दिलà¥à¤²à¥€ हमारा शà¥à¤°à¥‚ से ही à¤à¤• मनपसंद शहर रहा है। उसकी à¤à¤• वजह à¤à¥€ रही है, दिलà¥à¤²à¥€ में मैं कई साल रहा à¤à¥€ हूà¤, तथा वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° के सिलसिले में मेरा लगातार दिलà¥à¤²à¥€ जाना à¤à¥€ होता हैं। बचà¥à¤šà¥‡ कहने लगे की पापा आप दिलà¥à¤²à¥€ हर हफà¥à¤¤à¥‡ जाते हो, अबके हमें à¤à¥€ लेकर के चलो, दिसमà¥à¤¬à¤° के आखरी हफà¥à¤¤à¥‡ में दिलà¥à¤²à¥€ का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® बना लिया, अचà¥à¤›à¤¾ ठंडा मौसम चल रहा था, धà¥à¤ª à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥€ खिल रही थी, इसी वजह से २६ दिसमà¥à¤¬à¤° को सà¥à¤¬à¤¹ ६ बजे हम लोग बोलेरो लेकर के निकल पड़े. नगर से निकलते ही जबरदसà¥à¤¤ कोहरे ने हमें घेर लिया।मैंने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° इरफ़ान से गाड़ी धीरे चलाने के लिठकहा, खतौली पार करते ही जबरदसà¥à¤¤ जाम लगा हà¥à¤† था,जाम के कारण गाड़ी बà¥à¤¢à¤¾à¤¨à¤¾ रोड से नहर की पटरी पर ले ली । बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कोहरा होने के कारण से कà¥à¤› à¤à¥€ दिखाई नहीं दे रहा था।गाड़ी धीमी रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° से चल रही थी। डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° कहने लगा की गाड़ी में डीजल नहीं हैं। मैंने कहा की सरधना नजदीक हैं वही पर à¤à¤°à¤µà¤¾ लेगे, आगे पूरे सरधना में कही à¤à¥€ डीजल नहीं मिला, वापिस नहर की पटरी से मेरठकी और आकर के डीजल मिल पाया। रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• बार गाड़ी नीचे नहर में गिरने से बची। खैर दिलà¥à¤²à¥€ पहà¥à¤à¤š कर राहत की सांस ली। चाचा जी के लड़के रवि के घर वैशाली पहà¥à¤‚चे, और वंहा से सà¤à¥€ लोग दिलà¥à¤²à¥€ की सैर को चल पड़े।
अब कà¥à¤› बात दिलà¥à¤²à¥€ के बारे में à¤à¥€ हो जाà¤, दिलà¥à¤²à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ नगरो में से à¤à¤• हैं, इसे सबसे पहले पांडवो ने बसाया था। à¤à¤—वानॠविशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ ने इसकी रचना की थी । उस समय इसका नाम इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ था। दिलà¥à¤²à¥€ बार बार बसती रही, उजडती रही है। इस पà¥à¤°à¤•ार दिलà¥à¤²à¥€ आज ५००० हज़ार साल बाद इस वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ हालत में है। आज à¤à¥€ दिलà¥à¤²à¥€ देश की सिरमौर हैं, राजधानी हैं । धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² व à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• समà¥à¤ªà¤¦à¤¾à¤¯à¥‡ पूरी दिलà¥à¤²à¥€ में इधर उधर बिखरी पड़ी है। यूठतो पूरी दिलà¥à¤²à¥€ घूमने के लिठकई दिन चाहिà¤à¥¤ पर हमारे पास केवल २ ही दिन थे, उसमें जो हम घूमे, फिरे उसी का वरà¥à¤£à¤¨ मैं कर रहा हूà¤à¥¤ सबसे पहले हम लोग लोटस टेमà¥à¤ªà¤² पर पहà¥à¤‚चे।Â
लोटस टेमà¥à¤ªà¤²
लोटस टेमà¥à¤ªà¤² (कमल मंदिर)
यह मंदिर पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में अपनी निरà¥à¤®à¤¾à¤£ व कलाकारी के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है।इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ बोहरा दाउदी समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगो ने कराया हैं। इस मंदिरमें बैठकर शानà¥à¤¤à¤¿ पूरà¥à¤µà¤• आप अपने अपने ईशà¥à¤µà¤° का नमन कर सकते हैं।मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ और चारो तरफ फैले बाग़ बगीचों, सरोवर का जवाबनहीं हैं। à¤à¤• बात देखने वाली होती हैं, मंदिर के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¥¤
बिटिया – राघव
छोटा डोन-मोटा डोन (रवि)
लोटस टेमà¥à¤ªà¤² के बाद सामने ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मां कालका देवी मंदिर पहà¥à¤‚चे वंहा पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ देख कर जान सूख गयी। कम से कम ५०० मीटर लमà¥à¤¬à¥€ लाइन थी। और ३ घंटे से पहले नंबर नहीं आना था, तो तय हà¥à¤† की पहले क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार चला जाà¤, शाम को आते हà¥à¤ माता के दरà¥à¤¶à¤¨ कर लेंगे।Â
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार (सूरà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤®à¥à¤) परिसरÂ
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार दिलà¥à¤²à¥€ के महरौली में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं। यह अलाउदà¥à¤¦à¥€à¤¨ खिलज़ी के कà¥à¤¤à¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ à¤à¤¬à¤• के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ बताया जाता हैं। यह कहा जाता है की यह à¤à¤• सूरà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ था। जिस पर खड़े होकर के गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ की गणनाठकी जाती थी। और यह à¤à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ इमारत थी। इस बात का पता यंहा की इमारतों को देख कर लगता हैं। हर इमारत चीख चीख कर अपना इतिहास बताती हैं।Â
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में जà¥à¤¯à¥‹à¤®à¤¿à¤¤à¥€ और हिनà¥à¤¦à¥‚ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कला पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ हà¥à¤ˆ है। इस तरह की बà¥à¤²à¤‚द इमारत बहà¥à¤¤ कम मिलती हैं. पहले इसमें अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दिया जाता था। परनà¥à¤¤à¥ à¤à¤• दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ के बाद इसमें अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ रोक दिया गया। मेरे याद आता हैं, जब में सà¥à¤•ूल में पढता था, तो à¤à¤• टूर में दिलà¥à¤²à¥€ आये थे, तब हम इसके पहली मंजिल तक गठथे, जिससे दूर दूर तक दिलà¥à¤²à¥€ का नज़ारा दिखता था।Â
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ का विहंगम विशाल नज़ारा
लौह सà¥à¤¤à¤‚à¤Â क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार के निकट (दिलà¥à¤²à¥€Â में) धातà¥Â विजà¥à¤žà¤¾à¤¨Â की à¤à¤• जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ है| यह कथित रूप से राजा चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯(राज ३à¥à¥«Â - ४१३) से निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया गया, किंतॠकà¥à¤› विशेषिजà¥à¤žà¥‹à¤‚ का मानना है कि इसके पहले निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया, संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ ९१२ ईपू में| सà¥à¤¤à¤‚ठकी उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ लगà¤à¤— सात मीटर है और पहले हिंदू व जैन मंदिर का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ था| तेरहवी सदी में कà¥à¤¤à¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ à¤à¤¬à¤• ने मंदिर को नषà¥à¤Ÿ करके क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की| लौह-सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ में लोहे की मातà¥à¤°à¤¾ करीब ९८% है और अà¤à¥€ तक जंग नहीं लगा है| (साà¤à¤¾à¤° : विकिपीडिया)
इस लोह सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ की à¤à¤• ख़ास बात हैं की आप इसे पूरी तरह से बांहों में नहीं à¤à¤° सकते हैं। कई हज़ार साल पहले इतनी उतà¥à¤¤à¤® लोह निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कला केवल à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लोगो के ही पास थी। इससे पता चलता हैं की हमारा विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ कितना उनà¥à¤¨à¤¤ था। इस सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ पर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥€ लिपि में कà¥à¤› लिखा हà¥à¤† हैं।Â
चनà¥à¤¦à¥à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ लोह सà¥à¤¤à¤®à¥à¤
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ परिसर का दृशà¥à¤¯
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ के ऊपर लिखी हà¥à¤ˆ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयते
टà¥à¤Ÿà¤¾ हà¥à¤† दरवाजा
कà¥à¤¯à¤¾ कलाकारी हैं
सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°
हिनà¥à¤¦à¥‚ शिलà¥à¤ª कला का à¤à¤• नमूना आप इन चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखिये ये किसी मंदिर के अंश नज़र आते हैं।
लोह सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ के चारो और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•
क़à¥à¤¤à¥à¤¬ परिसर में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ शिलालेख
यह शिलालेख समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ के बारे में बताता हैं। की कितना पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ राजा थे वो। और ये पूरा कैमà¥à¤ªà¤¸ उनà¥à¤¹à¥€ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया हà¥à¤† हैं|
कà¥à¤¤à¤¾à¤µà¥à¤µà¥à¤² इसà¥à¤²à¤¾à¤® मसà¥à¤œà¤¿à¤¦Â
इस मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ गà¥à¤²à¤¾à¤® वंश के पà¥à¤°à¤¥à¤® शासक कà¥à¤¤à¥à¤¬-उद-दीन à¤à¤¬à¤• ने 1192 में शà¥à¤°à¥ करवाया था। इस मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ को बनने में चार वरà¥à¤· का समय लगा। लेकिन बाद के शासकों ने à¤à¥€ इसका विसà¥à¤¤à¤¾à¤° किया। जैसे अलà¥à¤¤à¤®à¤¶ ने 1230 में और अलाउदà¥à¤¦à¥€à¤¨ खिलजी ने 1351 में इसमें कà¥à¤› और हिसà¥à¤¸à¥‡ जोड़े। यह मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ हिनà¥à¤¦à¥‚ और इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¿à¤• कला का अनूठा संगम है। à¤à¤• ओर इसकी छत और सà¥à¤¤à¤‚ठà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मंदिर शैली की याद दिलाते हैं, वहीं दूसरी ओर इसके बà¥à¤°à¥à¤œ इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¿à¤• शैली में बने हà¥à¤ हैं। मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में सिकंदर लोदी (1488-1517) के शासन काल में मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ के इमाम रहे इमाम जमीम का à¤à¤• छोटा-सा मकबरा à¤à¥€ है। कहा जाता हैं की इस का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 27 हिनà¥à¤¦à¥‚, जैन, मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से किया गया हैं। जिसका जिकà¥à¤° ऊपर शिलालेख में किया गया हैं। (साà¤à¤¾à¤° विकिपीडिया)
छत पर नकà¥à¤•ाशी
टूटे हà¥à¤ मंदिरों के अवशेष
इसे जरà¥à¤° पढ़े| इस शिलालेख में पूरी तरह से सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ लिखा हà¥à¤† हैं की इस परिसर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कैसे हà¥à¤† था।
अलाई मीनारÂ
यह मीनार दिलà¥à¤²à¥€Â के महरौली कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में कà¥à¤¤à¥à¤¬ परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£Â अलाउदà¥à¤¦à¥€à¤¨ खिलजी ने यह मीनार निरà¥à¤®à¤¾à¤£ योजना थी, जो कि क़à¥à¤¤à¥à¤¬ मीनार से दà¥à¤—à¥à¤¨à¥€ ऊंची बननी निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ की गयी थी, परंतॠइसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 24.5 मीटर पर पà¥à¤°à¤¥à¤® मंजिल पर ही आकसà¥à¤®à¤¿à¤• कारणों से रà¥à¤• गया।Â
अलाई मीनार
शिवानी बिटिया
और ये मैं
खैर पूरे परिसर को देखने में 2-3 घंटे लगते हैं, काफी बड़ा परिसर हैं, कितने ही फोटो खींचो कम हैं। यंहा से निकल कर हम छतरपà¥à¤° मंदिरों की और पहà¥à¤‚चे। उनका वरà¥à¤£à¤¨ में अगली पोसà¥à¤Ÿ में करूà¤à¤—ा. वंहा से गà¥à¤¡à¤—ाव अपने कजिन संदीप के यंहा पहà¥à¤à¤š कर पनीर के गà¥à¤¡à¤—ाव पकोड़ो का मज़ा लिया. उसके बाद कालका जी मंदिर की और चल पड़े.
सबसे आखिर में हम लोग माठकालका देवी मंदिर सिदà¥à¤§ पीठपंहà¥à¤šà¥‡. और माठकालका देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ किये . चूà¤à¤•ि यंहा पर फोटो खीचना मना हैं तो ये फोटो विकिपीडिया से लिया हैं। यह मंदिर पांडवो के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। और माठके दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठलोग दूर दूर से आते है। यंहा के बारे में à¤à¤• बात पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है की माठसे जो मà¥à¤°à¤¾à¤¦ मांगोगे वो पूरी होती हैं। यह देवी माठशकà¥à¤¤à¤¿ की सिदà¥à¤§ पीठहै। यंहा पर पहà¥à¤‚चना बहà¥à¤¤ आसान हैं। नेहरॠपà¥à¤²à¥‡à¤¸ और लोटस टेमà¥à¤ªà¤² के बिलकà¥à¤² पास हैं। और कालका देवी मेटà¥à¤°à¥‹ टरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤² से 5 मिनट की दूरी पर है।Â
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धन्यवाद प्रवीण जी , हमारी दिल्ली की इतनी सुंदर फोटो दिखाने के लिए .व कालका देवी की फोटो के लिए.
धन्यवाद सर्वेश जी..
very nice photo of क़ुतुब मीनार
धन्यवाद पंथी जी.
दिल्ली में पिछले साल अक्टूबर में इन जगहों पर जाना हुआ था। वो मंजर याद आ गया। बेहतरीन चित्र।
मनीष जी धन्यवाद बहुत बहुत ….
beautiful photos.nice write up.
धन्यवाद अशोक जी..
मनीष जी धन्यवाद
प्रवीण जी इतनी बार यह पोस्ट पढ़ कर मन नहीं भरा कई बार पढ़ने के बाद अभी लिखने बेठे हैं तो समझ से बहर है कि किस चीज की तारीफ से शुरू किया जाए. बहुत वडिया ढंग से आप ने वर्णन किया और फोटो तो कमाल के है . आप की पोस्ट घुमक्कड़.कॉम को नई उचाई पर ले गई है. अगली बार हमें पोस्ट छपवाने के लिए बहुत मेहनत करनी पढ़ेगी. क़ुतुब मीनार एक सूर्य स्तम्भ, जिस पर खड़े होकर के ग्रहों की गणनाए की जाती थी। कमाल है प्राचीन भारत के लोग, जिन्होंने ज्ञान के लिए सूर्य स्तम्भ, का निर्माण करवाया. इसीलिए भारत सोनेकी चिढ़िया कहलाता था और आज के भारतवासी जिन्होने सॉफ्टवेर बनाने में दुनिया में अपना डंका बजा के एक बार फिर भारत को सोने की चिढ़िया बनाने के करीब ले आये हैं. धन्यवाद
सराहना के लिए धन्यवाद शर्मा जी, आप का कहना सही हैं कि यदि हम भारतीय जात पात भूलकर कंधे से कंधा मिलकर चले तो भारत आज भी सोने कि चिड़िया बन सकता हैं, जरुरत हैं तो बस एक चंद्रगुप्त और एक चाणक्य कि..
वाह प्रवीणजी
बढ़िया फोटोस और विवरण . मुझे बहुत मजा आ गया . क़ुतुब मीनार का इतना बढ़िया फोटो मैंने मभी नहीं देखा था . बहुत सुंदर.
आपका विवरण भी आजकल बहुत बढ़िया होता जा रहा है . बस ऐसे ही आगे बढते रहिये प्रवीणजी.
अंत में माता के दर्शन करने के लिए धन्यवाद.आगे वाली पोस्ट का इन्तेज़ार .
विशाल जी बहुत बहुत धन्यवाद . आप भाई लोगो के समर्थन के साथ आगे बढते रहेगे, धन्यवाद पुनः .
विशाल जी बहुत बहुत धन्यवाद . आप भाई लोगो के समर्थन के साथ आगे बढते रहेगे, धन्यवाद पुनः , आगे वाली पोस्ट भी लाइन में लगी हैं.
दिल्ली में काफ़ी जगह घुमा हूँ , क़ुतुब मीनार ओर हुमायूँ टॉम्ब बहुत पसंद है| कालका मंदिर के आगे से में पिछले १४-१५ साल से जा रहा हूँ अपने ऑफीस जाने के लिए पर आज तक मंदिर के दर्शन नही किए हैं |
फोटो बहुत सुंदर हैं , लेख भी जॅकास है ..:-)
सराहना के लिए धन्यवाद महेश जी, माँ कालका के एक बार दर्शन तो करलो मेरे भाई, वो सब कुछ देने वाली हैं, जगद्जन्न्नी हैं…
प्रवीण जी,
दिल्ली की इन अतुलनीय, अकल्पनीय धरोहरों को बहुत ही सुन्दर शब्दों में और मनमोहक तस्वीरों के माध्यम से प्रस्तुत किया है आपने.
धन्यवाद.
धन्यवाद मुकेश जी.
प्रवीण जी,
जानकारी से परिपूर्ण लेख तथा उत्तम चित्रांकन. आपके लेखन में निरंतर निखार आ रहा है, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.
धन्यवाद.
कविता जी धन्यवाद …
प्रवीन जी….राम-राम….|
बहुत अच्छे से आपने ने दिल्ली के इन दर्शनीय स्थलों का वर्णन किया और हमें भी इन जगह की यात्रा कराई …..चित्र भी बहुत लाजबाब खिचे हैं जिसमें से कुतुबमीनार का पूरा फोटो बहुत अच्छा लगा |
हम भी कुतुबमीनार/महरौली एक बार घूम कर आ चुके हैं…..बहुत ही सुन्दर एतहासिक धरोहर हैं….| दिल्ली हमारी देश के राजधानी है इसके बारे में पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता हैं ….|
लिखते रहिये…………मिलते हैं अगले लेख में….|
धन्यवाद
रितेश जी राम राम, आपकी सराहना हमारे लिए उत्साह वर्धन हैं, धन्यवाद
मैं भी इन स्थलों पर घूम चूका हूँ फोटो देख याद ताजा हुई, बेहद ही सुन्दर फोटो है
थोड़ी सी कमी लगी की इसी पोस्ट में कालका मंदिर व् कमल मंदिर को भी सामिल कर लिया जबकि उनके बारे में एक पोस्ट अलग से होती तो आप उनके बारे में भी ज्यादा विस्तार से वर्णन कर पाते ?
संदीप जी राम राम, सराहना के लिए धन्यवाद, आपकी बात ठीक हैं, पर कालका जी मंदिर में अंदर के फोटो लेने नहीं देते हैं, इसीलिए
वंहा के फोटो नहीं ले पाया था. ओर कमल मंदिर में परिवार के फोटो ज्यादा थे, इसलिए ज्यादा नहीं डाले.
बढ़िया रहा प्रवीण जी | काफी कुछ घुमा दिया आपने | इन सभी स्थलों के खुलने बंद होने के समय के बारे में लिखने से थोडा और लाभ मिलेगा पाठकों को |
लोटस मंदिर के ऊपर एक पहले लिखा गए लेख का लिंक डाल रहा हूँ , इसमें काफी अच्छे और विस्तार से लिखा गया है, घुमक्कड़ों को शायद मज़ा आये |
https://www.ghumakkar.com/2008/04/11/baha’i-house-of-worship-–-the-lotus-temple/
अगली कड़ी के इंतज़ार में |
नंदन जी धन्यवाद, इन स्थलों के खुलने ओर बंद होने का टाइम मुझे मालुम नहीं था, इसलिए नहीं लिख पाया हूँ. कमल मंदिर की एक ओर पोस्ट के लिंक के लिए धन्यवाद..
प्रवीण जी, आपका यह लेखन बहुत पसंद आया. तस्वीरें लाजवाब है.
It is amazing that the incredibly beautiful creations of the ancient sculptors have withstood the ravages of time and humans so well and can be enjoyed by us over a millennium later.
नारायण जी धन्यवाद.
गुप्ता जी, पहली बात कि तुम्हारा मूं मैच नहीं कर रहा है।
और अब मेरी बात… कि घर की मुर्गी दाल बराबर। कुछ नहीं देखा दिल्ली में जबकि पिछले साढे तीन साल से लगातार दिल्ली में ही रह रहा हूं। … और दिल्ली के हर कोने में काम किया है। अक्षरधाम के सामने जब मेट्रो बन रही थी, तो रोजाना जाना होता था… इसी तरह लोटस मन्दिर, कालकाजी… कुछ नहीं देखा। अब तुम्हारा ही आसरा है कि दिल्ली देख लेंगे।
नीरज भाई, अपना प्रोफाइल फोटो में जल्द बदल दूँगा, उम्मीद हैं आपको अच्छा लगेगा, क्या करू मेरी सूरत ही ऐसी हैं. नीरज जी चिराग तले हमेशा अँधेरा होता हैं. पूरा हिन्दुस्तान आपने घूम लिया हैं, मेट्रो से समय निकाल कर दिल्ली भी घूम लिया करो…..
दिल्ली…नाम सुनकर ही पसीना आ रहा है…शायद आप दिल्ली से बाहर के है तभी दिल्ली की तारीफ कर रहे है..तारीफ करना बनता भी है क्योंकि आप सर्दियों में गये होंगे…पर गलती से भी ऐसी गर्मी जैसी अब पड़ रही है भूल के भी मत आ जाना…वर्ना घरवालो की खरी-खोटी सुननी पड़ेगी…
दोस्त में गुडगाँव का हूँ कसम से 46.6 डिग्री गर्मी पड़ रही है….एक में भी पसीने आ रहे है..
मेरे भाई शायद आपने ब्लॉग ठीक से पढ़ा नहीं हैं, मैं दिल्ली २५ दिसम्बर में गया था, मैं भी दिल्ली के नजदीक का ही हू, मुज़फ्फर्नगर से.
very nice post praveen ji…. all photos are very good….. n defenately i will be there in august……
Thankyou, Mr. Aman.