शà¥à¤°à¥€ सिदà¥à¤§à¤µà¤Ÿ मंदिर
à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद नंदू हमें सीधा सिदà¥à¤§à¤µà¤Ÿ ले गया। सिदà¥à¤§à¤µà¤Ÿ महाकालेशà¥à¤µà¤° मंदिर से 9 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है और सबसे दूर पड़ता है। यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥€ शिपà¥à¤°à¤¾ जी के तट पट है। यहाठकाफी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° पकà¥à¤•े घाट बने हà¥à¤ हैं। मंदिर से दायीं तरफ थोड़ी दूर à¤à¤• छोटा सा डैम बना हà¥à¤† है जहाठसे शिपà¥à¤°à¤¾ जी में पानी गिरता हà¥à¤† दिखाई दे रहा था यानी की शिपà¥à¤°à¤¾ जी में पानी का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ है। यहाठà¤à¥€ à¤à¤• दीपसà¥à¤¤à¤‚ठबना हà¥à¤† है।
तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤²à¥€ उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के à¤à¥ˆà¤°à¤µà¤—ढ़ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सिदà¥à¤§à¤µà¤Ÿ का वही महतà¥à¤¤à¥à¤µ है जो गया तथा पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में अकà¥à¤·à¤¯à¤µà¤Ÿ का है। सà¥à¤•ंदà¥à¤ªà¥à¤°à¤£ के अवनà¥à¤¤à¤¿à¤–ंड में वरà¥à¤£à¤¨ है की देवाधिदेवमहादेव के पà¥à¤¤à¥à¤° कारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय ने तारकासà¥à¤° का वध करने के बाद अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ यहाठशिपà¥à¤°à¤¾ में फेंकी थी जो पाताल में चली गई इसलिठइसे शकà¥à¤¤à¤¿à¤à¥‡à¤¦ तीरà¥à¤¥ à¤à¥€ कहते हैं।इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वटवृकà¥à¤· है जो कि बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ वटवृकà¥à¤· है। इस वटवृकà¥à¤· को मà¥à¤—ल काल में काटकर लोहे का तवा जडवा दिया गया था, परंतॠकोई à¤à¥€à¤‡à¤¸à¤•ो पà¥à¤¨à¤ƒ फà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ से रोक नहीं पाया à¤à¤µà¤‚ यह फिर से हरा-à¤à¤°à¤¾ हो गया था। यह à¤à¤• घाट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जहां पर पितà¥à¤°à¥à¤“ं के लिठशà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§à¤•रà¥à¤® किये जाते है। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤ªà¤° शिवलिंग à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, जिसे पातालेशà¥à¤µà¤° के नाम से पà¥à¤•ारा जाता है। यहां पर à¤à¤• शिला है जिसको पà¥à¤°à¥‡à¤¤-शीला के नाम से जाना जाता है। जाओ। समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¤µà¤¿à¤•à¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ ने यहाठतपसà¥à¤¯à¤¾ करके अगà¥à¤¯à¤¾ बेताल की सिदà¥à¤§à¤¿ की थी।
मंगलनाथ मंदिर
सिदà¥à¤§à¤µà¤Ÿ मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद मंगल नाथ मंदिर पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ मंगल नाथ मंदिर, महाकालेशà¥à¤µà¤° मंदिर से 8 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि करà¥à¤• रेखा इसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से होकर गà¥à¤œà¤° रही है। मंगल नाथ मंदिर काफी à¤à¤µà¥à¤¯ और ऊंचाई पर बना हà¥à¤† है ,जिसके लिठकई सीड़ियाठचडनी पड़ती है।
पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जिनकी कà¥à¤‚डली में मंगल à¤à¤¾à¤°à¥€ रहता है, वे अपने अनिषà¥à¤Ÿ गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ की शांति के लिà¤à¤¯à¤¹à¤¾à¤ पूजा-पाठकरवाने आते हैं। यूठतो देश में मंगल à¤à¤—वान के कई मंदिर हैं, लेकिन उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ इनका जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ होने के कारण यहाठकी पूजा को खास महतà¥à¤µ दियाजाता है।कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। सिंधिया राजघराने में इसका पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया गया था। उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ शहर को à¤à¤—वान महाकाल की नगरीकहा जाता है, इसलिठयहाठमंगलनाथ à¤à¤—वान की शिवरूपी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का पूजन किया जाता है।
मंदिर à¤à¤• ऊà¤à¤šà¥‡ टीले पर बना हà¥à¤† है। मंदिर पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में ही पà¥à¤°à¤¥à¥à¤µà¥€ देवी की à¤à¤• बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। शकà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª होने से इनको सिनà¥à¤¦à¥‚र का चोलाचढ़ाया जाता है। मंगलनाथ के साथ ही इनके दरà¥à¤¶à¤¨ का à¤à¥€ महतà¥à¤µ है। मंदिर कà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾ तट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है।
हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं का ताà¤à¤¤à¤¾ लगा रहता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में गà¥à¤°à¤¹ शांति करवाने के बाद गà¥à¤°à¤¹à¤¦à¥‹à¤· खतà¥à¤® हो जाता है।à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जिनकी कà¥à¤‚डली में चतà¥à¤°à¥à¤¥, सपà¥à¤¤à¤®, अषà¥à¤Ÿà¤®, दà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¶ à¤à¤¾à¤µ में मंगल होता है, वे मंगल शांति के लिठविशेष पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करवाते हैं।
मारà¥à¤š में आने वाली अंगारक चतà¥à¤°à¥à¤¥à¥€ के दिन मंगलनाथ में विशेष पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की जाती है। इस दिन यहाठविशेष यजà¥à¤ž-हवन किठजाते हैं। इस समय मंगल गà¥à¤°à¤¹ कीशांति के लिठलोग दूर-दूर से उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ आते हैं। यहाठहोने वाली à¤à¤¾à¤¤ पूजा को à¤à¥€ काफी महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ माना जाता है। मंगल गà¥à¤°à¤¹ को मूलतः मेष और वृशà¥à¤šà¤¿à¤• राशि कासà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ माना जाता है।
मंदिर में सà¥à¤¬à¤¹ छह बजे से मंगल आरती शà¥à¤°à¥‚ हो जाती है। आरती के तà¥à¤°à¤‚त बाद मंदिर परिसर के आसपास तोते मà¤à¤¡à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ लगते हैं। जब तक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के दाने नहींमिल जाते, वे यहीं मà¤à¤¡à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ रहते हैं। यहाठके पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ निरंजन à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ बताते हैं कि यदि हम पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के दाने डालने में कà¥à¤› देर कर दें, तो ये पंछी शोर मचाने लगते हैं।लोगों का विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है कि पंछियों के रूप में मंगलनाथ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ खाने आते हैं।
मंगल नाथ मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद नंदू ने हमें बताया की अब सिरà¥à¤« à¤à¤• पॉइंट बाकी रह गया है और अब हमें वह सांदीपनी आशà¥à¤°à¤® लेकर जाà¤à¤—ा। हम लगातार घूम कर काफी थक चà¥à¤•े थे इसलिठचाय पीने की बहà¥à¤¤ इचà¥à¤›à¤¾ हो रही थी। मंदिर के बाहर काफी खà¥à¤²à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है और वहां कई खाने – पीने की दà¥à¤•ाने à¤à¥€ हैं। à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• दà¥à¤•ान पर हमने चाय के साथ गरमा गरम पकोड़ों का आनंद लिया और फिर से ऑटो में बैठअगले गंतवà¥à¤¯ सांदीपनी आशà¥à¤°à¤® की ओर चल दिà¤à¥¤
सानà¥à¤¦à¥€à¤ªà¤¨à¤¿ आशà¥à¤°à¤®
शà¥à¤°à¥€ महरà¥à¤·à¤¿ सांदीपनी आशà¥à¤°à¤® शीपà¥à¤°à¤¾ नदी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गंगा घाट के समीप सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है और महाकालेशà¥à¤µà¤° मंदिर से 7 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है। à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ à¤à¤µà¤‚ उनकेसखा सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ ने यहां पर महरà¥à¤·à¤¿ सांदीपनी जी से शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कि थी। उस समय तकà¥à¤·à¤¶à¤¿à¤²à¤¾ तथा नालंदा की तरह अवनà¥à¤¤à¥€ à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ औरसंसà¥à¤•ृति का केंदà¥à¤° थी। शà¥à¤°à¥€ मदà¥à¤à¤¾à¤—वत, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ तथा अनà¥à¤¯ कई पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में यहाठका वरà¥à¤£à¤¨ है । इस सà¥à¤¥à¤¾à¤ª पर à¤à¤• कà¥à¤‚ड à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जिसे गोमती कà¥à¤‚डके नाम से जाना जाता है। इस कà¥à¤‚ड में à¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ ने गà¥à¤°à¥‚जी को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ गोमती नदी का जल सà¥à¤—म कराया था इसलिठयह सरोवरगोमती कà¥à¤‚ड कहलाया । इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गà¥à¤°à¥‚ सांदीपनी जी, कृषà¥à¤£, बलराम à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ की मनोहारी मरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ विराजमान है। सांदीपनी परम तेजसà¥à¤µà¥€ तथासिदà¥à¤§ ऋषि थे। शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ ने कंस का वध करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मथà¥à¤°à¤¾ का समसà¥à¤¤ राजà¥à¤¯ अपने नाना उगà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ को सौंप दिया था। इसके उपरांत वसà¥à¤¦à¥‡à¤µ और देवकी ने कृषà¥à¤£à¤•ो यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ संसà¥à¤•ार के लिठसांदीपनी ऋषि के आशà¥à¤°à¤® में à¤à¥‡à¤œ दिया, जहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चौंसठदिनों में चौंसठकलाà¤à¤ सीखीं। सांदीपनी ऋषि के आशà¥à¤°à¤® में हीकृषà¥à¤£ और सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ की à¤à¥‡à¤‚ट हà¥à¤ˆ थी, जो बाद में अटूट मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ बन गई।
सांदीपनी ऋषि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कृषà¥à¤£ और बलराम ने अपनी शिकà¥à¤·à¤¾à¤à¤ पूरà¥à¤£ की थीं। आशà¥à¤°à¤® में कृषà¥à¤£-बलराम और सà¥à¤¦à¤¾à¤®à¤¾ ने à¤à¤• साथ वेद-पà¥à¤°à¤¾à¤£ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था। दीकà¥à¤·à¤¾ के उपरांत कृषà¥à¤£ ने गà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ को गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ देने की बात कही। इस पर गà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ ने कृषà¥à¤£ को अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ मान कर गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ में उनका पà¥à¤¤à¥à¤° वापस माà¤à¤—ा, जोपà¥à¤°à¤à¤¾à¤¸ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जल में डूबकर मर गया था। गà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ की आजà¥à¤žà¤¾ का पालन करते हà¥à¤ कृषà¥à¤£ ने समà¥à¤¦à¥à¤° में मौजूद शंखासà¥à¤° नामक à¤à¤• राकà¥à¤·à¤¸ का पेट चीरकर à¤à¤• शंखनिकाला, जिसे “पांचजनà¥à¤¯” कहा जाता था। इसके बाद वे यमराज के पास गठऔर सांदीपनी ऋषि का पà¥à¤¤à¥à¤° वापस लाकर गà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ को सौंप दिया।
संदीपनी आशà¥à¤°à¤® परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° महादेव मंदिर में 6000 वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ शिवलिंग सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है । à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि इसे महरà¥à¤·à¤¿à¤¸à¤‚दीपनी ने बिलà¥à¤µ पतà¥à¤° से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया था। इस शिवलिंग की जलाधारी में पतà¥à¤¥à¤° के शेषनाग के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं जो पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ पà¥à¤°à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· मेंदà¥à¤°à¥à¤²à¤ है। अधिकांश मंदिरों में नंदी की मूरà¥à¤¤à¤¿ बैठी हà¥à¤ˆ अवसà¥à¤¥à¤¾ में ही होती है। इस शिवलिंग के सामने, मंदिर के बाहर खड़े हà¥à¤ नंदी की à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤°à¥à¤²à¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ है।
सांदीपनी आशà¥à¤°à¤® में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद नंदू हमें वापिस उनà¥à¤¹à¥€ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ हà¥à¤† महाकालेशà¥à¤µà¤° मंदिर ले आया। हमने à¤à¥€ उसे उसके पहले से तय २५० रूपये दिà¤à¤”र आराम करने की लिठअपने कमरे की ओर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया।
बहुत सुन्दर जानकारी से भरपूर सीरीज, नरेश जी.
साँझा करने के लिए शुक्रिया.
धन्यवाद Stone जी ………
अच्छी पोस्ट नरेश जी, लगता है आप गिनती के चक्कर में पड़ गए हैं.
मुकेश जी आप गलत सोच रहें हैं। मैंने ऐसा कभी भी नहीं सोचा। औसतन 1200-1300 शब्द होने के बाद ही पोस्ट को विश्राम देता हूँ , फिर उसमे चाहे एक स्थान का वर्णन कर सकूँ या चार स्थानों का। अगली पोस्ट महाकालेश्वर पर आने के बाद इस सीरीज कि एक आखिरी पोस्ट जंतर मंतर /वेदशाला पर लिख रहा था लेकिन आपकी इस टिप्पणी से काफी आहत हुआ हूँ और हतोत्साहित होकर उस पोस्ट को बीच में ही छोड़ दिया है।
धन्यवाद
नरेश जी,
मेरा उद्देश्य आपको आहत या हतोत्साहीत करना कतई नहीं था। इस श्रंखला की शुरू की तीन चार पोस्ट्स को मैंने खूब एन्जॉय किया लेकिन उसके बाद जैसे जैसे पोस्ट्स बढ़ती गईं कहीं न कहीं आनंद में कमी आने लगी, और मैंने अधिकार समझते हुए कमेंट में लिख दिया। लेकिन अब मुझे बहुत पछतावा हो रहा है, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजियेगा, मैं तो चाहता हूँ कि आप ये कमेंट रिमूव कर दें।
और आप वो जंतर मंतर /वेदशाला पोस्ट जरुर लिखिए उस पोस्ट का सबसे ज्यादा इंतज़ार मुझे ही रहेगा क्योंकी इतनी बार उज्जैन जाने के बाद भी और इच्छा रहने के बाद भी मैं इस जगह को नहीं देख पाया हूँ, तो अब आपकी पोस्ट से ही वेधशाला की जानकारी भी मिल जायेगी।
मुकेश जी,
आपने अधिकार समझते हुए टिप्प्णी कि तो मैंने भी अधिकार समझते हुए नाराजगी प्रकट कर दी। हिसाब बराबर। यह माफ़ी कि बात कहाँ से आ गयी ? घुमक्कड़ पर आप मेरे वरिष्ठ हैं और मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ। माफ़ी शब्द से मुझे शर्मिंदा न करें।
अब मैं जंतर मंतर /वेदशाला पर पोस्ट अवश्य लिखूंगा और यह आपको समर्पित होगी।
धन्यवाद।
आपने बहुत अच्छा लिखा है। अच्छा लिखने वाले को हतोउत्साहित होने कि जरूरत नहीं होती बल्कि क्रिटिक आना किसी भी लेख के लिए अच्छा होता है। जितने भी अच्छे लेखक देख लो प्रकाशन से पहले वो अपने लेखों के लिए क्रिटिकल व्यू मांगते हैं। क्रिटिक से आप अपने लेखों को और प्रभावी बना सकोगे। धन्यवाद।
धन्यवाद सुखविंदर जी ,
वैसे आप ऊपर दी हुई तस्वीरों में, तिरंगे के रंग से रंगी टी शर्ट में बहुत जँच रहे हैं।
कृपया अपनी टिप्प्णियों से हमारा उत्साह वर्धन करते रहें।
behtarin post, with equally beautiful fotos
धन्यवाद, तिवारी जी।
Thank you Naresh for continuing the religious tour of Ujjain.
Sometimes I feel that we lose the essence of the message in rituals, which are often very elaborate and complex.
Your log is going to very useful for anyone planning a trip there. Wishes.
Thanks Nandan Ji,
for continuous encouragement and guidance .