अà¤à¥€ तक आपने पढ़ा होगा कि कैसे मैं अपनी जिद में संजय गाà¤à¤§à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¦à¤° लगà¤à¤— ८-९ किलोमीटर की पदयातà¥à¤°à¤¾ के दौरान वहाठसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ को देखता हà¥à¤ कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾ के सामने तक आ गया था. अब आगे कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†, वह पढ़िà¤. “कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾â€ दूर से ही नज़र आने लगी. ऊà¤à¤šà¥‡ पहाड़ पर बने गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को देख कर पैर शिथिल हो चले. à¤à¤• समय तो लगा कि अब पदयातà¥à¤°à¤¾ की जिद छोड़ दें. पर वैसा नहीं किया. सीढियां चढ़ के ऊपर गया, जहाठटिकट खिड़की पर कई विदेशी नागरिक खड़े हो टिकट ले रहे थे. उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देख कर फिर उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ आ गया. जब वे दà¥à¤¸à¤°à¥‡ देश से आ कर कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾ देख सकते हैं तो मैं वहां पहà¥à¤à¤š कर बिना देखे कैसा लौट सकता हूà¤. आरà¥à¤•िओलोजिकल सरà¥à¤µà¥‡ ऑफ़ इंडिया दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ इस सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• के लिठ५ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का टिकट था.

टिकट-खिड़की
अब थोड़ा कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का इतिहास लिख देता हूà¤. यह गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ बौदà¥à¤§-काल की हैं. इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को धीरे-धीरे कई सदियों में बनाया-बसाया गया था. करीब २०० ईसापूरà¥à¤µ से ११०० ईसà¥à¤µà¥€ तक ये बनतीं और बौदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आवासित रहीं. यहाठबौदà¥à¤§-धरà¥à¤® से संबधित मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤, चैतà¥à¤¯ और विहार मà¥à¤–à¥à¤¯ हैं. यहाठ१०० से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ हैं और हाल में ही ॠनठगà¥à¤«à¤¾à¤“ं का पता चला है. यहाठकी गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में à¤à¤• सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤£à¥à¤¡à¤°à¥à¤¡ डिजाईन का पालन किया गया है, जिसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गà¥à¤«à¤¾ में à¤à¤• गरà¥à¤-गृह, à¤à¤• बाहरी बरामदा जिसके दोनों किनारे पर बैठने का चबूतरा, पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• गà¥à¤«à¤¾ के सामने जमीन के अनà¥à¤¦à¤° बने जल-कà¥à¤£à¥à¤¡ और बरामदा में चढ़ने के लिठसीढियां समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ थीं. इसे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° का सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• घोषित किया जा चà¥à¤•ा है.

टिकट

कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का इतिहास
१०० गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ देखना तो लगà¤à¤— असंà¤à¤µ-सा लगा. सोचा कि कà¥à¤› मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को देख कर लौट चलूà¤. अब मैं चकराया. कैसे पता करूठकि मà¥à¤–à¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ कौन-सी हैं, कहाठपर हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कैसे पहचाना जा सकता है और उनमें देखने की कà¥à¤¯à¤¾ खासियत है? टिकट काउंटर पर कोई बà¥à¤•लेट à¤à¥€ मौजूद नहीं था. तिस पर वहाठमà¥à¤à¥‡ उस समय कोई गाइड à¤à¥€ नहीं दिखा. कà¥à¤› सूचना à¤à¤• शिला-लेख पर अंकित थी और बाद में गà¥à¤«à¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ तीन पर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दरबान ने मà¥à¤à¥‡ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के बारे में कई बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ जानकारियां दीं. इतिहासकार या पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ तो मैं नहीं हूà¤. इसीलिठअब इस लेख में आगे कà¥à¤› गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का मà¥à¤–à¥à¤¯ दृशà¥à¤¯ वरà¥à¤£à¤¨ करता हूà¤. दूसरी गà¥à¤«à¤¾ à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ को काट कर बनी थी. इसके आधे à¤à¤¾à¤— में चैतà¥à¤¯ और आधे à¤à¤¾à¤— में विहार की अनà¥à¤à¥‚ति होती थी. इस गà¥à¤«à¤¾ का आकार ही सबसे आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करता है, जो बड़े चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ को अंडाकार काट कर बना था. इसके अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤¥à¤² था और बà¥à¤¦à¥à¤§ की कई मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. बस आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता था कि कैसे इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को काटते होंगे.

दà¥à¤¸à¤°à¥‡ नंबर की गà¥à¤«à¤¾ से बाहर का दृशà¥à¤¯

बाहर से दूसरी गà¥à¤«à¤¾ का दृशà¥à¤¯
तीसरे नंबर की गà¥à¤«à¤¾ को बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ दरà¥à¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है. गà¥à¤«à¤¾ में जाने के लिठसीढियां बनीं थीं. सीढियां जिस बरामदे में खà¥à¤²à¤¤à¥€ थीं, उसमें à¤à¤• समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अशोक का सिंह सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ था. गà¥à¤«à¤¾ के बाहरी à¤à¤¾à¤— में कई मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थीं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उस समय के दानवीरों की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ कहा जाता है. इसी बाहरी à¤à¤¾à¤— के दोनों किनारे पर बà¥à¤¦à¥à¤§ की दो विशाल मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थीं. लोकोकà¥à¤¤à¤¿ है कि à¤à¤• मूरà¥à¤¤à¤¿ बà¥à¤¦à¥à¤§ की शांत है तो दूसरी दणà¥à¤¡ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली. इसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के बाद उस गà¥à¤«à¤¾ के अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने पर à¤à¤• चौकोर खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ हॉल मिलता है, जिसे चैतà¥à¤¯à¤—ृह कहा जाता है. इसके à¤à¤• छोर पर करीब ॠमीटर ऊà¤à¤šà¤¾ à¤à¤• सà¥à¤¤à¥‚प बना है. परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करने के लिठगलियारा à¤à¥€ बना है. यहाठकी मà¥à¤–à¥à¤¯ बात इस हॉल की धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ है. हलके-से-हलके सà¥à¤µà¤° में बोला जाने वाला शबà¥à¤¦ यहाठपूरे हॉल में गूà¤à¤œ जाता है. दूसरी मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ के उपरी à¤à¤¾à¤— में खà¥à¤¦à¥€ हà¥à¤ˆ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थीं, जो à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ के जीवन-चरित की कहानियों को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¥€ थीं. तीसरी मà¥à¤–à¥à¤¯ बात यहाठकी पà¥à¤°à¤•ाश-पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ है जो खिड़कियों से छन कर चैतà¥à¤¯ गृह को पà¥à¤°à¤•ाशित कर देती थीं.

तीसरी गà¥à¤«à¤¾ का बाहर से दृशà¥à¤¯

तीसरी गà¥à¤«à¤¾ के बने दानवीरों की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤

तीसरी गà¥à¤«à¤¾ का चैतà¥à¤¯ और सà¥à¤¤à¥‚प
तीसरे नंबर की गà¥à¤«à¤¾ से निकल कर दाईं ओर चलने पर à¤à¤• सूखी नदी मिली. इस नदी के दोनों किनारे पर पहाड़ों में कई गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ बनी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में से à¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ लगी. उसकी बनावट उस समय की ककà¥à¤·à¤¾ के जैसी थी, जिसमें बौदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं को शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया जाता होगा. इसमें जमीन पर पहाड़ को काट कर लमà¥à¤¬à¥‡-लमà¥à¤¬à¥‡ टेबल बनाये गठथे. जिसमें ततà¥à¤•ालीन पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ों या à¤à¥‹à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को रख कर विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ पढाई करते होंगे. इस गà¥à¤«à¤¾ में à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ाश-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ उनà¥à¤¨à¤¤ थी. उसी गà¥à¤«à¤¾ के अनà¥à¤¦à¤° कई कमरे à¤à¥€ बने हà¥à¤ थे, जिनसे à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता था कि संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾-काल में वहीठनिवास à¤à¥€ करते हों.

गà¥à¤«à¤¾ में बनी ककà¥à¤·à¤¾
शिकà¥à¤·à¤¾ ककà¥à¤· से निकल कर आगे जाने से गà¥à¤«à¤¾à¤à¤-ही-गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ नज़र आती थीं. वहीठà¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ के सामने जमीन पर कà¥à¤› गडà¥à¤¢à¥‡ बने दिखे. यह कà¥à¤› साधारण गडà¥à¤¢à¥‡ नहीं थे. पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ काल में जब पà¥à¤°à¤•ाश के लिठसूरज और चाà¤à¤¦ की रौशनी ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उपयोग में आते थे, उस समय इन गडà¥à¤¢à¥‹à¤‚ का उपयोग होता था. उस दरबान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कही लोकोकà¥à¤¤à¤¿ है कि इनमें जल à¤à¤° कर उस जल से परवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ किरणों से पà¥à¤°à¤•ाश का काम लिया जाता था. पर à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ हो सकता है कि उनमें आग लगा कर, जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤“ं की रौशनी में कारà¥à¤¯ किया जाता हो. जल-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤‚ बहà¥à¤¤ विकसित लगता था. गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के सामने जमीन के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• ककà¥à¤· बना रहता था, जिसमें वरà¥à¤·à¤¾ का जल सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ किया जाता था. सालों à¤à¤° की कà¥à¤¯à¤¾ कहें, उन जल-ककà¥à¤·à¥‹à¤‚ में आज à¤à¥€ जल à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ थे. शायद ही कोई जल-ककà¥à¤· सूखा हो. पता नहीं कितने वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से यह संरचना खड़ी है. à¤à¤¾à¤ˆ मान गठउन वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों को जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जल-सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ आज से सदियों पहले कर दी हो.

पà¥à¤°à¤•ाश-हेतॠवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾

जल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾
कई गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में घूमता हà¥à¤†, मैं जा पहà¥à¤‚चा पहाड़ की चोटी के पास जहाठऊपर जाने के लिठपहाड़ में ही सीढियां कटी हà¥à¤ˆà¤‚ थीं. उस समय तक काफी गरà¥à¤®à¥€ à¤à¥€ हो गयी थी. जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग इस चोटी के नीचे वाली गà¥à¤«à¤¾à¤“ं को देख कर ही लौट जाते थे. पर मैं उन लोगों में था, जो चोटी पर चढ़ना चाहते थे. सीढियां बहà¥à¤¤ दूर तक जातीं हैं और थकान पैदा करतीं हैं. पर इन सीढ़ियों से आप उन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं तक पहà¥à¤à¤š जाते है, जिनका नंबर १०० के पास है. यहाठकई गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ हैं. à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि कोई कॉलोनी बसी हà¥à¤ˆ हो. हर गà¥à¤«à¤¾ की अपनी सीढ़ी, अपना बरामदा, अपना गरà¥à¤-गृह और अपनी जल-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾.

हाड़ पर कटी सीढियां

गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का à¤à¤• दृशà¥à¤¯
किसी-किसी गà¥à¤«à¤¾ में तो कोई मूरà¥à¤¤à¤¿ नहीं थी, पर किसी-किसी गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में बà¥à¤¦à¥à¤§-धरà¥à¤® से जà¥à¤¡à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अनमोल खज़ाना था. सबसे अंतिम गà¥à¤«à¤¾ के गरà¥à¤-गृह में à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ की आदमकद बैठी हà¥à¤ˆ मूरà¥à¤¤à¤¿ थी, जो उस वीरान में बड़ी सशकà¥à¤¤ और डरावनी लगती थी. परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ की शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से कारण मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में कालांतर में काफ़ी हानि हà¥à¤ˆ है. उनमें छिदà¥à¤° बन गà¤à¤ हैं.

अंतिम गà¥à¤«à¤¾ की बà¥à¤¦à¥à¤§ मूरà¥à¤¤à¤¿

अनà¥à¤¯ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• दृशà¥à¤¯
पर à¤à¤• बात थी. कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ पहाड़ का वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बिलकà¥à¤² वीरान था. इतना वीरान कि गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤¦à¤° अकेले जाने में à¤à¤¸à¤¾ महसूस हो कि कोई वहां पहले से मौजूद है, जो आपको निरंतर देख रहा है. उस वीरानी में मन में कई ख़याल आते हैं. जैसे कि कà¥à¤¯à¤¾ वहां जाने वाले का कोई समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ काल में उस गà¥à¤«à¤¾ से था और उसी समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ के सहारे वह इस जीवन में à¤à¥€ वहां लौट कर आया हो? उस अंतिम गà¥à¤«à¤¾ में बैठकर मैंने अपनी à¤à¤• कविता का पà¥à¤°à¤¥à¤® अनà¥à¤¤à¤°à¤¾ लिखा. इस कविता के दूसरे अंतरे बाद में मà¥à¤‚बई के अनà¥à¤¯ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं की यातà¥à¤°à¤¾ में पूरà¥à¤£ हà¥à¤.
“पता नहीं कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता रहता हूठमैं
चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से घिरी इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में।
कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता हूठवे रà¥à¤ªà¤¹à¤²à¥‡ रहसà¥à¤¯ जो
अदृशà¥à¤¯ के परà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से à¤à¤²à¤•ते हैं?
या ढूंढता हूठवो अगमà¥à¤¯ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ जो
कदाचितॠमेरे पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ से जा जà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¥‡ हैं?
कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता हूठफà¥à¤°à¥à¤¸à¤¤ के दो कà¥à¤·à¤£ जो
इनकी शांत नीरवता में ही मिलते हैं
पता नहीं कà¥à¤¯à¤¾ ढूंढता रहता हूठमैं
चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से घिरी इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं मेंâ€à¥¤

शिला-लेख
अंतिम गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में से à¤à¤• में कà¥à¤› शिला-लेख à¤à¥€ थे. शिला-लेख पढना तो मेरे लिठअसंà¤à¤µ था. पर मà¥à¤à¥‡ उस दरबान की बात याद अ गयी जिसने कहा था कि उस शिला-लेख में उन वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के नाम थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤«à¤¾ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया था. और निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ अपने देश को जाने के पहले उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने नाम वहां मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ कर दिà¤. अब कà¥à¤¯à¤¾ सचाई है, यह तो कोई पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ हो बता सकता है. पर उस चोटी से संजय गाà¤à¤§à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ का दृशà¥à¤¯ à¤à¥€ बड़ा मनोहारी दीखता था, जिसके दूर छोर पर मà¥à¤‚बई शहर की अटà¥à¤Ÿà¤¾à¤²à¤¿à¤•ाà¤à¤‚ à¤à¥€ दिखती थीं. वहां मैं काफ़ी देर तक बैठा और अपनी थकान बितायी. फिर लौटने का समय हà¥à¤†. चोटी से उतरना बड़ा आसान था. पर उतरते समय à¤à¤¸à¥€ अनà¥à¤à¥‚ति होती थी कि मानों चोटी पर बनी गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ उस समय वहां के सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठहों और नीचे की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ तथा अनà¥à¤¯ आगंतà¥à¤•ों के लिठबनीं हों.
धीरे-धीरे मैं उस परिसर के बाहर आ गया. अब मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ जोरों की à¤à¥‚ख और पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लगने लगी. मà¥à¤‚बई में पसीना à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होता है. अतः शरीर में जल की कमी महसूस होने लगी. खैर, परिसर के बाहर à¤à¤• खाने-पीने की दà¥à¤•र à¤à¥€ थी, जिसमें आमतौर पर कोलà¥à¤¡-डà¥à¤°à¤¿à¤‚क, चाय, बड़ा-पाव, समोसा, पेटिस, मिसाल-पाव इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ मिल रहे थे. कà¥à¤› खा कर, चाय पीने के बाद मैं अपनी लौटती पदयातà¥à¤°à¤¾ पर चल पड़ा.

खाने-पीने की दà¥à¤•ान
सूरज सर पर चढ़ चà¥à¤•ा था. पर कानà¥à¤¹à¥‡à¤°à¥€ परà¥à¤µà¤¤ के रासà¥à¤¤à¥‡ में चहल-पहल थी. लोग-बाग़ अपनी-अपनी टà¥à¤•ड़ियों में चल रहे थे. मैं à¤à¥€ उनके साथ-साथ चलने लगा. तà¤à¥€ à¤à¤• परिवार दिखा जो अपनी à¤à¤¨à¤«à¥€à¤²à¥à¤¡ बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ मोटरसाइकिल के सामने खड़ा था और मोटरसाइकिल चल ही नहीं रही थी. हà¥à¤† यों था कि उनकी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€à¤œà¥€ का जैकेट बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ के पिछले चकà¥à¤•े में फà¤à¤¸ गया था और चैन जाम हो गयी थी. मैं कà¥à¤› देर तक तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखता रहा कि शायद जैकेट निकालने में खà¥à¤¦ ही सफल हो जाà¤à¤. जब वैसा नहीं हà¥à¤† तो मैं à¤à¥€ चला गया. कà¥à¤› परिशà¥à¤°à¤® से और सहयोग से वो जैकेट निकल गया, हालाà¤à¤•ि वह अब किसी काम का नहीं था.

चीटियों की बामà¥à¤¬à¤¿à¤¯à¤¾à¤
लौटती समय रासà¥à¤¤à¤¾ जाना-पहचाना लगता है. यदि आप पद-यातà¥à¤°à¤¾ कर रहें हों, तो कई वृकà¥à¤· और जमीन के टà¥à¤•ड़े à¤à¥€ लौटती में आपको पहचानते हैं. दिन चढ़ चà¥à¤•ा था, इसीलिठसड़क पर यातायात à¤à¥€ पहले से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बढ़ा हà¥à¤† था. घने जंगल में à¤à¥€ अकेले चलना अब उतना à¤à¤¯à¤¾à¤µà¤¹ नहीं लग रहा था. आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ के साथ मैंने घने जंगल को पार कर लिया और इसके छोर पर में बने सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾-कà¥à¤Ÿà¥€ तक पहà¥à¤à¤š गया. वहां वही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ डà¥à¤¯à¥‚टी पर था, जिससे मैं पहले मिला था. मैं उसी कà¥à¤Ÿà¥€ में विशà¥à¤°à¤¾à¤®-हेतॠचला गया. अब निरे बियाबान में अकेले डà¥à¤¯à¥‚टी पर मन कैसे लगता है, यही जानने की इचà¥à¤›à¤¾ थी. मेरा पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही, उसकी आà¤à¤–े à¤à¤° गयीं. उसने बोला कि बाबूजी हमलोग तो अब यहीं बस गठहैं, जानवरों से तो उतना डर नहीं लगता है, पर उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ से हà¥à¤²à¥à¤²à¤¡à¤¼ मचाने वाले वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का जब गैंग आ जाता है, तब सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी होती है. तिसपर यदि किसी को कà¥à¤› हो जाठतो हमारे पर ही बन जाती है.
खैर, उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से थोड़ा दà¥à¤ƒà¤– बांटने के बाद, मैं चल पड़ा. रासà¥à¤¤à¥‡ में वे सब वन-की-महिलाओं की दà¥à¤•ानें मिलीं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मैं पहले ही देख चà¥à¤•ा था. à¤à¤• दूकान से दà¥à¤¸à¤°à¥‡ दà¥à¤•ान तक की दूरी चल कर, मैं पिकनिक पॉइंट पहà¥à¤à¤š गया, जहाठबंदरों ने मेरे केले छीने थे. वे दोनों महिलाà¤à¤‚ अà¤à¥€ à¤à¥€ वहीठथीं. मà¥à¤à¥‡ देखा तो à¤à¤• बार फिर उनकी हंसी छà¥à¤Ÿ गयी. पर मैं कà¥à¤¯à¤¾ करता, जो हà¥à¤† सो हà¥à¤†. अब आगे जंगल में जब à¤à¥€ घूमूà¤à¤—ा, बंदरों पर निगाह रखूà¤à¤—ा. पिकनिक पॉइंट से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ और निकलता है, जिसके बारे में उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ महिलाओं ने बताया कि वह अंत में संजय गाà¤à¤§à¥€ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर ही खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है. पहला रासà¥à¤¤à¤¾ तो मैं देख ही चà¥à¤•ा था, इसीलिठअब मैं दà¥à¤¸à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ पर चला गया.

हिरणों का à¤à¥à¤£à¥à¤¡
शà¥à¤°à¥‚ में दूसरा रासà¥à¤¤à¤¾ पहले से कठिन लगा. पर बाद में इस रासà¥à¤¤à¥‡ पर कई गाà¤à¤µ आने लगे, जो लगà¤à¤— समृदà¥à¤§ लगते थे. गांवों के साथ चलते हà¥à¤ तो बोरियत-सी लगने लगी. इसमें वह मजा कहाठथा, जो जंगल के बीच बने रासà¥à¤¤à¥‡ में चलने में हो रहा था. पर तà¤à¥€ à¤à¤• खà¥à¤²à¥‡ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर हिरणों का à¤à¥à¤£à¥à¤¡ सामने आ गया. यह हिरण गांवों के आसपास ही मंडराते रहते हैं. यहाठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई पà¥à¤°à¤•ार के à¤à¥‹à¤œà¤¨ मिलते होंगे और वे सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥€ महसूस करते होंगे.
आगे वह रासà¥à¤¤à¤¾, दहिसर नदी के किनारे-किनारे चलता हà¥à¤†, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के दफà¥à¤¤à¤° के पास से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ हà¥à¤† उसी चेक-डैम के पास आ गया, जिसके बगल से मैं सà¥à¤¬à¤¹ में गà¥à¤œà¤°à¤¾ था. अब यहाठबहà¥à¤¤ ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी. परिवार-के-परिवार यहाठघà¥à¤®à¤¨à¥‡ आये थे. नौकायन के लिठलमà¥à¤¬à¥€ लाईनें लगीं थीं. खूबसूरत नज़ारा था. पर यकीन मानिये जंगल की पदयातà¥à¤°à¤¾ के बाद लोगों के बीच आने पर अजीब लगता है. फिर से à¤à¥€à¤¡à¤¼ देखना उतना आनंददायक नहीं लगता. बिना वहां रà¥à¤•े मैं उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ परिसर के बाहर आ गया. उस समय दोपहर के ३.३० बज रहे थे. अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मेरी पदयातà¥à¤°à¤¾ में कà¥à¤² ०६.३० घंटे लगे थे. अपने मोबाइल à¤à¤ªà¥à¤ª में पैदल यातà¥à¤°à¤¾ की दूरी देखी, जिसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उस दिन मैंने २१ किलोमीटर की पैदल यातà¥à¤°à¤¾ की थी. सच में दिल खà¥à¤¶ हो गया
Uday Ji, again a wonderful post. Its Good to know that you write poetry as well. I also laughed again reading about those same vegetable seller women. Haha!
Pooja Ji,
It is really nice to know that you liked the post. Yes..my ignorance about Jungle, in which monkeys had looted my bananas, was really a funny event. I still laugh when I remember my plight on that day..
Regards
बहुत ही अच्छा पोस्ट लिखा है आपने, वैसे दिनभर में 21 किलोमीटर चलना, दिखता है कि आपको घुमक्कड़ी कितनी पसंद है।
धन्यवाद संगम
यह जान कर ख़ुशी हुई कि आपको पोस्ट पसंद आया. घुमक्कड़ी तो सच में मुझे अच्छी लगती है. कभी पैदल तो कभी वाहन से, सभी अच्छा लगता है.
अपने हमें संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान लाइव घूम दिया , बहुत ही सुन्दर पोस्ट ,धन्यवाद् http://aroundbharat.blogspot.com/
धन्यवाद विनीत जी
मनोबल बढ़ाने के लिए शुक्रिया। आपका ब्लॉग भी बड़ा जीवंत है।
21 Kilometer of slow-walk, probably equivalent to a full marathon.
The setup looks like a housing complex. I know they are heritage structures and we should preserve them but at the same time, I think we can make them more accessible. This log is one such step, since it builds awareness and shares information.
May be a festival with controlled/moderated use of some of the caves as the place for showing artwork, performances etc.
It is amazing to learn that Buddha’s disciples went far and beyond. Buddha happened in 600 BC so its quite a feat.
Thank you Uday.
Yes. For me it was a slow marathon, though I had walked for more than its distance in some of the Indian cities, when I was younger. As regards organising some kind of festivals, I have read that some years ago “Gr8 Kanheri Festival” was organised there. May be they re-consider and organise the fair/festivals regularly. But, again the ecological fragility and the security of the national park are also equally important.
Anyway, glad to know that you liked the post.
Regards