अकà¥à¤·à¤¯ तृतीया जा चà¥à¤•ी है। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में चार धाम यातà¥à¤°à¤¾ à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ हो चà¥à¤•ी है। मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ और शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को घूमने के लिये यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€, गंगोतà¥à¤°à¥€, केदारनाथ और बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जैसी जगहों के रासà¥à¤¤à¥‡ खà¥à¤² गये हैं। इन जगहों पर अब लोग-बाग आने-जाने शà¥à¤°à¥‚ हो गये हैं। जाहिर सी बात है कि सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¥€ मिलने लगी हैं।
दोनों तरफ सीधे खडे पहाड और बीच में बहती à¤à¤• पतली सी जलधारा वाली तेज बहाव यà¥à¤•à¥à¤¤ नदी
अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2010 में यानी उस समय चारधाम यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ होने से à¤à¤• महीने पहले मैं अकेला यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिये चला था। सही-सलामत पहà¥à¤‚च à¤à¥€ गया। लेकिन वहां सब-कà¥à¤› सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ पडा था। à¤à¤¸à¤¾ यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ आपने कà¤à¥€ नहीं देखा होगा। वहां की काली कमली धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। लेकिन वो à¤à¥€ बनà¥à¤¦ थी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कोई नहीं जाता वहां कपाट बनà¥à¤¦ रहने के दिनों में। उस रात मैं चौकीदार के यहां ठहरा था। वो सरकारी चौकीदार था, और बारहों मास यही रहता है। उसका परिवार नीचे बडकोट में रहता है। उन दिनों उसके साथ उसका लडका यशपाल और à¤à¤• नेपाली मजदूर रह रहे थे। मेरी इचà¥à¤›à¤¾ अगले दिन यमà¥à¤¨à¤¾ के उदगम सà¥à¤¥à¤² सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿ कà¥à¤£à¥à¤¡ तक जाने की थी। लेकिन बारिश ने सारे करे-कराये पर पानी फेर दिया। बारिश बनà¥à¤¦ होने पर हम चारों मन बहलाने के लिये यमà¥à¤¨à¤¾ के साथ-साथ ऊपर की दिशा में चल दिये। उस यातà¥à¤°à¤¾ का विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ विवरण आप पिछले à¤à¤¾à¤— में पढ चà¥à¤•े हो।
पतà¥à¤¥à¤° ही पतà¥à¤¥à¤°
à¤à¤• à¤à¤°à¤¨à¥‡ पर हम पहà¥à¤‚चे। यह यमà¥à¤¨à¤¾ का à¤à¤°à¤¨à¤¾ था। इसे मैंने तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€ नाम दिया था अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के हिसाब से। वहां चारों ओर विशाल गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° था। चौकीदार तो à¤à¤• टूटे पेड का तना लेकर वापस चला आया था। मेरी इचà¥à¤›à¤¾ थी कि जितना à¤à¥€ आगे हम जा सकते थे, जायें। कोई लकà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं था हमारा। चौकीदार का लडका यशपाल और नेपाली à¤à¥€ मेरे इस इरादे से बडे खà¥à¤¶ थे। वे कहने लगे कि यमà¥à¤¨à¤¾ के साथ साथ चलते हैं। और वे उस खतरनाक à¤à¤°à¤¨à¥‡ के ऊपर चढने à¤à¥€ लगे थे, लेकिन मैं नहीं चढ पाया। लाख कोशिश कर ली, कà¤à¥€ पैर फिसल जाते, कà¤à¥€ सहारा लेने के लिये हाथ में पकडी घास उखड जाती। आखिरकार यह यमराज की बहन है, इसलिये यमà¥à¤¨à¤¾ के साथ जाना सà¥à¤¥à¤—ित कर दिया।
सामने और पीछे यह दृशà¥à¤¯ आम था।
यहीं पर यमà¥à¤¨à¤¾ में à¤à¤• और नदी आकर मिलती है। हम इसके साथ-साथ चल पडे। इस नदी के रासà¥à¤¤à¥‡ में गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° नहीं था, केवल बेतरतीब पतà¥à¤¥à¤° थे। हमने उस नदी की विपरीत दिशा में जाना तय किया। मकसद तो था नहीं, ना ही यहां कोई पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है कि वहां तक चले जाओ। सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ जाना था, नहीं जा पाये तो वहां की हà¥à¤¡à¤• यहां मिटा रहे थे। पूरा दिन हाथ में था ही।
पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के बीच से निकलती नदी। इन पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर चढना à¤à¥€ कà¤à¥€-कà¤à¥€ बेहद मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो जाता है। पूरे रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° चढाई जारी रही।
वो मेरी पहली टà¥à¤°à¥‡à¤•िंग थी। पहली बार समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पार की थी। पहली बार इतने बडे-बडे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को लांघता हà¥à¤† चल रहा था। जिनà¥à¤¦à¤—ी में यह सब पहली बार देख रहा था मैं। मà¥à¤à¥‡ इन सब चीजों और बातों का कोई आइडिया नहीं था।
यमà¥à¤¨à¤¾ नदी छोडते ही गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° à¤à¥€ छूट गया। इस नदी में गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° नहीं था। इसका कारण पता नहीं चल पाया मà¥à¤à¥‡à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ हो सकता है कि यमà¥à¤¨à¤¾ के जितने हिसà¥à¤¸à¥‡ में गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° था, वहां दोनों तरफ सीधे दीवार की तरह खडे पहाड थे। लेकिन यहां à¤à¤¸à¥€ दीवार नहीं थी। हवा का निरà¥à¤¬à¤¾à¤§ आना-जाना था, इसलिये सारी बरफ को हवा उडा ले गई। जबकि यमà¥à¤¨à¤¾ की उस ‘पाताल-घाटी’ में हवा का आना-जाना उतना आसान नहीं था।
नेपाली मजदूर की जैकेट पहने उस दिन यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ का à¤à¤•मातà¥à¤° घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड
यह है वही नेपाली
नेपाली
चलते चलते à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मैं डर गया। ठीक नीचे नदी बेहद तेज वेग से बह रही है। यह वो जगह है जहां मà¥à¤à¥‡ जिनà¥à¤¦à¤—ी में पहली बार चढने से डर लगा। चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ सà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¥€ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ की बनी थी। हाथ और पैर का दबाव पडते ही सà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ बिखर जाती थी इसलिये सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ पकड नहीं बन पा रही थी। ऊंचाई की वजह से ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ की कमी के कारण दिमाग में गडबड पहले से ही हो रही थी, अब तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ मन में आ गया कि नहीं चढ पाऊंगा यहां, वापस चलो। लेकिन उन दोनों का जीवट देखकर हौंसला बढा। और आगे तक गये। हम कोई पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ परà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¥€ तो हैं नहीं, ना ही हमारे पास समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर चलने के लिये उपकरण थे। जरा सी लापरवाही का मतलब था कि सब कà¥à¤› खतम। आगे जाने वाले को à¤à¥€ पता नहीं चलता कि पीछे वाला कहां गà¥à¤® हो गया। फिर à¤à¥€ चलते रहे।
पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लगती थी तो यही पानी पी लेते थे। जितनी ठणà¥à¤¡à¥€ हमारे यहां बरफ होती है, यह पानी उससे à¤à¥€ ठणà¥à¤¡à¤¾ लगता है।
इसे कहते हैं जीवटता।
कम से कम दो-ढाई घणà¥à¤Ÿà¥‡ चलने के बाद फिर गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° आ गया। इरादा था कि जहां तक जा सकेंगे, जायेंगे। यहां तक हवा तेजी पकडने लगी थी। काफी खà¥à¤²à¥€ जगह थी। तेज हवा कानों को काटे जा रही थी। पछता रहा था कि कोई टोपा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं लाया। ये तो अचà¥à¤›à¤¾ हà¥à¤† कि जैकेट डाल ली थी, नहीं तो…
बरफ बढने लगी तो वापस चलना ही पडा। यहां पहाडों में वो तीखापन नहीं था, जो थोडी देर पहले नीचे था। यानी हम चोटी के कहीं नजदीक हैं। हवा, तापमान, बरफ; और à¤à¥€ कई चीजों को देखते हà¥à¤ वापस मà¥à¤¡à¤¨à¤¾ पडा। आज जब मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¥€ जमीनी हकीकतों का कà¥à¤› कà¥à¤› अंदाजा हो गया है, तो सोचता हूं कि हम किसी दरà¥à¤°à¥‡ के आसपास ही थे। à¤à¤²à¥‡ ही फोटो देखकर लगता हो कि आसानी से थोडी बहà¥à¤¤ कोशिश करके चोटी तक पहà¥à¤‚च सकते थे लेकिन दरà¥à¤°à¤¾ मतलब बरफ का विशाल à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥¤
फिर गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° आ गया।
आखिरकार वापस चलना ही पडा।
चलो à¤à¤¾à¤ˆ, फोटो वोटो खींच लो। वापस चलते हैं।
वापस चल पडे।
जिस रासà¥à¤¤à¥‡ से आये थे, उसी रासà¥à¤¤à¥‡ से चल दिये। तेज बहती नदी को कई बार पार à¤à¥€ करना पडा। काई ना होने की वजह से पानी में डूबे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर चिकनाहट नहीं है, इसलिये कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो पानी में डूबे पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ पैर रखकर नदी पार करनी पडी। पानी पैरों को छूता था तो पैरों का सà¥à¤¨à¥à¤¨ हो जाना तय था लेकिन जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤› नहीं हà¥à¤†à¥¤ खतरा तो है ही लेकिन रोमांच à¤à¥€ कोई चीज होती है।
जब हम ऊपर जा रहे थे तो हमारे दाहिनी तरफ à¤à¤• बहà¥à¤¤ ऊंचा à¤à¤°à¤¨à¤¾ था। इतना ऊंचा कि उसका पानी नीचे जमीन पर गिरता हà¥à¤† दिख à¤à¥€ नहीं रहा था। हम वापसी में उसके नीचे तक गये। पानी जमीन से ऊपर ही महीन बूंदों में बंट जाता था जिसके कारण नीचे à¤à¤°à¤¨à¥‡ के आसपास के काफी बडे à¤à¤¾à¤— में आंशिक दलदल सी हो गयी थी। और हम à¤à¥€à¤— à¤à¥€ गये थे।
à¤à¤• à¤à¤°à¤¨à¤¾ à¤à¥€ था रासà¥à¤¤à¥‡ में, यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ से कम से कम चार किलोमीटर ऊपर। यह यमà¥à¤¨à¤¾ नदी नहीं है, ये बात मैं पहले à¤à¥€ बता चà¥à¤•ा हूं। खडे पहाडों के बीच से इस तरह के à¤à¤°à¤¨à¥‡ इस इलाके में आम हैं।
कà¥à¤› नीचे आकर वापस देखा तो पता चला कि हम वहां से वापस आये हैं, उस गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° से। इस चितà¥à¤° को अब à¤à¥€ देखता हूं तो शरीर में à¤à¥à¤°à¤à¥à¤°à¥€ सी होती है कि मैं वहां तक पहà¥à¤‚च गया था।
चौकीदार पà¥à¤¤à¥à¤° यशपाल रावत
वादियां मेरा दामन
वापसी में यशपाल को à¤à¤• सूखी खाल मिली। बोला कि यह कसà¥à¤¤à¥‚री मृग की मृत देह है। महीनों पहले मरा होगा। अब तो इसमें से दà¥à¤°à¥à¤—नà¥à¤§ à¤à¥€ नहीं आ रही थी। बताते हैं कि इस इलाके में कसà¥à¤¤à¥‚री मृग की à¤à¤°à¤®à¤¾à¤° है। खाल को हमने यही छोड दिया।
यशपाल को मिली कसà¥à¤¤à¥‚री मृग की खाल।
फिर से वापस
à¤à¤• बार फिर बरफ पर। नीचे यमà¥à¤¨à¤¾ बह रही है, बरफ के नीचे।
चल चला चल राही, चल चला चल राही
पà¥à¤¨à¤ƒ उसी यमà¥à¤¨à¤¾ वाले गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° पर जो आपने पिछली पोसà¥à¤Ÿ में à¤à¥€ देखा था। दोनों ने à¤à¤• à¤à¤• तना उठाया और चल दिये। रात को मैं फिर से उस चौकीदार के यहीं रà¥à¤•ा।
अगले दिन सवेरे ही मैंने यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ छोड दिया। मैंने उनसे वादा किया कि छह महीने बाद यानी अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2010 में जरूर आऊंगा, लेकिन वो दिन और आज का दिन, कà¤à¥€ उधर जाना नहीं हà¥à¤†à¥¤
ये रहे तीनों। बायें चौकीदार का लडका यशपाल, बीच में नेपाली मजदूर, और दायें है चौकीदार। दोनों के नाम तो पूछे थे, लेकिन अब à¤à¥‚ल गया हूं। इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ वादा किया है कि सितमà¥à¤¬à¤°-अकà¥à¤Ÿà¥‚बर में आओ, तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ सपà¥à¤¤à¤‹à¤·à¤¿à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ घà¥à¤®à¤¾à¤•र लायेंगे।
यमà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ के अनà¥à¤¤à¤¿à¤® दरà¥à¤¶à¤¨à¥¤
धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦, आपके पà¥à¤¨à¤ƒ आगमन की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ में। करते रहो à¤à¤ˆ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾, आऊंगा जरूर।
बहुत हिम्मत है भाई तुम्हारे में.. फिर भी ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहिये… प्रकृति के साथ पंगा कभी-2 बहुत महंगा भी पड़ जाता है.. अच्छा है कि तुमने खतरा मोल नही लिया.. तुम्हारी घुमक्कड़ी को सलाम
पर अभी भी जमी हुई बर्फ को ग्लेशियर लिखे जा रहे हो… लैक्चर दूं जैसा तुम दूसरों की गलतियों पर देते हो ??? LOL
As per Wikipedia :
glacier (UK /ˈɡlæsiə/ glass-ee-ər or US /ˈɡleɪʃər/ glay-shər) is a large persistent body of ice that forms where the accumulation of snow exceeds its ablation (melting and sublimation) over many years, often centuries. At least 0.1 km² in area and 50 m thick, but often much larger, a glacier slowly deforms and flows due to stresses induced by its weight. Crevasses, seracs, and other distinguishing features of a glacier are due to its flow. Another consequence of glacier flow is the transport of rock and debris abraded from its substrate and resultant landforms like cirques and moraines. Glaciers form on land, often elevated, and are distinct from the much thinner sea ice and lake ice that form on the surface of bodies of water.
The word glacier comes from French. It is derived from the Vulgar Latin glacia and ultimately from Latin glacies meaning ice.[1] The processes and features caused by glaciers and related to them are referred to as glacial. The process of glacier establishment, growth and flow is called glaciation. The corresponding area of study is called glaciology. Glaciers are important components of the global cryosphere.
On Earth, 99% of glacial ice is contained within vast ice sheets in the polar regions, but glaciers may be found in mountain ranges of every continent except Australia, and on a few high-latitude oceanic islands. Between 35°N and 35°S, glaciers occur only in the Himalayas, Andes, a few high mountains in East Africa, Mexico, New Guinea and on Zard Kuh in Iran
nice post
सुंदर
साइलेंट जी यह भाई साहब अभी विवाहित नहीं हैं अतः ज्यादा चिंता नहीं करते . केदारनाथ जी एक मास पहले ही जब पूरा बरफ से ढका था उस पर झंडा फहरा आये थे .
जोशीले काफी हैं लेकिन बहुत समझदार भी हैं
अमिताभ , राजेश खन्ना की तरह बाहर से ही भगवन के दर्शन करते हैं.
Hi Neeraj,
Interesting adventure trip. Thanks for sharing.
adventure is meant for younger guys like you,keep moving and keep writing,photographs could have been better.They seem a little dull.
नीरज ……
यमुनोत्री के बारे में हमेशा ही जानने की रूचि थी मेरी. यमुना हमेशा गंगा के होते नजरंदाज़ हो जाती है ……… लेकिन इस लेख में तो यमुना ने अपने सारे रहस्य खोल ही डाले आपके निर्देशन में …… आपने पाट खुलने से पहले जाकर सही किया ……… भीड़ भड़के से तो बच गए
यह जान कर अच्छा लगा की ये आपकी पहली चढ़ाई है ३००० + मीटर की ऊंचाई पर ………. आपका साहस हमेशा की तरह अदम्य है ……… आपका उत्साह आपके चेहरे पर साफ़ झलक रहा है ……. इसलिए आपकी तस्वीरे काफी सुन्दर आई है ………
बहुत मज़ा आया पढ़ के ……. चल भाई आगे भी रोचक किस्से सुनते रहना
शुभ रात्रि
एक और रोमांच से भरी बेहतरीन पोस्ट नीरज जी . मजा आ गया. ४००० मीटर वह क्या नम्बर है .आप तो काफी ऊपर तक जा आये. यह नम्बर तो दुनिया में काफी कम लोगो ने हासिल किया होगा…………..
दूसरी बात आपको ठण्ड नहीं लग रही थी. एक ही पतला जेकेट पेहेन के रखा हुआ है.?????
बहुत सुंदर, बहुत मज़ा आया पढ़ के!
तस्वीरे काफी सुन्दर है! आपके साहस और घुमक्कड़ी को सलाम!
neeraj ji very nice post, but very risky. pls care.
Neeraj Bhai…Maza aa gaya aapka post pad kar aur photo dekha kar…Mai Silent Soul ji ki baat se bilkul sehmat hoon ki prakarti ke saath kabhi panga nahi lena chahiye…aapne samjhdari ka kaam kiya jo experienced mountaineering guide saath na hone ki wajah se aur aage nahi badhe, yeh bhaut khatarnaak bhi ho sakta tha. Off season me pahadon me nami hone ke karan bhoo skhalan ka bhut adhik khatra hota hai. Kabhi Kabhi apne andar ke ghumakkari wale kide ko na chate hue bhi marna padta hai…Agar aitraz na ho to apni aagli off season high altitude uttarakhand yaatra se pehle mujhe jaroor bataiyega..ho sakega to mai bhi jaroor chalonga… Ho sakta hai mai aapki jagah decide karne me madad kar paon… Ek baat aur…ho sake to ek achacha camera khareed lijiye…is se aapke posts me char chaand lag jayenge….
भाई नीरज बहुत बढ़िया,
कई बार बहुत मन करता है मनमानी करने का, लेकिन एक उम्र के बाद दिमाग करने नहीं देता, यही समय है जी डालो जिंदगी …
हाँ अगर बहुत किस्मतवाले हुए तो शायद अर्धांगिनी भी ऐसी ही मिल जाए जो यहाँ भी साथ दे सके…
वैसे घुमक्कड़ पे ऐसे खुश्मिस्मत लोग मौजूद हैं….
बहुत अच्छे नीरज जी…….आपकी यमनोत्री की रोमांचक ट्रेकिंग लेख के रूप पढ़कर का बहुत अच्छा लगा …..|अंजान स्थान पर यात्रा करना भी एक बहादुरी का काम हैं |
very very nice post……
Thanks
Ritesh.Gupta
रोचक सीरीज़ है। आश्चर्य हुअ यमुना के ऊपर बर्फ़ देखकर। तापमान क्या रहा होगा वहाँ उस वक्त?
hi neeraj I just want to say woh janat hai daer bahut hi beautiful tha next time mujhe bhi jana hai plz jane se pahle mujhe mail send kar dena .thanks for sharing
HI NEERAJ JI MAI YAMUNOTRI JAKAR YOG SADHNA KARUNGA…..THANKS DIKHANE KE LIYE