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ब्रह्माकुमारी आश्रम की यात्रा व आध्यात्मिक ज्ञान के पल….!

माउंट आबू स्थित ब्रह्माकुमारी आश्रम की और से जब पांच दिन की कार्यशाला में भाग लेने का निमंत्रण मिला व व्यक्तिगत आग्रह भी किया गया तो मैंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी. इसके बावजूद भी संशय बना हुआ था कि क्या वास्तव में इस बार भी जाना हो पायेगा या पिछले वर्ष की भांति इस् बार भी मेरी अन्य सरकारी व्यस्तताओं के कारण फिर मेरा जाना टल जाएगा। अभी लगभग तीन सप्ताह बाकी थे और मैं हर दिन यह दुआ मनाता था कि किन्ही कारणों से इस बार टलने का कोई कारण ना बने क्यूंकि मेरी भी दिली इच्छा थी कि मैं आश्रम के मुख्यालय में जाकर उनके दर्शन, कार्यकलापों और रहन-सहन का निकट से अवलोकन कर सकूं. दूसरा कारण राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में पहाड़ी इलाके का विचरण भी रोमांच कर देने वाला विचार था.

आगरा से माउंट आबू जाने के लिये आगरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस भी एक अच्छा विकल्प है


अंततः १० सितम्बर की रात्रि को पत्नी के साथ जब आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन से बनकर चलने वाली आबू रोड जाने वाली ट्रेन के लिए अहमदाबाद एक्सप्रेस के बी-१ कोच में सीट पर अपना बिछोना तैयार किया और ट्रेन ने रेंगना शुरू किया तो यह तय हो गया कि इस बार कोई बाधा आड़े नहीं आ रही है और या तो बुलावा आया है या ईश्वर ने मेरी इच्छा जान ली है. ट्रेन में ही सामने एक गुजराती परिवार बैठा था और उन्होंने बातचीत होते ही एक लोअर सीट उनकी मिडिल बर्थ से एक्सचेंज करने का एक अनुरोध ठोंक दिया था. पत्नी तो वैसे ही लोअर सीट की आदी हैं; उन्होंने तुरंत गेंद मेरे पाले में डालते हुए उन्हें मुझसे अनुरोध करने का इशारा इस प्रकार किया कि मैं उक्त महिला के निवेदन को अस्वीकार नहीं कर कर पाया.

अब मैं मध्य बर्थ पर था और पत्नी लोअर बर्थ पर. वह महिला जिससे बर्थ एक्सचेंज की थी वह ट्रेन चलते ही ऐसी निंद्रा में लीं हुई कि सवेरे चाय- नाश्ता की आवाजों के कोलाहल और चलकदमी से ही जागी. जैसी मुझे चिंता रहती है मिडिल या अपर बर्थ की ऐसी कोई दिक्कत तो नहीं हुई क्यूंकि एक बार सोने के लिए बेड पर जाने के बाद फिर तो मैं सवेरे ही उठता हूँ चाहे नींद न भी आये. बस बर्थ में शरीर को घुसाना और फिर स्वयं को समेटना– इन दो क्रियाओं के खतरों के कारण मैं लोअर बर्थ को बेहतर मानता हूं। यदि पत्नी के सहमति नहीं होती तो मैं उन महिला को उपकृत करने वाला नहीं थ. लगभग एक महीना पहले बुकिंग कराओ, लोअर सीट के लिए, और एक क्षण में एक आग्रह पर वह बर्थ आप किसी और को सौंप दें, यह तो कोई बात नहीं हुई. हालांकि पत्नी का सोचना इसके विपरीत है, चूँकि वह भी समय-समय पर अपनी यात्रा में लोअर बर्थ को हथियाने में निपुण है, तो उसके लॉजिक के अनुसार उस बर्थ पर किसी महिला को सोने देने में कुछ भी असहजता नहीं है. और यह कि लोअर बर्थ पर महिलाओं का पहला अधिकार नैसर्गिक रूप से बनता है (रेलवे के नियम चाहे जो कुछ हों).

मैंने यह भी ध्यान नहीं दिया था कि ट्रेन आबू रोड स्टेशन पर किस समय पहुँचेगी और किस रूट से जायेगी. पता नहीं किस लॉजिक से, पर मुझे लगता था कि लगभग सात बजे प्रातःकाल हम लोग आबू रोड पहुँच जाएंगे. ट्रेन में लोगों ने बताया कि ट्रेन का आबू रोड स्टेशन का शेडूल टाइम ९.३० बजे का है. अभी लगभग साढ़े छः ही बजे थे. यह भी पता चला कि ट्रेन देर रात जयपुर और अजमेर से पास होती आई है.

आबू रोड स्टेशन पर आश्रम की और से बस की व्यवस्था की गई थी

ठीक ९.२० बजे, जो कि ट्रेन का वास्तविक आगमन समय था, ट्रेन स्टेशन पर हाल्ट ले चुकी थी. उसके पहले ही अपना सामन समेत लिया था और एक नज़र इधर उधर भी दौड़ा ली थी कि कुछ छूटा तो नहीं? बाहर निकल कर एक देखा तो ब्रह्मकुमारी आश्रम की एक बस खड़ी थी जो हम जैसे लोगों को गंतव्य तक ले जाने के लिए लगाई गई थी. बस के साथ ही सफ़ेद पैंट-शर्ट की वेशभूषा पहने कुछ लोग खड़े थे जो स्पष्टतः आश्रम से सम्बंधित थे. उन्हें पास पहुंचकर जैसे ही मैंने उन्हें अपना परिचय दिया, उन्होंने मेरा लगेज सम्भलवाकर बस के बूट स्पेस में भली भांति रखवा दिल और यात्रियों को जुटाने के उपरांत आश्रम की और चल दिए. लगभग सात किलोमीटर की यात्रा के बाद नगर के एक छोर पर दिख रही पहाड़ी पर ओम शांति के श्वेत पेंट से लिखे विशालकाय शब्दों से कुछ-कुछ समझ में आ रहा था कि हम ब्रह्मकुमारी आश्रम के निकट पहुँच चुके हैं. मेरा अनुमान सही था. कुछ ही सेकण्ड्स में बस एक विशाल गेट के वृहद परिसर में प्रविष्ट हुई और पार्किंग में जाकर अन्य वाहनों के साथ रुक गयी. साथ आये वालंटियर्स ने सादर हम लोगों को स्वागत कक्ष की ओर संकेत किया. इसी बीच मुझे अमर भाई दिखाई दिए, जिनके व्यक्तिगत निमंत्रण पर मैं यहाँ आया था . उन्होंने तुरंत सहजता से मेरी पत्नी के सूटकेस को सँभालते हुए एक बड़ी सी कार में मेरे सामन व्यवस्थित करते हुए कंप्यूटर से प्रिंट हुई एक स्लिप थम दी जो मेरे गेस्ट हाउस के विवरण से सम्बंधित थी. ड्राइवर ने हमें डायमंड हाउस नामक गेस्ट हाउस के स्वागत कक्ष पर छोड़ दिया. यह स्थान मुख्य द्वार से लगभग आधा किलोमीटर दूरी पर स्थित था.

हमें आवंटित सुईट संख्या ७०८ दूसरी मंजिल पर था. स्वागती के रजिस्टर में प्रविष्टि के उपरांत उनका सहायक हमारे सामान को लेकर सुईट तक पहुँचाने आया. यह गेस्ट हाउस स्वछ, सुन्दर, सुसज्जित तथा रमणीय दृश्यों के अवलोकन का बेहतरीन केंद्र बिंदु प्रतीत हो रहा था, विशेषतः मेरे बैडरूम की बालकनी से जो दृश्य दीखते थे,उनसे माउंट आबू की पहाड़ियां, आश्रम के मुख्य मार्ग, और महत्वपूर्ण स्मारकों के आसानी से दर्शन हो रहे थे. चारों ओर प्रचुरता से हरियाली तथा फूलों की सुगंध मनभावन थी. लगभग ५० एकड़ क्षेत्र में फैले विस्तृत परिसर के इस हिस्से में यह सुन्दर तीन मंजिला गेस्ट हाउस स्थित था। इसके ठीक सामने गेस्ट हाउस के नए विस्तार के रूप में न्यू डायमंड हाउस नाम से हाल ही में निर्मित एक अन्य गेस्ट हाउस है. बगल में एक ओर समारोह और सम्मेलनों के आयोजन के लिए वृहद कांफ्रेंस हॉल बना हुआ है, जिसके ठीक सामने या कहिये कि हमारे गेस्ट हाउस के ४५ अंश के सापेक्ष डायमंड हॉल है जिसमे बड़े आयोजनो तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए हजारों लोगों को समायोजित करने की क्षमता है. गेस्ट हाउस के दाहिने हाथ की जगह पर एक अन्य गेस्ट हाउस के निर्माण भी तेजी से चल रहा है और लगता है कि सन २०१६ के आरम्भ में वह भी कार्यरत हो जाएगा.

शांतिवन परिसर, आबू रोड का एक दृश्य

परिसर का एक अन्य कोण

हमारा सुईट एक स्वतः पूर्ण इकाई की भांति था जिसमें दो सिंगल बेड, एक मेज, दो चेयर, एक स्टील की वार्डरोब, दोनों बेड के बीच एक छोटे स्टूल, दो गिलास की व्यवस्था थी. अटैच्ड बाथरूम भी पर्याप्त रूप से सज्जित था. बालकनी में धुले कपड़ों को सुखाने के लिए स्टेण्ड भी उपलब्ध था. ऊपर के तलों पर आने-जाने के लिए एक पुरानी तरह की लिफ्ट भी कार्यरत थी जिसका एक सामान्य तथा दूसरा चैनेल गेट होता है. लिफ्ट के बाहर साफ़ साफ़ निर्देश लिखे थे कि कृपया बुजुर्ग व बीमार लोग ही लिफ्ट का उपयोग करें. हमारे फ्लोर पर एक वाटर कूलर, कपडे प्रेस करने के लिये सज्जित टेबल तथा इस्त्री भी उपलब्ध थी. बाद में देखा कि ऐसी सुविधा प्रत्येक तल पर प्रदान की गई थी. सुईट में इण्टरकॉम की व्यवस्था नहीं थी हालाँकि भूतल स्थित स्वागत कक्ष से अन्य भवनों आदि के इण्टरकॉम की व्यवस्था सुचारू रूप से कार्यरत थी.

बालकनी से लिया गया एक चित्र

आगंतुकों के लिए स्वादिष्ट नाश्ते, लंच तथा डिनर की व्यवस्था थी. शुद्ध व् गुणवत्तायुक्त भोज्य सामग्री एक ही केंद्रीकृत भोजनालय में बनता है जिसे भिन्न-भिन्न डाइनिंग हॉल में सर्व किया जाता है. ब्रेकफास्ट के लिए ८ बजे प्रातः से ९.३० बजे तक तथा लंच व् डिनर के लिए भी इसी प्रकार दोपहर और रात्रि में डेढ़ घंटे की सुविधा उपलब्ध है. चाय भी एक निश्चित समय पर ही मिलती है लेकिन एक अन्य बेहतरीन व्यवस्था वहां देखने को मिली. सभी गेस्ट हाउस के प्रथम तल पर पैंट्री रूम है जिसमे गैस का चूल्हा, फ्रिज, चाय की पत्तियां, टी बैग्स, अदरख, चीनी, कॉफ़ी, बिस्किट के साथ ही सभी बर्तन व् क्राकरी भी उपलब्ध है. फ्रिज में शुद्ध दूध की केन रखी है. आप आवश्यकतानुसार अपने लिए कभी भी आकर चाय-कॉफ़ी बनाकर पी सकते हैं. बस इतनी अपेक्षा आपसे अवश्य की जाती है की रसोई को बाद में अपने बर्तनों और क्राकरी से उसी तरह से धोकर सज्जित कर दें जैसी आपको मिली थी. उचित भी है ताकि अन्य लोग भी सुविधा का सुगमतापूर्वक लाभ उठा सकें.

भोजन की थाली

डाइनिंग हॉल

ब्रह्मकुमारी आश्रम का यह परिसर माउंट आबू में नहीं बल्कि तलहटी में आबू रोड में स्थित है जिसे शांतिवन के नाम से जाना जाता है. माउंट आबू वहां से लगभग ३५ किलोमीटर ऊपर पहाड़ी इलाके में है जहाँ ज्ञान सरोवर, मधुबन और पीस पार्क आदि परिसरों के रूप में ब्रह्मकुमारी आश्रम का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय संचालित होता है. प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के मूल नाम से विख्यात यह संस्था वास्तव में एक गैर-सरकारी सामाजिक सन्स्थ के रूप में पंजीकृत है जो मनुष्य की आध्यात्मिक अनुभूतियों को ध्यान योग व अन्य प्रकार से जागृत कर उनके जीवन मूल्यों में मूलभूत परिवर्तन लाकर समाज के उत्त्थान में लगाने का कार्य करता है. संस्था समय-समय पर समाज के विभिन्न वर्गों व् व्यवसाय के लोगों को जागृत करने के लिए सेमिनार, कार्यशाला और कांफ्रेंस का आयोजन करता रहता है. जिस कार्यक्रम में मुझे सममित होने का अवसर मिला वह एक चार दिवसीय कार्यशाला थी जिसका विषय था–“Value-Based Media for Healthy and Happy Society”. इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश के कोने-कोने तथा निकटवर्ती देशों के लगभग १५०० प्रतिनिधि सम्मिलित हो रहे थे.

सभागार तथा श्रोता

पहला दिन परिचयात्मक था जिसमे आश्रम का परिचय देने के साथ ही नैत्यिक जीवन में राजयोग ध्यान और मानवीय जीवन में आध्यात्मिकता की आवश्यकता पर केन्द्रित था. ब्रह्मकुमारी की यह प्राथमिक शिक्षा है. उनका मानना है कि राजयोग ध्यान मनुष्य की मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा को सुसंचालित कर उसे जीवन के हर पहलू पर बेहतर प्रतिक्रिया देने तथा अर्थपूर्ण ढंग से प्रतिभागिता के लिए तैयार होने का सबसे अच्छा तरीका है. इससे उनकी स्वयंके सम्बन्ध में समझ तथा सर्वोच्च सत्ता से सम्बन्ध स्थापित करने में भी मदद मिलती है. आश्रम द्वारा राजयोग ध्यान के माध्यम से लोगों के जीवन में तनाव, संबंधों में व्यवधान तथा दिनचर्या व् कार्य प्रकृति में बेहतर समन्वय के लिए भी तैयार किया जाता है. विशेष बात यह है कि किसी भी कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता.

अगले दिन ‘Exploring the Self’ विषय के अंतर्गत इसी सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा की गई. तदुपरांत,स्वस्थ एवं प्रसन्नचित जीवन के लिए विशेषज्ञों तथा अनुभवी चिकित्सकों ने अपने टिप्स दिए. अपराह्न के सत्र में मीडिया की विभिन्न इकाइयों–प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक, फोटोग्राफी, जन संपर्क व् वीडियो आदि के प्रतिभागियो ने आपस में चर्चा की.

तनाव मुक्त जीवन के गुर बताते हुए विशेषज्

तनावमुक्त तथा सुखी जीवन के रहस्यों की जानकारी के लिए जो लोग इस कार्यशाला में प्रतिभाग करने आये थे, उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण सत्र वह थे जो प्रत्येक दिन प्रातः ५.३० से ८.०० बजे तथा शाम को ५.३० से ८.०० बजे आयोजित किये जाते थे. इन सत्रों में आध्यात्मिकता को प्रतिदिन की जिन्दगी से कैसे जोड़ कर देखें तथा आध्यात्मिकता के मानव से सम्बन्ध को सरलता से समझाया गया. साथ ही डॉक्टर्स द्वारा भोजन, आध्यात्म, योग, तथा शारीरिक स्वस्थता के सम्बन्ध में जागरूक किया गया. सुखी जीवन के लिए अन्य बातों के अलावा आशावादी दृष्टिकोण की महत्ता को भी इंगित किया गया.

विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों ने सुखी और स्वस्थ जीवन के जो मन्त्र दिए उनके अनुसार व्यक्ति को हमेशा भूत और भविष्य काल की चिंता छोड़कर वर्तमान को सार्थक बनाने में प्रयासरत रहना चाहिए. शाकाहारी भोजन, भोर सवेरे उठकर टहलना तथा मौसमी फलों व् सब्जियों का सेवन करना भी स्वस्थ जीवन की और बढ़ाये गए कदम माने जाते हैं.चिकित्सकों का कहना था कि खानपान की लापरवाहियों के कारन ही आज देश में मधुमेह ने किलर रोग का दर्जा प्राप्त कर लिया है. उन्होंने कहा कि यही हाल रहा तो कैंसर, ह्रदय रोग तथा उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियाँ भी तेजी से देश में महामारी का दर्ज़ा प्राप्त कर लेंगी. बेहतर स्वास्थ के लिए जंक फ़ूड और कृत्रिम पेय पदार्थों से दूर रहना भी बेहतर रणनीति हो सकती है.

परिसर में ही एक सुव्यवस्थित चिकित्सा केंद्र तथा पुस्तकों व साहित्य के प्रकाशन तथा विक्रय के लिए केंद्र स्थापित किये हैं. इन केन्द्रों पर आध्यात्मिक दर्शन से सम्बंधित सभी साहित्य, तथा संगीत, व् वीडियो सामग्री नाममात्र के शुल्क पर मौजूद थी.

कार्यक्रम के अंतिम दिन आयोजकों ने माउंट आबू के मुख्य स्थलों के भ्रमण की भी व्यस्था कराई. इसी बहाने वहां की चर्चित नक्की झील, ब्रह्माकुमारी के मुख्य कार्यालय, पीस पार्क, दिलवारा जैन मंदिर आदि स्थलों का अवलोकन संभव हो पाया. हालांकि साईट सीइंग के लिए समय अपेक्षाकृत कम था.

माउंट आबू की विख्यात नक्की झील पर सेल्फी लेता युगल

झील में बोटिंग का लुत्फ़

१५ सितम्बर को हम उसी रूट से आगरा वापिस लौट आये. ब्रह्माकुमारी आश्रम में बिताये पलों को संजोये. बेहतर तथा आशावादी ऊर्जा के संचयन के साथ.

ब्रह्माकुमारी आश्रम की यात्रा व आध्यात्मिक ज्ञान के पल….! was last modified: March 8th, 2022 by Raj Gopal Singh Verma
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