पà¥à¤²à¤¾à¤¨ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• सब सà¥à¤¬à¤¹ 05:00 बजे तक उठगà¤à¥¤ देर रात खाने और सोने की वजह से कोई à¤à¥€ फà¥à¤°à¥‡à¤¶ नहीं हो पाया। 05:15 तक सब अपना सामान लेकर होटल से चेक आउट करके गाड़ी में जाकर बैठगà¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹-सà¥à¤¬à¤¹ बहà¥à¤¤ ठंड लग रही थी। गरम रजाई से निकल कर ठंडी गाड़ी मे जो आ बैठे थे। आज हमे मनाली से पैंग तक 300km का सफ़र तय करना था। वो à¤à¥€ पूरा पहाड़ी रासà¥à¤¤à¤¾à¥¤
पैंग से पहले आज हमारा सामना बरालाचा ला दरà¥à¤°à¤¾ (Baralacha La Pass) से होना था। इसकी ऊंचाई 4890 मीटर या 16040 फीट है। मैं और राहà¥à¤² कई बार उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ में बहà¥à¤¤ सी जगह जा चà¥à¤•े थे पर कोई à¤à¥€ इतनी ऊंचाई पर नहीं थी। और आगे के सफ़र मे तो इससे à¤à¥€ ऊà¤à¤šà¥‡ दरà¥à¤°à¥‹ से होकर जाना था। हम इस सबके लिठपहले से ही मानसिक रूप से तेयार थे। दाद तो अंकल की देनी होगी जो कà¤à¥€ मनाली से आगे नहीं गठथे। पूछने पर बताया की रोहतांग तक गया हूठपर कोई जानकर बता रहा था कि रोहतांग से 100km आगे ही लदà¥à¤¦à¤¾à¤– है। ये अंकल की कमान से निकला हà¥à¤† तीसरा joke था। मैंने आगे कà¥à¤› नहीं बोला हम सब फिर से चोरी-छà¥à¤ªà¥‡ मà¥à¤¸à¥à¤•राने लगे। मैंने सोचा बताने से कà¥à¤¯à¤¾ फायदा आगे खà¥à¤¦ ही बोरà¥à¤¡à¥à¤¸ मे पढ़ लेंगे की कितनी आगे जाना है।
इस समय à¤à¥€ गाड़ियाठलगातार चलने लग गई थी लोग जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ निकल पड़ते है ताकि रोहतांग तो समय से पार कर ले। देरी हो जाने पर अकà¥à¤¸à¤° रोहतांग से 8-10km पहले से ही टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• बढ़ने लगता है और लगातार बरà¥à¤« के पिघलने की वजह से सड़क में 2-3 फà¥à¤Ÿ गहरा कीचड़ बन जाता है। टाइम से निकलने के बाद à¤à¥€ हम लोग à¤à¥€ कीचड़ के शिकार बन गठथे। हमारे आगे à¤à¤• Innova थी वो बà¥à¤°à¥€ तरेह से फà¤à¤¸à¥€ हà¥à¤ˆ थी। उसकी सवारी उतर कर धकà¥à¤•ा लगा रही थी। कहीं वजन से हमारी गाड़ी à¤à¥€ न फà¤à¤¸ जाये मैं, हरी और मनोज à¤à¥€ नीचे उतर गà¤à¥¤ हमने à¤à¥€ उस Innova पर धकà¥à¤•ा लगाया लेकिन वो बà¥à¤°à¥€ फà¤à¤¸ गई थी। मैं Innova को पीछे बाà¤à¤ तरफ से धकेल रहा था। तà¤à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने फिर से गियर लगाया और इस बार पीछे के टायरà¥à¤¸ तेजी से घà¥à¤®à¥‡ और सारा कीचड़ मेरे ऊपर आ गिरा। मेरा उपरी माला खाली है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ मेरे सर पर बाल कम हैं तो मैंने टोपी पहनी हà¥à¤ˆ थी लेकिन टोपी से लेकर मफलर, जैकेट, जीनà¥à¤¸, जूते सब कà¥à¤› कीचड़ मे लतपत हो गया था। ठंड बहà¥à¤¤ थी ऊपर से ये कीचड़ कौन साफ़ करे साफ़ करने पर और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ फैल जाà¤à¤—ा। मैंने सिरà¥à¤« अपना चेहरा साफ़ किया और बाकि à¤à¤¸à¥‡ ही छोड दिया। कीचड़ सूखने के बाद आराम से à¤à¤¡ गया। चूकि वो कीचड़ पहाड़ ओर रासà¥à¤¤à¥‡ की गीली मिटà¥à¤Ÿà¥€ का था कहने का मतलब गंदा नहीं था तो à¤à¤¡à¤¼à¤¨à¥‡ के बाद कोई काला धबà¥à¤¬à¤¾ à¤à¥€ नहीं लगा। अपनी सूà¤-à¤à¥à¤ पर खà¥à¤¶à¥€ हà¥à¤ˆ की अचà¥à¤›à¤¾ किया की कीचड़ को सूखने दिया।
इस वकà¥à¤¤ सिरà¥à¤« राहà¥à¤² ही अंकल के साथ गाड़ी में था। अंकल कीचड़ से बचने के लिठगाड़ी को दाà¤à¤ ओर दबा कर चला रहे थे।

अंकल के साथ राहà¥à¤² गाड़ी मे अकेले बैठा हà¥à¤†
à¤à¤•ा-à¤à¤• राहà¥à¤² ने गाड़ी रà¥à¤•ाई और हमारे साथ पैदल चलने लगा और बोला की सालो मà¥à¤à¥‡ अकेले मरने के लिठछोड़ आà¤, बूढ़ा पागल हो गया है दाà¤à¤ तरफ दबा कर चला रहा है नीचे गहरी खाई है।

देखिठसड़क की हालत। चारकोल की जगह कीचड़ की सड़क।

ये फोटो मनोज ने लिया है। कà¥à¤¦à¤°à¤¤ का खूबसूरत नज़ारा और कीचड़ से à¤à¤°à¥€ सड़क।
वैसे तो राहà¥à¤² कशà¥à¤®à¥€à¤° का रहने वाला है और अपना बचपन वहीठबिताया और सà¥à¤•ूल की पढाई वहीठसे की है, मैं ये बताना चाहता हूठकी उसको ऊंचाई-गहराई से कोई खौफ़ नहीं है पर वो à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ करता पिछले बीते 2 दिनों मे अंकल के साथ अकेले बैठने का उसका साहस थोड़ी देर मे ही चूर-चूर हो गया। हम लोग फिर से पेट पकड़ कर हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगे।
करीब 1 km चलने के बाद हम फिर से गाड़ी मे सवार हो गà¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹ के 09:30 बजे तक हम रोहतांग पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ इस समय à¤à¥€à¤¡à¤¼ बहà¥à¤¤ कम थी। इतनी सà¥à¤¬à¤¹ कोई परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• रोहतांग पर नहीं आते। इस समय लोकल लोग ही सफ़र करते हैं जिनको अपने घर या फिर किसी काम से रोहतांग से आगे जाना होता है। या फिर हम जैसे लोग ही होते हैं। रोहतांग पर गाड़ी रोक ली गई। अब तक रात का खाना पच गया था à¤à¤•-à¤à¤• कर सब फà¥à¤°à¥‡à¤¶ हो गà¤à¥¤ यहीं पर नाशà¥à¤¤à¥‡ का आरà¥à¤¡à¤° दे दिया गया। अंकल ने चाय और आलू के परांठे, बाकि हम सबने दूध और बà¥à¤°à¥‡à¤¡-बटर। राहà¥à¤² ने कà¥à¤› चॉकलेट à¤à¥€ खरीदे। चॉकलेट मे हाई à¤à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€ होती है जो ठंडे मौसम के लिठलाà¤à¤¦à¤¾à¤¯à¤• है।
अंकल पिछले 2 दिनों मे काफ़ी थक चà¥à¤•े थे जैसे की:-
– “Haveli” से पहले गाड़ी को रोड से नीचे कà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¤¾ का सà¥à¤Ÿà¤‚ट।
– 09-सितमà¥à¤¬à¤° की पूरी रात गाड़ी चलाना।
– 10-सितमà¥à¤¬à¤° को बिलासपà¥à¤° से मंडी और वापस मंडी से बिलासपà¥à¤° हिमाचल रोडवेज की बस का टूर लगाना।
– मनाली पहà¥à¤à¤š कर सिरà¥à¤« 5 घंटे की नींद लेना और 11-सितमà¥à¤¬à¤° को फिर से आगे चल पड़ना।
नाशà¥à¤¤à¤¾ करने के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गाड़ी की चाबी मà¥à¤à¥‡ पकड़ा दी और बोले जब थक जाठतब बता देना मैं पीछे जाकर सो रहा हूà¤à¥¤ अंकल का सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खौफ़ हरी को था ये सà¥à¤¨à¤•र मानो उसकी ख़à¥à¤¶à¥€ का कोई ठिकाना न था। उसका चेहरा देखना लायक था। हरी ने इंगà¥à¤²à¤¿à¤¶ मे बोलकर अपनी ख़à¥à¤¶à¥€ का इज़हार किया ताकि अंकल को समठमे न आà¤à¥¤ हम सब हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ पड़े। सारे रसà¥à¤¤à¥‡ अंकल और मैंने ही गाड़ी चलाई। वैसे तो हम सà¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ चालक हैं लेकिन हरी और मनोज तो पहाड़ पर चलाने की सॊच à¤à¥€ नहीं सकते थे। इन दोनों का ये पहला पहाड़ी अनà¥à¤à¤µ था वो à¤à¥€ सीधे लदà¥à¤¦à¤¾à¤– का। राहà¥à¤² कई बार पहाड़ पर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µ कर चà¥à¤•ा है पर सिरà¥à¤« अपनी गाड़ी से कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि उसके पास आटोमेटिक टà¥à¤°à¤¾à¤‚समिशन (AT-Automatic Transmission) वाली कार है और गियर वाली गाड़ी का अनà¥à¤à¤µ कम है। रोहतांग को अलविदा कर हम दरà¥à¤°à¤¾ पार करके अब नीचे उतरने लगे। अब हम चंदà¥à¤°à¤¾ नदी के साथ चल रहे थे। ये हमारे दाà¤à¤ ओर बह रही थी। आगे à¤à¤• लोहे का पà¥à¤² पार करके हम “कोकसर” वेली मे पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ “कोकसर” à¤à¤• गाà¤à¤µ के जैसा है। यहाठपर चाय, खाने-पीना की दà¥à¤•ाने हैं, कà¥à¤› दà¥à¤•ानों मे रात बिताने का à¤à¥€ इंतजाम है। Rs 100 मे बिसà¥à¤¤à¤° और रजाई/कंबल आराम से मिल जाता है। अà¤à¥€ का पता नहीं, उमà¥à¤®à¥€à¤¦ है की मंहगाई के चलते रेट बढ़ ही गया होगा। यहाठपर टायर/पंकà¥à¤šà¤° की दà¥à¤•ाने à¤à¥€ हैं। अब चंदà¥à¤°à¤¾ नदी हमारे बाà¤à¤ ओर बह रही थी और हम चाय पीने के बाद आगे निकल पड़े। “कोकसर” वेली से आगे का रासà¥à¤¤à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ था और पà¥à¤°à¤¾à¤•रà¥à¤¤à¤¿à¤• सोनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ तो à¤à¤°à¤ªà¥‚र था। चंदà¥à¤°à¤¾ नदी हमारे बाà¤à¤ ओर बह रही थी अà¤à¥€ हम जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ऊंचाई पर नहीं थे और सड़क à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ घà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤¦à¤¾à¤° होने की बजाठलगà¤à¤— सीधी ही थी। कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो गाड़ी की रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° बिना किसी दिकà¥à¤•त के 60-70km/h पर बनी हà¥à¤ˆ थी। कà¥à¤› देर के बाद फिर से चढाई शà¥à¤°à¥‚ हो गई थी। हम “सिसà¥à¤¸à¥‚” नामक कसबे मे गà¥à¤œà¤¼à¤° रहे थे। “सिसà¥à¤¸à¥‚” मे à¤à¤• “Helipad” à¤à¥€ है। किसी-किसी जगह पर हमारे बाà¤à¤ ओर चंदà¥à¤°à¤¾ नदी के किनारे निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कारà¥à¤¯ à¤à¥€ चल रहा था। सच कहूठतो रोहतांग दरà¥à¤°à¤¾ पार करने के बाद से à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की किसी दूसरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे आ गया हूà¤à¥¤ अगर लोगों और गाडियों को हटा दिया जाठतो मैं à¤à¤• नयी, अंजान, खूबसूरत और रोमांच से à¤à¤°à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे था। “सिसà¥à¤¸à¥‚” से आगे चलने पर “टांडी” आ गया। “टांडी” मे चंदà¥à¤°à¤¾ नदी के साथ “à¤à¤¾à¤—ा†नदी मिलती है। इस संगम के बाद यहाठसे इसका नाम “चंदà¥à¤°à¤¾-à¤à¤¾à¤—ा†हो जाता है। जमà¥à¤®à¥‚-कशà¥à¤®à¥€à¤° मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही चंदà¥à¤°à¤¾-à¤à¤¾à¤—ा का नाम “चेनाब” हो जाता है। “टांडी” मे à¤à¤• इंडियन आयल का पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप है। वहीं से हमने फिर से Xylo का टैंक फà¥à¤² करवा लिया था। इसके अतिरिकà¥à¤¤ हमारे पास à¤à¤• 20 लीटर की कैन à¤à¥€ थी जिसे हमने दिलà¥à¤²à¥€ मे à¤à¤°à¤¾ था। इस पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप पर लगे बोरà¥à¤¡ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• यहाठसे अब अगला पेटà¥à¤°à¥‹à¤² पंप 365km बाद था।
टांडी से 9km आगे चल कर हम लोग “केलोंग” पहà¥à¤à¤š गठथे। यहाठरà¥à¤• कर सबने चाय और बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ का सेवन किया। पानी की 4-5 बोतलें à¤à¥€ खरीदी। ऊà¤à¤šà¥€ जगह पर पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ तो कम लगती है और अगर पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लगे à¤à¥€ तो मौसम ठंडा होने के कारण इंसान नज़रंदाज़ à¤à¥€ कर देता है, पर असल मे इस वजह से शरीर मे पानी की कमी हो जाती है जिसकी वजह से अकà¥à¤¸à¤° तबीयत बिगड़ जाती है। à¤à¤¸à¤¾ हमारे साथ न हो इसलिठपानी का पूरा इंतजाम कर लिया था। केलोंग मे “Lahaul और Spiti” का district headquater है।
यहाठपर बहà¥à¤¤ से सरकारी दफà¥à¤¤à¤° और सेवाà¤à¤ है। à¤à¤• बड़ा बाज़ार और सड़क से दाà¤à¤‚ ओर नीचे बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड à¤à¥€ है। यहाठपर रà¥à¤•ने का पूरा इंतजाम है कई रेसà¥à¤Ÿ हाउस, सरकारी बंगलो और होटल à¤à¥€ है। केलोंग मे गाड़ी का हवा-पानी टिप-टॉप करने के बाद हम बिना रà¥à¤•े “जिसà¥à¤ªà¤¾”, “दारà¥à¤š” होते हà¥à¤ “zingzingbar” पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ à¤à¤• बात बता दूं की “zingzingbar” मे à¤à¥€ रात को रà¥à¤•ने का इंतजाम है। अà¤à¥€ दोपहर का समय था तो हमने रà¥à¤•ना ठीक नहीं समà¤à¤¾à¥¤ ये हमारी बहà¥à¤¤ बड़ी à¤à¥‚ल थी। इसका ज़िकà¥à¤° आगे चल कर दूंगा। “zingzingbar” से आगे खड़ी चढाई पार करने के बाद हमने “बारालाचा ला दरà¥à¤°à¤¾” दरà¥à¤°à¤¾ पार कर लिया था। इस दरà¥à¤°à¥‡ की ऊंचाई 5030 मीटर या 16500 फीट है। यहाठसे लगातार उतरने के बाद हम लोग “à¤à¤°à¤¤à¤ªà¥à¤°” होते हà¥à¤ “सारà¥à¤šà¥‚” पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤
“सारà¥à¤šà¥‚” मे हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की सीमा समापà¥à¤¤ हो जाती है और जमà¥à¤®à¥‚-कशà¥à¤®à¥€à¤° की लादà¥à¤¦à¥à¤–ी सीमा शà¥à¤°à¥‚ हो जाती है। यहाठपर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सेना का बेस कैंप है और à¤à¤• पà¥à¤²à¤¿à¤¸ चेक पोसà¥à¤Ÿ à¤à¥€ है। चेक पोसà¥à¤Ÿ पर गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी गई। हमारा परमिट चेक किया और रजिसà¥à¤Ÿà¤° मे दरà¥à¤œ कर लिया गया। “सारà¥à¤šà¥‚” मे सड़क à¤à¤• दम सीधी है और गाड़ी की रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° आराम से 100-120km/h तक पहà¥à¤à¤š जाती है। यहाठपर गाड़ियाठफरà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥‡ से दौड़ रहीं थी। तà¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ देखा à¤à¤• फिरंगी महिला साइकिल(आजकल तो bike बोलते हैं) पर सवार होते हà¥à¤ चली आ रही थी। मà¥à¤à¥‡ सड़क पर लेटा हà¥à¤† देख वो साइकिल से नीचे उतर गई और पैदल चलने लगी।
हम सब उसको देख कर हैरान हो गà¤à¥¤ शायद हरी ने उससे पà¥à¤›à¤¾ की अकेले जा रही हो तो risk है। उसने बताया की उसके साथ के और लोग à¤à¥€ पीछे आ रहे हैं। वो और उसके साथी मनाली से लेह साइकिल से ही जाने वाले थे। और उसको आज “सारà¥à¤šà¥‚” मे ही रà¥à¤•ना था। इतने दà¥à¤°à¥à¤—म, पथरीले, टूटे-फूटे, चढाई-उतराई, अनिशà¥à¤šà¤¿à¤¤à¤¾à¤“ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र इलाके मे जहाठ2.6L की Xylo का à¤à¥€ दम निकल जाता था ये फिरंगी इसको साइकिल से ही पार करने वाले थे। इनके जज़à¥à¤¬à¥‡ और हिमà¥à¤®à¤¤ की तारीफ़ की गई और इनको सलाम बोल कर à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तलाश मे चल दिà¤à¥¤
ठीक से याद नहीं है पर दोपहर के करीब 3 बज रहे थे और à¤à¥‚ख लग चà¥à¤•ी थी। यह जगह à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े समतल मैदान जैसी है। यहाठपर à¤à¥€ रà¥à¤•ने के लिठबहà¥à¤¤ सारे टेंट लगे हà¥à¤ थे। ये सब देख कर समठआ गया था की यहाठके लोग काफी मेहनती है। साल के 6 महीने ही मनाली-लेह हाईवे खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है। इनà¥à¤¹à¥€ 6 महीनों मे इनकी कमाई होती है और बाकि के 6 महीने तो बरà¥à¤« पड़ी रहती है। यहाठपर लगे à¤à¤• टेंट खाने का इंतजाम था। हमसे पहले और लोग à¤à¥€ थे तो हमको 10-15 मिनट बाद का टाइम दे दिया गया। इस टाइम का हमने पूरा उपयोग करके फोटो session कर डाला। “सारà¥à¤šà¥‚” मे ली गई कà¥à¤› फोटो। जानकारी के लिठबता दूठयहाठपर ली गई सारी फोटो मैंने नहीं बलà¥à¤•ि मनोज, हरी और राहà¥à¤² ने खीचीं हैं।

टेंट के बाहर खाने का इंतज़ार करते हà¥à¤ मनोज, मैं और हरी।
à¤à¤¾à¤°à¥€ खाना खाने की बजाठमैगी का आरà¥à¤¡à¤° दे दिया। अà¤à¥€ तो उजाला बहà¥à¤¤ था। यहाठसे “पैंग” 80km था, टेंट वाले ने बताया की अंधेरा होते-होते आराम से पहà¥à¤à¤š जाओगे। हमे à¤à¥€ पà¥à¤²à¤¾à¤¨ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• “पैंग” तक ही जाना था। तो लो जी चल दिठहम “पैंग” की ओर।

“सारà¥à¤šà¥‚” से “पैंग” जाते हà¥à¤ हमने “लाचà¥à¤²à¥à¤‚ग ला” दरà¥à¤°à¤¾ पार किया। इस दरà¥à¤°à¥‡ की ऊंचाई 5065 मीटर या 16616 फीट है।
80km आगे चलने के बाद शाम के 7 बजे तक हम “पैंग” पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ रात गà¥à¤œà¤¼à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ के लिठटेंट सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ करने के बाद गाड़ी को उसी टेंट के बाहर खड़ा कर दिया।

पैंग मे टेंट के बाहर का à¤à¤• फ़ोटो। बैकगà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤‚ड मे अंकल अपना कमà¥à¤¬à¤² सीधा करते हà¥à¤à¥¤
हमारा सामान मनाली से लेकर अà¤à¥€ तक गाड़ी की छत पर ही लोड था। हमारे हाथों में सिरà¥à¤« कैमरे ही थे। अंकल ने सामान को खोल कर गाड़ी के अंदर रख दिया। हमने कैमरे à¤à¥€ गाड़ी मे ही रख दिà¤à¥¤ टेंट के अंदर जाने के बाद सारा इंतज़ाम देखने के बाद सबसे पहले फà¥à¤°à¥‡à¤¶ हà¥à¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹ से लेकर शाम तक इतने ऊबड़-खाबड़ सफ़र मे सब कà¥à¤› डाइजेसà¥à¤Ÿ हो चà¥à¤•ा था। पानी बहà¥à¤¤ ठंडा था लेकिन तेज़ पà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤° होने की वजह से सब कà¥à¤› मंज़ूर था। फà¥à¤°à¥‡à¤¶ होने के बाद टेंट को मालकिन लदà¥à¤¦à¤¾à¤–ी महिला ने बोला की गरम पानी है आप ठंडा कà¥à¤¯à¥‚ठले गà¤à¥¤ ये सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही बाकि लोग हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगे और अपनी-अपनी बोतल लेकर गरम पानी à¤à¤° कर फà¥à¤°à¥‡à¤¶ होने चल दिà¤à¥¤ मेरी ही किसà¥à¤®à¤¤ मे ठंडे पानी का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ à¤à¥‡à¤²à¤¨à¤¾ लिखा था सो मैंने à¤à¥‡à¤² लिया था। हमारे अलावा टेंट मे और लोग à¤à¥€ थे। टेंट के अंदर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठणà¥à¤¡ नहीं लग रही थी कà¥à¤¯à¥‚ंकि अंदर गैस पर खाना पक रहा था और कोयला à¤à¥€ जल रहा था। हम गैस के पास लगी कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ पर बैठगà¤à¥¤ अंडा करी का आरà¥à¤¡à¤° दे दिया गया। मैं उठकर लदà¥à¤¦à¤¾à¤–ी महिला के पास गया और अंडे छिलने मे उसकी मदद करने लगा। मेरा मकसद तो गैस के और पास जाकर गरà¥à¤®à¥€ हासिल करने का था। गैस के पास खड़ा था तो मैंने खà¥à¤¦ ही अंडा à¤à¥à¤°à¥à¤œà¥€ à¤à¥€ बना डाली। अà¤à¥€ अंडा करी बनने मे समय था। आंटी से पूछा तो पता चला की वहाठRum à¤à¥€ मिलती थी। हम लोग खाने के बाद 5-10 मिनट के लिठटेंट से बाहर चले गà¤à¥¤ बाहर बहà¥à¤¤ ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठंडा था। आसमान बिलकà¥à¤² साफ़ था और बहà¥à¤¤ पास लग रहा था। तारे à¤à¥€ बड़ी तेज़ चमक रहे थे। बाहर बिलकà¥à¤² शांत था घनघोर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चूका था। हम लगà¤à¤— पहाड़ की सबसे ऊà¤à¤šà¥€ जगह पर थे सामने वाला पहाड़ à¤à¥€ बिलकà¥à¤² हमारे बराबर ही था। à¤à¤• अजीब सा à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हो रहा था। अà¤à¥€ तक की जिंदगी मे कà¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ वीरान जगह पर नहीं गया था और वो à¤à¥€ रात को। यहाठपर जिंदगी का कोई नामो निशान नहीं था। बिलकà¥à¤² सूखे मिटà¥à¤Ÿà¥€ और रेत के पहाड़ थे। अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ मे डर तो नहीं लग रहा था पर अजीब सा लग रहा था जिसको मैं शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ मे नहीं बता सकता। सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ निकलने की सॊच कर हम लोग सोने चल दिà¤à¥¤ अà¤à¥€ रात के 08:30 ही बज रहे थे। अगली सà¥à¤¬à¤¹ 05:00 बजे निकलना था। आज की रात सोने के लिठहमारे पास 08:30 घंटे थे। अपनी आदत के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• अंकल सोने के लिठगाड़ी के अंदर ही चले गà¤à¥¤ हम लोगों ने 2 बेड ही लिठथे ताकी रजाई मे गरमी बनी रहे। मैं,राहà¥à¤² à¤à¤• बेड मे और हरी, मनोज दूसरे बेड मे। इतनी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठंड थी की बिसà¥à¤¤à¤° गीला सा लग रहा था। बिसà¥à¤¤à¤° को गरम होने मे 10 मिनट तो लगे होंगे। सबने शरीर अचà¥à¤›à¥‡ से ढका हà¥à¤† था। मैंने और हरी ने गरम टोपी à¤à¥€ पहनी हà¥à¤ˆ थी। दो रजाई लेने की वजह से सांस लेने मे थोड़ी परेशानी हो रही थी और कपडे à¤à¥€ जम कर पहने हà¥à¤ थे। करीब रात के 09:00 बजे मैंने जैकेट, जीनà¥à¤¸, शरà¥à¤Ÿ और टोपी उतार कर सोना ही ठीक समà¤à¤¾à¥¤ मैं रजाई को मà¥à¤¹à¤‚ मे नहीं ओड़ता थोड़ी सी जगह खà¥à¤²à¥€ रखता हूठशायद इसीलिठपरेशानी हो रही थी। ठणà¥à¤¡ लगने की वजह से मैंने फिर से टोपी पहन ली। मà¥à¤à¥‡ सांस लेने मैं कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो परेशानी हो रही थी। मैं जोर लगा कर सांस खींच रहा था। बाकी सरे लोग सो रहे थे मैंने किसी को पूछना ठीक नहीं समà¤à¤¾à¥¤ मà¥à¤à¥‡ लग गया था की ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ कम होने की वजह से ये परेशानी हो रही थी। हम लोग नॉà¤à¤¡à¤¾ से मनाली और मनाली से पैंग बिना रà¥à¤•े चले आठथे। इस वजह से हमारा शरीर वातावरण के अनà¥à¤•ूल नहीं ढला था। मनाली की ऊंचाई 6400 फीट है और पैंग की 15100 फीट। à¤à¤• ही दिन मे जमीन आसमान का फरà¥à¤• हो गया था। मैं ये सॊच कर और जयादा परेशान था की मà¥à¤à¥‡ छोड़ कर सब ठीक थे। ऊपर से मनोज, हरी तो साउथ से आठथे और ये उनका पहला पहाड़ी सफ़र था। मà¥à¤à¤¸à¥‡ रहा नहीं गया और करीब रात के 11:00 बजे कà¥à¤› इस तरह:-
मैं – राहà¥à¤² सो गया कà¥à¤¯à¤¾?
राहà¥à¤² – नींद नहीं आ रही।
मैं – हरी, मनोज तो सो गà¤?
तà¤à¥€ बगल वाले बिसà¥à¤¤à¤° से दोनों की आवाज आई “अà¤à¥€ नहीं सोऔ।
ये सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही हम सब हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगे। किसी को अà¤à¥€ तक नींद नहीं आई थी। लेकिन फिर à¤à¥€ सब किसी से बिना कà¥à¤› कहे चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª लेटे हà¥à¤ थे। लेकिन मेरे पूछने पर सब बोल पड़े। राहà¥à¤² ने अब बताया की गूगल पर à¤à¥€ लिखा हà¥à¤† था की जहाठतक हो सके “सारà¥à¤šà¥‚” और “पैंग” पर रात को नहीं रà¥à¤•ना चाहिà¤à¥¤ ऊंचाई पर होने की वजह से कम ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ मे रात गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ मे दिकà¥à¤•त होती है। मैंने उसे गली देते हà¥à¤ कहा अब कà¥à¤¯à¥‚ठबता रहा है। उसका ये बताना तो जैसे “आग मे घी, जले पर नमक छिड़कने” का काम कर रहा था। अब कà¥à¤¯à¤¾ कर सकते थे। मैं उठकर टेंट से बाहर गया तो बड़ी राहत मिली बाहर कà¥à¤› à¤à¥€ परेशानी नहीं हो रही थी तो अंदर कà¥à¤¯à¥‚à¤à¥¤ गाड़ी मे जाकर देखा तो अंकल मजे से सो रहे थे। मैंने à¤à¥€ गाड़ी मे हो सोना चाहा पर गाड़ी मे अब जगह नहीं थी कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि पिछली वाली सीट पर सामान पड़ा था बीच वाली पर अंकल सोठहà¥à¤ थे और अगली सीट पर कैमरा पड़े थे। मैं निराश होकर फिर से अंदर चला गया लेकिन अंदर 10 मिनट के बाद वही परेशानी शà¥à¤°à¥‚ हो गयी। मेरे बाकि साथी अà¤à¥€ à¤à¥€ उठे हà¥à¤ थे। राहà¥à¤² à¤à¥€ इस परेशानी की वजह से थोडा चिड-चिड़ा सा हो गया था। उसने बोल की अंकल को उठाते हैं और आगे निकल पड़ते हैं। लेकिन हमने à¤à¤¸à¤¾ नहीं किया कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि उनको सà¥à¤¬à¤¹ गाड़ी चलानी थी। बाद मे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया की ऊà¤à¤šà¥€ जगह होने की वजह से ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ कम तो ज़रूर है पर ये परेशानी का असली कारण नहीं था। दरअसल टेंट के अंदर खाना बनाने और कोयला जलने से जो गैस निकलती है वो टेंट के अंदर की ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ के साथ मिल चà¥à¤•ी थी। टेंट पूरी तरह से बंद था। इसी वजह से ये गैस बहार नहीं जा पा रही थी और ना ही बाहर से फà¥à¤°à¥‡à¤¶ ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ अंदर आ पा रही थी। जैसे-तैसे बिना सोठरात बिताई। सà¥à¤¬à¤¹ के 04:30 बजे हम लोगों ने बिसà¥à¤¤à¤° छोड़ दिया। टेंट की मालकिन à¤à¥€ उठचà¥à¤•ी थी। वो à¤à¤• बूढी महिला थी। अगर कोई जवान वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ होता तो उसको मैं जरूर लताड़ता। चाय बनवाई, अंकल को à¤à¥€ उठा दिया गया। अंकल ने 15 मिनट का समय माà¤à¤—ा कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि उनको सामान à¤à¥€ सेट करना था। अंटी के साथ हिसाब करने के बाद हम 05:00 बजे “पैंग” को अलविदा बोल आगे निकल पड़े। यहाठसे आगे का सफ़र अगले पोसà¥à¤Ÿ मे………………..
रोमांचक लेख पढ़ कर मज़ा आ गया , फोटो शानदार है , रास्तों की फोटो देख कर दिल दहेल रहा था |
Thanks Mahesh…
Well narrated story accompanied with good photos. really enjoyed..
Thanks Naresh.
सफर हसीन है
अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा
The way you got stuck in mud, reminds me of the same situation we faced in Rohtang pass last August, when we visited Lahaul Spiti. Even when stuck, its a nice experience in those places. True adventure.
Lovely writeup sir. Thanks for sharing.
Regards
Anupam mazumdar
Right said Anupam……one enjoy every bits and pieces in such adventurous trips.
बहुत ही रोमांचक और मनोरंजक यात्रा…पढ़ने में मज़ा आया, ऐसा लगा की आपके साथ साथ हम लोग भी सैर कर रहे हैं…धन्यवाद, वन्देमातरम…..
धन्यवाद प्रवीण जी।
Gusain Ji,
It it really really a great post, i felt like I am travleling with you all or going to leh & ladakh. Please write complete the story, we are waiting for this.
RGs, Manas
I intentionally kept the narration as it is …. so that anyone can connect with it….Thanks for your comments.
रोमांचक यात्रा विवरण साथ में शानदार फोटो…. पढ़कर मजा आएगा…|
nice post.photos are good,but that photo of Bullet rider is excellent.
We went upto Marhi only , road was very jam upto Rohtang. Your description just like compleating my journy.
गुसाईं जी,
यूं के मज़ा आ गया ज़िन्दगी का ! इतनी रोमांचक यात्रा हमारे खाते में तो लिखी नहीं है अतः आपकी इस यात्रा से ही ऐसे मज़े ले लिये, जैसे हम भूत की तरह आपके साथ मंडराते रहे हों ! गुड, वेरी गुड, बल्कि कहना चाहिये, बैस्ट ! लिखते रहिये, फोटो लगाते चलिये और हम भी कह सकेंगे कि हां हम लद्दाख तक गये हैं ! ये नेता लोग तो सीधे बाय एयर जाते होंगे ! बेचारे !!!
शुक्रिया सुशांत जी। आपके कमेंट ने मेरा होंसला और बढ़ा दिया है।
I guess the Rohtang slush is not getting to get better, ever. There is a tunnel work going on (may be it would take another 10 years) and I guess no one is bothered about this regular Manali-Keylong connection. Too sad. In 2009, I was driving from the other side (coming from Kaza) and it was worse.
I liked the tabulation of Uncle’s fatigue chart. he he.
Good tip around Sarchu, Pang and most importantly about the need of a good ventilation. Now I have caught up with you and am eagerly waiting for next part. Great going Gusain Saheb.
Thanks for the comments Nandan…..I am happy you waiting for the next part.
I am becoming a fan of your writing.
Thanks Gaurav.
दिक्कत तब शुरू हुई जब आप एकदम से इतना ज्यादा चढाई चढ कर रूके । संभव है ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा न मिल पाना भी एक कारण रहा हो । खैर अभी तक यात्रा मजेदार चल रही है ।