सà¤à¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साथियों को पà¥à¤¯à¤¾à¤° à¤à¤°à¤¾ नमसà¥à¤•ार और ॠनमः शिवाय. जैसा की आपलोग जानते हैं की मेरी यातà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ अमूमन मेरे परिवार के साथ तथा à¤à¥‹à¤²à¥‡Â बाबा के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिà¤Â होती हैं. इस पोसà¥à¤Ÿ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मैं आपसे अपनी à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€Â यातà¥à¤°à¤¾Â को साà¤à¤¾ करने जा रहा हूà¤. यह यातà¥à¤°à¤¾Â हमने करीब तीन वरà¥à¤·Â पहले सन २००९ में की थी, तथा अपनी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿Â और अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ के आधार पर मैं कोशिश कर रहा हूठआपलोगों को रूबरू करने की, à¤à¤• दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯Â शहर औरंगाबाद तथा à¤à¤—वान शिव के à¤à¤• अनà¥à¤¯Â महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£Â जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग  घृषà¥à¤£à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°Â से.
अपनी जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों की यातà¥à¤°à¤¾ के सिलसिले में तà¥à¤°à¥à¤¯à¤®à¥à¤¬à¤•ेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ हमने अपने कà¥à¤› पारिवारिक मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के परिवार के साथ कà¥à¤› महीनों पहले ही किये थे, और अब हमारे दिमाग में उधेड़बà¥à¤¨Â चल रही थी की कहाà¤Â जाया जाये अतः काफी सोच विचार करने के बाद हमने निरà¥à¤£à¤¯Â लिया की घृषà¥à¤£à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°Â जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिà¤Â जाà¤à¤ तथा साथ में औरंगाबाद शहर से लगे à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤•ों तथा अजंता à¤à¤µà¤‚ à¤à¤²à¥‹à¤°à¤¾Â की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ à¤à¥€Â देखी जाà¤à¤.
शà¥à¤°à¥‚आती यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं में हमारी पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•ता हà¥à¤†Â करती थी की à¤à¤—वान à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥Â के दरà¥à¤¶à¤¨Â हमें सोमवार को ही हों, अतः हम अपनी यातà¥à¤°à¤¾ की योजना à¤à¥€Â इसी बात को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨Â में रखकर बनाया करते थे, अतः हमने अपनी यातà¥à¤°à¤¾Â शनिवार को शà¥à¤°à¥‚ की. यातà¥à¤°à¤¾ के कà¥à¤›Â दो चार दिन पहले हमने इंदौर से औरंगाबाद के लिà¤Â सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤°Â कोच बस में अपना आरकà¥à¤·à¤£Â करवा लिया. हमारी यह यातà¥à¤°à¤¾ तीन दिन की à¤à¤• संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤Â यातà¥à¤°à¤¾ थी जो की २१ जनवरी २००९ को शà¥à¤°à¥‚ होकर २४ जनवरी २००९ को समापà¥à¤¤Â होनी थी.
हमारी बस का समय रात ८.३० बजे का था अतः हम टà¥à¤°à¥‡à¤µà¥‡à¤²à¥à¤¸Â के ऑफिस पर करीब आठ बजे पहà¥à¤à¤šÂ गà¤, उस समय संसà¥à¤•ृति १० वरà¥à¤· की तथा वेदांत (शिवमà¥) २ साल का. शिवमॠसà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° कोच बस में बैठने का आदि नहीं था और हमारा टिकिट à¤à¥€Â अपर बरà¥à¤¥ का था. जैसे ही बस आई और हम अपनी बरà¥à¤¥ पर चà¥à¤¨à¥‡Â की कोशिश करने लगे वैसे ही शिवमà¥Â ने रोना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, à¤à¤• तो रात का समय, ऊपर की बरà¥à¤¥ और बस का तंग तंग सा माहौल देख कर उसे कà¥à¤›Â असहज सा महसूस हà¥à¤† और उसने तेज आवाज़ में रोना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, वह ऊपर चà¥à¤¨à¤¾ ही नहीं चाह रहा था.
सारी बस के लोग हमारी ओर नाराज़गी के अंदाज़ में देखने लगे, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿Â इतनी विकट हो गई की à¤à¤• बार तो हमें लगा की अब हमें अपना टूर केंसल करना पड़ेगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शिवमॠकी रोने की आवाज़ से बाकी यातà¥à¤°à¥€Â परेशान हो रहे थे और हम अपनी सीट पर पहà¥à¤à¤š ही नहीं पा रहे थे, जैसे ही हम उसे ऊपर सीट पर बैठाते वह वापस निचे उतरने के लिà¤Â à¤à¤¾à¤à¤•ने लगता, अंततः करीब आधे घंटे में à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿Â सामानà¥à¤¯Â नहीं हà¥à¤ˆÂ तो कविता ने उसे दो तीन चांटे जड़ दिà¤Â तथा डरा दिया, अब वह सà¥à¤¬à¤•ते हà¥à¤Â सिट पर बैठ गया और हम तीनों à¤à¥€ सिट पर चढ़ गà¤, कà¥à¤›Â देर में शिवमà¥Â रोते रोते सो गया और ईशà¥à¤µà¤°Â की कृपा से सà¥à¤¬à¤¹Â तà¤à¥€Â जागा जब हम औरंगाबाद पहà¥à¤à¤šÂ चà¥à¤•े थे.
यह रविवार की सà¥à¤¬à¤¹ के आठबजे का समय था, बस से उतरने के बाद हमने ऑटो किया और बस सà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª के आस पास ही à¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• होटल / लॉज की तलाश में निकल पड़े, कà¥à¤› ही देर में हमें अपने बजट के हिसाब से à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾Â सा कमरा मिल गया जहाà¤Â डबल बेड, टीवी, तथा गरà¥à¤®Â पानी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ थी तथा होटल के बेसमेंट में ही à¤à¤• साउथ इंडियन रेसà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥‡à¤‚ट à¤à¥€ था और आस पास में ही कà¥à¤›Â अचà¥à¤›à¥‡Â शाकाहारी à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯Â à¤à¥€ थे.
हमारा यह होटल औरंगाबाद के सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§Â सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥Â गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨Â के ठीक सामने था. होटल में चेक इन करने तथा नहाने धोने के बाद हमने सबसे पहले सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨ देखने का मन बनाया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह हमारे होटल के à¤à¤•दम करीब था. उस साउथ इंडियन रेसà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥‡à¤‚ट में इडली संà¤à¤¾à¤°Â तथा मसाला डोसा खाने के बाद हम सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨ की ओर चल दिà¤.
सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥Â गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨Â चिड़ियाघर:
मà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¤¿à¤ªà¤²Â कारपोरेशन औरंगाबाद ने सन १९८४ में छोटे पैमाने पर à¤à¤• उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨Â सह चिड़ियाघर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾Â की तथा उसे सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥Â गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨Â नाम दिया गया.  विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के पेड़ पौधों तथा मनà¤à¤¾à¤µà¤¨ पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨Â à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨Â पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के पशà¥Â पकà¥à¤·à¥€Â संरकà¥à¤·à¤¿à¤¤Â किये गà¤Â हैं तथा यहाà¤Â à¤à¤• सà¥à¤¨à¥‡à¤• पारà¥à¤• à¤à¥€Â हैं जहाà¤Â लगà¤à¤— १५ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ के सरà¥à¤ªÂ तथा अजगर हैं.
सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ गारà¥à¤¡à¥‡à¤¨ में कà¥à¤› घंटे बिताने के बाद अब हम ऑटो करके औरंगाबाद के सबसे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² बीबी का मकबरा को देखने के लिठचल पड़े.
बीबी का मकबरा:
बीबी का मकबरा औरंगाबाद शहर का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• चिनà¥à¤¹ है, इस ख़ूबसूरत मकबरे (समाधी) को मà¥à¥šà¤²Â शहजादे आज़म शाह ने 17  वीं शताबà¥à¤¦à¥€Â में अपनी माà¤Â राबिया दà¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€Â उरà¥à¤«à¤¼Â दिलरास  बानू बेगम जो की मà¥à¥šà¤²Â शासक औरंगजेब की पहली पतà¥à¤¨à¥€Â थी की याद में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि देने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯Â से बनवाया था. इस मकबरे की तà¥à¤²à¤¨à¤¾Â आगरा में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â ताज महल से की जाती रही है और ताजमहल से कमतर आंके जाने की वजह से ही यह ख़ूबसूरत ईमारत हमेशा से ही उपेकà¥à¤·à¤¾ का शिकार रही है.
इस मकबरे को दकà¥à¤·à¤¿à¤£ का ताज तथा गरीबों का ताज à¤à¥€Â कहा जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसके निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के पीछे असल उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ था ताजमहल को मात देना लेकिन धन की कमी की वजह से यह ताजमहल की टकà¥à¤•र का नहीं बन पाया. औरंगजेब ने इस मकबरे के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के लिà¤Â आज़म शाह को सिरà¥à¤«Â à¥Â लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡Â दिà¤Â थे जबकि ताजमहल की लागत थी लगà¤à¤— ३ करोड़ बीस लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡.
इस मनमोहक सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• को जी à¤à¤°à¤•र निहारने के बाद हम औरंगाबाद सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• और à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• महतà¥à¤µ के सà¥à¤¥à¤²Â पनचकà¥à¤•ी को देखने के लिà¤Â पहà¥à¤‚चे.

संसà¥à¤•ृति, बीबी का मकबरा में बतà¥à¤¤à¤–ों के साथ.

कविता, बीबी का मकबरा में बतà¥à¤¤à¤–ों के साथ.
पनचकà¥à¤•ी:      Â
पनचकà¥à¤•ी का अरà¥à¤¥ है पानी से चलने वाली चकà¥à¤•ी (फà¥à¤²à¥‹à¤° मिल). यह १६९५ में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ à¤à¤• à¤à¤¸à¥€Â अनाज पिसने की चकà¥à¤•ी है जो पानी के दबाव से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨Â उरà¥à¤œà¤¾Â की सहायता से चलती है, यह चकà¥à¤•ी सूफी संत बाबा शाह मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤° की दरगाह के परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है तथा इसका उपयोग दरगाह पर आये तीरà¥à¤¥Â यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिà¤Â अनाज पिसने के लिà¤Â किया जाता था .
यह पनचकà¥à¤•ी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वासà¥à¤¤à¥à¤•ला के सशकà¥à¤¤ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• तथा तकनिकी पकà¥à¤· का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µÂ करती है तथा पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वासà¥à¤¤à¥à¤•ला की वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• सोच का à¤à¤• नायब नमूना है. इसका डिजाइन कà¥à¤› इस तरह से किया गया था की इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से आठदस किलोमीटर दूर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤ से जल को पाइप की सहायता से यहाà¤Â तक लाकर इसकी शकà¥à¤¤à¤¿Â का उपयोग अनाज पिसने के लिठकिया जाये. इस परिसर में à¤à¤• मदरसा, à¤à¤• कचेहरी, à¤à¤• सराय तथा कई जनानखाने हैं.
हमारे औरंगाबाद दरà¥à¤¶à¤¨ के दà¥à¤¸à¤°à¥‡ दिन हमने à¤à¤• ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ तय किया जिसने हमें घà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°Â तथा à¤à¤²à¥‹à¤°à¤¾ की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ (जिनका वरà¥à¤£à¤¨ मैं अपनी अगली पोसà¥à¤Ÿ में करूà¤à¤—ा) घà¥à¤®à¤¾à¤•र लौटते समय रासà¥à¤¤à¥‡Â में  खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦     ( जो औरंगजेब का मकबरा तथा à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¥€ मंदिर के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ है), दौलताबाद का किला, पैठन (जो की पैठनी साड़ी के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ है) आदि के à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ कराये.
औरंगजेब का मकबरा (खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦):
खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ की तंग गलियों से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हम अपने अगले गंतवà¥à¤¯ बादशाह औरंगजेब (अबà¥à¤² मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤° मà¥à¤¹à¥€à¤‰à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ मà¥à¤¹à¤®à¥à¤®à¤¦ औरंगजेब आलमगीर) के मकबरे पर पहà¥à¤‚चे. यहाठआलमगीर दरगाह के शांतिपूरà¥à¤£ परिसर में उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के अवशेष दफ़न हैं जिसने रतà¥à¤¨à¤œà¤¡à¤¿à¤¤ सिंहासन पर बैठकर पà¥à¤°à¥‡ हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ पर शासन किया था.
 हम वहां के अतà¥à¤¯à¤‚त शांतिपूरà¥à¤£Â माहौल में पहà¥à¤‚चकर तथा औरंगजेब की कबà¥à¤°Â के सामने खड़े होकर सà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§ तथा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•ित होकर आà¤à¤–े फाड़ फाड़ कर देख रहे थे और सोच रहे थे……à¤à¤• समय हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ पर राज़ करने वाले बादशाह की कबà¥à¤°…….इतनी साधारण…….इतनी सादगी लिअ…….ऊपर छत à¤à¥€ नही……….हमारी इस जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ को शांत किया वहीà¤Â पर खड़े à¤à¤• मौलाना रूपी गाइड ने.
उसने हमें बताया की इस मà¥à¥šà¤²Â शासक, जो की अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की अकूत संपतà¥à¤¤à¤¿Â का मालिक था, ने अपनी अंतिम इचà¥à¤›à¤¾Â में जाहिर किया था (लिखा था) की मेरी कबà¥à¤°, जहाà¤Â मà¥à¤à¥‡Â दफनाया जाà¤Â वह खà¥à¤²à¥‡Â आकाश में हो तथा उसे किसी à¤à¥€Â पà¥à¤°à¤•ार से ढंका न जाà¤, और मेरी कबà¥à¤° तथा मकबरे को बनाने के लिà¤Â शाही खजाने से à¤à¤• रूपया à¤à¥€Â खरà¥à¤š न किया जाà¤. मेरी कबà¥à¤° मेरी मेहनत से कमाà¤Â गà¤Â रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ से ही बने.
 अतः उसकी अंतिम इचà¥à¤›à¤¾ के मदà¥à¤¦à¥‡à¤¨à¤œà¤¼à¤° उसकी कबà¥à¤°, उसके जीवन के अंतिम वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â टोपियाà¤Â सिलकर तथा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बाज़ार में बेचकर, कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयातों को कागज़ पर लिखकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बेचकर कमाà¤Â गà¤Â कà¥à¤› रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ से बड़ी ही सादगीपूरà¥à¤£Â बनाई गई है.  उसकी कबà¥à¤° को खà¥à¤²à¥‡ आकाश में बनाकर छोड़ दिया गया था. पहले यह कबà¥à¤° à¤à¤• साधारण मिटà¥à¤Ÿà¥€Â  के टीले के रूप में बनाई गई थी बाद में १९११ में उस समय के à¤à¤¾à¤°à¤¤ के वायसराय लोरà¥à¤¡ करà¥à¤œà¤¼à¤¨ ने कबà¥à¤° के आसपास à¤à¤• साधारण सा मकबरा बनाने के आदेश दिà¤. औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में हमेश अतà¥à¤¯à¤‚त सादगीपूरà¥à¤£ जीवन बिताने का पà¥à¤°à¤£ लिया था जो उसने अपनी मृतà¥à¤¯à¥ तक निà¤à¤¾à¤¯à¤¾ à¤à¥€.
कबà¥à¤° के आसपास बड़ी साधारण सी सफ़ेद चà¥à¤¨à¥‡ से पà¥à¤¤à¥€ मिटà¥à¤Ÿà¥€ की दीवारे हैं, और छत नहीं है. कबà¥à¤° के ऊपर कà¥à¤› तà¥à¤²à¤¸à¥€ के पौधे उगे हà¥à¤ हैं.
औरंगजेब की मृतà¥à¤¯à¥ अहमदनगर में २० फरवरी, १à¥à¥¦à¥ को हà¥à¤ˆ थी, मृतà¥à¤¯à¥ के समय वह ८८ वरà¥à¤· का था. उसकी इचà¥à¤›à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प उसे मृतà¥à¤¯à¥ के बाद खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ लाया गया तथा यहीं उसके गà¥à¤°à¥ संत सैयद जैनà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ की दरगाह के परिसर में दफनाया गया.
इसी परिसर में औरंगजेब की कबà¥à¤° के करीब ही उसके बेटे शहजादा आज़म शाह, आज़म शाह की बीवी तथा उसकी बेटी की कबà¥à¤°à¥‡à¤‚ à¤à¥€ हैं.

औरंगजेब के बेटे आज़म शाह, उसकी पतà¥à¤¨à¥€ तथी बेटी की कबà¥à¤°à¥‡à¤‚.
 उस कà¥à¤°à¥‚र, धरà¥à¤®à¤¾à¤‚ध और दमà¥à¤à¥€Â बादशाह औरंगजेब जिसने सोमनाथ सहित कई महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हिनà¥à¤¦à¥‚ मंदिरों तथा धरà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ को तबाह किया, लà¥à¤Ÿà¤¾Â और मिटà¥à¤Ÿà¥€ में मिलाया, की कबà¥à¤° के सामने à¤à¤• शिव à¤à¤•à¥à¤¤Â परिवार खड़ा था और सोच रहा था की बà¥à¤°à¤¾à¤ˆÂ का अंत किस तरह से होता है, किस तरह से à¤à¤• आतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ और दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€Â मिटà¥à¤Ÿà¥€ में मिल जाता है.
 सोमनाथ मंदिर और काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर जैसे अनà¥à¤¯ कई महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हिनà¥à¤¦à¥‚ मंदिरों को तहस नहस करने और लà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ वाले à¤à¤• बेरहम कटà¥à¤Ÿà¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€Â शासक की करतूतों का अंत कैसे हà¥à¤†………………………………………….सोचिये.
सोमनाथ का मंदिर आज à¤à¥€ अपने उसी वैà¤à¤µ और पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा के साथ सीना ताने खड़ा है, और इस पर लहराती विशाल धà¥à¤µà¤œà¤¾Â  आज à¤à¥€Â सनातन धरà¥à¤®Â की विजय का जयघोष करती पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤Â होती है, उसी तरह काशी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर à¤à¥€ आज à¤à¥€ अपनी पà¥à¤°à¥€Â आन बान और शान के साथ विराजमान है. रोजाना सैकड़ों, हज़ारों दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ यहाà¤Â दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ को आते हैं और अपनी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾Â लà¥à¤Ÿà¤¾à¤¤à¥‡ हैं. और उस अधरà¥à¤®à¥€Â औरंगजेब की कबà¥à¤° à¤à¤• गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤® सी जगह पर अपनी दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾Â पर आंसू बहा रही है…………………………
उस उपरवाले के नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ को सलाम करते हà¥à¤ हम सब कà¥à¤›Â देर वहां रà¥à¤• कर अपनी अगली मंजिल की और चल दिà¤.
à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¥€ मंदिर खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦:
खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ में ही à¤à¤²à¥‹à¤°à¤¾ की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं से करीब ४ किलोमीटर दूर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¥€ मंदिर. इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मंदिर में à¤à¤—वान हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ की लेटी अवसà¥à¤¥à¤¾ में दà¥à¤°à¥à¤²à¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ है जो की बहà¥à¤¤ कम मंदिरों में होती है. यहाठपर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जयंती पर तथा पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शनिवार को हजारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठआते हैं. इस मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद मंदिर के सामने  सà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â शॉप से दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ तथा परिजनों के लिठकà¥à¤› हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ चालीसा के सेट खरीदने के बाद हम यहाठसे बाहर निकल गà¤.
दौलताबाद का किला:
दौलताबाद, औरंगाबाद à¤à¤²à¥‹à¤°à¤¾ रोड (नेशनल हाईवे – 211) पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• टाउन है जिसका पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ नाम देवगिरी था. दौलताबादमें à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ किला है जो की देखने लायक है. यह किला अपने तरह का à¤à¤•मातà¥à¤°Â किला है जो गà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤‚ड फोरà¥à¤ŸÂ और हिल फोरà¥à¤Ÿ का à¤à¤• अनोखा कामà¥à¤¬à¤¿à¤¨à¥‡à¤¶à¤¨ है. यह किला à¤à¤• पिरामिड के आकर परà¥à¤µà¤¤Â के शिखर पर बना हैइसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£Â राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤•ूट राजाओं ने करवाया था.
इस किले को देखने के बाद हम अपने ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ से वापस औरंगाबाद में अपने होटल में शाम तक पहà¥à¤à¤š गà¤.
अब अपनी इस पोसà¥à¤ŸÂ को मैं यहीं समापà¥à¤¤Â करता हूà¤Â और जलà¥à¤¦ ही आपको इस शà¥à¤°à¤‚खला की अगली कड़ी यानि अगली पोसà¥à¤Ÿ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â घà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°Â जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग à¤à¤µà¥‡à¤®Â à¤à¤²à¥‹à¤°à¤¾ की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं से रूबरू करवाऊंगा.
Hi Silentsoul jee
This time I have posted comments first………………..
Just joking I have woke up and I am going to Take Mukesh jee from Railway station to my home.
No way i am going to have competition with you Sir…………………..
Anyway very well written post and very good pics . Keep it up Mukesh……………………
Biwi Ka Maqbara looks good.
Waiting for Grishneshwar………………………..
Vishal,
Thanks for your lovely comments. Yes Bibi Ka Maqbara is a monument worth seeing.
Thanks.
वाह मुकेश भाई देशी तरीका यानि कि थप्पड यहाँ भी काम आया, ताजमहल का यह छोटा रुप अच्छा लगा, 88 वर्ष का होकर मरने वाला अत्याचारी मुगल बादशाह भी आखिरकार जमीन के नीचे ही दफ़न हुआ, इसे तो कब्र भी नसीब ना होनी चाहिए थी,
अरे विशाल भाई अब तो मुकेश भाई अपके यहाँ पर आ चुके होंगे, वैसे शान्त आत्मा जी आजकल पहला कमैन्ट करने से पीछॆ रहे जा रहे है।
संदीप भाई,
कमेन्ट देरी से करने के लिए क्षमा चाहता हूँ, इन दिनों तटीय कर्नाटक और मुंबई की घुमक्कड़ी चल रही है अतः व्यस्त था. बिलकुल सही कहा आपने, उसे तो कब्र भी नसीब नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन ईश्वर इतना बेरहम नहीं है.
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
Wowwww, simply awesome
Regards
Anupam Mazumdar
Thanks Anupam for this appreciation.
मुकेश जी, मैंने इस मिनी ताजमहल के बारे में सुना था पर आज आपके माध्यम से देख भी लिया। मैं अजन्ता एलोरा की यात्रा में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग गया था पर औरंगाबाद मुझसे बिल्कुल छूट गया। आपकी इस पोस्ट से मन में आ रहा है कि एक बहुत अच्छी जगह छूट गई। फोटो बहुत सुन्दर हैं। और लेख में शुरू से आखिर तक बडा आनन्द आया। धन्यवाद इस सुन्दर यात्रा को हम सबके साथ साझा करने के लिये। आगे ज्योतिर्लिंग की यात्रा के इंतजार में।
मनु जी,
आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. जी हाँ औरंगाबाद गए तो बीबी का मकबरा देखना तो बनता है बॉस.
वैसे आपने घ्रश्नेश्वर के दर्शन कर लिए तो फिर बाकी सब ठीक है. मैंने ऐसे भी सिरफिरे तथाकथित हिन्दू देखे हैं जो औरंगाबाद जाकर बीबी का मकबरा आदि और यहाँ तक की एलोरा की गुफाएं भी देख कर आते हैं लेकिन घ्रश्नेश्वर के दर्शन नहीं करते. अब आपको तो पता ही होगा की एलोरा और घ्रश्नेश्वर की दुरी कितनी है.
Mukesh ji tks. I liked the story. Te temple of Bhadra Maruti is awesome !
इसे तो कब्र भी नसीब ना होनी चाहिए थी – I agree with this
शान्त आत्मा जी, आपकी शिकायतें मिल रही हैं। सन्दीप जी की बात पर ध्यान दो। आपका बडा रुतबा था इस काम में।
SS ji,
Thanks for your sweet comments.Yes Bhadra Maruti temple and idol both are beautiful.
Thanks.
SS ji,
Thanks for your comments and liking the post. Yes Bhadramaruti temple is very beautiful.
मुकेश भाई……
जय भोले नाथ की..!
अपने पिटारे में से वाकई में आपने बहुत ही अच्छा लेख चुना हैं …..औरंगाबाद के बारे में सुना तो हैं पर आपके लेख के माध्यम से पढ़ लिया और फोटो के माध्यम से देख भी लिया…….अति सुन्दर वर्णन…..
भद्र मारुती मंदिर खुलताबाद के फोटो अच्छे लगे….|
धन्यवाद
अरे रितेश भाई, 20 तारीख को आगरा आ रहा हूं। डिनर आपके यहीं होगा। रात्रि विश्राम आगरा छावनी स्टेशन पर होगा। सुबह सवेरे छह बजे पता नहीं कहां की ट्रेन पकडनी है। बोलो कि ठीक है। ताजमहल देखूंगा, तभी तो बीबी का मकबरा देखने में मजा आयेगा। बोलो हां।
नीरज जी ……हाँ
आपका आगरा शहर में स्वागत हैं |…आपसे मुलाकात भी होगी ?
अपना मोबाईल नंबर आपके फेसबुक मैसेज में भेज दिया हैं ….|
रितेश जी,
आगरा तो हम भी आनेवाले हैं. आयेंगे तो आपसे जरूर मिलेंगे.
मुकेश जी ….
आगरा में आपका स्वागत हैं | कब आ रहे हैं आप ?
२० तारीख को नीरज जी आगरा आये दिन भर उन्होंने आगरा अकेले ही घूमा और रात को डिनर हमारे साथ ही किया था और वह हमारे यहाँ पर ही रुके थे | हमारी नीरज जी से मुलाकात काफी अच्छी रही |
यदि आप आगरा आयेगे तो हम जरूर मिलेंगे |
धन्यवाद………
रीतेश
रितेश जी,
इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. आपको पोस्ट पसंद आई, समझो हमारा मकसद पूरा हो गया. जय भोले……………
धन्यवाद.
“उस क्रूर, धर्मांध और दम्भी बादशाह औरंगजेब जिसने सोमनाथ सहित कई महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिरों तथा धर्मस्थलों को तबाह किया, लुटा और मिट्टी में मिलाया, की कब्र के सामने एक शिव भक्त परिवार खड़ा था और सोच रहा था की बुराई का अंत किस तरह से होता है, किस तरह से एक आत्याचारी और दुराचारी मिट्टी में मिल जाता है”
मुकेश जी, आपकी ये बातें दिल को छू गईं। औरंगजेब की करतूत किसी से छुपी नहीं है। पक्का मुसलमान था वो। आजकल तो पक्के मुसलमान मिलते ही नहीं। सब कच्चे हैं। तभी तो कहा जाता है कि इस्लाम खतरे में है। सही कहा जाता है।
नीरज जी,
मुझे यकीन था आपको ये लाइनें अवश्य पसंद आएँगी. और आजकल आप घुमक्कड़ पर पोस्ट नहीं लिख रहे? ऐसी भी क्या नाराजगी है. भैया आपकी नाराजगी संपादक मंडल से है, तो हम पाठकों को उसका खामियाजा क्यों भुगतना पड़ रहा है. अब अच्छे बच्चों की तरह गुस्सा छोड़ दीजिये और बताइए की आपकी अगली पोस्ट कब आ रही है?
मुकेश जी, भाई मैं आपको कितने दिनों से याद कर रहा था। आपका और साइलेण्ट साहब का कुछ पता ही नहीं था। चलो खैर, कर्नाटक और मुम्बई को यहां अब हमारे सामने रखने का टाइम आ गया है। जल्दी करना।
और भाई, एक गडबड हो गई जिसकी वजह से मुझे यहां लिखना पडेगा। असल में सन्दीप भाई पिछले दिनों बुरी तरह सिर हो गये कि घुमक्कड पर लिख, लिख। यहां तक कि उन्होंने धमकी भी दे दी कि अगर घुमक्कड पर नहीं लिखेगा तो मेरी पोस्टों पर टिप्पणी भी मत कर देना। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि अगर मैंने टिप्पणी कर दी तो वे क्या कर लेंगे। तो जी आखिरकार मैंने पीछा छुडाने के लिये कह दिया कि अगर तुम्हारी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी आ गई तो समझ लेना कि मैं लिखना शुरू करूंगा। अब जी, ऐसा हुआ कि मैं सुबह चार बजे छपने वाली हर पोस्ट पर पहला कमेण्ट करने के चक्कर में मजे मजे में उनकी पोस्ट पर भी कमेण्ट कर बैठा- सुबह चार बजे पोस्ट छपी और कमेण्ट आया चार बजकर एक मिनट पर। मुझे उस समय ध्यान नहीं था कि मैंने कुछ वचन दे रखा है। दो दिन बाद सन्दीप भाई ने वचन याद दिलाया। मैं वैसे तो किसी को कोई वचन नहीं देता, देता हूं तो खूब सोच विचार करके देता हूं और फिर निभाता भी हूं। इस वजह से मुझे ना चाहते हुए भी लिखना पडेगा।
रही बात नाराजगी की तो मेरी नाराजगी सम्पादक मण्डल से है और रहेगी।
आप जल्दी ही घुमक्कड पर मेरी नई पोस्ट देखेंगे।
Mukesh bhai, Aurangabad ki sair karane ke liye shukriya. Bibi ka maqbara, Taj Mahal to takkar to nahi deta, par pehli baar mein dekhne par bilkul Taj Mahal jaisa hi lagta hai, koi bhi dhoka kha sakta hai. Lete huye Hanuman ji ke pehli baar darshan kiye. Daulatabad Quile ke upar se sahar ke najare dikhlate to maja doguna ho jata…..
Vipin ji,
Post ko pasand karne tatha itne sundar shabdon men kament karne ke liye dhanyawaad.
Thanks.
मुकेश जी . …………बहुत पुरानी यादों को आपने अच्छा संजोया ……… मज़ा आ गया … आपकी हिंदी बहुत आची है ………. अलंकारो से परिपूर्ण ……….
आपसे प्रभावित होकर में सोच रहा हूँ की अगली पोस्ट हिंदी में लिखने की कोशिश करूँ . देखते है क्या परिणाम निकलता है .
क्यूँ आपका क्या सुझाव है ??????????
आपने मुकेश जी से सुझाव मांगा है पर मै बीच में कूद पडा हूं । शेखावत जी आपका स्वागत है हिंदी में लिखना सोचने के लिये । मातृभाषा में लिखना और पढना हमेशा ही बडा आनंददायक होता है । आप कोशिश करें तो सही
क्यूं मुकेश जी सही कहा मैने?
गिरिराज जी,
हौंसला बढ़ने के लिए तथा प्रशंसा के लिए धन्यवाद. और हिंदी में लिखना चाहते हैं तो नेक काम में देरी कैसी? बस कर दीजिये शुरू. वैसे मैंने आपकी हिन्दी कमेंट्स पढ़ी है और मैं दावे से कह सकता हूँ की आपकी हिन्दी पोस्ट सुपर हिट होनेवाली है.
धन्यवाद.
शुक्रिया औरंगाबाद की ऐतिहासिक धरोहरों से परिचय कराने के लिए..
मनीष जी,
आपकी ओर से कमेन्ट का हमेशा इंतज़ार रहता है. शुक्रिया.
Sochney par majboor kardeta hai, Bahut hi khoobsoorat lekh Mukhesh ji.
Thank you for writing this for us.
Stone,
Thanks for your beautiful comment.
Dear Mukesh ji,
Saw your post and loved it. I have been to Aurangabad many a times while my enroute to Hyderabad.
I believe that you have not given enough weightage to the Daulatabad Fort. It is i believe one of the finest forts to be ever built. With its steep climb, nummerous hidden passageways and extraordinary history, it does make for a very interesting read and visit. I have often climbed it but have never been able to go to the top part. Always a few stairs short of the temple at the top.
@Neeraj ji, aapka comment bahut strong tha. Aurangzeb ki aatma hil gai hogi uski kabr mein. But as like today i believe the ghumakkars of those times are considered the best and authentic and accurate story / history writers. Someday , far from today some one will read these beautiful travels and i am sure all of you above would be remembered as the people who re-discovered India.
@ Silent Soul.. Please do write more. the stories . the comments. we luv it all.
Hungry for More !
Bhavesh
भावेश , मुकेश जी के लेख की तरह आपके कमेन्ट भी बहुत संतुलित शब्दो में और प्यारे हैं । मै सहमत हूं आपसे कि एक दिन इन घुमक्कडो को याद किया जायेगा भारत को दोबारा से लिखने और दिखाने के लिये
Bhavesh,
Thanks for appreciation. Actually this post was a flashback. Actual trip was carried out 3 years back, so the memories were fed and couldn’t recollect them effectively and efficiently.
Thanks.
बढ़िया लेख मुकेश जी, फोटोस देख कर Eastman color वाली पुरानी हिंदी फिल्मों के याद आ रही है :-), मेरे ख्याल से कुछ फोटो scan किये गए हैं शायद | आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा , मेरी लिस्ट में है ये जगह काफी दिनों से |
सभी घुमक्कड़ों से अनुरोध है की इस मंच पर घुमक्कड़ी सम्बंधित चर्चा अधिक उपयुक्त है |
नंदन,
कमेन्ट के लिए धन्यवाद. हाँ आपने सही पहचाना कुछ फोटोस स्कैन करके डाले गए हैं.
Mukeshbhai,
Thank you for the darshan of the sleeping Lord Hanuman and the Bhadra Maruti temple. I wonder what the reason is for the unusual posture of this diety.
Nearly two decades ago, while on a pilgrimage to Grishneshwar, I had visited Bibi ka Maqbara but was not able to visit the Daulatabad fort. Thanks to you, I have been able to see that place too. I think that it is worth mentioning that Daulatabad was the capital for India for two years in the 14th century, during the reign of Muhammad bin Tughlak, who forcibly shifted the entire population of Delhi here, because he wanted his capital to be located closer to the centre of the subcontinent.
DL ji,
Thanks for liking the post. Even I don’t know the reason of sleeping posture of lord Hanumaan. And thanks DL ji for providing information on Daulatabad.
Thanks.
Wonderful Trip I like this. Bhalse ji i knowu only as offical but your persnal life interstaing spec. Historical.