च तपसà¥à¤¯à¤¾ करता था और पशà¥à¤“ं की बलि देता था.
पà¥à¤°à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में किसी राकà¥à¤·à¤¸à¥€ का यह à¤à¤•मातà¥à¤° मंदिर है. हिडिमà¥à¤¬à¤¾ जनà¥à¤® से राकà¥à¤·à¤¸à¥€ थी लेकिन तप तà¥à¤¯à¤¾à¤— और करà¥à¤® तथा धरà¥à¤® से देवी मानी गई हैं.
जब हम मंदिर पहà¥à¤‚चे तो वहां लाईन लगी हà¥à¤ˆ थी, सो हम à¤à¥€ लाईन में लग गà¤. कà¥à¤› ही देर में मौसम बदलने लगा और आसमान जो कà¥à¤› देर पहले साफ़ था बारिश के आगमन के संकेत दे रहा था, कà¥à¤› ही देर में बादल छाने लगे और हलà¥à¤•ी हलà¥à¤•ी फ़à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ शà¥à¤°à¥ हो गईं, कà¥à¤› मिनटों की आंख मिचौली के बाद अब आसमान फ़िर से साफ़ हो गया.

हिडिमà¥à¤¬à¤¾ मंदिर
मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हम कà¥à¤› दà¥à¤° खड़े अपने औटो रिकà¥à¤¶à¤¾Â की ओर चल दिà¤. औटो के पास ही à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯Â महिला हिमाचली पारंपरिक डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥‡à¤¸ 50 र. पà¥à¤°à¤¤à¤¿ डà¥à¤°à¥‡à¤¸ फोटो खिंचवाने के लिठकिराठपर दे रही थी. हम तो à¤à¤¸à¥‡ मौकों की तलाश में ही रहते हैं, सो हम चारों ने वहां से डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥‡à¤¸ किराठपर लेकर खà¥à¤¬ सारे फ़ोटो खिंचे और खिंचवाà¤. उस महिला के पास à¤à¤• अंगोरा पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¥€ का बड़ा सा खरगोश à¤à¥€ था, शिवम तथा संसà¥à¤•ृती ने खरगोश के साथ à¤à¥€ फोटो निकलवाà¤.

इनà¥à¤¦à¥Œà¤°à¥€ जोड़ा हिमाचल में

बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सà¥à¤¬à¤¹à¤¾à¤¨ अलà¥à¤²à¤¾à¤¹…

खरगोश के साथ…
अब हम अपने आटो में सवार होकर अगले आकरà¥à¤·à¤£ मनॠमंदिर की ओर बढे. हिडिमà¥à¤¬à¤¾ मंदिर से कà¥à¤› तीन किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनॠमंदिर संपà¥à¤°à¥à¤£ मानव जाती के निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ महरà¥à¤·à¤¿ मनॠको समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है तथा लकड़ी से बना है, इस मंदिर की दीवारों पर की गई लकड़ी की शानदार तथा सà¥à¤•à¥à¤·à¥à¤® नकà¥à¤•ाशी देखने लायक है.समà¥à¤à¤µà¤¤: यह मंदिर महरà¥à¤·à¤¿ मनॠका à¤à¤•मातà¥à¤° मंदिर है. यहां जब हम मंदिर से दरà¥à¤¶à¤¨ करके बाहर निकले तो देखा की बादलों की आवाजाही फ़िर शà¥à¤°à¥ हो गई थी. चारों ओर के पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक दà¥à¤°à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को देख कर लग रहा था जैसे हम किसी और ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में आ गठहों, छाया में खड़े रहो तो ठंड लगने लगती धà¥à¤ª में जाओ तो धूप चà¥à¤à¤¨à¥‡ लगती बड़ा अजीब सा मौसम था.

उमड़ते घà¥à¤®à¥œà¤¤à¥‡ मेघ और बरà¥à¥ž से अटे परà¥à¤µà¤¤ शिखर

मनॠमंदिर..
कà¥à¤› देर मनॠमंदिर में बिताने के बाद अब हम औटो में बैठकर अपने अगले आकरà¥à¤·à¤£ वशिषà¥à¤ मंदिर की ओर चल दिà¤. कà¥à¤› देर चलने के बाद सामने देखने पर पता चला की रासà¥à¤¤à¥‡ में जबरà¥à¤¦à¤¸à¥à¤¤ जाम लगा हà¥à¤† है, रासà¥à¤¤à¤¾ खड़ी चढाई वाला था. औटो वाले ने हमसे कहा की यहां हमेशा इसी तरह जाम लगता रहता है और अब जाम खà¥à¤²à¤¨à¥‡ में समय à¤à¥€ लगेगा, आप लोग पैदल ही चले जाओ यहां से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दà¥à¤° नहीं है, मैं यहीं आप लोगों का इंतज़ार करà¥à¤‚गा. हमारे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा à¤à¥€ नहीं था अतः हम जरà¥à¤°à¥€ समान लेकर पैदल ही चल दिà¤. औटो वाले ने जैसा बताया था उतना आसान नहीं था रासà¥à¤¤à¤¾ और दà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ काफ़ी थी, हम लोग चलते ही जा रहे थे लेकिन मंदिर अà¤à¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ दà¥à¤° था, हम लोग बहà¥à¤¤ थक गठथे खासकर बचà¥à¤šà¥‡. हम लोग औटो वाले को कोस ही रहे थे की हमें पिछे से वह औटो लेकर हमारी ओर आता दिखाई दे गया, उसे देखकर हमें असीम खà¥à¤¶à¥€ मिली. उसने हमें औटो में बैठाया और मंदिर की ओर चल दिया, कà¥à¤› ही देर में हम मंदिर पहà¥à¤‚च गà¤. मंदिर और वहां का माहौल इतना अचà¥à¤›à¤¾ था की हम अपनी सारी थकान à¤à¥à¤² गठऔर मंदिर की लाईन में लग गà¤.

पà¥à¤°à¤•ृति के खेल
वशिषà¥à¤ à¤à¤• छोटा सा गांव है जो मनाली से करीब पांच किलोमीटर दà¥à¤° रोहतांग के रासà¥à¤¤à¥‡ पर बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के दाà¤à¤‚ किनारे पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जो अपने मंदिरों तथा गरà¥à¤® पानी के सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ है. यहां पर दो पà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¿à¤¨ मंदिर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से बने मंदिरों का यह जोड़ा à¤à¤• दूसरे के विपरीत दिशा में है. à¤à¤• मंदिर à¤à¤—वान राम को और दूसरा संत वशिषà¥à¤ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है. यहां पर सलà¥à¥žà¤° यà¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गरà¥à¤® पानी के सोते हैं जिनका पानी दो अलग अलग कà¥à¤‚डों में à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया जाता है जहां पर शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं. à¤à¤• कà¥à¤‚ड पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ तथा à¤à¤• सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है. दोनों कà¥à¤‚ड हमेशा शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं से à¤à¤°à¥‡ रहते हैं.

वशिषà¥à¤ मंदिर

राम मंदिर…
मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हम गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤‚डों की ओर बढे जो यहां का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ हैं. निजता को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ तथा पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के कà¥à¤‚ड अलग अलग बनाठगठहैं. यहां पर हमारे परिवार के à¤à¥€ दो हिसà¥à¤¸à¥‡ हो गà¤. हम दो पà¥à¤°à¥à¤· (शिवम तथा मैं) पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के कà¥à¤‚ड की ओर मà¥à¥œ गठऔर दो महिलाà¤à¤‚ (कविता तथा संसà¥à¤•ृति) महिलाओं के कà¥à¤‚ड की ओर. वैसे हमारा नहाने का कोई इरादा नहीं था और न ही हम नहाने की तैयारी से आठथे, हमें तो बस पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गरà¥à¤® पानी के कà¥à¤‚ड देखने थे. थोड़ी ही देर में मैं और शिवम कà¥à¤‚ड तक पहà¥à¤‚च गà¤.
कà¥à¤‚ड से गरà¥à¤® पानी की à¤à¤¾à¤ª उठरही थी और आठदस लोग मजे से नहा रहे थे. जीवन में पहली बार पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गरà¥à¤® पानी देखा था, कà¥à¤¦à¤°à¤¤ के इस करिशà¥à¤®à¥‡ को देखकर मैं आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•ित हो गया. बाहर का ठंडा वातावरण और यहां गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® पानी, ये सब देखकर शिवम का बाल मन इस गरà¥à¤® पानी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने को मचल उठा और वो नहाने की जिद करने लगा. मचल तो मैं à¤à¥€ रहा था यहां नहाने के लिठलेकिन हम अंडरगारमेंटà¥à¤¸ तथा टोवेल लेकर नहीं आठथे अत: मैं दà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ में था, मेरी दà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ को à¤à¤¾à¤‚पते हà¥à¤ à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ ने कहा à¤à¤¾à¤ˆ साहब बचà¥à¤šà¤¾ जिद कर रहा है तो नहला दिजिठऔर आप à¤à¥€ नहा लिजिà¤, टोवेल मेरा ले लेना और अंडर वियर को निचोड़ कर पहन लेना थोड़ी देर में सà¥à¤– ही जाà¤à¤—ी. मैने उस परोपकारी आतà¥à¤®à¤¾ के पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ को हाथों हाथ लिया और मेरे तथा शिवम के कपड़े उतारे और à¤à¥‹à¤²à¥‡ का नाम लेकर कà¥à¤‚ड में उतर ही गà¤.
à¤à¤• बार जो उतरे तो अब बाहर निकलने को मन ही नहीं कर रहा था, आखिर जी à¤à¤°à¤•र नहाने के बाद ही बाहर निकले, कपड़े वगैरह पहनकर बाहर आठतो देखा की कविता और संसà¥à¤•ृति हमारा इंतज़ार ही कर रहे थे. बाहर आकर à¤à¤—वान राम के मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤. मंदिर परिसर सचमà¥à¤š बहà¥à¤¤ आनंद दायक था. मनाली शहर की साईट सीईंग में मà¥à¤à¥‡ यह जगह सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पसंद आई. खैर इस सà¥à¤‚दर जगह का आनंद उठाने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गठजहां औटो वाला हमारा बेसबà¥à¤°à¥€ से इंतज़ार कर रहा था. अब हम वापस मनाली शहर चल दिà¤. वापसी में उस रासà¥à¤¤à¥‡ पर जाम नहीं था सो जलà¥à¤¦à¥€ ही मनाली पहà¥à¤‚च गà¤.

बà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नदी के किनारे
मनाली दरà¥à¤¶à¤¨ की इस कड़ी में हमारा अगला पड़ाव था वन विहार तथा बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर/ बौदà¥à¤§ मठ(बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ मोनेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€). ये दोनों जगहें मनाली के मà¥à¤–à¥à¤¯ बाज़ार में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं. औटो वाले ने हमें वन विहार छोड़ दिया तथा सामने की ओर इशारा करके बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर की लोकेशन बता दी और हमसे इजाजत चाही. हमने उसका हिसाब किया और धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ के साथ उसे अलविदा किया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसने हमें कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था और हम उसकी सेवा से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ थे.
वन विहार के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर जाकर पता चला की यहां पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ शà¥à¤²à¥à¤• देना होता है जो की शायद ३० या चालीस रà¥à¤ªà¤ था. मैनें सà¤à¥€ के लिठटिकट लिठऔर अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया. यह à¤à¤• बाल उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ है जहां बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के मनोरंजन के लिठà¤à¥à¤²à¥‡ वगैरह हैं और अंदर की ओर à¤à¤• सà¥à¤‚दर सी à¤à¥€à¤² बनाई गई है जिसमें बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिठबोटें चल रहीं थीं. हमारे मतलब का यहां कà¥à¤› खास नहीं था अत: कà¥à¤› फोटो वगैरह लेकर हम बाहर निकल आà¤.

वन विहार में बोटिंग

वन विहार..

वन विहार..
सामने ही मनाली का माल रोड़ था जहां की रौनक और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों की à¤à¥€à¥œ देखते ही बनती थी. कà¥à¤› दà¥à¤ पैदल चलने के बाद अब हम बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर थे. मनाली का बौदà¥à¤§ मठबहà¥à¤¤ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं. कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ घाटी के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• बौदà¥à¤§ शरणारà¥à¤¥à¥€ यहां बसे हà¥à¤ हैं. 1969 में इस मठको तिबà¥à¤¬à¤¤à¥€ शरणारà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने बनवाया था. मंदिर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के करीब ही à¤à¤• चीनी वà¥à¤¯à¤‚जन का ठेला लगा था जहां मोमोज़, नूडलà¥à¤¸ और मंचà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¨ आदि थे, शिवम ने वहां नूडलà¥à¤¸ खाने की जिद की, दोनों बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को नूडलà¥à¤¸ खिलाकर हमने मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया.
बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर बाहर तथा अंदर दोनो ओर से बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤‚दर था. चटख रंगों से सराबोर मंदिर की दिवारें बरबस ही परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती हैं. मंदिर के अंदर à¤à¤—वान बà¥à¤¦à¥à¤§ की à¤à¤• विशाल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है तथा मंदिर दो मंज़िलों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ है. पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ इतनी विशाल है की मà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ के धड़ तक के हिसà¥à¤¸à¥‡ के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥à¤¤à¤² से तथा मà¥à¤–मंडल के दरà¥à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤¥à¤® तल से किठजाते हैं. मंदिर दरà¥à¤¶à¤¨ तथा अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ शगल छायाचितà¥à¤°à¤•ारी के बाद अब हम बाहर आ गà¤.

बौदà¥à¤§ मठमनाली..

बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾

बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर..

बà¥à¤¦à¥à¤§ मंदिर से बाहर दिखाई देती वादियां…

माल रोड़ पर à¤à¤• शौप

माल रोड़ पर à¤à¤• शौप

मनाली मà¥à¤–à¥à¤¯ बाज़ार..

पेट पालने की जà¥à¤—ाड़…रसà¥à¤¸à¥€ पर चलने को मजबà¥à¤° मासà¥à¤® जिंदगी…
मà¥à¤à¥‡ अपनी वापसी यातà¥à¤°à¤¾ के लिठमनाली से चंडीगढ की बस के टिकट à¤à¥€ बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से आज ही बà¥à¤• करवाने थे और हमें अपने कैंप तक लौटने के लिठबस à¤à¥€ वहीं से लेनी थी सो हम बस अडà¥à¤¡à¥‡ की ओर चल दिà¤. मैने 23 तारिख के लिठचंडीगढ की बस के टिकट बà¥à¤• करवाठतथा हमें वहीं पास में ही कà¥à¤²à¥à¤²à¥ जाने वाली बस à¤à¥€ मिल गई जिससे हमें अपने कैंप तक जाना था. इस समय शाम के पौने सात बज चà¥à¤•े थे और कैंप में वापसी का समय शाम सात बजे का होता है, अब हमें लग रहा था की जलà¥à¤¦à¥€ कैंप पहà¥à¤‚चना चाहिà¤. कविता का उपवास था और उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ सà¥à¤¬à¤¹ से सलाद के अलावा कà¥à¤› खाया à¤à¥€ नहीं था. कैमà¥à¤ª में शाम का खाना à¤à¥€ सात बजे तक लग जाता था सो अब कैमà¥à¤ª पहà¥à¤‚चने की जलà¥à¤¦à¥€ हो रही थी. बस पà¥à¤°à¥€ à¤à¤° जाने के बाद सात बजे मनाली से निकली और 7.30 पर उसने हमें कैंप के गेट पर छोड़ा………….
आज की अपनी इस कहानी को यहीं विराम देता हà¥à¤‚, जलà¥à¤¦ ही अगली पोसà¥à¤Ÿ के साथ मिलने के वादे के साथ…..
नमस्कार मुकेश जी!
श्रृंखला के सभी पूर्व लेखों की भांति यह लिख भी अत्यंत रोचक व मनोरंजक है. अपने लेख में आपने मनाली के मनोहारी दृश्यों एवं मंदिरों के उल्लेख से एक विशेष स्वरुप प्रदान कर दिया. यात्रा-वर्णन में प्रयुक्त सभी चित्र आकर्षक हैं.
यात्रा-वर्णन साँझा करने के लिए धन्यवाद, आगामी यात्रा-वर्णन की प्रतीक्षा रहेगी …
मुनेश जी,
टीप्पणीयों का श्रीगणेश आपके कर कमलों से……श्रेष्ट प्रारंभ. इन सुंदर शब्दों के लिये हार्दिक धन्यवाद.
Dear Mukesh,
A well narrated log on Manali. It took me 10 years back, when there were no digital cameras, even I didn’t have other one too, the only source of getting photos for your memories were the professional photographers who used to take photos and later supply them at the hotel room. The urbanization of Manali town looks congested it. Hope to do the virtual touring with you in your next post too.
Thanks for sharing.
Hi Anupam,
I always wait for your comments. It seems your comments comes directly from heart. Yes I do agree that the fast growing urbanization and commercialization turned Manali in a common congested city, but as you come out of the city you can have glimpses of beautiful mother nature and snow capped virgin Himalayas.
वाह मुकेश जी , आपने एक बार फिर से मनाली का भ्रमण करवा दिया। आपके साथ -साथ हमने भी हिडिम्बा मंदिर , मनु मंदिर, वशिष्ठ मंदिर ,राम मंदिर, बौद्धमठ आदि स्थानों के दर्शन कर लिए। लेकिन मनाली की सबसे सुन्दर कोई बात है तो वो यहाँ का प्राकतिक सौंदर्य और सुहावना मौसम।
सुन्दर चित्र व पोस्ट साँझा करने के लिए धन्यवाद।
नरेश जी,
इन रस मिश्रित शब्दों के लिये हार्दिक धन्यवाद. बिल्कुल सही कहा आपने, यहां का मधुरम मौसम और नैसर्गिक खुबसूरती ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है, बाकी चीजें तो बोनस हैं.
very interesting log Mukesbhai. Now once you have seen Himalayas, you will want to come again and again… this is speciality of Himalayas. Photos have done justice with the story
Thank you very much S.S. Sir. You are absolutely right, after coming from Himachal till 10-15 days my soul was hovering over those beautiful hills and every time I used to think about those spectacular magical views. Still I dream to be there as soon as possible.
Thanks for your encouraging comment.
Beautiful defining visit in details with nice clicks.
Thanks Dr. Gandhi for your valuable comment.
I completely enjoyed your post as well as my lunch today…….thanks for sharing
Arun
Thanks Arun for leaving this sweet comment here. Lunch with ghumakkar…Great idea I’ll also try it someday.
Mukesh Bhai!
You are a superb-n-brilliant writer and observer. May I request you to publish your Book! I am sure, that will win some most prestigious awards! Thanks a lot for acquainting us so much about the places with novelty, you visited so far in you debut hill travel. In fact these are the most frequently visited by all travelers but non I feel have experienced it better than what, while reading you opinion. “Himachal Ki Beshkimti Heera”!!! is, I understand the best sobriquets, ever for Manali!.
Keep traveling
Ajay
Ajay ji,
Its your greatness and my fortune that you glorified me with such huge words, otherwise I don’t deserve even a tuppence of it. Thanks for liking the title of the post.
प्रिय मुकेश जी,
अभी तक मैने मनाली के जितने भी यात्रा संस्मरण पढ़े हैं, उनको पढ़ कर भी मुझे यह समझ नहीं आया कि मनाली जायें तो कहां – कहां और कैसे जाना चाहिये। आपकी यह पोस्ट पढ़ कर दिमाग में बात ठीक से बैठ गई और मैने निश्चय कर लिया है कि घूमने जाऊंगा तो बिल्कुल इसी तरीके से घूमूंगा। कैंप का आयडिया भी एकदम फिट है मेरे जैसे धरतीपुत्रों के लिये! आपके लिये हुए कुछ फोटो भी बहुत अच्छे हैं। जैसे – पेट पालने का जुगाड़, बुद्ध मंदिर से बाहर दिखाई देती वादियां, प्रकृति के खेल और उमड़ते – घुमड़ते मेघ !
ऐसा लग रहा है कि आप सब से मिले बहुत समय बीत चुका है और अब शीघ्र ही मुलाकात हो जानी चाहिये अतः अक्तूबर की प्रतीक्षा में हूं।
सुशांत जी,
पोस्ट को पसंद करने तथा मधुर शब्दों में प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये हार्दिक आभार. अब इतने ज़हीन छायाचित्रकार से अपने फोटो की तारिफ़ हो जाए इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा.
हमें भी आपसे दुबारा मिलने की बहुत उत्सुकता है, अक्टूबर का इन्तज़ार तो हम भी बेसब्री से कर रहे हैं.
What a marvelous post Mukeshji, like others said, it felt as if we were traveling with you.
Regards.
Thank you Stone for going through and commenting. You named yourself Stone but your words reveal that you are as soft as wax. Thank you very much for your precious comment.
bhai jara jaldi aage ka post karne ki kripa karen.mera 2002 ke tour ka revival ho raha hai.shaadi ke baad ka tour tha,aap samajh rahe honge kitna important tour raha hoga mera.saath hee rohtang road jam ke karan na ja paane ki kasak reh gaee thi,jise aapki ankho se pura karna chahunga.waise youth hostel ki jankaari dene k liye aapka dil se dhanyawad.main bhi member ka form bharne ja raha hoon
हैलो राजेश प्रिया जी,
सबसे पहले आपको बहुत बहुत धन्यवाद मेरी पोस्ट पर पधारने तथा हमेशा की तरह मनमोहक तथा विस्तृत टिप्पणी करने के लिए. कोशिश तो कर रहा हुं की अगली पोस्ट जल्द ही प्रस्तुत करुं. मुझे जानकर बड़ा हर्ष हो रहा है की मेरी इस यात्रा से आपकी मधुचंद्रिका की यादें पुनर्जागृत हो रहीं हैं. समझ सकता हुं नवागंतुक जीवन साथी के साथ प्रथम भ्रमण कितना सुखदाई होता है, और इसकी मधुर स्मृतियां चीर काल तक ह्रदय में वास करती हैं.
जानकर बड़ा मलाल हुआ की आप रोड़ जाम के कारण रोहतांग नहीं जा सके और मेरी आंखों से अपना वो अधुरा सपना करना चाहते हैं, लेकिन उससे भी बड़ी दुख की बात यह है की मैं भी आपको रोहतांग तक नहीं ले जा सकुंगा क्योंकी हम भी प्रशासन के प्रतिबंध की वजह से ठेठ रोहतांग तक नहीं जा सके थे और उससे कुछ किलोमीटर पहले व्यास नाला तक ही जा सके थे तथा वहीं पहुंचकर संतुष्टी करनी पड़ी थी.
आपने भी युथ होस्टल की सदस्यता ले ली है जानकर प्रसन्नता हुई. आप अपनी अमुल्य प्रतिक्रियाओं से भविष्य में भी ऐसे ही पथ प्रदर्शन करते रहेंगे, इसी आशा के साथ……
And your logs continue to attract a lot of readership, that talk a lot about you Mukes Bhai.
I am more with Naresh when he says that the best thing about Manali is the sheer natural beauty. I am sure your post is going to very valuable and useful to anyone looking for the top sights to cover. Hope the hot bath has compensated for the missing sweater.
So we go to Manikaran next ?
Thank you very much Nandan for your appreciating and encouraging words.
Mukesh ji very i am very fond of travel stories. You have wtitten very helpful post. Thanks for your writing. Please continue.
Anurag,
Thank you very much for your sweet words.