दिल्ली दिल वालो की – 2

क़ुतुब मीनार से हम लोग माँ कात्यायिनी मंदिर छतरपुर पहुंचे. यह मंदिर क़ुतुब से २.५ कीलोमीटर दूर हैं. और गुडगाव, मेहरोली मार्ग पर पड़ता है.  यह मंदिर दरअसल मंदिरों का समूह हैं. और माँ कात्यायिनी को समर्पित हैं. यह मंदिर समूह अपने आप में भारत में स्थित सबसे बड़े मंदिर समूहों में से एक हैं. इस मंदिर की स्थापना संत नागपाल जी के द्वारा १९७४ में की गयी थी. उनकी समाधी इस मंदिर में ही स्थित हैं. यह मंदिर पूरी तरह से संगमरमर से बनाया गया हैं, और संगमरमर का  का काम देखने लायक हैं. ये पूरा परिसर ६० एकड में फैला हुआ हैं. जिसमे छोटे बड़े करीब २० मंदिर हैं. उसमे मुख्य मंदिर माँ आदि शक्ति कात्यायिनी देवी का है. माँ कात्यायिनी माँ आदि शक्ति का अवतार हैं. और ९ देवियों में से एक शक्ति मानी गयी हैं.  इस के अलावा  इस मंदिर समूह में श्री राम, श्री कृष्ण, श्री गणेश, हनुमान जी, भगवान  शिव आदि के मंदिर स्थित हैं.

माँ कात्यायिनी मंदिर


 

बच्चे भगवान् की मूर्ती होते हैं (राघव)

 

मंदिर बाहर से

 

अन्दर का नज़ारा

छतरपुर मंदिर से होकर के हम , चूँकि काफी देर हो चुकी थी, रात होने वाली थी, सीधे वैशाली रवि के घर पहुँच गए, और खा पी कर सो गए. अगले दिन सुबह फिर सैर के लिए निकल पड़े. सबसे पहले इंडिया गेट पर पहुंचे. आपको एक बात याद दिला दूँ की इस पूरी यात्रा में मैं एक गाइड का भी काम कर रहा था. दिल्ली का एक नक्शा हाथ में लेकर के बैठा था. और ड्राईवर को गाइड कर रहा था.

इण्डिया गेट (भारत द्वार) नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित ४३ मीटर ऊँचा द्वार है। इस द्वार का निर्माणप्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में किया गया था। सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफ़ल के ऊपर सैनिक की टोपी सजाई गई है जिसके चार कोनों पर सदैव अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसकी दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं। इसके सबसे ऊपर अंग्रेजी में लिखा हैः
To the dead of the Indian armies who fell honoured in France and Flanders Mesopotamia and Persia East Africa Gallipoli and elsewhere in the near and the far-east and in sacred memory also of those whose names are recorded and who fell in India or the north-west frontier and during the Third Afgan War.

भारतीय सेनाओं के शहीदों के लिए, जो 
फ्रांसऔर फ्लैंडर्स मेसोपोटामिया फारस पूर्वीअफ्रीका गैलीपोली और निकटपूर्व एवंसुदूरपूर्व की अन्य जगहों पर शहीद हुए, और उनकी पवित्र स्मृति में भी जिनके नाम दर्ज़ हैं और जो तीसरे अफ़ग़ान युद्ध में भारत में या उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मृतक हुए।(साभार विकिपीडिया)

इंडिया गेट


इंडिया गेट पर उस समय मार्च पास्ट चल रहा था. वंहा पर सेना का बैंड, तथा वायु सेना के जवान मनोहारी परेड कर रहे थे. देशभक्ति की धुन बज रही थी. अपने जवानो को देख कर सीना गर्व से चौड़ा हो गया.

मिलिटरी बैंड के द्वारा प्रदर्शन

वायु सेना के जवानो के द्वारा मार्च पास्ट

इसका नाम भारतीय महा द्वार होना चाहिए

समझ में नहीं आता हैं की अंग्रेजो के लिए विश्व युद्ध में अपने जवानों के द्वारा क़ुरबानी पर गर्व करू या इसे गुलामी की निशानी मानु.

हमारा परिवार

इंडिया गेट से होकर के हम सीधे बिरला मंदिर पहुंचे. यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।

शानदार लक्ष्मी नारायण मंदिर

इसके वास्तुशिल्प की बात की जाए तो यह मंदिर उड़ियन शैली में निर्मित है। मंदिर का बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर  से बना है जो मुगल शैली की याद दिलाता है। मंदिर में तीन ओर दो मंजिला बरामदे हैं और पिछले भाग में बगीचे और फव्वारे हैं।यह मंदिर मूल रूप में १६२२ में वीर सिंह देव ने बनवाया था, उसके बाद पृथ्वी सिंह ने १७९३ में इसका जीर्णोद्धार कराया।सन १९३८ में भारत के बड़े औद्योगिक परिवार, बिड़ला समूह ने इसका विस्तार और पुनरोद्धार कराया।

बिरला मंदिर

हिन्दू हृदय सम्राट वीर शिवाजी

साईं बाबा मंदिर

मंदिर में गुफा

एक और गुफा


दक्षिण भारतीय निर्माण शैली में मंदिर

नीलम, चन्द्रगुप्त मौर्य की मूर्ती के पास

मंदिर और झरना

बिरला मंदिर में २ घंटे बिताने के बाद हम लाल किला पहुंचे. लाल किला यमुना के किनारे मुग़ल बादशाह शाहजांह ने बनवाया था. इसका निर्माण सं १६३९ में किया गया था. लाल किला भारत की सत्ता का प्रतीक है. मुग़ल काल में सम्पूर्ण भारत को यंहा से शासित किया जाता था.  बाद में अंग्रेजो ने इसमें अपनी छावनी बनायी. आज भी इसके एक हिस्से पर सेना का नियंत्रण है. ये किला भारत की शासन सत्ता का प्रतीक है. इस पर हमेशा तिरंगा लहराता रहता है. १५ अगस्त को प्रधानमन्त्री के द्वारा झंडारोहण किया जाता है. व २१ तोपों की सलामी ली जाती है.

लाल किला या लाल कोट

यह भी कहते हैं की, लाल किले का एक नाम लाल कोट भी है. और यह किला पृथ्वीराज चौहान के द्वारा बनवाया गया था. जिसे शाहजांह ने तुडवाकर दोबारा बनवाया था.

लाल किले का मुख्य द्वार , लाहौरी दरवाजा

दीवाने आम

दीवाने आम का प्रांगन एक खुला मैदान हैं, यह मैदान आम जनता के लिए था.

विश्व स्मारक का विवरण शिला पट

संगमरमर का महल और नहर

ये ऊपर महल के फोटो में जो गहरा स्थान दिखाई दे रहा हैं, दरअसल वो नहरे थी. जिनमे से होकर के यमुना नदी का जल जो की एक बुर्ज तक चढाया जाता था, वो जल इसमें से होकर के बहता था.

लाल किले के पीछे का हिस्सा

ये ऊपर आपको लालकिले का पीछे का हिस्सा दिखाई  दे रहा हैं. ये जो मैदान हैं ये पहले चोर बाज़ार हुआ करता था. अब ये चोर बाज़ार जमा मस्जिद के पास है. दूर रिंग रोड भी दिखाई दे रहीं है.

मोती मस्जिद

इस मस्जिद में मुग़ल बादशाह नमाज अता करते थे.

लाल किले का विहंगम नज़ारा


वैसे लाल किले का एक  तिहाई हिस्सा ही देखने के लिए खोला हुआ है. पर इसी में लोग थक जाते है.  हमें भी शाम होने को आ गयी थी. वैसे तो दिल्ली घूमने के लिए कम से कम तीन चार दिन चाहिए, पर हमने २ दिन में बहुत कुछ घूमने का प्रयास किया. बाकी दिल्ली फिर कभी……

17 Comments

  • JATDEVTA says:

    बढ़िया विवरण क्या खूब यात्रा रही फोटो व् लेख दोनों ने मिलकर समां बाँध दिया, आपकी बतायी लगभग सभी स्थलों को देख चुका हूँ, सोच रहा था कुछ एक दो पॉइंट नए मिले जायेगे एक मिल गया अब वहाँ दुबारा जाउंगा, शिवाजी की मूर्ति पर मेरा ध्यान नहीं गया था, अब ये सभी स्थल दुबारा देखने होंगे क्योंकि अब नई पीढ़ी को भी दिखाने होंगे,

    • राम राम संदीप जी, सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आप लोग हमारे आदर्श हो, आप लोगो से ही प्रेरणा लेकर के ही कुछ लिख पा रहा हूँ. लेखन से ज्यादा मेरा जोर फोटो पर रहता हैं. क्योंकि फोटो से उस स्थान के बारे में बिना लिखे काफी कुछ मालुम पड़ जाता हैं. धन्यवाद….

  • sarvesh n vashistha says:

    हमारी दिल्ली के सुंदर फोटो के लिए धन्यवाद

  • सुंदर वर्णन के साथ बहुत बढ़िया और साफ़ चित्र यह पोस्ट कि शोभा को ४ चंद लगा रहे है. मैंने थोड़ी सी दिल्ली देखी है. और मुहे देखने कि इच्छा भी है.

  • Mahesh Semwal says:

    लेख उत्तम , फोटो अत्ती उत्तम ! दिल्ली दिखाने के लिए आप का शुकरियाँ.

  • Mukesh Bhalse says:

    प्रवीण जी,
    उम्दा विवरण एवं सुन्दर चित्र.
    आपको एक सलाह देना चाहूँगा की आप जानकारी विकिपीडिया से सीधे कट करके पेस्ट करने के बजाय मैटर को पहले कहीं वर्ड में टाइप करके फिर पोस्ट में डाला करें, क्योकि आप विकिपीडिया से सीधा कट पेस्ट करते हैं तो बहुत सारे ऐसे शब्द लिंक बन कर गोल्डन कलर में अंडरलाइन के साथ आ जाते हैं जिनकी पोस्ट के सन्दर्भ में कोई आवश्यकता नहीं होती है, और स्पष्ट रूप से सभी को दीखता भी है की कहीं से कट पेस्ट किया गया है, जो की प्रथम द्रष्टया गलत प्रभाव छोड़ता है.
    धन्यवाद.

  • धन्यवाद मुकेश जी, ये थोडा जल्द्ब्बजी में हुआ था, दरअसल किसी भी स्थान का इतिहास दिखाने के लिए विकिपीडिया आदि की कुछ सहायता लेनी पड़ती हैं. आगे से ध्यान रखूँगा. धन्यवाद

  • Ritesh Gupta says:

    प्रवीन जी…
    बहुत अच्छा विवरण दिल्ली के प्रयटक स्थलों बारे….चित्र भी बहुत अच्छे और सुन्दर लगे …|
    दिल्ली कई बार जा चुका हूँ…पर आज आपके द्वारा दर्शाये के स्थलों में से केवल इंडिया गेट ही घूमा हैं….| वैसे दिल्ली घूमने का मजा सर्दियों में ही आता हैं….|

    • धन्यवाद रितेश जी, वाकई दिल्ली घूमने का मज़ा सर्दियों में आता हैं, मैं सर्दियों में ही गया था. वैसे भी दिल्ली का जाडा मशहूर हैं.

  • Nandan Jha says:

    बहुत बढ़िया प्रवीण जी | थोडा जल्दी में घुमाया पर ठीक है | बिरला मंदिर १५-२० साल से जाना नहीं हो पाया है, उससे पहले तो कई बार गए पर गत समय में बस इसके आगे से निकल जातें हैं | अन्दर के फोटोस देख कर सोचता हूँ की यहाँ का प्रोग्राम रखा जाए |

    फोटोस के संख्या और संयोजन बिलकुल संतुलित है | विकिपीडिया की जानकारी आपने साभार लिखी है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है पर जैसा की मुकेश जी ने कहा, की पहले किसी और टेक्स्ट एडिटर ( notepad, Word ) में लिखने से आपके ज्यादा नियंत्रण में रहेगा |

    जय हिंद |

    • धन्यवाद नंदन जी, मैं इसे तीन पार्ट में रख सकता था, पर वो थोड़ा लंबा हो जाता. विकिपीडिया आदि से थोड़ा सा सहयोग लेना पड़ जाता हैं. क्योंकि इतिहास की जानकारी वंही से मिलती हैं. बस ये जरा जल्दी में हुआ हैं, आप तो जानते ही हो आजकल बिजली की समस्या चल रही हैं. इसलिए थोड़ा सा जल्दी करनी पड़ती हैं.

  • Surinder Sharma says:

    प्रवीण जी
    बहुत बार दिल्ली को देखा, पढ़ा , पर यह पहली बार है, माँ कात्यायिनी मंदिर के बारे में आप के माध्यम से जानकारी हुई. अब जब भी मौका लगा जरुर वहां दर्शन के लिए जायेंगे . अपने जवानों के द्वारा क़ुरबानी पर गर्व…… यह काफी बहस का विषय है. आजाद हिंद फ़ौज के सेनिक, भारतीय सेना की Pension या वेतन की बात थी , पर उन्हें सवतंत्रता सेनानी की Pension मिली थी. भारतीय सेना के जवान हमेशा आदरनिय रहे है. देश को उन पर गर्व है .
    लाल किला, चांदनी चौक वहां जाने का हमेशा मन रहता है पर दिल्ली वाले ट्राफ्फिक की दुहाई देकर हर
    बार प्रोग्राम बदल देते हैं. लोकल ट्रेन शायद जाने का अच्छा माध्यम है . बिरला मंदिर में भगवान कृशन की बहुत सुंदर मूर्ति दखी थी. is it same.
    धन्यवाद

  • धन्यवाद शर्मा जी, सर जी ये वो सैनिक थे जो की अंग्रेजो के लिए विश्वयुद्ध में लड़े थे. येही सैनिक अंग्रेजो के लिए भारतीय लोगो पर और राज्यों पर अत्याचार करते थे. ये तो आप भी जानते होगे, की अफसर अँगरेज़ होते थे, और सैनिक भारतीय होते थे. एक जिले में D.M., S.P. ,D.J., ये अँगरेज़ होते थे और बाकी सब कर्मचारी भारतीय हिंदू. अंग्रेजो ने हम हिन्दुओ के बल पर ही इस देश में राज किया हैं…..

  • Surinder Sharma says:

    प्रवीण जी,
    क्षमा चाहूँगा आप को कमेन्ट ठीक नहीं लगा. जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *