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लद्दाख यात्रा – > नोएडा – बिलासपुर – मंडी – मनाली

9-सितम्बर ठीक 4 बजे मैं अपने घर से बाकी लोगों को लेने निकल पड़ा। ठीक 30 मिनट बाद मैं नोएडा सेक्टर-62 पहुँच गया जहाँ पर हम सबको मिलना था। मुझे कोई भी दिखा, तो मैंने राहुल को फ़ोन लगाया, उसने कहाँ हमे 15 मिनट और लगेंगे अच्छा ही हुआ मुझे भी रस्सी खरीदनी थी क्यूँकि हमे सामान Xylo की छत पर लगे carrier पर रखना था। 5 बजे हम सबका मिलन हो ही गया। सब एक दुसरे के गले लगे और निकल पड़े। सबके मिलने से पहले मैंने Dominos के 2 मीडियम pizza ले लिए थे, ये सोच कर कि राहुल ऑफिस से आ रहा है और हरी , मनोज भी शौपिंग मे व्यस्त थे तो भूखे होंगे। मेरी कैलकुलेशन गलत निकली सबने ठूस कर पेट पूजा कर ली थी। फिर भी मेरा मान रखते हुए सबने एक-एक पीस उठा लिया। मैंने ड्राईवर अंकल को भी ऑफर किया तो उन्होंने बोला ये अपने बस की बात नहीं है हम तो सादी रोटी खाने वाले हैं। मुझे नहीं मालूम पर शायद उन्होंने कभी Dominos का pizza नहीं खाया था इसीलिए झट-पट मना कर दिया। 1 पूरा pizza बच गया था जो मैंने Xylo के dashboard पर रख दिया। नोएडा सेक्टर-62 से दिल्ली ISBT , बुराड़ी पार करके हम करनाल बाईपास पर चल पड़े। शाम का समय था सड़कों पर ट्रैफिक भी जम कर था। उस दिन friday था, तो जो लोग हरियाणा-पंजाब से दिल्ली NCR मे नौकरी करते है वो friday को अपने-अपने घर निकल पड़ते हैं। दिल्ली की सीमा समाप्त(नरेला) होने से पहले बाएँ हाथ मे एक साथ 7-8 पेट्रोल पंप आते हैं वहीं से एक पंप पर जाकर गाड़ी का टैंक फुल करा लिया था और साथ मे एक 20 लीटर की केन भी भर ली थी। अंकल को बता दिया गया की अब आपको छोड़ कर सबका पेट भर गया है आप चाहे तो pizza का सेवन कर सकते हैं। उन्होंने दुखी मन से एक piece उठाया और चट कर डाला। हम NH-1 पर कुंडली-राई-गन्नोर-समालखा-पानीपत पार करके अब करनाल की तरफ बढ़ चले थे। हम चाह कर भी गती नहीं बना पा रहे थे एक तो ट्रैफिक ऊपर से NH-1 पर नवीनीकरण का कार्य चल रहा था। जगह-जगह पर फ्लाईओवर के निर्माण होने के कारण हाईवे पर diversion दिए हुए थे। जिस वजह से गुस्सा आ रहा था पर हम कुछ कर भी नहीं सकते थे, और ये ट्रैफिक हमारी चर्चा का विषय भी बना हुआ था जिससे हमारा टाइम भी पास हो रहा था। बहुत देर के बाद अंकल ने चुप्पी तोड़ी और बोले की “आप लोग आराम करो हमारी कौन से flight छूट रही है आराम से चलेंगे”। बात तो अंकल की सही थी और हम सुस्ताने लगे। मुझे और अंकल को छोड कर सब स्लीपिंग mode मे चले गए थे।

अंकल के साथ वाली सीट पर मैं, पीछे वाली सीट पर मेरे पीछे राहुल और अंकल के पीछे हरी बैठे थे। मनोज आखरी वाली सीट पर मजे से लेटा हुआ था। मैंने सबको बताया की जल्दी ही “Haveli” रेस्तौरेंट आने वाला है वहीँ रुक कर फ्रेश हो लेंगे और कुछ हल्का-फुल्का भोजन कर लिया जाएगा। सब लोगों ने मेरी हाँ मे हाँ मिलाई और निश्चिंत होकर फिर से सुस्ताने लगे। करीब 10 मिनट के बाद, मैं ज़ोर से चिल्लाया “अंकल”, राहुल भी जगा हुआ था पर लेकिन इससे पहले वो कुछ कह पाता तब तक कांड हो चूका था। हरी और मनोज भी मेरी चीख सुन कर उठ गए और पूछने लगे “क्या हुआ”, ये दोनों सोए हुए थे तो इन्हें बिलकुल भी पता नहीं चला पर मेरी आवाज सुनकर एहसास तो हो गया था की बड़ी गड़बड़ हुई है। राहुल भी बिलकुल चुप था। और अंकल को तो जैसे “सांप सूँघ” गया था। जैसे की मैंने आप लोगों को बताया था की NH -1 पर हाईवे निर्माण कार्य की वजह से Diversion बने हुए थे और कहीं-कहीं पर सावधानी से चलने के संकेत भी नहीं लगे हुए थे। ऐसे ही एक Diversion पर संकेत न होने की वजह से अंकल ने Diversion के आने से पहले ही गाड़ी मोड ली और हाईवे से करीब 3-4 फुट गहरी सर्विस लेन मे कूदा दी। वहां पानी भरा हुआ था। गाड़ी के गिरते ही पानी चारों तरफ फैल गया। हमें बाहर कुछ नज़र नहीं आ रहा था, क्योंकि पानी गाड़ी के कांच पर भी फैल गया था। मुझे आभास हो चूका था की अंकल ने कुछ गड़बड़ कर दी है, इसीलिए मै चिल्ला उठा था। मैं मान बैठा था की गाड़ी पलटने वाली है और गिरते ही बाएं ओर बनी दुकानों से टकराने वाली है। गाड़ी मुड़ी, पानी मे गिरी, ज़मीन से टकराई, सबको जोर से झटका लगा ओर सही सलामत आगे चलने लगी। ऐसा मानो की मैंने 2 सेकंड मे एक पूरी पिक्चर देख डाली हो। शब्दों मे मेरे लिए इस घटना का व्याख्या करना नामुमकिन है। मुझे नहीं पता की हम कैसे बच गए। सबसे ज्यादा सदमा अंकल को ही लगा था। वे चुप थे एक भी शब्द नहीं बोला था चुप चाप गाड़ी चला रहे थे पर अब गति धीमी हो गई थी। मुझे ऐसा लगा था की वो काँप उठे थे। और क्यूं नहीं कांपते कांड ही ऐसा कर दिया था। पर एक बात ये भी थी की बचाव भी उन्ही की वजह से हुआ, कोई अनाड़ी चालक होता तो हाथ-पैर छोड देता।

खेर बहुत बड़ी बला टली और 5 मिनट चलने के बाद “Haveli” आ गयी और हमने गाड़ी पार्किंग में लगा दी। अंकल के साथ गाड़ी का बाहरी निरक्षण किया गया एक भी खरोंच नहीं थी, ऐसा लगा की सारा झटका Xylo के शौकर और कमानियों ने झेल लिया था। अंकल ने कहा की अगर इंजन मे कोई लीकेज होगी तो पता चल जाएगा क्योंकि हम वहां पर 30 मिनट के लिए रुकने वाले थे। हम चारों “Haveli” के अंदर चल दिए, पर अंकल अभी भी गाड़ी के निरक्षण मे लगे हुए थे। इस घटना को याद करते तो पहले तो हम सहम से जाते पर कुछ समय के बाद ये एक मज़ाक का विषय बन चुका था। इसका जिक्र आते ही ज़ोरों की हंसी आती थी क्योंकि अभी तो ट्रिप शुरू ही हुई थी और अंकल तो इसका अंत करने ही वाले थे। आगे के पूरे रास्ते हम यही सोच कर बहुत हँसे थे। हमने यहाँ पर कुछ नहीं खाया। सब फ्रेश होकर गाड़ी के ओर चल पड़े और अंकल से कहा कि अब सीधे रात्री मे भोजन ही करेंगे।

यह सोच कर हम आगे निकल पड़े। अम्बाला से कुछ दूर पहले ही नज़र “Liquor” शॉप पर जा पड़ी। गाड़ी को रुकने का आदेश दिया गया और “Haveli” से पहले हुए कांड का अफ़सोस मनाते हुए मूड बनाया गया। यहीं पर अंकल की एक खासियत का पता चला, ट्रांसपोर्ट लाइन मे होने के बावजूद वो मदिरा का सेवन नहीं करते थे और सुद्ध साकाहारी थे। ये सुनकर हम लोगों की खुशी दुगनी हो गई और हम अपनी बाकि बची हुई यात्रा को लेकर निश्चिंत हो गए थे। आजकल ऐसे ड्राईवर कम ही मिला करते हैं। यहाँ पर थोड़ा टाइम बिताने के बाद हम लोग अम्बाला से पहले ही अंकल ने एक U-Turn ले लिया और बोले की हम जाटवर, बरवाला, रामगढ़ होते हुए पिंजौर पहुँच जाएँगे। हम सबने कहा जैसी आपकी इच्छा “अंकल”। रात के 10 बज चुके थे हमने पिंजौर में रुक कर खाना खाया, अंकल को बोला की गाड़ी मे जो pizza पड़ा है वो ले आओ। अंकल बोले बेटा वो तो मैंने खा लिया है। अंकल के सामने किसी ने कोई आपत्ती नहीं जताई। लेकिन बाद में ये भी एक joke बनके रह गया क्यूंकि अंकल ने बड़े शान से कहा था “में pizza नहीं खाता, हम तो सादी रोटी खाने वाले इंसान हैं”। हम आगे बद्दी, बिलासपुर, सुंदरनगर, मंडी, कुल्लू होते हुए मनाली जाने वाले थे और अंदाजन दोपहर के 12 या 1 बजे तक पहुँचने वाले थे। खाने के सबने सोचा की यहीं रूम लेकर सो जाते हैं। दो-दो का ग्रुप बना कर हम लोग रूम देखने चले गए। रूम रेंट यहाँ पर बहुत ज्यादा था। सिर्फ 5-6 घंटे की ही तो बात थी। क्यूंकि हम अगली सुबह जल्दी ही निकलने वाले थे। होता वही है जो होना होता है, सबने बिना रुके आगे चलने का फ़ैसला किया। यहाँ से थोड़ी देर बाद हम बद्दी पहुँच गए। नालागढ़ के आस-पास ही गाड़ी रुकवा कर चाय पी। अभी भी हमे 255km आगे मनाली तक जा कर 10-सितम्बर की रात वहीं बितानी थी। बद्दी के बाद हम चारों गहरी नींद मे चले गए।

नींद खुलते ही अरे वाह क्या नज़ारा था, घने जंगल वाले पहाड़, टाइम देखा तो सुबह के 9 बज चुके थे। ऐसा लगा कि शायद कुल्लू पहुच गए हैं। पर एक बात समझ मे नहीं आई की गाड़ी खड़ी क्यूं है और सब भी गायब हैं। मैं सबसे आखिर मे उठा था। बाहर उतर कर देखा तो सब लोग धूप सेक रहे थे। पर समझ मे नहीं आया की यहाँ क्यूँ रुके हुए हैं। यहाँ न तो कोई दुकान थी जहाँ रुक कर नाशता किया जा सके। यहाँ तो सिर्फ एक “Premier” गाड़ी का शोरूम था।

मैं, राहुल और हरी “Premier” शोरूम के बाहर बैठे हुए।

“Premier” वो ब्रांड है जो टेम्पो-ट्रैवलर, “Rio” SUV बनाता है। मैं बाकी लोगों के पास गया और पुछा की क्या हुआ? सब लोग जोर-जोर से हँसने लगे। मुझे भी हँसी आने लगी पर मैं हँस क्यूँ रहा हूँ? मैंने फिर से पुछा अबे सालो क्या हुआ मुझे भी तो बताओ? बड़ी मुश्किल से हँसी रोक कर राहुल बोला तू इतनी जल्दी क्यूँ उठ गया। जाकर सो जा गाड़ी ख़राब हो गयी है। मुझे फिर से ज़ोरों से हँसी आने लगी। ये 9-सितम्बर की रात हुई वारदात की वजह से हुआ था जब अंकल ने “Haveli” से पहले गाड़ी हाईवे से नीचे कुदा दी थी। जिसकी वजह से इंजन की पैकिंग फट गई थी। रात को तो पता नहीं चला पर जैसे-जैसे गाड़ी चलती रही तो इंजन की फटी हुई पैकिंग से इंजन आयल लीक होने लगा। और जब गाड़ी ने इंजन आयल की इमरजेंसी लाइट से संकेत दिया तो अंकल ने गाड़ी खड़ी कर दी पर सबसे अच्छी बात ये हुई की “Premier” के शोरूम मे एक अनुभवी मैकेनिक मिल गया जिसको Xylo के इंजन का काम आता था। मेरा अगला सवाल था की अंकल कहाँ हैं? काम शुरू कराओ। राहुल ने कहा दिक्कत ये है की Xylo की इंजन की पैकिंग यहाँ नहीं है इसीलिए अंकल को मंडी जाना पड़ा। अब हम सब निश्चिंत हो गए थे क्यूँकि चिंता करके भी कुछ हासिल नहीं होने वाला था। आपकी जानकारी के लिए बतादूँ की इस वक़्त हम बिलासपुर मे थे। यहाँ से मंडी आने-जाने का रास्ता करीब 130km था। पहाड़ी रास्ता होने के कारण सरकारी बस के सफ़र मे अंकल को कम से कम 5-6 घंटे लगने वाले थे। सुबह के 10 बज रहे थे। पास ही मे एक होटल था सोचा की एक रूम लेकर फ्रेश हुआ जाए फिर वहीँ नाश्ता करके शाम तक आराम कर लिया जाए। बाकी लोगों को ये सुझाव जमा नहीं। हम सब एक-एक करके “Premier” शोरूम के बगल से नीचे उतर कर बने एक toilet मे फ्रेश हो गए। फिर होटल मे जाकर नाश्ता किया। पूछने पर पता चला की आसपास ही घूमने की जगह है जहाँ पर नदी का किनारा है। सड़क से करीब 2-3km नीचे जाकर बस स्टैंड के पीछे से इस जगह तक जाने का रास्ता था। हम सब नीचे की ओर चल दिए। तभी देखा की एक ट्रेक्टर नीचे की तरफ जा रहा है फिर क्या था मैंने ट्रेक्टर को रुकवाया और हम सब उस पर लद लिए। हरी को ट्रेक्टर की सवारी करके बड़ा मज़ा आया शायद उसने पहली बार ट्रेक्टर की सवारी की थी।

बिलासपुर मे ट्रेक्टर की सवारी करते हुए।


Photo2 – बिलासपुर मे ट्रेक्टर की सवारी करते हुए।

हम उस जगह पहुँच गए थे नदी किनारे से सामने के पहाड़ बहुत ही सुंदर लग रहे थे। हमने वहां कुछ फोटो लिए। वहीँ पास में चाय की दुकान थी वहीँ बैठ कर चाय-पानी लिया गया।

बिलासपुर मे नदी किनारे एक और फ़ोटो।

बिलासपुर मे नदी किनारे एक फ़ोटो।

यह जगह सड़क से 50-100 मीटर नीचे थी इसी वजह से यहाँ पर शांति थी कुछ भीड़ भी नहीं थी। दरअसल ये कोई पर्यटक स्थल नहीं था बल्कि ऐसे ही नदी के पास जाने का रास्ता था। पर जो भी था बहुत सुंदर था। वापसी मे हमने एक ऑटो कर लिया जिसने हमे Xylo के पास वापस छोड दिया।

अंकल शाम 4 बजे वापस आए थे। मंडी में काफ़ी बड़ा बाज़ार है जहाँ हर तरह की गाड़ी के पार्ट्स मिल जाते हैं। इसी वजह से मैकेनिक ने अंकल को मंडी ही भेजा। शाम 4:30 बजे तक मैकेनिक ने इंजन की पैकिंग फिक्स कर डाली और गाड़ी के इंजन को 15-20 मिनट के लिए स्टार्ट रखने को बोला क्यूँकि अगर कोई दिक्कत बाकि रह गयी हो तो पता चल जाएगा।

मैकेनिक गाड़ी की मरम्मत करते हुए।

शाम 5:00 बजे हम बिलासपुर से मनाली की ओर निकल पड़े। अभी यहाँ से 175km और आगे जाकर मनाली पहुँचना था। मौसम साफ़ था रात होने के कारण ट्रैफिक बहुत कम था। लेकिन हमे तो मनाली पहुँचना था। हमारे एक जानकर जो हमारे साथ नहीं आये थे पर उनके मित्र का एक रिश्तेदार मनाली में रहता था उसने हमारा मनाली से लेह जाने के परमिट का इंतज़ाम पहले से ही कर लिया था। हमे परमिट की चिंता नहीं थी पर गाड़ी ख़राब होने की वजह से हम लोग शौपिंग नहीं कर पाए थे। हम रात 11:00 बजे तक मनाली पहुँच गए। पहुँच कर सबसे पहले परमिट लिया। भाई साहब को इतनी रात में परेशान करने के लिए माफ़ी मांगी और परमिट का इंतज़ाम करने लिए धन्यवाद देते हुए होटल की तलाश मे निकल पड़े। हम मनाली के बाज़ार वाली जगह से ऊपर की तरफ चले गए थे। यही रोड आगे रोहतांग जाती है। इसी रोड पर हमने एक होटल मे दो कमरे ले लिए। मुझे किराया तो याद नहीं है पर हमने Rs 800-900 से ज्यादा नहीं दिए थे। इसी होटल के सामने एक ढाबा था वहीँ पर दाल-रोटी-आलू की सब्जी खा कर मजा आ गया। हमने अंकल को कमरे मे आकर सोने का न्यौता दिया पर वो बोले की पूरी गाड़ी खाली है मैं आराम से इसी के अंदर सो जाऊँगा। हमने भी ज्यादा ज़बर्दस्ती नहीं की, भाई जैसी मर्ज़ी वैसा करो। सबको बता दिया की सुबह 05:00 बजे उठना है और 06:00 बजे तक हर हालत मे रवाना होना है। सब एक दूसरे को गुड नाईट बोल कर सो गए। तो देखा आपने कैसे बीता हमारा मनाली तक का सफ़र। यहाँ से आगे का सफ़र अगले भाग में………….

लद्दाख यात्रा – > नोएडा – बिलासपुर – मंडी – मनाली was last modified: February 15th, 2025 by Anoop Gusain
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