हम चले अमृतसर की सैर को

मैं और मनोहर बैठे हुए थे, सोच रहे थे कंहा चला जाये, मैं कहने लगा जयपुर, वो कहने लगा अमृतसर. प्रोग्राम  अमृतसर जाने का तय हुआ, आरक्षण  कराया गया. ४ नवम्बर की रात का स्वर्णमंदिर एक्सप्रेस (फ्रोंटिएर मेल) का जाने का तय हुआ, वापसी ६ नवम्बर को छत्तीसगढ़ एक्स्प. से थी. रेलवे स्टेशन पर जल्दी पहुँच कर, वंहा पर बैठ कर चाय वाय पीने का आनंद ही कुछ और होता हैं. समय रात १०:३० का था, मैं ९ बजे ही पहुँच गया था, जाट देवता पूरे सवा दस बजे पहुंचे. खैर ११ बजे ट्रेन आयी, चढ़ गए, देखा डिब्बे में बुरी हालत थी. ये ट्रेन मुंबई से आती हैं, अगले दिन बकरा ईद का दिन था, आरक्षित डिब्बे में बहुत बुरी तरह से लोग भरे हुए थे, उनसे ज्यादा उनका सामान था. खैर सहारनपुर पहुँच कर आराम से बर्थ मिली, और पड़ कर सो गए.

सुबह ५ बजे गाड़ी अमृतसर पहुँच गयी

बाहर निकले, सुबह सुबह ही वर्षा हुई थी. मौसम बहुत ही अच्छा था, हल्की हल्की ठण्ड थी, एक एक कप चाय  पी गयी, फिर होटल ढूँढना शुरू किया. किसी ने बताया की स्वर्ण मंदिर के पास ठीक रहेगा, तभी एक पुलिसवाले ने टोका, “कंहा  से आ रहे हो, कंहा जाना हैं?” पता नहीं क्यों ऊ. प्र. वालो को बाहर शक की नजरो से देखा जाता हैं, खैर स्वर्मंदिर पर पहुँच कर एक होटल गोल्डन हेरिटेज में डेरा जमा दिया.

नहा धोकर बाहर निकले, सबसे पहले स्वर्ण मंदिर पहुंचे, जूते उतारे,  सर पर रुमाल बांधा और पवित्र मंदिर में प्रवेश कर गए. सबसे पहले मंदिर के बाहर पानी के हौज़ में पैर धोकर आगे बढ़ते हैं तो मुख्य दरवाजे में बाहर से ही पवित्र हरिमंदिर साहब के दर्शन होते हैं. दर्शन करते ही मन पवित्र हो गया.  पवित्र अमृत सरोवर के जल को सर माथे पर लगाया. फिर श्री हरिमंदिर साहब में माथा टेका. पवित्र अमृत सरोवर के नाम से ही इस नगर का नाम अमृतसर पड़ा हैं.

पहला दर्शन

सुबह ही सुबह स्वर्ण मंदिर के दर्शन मेरे द्वारा

प्यारा मंदिर

पवित्र सरोवर में श्रद्धालु नहा रहे थे. हम लोगो ने अपना हाथ मुह धोया.  इसके बाद सरोवर की परिक्रमा की. मंदिर में चारो और speakers लगे हुए हैं, जिन पर २४ घंटे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ चलता रहता हैं.

सरोवर में मछलिया

अकाल तख़्त

 

श्री हरी मंदिर साहिब

वाह क्या बात हैं

भगवान को भी जरा याद करले

श्री हरी मंदिर साहिब का प्रवेश

फुर्शत में

मंदिर दूसरी तरफ से

स्वर्ण मंदिर को देख कर भारत के स्वर्णिम इतिहास को याद करके सीना गर्व से फूल जाता हैं. इस मंदिर को मुस्लिम आक्रमन्कारियो ने कई बार विध्वंश किया.  पर हम लोगो ने इसे बार बार  बना कर खड़ा कर दिया.  रात के समय मंदिर की छवि निराली लगती हैं. सरोवर के किनारे बैठ कर मंदिर को निहारते रहो, समय का पता ही नहीं चलता हैं.

रात के समय सोने सा चमकता स्वर्ण मंदिर

स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने के बाद हम मंदिर के सामने स्थित जलियावाला बाग पहुंचे . जहा पर अंग्रेजो के द्वारा किये हुए अत्याचारों  को देखा . मन द्रवित हो उठा. यंहा पर म़ोत का कुआ जिसमे की लोग गोली खाकर कूदते रहे, और मरते रहे. दीवारों पर गोलियों के निशान अब भी मौजूद हैं. यंहा पर ३८० लोग मारे गए थे. उस समय कई हज़ार लोग मौजूद थे. यदि सारे के सारे अंग्रेजो पर पिल पड़ते तो एक भी अंग्रेज़ जिंदा नहीं बचता, पर क्या करे हम लोगो की ये कमजोरी हमेशा हमें परास्त कर देती हैं, खैर इतिहास की बाते फिर कभी.

अंग्रेजो के अत्याचार का प्रतीक

अमर ज्योति

मुख्य स्मारक

गोलियों के निशान

जलियावाला बाग से निकल कर रिक्शा में बैठ कर दुर्ग्याणा मंदिर पहुंचे, यह मंदिर, स्वर्ण मंदिर की तरह से ही बना हुआ हैं. इसके बारे में कहा जाता हैं की जब देवी देवताओ की मुर्तिया स्वर्ण मंदिर से निकाल कर फ़ेंक दी गयी, और मंदिर पर कट्टरपंथियों  ने कब्ज़ा कर लिया तो अमृतसर के सनातनी लोगो ने बिलकुल स्वर्णमंदिर का प्रतिरूप बनाया, जिसे दुर्ग्याणा मंदिर बोलते हैं. वैसे पंजाब आकर एक बात देखी की यंहा सभी पंजाबी हैं, कोई हिन्दू नहीं, कोई सिख नहीं, सभी एक माँ बाप की संतान हैं. स्वर्ण मंदिर में केश्धारियो से ज्यादा मोने जाते हैं. रोटी बेटी का सम्बन्ध हैं , तीर्थ साझे हैं, भगवान, गुरु साझे हैं, त्यौहार साझे हैं. फिर भी पता नहीं लोग क्यों नहीं समझते हैं.

दुर्ग्याणा मंदिर में भगवान जी के दर्शन

दुर्ग्याणा मंदिर

मंदिर से निकल कर हम वापिस स्वर्ण मंदिर पहुंचे, जहा पर पहले से बुक कराई हुई मारुती वैन  में बैठ कर हम बाघा बोर्डर की और निकल पड़े. ड्राईवर का नाम गुरदीप था, बड़ा ही नेक इंसान था.

आपको एक बात बतादे की, यंहा पर भीड़ बहुत होती हैं. इसलिए ३ या ४ बजे तक पहुँच जाना चाहिए, जिससे सही स्थान मिल सके. स्कूलों के बहुत सारे बच्चे आये होते हैं. जो की देश भक्ति के गीतों पर नृत्य करते हैं. BSF  द्वारा मार्च पास्ट किया जाता हैं. छाती गर्व से फूल जाती हैं . यंहा पर एक बात देखने को मिली, भारत  की और करीब २०००० लोगो की भीड़ थी, देशभक्ति की भावना थी, पाकिस्तान  की और ५००-६०० लोगो की भीड़ थी, और वो लोग ऐसे बैठे थे की जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो, उस और कुछ बच्चे भी थे, वे उचक उचक कर भारत की और बच्चो का नृत्य देख रहे थे. जैसे सोच रहे हो की काश हम लोग एक होते.

बाघा बोर्डर पर बच्चो द्वारा नृत्य

BSF द्वारा प्रदर्शन

यंहा पर एक समस्या देखी,  ज्यादा भीड़ होने पर BSF  द्वारा भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता हैं. यंहा बैठने की व्यवस्था थोड़ी और अच्छी होती तो ठीक रहता. धक्का मुक्की होती हैं, बच्चो, स्त्रियों, और बड़ी उम्र के लोगो को बहुत मुश्किल हो जाती हैं.

हमारा द्वार

ड्राईवर गुरदीप ने सभी सवारियों को जंहा उतरना था उतारा, और हमें भी स्वर्ण मंदिर पर वापिस छोड़ दिया.
रात को थके हरे खाना खाकर के अपने होटल पहुँचते हैं,  और सो जाते हैं, सुबह जल्दी उठ कर मंदिर में माथा टेकते हैं.

थक गए बेचारे

वैसे अमृतसर खाने पीने के मामले में मशहूर हैं. मंदिर के सामने कुलदीप के छोले कुलचे मशहूर हैं.   लस्सी, और कटरा अहलुवालिया की देशी घी की ज़लेबी का स्वाद तो क्या कहने. मंदिर के आसपास अच्छे बजट होटल मिल जाते हैं. २ बजे हम स्टेशन पहुँच जाते हैं. और गाडी लगने का इंतजार करते हैं. और फिर CHATTISHGARH में बैठ  कर अपने घर मुज़फ्फरनगर पंहुच जाते हैं. वैसे अमृतसर बार बार आने लायक नगर हैं. बहुत सस्ता और पूरे भारत से आसान सड़क और रेल मार्ग से सम्बन्ध.

सत्श्रीअकाल, वन्देमातरम. 

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29 Comments

  • वाह गुप्ता जी वाह बहुत बढिया लेख लगा, गुप्ता और जाट की जोडी जम रही है, वैसे आपके साथी जाट भाई के साथ कितनी यात्राएँ की है। अगर एक आध की है लगे रहिए, अगर बहुत सारी की है इसे लय को बनाय रखिए, आपने एक ही पोस्ट में तीन-तीन स्थलों की सैर करा दी, इसको दो लेख में किया जा सकता था, एक लेख में करने से काफ़ी कुछ छूट जाता है।

    • संदीप भाई आप की बात ठीक हैं, इस पोस्ट को २ पोस्ट में बांटा जा सकता था, आगे से इस बात का ध्यान रखूँगा. सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्.

  • प्रवीन जी वाघा बार्डर पर जाने मात्र से देश भक्ति की भावना हमारे शरीर से बाहर निकलने लगती है, और जब परेड होती है तो हमारा जोश तो रोके नहीं रुक पाता है मैंने इन सभी स्थलों की सैर एक ही दिन में की थी अमरनाथ जाते समय, आपके पास भी बहुत अनुभव है घूमने का जल्दी-जल्दी बताते रहिए…………………..

  • संदीप जी बाघा बोर्डर पर देशभक्ति पुरे उफान पर होती हैं, पर ये बात पाकिस्तान की और नज़र नहीं आती हैं. संदीप जी अब अपने अनुभव जल्दी जल्दी आप लोगो से बाँटने की कोशिश करूँगा.

  • Jagdeep Gupta says:

    Pardeep ji bhut badiya, Acha likha aur pic bhut badiya hai. Main punjab se hu Rajpura jab app ne punjab enter kiya hoga to pheli city Rajpura hi ati hai………. Nice thank u for sharing

  • sarvesh n vashistha says:

    गुप्ता जी आपने मोने शब्द शायद हिन्दू के लिए प्रयोग किया हे जो गलत हे मोना शब्द बाल कटे सिख का हे
    हिन्दू के लिए मोना न लिखे
    जाट भाई ध्यान दे

    • सर्वेश जी, मोने हो या केश धारी , सिक्ख हो या हिन्दू, पंजाब में सब पंजाबी हैं. सब एक ही माँ बाप की संतान है. गुरु, भगवान, गुरूद्वारे, मंदिर, सब के सांझे हैं. गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिक्खी की स्थापना ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए की थी.

  • bahut acche praveen ji . you are welcome at ghumakkar and in hindi authors. pic are very nice and amazingly remiend me my journey of Vagha Border . aaj main out of Station hu so mera hindi softwere mere pass nahi hai . Cafe se likh raha hu . Keep writing and Ghumakkari.

    Manu prakash Tyagi

  • नमस्कार प्रवीण जी , घुमाक्कर में आपका स्वागत है. अमृतसर का दर्शन बहुत अच्छा लगा . विवरण काफी अच्छा था. लिखते रहिये ……………………..

  • Ritesh Gupta says:

    प्रवीन जी…..एक और हिंदी लेखक को घुमक्कड़.कॉम पर देखकर बड़ी प्रशन्नता हुई… | आपका स्वागत हैं और पोस्ट प्रकाशित होने आपको बहुत बधाई हो..|
    बहुत अच्छा लिखा आपने अमृतसर के बारे में पर थोड़ा संक्षेप में वर्णन किया है आगे से कुछ विस्तार से लिखने का प्रयत्न कीजिये | बहुत अच्छा लगा बाघा बोर्डर के बारे में जानकर….दिल में देशभक्ति की भावना ओत प्रोत हो गया | अमृतसर आज तक गया नहीं पर जाने के इच्छा हैं…देखते कब कार्यक्रम बनता हैं |
    लाजबाब फोटो के माध्यम से अमृतसर शहर को देखकर दिल खुश हो गया…..बहुत बढ़िया | धन्यवाद …..|
    जय हिंद जय भारत !
    रीतेश.गुप्ता …..

    • रितेश जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, वाकई यह नगर ऐसा हैं, कि बार बार जाने का मन करता हैं। वन्देमातरम।

  • Vipin says:

    प्रवीण जी, घुमक्कड़ पर आपका स्वागत है. सभी चित्र वाकई खुबसूरत हैं खासतौर पर रात्रि के समय लिया गया स्वर्ण मंदिर. दुर्ग्याणा मंदिर के बारे में पहले कभी नहीं सुना था, इसकी यात्रा कराने के लिए शुक्रिया…….अपनी यात्रा में हम स्वर्ण मंदिर में ही रुके थे और जब मन करता सरोवर में स्नान करने पहुँच जाते……..वैसे आपकी इस यात्रा का कुल खर्चा (प्रति व्यक्ति) कितना था (घर से घर तक)………

    • विपिन जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमारी यात्रा में २ दिन में हर बन्दे का कुल खर्च करीब १२००/- रहा हैं। जिसमे रेलवे आरक्षण, होटल, खाना-पीना, रिक्शा, ऑटो, सभी कुछ शामिल हैं।

  • SilentSoul says:

    बहुत बढ़िया विवरण और उससे भी बढ़िया चित्र… ये जाट कौन गया था आपके साथ क्या अपने नीरज या संदीप ???

  • Stone says:

    Bahut acchi photo-post Praveenji, aur Durgiana Temple ki jaankaari ke liye dhanyabaad.

  • Manish Kumar says:

    आपके ब्लॉग पर पहले ही पढ़ चुका हूँ। अच्छा लगा आपका लेख यहाँ देख कर।

  • Nandan says:

    प्रवीण जी स्वागतम घुमक्कड़ पर |
    अम्बरसर से शुरुआत एक बढ़िया शुरुआत है, मुझे सबसे ज्यादा ये बात पसंद आयी

    ” मोने हो या केश धारी , सिक्ख हो या हिन्दू, पंजाब में सब पंजाबी हैं. सब एक ही माँ बाप की संतान है. गुरु, भगवान, गुरूद्वारे, मंदिर, सब के सांझे हैं. ”

    दुर्गीयाना टेम्पल के बारे में नयी जानकारी थी मेरे लिए | अगली पोस्ट में आपसे और ज्यादा जानकारी और अनुभवों की उम्मीद लिए हुए, जय हिंद |

  • vinaymusafir says:

    Ghumakkar pe apka swaagat hai.
    bahot accha vivran diya hai shahar ka. main bhi akfi samaya se jaana chah raha hoon Amritsar.

  • Kavita Bhalse says:

    प्रवीण जी,
    मैं आपका घुमक्कड़ पर स्वागत नहीं करुँगी, क्योंकि आप अपनी कमेंट्स के माध्यम से घुमक्कड़ से पहले से ही जुड़े हैं तथा घुमक्कड़ परिवार के सदस्य है. आपकी पहली पोस्ट के लिए बधाई जरुर देना चाहूंगी. लेखन शैली सरल तथा प्रभावी है तथा चित्रों की तारीफ़ करने के लिए तो मेरे पास शब्द नहीं हैं. बहुत ही उम्दा पोस्ट थी, हिन्दी में थी इसलिए और मजेदार लगी, आशा है आपके लेख अब घुमक्कड़ पर अनवरत उपलब्ध होते रहेंगे.

    शुक्रिया.

  • प्रवीण जी,
    आपने स्वर्ण मंदिर के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है. बचपन में मैंने भी इस शहर में कुछ महीने गुजारे थे, उसके बाद भी बहुत बार स्वर्ण मंदिर जाना हुआ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. दुर्ग्याणा मंदिर भी प्राचीन है, सोने का खूबसूरत काम स्वर्ण मंदिर, दुर्ग्याणा मंदिर और काशी विशवनाथ में महाराजा रणजीत सिंह दुआरा करवाया गया बताते हैं. स्वर्ण मंदिर, दरबार साहिब नाम आम लोग अमृतसर में परयोग करते हैं, पर असली नाम हरिमंदिर साहिब है और हरि के बारे में आप सब जानते ही हैं. प्रथा थी परिवार का बड़ा बेटा सरदार (सिख) बना दिया जाता था. हमारे आर्य समाज, और सरदार भाई मूर्ति पूजा नहीं करते, १९२५ में गुरुद्वारा सुधार लहर के दोरान हो सकता है, मूर्तियाँ दुर्ग्याणा मंदिर में लायी गयी हों, पहले बताते हैं यह हरिमंदिर साहिब परिकर्मा में थीं.

    धन्यवाद

  • धन्यवाद सुरिंदर जी, ये हमारे देश और धर्म का दुर्भाग्य रहा हैं की, वेदिक संस्कृति, सनातन धर्म, हिंदू धर्म, बाद में आये सभी पंथो और संप्रदायों की माँ हैं. और सभी की उत्पत्ति यंही से हुई हैं. पर सभी ने ही हमेशा हिंदू धर्म को कोसा हैं और उलाहना दी हैं. और अपने आप को अलग बताने लगे हैं. सिक्खो और हम लोगो में रोटी बेटी का सम्बन्ध हैं, फिर हम लोग अलग कैसे हो सकते हैं. सिक्ख, जैन, बोद्ध, सनातनी, आर्यसमाजी, आदि सभी इसी विराट हिंदू परिवार का ही अंग हैं. हम लोग एक होकर चलेगे तो पूरी दुनिया हमारी ताकत को मानेगी, नहीं तो हम लोगो का नाम लेवा पानी देवा भी नहीं बचेंग, धन्यवाद, वन्देमातरम.

  • Anil says:

    महोदय,
    मैं मार्च में सपरिवार कटरा (वैष्णो देवी ), अमृतसर,मथुरा तथा वृन्दावन घूमने का योजना बनाया हूँ । मुझे इन जगहों पर ठहरने के लिए गेस्ट हाउस या बजट होटल का डिटेल चाहिए । सही लोकेशन में तथा सुरक्षित होने के साथ खाने पीने की सुविधा पास में हो, इन सुविधाओं वाला धर्मशाला भी चलेगा । दो डबल बेड रूम या एक चार बेड रूम हो ।आप लोग जो इन जगहों जा चुके हो वो मेरी मदद कर सकते है । मुझे ई मेल से उक्त जानकारी प्रदान करने की कृपा करे । धन्यवाद
    Anil

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