इस यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त के पिछले à¤à¤¾à¤— में आपने पà¥à¤¾ कि कैसे राà¤à¤šà¥€ से रेल यातà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकर हम सब नागपà¥à¤° पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ नागपà¥à¤° में दीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥‚मि, समोसेवाला और तेलांगखेड़ी à¤à¥€à¤² को देखने के बाद अगली सà¥à¤¬à¤¹ पचमà¥à¥€ की ओर बà¥à¥‡à¥¤ खसà¥à¤¤à¤¾ हाल रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पार कर शाम तक पचमà¥à¥€ पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ अब पà¥à¤¿à¤ पचमà¥à¥€ में बिताठपहले दिन की दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨…
पचमà¥à¥€ सतपà¥à¥œà¤¾ की पहाड़ियों की गोद में बसा हà¥à¤† à¤à¤• हरा à¤à¤°à¤¾ हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ है। करीब 13 वरà¥à¤— किमी में फैले इस हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की समà¥à¤¦à¥à¤° तल से ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ 1067 मी है । इस जगह को à¥à¥‚ंà¥à¤¨à¥‡ का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ कैपà¥à¤Ÿà¤¨ जेमà¥à¤¸ फारà¥à¤¸à¤¿à¤¥ को जाता है जो 1857 में अपने घà¥à¥œà¤¸à¤µà¤¾à¤° दसà¥à¤¤à¥‡ के साथ यहाठके पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤¨à¥à¤Ÿ पर पहà¥à¤à¤šà¥‡ । जिन लोगों को पहाड़ पर चà¥à¤¨à¥‡ उतरने का शौक है उनके लिये पचमà¥à¥€ à¤à¤• आदरà¥à¤¶ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ सà¥à¤¥à¤² है । यहाठकिसी à¤à¥€ जगह पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठ200 से लेकर 500 मी तक की ढलान और फिर ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर चà¥à¤¨à¤¾ आम बात है। इसलिठइस छोटे परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करते समय मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ पचमà¥à¥€ के खूबसूरत दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ जूतों की तसवीर लगाना नहीं à¤à¥‚लता..
पचमà¥à¥€ की पहली सà¥à¤¬à¤¹ जैसे ही हम सब नाशà¥à¤¤à¥‡ के लिये बाहर निकले तो पाया कि सड़क के दोनों ओर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ के दूत à¤à¤¾à¤°à¥€ संखà¥à¤¯à¤¾ में विराजमान हैं। दरअसल पिछली शाम को जहाठचाय पीने रà¥à¤•े थे वहीं का à¤à¤• वानर दीदी के हाथ पर कà¥à¤› à¤à¥‹à¤œà¤¨ मिलने की आशा में कूद बैठा था । रात में होटल वालों ने बताया था कि बंदरों ने यहाठà¤à¥€ काफी उतà¥à¤ªà¤¾à¤¤ मचाया हà¥à¤† है और टी.वी. पर केबल अगर नहीं आ रहा तो ये उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की महिमा है। सà¥à¤¬à¤¹ जब ये फिर से दिखाई पड़े तो कल की सारी बातें याद आ गयीं सो जलपानगृह पहà¥à¤‚चते ही हमने अपनी शंकाओं को दूर करने के लिये सवाल दागा ।
à¤à¤‡à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ यहाठबंदर कैमरे à¤à¥€ छीन लेते हैं?
फिलà¥à¤® ‘बीस साल बाद’ के लालटेन लिये चौकीदार की à¤à¤¾à¤‚ति à¤à¤¾à¤µ à¤à¤‚गिमा और सà¥à¤¥à¤¿à¤° आवाज में उतà¥à¤¤à¤° मिला
हाठसर ले लेते हैं ।
पापा की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ और बà¥à¥€ पूछ बैठे और à¤à¤¨à¤• ?
हाठसाहब वो à¤à¥€, अरे सर पिछले हफà¥à¤¤à¥‡ जो सैलानी आये थे उनके गरà¥à¤®à¤¾à¤—रम आलू के पराठे à¤à¥€ यहीं से ले कर चलता बना था । :)
सारा समूह ये सà¥à¤¨à¤•र अंदर तक सिहर गया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उस वकà¥à¤¤ हम सà¤à¥€ पराठों का ही सेवन कर रहे थे। पचमà¥à¥€ पूरा घूमने के बाद हमें लगा कि बनà¥à¤¦à¥‡ ने कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही डरा दिया था । महादेव की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं और शहर को छोड़ दें तो बाकी जगहों पर ये दूत सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ से पेश आते हैं ।
यहाठपर सबसे पहले हमने रà¥à¤– किया जटाशंकर की ओर । मà¥à¤–à¥à¤¯ मारà¥à¤— से यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिये परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के बीच से 200 मीटर नीचे की ओर उतरना पड़ता है । इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ विशाल पहाड़ियों के बीच की संकरी जगह में है निवास शंकर जी का…
बड़ी बड़ी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के नीचे उनके बीच से रिसते शीतल जल पर नंगे पाà¤à¤µ चलना अपनी तरह का अनà¥à¤à¤µ है । पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक रà¥à¤ª से गà¥à¤«à¤¾ में बने इस शिवलिंग की विशेषता ये है कि इसके ऊपर का चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤— कà¥à¤‚डली मारे शेषनाग की तरह दिखता है ।
जटाशंकर से हम पांडव गà¥à¤«à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¥‡ । पहाड़ की चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को काटकर बनायी गई इन पाà¤à¤š गà¥à¤«à¤¾à¤“ं यानि मà¥à¥€ के नाम पर इस जगह का नाम पचमà¥à¥€ पड़ा । कहते हैं कि पाणà¥à¤¡à¤µ अपने 1 वरà¥à¤· के अजà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ के समय यहाठआकर रहे थे। वैसे देश à¤à¤° में à¤à¤¸à¥€ कई पांडव गà¥à¤«à¤¾à¤“ं से मेरा पाला पड़ चà¥à¤•ा है इसलिठइतना तो तय है कि वे हम सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ रहे होंगे। पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ विशेषजà¥à¤ž के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 9-10 वीं सदी के बीच बौदà¥à¤§ à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¥à¤“ं ने किया था । इन गà¥à¤«à¤¾à¤“ं का शिलà¥à¤ª देखकर मà¥à¤à¥‡ à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के खंडगिरी (यहाठदेखें) की याद आ गई जो जैन शासक खारवेल के समय की हैं। पांडव गà¥à¤«à¤¾à¤“ं के ऊपर से दिखते उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨, आस पास की पहाड़ियाठऔर जंगल à¤à¤• नयनाà¤à¤¿à¤°à¤¾à¤® दृशà¥à¤¯ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ करते हैं और इस सौंदरà¥à¤¯ को देखकर मन वाह-वाह किये बिना नहीं रह पाता ।
खैर यहाठसे हम सब आगे बà¥à¥‡ अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ विहार की ओर । अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ विहार में वन विà¤à¤¾à¤— की जीप कà¥à¤› दूर तो आपको ले जाती है पर नीचे की ओर का करीब दो किमी का रासà¥à¤¤à¤¾ पैदल तय करना पड़ता है। ढलान से उतरते ही आप चौड़े पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ वाले वन और लाल मिटà¥à¤¤à¥€ के ऊबड़ खाबड़ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के बीच अपने आपको पाते हैं। अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ विहार में अपà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤à¤ तो नहीं दिखी अलबतà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤• छोटा सा पानी का कà¥à¤‚ड जरूर दिखा । हम नहाने के लिये जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ नहीं हो पाà¤, हाठये जरूर हà¥à¤† कि मेरा पà¥à¤¤à¥à¤° पानी में हाथ लगाते समय à¤à¤¸à¤¾ फिसला कि कà¥à¤‚ड में उसने पूरा गोता ही लगा लिया ।
पास ही कà¥à¤› दूरी पर ही यही पानी 350 फीट की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ से गिरता है और इस धारा को रजत पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ के नाम से जाना जाता है । पà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ तक का रासà¥à¤¤à¤¾ बेहद दà¥à¤°à¥à¤—म है सो दूर से जूम कर ही इसकी तसà¥à¤µà¥€à¤° खींच पाà¤à¥¤
वापस ऊपर चà¥à¤¤à¥‡ चà¥à¤¤à¥‡ सबके पसीने छूट गठऔर à¤à¤• à¤à¤• गिलास नीबू का शरà¥à¤¬à¤¤ पीकर ही जान में जान आई। खैर ये तो अà¤à¥€ शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ थी…. अगले दिन तो हाल इससे à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾ होना था । पर अà¤à¥€ तो à¤à¥‹à¤œà¤¨ कर महादेव की खोज में जाना था। अपराहà¥à¤¨ में खाना खाने के बाद हम जा पहà¥à¤à¤šà¥‡ हांडी खोह के पास । 350 फीट गहरे इस खडà¥à¤¡ में ऊपर से देखने पर à¤à¥€ बड़े बड़े वृकà¥à¤· बौने पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं।
इस दृशà¥à¤¯ को देख कर ही शायद कवि के मन में ये बात उठी होगी
जागते अà¤à¤—ड़ाईयों में ,
खोह खडà¥à¤¡à¥‡ खाईयों में
सतपà¥à¥œà¤¾ के घने जंगल
नींद में डूबे हà¥à¤ से
डूबते अनमने जंगल
साथ ही ये विचार à¤à¥€ मन को मथ रहा था कि à¤à¤—वान शिव को कà¥à¤¯à¤¾ पड़ी थी जो इन गहरे खडà¥à¤¡à¥‹à¤‚ खाईयों में विचरते आ पहà¥à¤à¤šà¥‡ । हांडी खोह से महादेव का रासà¥à¤¤à¤¾ हरे à¤à¤°à¥‡ जंगलों से अटा पड़ा है। सड़क के दोनों ओर की हरियाली देखते ही बनती थी । महादेव की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं की ओर जाते वकà¥à¤¤ चौरागॠकी पहाड़ी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शिव मंदिर सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखता है। महाशिवरातà¥à¤°à¤¿ के समय हजारों शà¥à¤°à¥ƒà¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ वहाठतà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल चà¥à¤¾à¤¨à¥‡ जाते हैं। ना तो अà¤à¥€ शिवरातà¥à¤°à¤¿ थी और ना ही हमारे समूह में कोई इतना बड़ा शिवà¤à¤•à¥à¤¤ कि 1250 सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ चà¥à¤•र वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ का साहस करता। तो चौरागॠना जाकर हम सब बड़े महादेव की गà¥à¤«à¤¾ की ओर चल पड़े । कैमरा गाड़ी में ही रख दिया कà¥à¤¯à¥‹.कि इस बार वानर दल दूर से ही उछल कूद मचाता दिख रहा था । समà¥à¤¦à¥à¤° तल से 1336 मी. ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ ये गà¥à¤«à¤¾ 25 फीट चौड़ी और 60 फीट. लमà¥à¤¬à¥€ है। गà¥à¤«à¤¾ के अंदर पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥‹à¤‚ से हर समय पानी टपकता रहता है । अंदर à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक शिव लिंग है जिसके ठीक सामने à¤à¤• पवितà¥à¤° कà¥à¤‚ड है जिसे à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° कà¥à¤‚ड कहते हैं ।
à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° की कथा यहाठके तीन धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ चौरागà¥, जटाशंकर और महादेव गà¥à¤«à¤¾à¤“ं से जà¥à¥œà¥€ है । अपने कठिन जप-तप से उसने à¤à¤—वान शिव को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ कर ये वरदान ले लिया कि जिस के सर पर हाथ रखूठवही à¤à¤¸à¥à¤® हो जाठ। अब à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° ठहरा असà¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, वरदान मिल गया तो सोचा कà¥à¤¯à¥‚ठन जिसने दिया है उसी पर आजमाकर देखूठ। à¤à¤—वन की जान पर बन आई तो à¤à¤¾à¤—ते फिरे कà¤à¥€ जटाशंकर की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में जा छिपे तो कà¤à¥€ गà¥à¤ªà¥à¤¤ महादेव और अनà¥à¤¯ दà¥à¤°à¥à¤—म सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर । पर à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° कोई कम थोड़े ही था à¤à¤—वन को दौड़ा – दौड़ा कर तंग कर डाला। à¤à¤—वन की ये दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ विषà¥à¤£à¥ से देखी नहीं गई और उतर आये पृथà¥à¤µà¥€ पर मोहिनी का रूप लेकर । अपने नृतà¥à¤¯ से मोहिनी ने à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° पर à¤à¤¸à¤¾ मोहजाल रचा कि खà¥à¤¦ à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° उसी लय और हाव à¤à¤¾à¤µ में थिरकते अपने सिर पर हाथ रख बैठा । कहते हैं कि बड़े महादेव की उस गà¥à¤«à¤¾ में ही à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° à¤à¤¸à¥à¤® हो गया ।
बड़े महादेव से 400 मीटर दूर परà¤à¤• बेहद संकरी गà¥à¤«à¤¾ हे जो कि गà¥à¤ªà¥à¤¤ महादेव का निवास सà¥à¤¥à¤² है । इस गà¥à¤«à¤¾ में à¤à¤• समय 8 ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ घà¥à¤¸ सकते हैं । à¤à¤¸à¥€ गà¥à¤«à¤¾ में कोई मोटा वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ घà¥à¤¸ जाठतो रासà¥à¤¤à¤¾ जॉम ही समà¤à¤¿à¤ । गà¥à¤«à¤¾ में आप साइड आन ही चल सकते हैं। खà¥à¤¦ को पतला समठकर मैंने à¤à¤• बार सीधा होने की कोशिश की तो कमर को दो चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के बीच फà¤à¤¸à¤¾ पाया। पहले 10 फीट पार हो जाठतो गà¥à¤«à¤¾ में घना अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ छा जाता है । कहने को गà¥à¤«à¤¾ के अंतिम छोर पर शिवलिंग के ऊपर à¤à¤• बलà¥à¤¬ है पर वो à¤à¥€ जलता बà¥à¤à¤¤à¤¾ रहता है । जलà¥à¤¦à¥€ -जलà¥à¤¦à¥€ में पà¥à¤°à¤à¥ दरà¥à¤¶à¤¨ निबटाकर हम à¤à¤Ÿà¤ªà¤Ÿ गà¥à¤«à¤¾ से बाहर निकले ।
वापसी में राजेंदà¥à¤° गिरी से सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ देखने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® था पर हमारे रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤Ÿà¤• जाने की वजह से सूरà¥à¤¯ देव हमारे वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले ही रà¥à¤–सत हो लिये । पहले दिन का ये अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तो यहीं समापà¥à¤¤ हà¥à¤† । अगले दिन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ तो à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ दà¥à¤°à¥à¤—म टà¥à¤°à¥‡à¤• से होनी थी जिसमें बिताये गठपल इस यातà¥à¤°à¤¾ के सबसे यादगार लमहे साबित हà¥à¤¯à¥‡ । कà¥à¤¯à¤¾ थी हमारी मंजिल और कैसा था हमारा वहाठतक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ और लौटने का अनà¥à¤à¤µ ये बताऊà¤à¤—ा मैं आपको अगले हिसà¥à¤¸à¥‡ में…






ati vishist varnan. aapki sundar-rupen prastuti ne humein satpura aur pachmadi ke sair karaye. aapke iss lekh ke liye sat sat naman.
शुक्रिया आपके इन उदार शब्दों के लिए !
जागते अँगड़ाईयों में ,
खोह खड्डे खाईयों में
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
डूबते अनमने जंगल
in panktiyon ne darsha dia he ki aap ek kavi hridaya lekhak hain. Atyant hi sunder lekh. Dhanywad.
शुक्रिया पांडे जी। कवि मन तो शायद हर किसी हृदय में होता है। कुछ लोग हर समय ऐसी भावनाओं से पूर्ण रहते हैं जबकि हमारे जैसों को प्रकृति की अद्भुत छटाएँ कविताओं की याद दिला देती हैं।
Manish ji,
Bahut badiyaa likhte hain aap.
A brilliant write up on Pachmari. The description of “Bhasmasur ki katha” is amazing.
Shall await the next part.
कोशिश यही रहती है कि विवरण में रोचकता बनी रहे। आपको मेरा ये प्रयास पसंद आया जानकर खुशी हुई।
Hi Manish,
It was an interesting post (both the parts), i.e. in addition to its novelty of being in Hindi – in your own dhang.
I don’t really know how to respond, so I do it in the easiest manner:-
‘ Prem….
Aakele hone ka hi
Ek aur dhang hai’
(Shrikant Varma – ‘Ek Aur Dhang’)
In our childhood, our trip to Panchmarhi was always fraught with mysterious unknowns like ‘ a sadhu who takes you inside the gupha – to eat your flesh – when you come out its not you but something resembling you controlled by sadhu, etc.’
A great description, heart rending.
Thanks.
Auro.
प्रेम…
अकेले होने का ही
एक और ढंग है
हम्म्म अच्छा ख्याल है वर्मा जी का। शु्क्रिया इन पंक्तियों से मेरा परिचय कराने का ओरोजीत !
साधु और गुफ़ा की बात आपने की तो याद आया कि गुप्त महादेव में जब शिवलिंग के सामने कोई पहुँचता तो गुफ़ा की रोशनी इतनी मद्धम हो जाती कि बंदा शीघ्र दक्षिणा चढ़ाकर भागने को तत्पर रहता। अब ये साधु जी का चमत्कार का या बिजली बोर्ड वालों का ये तो पता नहीं चल पाया।
पर इतना ज़रूर है कि ये गुफ़ाएँ व कंदराएँ भय तो उत्पन्न करती ही हैं और इनके साथ कोई डरावनी कहानियाँ जोड़ दे तो पूर्णतः उन पर अविश्वास करने का भी दिल नहीं करता।
One of my close friends went to Pachmarhi on his honeymoon and after reading his account, it seemed like one destination to not-miss. Though we could never plan enough to make it happen but it remained firm-n-waiting, somewhere in the back of mind.
Read his account here – https://www.ghumakkar.com/2007/12/09/pachmarhi-elemental-high
samaya beeta and recently (couple of years back), another close friend visited and he summed up the place as one which has a lot of nature (read ‘anmane se jungle’) and a lot of religious stuff and being ‘religiously challenged ghumakkars’ (read more here on why – ) , Pachmarhi sort of took a even backer (i know there is no such work, dont know why) seat.
His accounts are here – https://www.ghumakkar.com/2009/01/09/trip-to-pachmarhi-and-others-part-1/
After reading the couple of stories posted by you, my interest has gone up manifold. I also deliberated myself on whether it is because of your excellent story telling skill or is it really the place and I somehow get the answer that it needs a well planned visit for sure, possibly a Delhi-Bhopal kind of long drive.
Eagerly waiting for next one.
किसी भी जगह के अच्छे या आनंददायक होने के दो पहलू हैं। एक तो आपने वहाँ क्या देखा और दूसरे उस जगह को, वहाँ की छटा को आपने अपने में कैसे आत्मसात किया।
जो लिंक तुमने यहाँ बाँटी हैं वे सभी पंचमढ़ी का एक जैसा दृश्य चित्रों के माध्यम से व्यक्त करेंगी।
रही बात महसूस करने की तो वो यात्री की पसंद, नापसंद, साथ के समूह, उस जगह पर टिकने के अंतराल और ऐसी कई अन्य बातों पर निर्भर करता है जिसका कई बार ताल्लुक जगह से ना होकर व्यक्ति की उस वक्त की मनःस्थिति से होता है।
इस श्रृंखला के अंत में मैं जरूर बताऊँगा कि किस तरह के लोगों के लिए मेरे हिसाब से एक अच्छा या नीरस पर्यटन स्थल हो सकता है।
Hi Manish,
Fright/fear (dar) is an intrinsic part of our childhood memories (despite its [childhood’s] distance, in terms of attainability; and quality of own mind in terms of holding on to memories). ‘Dar’ relates to our parents narrating stories about a giant/rakshash or something equally terrorising, and we snuggling close to them.
Darawani kahaniya – therefore is a relative term –
whether they are stories sourced from tickling memories from a distant past; or whether they actualise an unsavoury phenomenon in our being.
‘Pero ke saath saath
hilta hai siir
Yeh mausam ab nahi
Aayega phir.’
Vasant Raag – Sarveshvar Dayal Saxena
Thanks
Auro
लाजवाब मनीष| आपके साथ साथ यूँ ही गुफ़ाओं, कंधराओं में भटकने में मज़ा आ रहा है| चलते रहें और विवरण देते रहें| मैने आपको बताया था की एक बार मुझे हिन्दी और इंग्लीश दोनो तरह के यात्रा विवरण घुमक्कड़ पर लिखने का विचार पसंद नही आया था| अब सोचता हूँ तो लगता है की वो मेरी कितनी बड़ी भूल थी | निःसंदेह अब में आपका कोई भी यात्रा वृतांत पढ़े बिना नही रह पाता| आप बहुत सुंदर लिखते हैं|
शु्क्रिया, जानकर अच्छा लगा कि मेरा ये आलेख आपको पसंद आया ! घुमक्कड़ पर हिंदी में लिखने पर मुझे भी संशय रहा है पर नंदन के बार बार कहने पर मुझे लगा कि ऐसा करने से कम से कम ये तो होगा कि लोग इस बारे में जानेंगे कि हिंदी में भी नेट पर लिखा जा सकता है।
plz ya mandir kaha hai aap mujhe bata saketa hai plz
this is a vary nice place.