सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से कà¥à¤› पहले, आधे अंधेरे, आधे उजाले में, हैलोजेन लाइटों के पà¥à¤°à¤•ाश में जमà¥à¤®à¥‚ की सड़कें इतनी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लग रही थीं जितनी पहले कà¤à¥€ à¤à¥€ नहीं लगी थीं । पांच – सात मिनट चलने के बाद ही पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ने कार सड़क के किनारे रोक ली और बोला, “मैं अà¤à¥€ आया। आप à¤à¥€ चाहें तो हलà¥à¤•ा हो लें । रात à¤à¤° की यातà¥à¤°à¤¾ करके चले आ रहे हैं।“ खिड़की में से बाहर à¤à¤¾à¤‚क कर देखा तो दस-पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ सीढ़ी चढ़ कर à¤à¤• à¤à¥‹à¤‚पड़ी नà¥à¤®à¤¾ à¤à¤µà¤¨ नज़र आया जिसे सà¥à¤¸à¤à¥à¤¯, सà¥à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ लोग सà¥à¤²à¤ इंटरनेशनल के नाम से पà¥à¤•ारते हैं। पहले तो सबने डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° महोदय को मना कर दिया कि आप ही जाओ पर फिर अपनी अनà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ में à¤à¤¾à¤‚का तो सबको लगा कि “यही वो जगह है, यही वो फिज़ा है†(जिसकी हम सब को बहà¥à¤¤ जरूरत थी) |
जब तक मेरा नंबर आ पाता, मैं सà¥à¤²à¤ कांपà¥à¤²à¥‡à¤•à¥à¤¸ के काउंटर पर जाकर खड़ा हो गया जहां à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ गà¥à¤²à¥à¤²à¤• लिये बैठे थे। उनके पीछे à¤à¤• बाबाजी का चितà¥à¤° लगा था जिनकी à¤à¤• आंख कà¥à¤› छोटी थी। मैने उस चितà¥à¤° की ओर इशारा करके पूछा कि ये कौन हैं? उसने बताया – “हमारे जमà¥à¤®à¥‚ में à¤à¤• पहà¥à¤‚चे हà¥à¤ बाबा हैं, à¤à¤• बार मेरी मां मà¥à¤à¥‡ लेकर उनसे मिलने गयी। । मैं तीन-चार साल से नवीं ककà¥à¤·à¤¾ में फेल हो रहा था पर मेरी मां मेरी इतनी सी असफलता बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं कर पाई और मà¥à¤à¥‡ बाबा जी के आगे खड़ा कर दिया और बाबा जी से मेरी पढ़ाई, कैरियर और शादी के बारे में पूछने लगी। बाबा ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछा कि बचà¥à¤šà¤¾, कà¥à¤¯à¤¾ करना चाहते हो? मैने अपने दिल की बात बता दी कि बाबा, पढ़ने के तो नाम से ही उबकाई आती है, दिल घबराता है। आप मेरे लिये कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ बिज़नेस बताइये जिसमें कà¥à¤› à¤à¥€ करना न पड़े । बस कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ पर बैठे रहो, सारी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ काम करे और उलटे आपको काम करने के पैसे à¤à¥€ दे। बाबा कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£ सोचते रहे फिर बोले, “बेटा, फिर तो तू सà¥à¤²à¤ शौचालय खोल ले।“ बस, मà¥à¤à¥‡ उनकी बात à¤à¤¾ गई और मैने ये काम शà¥à¤°à¥ कर दिया। इस शौचालय में जो कà¥à¤› à¤à¥€ है, सब बाबाजी का ही पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ है।“
मेरे साथी अपना काम निबटा कर कार की ओर जा चà¥à¤•े थे अतः मैने à¤à¥€ उस यà¥à¤µà¤• का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार वहीं पर लपेटा, फटाफट उस होनहार कारोबारी यà¥à¤µà¤• को पैसे दिये और पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ वदन कार में आकर बैठगया। कार की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ का à¤à¥€ पारावार न था, बड़ी अचà¥à¤›à¥€ ’पिक अप’ का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤ तेजी से अपने गनà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ की ओर बढ़ चली ! और à¤à¤²à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो? कार पर लोड à¤à¥€ तो कà¥à¤› कम हो गया था।
नेट पर मैने जब जांच – पड़ताल की थी तो शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र और जमà¥à¤®à¥‚ के बीच की दूरी 293 किमी बताई गई थी। मà¥à¤à¥‡ लगा था कि अगर 60 किमी पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटे की रफà¥à¤¤à¤¾à¤° से à¤à¥€ चलें तो लगà¤à¤— 5 घंटे में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च जायेंगे। परनà¥à¤¤à¥ हमें शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚चने में लगà¤à¤— 12 घंटे लगे। राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— 1 A पर चलते हà¥à¤ आधा घंटा ही हà¥à¤† होगा कि हमें इस बात का आà¤à¤¾à¤¸ होने लगा था कि जमà¥à¤®à¥‚ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ का उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ हमारी थल-सेना बड़ी मà¥à¤¸à¥à¤¤à¥ˆà¤¦à¥€ से संà¤à¤¾à¤²à¥‡ हà¥à¤ है। जमà¥à¤®à¥‚ काशà¥à¤®à¥€à¤° में सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में राजधानी जमà¥à¤®à¥‚ में रहती है और गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में शिफà¥à¤Ÿ हो जाती है। पूरे पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• अमले को जमà¥à¤®à¥‚ से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र और शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र से जमà¥à¤®à¥‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ करने में लाखों – करोड़ों रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ खरà¥à¤š हो जाते हैं पर कà¥à¤¯à¤¾ करें? बेचारे मंतà¥à¤°à¥€ और अधिकारी गण न तो शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में रह सकते हैं और न ही गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में जमà¥à¤®à¥‚ में। इस शिफà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग को सेना की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के घेरे में अंजाम दिया जाता है। इस राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— के विशà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम की मूल वज़ह यही मानी जाती है।
पर मà¥à¤à¥‡ लगता है कि टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम की असली वज़ह वे सब टैकà¥à¤¸à¥€ और कार चालक हैं जिनको पहाड़ी सड़कों पर चलने के कायदे-कानूनों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मन में कोई समà¥à¤®à¤¾à¤¨ नहीं है। सड़क पर à¤à¤• बस या टà¥à¤°à¤• रà¥à¤•ा हà¥à¤† देख कर हम उसके पीछे अपनी गाड़ी रोकने के बजाय बगल में से आगे निकलने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करते हैं और इस पà¥à¤°à¤•ार à¤à¤• के बजाय दो पंकà¥à¤¤à¤¿ बन जाती हैं और सामने से आने वालों के लिये मारà¥à¤— अवरà¥à¤¦à¥à¤§ कर देते हैं। मà¥à¤à¥‡ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता है कि जिन अधिकारियों के कंधों पर यातायात वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को सà¥à¤šà¤¾à¤°à¥ बनाये रखने का उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ है, वह इस अराजकता को देख कर à¤à¥€ इसका उपाय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं करते। सबसे अचà¥à¤›à¤¾ उपाय तो यही है कि हर वह वाहन जो लाइन तोड़ कर आगे आये, उससे कम से कम पांच हज़ार रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ जà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¾ वसूल किया जाये, न दे तो सब लोगों के सामने उसके मà¥à¤‚ह पर खींच कर दस-बीस à¤à¤¾à¤ªà¤¡à¤¼ रसद किये जायें ताकि उसे जीवन à¤à¤° के लिये सबक मिल जाये। यह उपाय मैने कैंपटी फाल वाली सड़क पर पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में लाया जाता देखा है। à¤à¤• मारà¥à¤¤à¤¿ 800 वाला सौ- दो सौ वाहनों को पंकà¥à¤¤à¤¿ में लगा देखने के बावजूद जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤Ÿ दिखने के पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ में लाइन तोड़ कर आगे निकला और कम से कम पचास वाहनों से आगे चलता चला गया। उन वाहनों में हम à¤à¥€ थे जो अपनी कार में बैठे जाम खà¥à¤²à¤¨à¥‡ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे थे। अचानक महिलाओं के रोने-धोने की और पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के चीखने चिलà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ की आवाज़ें आने लगीं। कार में से उतर कर आगे जाकर देखा तो उस मारà¥à¤¤à¤¿ 800 वाले को कार में से बाहर खींच कर उसकी जबरदसà¥à¤¤ धà¥à¤²à¤¾à¤ˆ की जा रही थी और उसके साथ की महिलाà¤à¤‚ उसे बखà¥à¤¶ देने के लिये रो रही थीं। खूब पिटाई करके उसे मज़बूर किया गया कि वह गाड़ी बैक करे और पंकà¥à¤¤à¤¿ में जाकर खड़ा हो। यदि à¤à¤¸à¤¾ इमोशनल अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° à¤à¤• दो के साथ करना पड़े तो कर देना चाहिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इससे बाकी जनता को जीवन à¤à¤° के लिये सबक मिल जाता है और à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ का सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ निदान हो जाता है। खैर !  Â

सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ लोग वाहन चालकों की नासमà¤à¥€ के मजे लेते हà¥à¤
जमà¥à¤®à¥‚ से निकलते ही हमने पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ को बता दिया था कि हमारा पहला विराम पटनी टॉप में लगेगा। रासà¥à¤¤à¥‡ में कà¥à¤¦ से पतीसा à¤à¥€ लेंगे। घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ डॉट कॉम पर मनॠपà¥à¤°à¤•ाश तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी की कलम से लिखा गया मजेदार वृतà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¤ मैं पढ़ चà¥à¤•ा था जो न सिरà¥à¤« पटनीटॉप के बारे में, बलà¥à¤•ि कà¥à¤¦ और वहां की पतीसे की दà¥à¤•ानों के बारे में बारे में मनोरंजक जानकारी लिये हà¥à¤ था। मेरे विचार में सौ किमी की दूरी के लिये अधिकतम दो घंटे परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने चाहिये थे परनà¥à¤¤à¥ सड़क पर मिलने वाले à¤à¥€à¤·à¤£ टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम हमारी गति को मंद कर रहे थे।
à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• विलकà¥à¤·à¤£ और à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम में पंकज और मैं कार से उतरे और काफी आगे तक जाकर जायज़ा लिया कि करीब कितने किलोमीटर लंबा जाम है। यातायात पà¥à¤²à¤¿à¤¸ के सिपाहियों को जाम खà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¨à¥‡ के कà¥à¤› गà¥à¤°à¥à¤®à¤‚तà¥à¤° à¤à¥€ दिये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सहारनपà¥à¤° वाले à¤à¥€ जाम लगाने के विशेषजà¥à¤ž माने जाते हैं। हम अपनी कार से लगà¤à¤— १ किलोमीटर आगे पहà¥à¤‚च चà¥à¤•े थे जहां गाड़ियां फंसी खड़ी थीं और जाम का कारण बनी हà¥à¤ˆ थीं। आगे-पीछे कर – कर के उन तीनों गाड़ियों को इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में लाया गया कि शेष गाड़ियां निकल सकें। वाहन धीरे – धीरे आगे सरकने लगे और हम अपनी टैकà¥à¤¸à¥€ की इंतज़ार में वहीं खड़े हो गये। सैंकड़ों गाड़ियों के बाद कहीं जाकर हमें अपनी सफेद फोरà¥à¤¡ आती दिखाई दी वरना हमें तो यह शक होने लगा था कि कहीं बिना हमें लिये ही गाड़ी आगे न चली गई हो। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने गाड़ी धीमी की और हमें इशारा किया कि हम फटाफट बैठजायें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गाड़ी रोकी नहीं जा सकती। जैसे धोबी उचक कर गधे पर बैठता है, हम कार के दरवाज़े खोल कर उचक कर अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गये। पांच सात मिनट में ही पंकज का दरà¥à¤¦ में डूबा हà¥à¤† सà¥à¤µà¤° उà¤à¤°à¤¾! “मैं तो लà¥à¤Ÿ गया, बरबाद हो गया।“ मà¥à¤à¥‡ बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पंकज à¤à¤• मिनट के लिये à¤à¥€ मेरी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से ओà¤à¤² नहीं हà¥à¤† था तो फिर à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† कि वह लà¥à¤Ÿ à¤à¥€ गया और मà¥à¤à¥‡ खबर तक न हà¥à¤ˆà¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤¸à¤¾ कोई सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ चेहरा à¤à¥€ नज़र नहीं आया था, जिसे देख कर पंकज पर इस पà¥à¤°à¤•ार की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ होती। गरà¥à¤¦à¤¨ घà¥à¤®à¤¾ कर पीछे देखा तो पंकज à¤à¤¾à¤ˆ आंखों में ढेर सारा दरà¥à¤¦ लिये शूनà¥à¤¯ में ताक रहे थे। उनकी पतà¥à¤¨à¥€ चीनू ने कà¥à¤°à¥‡à¤¦à¤¾ कि कà¥à¤¯à¤¾ होगया, बताइये तो सही तो बोला, “मेरा मोबाइल कहीं गिर गया।“
कार रोक कर गाड़ी के फरà¥à¤¶ की, बैगों की, पंकज ने अपनी सà¤à¥€ जेबों की तलाशी ली गई पर मोबाइल नहीं मिलना था तो नहीं मिला। पता नहीं, सà¥à¤²à¤ पर गिरा या चलती कार में उचक कर बैठते समय पैंट की जेब से बाहर सरक गया था। आधा घंटे तक पंकज का मूड ऑफ रहा। फिर थरà¥à¤®à¥‹à¤•ोल के गिलासों में पेपà¥à¤¸à¥€ पी-पी कर हम सबने ग़म गलत किया और आगे की राह पर बढ़े।
साढ़े आठके करीब समय हो चà¥à¤•ा था । पंकज के बचà¥à¤šà¥‡ की à¤à¥€ आंख खà¥à¤² गई थी और वह à¤à¥‚ख से कà¥à¤¨à¤®à¥à¤¨à¤¾ रहा था। चीनू के à¤à¤• बैग में उसकी पूरी रसोई का जà¥à¤—ाड़ था। मिलà¥à¤• पाउडर, चीनी, बिजली की केतली, अंतहीन नाशà¥à¤¤à¤¾, कल रात के बचे हà¥à¤ परांठे आदि। हमारे पास à¤à¥€ पूरियां, करेले की सबà¥à¤œà¤¼à¥€, चिपà¥à¤¸, चौकलेट, टॉफी, खटà¥à¤Ÿà¥€-मीठी गोलियां आदि à¤à¤°à¤ªà¥‚र मातà¥à¤°à¤¾ में थीं। कार रोक कर खाने पीने के दोनों बैग बूट में से निकाल कर आगे ही रख लिये गये। केतली का तो उपयोग हो नहीं सकता था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बिजली का कनेकà¥à¤¶à¤¨ कहां से लाते? अतः किसी चाय की दà¥à¤•ान की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ होने लगी ताकि पानी उबाल कर बचà¥à¤šà¥‡ के लिये दूध बनाया जा सके। जैसे ही à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ दà¥à¤•ान दिखाई दी, गाड़ी रोक कर इस कारà¥à¤¯ को à¤à¥€ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया गया। [
चलते-चलते कई घंटे हो चà¥à¤•े थे और मेरी गणना के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पटनीटाप अब तक आ जाना चाहिये था। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° महोदय से पूछा कि पटनीटॉप कितनी दूर है। बोला, “अगले टरà¥à¤¨ पर आ रहा है। पर इस समय वहां आपको कà¥à¤› नहीं मिलेगा। न बरà¥à¤« और न ही हरियाली। सीधे चले चलते हैं।“ हम à¤à¥€ जिद पर अड़ गये कि नहीं, हमें तो जाना है। उसने कहा कि ठीक है। पर जाम की वज़ह से काफी देर हो चà¥à¤•ी है। हद से हद à¤à¤• घंटा रà¥à¤• कर आगे बढ़ चलें तो टाइम से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च पायेंगे।“
पटनीटॉप की सड़क पर मà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¥‡ ही बैरियर मिला तो डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने कहा कि परà¥à¤šà¥€ के पैसे दे दीजिये। पंकज à¤à¤¾à¤ˆ बोले, “सारे टोल-टैकà¥à¤¸, बैरियर, डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° के खाने – पीने, पारà¥à¤•िंग सहित रेट तय हà¥à¤† था। पैसे आप ही को देने हैं। पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® à¤à¥à¤¨à¤à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ बोला, “मैं कब मना कर रहा हूं। छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ पैसे नहीं हैं, इसलिये आपसे उधार मांग रहा हूं, आप मेरे बिल में से काट लेना।“ पंकज ने संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के साथ कहा, “à¤à¤¸à¤¾ है तो ठीक है, ये लो 100 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ उधार !†हमारी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से पंकज की ओर देखा और फिर आंखों ही आंखों में मà¥à¤à¤¸à¥‡ बोली, “देखा, इसे कहते हैं समà¤à¤¦à¤¾à¤° इंसान ! कà¥à¤› सीख लो आप à¤à¥€ !†अटà¥à¤ ाइस वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ शादी हो तो मियां बीवी बिना मà¥à¤‚ह से कà¥à¤› बोले à¤à¥€ à¤à¤• दूसरे की सारी बातें समà¤à¤¨à¥‡ लगते हैं।
नाग देवता मंदिर के आस-पास गाड़ी रोक कर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने कहा, “चाय वगैरा जो à¤à¥€ पीनी हो, आप यहां पी लें । à¤à¤• ओर पहाड़ी थी और दूसरी ओर खाई। खाई की तरफ चार-पांच खोखे टाइप दà¥à¤•ानें थीं । à¤à¤• ठीक-ठाक सी दà¥à¤•ान देखकर चाय मंगाई, बचà¥à¤šà¥‡ के लिये दूध गरà¥à¤® किया। सड़क पर पड़ी कà¥à¤°à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर बैठगये। दà¥à¤•ानदार ने अपनी दà¥à¤•ान के आगे लकड़ी का काउंटर बना कर न जाने कौन – कौन सी जड़ी-बूटियां सजाई हà¥à¤ˆ थीं । शायद वह चीजें कहवा बनाने के काम आती हैं। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को चाय के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया, अà¤à¥€ पांच मिनट पहले के घटनाकà¥à¤°à¤® के बाद उसका मूड कà¥à¤› बिगड़ सा गया था। नाग देवता मंदिर की ओर जाने के लिये जो गली है, उसके मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ पर पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ की पकौड़ियां तलता हà¥à¤† à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिला। उसकी कढ़ाई में जो तेल था, वह काला नहीं, पारदरà¥à¤¶à¥€ था। साफ सà¥à¤¥à¤°à¤¾ का सामान देख कर मैने दो पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ पकौड़ी तैयार कराईं और ले जा कर उस मेज़ पर टिका दीं जहां हमारे परिवार वाले चाय की चà¥à¤¸à¥à¤•ियां ले रहे थे। पहले तो सब ने कह दिया कि इतनी सारी पकौड़ी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ले आये? पर फिर खाने लगे तो दो पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ का और आरà¥à¤¡à¤° कर दिया। अनारदाने की चटनी के कारण ये पकौड़ी कà¥à¤› विशेष सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ लग रही थीं।  Â
मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ कर हम आगे बढ़े तो à¤à¤• विशाल पà¥à¤°à¤•ृति-निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ पारà¥à¤• में जमà¥à¤®à¥‚ कशà¥à¤®à¥€à¤° टूरिज़à¥à¤® कारà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ की हरी हरी à¤à¥‹à¤‚पड़ियां (huts) देख कर टैकà¥à¤¸à¥€ रोक दी गई और हम सब बरà¥à¤« की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ में इधर – उधर à¤à¤Ÿà¤•ने लगे। बरà¥à¤« मिली तो जरूर पर मिटà¥à¤Ÿà¥€ और घास में सनी हà¥à¤ˆà¥¤ उस बरà¥à¤« से खेलने का ख़याल à¤à¥€ मन में नहीं आया, बस उन हटà¥à¤¸ के आस-पास दस-पांच फोटो à¤à¤¸à¥‡ खींची गईं मानों हम उस हट में ही सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ à¤à¤° से रह रहे हों। वहां से बाहर निकले तो देखा कि à¤à¤• पान वाला अपनी चलती फिरती दà¥à¤•ान सजा कर खड़ा है। उसकी बोहनी कराने के लिये हमने दस-दस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ के मीठे पान खाये। मैने बहà¥à¤¤ कोशिश की कि à¤à¤• पान पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ को à¤à¥€ खिलाया जाये ताकि कम से कम à¤à¤• घंटे के लिये तो उसका मà¥à¤‚ह बनà¥à¤¦ हो सके पर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने मना कर दिया तो मैने वह पान डैश बोरà¥à¤¡ पर रख दिया जहां मेरा मोबाइल और टोपी रखी थी। रातà¥à¤°à¤¿ में शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च कर जब अपनी टोपी उठाई तो उसका हाल-बेहाल था। पान का गà¥à¤²à¤•नà¥à¤¦ टपक – टपक कर मेरी फर की टोपी को बरबाद कर चà¥à¤•ा था।
कोई आकरà¥à¤·à¤• नज़ारा पटनीटॉप में हम देख पाने में असमरà¥à¤¥ रहे। पटनीटॉप से वापस राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— 1A पर आते समय हमें बहà¥à¤¤ सारी बरà¥à¤« सड़क के दोनों ओर à¤à¤•तà¥à¤° की हà¥à¤ˆ दिखाई दी पर वह सब कीचड़ की संगति में रहने के कारण बेकार हो चà¥à¤•ी थी और उसमें सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ तलाशना उतना ही कठिन था जितना सरकारी कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ में करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¤£ और ईमानदार अधिकारी और करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ खोजना। Â

चिनाब नदी के उस पार पहाड़ों पर सीढ़ीनà¥à¤®à¤¾ खेत
चिनाब नदी के किनारे किनारे कई मील के सफर के दौरान मैं चलती कार में से फोटो खींच कर अपना मन लगाये रहा और पीछे के सीट पर ये तीनों सजà¥à¤œà¤¨ और सजà¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बैग में से निकाल निकाल कर कà¤à¥€ बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ तो कà¤à¥€ नमकीन तो कà¤à¥€ परांठे तो कà¤à¥€ पूरी तो कà¤à¥€ चिपà¥à¤¸ खाते रहे। जब कà¤à¥€ मैं उनकी ओर गरà¥à¤¦à¤¨ घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ तो कोई न कोई थैली मेरी ओर à¤à¥€ बढ़ा देते ।
अरे हां, रासà¥à¤¤à¥‡ में बहà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ कà¥à¤¦ à¤à¥€ आया था मगर पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ने सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया कि वापसी में घर के लिये पतीसा पैक कराते ले जाइयेगा, अà¤à¥€ रà¥à¤•ने का कोई फायदा नहीं है। हमने à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‹à¤§ नहीं किया।
जवाहर टनल से कà¥à¤› ही किलोमीटर पहले हमारे टैकà¥à¤¸à¥€ चालक महोदय ने à¤à¤• बड़े खतरनाक मोड़ पर बने हà¥à¤ ढाबों के आगे कार खड़ी कर दी। यहां से बरनिहाल हाइडिल पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त बने हà¥à¤ à¤à¤• बांध का विहंगम दृशà¥à¤¯ दिखाई देता है। ढाबे का नाम शायद लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ ढाबा था जो बकौल पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡, अपने राजमा-चावलों के लिये जगतॠविखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है। “जमà¥à¤®à¥‚ से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र अगर सड़क से जाना हो तो इस ढाबे पर बिना राज़मा-चावल खाये आगे जाना पाप है।“ हम सब ने कहा कि हमारा तो पेट à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है, आप खा लो। पर हम वहां के पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक दृशà¥à¤¯ देखने के मूड से बाहर निकल आये। ढाबे में बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी और à¤à¤• पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ राजमा-चावल में नपने से नाप कर पूरे 50 ml. घी डाला जाता देख कर लगा कि यह highly lubricated à¤à¥‹à¤œà¤¨ शरीर में जायेगा तो पेट के रासà¥à¤¤à¥‡ में टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम जैसी कोई समसà¥à¤¯à¤¾ तो आ ही नहीं सकती! बलà¥à¤•ि पेट के ढलवां रासà¥à¤¤à¥‡ में बà¥à¤°à¥‡à¤• फेल होने का à¤à¥€ खतरा है। खाना पेट में बिलà¥à¤•à¥à¤² नीली बतà¥à¤¤à¥€ वाली वी.आई.पी. कार की तरह सरपट दौड़ता चला जायेगा। (कई-कई किलोमीटर लमà¥à¤¬à¥€ गाड़ियों की कतार देखते-देखते दिमाग़ में टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही समा गया था शायद इसलिये खाने में à¤à¥€ वही उपमा सूठरही थीं )!
]डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° महोदय की सलाह मानते हà¥à¤ हमने यह सोच कर à¤à¤• पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ का आरà¥à¤¡à¤° किया कि दो-दो चमà¥à¤®à¤š हम चारों ही खा लेंगे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° खाते हà¥à¤ आने के कारण à¤à¥‚ख तो है ही नहीं। à¤à¤• पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ खा कर लगा कि चलो, à¤à¤• और मंगवा लेते हैं। फिर दो पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ का और आरà¥à¤¡à¤° दे दिया । बैरा हमें मनà¥à¤¦ सà¥à¤®à¤¿à¤¤ के साथ निहार रहा था । शायद यह उसके लिये रोज़ मरà¥à¤°à¤¾ का दृशà¥à¤¯ होता हो। ढाबे के पृषà¥à¤ à¤à¤¾à¤— में जाकर मैने बरनिहाल बांध के कà¥à¤› फोटो à¤à¥€ खींच लिये।

बगलियार हाइडिल पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ पà¥à¤°à¤—ति की ओर
कार जैसे-जैसे जवाहर टनल की ओर बढ़ रही थी, à¤à¤•ाà¤à¤• सफेद बरà¥à¤« से ढकी पीर पंजाल परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला हमें लà¥à¤à¤¾à¤¯à¥‡ चली जा रही थी। मेरा कैमरा चलती कार में से ही कà¥à¤²à¤¿à¤•-कà¥à¤²à¤¿à¤• करता चल रहा था। पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ने कहा à¤à¥€ कि यहां फोटो खींचने के लिये कà¥à¤› नहीं है। आगे आपको à¤à¤¸à¥‡-à¤à¤¸à¥‡ सीन मिलेंगे कि बस।
कà¥à¤› ही कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में हम सà¥à¤°à¤‚ग के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ पर थे। जमà¥à¤®à¥‚ और काशà¥à¤®à¥€à¤° में दो ही चीज़ें सबसे अधिक इफरात में दिखाई दे रही थीं – à¤à¤• तो बरà¥à¤« से लदे पहाड़ और दूसरे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना के जवान! जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के आस-पास फोटो खींचने की इचà¥à¤›à¤¾ थी पर अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं थी, चलती गाड़ी में से ही जो मिला, सहेज लिया और à¤à¤• दशमलव दो किलोमीटर लंबी सà¥à¤°à¤‚ग में पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हो गये। यह सà¥à¤°à¤‚ग निशà¥à¤šà¤¯ ही सिविल इंजीनियरिंग का à¤à¤• नायाब नमूना है। रेल मारà¥à¤— के लिये à¤à¥€ कà¥à¤› वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ à¤à¤• सà¥à¤°à¤‚ग बनानी आरंठकी गई थी जिसके लिये दोनों ओर से खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ आरंठहà¥à¤ˆ । पर जब दोनों ओर से खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ करते करते meeting point आया तो पता चला कि गणना में कà¥à¤› गलती हो गई है और दोनों ओर की सà¥à¤°à¤‚ग की ऊंचाई अलग – अलग है। वह पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ अà¤à¥€ तक पूरा नहीं हो पाया है।
जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग पार करने के बाद पहाड़ से उतरना शà¥à¤°à¥ किया ही था कि पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ ने टाइटेनिक पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट पर गाड़ी पारà¥à¤• कर दी। इस टाइटेनिक पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट का वरà¥à¤£à¤¨ और कà¥à¤› चितà¥à¤° मैं गूगल अरà¥à¤¥ पर à¤à¥€ देख चà¥à¤•ा था। जिस समय हम वहां पहà¥à¤‚चे, केवल à¤à¤• परिवार वहां मटरगशà¥à¤¤à¥€ करता दिखाई दिया। चाय की दà¥à¤•ान थी, मगर बनà¥à¤¦ थी। जब हमारी ’जनानियों’ ने पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ को आवाज़ लगा कर चाय के बारे में पूछा तो वह न जाने कहां से उस बनà¥à¤¦ दà¥à¤•ान के दà¥à¤•ानदार को पकड़ लाया। उसने अपनी दà¥à¤•ान का अदà¥à¤à¥à¤¤ दरवाज़ा उठाया, छलांग लगा कर अंदर गया और चाय बना कर दी जिसे पीकर हमारी दोनों महिलाà¤à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ ही तेजसà¥à¤µà¥€ और ओजवानॠहो गईं मानों किषà¥à¤•िंधा परà¥à¤µà¤¤ से हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी ने संजीवनी बूटी लाकर सà¥à¤‚घाई हो।
अब तक हम कार के सफर से उकताने लगे थे। खास कर मà¥à¤à¥‡ तो अपनी कमर में अकड़न का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हो रहा था à¤à¤¸à¥‡ में टाइटेनिक पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट पर हम आवशà¥à¤¯à¤•ता से अधिक देर रà¥à¤•े रहे और अपने असà¥à¤¥à¤¿ तंतà¥à¤° की à¤à¤•à¥à¤¸à¤°à¤¸à¤¾à¤‡à¤œà¤¼ करते रहे। बरà¥à¤« का यहां पर à¤à¥€ वही हाल था – घास और कीचड़ में सनी हà¥à¤ˆà¥¤
टाइटेनिक पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट से आगे बढ़े तो शाम होने को थी और शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚च कर होटल ढूंढने की चिनà¥à¤¤à¤¾ मन पर सवार होने लगी थी। हरियाली कहीं à¤à¥‚ले à¤à¤Ÿà¤•े ही दिखती थी, चिनार के विशà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ पेड़ à¤à¥€ बिलà¥à¤•à¥à¤² गंजे थे। सड़क किनारे के à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ पर सेना के जवान दिखाई देते रहे। काफी लंबा सफर अà¤à¥€ à¤à¥€ बाकी था अतः कहीं à¤à¥€ रà¥à¤•े बिना सीधे शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚चने का मन कर रहा था। काज़ीगà¥à¤‚ड में फिर पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® ने गाड़ी रोक दी और कहा कि यहां से कहवा पीते हà¥à¤ चलेंगे। मैं चाय नहीं पीता पर कहवा पी लिया, अचà¥à¤›à¤¾ ही नहीं, बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लगा।
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पहà¥à¤‚चते पहà¥à¤‚चते सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ हो चà¥à¤•ा था। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने डल à¤à¥€à¤² की मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड के समानानà¥à¤¤à¤° नà¥à¤¯à¥‚ खोनाखान रोड पर ममता होटल के आगे कार खड़ी की और कहा कि आप इस होटल को देख लें, अगर पसनà¥à¤¦ न हो और और होटल à¤à¥€ देख लेंगे। मेरे मन में कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ थी कि डल à¤à¥€à¤² के सामने होटल होगा, रात को पानी में à¤à¤¿à¤²à¤®à¤¿à¤²à¤¾à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ लाइटें दिखाई देंगी । पर यहां मà¥à¤à¥‡ न तो वह लोकेशन पसनà¥à¤¦ आई और न ही वहां रà¥à¤•ने का मन किया। पर होटल के रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर गये तो उसने कह दिया कि कमरे उपलबà¥à¤§ नहीं हैं। इसके बाद जब मैने जोर देकर कहा कि बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड पर चलते हैं तो हम सब कार में वापस बैठे और वहां कई होटल में à¤à¤Ÿà¤•े। पर पंकज को इन होटलों के रेट बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤à¥¤ बोला, “सिरà¥à¤« रात – रात की ही तो बात है, सà¥à¤¬à¤¹ तो हम घूमने निकल ही जायेंगे। कल शाम को कोई और दूसरा अचà¥à¤›à¤¾ होटल देख लेंगे।”  मैने उसकी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ को समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ खोà¥à¤¨à¤–ान रोड पर ही अचà¥à¤›à¤¾ होटल तलाशने हेतॠसहमति वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर दी और काफी à¤à¤Ÿà¤•ने के बाद हमें à¤à¤• साफ – सà¥à¤¥à¤°à¤¾ होटल – कोहिनूर मिल ही गया जिसने पंकज की जानदार सौदेबाजी के बाद, 800 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पर हमें दो कमरे देने सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिये।  कमरे में सामान टिका कर, गरà¥à¤® पानी में दिन à¤à¤° की थकान मिटा कर हम पà¥à¤¨à¤ƒ बà¥à¤²à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¡ रोड पर गये और डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° के सà¥à¤à¤¾à¤µ पर ही “पंजाबी तड़का” नामक शà¥à¤¦à¥à¤§ शाकाहारी à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में खाना खाने पहà¥à¤‚चे। खाना हमें इतना रà¥à¤šà¤¿à¤•र पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ हà¥à¤† कि अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ का नाशà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ हम वहीं करने का निशà¥à¤šà¤¯ करके अपने होटल में वापिस आ गये।
मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,  इस यातà¥à¤°à¤¾ में हमारे सहयातà¥à¤°à¥€ बनने के लिये आपका हारà¥à¤¦à¤¿à¤• आà¤à¤¾à¤° । अगली किशà¥à¤¤ में लेकर आ रहा हूं शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र के विशà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ बाग और डल à¤à¥€à¤² में à¤à¥à¤°à¤®à¤£  का किसà¥à¤¸à¤¾  !  तब तक के लिये पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® !  गà¥à¤¡ डे, वणकà¥à¤•मैया !  आदाब और सत सिरी अकाल !

















जैसे श्रीकृष्ण बिना हथियारों के ही सब पर भारी थे…और जब अंततः उन्होने पहिया रुपी हथियार उठा लिया तो पूरी सृष्टि कांप उठी थी…. वैसे ही आप तो बिना चित्रों के ही अपने लेखन से सब पर भारी पड़ रहे थे और अब चित्रों के साथ क्या जुल्म ढायेंगे वो देख लिया..
मुझे लगता है लम्बा सफर एक पोस्ट में पूरा करने के चक्कर में हम आपके कई व्यंग बाणों से महरुम रह गये… फिर भी आज के विजेता है –
इस शौचालय में जो कुछ भी है, सब बाबाजी का ही प्रसाद है।“
चाय बना कर दी जिसे पीकर हमारी दोनों महिलाएं ऐसे ही तेजस्वी और ओजवान् हो गईं मानों किष्किंधा पर्वत से हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर सुंघाई हो।
फट्टे उखाड़ दिये लाला जी
परम प्रिय शान्त आत्मन्
आपने इतनी भीषण तारीफ कर डाली है कि मैं शर्म और संकोच से लाल-भभूका हो रहा हूं । आपको मेरी पोस्ट अच्छी लग गई, बस यही मेरे लिये सबसे बड़ा प्रसाद है। एक नया मुहावरा सुनने को मिला है – “फट्टे उखाड़ दिये” जिसका मतलब मुझे मालूम नहीं पर उम्मीद कर रहा हूं कि यह भी तारीफ का ही एक नया अंदाज़ है। शुक्रिया, मेहरबानी, थैंक यू और धन्यवाद !
सुशान्त सिंहल
फट्टे उखाड़ दिये – मतलब ऐसा कमाल किया कि और कोई न कर सके
फट्टे चक दे – चलो चले या चलो खत्म करो
दोनो पंजाब के मशहूर मुहावरे है जो अधिकतर पीने के बाद बोले जाते हैं…
सो फट्टे वाकई उखाड़ दिये आपने
Heard that there was a mild earthquake in Kashmir recently,,,, वाकई में किसि ने वहां फट्टे उखाड़ दिया होगा
Very nice description, photos so good. Rs5000 fine is ok for violiting traffic line, but Dhulai little bit odd behind family members. But Indian Police is master in this act.
Thanks and regards.
Sharma Ji, Thanks a lot. I am away from my home and from my laptop, so could not convey my sense of gratitude earlier. Hope you wouldn’t mind it.
There are diehard professional drivers and neo rich car wallas who have absolutely no regard for law of the land. I have seen people crossing red light on a crossing and when a traffic police officer whistles, they throw Rs. 100/- out of window and move on. I don’t think people of such attitude can be corrected except by performing a good dhulai ! Anyway, thanks again.
Sushant Singhal
सुशांत जी …..नमस्कार !
हमेशा की तरह सुन्दर और आकर्षक भाषा शैली में यात्रा वृतांत पढ़कर सचमुच मजा आ गया….इस बार लेख में आपके द्वारा लगाये गए अतिसुन्दर फोटो ने सोने पे सुहागा जैसे काम किया हैं…….|
एक बार हम भी सड़क मार्ग से श्रीनगर जा चुके हैं, आपका विस्तृत लेख पढ़ कर सब कुछ वैसे के वैसे ही याद हो आया…..| उस समय हम लोग दो दिन हाउस बोट में रुके थे…हॉउस में रहने का अनुभव कुछ अलग ही होता हैं…..मुझे याद हैं की उस हाउस बोट क नाम “किंग ऑफ कश्मीर ” था |
लेख एक बात आपकी सही करना चाहुगा की जवाहर टनल एक दशमलव दो किलोमीटर लंबी नहीं बल्कि दो दशमलव पांच किलोमीटर लंबी (२.५० किमी० ) हैं |
अगले लेख तक आपको भी प्रणाम ! गुड डे, वणक्कमैया ! आदाब और सतश्री आकाल
धन्यवाद !
सुशांतजी,
आपके यात्रा के दिलचस्प विवरण को पूरी तरह उपभोग कर रहा हूँ.. रचनाओ में हास्यबोध वाकई सराहनीय है.
अनुशासनहीन वाहन चालको के लिए आपका नुस्खा बड़ा ही कारगर महसूस होता है :-) पाटनी टॉप के बैरिएर पर पंकजजी की समझदारी और सुशांत दंपत्ति की समरूपता, दोनों ही मन को छू लेने वाली है.
पहाड़ो पर BRO boards के हम मुरीद है, पर PT उषा वाला बोर्ड हमने पहली बार देखा.
इसी तरह लिखते रहिये और हम सब इसी तरह आनंद उठाते रहेंगे.
धन्यवाद्
पर तब मुझे नही पता था कि आप इतने बढिया तरीके से लिखने वाले हो ? मै तो आपका प्रशंसक हो गया हूं । चित्र सारे हटके हैं इनके आगे पटनीटाप की बर्फ कुछ नही । वैसे वो बर्फ मिलती किस्मत वालो को है और सर्दियो के अलावा बाकी समय पटनीटाप की बजाय उससे 10 किमी0 उपर नत्था टाप में मिलती है जैसी कि हमें मिली थी । और खाली सहारनपुर वाले ही जाम में अव्वल नही होते आपके पडौसी यानि की मु0नगर वाले यानि हम भी कम नही होते हैं हा हा हा
आपका लेखन सुभानल्लाह
आप और हम पडौसी माशाअल्लाह
मै आपका प्रशंसक बना ALHUMDUILLAH
आप ऐसे ही लिखें JAZAKALLAH
हम हमेशा साथ रहें इंशा अल्लाह
आपकी अगली पोस्ट की तलब लग चुकी है देखते हैं कि कब बुझती है तब तक खुदा हाफिज
रमजान मुबारक हो त्यागी जी।
लगता है कि रोजे शुरू कर दिये।
अपनी अन्तरात्मा में झांका तो सबको लगा कि “यही वो जगह है, यही वो फिज़ा है”
शुरूआत में ही वाकई फट्टे उखाड दिये।
और एक सलाह है कि अपना मूं बदलो। गम्भीर मूं अच्छा नहीं लग रहा। पोस्ट और लिखने के स्टाइल के अनुरूप मूं होना चाहिये।
वह सुशांत भाई, बहुत मज़ा आ गया
इतना हंसा इतना हंसा की अब मेरे पेट में दर्द होने लगा है
Absolutely loved the anecdote of the attendant at the Sulabh complex. Is it real or is it apocryphal ?
I mean, people hardly interact with them, let alone finding out everything about them,such as:
1.He failed 9th class 3 or 4 times.
2, He had a mother who took him to a Godman.
3. The Godman granted his wish for a job where he is paid to do nothing other than sitting.
I hope that the Government will not charge entertainment tax from ghumakkars because you have given us much more entertainment than even classics like Chupke Chupke and Bawarchi.
Just can’t wait for the next installment. Till then,I will keep reading and re-reading the 3 posts you have written so far.
PS: What is the best medicine for LISA (Laughter Induced Stomach Ache)?
तुम्हीं ने दर्द दिया, अब तुम्हीं दवा देना…..
Dear DL,
Absolutely loved your comment but couldn’t reply earlier since I am away from my home and my laptop. Frankly, this episode doesn’t belong to that particular Sulabh Complex. While writing, an old memory sprang up into my mind and I used it. I hope all authors have this much liberty ! :)
As regards your stomachache, I am referring the matter to a gynecologist friend of mine. She may recommend you for a thorough check up. It could be something other than LISA also so let’s play safe ! hahahahaha.
The thought of govt. levying entertainment tax merely because of my posts is definitely worrisome. Let me talk to Pranav Mukherjee. Oh my God ! He is no more the FM of India ! What to do now!
सुशांतजी, रुचिपूर्ण स्तरीय लेखन के द्वारा पारिवारिक सम्बन्धों की सरसता के उजागर होने के साथ घुमक्कड़ी के सभी विवरण जैसे कि रुकने, खाने पीने के स्थान, खर्चो का हिसाब, दर्शनीय जगहों के बारे में जानकारी आदि के साथ आपका लेख संग्रहणीय बन गया है जिसे बार-बार पढने पर भी पुन: पढने की इच्छा करती है। आपसे परिचय के लिये घुमक्कड़ डॉट कॉम को धन्यवाद।
श्रीनिवास जी, आपके इस प्यार भरे कमेंट के लिये हदय की गहराइयों से आपका आभार ! मुझे घुमक्कड़ डॉट कॉम से इतना प्यार मिला है, जितना आज तक किसी भी पत्रिका से नहीं मिला । इस पोर्टल पर सब बहुत ही अच्छे और स्नेही परिवार जैसे हैं।
सुशांत जी,
बहुत सुन्दर वर्णन .ऐसा लेखन जो पाठक को बांध के रखे और आप में वो बात हैं .पढ़ते पढ़ते जोर से हँसी आती हर लाइन का हर शब्द मोती हैं .
फोटो भी अच्छे हैं .अगली यात्रा का इंतजार .
धन्यवाद .
कविता जी, मेरा तो शब्दकोष भी अब रीत चुका है, धन्यवाद के लिये शब्द अब खुरच-खुरच कर निकालने होते हैं । आभार !
jaam lagana amaanviya apraadh hai par hinsa to sahi nahi rahegi, 5000 ka jurmana bhi adhik hi sunaayi deta hai. Main khud is galti ke vipaksh mein hoon.
Apki lekhan shaili ka jawaab nahi. Apko padhke shayad hamari lekhni mein bhi kucch sudhaar aaye.
Yatra ke aarambh mein hi mobile khone ki baat padhke dukh hua.
Yuhi likhte rahiye aur hamein ghumaate rahiye.
Dear Vinay Musafir,
Thank you very much. I am not an authority to decide about the quantum of penalty. It is for the law-makers to decide. But I feel that punishment should be severe in order to be effective and prohibitive. People should not be able to afford the punishment. If they can easily afford it, it is of no use.
Indian Penal Code was made in year 1860 perhaps. The Govt. has not revised the amount of fine ever since. We are subsidizing crime at the cost of law abiding citizens.
सुशांत जी,
बाकी तो सब बहुत अच्छा है, जैसा की सभी कह भी चुके हैं और मान भी चुके हैं (मेरे सहित), लेकिन आप “विद्या पढ़ाई की कसम खाओ कि सुलभ शोचालय में बाबाजी वाला साक्षात्कार “सचमुच” हुआ था ? कोई चुटकुला नहीं है….
जय राम जी कि…….
प्रिय संजय कौशिक,
विद्या पढ़ाई की कसम तो नहीं खा सकता, हां “डर्टी पिक्चर” वाली विद्या बालन की कसम चाहें तो खा लूंगा कि ये किस्सा भले ही उस सुलभ शौचालय का न भी हो, पर किसी अन्य शौचालय का अवश्य है। लेखक लोग अपनी पुरानी यादों को कहीं न कहीं इस्तेमाल कर लिया करते हैं। दूसरी बात राजा गार्डन की जो आपने नीचे लिखी है। राजा गार्डन जैसी दो सौ फुटी सड़कों पर, जहां डिवाइडर भी लगे हुए हैं, यह फार्मूला बिल्कुल सही है पर संकरी पहाड़ी सड़कों पर आप किसी ट्रक या कार को कैसे घुमायेंगे? जहां कुछ लोगों की अतिशय जल्दबाजी की वज़ह से अनेकों वाहन एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था हुए खड़े हों, न एक कदम आगे जा सकते, न ही पीछे लौट सकते वहां तो यही एकमात्र उपाय है ताकि ऐसे व्यक्ति हज़ारों लोगों के कष्टों का कारण बनने से पहले अगली बार हज़ार बार सोचें!
जब एक व्यक्ति अपनी कार को लाइन तोड़ कर आगे ले जाता है तो बड़े गर्व और अहं भाव से अपनी धर्मपत्नी की ओर देख कर कहता है – “देखा, कितना स्मार्ट हूं मैं, सारे मूर्ख लाइन में खड़े हुए हैं और मैं अकेला होशियार उन सब को पीछे छोड़ कर आगे आगया हूं ।” पर अगर इस स्मार्टनैस के फूहड़ प्रदर्शन के बाद उस व्यक्ति को 5,000 रुपये जुर्माना देना पड़े या उसकी धुलाई हो जाये तो पत्नी उसे अगली बार क्या सीख देगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।
और हाँ, जाम के खिलाफ जो कानून आपने सुझाया है, उससे भी अच्छा एक सचमुच का किस्सा है “विद्या पढ़ाई की कसम”, मैं दिल्ली मैं ‘शिवाजी कालेज” से पढ़ा हुआ हूँ, वहां उस समय ऐसी ही समस्या राजा गार्डन पे रहती थी, मुझे अभी भी याद है एक ट्रेफिक वाले इंस्पेक्टर साहब – न चालान काटने थे, ना थप्पड़ मारते थे, बस बड़े हे प्यार से पूछते बेटा बड़ी जल्दी है जो लाइन तोड़ के सबसे आगे आ खड़ा हुआ ? तो जा एक काम कर यहाँ से “U” टर्न ले, और वापिस जाके सबसे पीछे लाइन मैं लग जा.
आप समझ सकते हैं, थप्पड़ से भी ज्यादा दर्द होता होगा, जब एक डेढ़ किलोमीटर (क्योंकि “U” टर्न लेने के बाद पहला कट इतने ही पीछे था ) वापिस जाकर फिर उसी लाइन मैं लगना पड़ता होगा, और चालान लायक तेल तो उसका वैसे भी फुंक लेता होगा, खून फूँका सो अलग…..
Dear Sanjay Kaushik,
Nice Idea U turn. My friend just come from Shri Tirupati Balaji temple and He told same method there. If someone break line, Security Persons send him back to line again.
वाह तनावान्त जी, क्या बात है, सुग्रीव जी के रक्षा/शिक्षा मंत्री जी को द्रोणगिरी सुमेरु तक न भेज कर, अपनी ही राजधानी किष्किंधा से बूटी मंगवाकर दोनों महिलाओं को तेजस्वी तथा ओजवान (तेजस्विनी व रजवंति) बना दिया. हनुमानजी को भी दूर् जाने का कष्ट नहीं करना पड़ा. पकौडों के साथ भले ही कोई और चटनी मिले, परन्तु राजमा-चावल के साथ शुभलक्ष्मी ढाबा व स्पेशल ढाबा पे घी और अनारदाने की चटनी जरूर मिलतीं है जो आप लेनी भूल गए और असली आनंद से वंचित रह गए. बीआरओ को पी.टी.उषा वाला कैप्शन शायद आप जैसे व्यंग्कार की देन है. शेष, नीरज जाट का अनुरोध वांछनीय है कि फोटो में गाँव के मास्टरजी वाला रोबीला चेहरा बदलो. आदरणीय नेहा सिंघल जी से इतना तो डरकर नहीं रहते आप के मुस्काता हुआ फोटो भी न लगा सकें.
सुंदर लेख व अति सुन्दर चित्र.
धन्यवाद
आपके व्यंग्य पर टिपण्णी देने से नवीनता नहीं रहेगी सो उसे छोड़े दे रहा हूँ जी, बात सुलभ से करतें हैं | किस्सा यूँ है की श्री बिन्देश्वर पाठक जी ने मल ढोने वालों के लिए कुछ करने का सोचा और इस दिशा में काम करते हुए सुलभ का विकास हुआ | काफी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से पाठक साहब को नवाज़ा गया | जो लोग इस विषय पर और रूचि रखतें है , उनके लिए मेरे पास एक लिंक भी है | http://sulabhtoiletmuseum.org/ | अगर बड़े विचार (मल ढोने वाला ) को एक मिनट के लिए एक तरफ सरका भी दिया जाए, तो भी ये संस्था बहुत ही बढ़िया काम कर रही है | मात्र दो-चार रुपैया में ठीक ठाक सा साफ़ सुथरा शौचालय | मेरे ख्याल से भारत जैसे अभिव्यक्ति-प्रधान देश को इसकी बहुत ज़रुरत थी | कभी कभी सोचता हूँ के घुमक्कड़ पर एक सेवा शुरू की जाए जिसमे इस बात की जानकारी दे जाए की कहाँ कहाँ पर एक साफ़ सुथरा प्रसाधन है | मैंने तो नाम भी सोच लिया है, व्व्व.घुमक्कड़.कॉम/लीक-इन | आप अपने स्मार्ट फ़ोन से सही जगह से लीक-इन कर सकतें हैं और हमारे होनहार डाटाबेस में GPS के साथ उस जगह को जोड़ दिया जायेगा, कहीं भी गए, घुमक्कड़ महोदय से पुछा और नजदीकी, सुन्दर और सुशील सुलभ से आपकी भेंट पक्की | बाबाजी मिले तो समझो बोनस | पाठक जी से बात करके ऑनलाइन पेमेंट भी किया जा सकता है, घुमक्कड़ पर लेख लिख-कर कमेन्ट कमाएं और उसे अच्छे काम की और अर्पण करें | काफी हो गया, आगे बढतें हैं |
जाम की समस्या एक विकट समस्या है | लोगों में अगर ट्राफ्फिक नियमों के लिए कुछ श्रद्धा लानी है तो सब को मिल कर काम करना पड़ेगा बाकी मेरा विचार ये है ऐसी दिक्कतों को जायदा तवज्जों न दें, खासकर पयर्टन या घुमक्कड़ी के दौरान | अंग्रेजी में कहतें हैं की – It takes all kind of people to make this world. इग्नोर करे इग्नोर करें |
यूँ के तुम्हारी बातों में कब श्री नगर आ गया, पता ही नहीं चला | आदमी सहारनपुर के हो पर शरीफ दीखते हो | देखो, वैसे तो तुमसे आगे और लिखने की मेहनत करने को नहीं बोलना चाहिए पर घोडा घास से दोस्ती कर लेगा तो खायेगा क्या इसलिए जल्दी ही आगे की कहानी, मतलब शुद्ध निजी संस्मरण, लिखनी के दरख्वास्त कर देतें हैं | जय राम जी की | (साभार – सलीम जावेद)
प्रिय नन्दन,
सुलभ काम्प्लेक्स के बिंदेश्वर पाठक जी के बारे में रश्मि बंसल की पुस्तक “I have a dream” में विस्तार से पढ़ चुका हूं । उनके द्वारा किये गये अभूतपूर्व प्रयासों को पढ़ कर रोमांच हो आया ।
आपकी इग्नोर करने की बात से मैं सहमत नहीं हो पा रहा हूं! हम भारतीय “सब चलता है” मनोवृत्ति के चलते कहां से कहां आ गये हैं ! “कोउ भऊ नृपहिं हमें का हानि” मानसिकता के चलते हम वोट देने नहीं जाते। समाज सुधार मेरे अलावा हर किसी की जिम्मेदारी है। बस में, रेल में एक व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट पीता है, सौ लोग कसमसाते रहते हैं पर उस व्यक्ति को रोकने की पहल कौन करे !
सुलभ टोइलेट काम्प्लेक्स न्यू टूरिस्ट स्पोट जम्मू में
पहुंचे हुए बाबा से अपने करियर के बारे में मुफ्त सलाह . पड़ने में अगर मन न लगता हो तो
थप्पड़ मारने पुराने ज़माने की बात है आज कल चेंनेल वाले दस बीस थप्पड़ को पचास साठ दिखा कर इंस्पेक्टर को सस्पेंड करा देंगे
मनु जी की बातों में सभी आ जाते हैं अभी तक चालीस ब्लोक वाली श्रंखला सुरु नहीं की.
जम्मू तो कश्मीर रेलवे ट्रैक तथा पुल के फोटो नहीं लगे
कैमरा का कमाल अच्छा है
Sanjay Ji,
I have become a big fan of your writing style. Your special comments on wrong doings of the people on the roads which causes traffic jams and other problems and your suggestion to straighten them out tells a lot about your personality and outlook. I will not comment on your hilarity as by now every reader on ghumakkr knows about it. Thank you so much and I eagerly await the progress in the story.
Sanjay Ji बोले तो? अरे भट्ट साहब, ये कोई मैने महाभारत का आंखों देखा हाल थोड़ा ही सुनाया है जो आप ने मुझे संजय के उच्च सिंहासन पर ला बैठाया है ! पर, अगर ये कमेंट मेरे ही लिये है तो आपकी ज़र्रानवाज़ी के लिये हार्दिक शुक्रिया, उपकारम् !
My apologies; Sushant Ji… Yes this comment is defiantly for you…
rok nahi pa rahe hain hun dono apne aapko,shant atma ji ne thik hi kaha hai fatte ukhar diye aapne.baad me comment denge abhi to bas chala aapka aage ka bhag padhne
बहुत ही बढ़िया आँखों देखा हाल और फोटो. बहुत अच्छी सीरीज चल रही है.
Very funny.
Thanks for this post.
प्रिय मित्रों, आज बहुत लंबे अंतराल के बाद घुमक्कड़ पर आया चूंकि फेसबुक पर एक सज्जन मिल गये तो घुमक्कड़ डॉट कॉम का ज़िक्र आ गया! आप सब के कमेंट दोबारा पढ़े और अपनी काहिली पर क्रोध भी आया कि आप सब की भावनाओं का निरादर करते हुए मैं चुप चाप बैठ गया हूं और अपनी पोस्ट को आगे नहीं बढ़ा रहा हूं ! क्षमा याचना करते हुए आपसे वायदा करता हूं कि शीघ्र ही पुनः आपकी सेवा में उपस्थित हूंगा ! एक बार फिर, आपके प्यार और शुभेच्छाओं के लिये कृतज्ञता सहित,
आपका,
सुशान्त
I am waiting eagerly your 4th part on kashmir
waiting
rajiv