दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ जैसा कि आपको जà¥à¤žà¤¾à¤¤ है पिछली गढ़वाल यातà¥à¤°à¤¾ विपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के कारण अचानक ही समापà¥à¤¤ करनी पड़ी. केदार हमेशा से ही मà¥à¤à¥‡ बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¿à¤¯ रहा है इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण है इसका खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत हिमाचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ चोटियों से घिरा होना और यहाठतक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ का खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत पैदल रासà¥à¤¤à¤¾…हालाà¤à¤•ि पिछली यातà¥à¤°à¤¾ में ये à¤à¥€ शामिल था और यहाठतक ना पहà¥à¤à¤š पाने के कारण थोडा दà¥à¤ƒà¤– जरà¥à¤° था. लेकिन यहाठआने के लिठमन बैचेन था. पिछले साल पूरा मन बनाया था कि इसकी यातà¥à¤°à¤¾ अपà¥à¤°à¥ˆà¤²/मई में पट खà¥à¤²à¤¨à¥‡ के दौरान ही की जायेगी, चाहे अकेले ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना करनी पड़े. कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® तय था, 27 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की रात को दिलà¥à¤²à¥€ से रवानगी और 1 मई को दिलà¥à¤²à¥€ वापसी, कà¥à¤› साथियों की इसकी सà¥à¤šà¤¨à¤¾ दी गयी ताकि अगर कोई उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हो तो वो à¤à¥€ इस खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत जगह का आनंद ले सके, हालाà¤à¤•ि कोई राजी नहीं हà¥à¤†. 26 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की शाम घर के समीप सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इंडिया हैबिटैट सेंटर में à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ दोसà¥à¤¤ कà¥à¤‚दन से काफी समय के बाद अचानक मà¥à¤²à¤¾à¤•़ात हà¥à¤ˆ. इधर उधर की बातों के बाद अचानक से घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी का जिकà¥à¤° आया तो कà¥à¤‚दन को केदार यातà¥à¤°à¤¾ के बारे में बताया और ये कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤‚दन à¤à¤•दम राजी, शायद à¤à¥‹à¤²à¥‡ का बà¥à¤²à¤¾à¤µà¤¾ आया था उसके लिà¤, चलो à¤à¤• से à¤à¤²à¥‡ दो. अगले दिन दोपहर को कà¥à¤‚दन का फोन आया कि उसके घर में अचानक से कोई मेहमान आ गठहैं जो 28 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की सà¥à¤¬à¤¹ अपने घर वापसी करेंगे इसलिठकारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में बदलाव करके 28 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की दोपहर तक ही दिलà¥à¤²à¥€ से निकल पाà¤. ऋषिकेश पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ शाम हो चà¥à¤•ी थी और ऋषिकेश से आगे जाने के लिठआज कोई दूसरा जà¥à¤—ाड़ नहीं मिल पाया. पूछà¥à¤¤à¤¾à¤¤ की तो पता चला कि आगे की पहली बस सà¥à¤¬à¤¹ लगà¤à¤— सवा तीन बजे चलेगी.
जैसे ही हम लोग लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ à¤à¥à¤²à¤¾ की ओर बढ़ने लगे, तेज हवाà¤à¤ चलने लगी और à¤à¥à¤²à¤¾ तेज तेज हिलने लगा. हवा का वेग इतना तेज था कि बिना सहारे के à¤à¥‚ले पर चलना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल लग रहा था, à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था मानो ये हवा अपने साथ उड़ाकर ले जायेगी. सà¤à¥€ लोग à¤à¥‚ले को पकड़कर किसी तरह पार करने की कोशिश कर रहे थे, à¤à¤¸à¥‡ में मà¥à¤à¥‡ लग रहा था कि हमारी जगह अगर कोई छोटा बचà¥à¤šà¤¾ या कोई पतला सा इंसान होता तो नि:संदेह उड़ ही जाता. à¤à¤¸à¥‡ में कई बार फोटो लेने की बेकार कोशिश à¤à¥€ की लेकिन सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾ ना मिल पाने की वजह से फोटो à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ नहीं आ रहे थे, ऊपर से उड़ने या गिरने का डर अलग से लग रहा था. खैर जैसे तैसे पà¥à¤² पार कर ही लिया, बड़ा रोमांचक अनà¥à¤à¤µ था यह.
अब आज रात के लिठरà¥à¤•ने का ठिकाना ढूà¤à¤¢à¤¨à¤¾ था, खोज शà¥à¤°à¥‚ हो गयी, सोचा जब जगह मिल जायेगी तो गीता पà¥à¤°à¥‡à¤¸ के ढाबे में इतà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤¾à¤¨ से लजीज à¤à¥‹à¤œà¤¨ का आनंद उठाà¤à¤‚गे. थोडा आगे बड़े ही थे की जिसका डर था वही हà¥à¤†, अचानक ही मोटी मोटी बारिश की बूंदों ने धावा बोल दिया, सर छà¥à¤ªà¤¾à¤¨à¥‡ के लिठà¤à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ के बाहर खड़े थे कि अनà¥à¤¦à¤° पक रहे सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ की सà¥à¤—ंध ने अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ का नà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¾ दे डाला, à¤à¤²à¤¾ हम कहाठपीछे रà¥à¤•ने वाले थे, सोचा जब तक बारिश बंद नहीं होती थोडा यहाठका जायका à¤à¥€ चख लें. लगà¤à¤— à¤à¤• घंटे बाद बारिश बंद हà¥à¤ˆ और हमारा खाना à¤à¥€. परमारà¥à¤¥ निकेतन आशà¥à¤°à¤® पर पहà¥à¤‚चे तो ये à¤à¥€ बंद होने वाला था, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤ªà¤¾à¤² से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करके जलà¥à¤¦à¥€ से अनà¥à¤¦à¤° का à¤à¤• चकà¥à¤•र लगा आये. चूà¤à¤•ि सूरज ढल चूका था और सूरज ढलते ही मेरा कैमरा à¤à¥€ फेल हो जाता है उसे अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में कम दिखने वाली बिमारी हो जाती है, पर कà¥à¤› फोटो यादगार सà¥à¤µà¤°à¥‚प जैसी à¤à¥€ हो खींच ही ली. वैसे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® गंगा घाट का रातà¥à¤°à¥€ दृशà¥à¤¯ इतना मनोहारी था कि वहाठसे जाने का मन ही नहीं कर रहा था, मेरा तो रात यहीं घाट पर बिताने का मन कर रहा था. पर समूह में यातà¥à¤°à¤¾ करते समय अनà¥à¤¯ साथियों की सहमति à¤à¥€ जरà¥à¤°à¥€ होती है, कà¥à¤‚दन से पूछा तो वो आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤à¤¾à¤µ से मेरी ओर देखने लगा, उसे शायद इसकी उमà¥à¤®à¥€à¤¦ नहीं थी, वैसे à¤à¥€ ये उसकी पहली गढ़वाल यातà¥à¤°à¤¾ थी. उसने कहा कि रात खà¥à¤²à¥‡ में सोना अचà¥à¤›à¤¾ नहीं है इसलिठहमें कहीं कोई जगह ढूà¤à¤¢à¤¨à¥€ चाहिà¤, उसकी बात मानते हà¥à¤ हम लोग फिर खोज में जà¥à¤Ÿ गà¤.

परमारà¥à¤¥ निकेतन के à¤à¥€à¤¤à¤° तांडव मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥…

परमारà¥à¤¥ निकेतन के बाहर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥…

अरà¥à¤œà¥à¤¨ को करà¥à¤®à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ का उपदेश देते à¤à¤—वानॠकृषà¥à¤£…
हालाà¤à¤•ि अà¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ सीजन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ बस हà¥à¤ˆ ही थी, फिर à¤à¥€ दो तीन जगह पूछने के बावजूद à¤à¥€ हमें हमारे हिसाब से कोई ठिकाना नहीं मिला. रात हो गयी थी और हम लोग यहाठसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दूर जाना à¤à¥€ नहीं चाहते थे. इतने में गीता पà¥à¤°à¥‡à¤¸ के à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ की याद आई, यहाठà¤à¥‹à¤œà¤¨ करने का à¤à¤• निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ समय होता है. तेज कदम उसी ओर दौड़ाने शà¥à¤°à¥‚ कर दिठइस आशा में कि यहाठपर सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ करेंगे. पर à¤à¤• और निराशा हाथ लगी, पहले तो रà¥à¤•ने की जगह नहीं मिल रही थी, उस पर यहाठपहà¥à¤‚चे तो à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ बंद मिला, हमें थोड़ी देर हो गयी थी. खैर कोई बात नहीं, à¤à¥‹à¤œà¤¨ तो हम वैसे कर चà¥à¤•े थे, पर यहाठके à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तारीफ़ सà¥à¤¨à¤•र यहाठका सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चखने का मन बनाया था. कà¥à¤‚दन बड़ा धारà¥à¤®à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ का है, कहने लगा रात को कई जगह सतà¥à¤¸à¤‚ग होता है वहीठचलते हैं सतà¥à¤¸à¤‚ग सà¥à¤¨à¥‡à¤‚गे और रात à¤à¥€ वहीठबिताà¤à¤‚गे. मैंने à¤à¥€ उसका मन रखते हà¥à¤ हामी à¤à¤° दी और फिर सतà¥à¤¸à¤‚ग वाली जगह ढूà¤à¤¢à¤¨à¥‡ लगे, कई लोगों से पूछà¥à¤¤à¤¾à¤¤ करते करते यहाठसे वहां घूमते घूमते रात गहराती जा रही थी, पर संयोगवश उस दिन हमें किसी à¤à¥€ जगह सतà¥à¤¸à¤‚ग होता नहीं मिला या शायद हमें वो जगह नहीं मिली जहाठसतà¥à¤¸à¤‚ग हो रहा था. लगà¤à¤— रात के साड़े दस बज चà¥à¤•े थे और हम लोग अà¤à¥€ à¤à¥€ ऋषिकेश की सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ गलियों में घूम ही रहे थे जहाठकà¥à¤› साधà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ और गायों के आलावा और कोई नहीं दिख रहा था. अंत में घूमते घामते हम लोग दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ाशà¥à¤°à¤® वाले गंगा घाट पर ही पहà¥à¤à¤š गà¤, मैंने मौके का फायदा उठाते हà¥à¤ कà¥à¤‚दन से à¤à¤• बार फिर यहाठसोने की इचà¥à¤›à¤¾ जताई तो थोड़ी ना नà¥à¤•à¥à¤° के बाद वो राजी हो गया और मैं à¤à¥€ बड़ा खà¥à¤¶ हà¥à¤†. चाà¤à¤¦à¤¨à¥€ रात में नहाया हà¥à¤† गंगा घाट का वो दृशà¥à¤¯ आज à¤à¥€ कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करने पर आà¤à¤–ों के सामने जीवंत हो उठता है. शहर की चमचमाती रौशनी में बहती गंगा और घाट के किनारे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में à¤à¤—वानॠशंकर की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• अनà¥à¤à¥‚ति को जनà¥à¤® देते हैं. हम लोग सतà¥à¤¸à¤‚ग में तो नहीं जा पाठलेकिन जो अनà¥à¤à¥‚ति यहाठआकर हà¥à¤ˆ, ये लगà¤à¤— सतà¥à¤¸à¤‚ग जाने के सामान ही थी, बलà¥à¤•ि सच कहूठतो उससे बढ़कर थी.

रौशनी में डूबी माठगंगा और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥…
घंटा à¤à¤° घाट के किनारे बैठने के बाद अब नींद आ रही थी, वैसे à¤à¥€ हमें सà¥à¤¬à¤¹ की पहली बस पकड़ने के लिठदो बजे यहाठसे ऋषिकेश बस अडà¥à¤¡à¥‡ के लिठकूच करना था जो कि यहाठसे करीब 2 या 3 किलोमीटर दूर था. हम गंगा घाट के किनारे सोने की à¤à¤• सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ जगह मे गठतो वहां à¤à¤• साधू महाराज पहले से थी बैठे थे जो अà¤à¥€ à¤à¥€ जाग रहे थे. हम अपनी चादर बिछाने लगे तो à¤à¤•दम से à¤à¤¡à¤¼à¤• कर बोले ‘तà¥à¤® लोग यहाठनहीं सो सकते’, हमने इसका कारण पूछा तो बोले ‘इस ओर सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का घाट है, यहाठपà¥à¤°à¥à¤· नहीं आ सकते’. साधू का इस तरह का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° देखकर कà¥à¤‚दन à¤à¥€ उसी लहज़े में उनसे बोला ‘आप à¤à¥€ तो इस घाट पर सो रहें हैं’. साधू और à¤à¥€ à¤à¤¡à¤¼à¤• गया और बोला में तो साधू हूà¤, इस पर कà¥à¤‚दन à¤à¥€ साधà¥à¤“ं की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ उस साधू को समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगा. इस तरह कà¥à¤‚दन और साधू में कà¥à¤› समय तक ये तरà¥à¤• वितरà¥à¤• चलता रहा, मैंने कà¥à¤‚दन को शांत करते हà¥à¤ कहा कि हमें तो सिरà¥à¤« दो तीन घंटे गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¥‡ हैं इस साधू से उलà¤à¥‡ रहे तो सवेरा तो वैसे ही हो जायेगा. अब तक साधू à¤à¥€ थोडा ठंडा पड़ चà¥à¤•ा था, फिर à¤à¥€ हमने घाट के दूसरी तरफ जाना उचित समà¤à¤¾ और दो बजे का अलारà¥à¤® लगाकर हम लोग सो गअकà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ…







Very interesting good photos. Nice to know about sadhu who can sleep there, may be ladies not bother as he is Sadhu.
Thanks a lot of share wonderful journey.
Thanks Surinder Ji for liking the post. Sadhu’s arguments were quite strange, it was midnight there were no ladies still…
Nice start Vipin….sleeping in the Ghats of Rishikesh…wonderful thought
story of the Sadhu Babaji is hilarious
you could have posted slightly larger photos, otherwise, post is very nice…(first I tried to convert it in English but it was pathetic…so it took sometime to read)
Look forward to the next…
Thank you Amitava Ji for reading the post and leaving your comments. I checked with Nandan and have enlarged the pics. Will try to write my next post on Himachal in English…
बढ़िया शुरुआत रही विपिनजी…. हम लोग 1992 में केदारनाथ गये थे दुबारा जाने की हिम्मत नही हुई.
छोटे चित्र अच्छे नही लग रहे.. आशा है केदारनाथ के बड़े चित्र देखने को मिलेंगे
शुक्रिया एस एस जी. मेने भी अपनी पहली केदार यात्रा शायद 1992 में ही की थी…केदार यात्रा की अगली कड़ी जल्द ही…
Acchchi shuruat hai. Meri bhi tivr ichcha hai Kedarnath darshan ki, dekho Bhole baba kab bulayein.
agla post jaldi likhiyega
शुक्रिया विनय भाई, कहाँ हो आजकल, ईद के चाँद हो गए हो भई…:)…अगर बर्फ का अम्बार देखना हो तो अप्रैल के अंत में जाना…इस सीरीज में इसकी कुछ झलक देखने को मिलेगी आपको…
विपिन,
बड़ा ही रोचक विवरण, लेकिन फ़ोटोज़ ने इस बार निराश किया। साधू बाबा तो बड़े चालाक निकले, स्त्रियों के घाट पर साधू सो सकते हैं पुरुष नहीं तो क्या साधू पुरुष नहीं होते????
टिप्पणी के लिए शुक्रिया मुकेश जी. साधुबाबा के तर्क बड़े उलजुलूल से लगे थे क्योंकि ये अर्धरात्रि का समय था और घाट पर स्त्रियाँ तो क्या हमारे आलावा कोई पुरुष भी नहीं थे…खैर हमारी रात अच्छी बीती…रात को हमारा कैमरा फेल हो जाता है, इस कारण फोटो इस तरह के आये हैं…आशा करते हैं आपको अगली पोस्ट के फोटो पसंद आयेंगे…
चलिए बहुत बढ़िया , इस तरह से यात्रा ज़ारी रहेगी । बहुत बहुत धन्यवाद की आपने अपनी केदार यात्रा खट से शुरू कर दी यहाँ घुमक्कड़ पर । गीता प्रेस के भोजनालय के बारे में थोडा और बताएं । घाट पर साधू के व्यवहार के प्रति आपकी प्रतिक्रिया मुझे अच्छी लगी ,खाम्खाह मुंह लगने से बेहतर है की आप अपनी घुमक्कड़ी पर फोकस्ड रहे । फोटोज तो बड़े दिख रहे हैं अब , हालांकि लेख में थोडा आगे तक विवरण रहता तो और मज़ा आता । जय हिन्द ।
शुक्रिया नंदन, आपके सुझाव से सुबह फोटो बड़ी करने का प्रयास किया और हो गया. गढ़वाल यात्रा अचानक से ख़त्म हो गयी तो सोचा इसी सिलसिले तो बरकरार रखते हैं और केदार भी पूरी करते हैं…पहले एक ही लेख में ये यात्रा लिखने का मन था, फिर सोचा दो/तीन भागों में लिखते हैं…गीता प्रेस भोजनालय के बारे में सुना था बहुत वाजिब दाम में बहुत स्वादिष्ट खाना मिलता है…अगली बार चखकर आयेंगे तो तस्सली से ब्यौरा देंगे…
Dear Vipin jee
jaldi se kedar yatra prarmbh karne ka shukriya.
vese bhi hindi me post bahut kam aa rahi hai. roj mail check karta hoo. ghoomakar ka mail bhi milta hai lekin kholo to ye kya sabhi post english me.bhai hum thare dal roti khane vale bhartiy hame pizza noodles thode hi pasand.
aapki post hindi me dekhte hi sari mansik bhookh samapt. padakar achha laga lekin bahut choti post hai.photo to aapne bata hi diya ki rat me kam thaapp so uske bare me kuch kah nahi sakte.
jaldi se vapsi ke liye aapka bahut aabhar.
bhupendra
हेहे….सही कहा भूपेंद्र जी..जो बात दाल रोटी में है…वो पिज्जा या नूडल्स में नहीं…पर कभी कभी खाने में मजा आता है…:)…एक ही लेख में केदार यात्रा लिख डालता तो बहुत बड़ी हो जाती इसलिए टुकड़ों में लिखने की कोशिश की….पोस्ट पसंद करने के लिए हार्दिक आभार…अगली किश्त जल्द ही…
प्रिय विपिन,
इस बार एक मिश्टेक होगई मुझसे ! मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि आपकी पोस्ट झटका इश्टाइल में पढ़नी थी न कि हलाल रीति से! अब पढ़ ली तो अगली पोस्ट के लिये परेशान हूं ! अभी एक पोस्ट फोटोग्राफी पर लिख रहा हूं, शायद रात्रि में आपके कैमरे के फेल होने की बीमारी का कुछ इलाज आपको उसमें मिल सके। अगर आपका डिजिटल कैमरा दिन में अच्छी फोटो ले सकता है तो रात को भी ले लेगा, चिंता नाही करें ! भगवान पर भरोसा रखें, वह सब भली ही करेंगे !
यार लोग कहते हैं कि घुमक्कड़ पर हिन्दी में हास्य-व्यंग्य शैली में यात्रा वृत्तान्त लिखना मैने ही शुरु किया था। आप इस परम्परा को बखूबी आगे बढ़ा रहे हो अतः आपको मेरा शुभ आशीष !
साधु का शाब्दिक अर्थ है – ’सज्जन’ पुरुष ! सिर्फ भगवा वस्त्र पहन कर ’साधु वेष’ का ढोंग करने वाले देश में बहुतायत में हैं जो वास्तव में सज्जन नहीं दुर्जन हैं। बहुत सारे आश्रम ऐसे भी हैं जहां ’साधु’ ही रहते हैं और महिलाओं के वहां से रातों रात गायब हो जाने की न जाने कितनी रिपोर्ट पुलिस के पास दर्ज हैं। ऐसे साधुओं को आइना दिखाना बहुत आवश्यक है, पर फिर भी घूमते – फिरते समय अपना फोकस घूमने पर ही बनाये रखने में समझदारी है। किसी अनजाने शहर में झगड़ा करने से नुकसान भी हो सकता है। ये साधु भी यूनियन बना कर रहते हैं ।
हाहा…सुशान्त जी, आपकी इस गुदगुदाती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार…आपकी परेशानी को बढ़ाएंगे नहीं और अगली पोस्ट जल्द ही पेश की जाएगी…
आपकी फोटोग्राफी वाली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार…
विपिन जी…..
बहुत बढ़िया शुरुआत केदारनाथ यात्रा की……चलो अगले लेख में आपके द्वारा अच्छे फोटो देखने को मिलेगे…..| कभी-कभी खुले में सोना खतरे को दावत देता हैं…..जहाँ से संभव हो इस प्रकार के कार्य बचना चाहिये…..| मेरी सलाह हैं कि आगे भी आप हिंदी में ही लिखिए…..क्योंकि हिंदी में आपकी अभिव्यकित काफी शानदार हैं…..
ऋषिकेश में एक प्रसिद्ध भोजनालय राम पुल के पास चोटी वाला नाम से हैं | गीता प्रेस के भोजनालय का नाम अभी तक नहीं सुना…पर अब सुन लिया….|
धन्यवाद ……..
लेख पढने और टिप्पणी के लिए शुक्रिया, रितेश भाई. हिंदी तो अपनी प्रिय भाषा है और हमेशा कोशिश रहेगी हिंदी में ही ज्यादातर यात्रा वृतांत लिखने की…चोटी वाला में भी भोजन किया है लेकिन उसकी अब बस चोटी ही फेमस रह गई है, खाने में अब वो जान नहीं दिखाई पड़ती…
सबसे पहले तो जल्द ही वापस आकर आपने वादा निभाया उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
सच कहु तो मुझे तो धुंधले , थोड़े blurred फोटोग्राफ्स ज्यादा पसंद आते है, मेरा मानना है के असल ज़िन्दगी उन्ही से प्रदर्शित होती है बिकुल परफेक्ट photographs कभी कभी plastic-ky feeling देते है।
Now anxiously waiting for next 2-3 parts :-)
Thanks once again.
संदीप जी आपने बुलाया और हम आ गए, टिप्पणी के लिए शुक्रिया. अगली पोस्ट गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर…
वाह घुमक्कडी हो ऐसी . गंगा घाट पर ही सो गए . साधू महाराज कि जय हो . पुरुष यहाँ पर सो नहीं सकते . उल्टा चोर कोतवाल को डाटे.
इस तरह के अनुभव हमेशा से ही पसंद रहे हैं, पर परिवार के साथ ऐसा करना थोडा मुश्किल हो जाता है…लेख पढने के लिए शुक्रिया, विशाल भाई!
विपिन जी ..हमेशा की तरह इस बार भी आपकी ये पोस्ट मजेदार रही ..उत्तराखंड में घुमक्कड़ी का अपना ही अलग मजा है
जितनी बार भी चले जाओ इन वादियों में मन भरता ही नहीं ..रात को गंगा के घाट पे ही सो गए वाह ..लगे रहिये इसी तरह घुमक्कड़ी
में ,कभी हमें भी अपने साथ ले चलिए ..खैर तब तक इसी घुमक्कड़ के माध्यम से आपके साथ केदारनाथ की सैर कर लेंगे
.अगले पोस्ट के इन्तजार में ….
Vipin bhai ,
bahut badhia ….sabko mana hi lete ho aasman ke neeche sone ke liye …. bhai acha hua satsang mein nahi gaye …kyunki raat ko jo thodi bahut neend aayi vo bhi na aati … baaki kasar to ladaku baba ne puuri kar hi di … ek baat batao ..vahan sirf striyan hi kyun aa sakti hai …kya baba ji ne koi tark rakha ..?????behar haal unse ladai karne ka koi fayda nahi hota kyunki aadhikaansh baba log nashe mein hote hain …aapne kundan ko rok kar acha kia …
mein feb 2012 mein rishikesh gaya tha … mujhe itni shanti apne ghar mein bhi nahi mili jo ganga maa ko dekhne mein mili …mein lakshman jhule ke neeche bane kinare par ghanto apne mitr ke saath baitha rha …ganga ke tez veg ko aur sundar aakriti ko dekh matrmughd hota raha ….
Ab zaldi se kuch aur likho bhaisab