पिछà¥à¤²à¥€ पोसà¥à¤Ÿ में आप लोगों ने पढा कि हम लोग à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ के लिये इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से पà¥à¤£à¥‡ पहà¥à¤‚चे, वहां रातà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤°à¤¾à¤® करके अगले दिन पà¥à¤£à¥‡ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ दगड़à¥à¤¶à¥‡à¤ गणपती मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ किये तथा नाशà¥à¤¤à¤¾ करके अपने होटल पहà¥à¤‚च गये…….अब आगे……
आज हमें महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° परिवहन की बस से लगà¤à¤— चार घंटे का सफ़र तय करके पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जाना था। अब हमें जलà¥à¤¦à¥€ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर की बस बस पकड़नी थी अत: अपना सामान पेक करके करीब गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे होटल चेक आउट करके ओटो लेकर शिवाजी नगर बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª की ओर बढ चले।

पà¥à¤£à¥‡ के होटल में चेक आउट के दौरान

होटल के रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर
पà¥à¤£à¥‡ का मारà¥à¤•ेट बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा था लेकिन समय के अà¤à¤¾à¤µ के कारण कà¥à¤› विशेष खरीदारी नहीं कर पाà¤à¥¤ बातों बातों में ओटो वाले ने बताया की पà¥à¤£à¥‡ से और कà¥à¤› खरीदो या न खरीदो लेकिन यहां का लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ चिवड़ा जरूर लेकर जाना, बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है. à¤à¤• बार खाओगे तो खाते रह जाओगे। खैर..
कà¥à¤› आधे घंटे में आटो वाले ने हमें शिवाजी नगर बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर छोड़ दिया, बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर पता चला की à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर की बस बारह बजे आà¤à¤—ी। कà¥à¤› देर बाद पता चला की बारह वाली बस फ़ेल हो गई है और अब अगली बस à¤à¤• बजे आà¤à¤—ी, यह सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही हम सब निराश हो गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚की पà¥à¤£à¥‡ का बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª इतना अचà¥à¤›à¤¾ नहीं था की वहां à¤à¤• डेढ घंटा बैठा जा सके लेकिन कà¥à¤¯à¤¾ किया जाà¤, जाना तो था ही वैसे à¤à¥€ हमें à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में रात रà¥à¤•ना था अत: समय की कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं थी, बस का इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे की तà¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ आटो वाले की चिवड़े वाली बात याद आ गई, मैनें सोचा की बंदा इतनी तारिफ़ कर रहा था तो ले ही लेते हैं।

पà¥à¤£à¥‡ बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° के पल ….
थोड़ी देर ढà¥à¤‚ढने पर ही बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड के पास ही à¤à¤• दà¥à¤•ान पर लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ चिवड़ा मिल गया तो मैनें आधा किलो का à¤à¤• पेकेट ले लिया, बाद में घर लौटने के बाद जब वो चिवड़ा खाया तो वो वाकई लाज़वाब निकला…मैने सोचा काश दो तीन किलो ले आता…….खैर रात गई बात गई।
ठीक à¤à¤• बजे बस आ गई। हमें सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• सीटें à¤à¥€ मिल गई और करीब दस मिनट के बाद ही बस हमारी बस पà¥à¤£à¥‡ से निकल पड़ी। लगातार चलते रहने के बावजà¥à¤¦ à¤à¥€ बस को पà¥à¤£à¥‡ शहर से बाहर निकलने में करीब पौन घंटा लग गया, इसी से मैनें पà¥à¤£à¥‡ की विशालता का अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ लगा लिया था।
पà¥à¤£à¥‡ शहर से निकलते ही मौसम à¤à¤•दम सà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ हो गया था, आसमान काले काले मेघों से ढंक गया था और कà¥à¤› ही देर में हलà¥à¤•ी हलà¥à¤•ी बारीश शà¥à¤°à¥ हो गई थी, सावन का महीना था और बादलों को परमीट मिला हà¥à¤† था कà¤à¥€ à¤à¥€ कहीं à¤à¥€ बरसनॆ का, फिर à¤à¤²à¤¾ वो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मानने वाले थे। जैसे ही मैंने बस से बाहर à¤à¤¾à¤‚का मेरी आà¤à¤–ें खà¥à¤²à¥€ की खà¥à¤²à¥€ रह गईं। आà¤à¤–ों के समकà¥à¤· हरियाली से लदी छोटी छोटी पहाड़ीयां अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ लग रहीं थीं।

पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के रासà¥à¤¤à¥‡ पर

पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के रासà¥à¤¤à¥‡ पर
हलà¥à¤•ी मीठी ठंड ने मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर दी और मेरा मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ से à¤à¤° गया। चारों ओर à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता था, मानो पà¥à¤°à¤•ृति ने अपने खजाने को बिखेर दिया हो, चारों ओर मखमल-सी बिछी घास, बड़े और ऊà¤à¤šà¥‡-ऊà¤à¤šà¥‡ वृकà¥à¤· à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते थे मानो सशसà¥à¤¤à¥à¤° सैनिक उस रमà¥à¤¯ वाटिका के पहरेदार हैं। पहाड़ीयों से à¤à¤°à¤¤à¥‡ सà¥à¤‚दर à¤à¤°à¤¨à¥‡ वो à¤à¥€ à¤à¤• दो नहीं कई कई, जहाठà¤à¥€ नज़र दौड़ाओ वहीं सौंदरà¥à¤¯ का खजाना दिखाई देता था। इस सà¥à¤‚दर दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ को देखकर अनायास ही मà¥à¤à¥‡ बचपन में पढी सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ नंदन पंत की à¤à¤• सà¥à¤‚दर कविता “परà¥à¤µà¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में पावस” याद आ गई जिसकी दो पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ यहां लिखने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हà¥à¤‚ :
पावस ऋतॠथी, परà¥à¤µà¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶,
पल-पल परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤•ृति-वेश।
हरियाली की चादर ओढे धरती इतने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर रही थी जिनका वरà¥à¤£à¤¨ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में करना संà¤à¤µ नहीं है, यदि आप सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯-बोध के धनी हैं और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ आपकी आà¤à¤–ों में बसी है तो मà¥à¤à¥‡ और वरà¥à¤£à¤¨ करने की आवशà¥à¤¯à¤•ता ही नहीं है। कà¤à¥€ आसमान साफ़ हो जाता तो कà¤à¥€ बादल छा जाते, सचमà¥à¤š पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ पल पल अपना वेश बदल रही थी।

रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤¸à¥‡ कई सारे à¤à¤°à¤¨à¥‡ मिले…

नैसरà¥à¤—िक खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रती
आधे रासà¥à¤¤à¥‡ की सड़क अचà¥à¤›à¥€ है और आधे रासà¥à¤¤à¥‡ की कामचलाउ। अचà¥à¤›à¥€à¤µà¤¾à¤²à¥€ सड़क पर यातायात की अधिकता के कारण और कामचलाउ सड़क पर ‘कामचलाउपन’ के कारण वाहन की गति अपने आप ही सीमित और नियनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ रही। सिंगल लेन होने के कारण सामने से और पीछे से आ रहे वाहनों को रासà¥à¤¤à¤¾ देने के कारण, चालक को वाहन की गति अनचाहे ही धीमी करनी पड़ रही थी।
वैसे तो कहा जाता है की पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर पहà¥à¤‚चने में चार घंटे लगते हैं लेकिन सच यह है की बस से पांच घंटे से कम नहीं लगते हैं। पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ की असीम सà¥à¤‚दरता को निहारते हà¥à¤ हम लोग करीब छ: बजे à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर पहà¥à¤‚चे। मन में इतनी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ थी, जिसका बयान करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है, मà¥à¤à¥‡ तो विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हो रहा था की हम अनà¥à¤¤à¤¤: वहां पहà¥à¤‚च ही गये जहां जाने की मन में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से तमनà¥à¤¨à¤¾ थी।
बस ने हमें मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहà¥à¤à¤š मारà¥à¤— के लगà¤à¤— पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• छोर पर पहà¥à¤à¤šà¤¾ दिया था। मà¥à¤¶à¥à¤•िल से सौ-डेढ सौ मीटर की दूरी पर मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ शà¥à¤°à¥ हो जाती हैं। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहाड़ी की तलहटी में है सो जाते समय आपको सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ उतरनी पड़ती हैं और आते समय चà¥à¤¨à¥€ पड़ती है। सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ लगà¤à¤— २५० हैं। सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बहà¥à¤¤ ही आरामदायक हैं – खूब चौड़ी और दो सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बीच सामानà¥à¤¯ से à¤à¥€ कम अनà¥à¤¤à¤°à¤µà¤¾à¤²à¥€à¥¤ मंदिर पहà¥à¤‚चने का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ इतना हावी था की इन सीढियों की थकान हमें पता ही नहीं चल रही थी। सीढियॉं आपको मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पीछेवाले हिसà¥â€à¤¸à¥‡ में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¤à¥€ हैं। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥, मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के लिठघूम कर जाना पडता है।
बस से जैसे ही उतरे घने कोहरे तथा बारीश ने हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया, चà¥à¤‚कि हम छाते, रैन कोट वगैरह घर से लेकर नहीं आये थे अत: à¤à¥€à¤—ते हà¥à¤ सीढियां उतरने को मज़बà¥à¤° थे, खैर बारिश जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ तेज नहीं थी अत: जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी नहीं हà¥à¤ˆ, लेकिन कोहरा इतना घना था की थोड़ी सी दà¥à¤°à¥€ से à¤à¥€ हम à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ को देख नहीं पा रहे थे, à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की चारों ओर घà¥à¤ªà¥à¤ª अंधेरा छाया हà¥à¤† है। सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी फोटो खिंचने में आ रही थी, कोहरे की वजह से फोटो लेना मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो गया था। ये कोहरा तथा बारिश अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ नौ बजे तक यथावत रहे, यानी हमने अपने पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में धूप या साफ़ आसमान तो दà¥à¤° की बात है, उजाला à¤à¥€ नहीं देखा, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों से बात करने पर मालà¥à¤® हà¥à¤† की à¤à¤¸à¤¾ मौसम यहां लगातार à¤à¤• महीने से बना हà¥à¤† है, यानी à¤à¤• महीने से धूप के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤ थे।

कोहरे में डूबे à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶

शिवम…
चà¥à¤‚की हम लोग कà¤à¥€ पहाड़ों पर नहीं गये हैं अत: à¤à¤¸à¤¾ दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ मैने अपने जीवन में पहली बार देखा था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार, बहà¥à¤¤ ही अदà¥à¤à¥‚त, कà¤à¥€ ना à¤à¥à¤²à¤¾à¤¯à¥‡ जाने वाला दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯…… धà¥à¤‚ध की वजह से हमें सामने की बस तीन चार सीढियां ही दिखाई देती थीं….हम à¤à¥€ बस अपने बैग उठाठआगे की ओर चले जा रहे थे।
कà¥à¤› देर इसी तरह चलते रहे और अचानक सामने मंदिर आ गया जिसे देखकर à¤à¤¸à¤¾ लगा कि हमें अपनी मनà¥à¥›à¤¿à¤² मिल गई, लेकिन अà¤à¥€ इस वकà¥à¤¤ हमें ठहरने के लिये à¤à¤• अदद कमरे की जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आवशà¥à¤¯à¤•ता थी। चà¥à¤‚कि हमें पहले से पता था की à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में रात रà¥à¤•ना सबसे बड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ है, यहां रà¥à¤•ने की किसी तरह की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है, न कोई होटल न धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾, बस कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¥à¤¨à¥€à¤¯ लोग अपने घरों में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ठहरने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करते हैं जो की बहà¥à¤¤ ही निमà¥à¤¨ सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ होती है।
लेकिन हम लोग इस मामले में थोड़े जिदà¥à¤¦à¥€ टाईप के हैं, यदि जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¥€à¤‚ग दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये जा रहे हैं तो उस जगह पर कम से कम à¤à¤• रात तो रà¥à¤•ना ही है, कैसे à¤à¥€, किसी à¤à¥€ हालत में…वो à¤à¥€ मंदिर के à¤à¤•दम करीब। वैसे तो हर तीरà¥à¤¥ पर हम à¤à¤• या दो दिन रà¥à¤•ने की कोशीश करते हैं, लेकिन जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के मामले में à¤à¤•दम ढीठहैं।

à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर कोहरे की चपेट में

विशाल राठोड़ की पोसà¥à¤Ÿ से सधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ लिया गया मंदिर का चितà¥à¤°

विशाल राठोड़ की पोसà¥à¤Ÿ से सधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ लिया गया मंदिर का चितà¥à¤° - मंदिर सà¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹
कविता तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को मंदिर की दिवार के पास सामान के साथ खड़ा करके मैं चल दिया कमरा ढà¥à¤‚ढने, à¤à¤• दो जगह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों से पà¥à¤›à¤¾ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने कमरे दिखाये…..बदबà¥à¤¦à¤¾à¤° सीलनà¤à¤°à¥‡ कबà¥à¤¤à¤° खाने की शकà¥à¤² लिये ये कमरे देखकर मैं उपर से निचे तक हिल गया। पलंग, पंखा तो à¤à¥‚ल ही जाओ बाबà¥à¤œà¥€, शौचालय तक नहीं थे उन कमरों में ………..चारà¥à¤œ २५० रà¥à¤ªà¤¯à¤¾, खाने की थाली à¥à¥¦ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡, टायलेट के लिये डिबà¥à¤¬à¤¾ लेकर बाहर जाना होगा, नहाने के लिये घर के बाहर टाट के परà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से बनी à¤à¤• छोटी सी खोली। लगातार बारीश, और कंपा देने वाली ठंड में नहाने के लिये गरम पानी की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं। मैं हताश हो गया ये सब माहौल देखकर, परिवार साथ था, शाम का वकà¥à¤¤ था, रात ठहरना आवशà¥à¤¯à¤• था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शाम छ: बजे पà¥à¤£à¥‡ के लिये अनà¥à¤¤à¤¿à¤® बस थी जो निकल चà¥à¤•ी थी, और वैसे à¤à¥€ साधन मिल à¤à¥€ जाता तो कà¥à¤¯à¤¾, अà¤à¥€ तो दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ नहीं किये थे।
à¤à¤• कमरा देखा, दà¥à¤¸à¤°à¤¾ देखा, तीसरा देखा…….सà¤à¥€ दà¥à¤° वही कहानी, बारीश में à¤à¥€à¤—े बचà¥à¤šà¥‡ इंतज़ार कर रहे थे और इधर मà¥à¤à¥‡ कोई सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• कमरा नहीं मिल रहा था। मà¥à¤à¥‡ परेशान होता देख à¤à¤• दà¥à¤•ान वाले ने कहा à¤à¤¾à¤ˆ साहब मंदिर के ठीक पिछे à¤à¤• गेसà¥à¤Ÿ हाउस है “शिव शकà¥à¤¤à¤¿” वहां आपको कà¥à¤› सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं वाला कमरा मिल सकता है, मैं तà¥à¤°à¤‚त उसकी बताई दिशा में बढ चला और कà¥à¤› कदम चलते ही मà¥à¤à¥‡ वो गेसà¥à¤Ÿ हाउस मिल गया। दो मनà¥à¥›à¤¿à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ सा à¤à¤µà¤¨ था यह गेसà¥à¤Ÿ हाउस जो की बहà¥à¤¤ ही बेतरतीब तरिके से बना हà¥à¤† था। उपरी मनà¥à¥›à¤¿à¤² पर आठदस कमरे बने थे तथा निचे केयर टेकर का घर और à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ था। कमरे का चारà¥à¤œ २५० रà¥. और खाने की थाली à¥à¥¦ रà¥. जिसमें तीन रोटी कामà¥à¤ªà¥à¤²à¤¿à¤®à¥‡à¤‚टà¥à¤°à¥€ तथा उसके बाद पà¥à¤°à¤¤à¤¿ रोटी दस रà¥.अलग से।
à¤à¤• लाईन में सराय वाली सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ˆà¤² में कà¥à¤› कमरे बने थे, हालात यहां à¤à¥€ कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अचà¥à¤›à¥‡ नहीं थे लेकिन हां कमरे में लाईट के लिये à¤à¤• लटà¥à¤Ÿà¥‚ लटक रहा था, दो लोहे के पलंग लगे थे बिसà¥à¤¤à¤° सहीत, जहां ये आठदस कमरे खतम होते थे वहां à¤à¤• शौचालय बना था….कौमन, लकड़ी के दरवाजे वाला जिसमें अंदर की ओर à¤à¤• सांकल लगी थी और कोने में à¤à¤• पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का डà¥à¤°à¤® रखा था पानी के लिये…. बस यही à¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ थी इस गेसà¥à¤Ÿ हाउस में जो इसे दà¥à¤¸à¤°à¥‹à¤‚ से अलग तथा विशेष बनाती थी। छत पतरे (टीन) की चदà¥à¤¦à¤°à¥‹à¤‚ की थी।
मैने आनन फ़ानन में इस गेसà¥à¤Ÿ हाउस की केयर टेकर जो की à¤à¤• सतà¥à¤¤à¤° साल की महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¨ बà¥à¤¢à¤¿à¤¯à¤¾ थी, को तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पकड़ाठऔर सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ कमरा मिलने की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ में बौराया सा, बौखलाया सा à¤à¤¾à¤—ा मंदिर की ओर अपने परिवार को लेने…. सामान तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को लेकर जब मैं उस कमरे में पहà¥à¤‚चा तो कमरा देख कर दोनों बचà¥à¤šà¥‡ मासà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¤ से बोले ..पापा आपको यही कमरा मिला था रहने के लिये … मैनें à¤à¥€ उसी मासà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¤ से जवाब दिया, हां बेटा यही कमरा यहां का बेसà¥à¤Ÿ है….सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ है….
थके हà¥à¤, à¤à¥€à¤—े हà¥à¤ हम सब, कमरे में सामान रखते ही बिसà¥à¤¤à¤° पर गिर पड़े। कà¥à¤› देर आराम करने के बाद मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨ आरती आदि का पता किया, शाम साढे सात बजे शयन आरती होनी थी जिसका अब समय हो चला था, अत: हमने सोचा की आरती में शामिल होने तथा पà¥à¤°à¤¥à¤® दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये ये समय सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ उपयà¥à¤•à¥à¤¤ है अत: हम लोग मà¥à¤‚ह हाथ धोकर कपड़े बदलकर मंदिर की ओर चल दिये, गेसà¥à¤Ÿ हाउस मंदिर से इतना करीब था की गेसà¥à¤Ÿ हाउस की सीढियां खतम होते ही मंदिर का परिसर पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहो जाता था।
मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, कà¥à¤› देर मंदिर के सà¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ का अवलोकन करने के बाद गरà¥à¤à¤—à¥à¤°à¤¹ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करके अपने ईषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ के दरà¥à¤¶à¤¨ किये….और इस तरह à¤à¤• और जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ संपनà¥à¤¨ हà¥à¤ और अब आज हम अपने दसवें जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ कर चà¥à¤•े थे।
अपने तय समय पर आरती पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहà¥à¤ˆ, हम सब à¤à¥€ बड़े मनोयोग से आरती में शामिल हà¥à¤ और आरती के बाद पà¥à¤¨: पवितà¥à¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ किये। चà¥à¤‚कि अगसà¥à¤¤ का महीना था, वैसे ही शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं की à¤à¥€à¥œ कम थी और फिर जो लोग पà¥à¤£à¥‡ से बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये आते हैं वे आमतौर पर शाम छ: बजे तक लौट जाते हैं अत: à¤à¥€à¥œ कम होने की वजह से दरà¥à¤¶à¤¨ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से हो गठथे।
à¤à¤• और बात है, यहां à¤à¥€ अनà¥à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों की तरà¥à¥› पर कà¥à¤·à¤°à¤£ से बचाव के लिये जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर पà¥à¤°à¥‡ समय à¤à¤• चांदी का कवच (आवरण) चढा कर रखा जाता है, जिससे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हो पाते हैं। हमने गरà¥à¤à¤—à¥à¤°à¤¹ में पूजा करवा रहे à¤à¤• पंडित जी से आवरण के हटाने के समय के बारे में पà¥à¤›à¤¾ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ बताया की यह आवरण सà¥à¤¬à¤¹ सिरà¥à¥ž आधे घंटे के लिये ५ से ५.३० बजे तक खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है, उस समय दरà¥à¤¶à¤¨ किये जा सकते हैं, और हमने यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया की सà¥à¤¬à¤¹ ५ बजे आकर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ करेंगे। अब हमने सà¥à¤¬à¤¹ के अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिये मंदिर के पंडित जी से बात की, हमें अà¤à¥€à¤·à¥‡à¤• के लिये à¤à¥€ सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे का ही समय मिला, यह सà¥à¤¨à¤•र हमारी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा, यानी हम बिना आवरण के जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कर पायेंगे…यहां रà¥à¤¦à¥à¤° अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• का चारà¥à¤œ ५५० रà¥. है।

हर जगह और हर समय कोहरा ही कोहरा
सà¥à¤¬à¤¹ के अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिये समय वगैरह तय करके अब हम वापस अपने गेसà¥à¤Ÿ हाउस के उस सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ कमरे में आ गà¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹ के नाशà¥à¤¤à¥‡ के बाद अब तक कà¥à¤› खाया नहीं था अत: कà¥à¤› ही देर में हम गेसà¥à¤Ÿ हाउस के निचे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में पहà¥à¤‚च गये, खाना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ नहीं था लेकिन à¤à¥à¤– की वजह से वह खाना à¤à¥€ बहà¥à¤¤ टेसà¥à¤Ÿà¥€ लग रहा था, दà¥à¤¸à¤°à¥€ बात यह थी की खाना à¤à¤•दम गरà¥à¤®à¤¾ गरम सरà¥à¤µ किया जा रहा था, बाहर के à¤à¤•दम ठंडे वातावरण में यह गरà¥à¤® खाना सनà¥à¤œà¥€à¤µà¤¨à¥€ का काम कर रहा था।
खाना खाने के बाद गेसà¥à¤Ÿ हाउस वाली अमà¥à¤®à¤¾à¤‚ से हमने निवेदन किया की हमें सà¥à¤¬à¤¹ दो बालà¥à¤Ÿà¥€ गरà¥à¤® पानी दे दिजिà¤à¤—ा, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ हमारे इस निवेदन को सीरे से खारिज़ कर दिया, हमने फ़िर कहा हमारे साथ छोटे छोटे बचà¥à¤šà¥‡à¤‚ हैं, आप चाहे तो दस बीस की जगह हमसे à¤à¤• बालà¥à¤Ÿà¥€ का ५० रà¥. ले लेना, लेकिन वो नहीं मानी, उनकी दलील यह थी की कई दिनों से सà¥à¤–ी लकड़ी देखने को नहीं मिली है, और गैस की यहां बहà¥à¤¤ किलà¥à¤²à¤¤ है…..खैर निराश होकर हम अपने कमरे में आकर सो गà¤, यह सोच कर की जो à¤à¥€ होगा सà¥à¤¬à¤¹ देखा जाà¤à¤—ा।
खा पीकर हम कमरे में आकर, कà¥à¤› उस गेसà¥à¤Ÿ हाउस के और कà¥à¤› अपने साथ लाठकंबलों को ओढकर चार बजे का अलारà¥à¤® लगा कर सो गà¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ नींद नहीं आ रही थी अत: मैंने टाइम पास करने कॆ लिये खिड़की से बाहर à¤à¤¾à¤‚का, बाहर à¤à¥€ पà¥à¤°à¥€ तरह अनà¥à¤§à¤•ार फ़ैला हà¥à¤† था और दà¥à¤° दà¥à¤° तक रोशनी का कोइ नाम निशान नहीं था। रात à¤à¤° बारिश होती रही…. बारीश की बà¥à¤‚दें टीन की छत पर गिर कर शोर कर रहीं थीं, कà¥à¤› तो बाहर पसरा अंधकार, कà¥à¤› बारिश की अवाज़ें और नई तथा सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ जगह। हममें से कोई à¤à¥€ रात को ठीक से सो नहीं पाया। हमने रात में ही निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया था की बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ नहीं उठाà¤à¤‚गे हम दोनों ही अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करके आ जाà¤à¤‚गे और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को लौटते समय दरà¥à¤¶à¤¨ करवा देंगे।
सà¥à¤¬à¤¹ ४.३० बजे अलारà¥à¤® ने अपना करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ निà¤à¤¾à¤¯à¤¾, और हम दोनों à¤à¥€ जैसे उसके बजने का ही इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे। हम दोनों जागते ही à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ का चेहरा देखने लगे….कà¥à¤¯à¤¾ होगा? कैसे होगा? बाहर रात à¤à¤° से बारिश हो रही है और अà¤à¥€ à¤à¥€ बारिश अनवरत जारी है, पà¥à¤°à¥‡ माहौल में ठंडक फ़ैली हà¥à¤ˆ है, सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ तथा अंधकार पसरा हà¥à¤† है, गरà¥à¤® पानी की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है, नहाà¤à¤‚गे कैसे? और à¤à¤¸à¥‡ कई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ हम दोनों के दिमाग में चल रहे थे।
मेरा मन थोड़ा डांवाडोल हो रहा था, लेकिन कविता ने माहौल की नज़ाकत को समà¤à¤¾ और मà¥à¤à¥‡ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ की हम इतनी दूर सावन के महीने में यहां कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आये हैं? वो à¤à¥€ इतनी मà¥à¤¶à¥à¤•िलों को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤, तो फ़िर ठंड और ठंडे पानी से कà¥à¤¯à¤¾ डरना, और रोज़ तो इस तरह की परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¤¾à¤‚ नहीं बनतीं, थोड़ी सी तकलिफ़ के कारण कà¥à¤¯à¤¾ अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• नहीं करेंगे? बस मेरे लिये इतना परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ था, और हम दोनों à¤à¤• à¤à¤Ÿà¤•े में बिसà¥à¤¤à¤° से उठखड़े हà¥à¤à¥¤
और फिर आगे का हाल तो कà¥à¤¯à¤¾ बताउं…हम लोग आवशà¥à¤¯à¤• सामान लेकर किसी योदà¥à¤§à¤¾ के समान निचे आ गये, निचे बाथरà¥à¤® के नाम पर à¤à¤• कमरा था जिसमें दरवाज़ा नहीं था और हां लाईट à¤à¥€ नहीं, अंधेरे के कारण कà¥à¤› दिख नहीं रहा था और बारिश लगातार हो रही थी, मग नहीं दिखाई दिया तो बरसते पानी में बालà¥à¤Ÿà¥€ उठाई और ओम नम: शिवाय के घोष के साथ बरà¥à¥ž जैसे ठंडे पानी की बालà¥à¤Ÿà¥€ को अपने शरीर पर उंढेल लिया……….और इस तरह हमारा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ हो गया, कमरे में जाकर तैयार होकर कमरे की कà¥à¤‚डी लगाकर हम मंदिर की ओर à¤à¤¾à¤—े।
मंदिर में पंडित जी हमारा इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे, आज हमने à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जी के बिना कवच के दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ किया, पà¥à¤œà¤¨ अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया। अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कà¥à¤› आधा घंटा चला, और फ़िर हम कमरे में आ गठ, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को जगाया, तैयार किया और सामान वगैरह पैक करके कमरा खाली करके मंदिर पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤ अà¤à¥€ à¤à¥€ बारीश हो रही थी और कोहरा छाया हà¥à¤† था। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ करवाà¤, हमने à¤à¥€ किये, मंदिर के फोटो खिंचे, जो की कोहरे की वजह से बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ नहीं आ रहे थे।

कोहरा, मंदिर और हम

मंदिर

न मैं दिखाई दे रहा हà¥à¤‚ न मंदिर…फ़िर à¤à¥€ देख लिजिये.
और अब हम पà¥à¤¨: बारिश में à¤à¥€à¤—ते हà¥à¤, कोहरे से à¤à¤¿à¥œà¤¤à¥‡ हà¥à¤ बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª की ओर बढ चले, रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• नाशà¥à¤¤à¥‡ की दà¥à¤•ान से नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और कà¥à¤› ही कदमों का सफ़र तय करके बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर पहà¥à¤‚च गà¤, जहां पर पà¥à¤£à¥‡ की बस खड़ी थी, इस बस से हमें मंचर तक जाना था मंचर से हमें नाशिक के लिये बस पकड़नी थी…..अपने अगले पड़ाव यानी तà¥à¤°à¥à¤¯à¤‚बकेशà¥à¤µà¤° के लिये।
अपने ईषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ के दरà¥à¤¶à¤¨ की तृपà¥à¤¤à¤¿ इस यातà¥à¤°à¤¾ की हमारी सबसे बड़ी और à¤à¤• मातà¥à¤° उपलबà¥à¤§à¤¿ रही। बिना माà¤à¤—ी सलाह यह है कि यदी आप में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और à¤à¤•à¥à¤¤à¥€ की थोड़ी सी à¤à¥€ कमी है तो यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले लौटने की चिनà¥à¤¤à¤¾ और वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अवशà¥à¤¯ कर लें, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚की यह शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ का परिकà¥à¤·à¤¾ केंदà¥à¤° है…..à¤à¤—à¥à¥›à¤¾à¤® सेंटर।

लौटते समय à¤à¥€ कोहरा

अलवीदा à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर ..

मंचर तक इसी बस में जाना है….
अगली तथा अनà¥à¤¤à¤¿à¤® पोसà¥à¤Ÿ में मेरे साथ तà¥à¤°à¥à¤¯à¤‚बकेशà¥à¤µà¤° तथा शिरà¥à¤¡à¥€ चलने के लिये तैयार रहीयेगा….अगले संडे….तब तक के लिये हैपà¥à¤ªà¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी………
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कà¥à¤› जानकारी à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के बारे में, आवशà¥à¤¯à¤• समà¤à¥‡à¤‚ हो तो पढ लीजियेगा:
à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के à¤à¥‹à¤°à¤—िरि गांव जो की खेड़ तालà¥à¤•ा से 50 कि.मि. उतà¥à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® तथा पà¥à¤£à¥‡ से 110 कि.मी. में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ घाट के सहà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤¿ परà¥à¤µà¤¤ पर 3,250 फीट की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यहीं से à¤à¥€à¤®à¤¾ नदी à¤à¥€ निकलती है जो की दकà¥à¤·à¤¿à¤£ पशà¥à¤šà¤¿à¤® दिशा में बहती हà¥à¤ˆ आंधà¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के रायचूर जिले में कृषà¥à¤£à¤¾ नदी से जा मिलती है। यहां à¤à¤—वान शिव के à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पाठजाने वाले बारह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग है।
आप यहां सड़क और रेल मारà¥à¤— के जरिठआसानी से पहà¥à¤‚च सकते हैं। पà¥à¤£à¥‡ के शिवाजीनगर बस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤• से à¤à¤®à¤†à¤°à¤Ÿà¥€à¤¸à¥€ की सरकारी बसें रोजाना सà¥à¤¬à¤¹ 5 बजे से शाम 4 बजे तक पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ हर घणà¥à¤Ÿà¥‡ में à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के लिठमिलती हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पकड़कर आप आसानी से à¤à¥€à¤®à¤¶à¤‚कर मंदिर तक पहà¥à¤‚च सकते हैं किनà¥à¤¤à¥ लौटते समय अनà¥à¤¤à¤¿à¤® बस (à¤à¥€à¤®à¤¾ शंकर से) शाम 6 बजे है। शिवाजी नगर बस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤• के पास से ही पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤µà¥‡à¤Ÿ टैकà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ मिलती हैं लेकिन उनकी नियमितता निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ नहीं है। महाशिवरातà¥à¤°à¤¿ या पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• माह में आने वाली शिवरातà¥à¤°à¤¿ को यहां पहà¥à¤‚चने के लिठविशेष बसों का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ à¤à¥€ किया जाता है। ।
à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर नागर शैली की वासà¥à¤¤à¥à¤•ला में बना à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ और नई संरचनाओं का समà¥à¤®à¤¿à¤¶à¥à¤°à¤£ है। इस मंदिर से पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कौशल शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता का पता चलता है। इस सà¥à¤‚दर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिठकई तरह की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° काफी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण à¤à¤µà¥à¤¯ और लमà¥à¤¬à¤¾-चौड़ा नहीं है और न ही मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का मणà¥à¤¡à¤ªà¥¤ सब कà¥à¤› मà¤à¥Œà¤²à¥‡ आकार का।
गरà¥à¤à¤—ृह में जन सामानà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। सनातनधरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के तमाम तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की तरह यहाठà¤à¥€ शिव लिंग के चितà¥à¤° लेना निषेधित है। गरà¥à¤à¤—ृह के बाहर, à¤à¤• दरà¥à¤ªà¤£ लगाकर à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गई है कि मणà¥à¤¡à¤ª में खड़े रहकर आप शिवलिंग के दरà¥à¤¶à¤¨ कर सकें। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का रख-रखाव और साफ-सफाई ठीक-ठाक है।
As usual very well written !
Pune is famous for Chiwada – Laxmi Narayana , Vakarwadi – Chitale & Chikkis – Lonawala.
Thank you very much mahesh ji for your kind words.
भाल्से जी, सुनकर बड़ा अजीब लगा कि इस धार्मिक स्थल पर यात्रियों के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है ! और ऐसे खराब मौसम में तो दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था !
बारिश में तो पुणे घूमने का मज़ा ही अलग है मुझे याद है मैं मार्च 2009 में पुणे गया था ! तब पुणे में रहने वाले मेरे मित्रों ने कहा था समय निकाल कर यहाँ जुलाई-अगस्त में फिर से आना, बरसात में यहाँ प्रकति का अलग ही रूप दिखता है ! कभी-२ ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती है जब बारिश की वजह से सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है !
चिवडे के अलावा पुणे की गजक भी काफ़ी लोकप्रिय है, स्थानीय लोग इस गजक को चिकी के नाम से जानते है ! वैसे लेख को आपने बहुत ही बढ़िया लिखा है, सारी उपयोगी जानकारी यहाँ विद्यमान है, अगले लेख का इंतज़ार रहेगा !
Yes Pradeep, its true that there is no proper facility of accommodation in Bhimashankar, but it never hinder the true believers to come here for darshan. Truely said, where there is a will there is a way.
Thanks for your nice and wise comment.
The whole belt of Konkan is heavenly during rains. A couple of years back I drove from Mumbai to Goa-border via Pune (7 day driving trip) during mid August and the visuals were same as what you described Mukes bhai.
Sad to hear about lack of infrastructure around the temple. I would guess that since it is among the 12 Jyotirlings, it must be attracting a lot of pilgrims. Just now, I read a post by Prof Bawa where he mentions about ‘Swamynarayan Temple’ in Ahmedabad. Hopefully things would get better over time.
Thank you Nandan for such kind and sweet words.
At the outset, let me honestly praise you whole heartedly for the brilliant narration. Also its rare to believe the kind of devotion now a days in youngsters. Its very sad to know the apathy of Maharashtra government for a place of such importance which is neglected of even basic amenities. The photographs are excellent despite of all adversities. Your post has instigated me to visit the place soon. Wish your wish to visit all Jtotirlingas fulfill with same devotion and wait eagerly to know them from your narration. Good luck.
Ajay ji,
Thank you very much for liking the narration. Rightly said, none of the facilities are provided by Government here. I pray the almighty to bless you with an opportunity to have his darshan at Bhimashankar soon.
Now only two Jyotirlings are remaining for our darshan Rameshwar and Kedarnath, My next tour for Rameshwaram is fixed but for Kedarnath I’m not sure when the yatra will start there again. I hope by next year the things will be favorable and we’ll be able to plan for there.
Thanks.
good post.it is time to develop such places from tourism point.through tourism economic and all round develop of the region and the country is very much possible.
Thank you sir for your comment. I agree with you on development of such important places.
Mukesh Ji, Namaskar. Your devotion is very appreciable and I salute you for your ordeal but your faith in the God might have overcome that ordeal but frankly speaking I felt apath after reading that the place lacked infrastructure.
Rakesh ji,
Thank you very much for your kind words. Really staying there in Bhimashankar is not at all less than an ordeal.
Hi Mukesh ji
Very nice written post. Kudos to you and your family for facing all such hostile conditions, their spirit remain your strength. Also thanx for a very good piece of stanza of Pant ji.
You described the nature while travelling very beautifully.
Thanx for sharing.
Avrtar ji,
Thanks for liking the post, receiving appreciation from the excellent writer like you is itself a big pleasure.
Mukesh Ji,
Thanks for sharing nicely described post. Spending a night with family at a place which lacks basic amenities is a brave decision.
I along with my friends visited this place in June 2013 and saw the pathetic condition there. During Darshan, the electricity went off and we were shocked to know that there was no backup through generator or inverter. we used our mobile phone’s light to have darshan.
One thing more, during that day also It was raining heavily and was dense fog every where. I was surprised to see the same scene through your photographs.
Once again Thanks for sharing.. Jai Bhole Ki..
Thank you very much Naresh ji for your appreciating and motivating words. Its really strange to read that you found fog there even in the month of June, it means fog is common there. Jai Bhole…..
Thanks.
श्री मन मुकेश जी….. जय भीमाशंकर की….
हम्रेशा की तरह आपका लेख बहुत बढ़िया लगा…. | कभी – कभी तीर्थ स्थानों पर विषम परिस्थियों का सामना करना पड़ जाता है … जो सुविधाओं के आभाव में हमारे मन को भी विचलित कर देता है….खैर भगवान के दर्शन के लिए कुछ कष्ट तो उठाने ही पड़ते है ….| आपके साथ एक और ज्योतिर्लिंग का वर्णन पढ़ने को मिला उसके लिए धन्यवाद …… शुरू के फोटो काफी अच्छे लगे पर बाद के फोटो कोहरे के कारण धुधले हो गए…..|
लेख के लिए धन्यवाद …..
रितेश जी,
पोस्ट पढ़ने तथा प्रतिक्रिया प्रेषित करने के लिये धन्यवाद। आपकी टिप्पणियाँ इसी तरह हमारा पथ प्रशष्त करती रहें यही कामना है।
मुकेश जी
बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने भीमाशंकर कि यात्रा करवाई। हाँ यह जानकार बहुत ख़राब लगता है कि इतने बड़े तीर्थ स्थान पर ठहरने कि समुचित व्यवस्था न हो तो परिवार के सदस्यो को सम्भालना मुश्किल हो जाता है।
रस्तोगी जी,
पोस्ट पसंद करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
Hi Mukesh,
I got to travel a lot in Maharashtra this year during the rains. It is the best time to spend here. Also, this year monsoons have been awesome which have filled up the dams and rivers in the drought hit districts. When you see this greenery, it is obvious you will turn into a poet. I have been to Shivaji Nagar bus stand quite a few times. It is not as bad as the North India bus stands, but Karnataka bus stands are the best in whole of India.
I think it is only you who could undertake this journey along with family with the pain points we experience in all pilgrimage sites.
Thanks for sharing!
Nirdesh sir,
Thank you very much for your sweet words. I do agree with you on the bus stands, some 2 years back I had visited Udupi and found bus stand here really very clean and tidy.
Thanks.
Honest travelogue, giving true details… thanks
Thank you very much sir for your encouraging and motivating comment…
मुकेश जी
आपकी भीमाशंकर ज्योतिर्लिग यात्रा कि शानदार प्रस्तुति के लिए आभार मानसूनी फोटो अच्छे लगे है
काश वहा यात्रियों के ठहरने कि उचित व्यवस्था होती तो हम जैसे पाठक भी आसानी से यात्रा कर सकते
Laddha ji,
At the outset, thanks a ton for your appreciating words, Secondly staying at Bhimashankar only is difficult but visiting their in day time and returning back to Pune in the evening is the best idea. You can find buses from pune frequently.
Thanks.
Enjoyed reading your post which brought back memories of my visit in 2011. I was lucky enough to have the Darshan of idol in its natural form without silver cover early in the morning but Abhishek Pooja was performed only after it was covered with Silver Shivlinga.
There are few hotels 15-20 minutes before you reach temple. I stayed at Blue Mormon Resort which had all modern facilities and was able to take hot shower at 4am to participate in Mangala Aarti…There was also another hotel at same road intersection – I think the name was Natraj.
बेहतरीन पोस्ट मुकेश जी
मैंने तो खैर सुना भी नहीं था यहाँ के बारे मे लेकिन पढ़कर मजा आ गया, ऐसे हालात मे आपकी सहनशक्ति की जितनी तारीफ की जाए कम है. परिवार के साथ कितनी दिक्कत होती है समझा जा सकता है लेकिन जहा चाह वहा राह
Thanks for so much information. Can you say about availability of transport from Shani Shingnapur to Bhima Shankar.
We two couples senior citizens have planned to visit Jyotirlingas of M.P. & Maharashtra. Can you guide us about road travel fromShani Shingnapur to Bhima Shankar and there from to Triambakeshwar and near by Nasik