वैसे तो आठदिन इंदौर किसी न किसी काम से आना जाना लगा ही रहता है लेकिन अपना ही शहर होने की वजह से हमने कà¤à¥€ à¤à¥€ इसे परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ या घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से नहीं देखा, लेकिन अब इंदौर को अपने घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साथियों के समकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने का विचार मन में आने के बाद पिछली बार हम समय निकल कर विशेष रूप से इंदौर घà¥à¤®à¤¨à¥‡ के विचार से आये थे और उसे मैं अपनी पिछली दो पोसà¥à¤Ÿà¥à¤¸ में आपलोगों को दिखा ही चà¥à¤•ी हूà¤.
पहली बार इंदौर को à¤à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• की नज़र से देखना और तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ लेना हमारे लिठà¤à¤•दम नया अनà¥à¤à¤µ था. लेकिन जो कà¥à¤› à¤à¥€ हो हमें अपने शहर में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी करने में बड़ा मज़ा आया.
अà¤à¥€ कà¥à¤› दिनों पहले की ही बात है हमें अपने अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• गà¥à¤°à¥ दंडीसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¥€ मोहनानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी से à¤à¥‡à¤‚ट करने के लिठउजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ जाना था. उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ जाना और गà¥à¤°à¥‚जी से मिलकर आना कà¥à¤› पांच छः घंटे के काम था तो हमने सोचा की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न थोडा समय बचाकर à¤à¤• बार फिर इंदौर के कà¥à¤› अनà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ की सैर की जाà¤, और बस हमारा पà¥à¤²à¤¾à¤¨ बन गया.
इधर बहà¥à¤¤ दिनों से सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में आ रहा था की इंदौर में वैषà¥à¤£à¥‹ धाम नाम से à¤à¤• नया मंदिर बना है जो की जमà¥à¤®à¥‚ के वैषà¥à¤£à¥‹ देवी मंदिर की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ृति है तथा बहà¥à¤¤ ही ख़ूबसूरत है, à¤à¤•दम वैषà¥à¤£à¥‹ देवी मंदिर की ही तरह इस मंदिर के लिठयहाठकृतà¥à¤°à¤¿à¤® गà¥à¤«à¤¾ बनायीं गई हैं आदि आदि………हमें अब तक वैषà¥à¤£à¥‹ देवी जाने का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ तो पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं हà¥à¤† है, तो हम बहà¥à¤¤ दिनों से सोच रहे थे की इंदौर की वैषà¥à¤£à¥‹ देवी के मंदिर के ही दरà¥à¤¶à¤¨ कर लिठजाà¤à¤.
अब यहाठसंयोग ये हà¥à¤† की हमारे à¤à¤• परिचित पंडित जी हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें गà¥à¤°à¥ जी से दीकà¥à¤·à¤¾ दिलवाई थी और इस तरह से वे हमारे गà¥à¤°à¥ à¤à¤¾à¤ˆ हà¥à¤, अब चूà¤à¤•ि हमें गà¥à¤°à¥‚जी से मिलने उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ जाना था वो à¤à¥€ अपनी कार से, तो हमने सोचा की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न पंडित जी से पूछ लिया जाठशायद वे à¤à¥€ हमारे साथ गà¥à¤°à¥‚जी से मिलने चल दें, तो मà¥à¤•ेश ने पंडित जी को फ़ोन लगाया और जाने के लिठपूछा और वे हमारे साथ जाने को राजी हो गà¤. जब हमने उनसे पूछा की हम उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लेने के लिठकहाठआयें तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें जानकारी दी की आजकल वे इंदौर में नठबने वैषà¥à¤£à¥‹ देवी मंदिर के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ हैं तथा मंदिर केमà¥à¤ªà¤¸ में ही रहते हैं, तो हमारी ख़à¥à¤¶à¥€ का ठिकाना ही नहीं रहा.
बहà¥à¤¤ दिनों से इस मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठसोच रहे थे और आज इतना अचà¥à¤›à¤¾ संयोग बन गया तो हमने सोचा की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न सबसे पहले पंडित जी को मंदिर से ले लिया जाठइस तरह से मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ हो जायेंगे. बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था हमने कà¥à¤› लोगों से मंदिर के पते की जानकारी लेकर अपनी गाड़ी उस ओर घà¥à¤®à¤¾ दी.
इस मंदिर के बारे में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤› जानकारी तो थी नहीं, बस इतना मालà¥à¤® था की यह मंदिर वैषà¥à¤£à¥‹ देवी के किसी सिकà¥à¤– à¤à¤•à¥à¤¤ ने करोड़ों रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ की लागत से बनवाया है. हमने मंदिर पहà¥à¤‚चकर पारà¥à¤•िंग सà¥à¤¥à¤² पर अपनी गाड़ी खड़ी कर दी और कà¥à¤› कदम पैदल चलकर मंदिर के करीब पहà¥à¤‚चे. जब हमने पहली बार मंदिर को बाहर से देखा तो हम सà¤à¥€ इस मंदिर की बाहरी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ देखकर ही विसà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो गà¤. बड़े ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¤à¤µà¤‚ अदà¥à¤à¥à¤¤ तरीके से बनाया गया है यह मंदिर और इसकी बाहरी तथा आतंरिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ की वजह से इसकी लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में तेजी से बढ़ रही है.
सबसे पहले तो हमने मंदिर के सिकà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¿à¤Ÿà¥€ गारà¥à¤¡ से पंडित जी के बारे में पूछा तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वे हमें गरà¥à¤à¤—ृह में ही मिल जायेंगे. और बस हमने मंदिर के कोने पर ही बने पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ विकà¥à¤°à¤¯ केंदà¥à¤° से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ख़रीदा और मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤. जैसे ही हमने मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो हमने लगा……..अरे ये तो हम साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ माता वैषà¥à¤£à¥‹ देवी के दरबार में पहà¥à¤à¤š गठहैं. हà¥à¤¬à¤¹à¥‚ वैषà¥à¤£à¥‹ देवी मंदिर जैसा, पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ तथा कृतà¥à¤°à¤¿à¤® चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से गà¥à¤«à¤¾ बनाकर करोड़ों की लगत से बनाठगठइस मंदिर को देखकर हमारी आà¤à¤–ें खà¥à¤²à¥€ की खà¥à¤²à¥€ रह गईं. हम तो ख़à¥à¤¶à¥€ के मारे फà¥à¤²à¥‡ नहीं समां रहे थे की हम बिना किसी जानकारी के इतने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मंदिर में पहà¥à¤à¤š गà¤.
जैसे जैसे हम मंदिर में आगे बढ़ते जा रहे थे आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ विसà¥à¤®à¤¯ से हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे. बिलकà¥à¤² किसी पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक गà¥à¤«à¤¾ की तरह गोल मोल, टेढ़े मेढ़े, उबड़ खाबड़ घà¥à¤®à¤¾à¤µà¤¦à¤¾à¤° रासà¥à¤¤à¥‡, घà¥à¤ªà¥à¤ª अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾, कृतà¥à¤°à¤¿à¤® जंगली जानवर, कृतà¥à¤°à¤¿à¤® जंगली पेड़ पौधे और कई जगह तो रासà¥à¤¤à¥‡ में गà¥à¤«à¤¾ इतनी संकरी की पूरी तरह से बैठकर या लेट कर ही निकला जा सकता था.
गà¥à¤«à¤¾ के रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• दो जगह गहरी खाइयाà¤, तथा à¤à¤°à¤¨à¥‡ à¤à¥€ बनाये गठहैं………………घोर आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯, शहर के बीचोंबीच सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• मंदिर में गà¥à¤«à¤¾ पार करने के दौरान करीब पंदà¥à¤°à¤¹ बीस मिनट के लिठआप किसी दूसरी ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में पहà¥à¤à¤š जाते हैं. इस आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• गà¥à¤«à¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¾ रासà¥à¤¤à¥‡ को पार करने के बाद थोड़ी सी रौशनी दिखाई देती है तथा कà¥à¤› आवाजें सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती हैं, और फिर कà¥à¤› ही पलों में हम पहà¥à¤à¤š जाते हैं गरà¥à¤à¤—ृह में जहाठबिलकà¥à¤² वैषà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥‡à¤µà¥€ मंदिर की तरà¥à¤œà¤¼ पर माता जी तीन पाषाण की पिंडियों के रूप में विराजित हैं. ये तीनों पिंडियाठवैषà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥‡à¤µà¥€ मंदिर कटरा से यहाà¤Â लाई गई हैं.
और सोने पे सà¥à¤¹à¤¾à¤—ा वाली बात यह थी की चूà¤à¤•ि हम इस मंदिर के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ के परिचित थे अतः हमने मंदिर में विशेष महतà¥à¤¤à¥à¤µ तथा समà¥à¤®à¤¾à¤¨ मिल रहा था. गरà¥à¤à¤—ृह में सबसे पहले माता के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद हम पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जी से मिले, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा की आप लोग इतà¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤¨ से मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ कर लो तब तक मैं à¤à¥€ चलने के लिठतैयार होता हूà¤.
इस बड़े से मंदिर परिसर में माता वैषà¥à¤£à¥‹ देवी के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद वापसी वाले रासà¥à¤¤à¥‡ में और à¤à¥€ देवी देवताओं जैसे à¤à¥‹à¤²à¥‡ बाबा, गणेश जी, दà¥à¤°à¥à¤—ा माता, साईं बाबा अदि के à¤à¥€ मंदिर हैं. ये सब देखते देखते हम इतना खà¥à¤¶ हो रहे थे की मैं उस ख़à¥à¤¶à¥€ का बखान शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में नहीं कर सकती. कहाठतो हम महज पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जी को रिसीव करने आये थे और कहाठहमें इस अदà¥à¤à¥à¤¤ मदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ मिल गà¤. मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ तथा विडियो गà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं थी, अतः हम बस बाहर से ही कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ खिंच पाà¤.
हम सब मदिर को à¤à¤¸à¥‡ निहार रहे थे जैसे हमें कोई कà¥à¤¬à¥‡à¤° का गड़ा खजाना मिल गया हो, और हमें à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की हम à¤à¤• अलग ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में आ गठहैं, साथ ही साथ हम यह à¤à¥€ सोच रहे थे की हम जैसे खोजी धारà¥à¤®à¤¿à¤• घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ों की नज़रों से इंदौर में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इतनी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° जगह बची कैसी रह गई. हमारा इस तरह से यहाठअपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ पहà¥à¤‚चना और चौंकना सबकà¥à¤›Â हमें à¤à¤• सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ की तरह लग रहा था. खैर कà¥à¤› ही देर में हम इस मायावी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से हकीकत की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में पहà¥à¤à¤š गà¤.
कà¥à¤› देर बाद पंडित जी à¤à¥€ तैयार हो कर आ गà¤, सà¥à¤¬à¤¹ के करीब दस बज रहे थे और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने अब तक कà¥à¤› खाया नहीं था, मेरा तो खैर उस दिन वृत था लेकिन मà¥à¤•ेश, पंडित जी और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और अब हम उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ की तरफ बढ़ गà¤.
शाम चार बजे के लगà¤à¤— हम लोग उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से इंदौर लौट आये, पहले पंडित जी को उनके घर छोड़ा और अब à¤à¥€ हमारे पास बहà¥à¤¤ वक़à¥à¤¤ था इंदौर के कà¥à¤› और दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯Â सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ की सैर करने के लिठसो हमने तय किया की रासà¥à¤¤à¥‡ में ही इंदौर का पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ कांच मंदिर पड़ता है तो सबसे पहले कांच मंदिर ही देख लिया जाठऔर हम पहà¥à¤à¤š गठकांच मंदिर / शीश मंदिर, यह अदà¥à¤à¥à¤¤ मंदिर कांच की चमतà¥à¤•ारिक कलाकारी का à¤à¤• अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° उदाहरण है.
यह à¤à¤• जैन मंदिर है तथा इसे सर सेठहà¥à¤•à¥à¤®à¤šà¤‚द जैन ने २० वीं शताबà¥à¤¦à¥€ के शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ में बनवाया था.यह इंदौर के इतवारिया बाज़ार कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. इस मंदिर की विशेषता यह है की इसके दरवाज़े, सà¥à¤¤à¤®à¥à¤, छत à¤à¤µà¤‚ दीवारें यहाठतक की फरà¥à¤¶ à¤à¥€ पूरी तरह से कांच के अलग अलग आकार के टà¥à¤•ड़ों से जड़ी हà¥à¤ˆ हैं. यह शहर के कà¥à¤› मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• है. इस मंदिर में सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° चितà¥à¤°à¤•ारी à¤à¥€ की हà¥à¤ˆ है जो जैन धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤‚थों की कहानियों को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¥‡ हैं. इस मंदिर में मà¥à¤–à¥à¤¯ देवता के रूप में à¤à¤—वानॠमहावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं. मंदिर में अनà¥à¤¦à¤° की ओर फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं थी, लेकिन हम कहाठमानने वाले थे सिकà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¿à¤Ÿà¥€ गारà¥à¤¡ से नज़र बचा कर à¤à¤• दो कà¥à¤²à¤¿à¤• कर ही दिठऔर आज हम पर à¤à¤—वान à¤à¥€ मेहरबान थे, उसे पता à¤à¥€ नहीं चला.
कà¥à¤› देर मंदिर की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ का अवलोकन करने के बाद हम अपने अगले पड़ाव यानी खजराना के गणेश मंदिर की ओर चल दिà¤, लेकिन अब हमें तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को à¤à¥‚ख सताने लगी थी अतः हमने सोचा की पहले कà¥à¤› खा लिया जाà¤. खाना खाने का हमारा मन नहीं था, हम सोच रहे थे की खाना खाने के बजाय थोडा हेवी नाशà¥à¤¤à¤¾ कर लिया जाया और इसके लिठइस समय इंदौर में छपà¥à¤ªà¤¨ दूकान से बढ़िया जगह हो ही नहीं सकती, और हमने अपनी सà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥à¤• को छपà¥à¤ªà¤¨ दà¥à¤•ान चलने के लिठआदेश दिया.
अगर आप को खाने का शौक है और आप इंदौर में हैं तो à¤à¤• बार छपà¥à¤ªà¤¨ दूकान जरà¥à¤° जाइà¤, और फिर आप यहाठहर बार जायेंगे ये मेरा वादा है. छपà¥à¤ªà¤¨ दूकान, 56 दà¥à¤•ानों की à¤à¤• शà¥à¤°à¤‚खला है जो की इंदौर की à¤à¤• विरासत है, सारी की सारी छपà¥à¤ªà¤¨ दà¥à¤•ानें खाने की à¤à¤• से बढ़कर à¤à¤• चीजों से à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆà¤‚. यहाठकी विशेषता है अलग अलग तरह की चाट, और यहाठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° दà¥à¤•ानें चाट कौरà¥à¤¨à¤°à¥à¤¸ की ही हैं.
चाट के अलावा यहाठपिजà¥à¤œà¤¾, हॉट डोग, चाइनीज़ जोइंटà¥à¤¸ à¤à¥€ हैं. कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ दà¥à¤•ानें जो छपà¥à¤ªà¤¨ दूकान की शान हैं – विजय चाट हाउस, जोनी हॉट डॉग, à¤à¤µà¤° फà¥à¤°à¥‡à¤¶ बेकरà¥à¤¸, पà¥à¤·à¥à¤ªà¤• पिजà¥à¤œà¤¾ हाउस, गणगौर तथा अगà¥à¤°à¤µà¤¾à¤² सà¥à¤µà¥€à¤Ÿà¥à¤¸. कहा जाता है की इंदौर, खाने के शौकीनों के लिठसà¥à¤µà¤°à¥à¤— है. छपà¥à¤ªà¤¨ दूकान से चाट तथा नà¥à¤¡à¤²à¥à¤¸ खाने के बाद हम खजराना मंदिर की ओर चल दिà¤.
इंदौर तथा इंदौर के आसपास के कसà¥à¤¬à¥‹à¤‚ के लोगों की इंदौर के खजराना गणेश मंदिर में असीम शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ है. यह मंदिर इंदौर की शासिका देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾ बाई होलकर के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सन 1875 में बनवाया गया है. इंदौर के धरà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के लिठयह मंदिर बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है. हर बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° तथा रविवार को इस मंदिर में à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€à¤¡à¤¼ होती है.
मंदिर के बाहर लगी पूजन सामगà¥à¤°à¥€ की सैकड़ों दà¥à¤•ानों में से à¤à¤• से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में मोतीचूर के लडà¥à¤¡à¥à¤“ं का à¤à¤• पेकेट लेकर हम चल दिठà¤à¤—वानॠके दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ को, आज हमारी किसà¥à¤®à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¥€à¤¡à¤¼ अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत कम थी और करीब आधे घंटे के इंतज़ार के बाद हमें गणेश जी के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गà¤. फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ के मामले यहाठà¤à¥€ बाकी जगहों की तरह अड़ियल रवैया ही था तथा हमने मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° फोटो नहीं निकलने दिठगà¤. और हम यहाठचोरी से फोटो खींचने की हिमà¥à¤®à¤¤ à¤à¥€ नहीं जà¥à¤Ÿà¤¾ पाठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जगह जगह पर गारà¥à¤¡à¥à¤¸ खड़े थे.
खजराना गणेश मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद अब हमारा आज के लिठअगला à¤à¤µà¤‚ अंतिम पड़ाव था लाल बाग़ पेलेस, सो बिना वक़à¥à¤¤ गंवाठअब हम चल पड़े थे लाल बाग़ पेलेस की ओर.
लालबाग पेलेस – इंदौर के होलकर राजवंश की à¤à¤• महानतम विरासत के रूप में अपने गौरवशाली अतीत की गाथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ यह सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• होलकर राजवंश के वैà¤à¤µ, पसंद à¤à¤µà¤‚ जीवन शैली का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬ है. इंदौर के लालबाग पेलेस की शान कà¥à¤› और ही है. खान नदी के किनारे पर 28 à¤à¤•ड़ में बने राजघराने का यह लालबाग महल बाहर से तो साधारण दिखाई देता है परनà¥à¤¤à¥ à¤à¥€à¤¤à¤° से इसकी सजावट देखते ही बनती है और परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों को अपनी ओर खींचती है.
इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सन 1886 में महाराजा तà¥à¤•ोजी राव होलकर दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ के शासनकाल में पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहà¥à¤† और महाराजा तà¥à¤•ोजीराव तृतीय के शासनकाल में संपनà¥à¤¨ हà¥à¤†. इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ तीन चरणों में किया गया है. इस महल का सबसे नीचे का ताल पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ ककà¥à¤· है जिसका फरà¥à¤¶ संगमरमर का बना हà¥à¤† है. यह à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• शिलà¥à¤ªà¤•ृति का à¤à¤• उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ नमूना है.
इस महल की सबसे बड़ी खासियत है इसका पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°, यह दà¥à¤µà¤¾à¤° इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड के बरà¥à¤®à¤¿à¤‚घम पेलेस के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° की हà¥à¤¬à¤¹à¥‚ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ृति है जिसे जहाज के रासà¥à¤¤à¥‡ मà¥à¤‚बई तथा वहां से सड़क मारà¥à¤— से इंदौर लाया गया. यह दरवाज़ा बीड़ धातॠका बना हà¥à¤† है. पà¥à¤°à¥‡ देश में इस दरवाज़े की मरमà¥à¤®à¤¤ नहीं हो सकती, इसे मरमà¥à¤®à¤¤ के लिठइंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड ही ले जाना पड़ता है. इस महल के दरवाज़ों पर राजघराने की मोहर लगी है. बाल रूम का लकड़ी का फà¥à¤²à¥‹à¤° सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤‚ग का बना है जो उछलता है. महल की रसोई से नदी का किनारा दिखाई देता है. रसोई से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥‚मिगत सà¥à¤°à¤‚ग में à¤à¥€ खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है.
सिंहासन ककà¥à¤· में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक बैठकें तथा ख़ास कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® हà¥à¤† करते थे. 1978 तक यह राज निवास रहा तथा तà¥à¤•ोजीराव तृतीय इस महल के अंतिम निवासी थे. यह महल अपने साथ में आज à¤à¥€ होलकर राजà¥à¤¯ की शान और शाही जीवन शैली की अमिट छाप लिठहà¥à¤ है और अपने à¤à¥€à¤¤à¤° होलकर राजà¥à¤¯ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¥€à¤® इतिहास समेटे हà¥à¤ है. यहाठमहल के à¤à¥€à¤¤à¤° फोटो लेना तथा विडिओगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ करना सखà¥à¤¤ मना है.
यहाठआप सà¥à¤¬à¤¹ दस बजे से शाम पांच बजे तक पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर सकते है. महल के कमरों के सजावट देखते ही बनती है, कमरों की दीवारों और छत पर सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कलाकृतियाठदिखाई देती हैं. यहाठपर कारीगरी में बेलà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤® के कांच, परà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¨ कालीन, महंगे और ख़ूबसूरत à¤à¤¾à¤¡ फानूस, और इटालियन संगमरमर का ख़ूबसूरत पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया गया है. लाल बाग पेलेस के इस खà¥à¤¶à¤¨à¥à¤®à¤¾ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ के बाद अब हम करीब साढ़े छः बजे यहाठसे निकल आà¤.
अब तक हमें इंदौर में घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी करते हà¥à¤ शाम हो गई थी, इंदौर के कà¥à¤› और काम निबटाने के बाद करीब साढ़े सात बजे हम लोग वापस अपने घर की ओर मà¥à¤¡à¤¼ गà¤. धार, à¤à¤¾à¤¬à¥à¤†, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ à¤à¤µà¤‚ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की ओर जानेवाली बसों का बस अडà¥à¤¡à¤¾ गंगवाल बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड हमारे लिठइंदौर का आखरी पड़ाव होता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह इस ओर इंदौर का आखिरी छोर है. यहाठबस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड पर नाशà¥à¤¤à¥‡ वगैरह की अचà¥à¤›à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है, हमने सोचा की घर पर जाकर तो कà¥à¤› खाना वगैरह बनाना नहीं है अतः थोडा कà¥à¤› और खा लिया जाठताकि बचà¥à¤šà¥‡ बाद में परेशान न करें तथा हमें à¤à¥€ फिर से à¤à¥‚ख न सताà¤.
à¤à¤• दरà¥à¤¦ à¤à¤°à¥€ दासà¥à¤¤à¤¾à¤ :Â
बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड परिसर से नाशà¥à¤¤à¤¾ करने के बाद हम अपनी कार की ओर चल दिà¤. अब तक पूरी तरह से अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चूका था, जैसे ही हम कार के करीब पहà¥à¤‚चे हमने कà¥à¤› अलग ही दृशà¥à¤¯ दिखाई दिया. हमारी कार से बहà¥à¤¤ थोड़ी सी दà¥à¤°à¥€ पर मजदूर से दिखाई देने वाले दो आदिवासी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ तीन पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर असà¥à¤¥à¤¾à¤ˆ चूलà¥à¤¹à¤¾ बना कर उसमें आग लगाकर à¤à¤• पतिलिनà¥à¤®à¤¾ बरà¥à¤¤à¤¨ में कà¥à¤› पकाने की कोशिश कर रहे थे. दृशà¥à¤¯ कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ था की अपनी कार में बैठने के बाद à¤à¥€ हमारा मन आगे बढ़ने को नहीं हà¥à¤† और हम सà¤à¥€ गाडी के पिछले कांच से सà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§ होकर यह सब देखने लगे.
वे लोग चूलà¥à¤¹à¥‡ में लकड़ी के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर फटे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ कपडे, टायर, पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• की थैलियाà¤, कागज़ आदि डालकर चूलà¥à¤¹à¤¾ जलाने की कोशिश कर रहे थे. अब इन सब चीजों से चूलà¥à¤¹à¤¾ थोड़ी देर के लिठजल जाता लेकिन कà¥à¤› ही देर बाद फिर बà¥à¤ जाता था, चूà¤à¤•ि वे बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड के करीब सड़क किनारे थे अतः वहां लकड़ी मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. à¤à¤• विशेष बात यह थी की वे दोनों गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ मजदूर थे, उनके हाव à¤à¤¾à¤µ से सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखाई दे रहा था की वे à¤à¥‚ख से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² हैं. वे नशे में धà¥à¤¤à¥à¤¤ थे और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इतना à¤à¥€ होश नहीं था की वे कà¥à¤¯à¤¾ कर रहे हैं.
उनके हावà¤à¤¾à¤µ तथा चूलà¥à¤¹à¥‡ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ देखकर लग रहा था की खाना पकने से तो रहा, जो कà¥à¤› à¤à¥€ अधपका पतीली में था उसे वे जलà¥à¤¦ बाजी में à¤à¤• à¤à¤²à¥à¤¯à¥à¤®à¤¿à¤¨à¤¿à¤¯à¤® की थाली में निकाल कर à¤à¤¸à¥‡ खा रहे थे जैसे जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के à¤à¥‚खे हों. यह दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ देखकर मà¥à¤à¥‡ तो उबकाई सी आने लगी, लेकिन मà¥à¤•ेश किसी रिपोरà¥à¤Ÿà¤° की à¤à¤¾à¤à¤¤à¥€ उनकी हर à¤à¤• गतिविधि को बहà¥à¤¤ बारीकी से देख रहे थे. बचà¥à¤šà¥‡ अब तक सो गठथे, मेरे कई बार आगà¥à¤°à¤¹ करने के बाद à¤à¥€ मà¥à¤•ेश गाडी बढाने को तैयार नहीं थे, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ न जाने कौन से तिलिसà¥à¤® ने मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ कर दिया था की वे इस दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ से नज़रें ही नहीं हटा रहे थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ पांच मिनट और रà¥à¤•ने की रिकà¥à¤µà¥‡à¤¸à¥à¤Ÿ की और फिर से उन मजदूरों के कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤•लाप की ओर नज़रें गड़ा कर देखने लगे.
हाठतो मैं बता रही थी की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पतीली में से कà¥à¤› अधपका सा निकाला जिसमें से धà¥à¤‚आ निकल रहा था. कà¥à¤¯à¤¾ आप जानना चाहते हैं की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने थाली में कà¥à¤¯à¤¾ परोसा? तो बताती हूà¤, वे जो खा रहे थे वह अधपका मांस था. यह देखकर हमारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई, और à¤à¤• अनजाना सा दरà¥à¤¦ महसूस हà¥à¤†, ये लोग à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कर रहे हैं? शराब के नशे की वजह से या गरीबी की वजह से? मांस à¤à¥€ न जाने किस चीज़ का था.
वे रबर की तरह कचà¥à¤šà¥€ बोटियों को अपने दांतों से खिंच कर तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हर बार नाकामयाबी ही उनके हाथ लग रही थी. चूà¤à¤•ि बोटियाठबड़ी बड़ी थी अतः वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ ही निगल à¤à¥€ नहीं सकते थे. पतीली में से निकाली गई हर à¤à¤• बोटी के साथ अपनी पूरी ताकत आजमाने के बाद तथा असफल होने के बाद थक हार कर वे सर पर हाथ धर कर बैठगà¤, उनके पलà¥à¤²à¥‡ अब तक कà¥à¤› नहीं पड़ा था. चूलà¥à¤¹à¥‡ में से अब सिरà¥à¤« हलà¥à¤•ा सा धà¥à¤‚आ ही निकल रहा था, आग पहले à¤à¥€ नहीं थी और अब à¤à¥€ नहीं. अतà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥€à¤• à¤à¥‚ख के à¤à¤¾à¤µ उनके चेहरे तथा हावà¤à¤¾à¤µ से सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखाई दे रहे थे.
उनकी यह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ मà¥à¤•ेश से देखी नहीं गई, वे मà¥à¤à¤¸à¥‡ कà¥à¤› कहे बिना ही कार से उतरे और उन अà¤à¤¾à¤—े लोगो के पास पहà¥à¤‚चे, अपनी जेब से सौ का नोट निकाला और उनकी ओर बढ़ा दिया. वे दोनों यह देखकर टकटकी लगाये मà¥à¤•ेश के चेहरे की ओर देख रहे थे, माजरा उनकी कà¥à¤› समठमें नहीं आया. उनकी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ मà¥à¤•ेश ने उनसे कहा की ये पैसे रखो और सामने वाले à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में जाकर खाना खा लो.
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ से परिपूरà¥à¤£Â à¤à¤• नज़र मà¥à¤•ेश पर डाली और चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª तेज क़दमों से à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ की ओर चल दिअ..
मैं चाहती थी की मà¥à¤•ेश उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤› खाने का सामान लाकर अपने हाथों से ही दे दे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मà¥à¤à¥‡ लग रहा था हमारे दिठहà¥à¤ पैसों से कहीं वे फिर से शराब न पी लें, लेकिन समय की कमी की वजह से हम à¤à¤¸à¤¾ नहीं कर पाठऔर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उनके हाल पर छोड़कर इस विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ के साथ की हमारा पैसा सही उपयोग में ही लाया जाà¤à¤—ा हम गाडी सà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥à¤Ÿ कर के अपने घर की ओर चल दिअ…….
अब इस कड़ी को यहीं समापà¥à¤¤ करती हूठऔर इस शà¥à¤°à¤‚खला से à¤à¤• लमà¥à¤¬à¤¾ विराम लेती हूà¤, लेकिन यह शà¥à¤°à¤‚खला अà¤à¥€ तब तक समापà¥à¤¤ नहीं होगी जब तक मैं आपलोगों को इंदौर के सारे दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² न दिखा दूà¤.

























कविता जी….
पेट के आगे सब विवश हैं…..
उनके लिए मुकेश जी किस अवतार से कम नहीं रहे होंगे….
एक दर्द भरी दास्ताँ : आ पलोगों के मानवीय पहलू को उजागर कर रही है…
अनाम जी,
आपने सही कहा पेट के लिए सबकुछ करना पड़ता है. आपने हमारे मानवीय पहलु को समझा, यह आपका बड़प्पन है. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
Kavita ji,
I’ve tried to comment in hindi, but unfortunately my name was shown as ??????.
Anyway thanks for sharing the glory of hollers… Indore….
aap ghummakkad nahi bhukkad hai
rangeelo rajasthan kaha jatha hai , aap ka lekh pad kar bolana padega rangilo indore. prakash namkeens indore mein kafi famous hai.
good one !
महेश जी,
सचमुच हमारा इंदौर रंगीला ही है. और दूसरी बात इंदौर का प्रसिद्द प्रकाश का नमकीन अब नहीं रहा, अब उसका नाम बदलकर आकाश के नमकीन हो गया है.
कमेन्ट के लिए शुक्रिया.
इंदौर के बारे में अच्छी, सटीक, ज्ञानवर्धक जानकारी, धन्यवाद, वन्देमातरम..
प्रवीण जी,
भूरी भूरी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
कविता जी….
आपने अपने इस लेख के माध्यम से इंदौर के बारे काफी बता दिया हैं | बहुत ही अच्छा और सम्पूर्ण जानकारी युक्त लेख लगा , शहर के फोटो तो बहुत ही उत्तम लगे…| हमारे आगरा के पास (२५किमी०दूर) भी एक सुन्दर वैष्णोदेवी मंदिर हैं और वो भी कुछ ऐसा ही बना हैं | राजस्थान के महावीर जी में एक ऐसा ही कांच का जैन मंदिर हैं और वह भी बहुत सुन्दर हैं | आपने इंदौर के खानपान के बारे में काफी अच्छा बताया वैसे इंदौर का नमकीन सब जगह प्रसिद्ध हैं |
आपका लेख पढ़कर कर अब मेरी भी इच्छा हो रही है कि मैं भी अपने शहर (आगरा ) के बारे में भी कुछ लिखू , जल्द ही यह कोशिश भी करूँगा |
एक फिर लेख और अतिसुन्दर फोटोओ के लिए धन्यवाद…!
रितेश जी,
जानकारी से परिपूर्ण इस कमेन्ट के लिए आपको धन्यवाद. जी हाँ, इंदौर अपने नमकीन के लिए भारत भर में प्रसिद्द है. आपकी अगली पोस्ट कब आ रही है?
रविवार 12 August 2012 को ….
वल्ल्भाचार्यविर्चित्म से क्षमा प्रार्थना करते हुए:- मुकम मधुरम ईशम मधुरम, कवितम मधुरम भ्रमितम मधुरम | स्वीटम मधुरम इंदोरम मधुरम मधुराधिपतेर्खिलम मधुरम |
कविता जी आज फिर आपने 44 साल पुरानी यादें ताजा करवा दी मगर उस समय शीश महल था आज काँच घर है, लाल बाग़ तो खैर देखा नही परन्तु आपने फिर से इंदौर घूमने की ललक पैदा कर दी है. भोपल-इटारसी-पिपर्रिया होते हुए अपनी मनपसंद पचमढ़ी तो जाना होता है मगर इस बार इंदौर भी फिर से ज़रूर देखेंगे और यदि भोले बाबा का आशीर्वाद रहा तो उज्जैन में महाकालेश्वर के भी दर्शन करके आएँगे.
विवेचना/परिक्रमा/चित्र उत्तम हैं. बधाई एवं धन्यवाद |
अरे वाह त्रिदेव जी, आपने तो श्लोक की ही रचना कर दी. आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. ईश्वर से प्रार्थना है की आपकी इंदौर तथा महाकालेश्वर की यात्रा की योजना शीघ्र ही बने.
मै भी सभी घुमक्कड भाईयो से कहता था कि पुरानी यादो की पोस्ट अलग तरह की होती है और जब घुमक्कड के लिये घूमते हैं तब अलग तरह की , जो कि आज की पोस्ट में है
देखिये ना कविता जी आज की पोस्ट में आप ,मुकेश जी और बच्चे सभी का या किसी का कोई फोटो नही है और अब ये कमी खल रही है कम से कम एक दो तो लगाइये जरूर
बाकी फेाटो बढिया है
अभी अमृतसर जाना हुआ तो वहां पर अधिकतर कांच से बने मंदिर में वैष्णो देवी की गुफा इसी तरह की थी और वहां पर फोटो लेने की भी पाबंदी भी नही थी । हरिद्धार में भी ऐसा ही एक मंदिर है सप्तऋषि मंदिर रोड पर
जी हाँ मनु जी, इस बार पोस्ट में हमारी तस्वीरों की कमी हमें भी खल रही है, लेकिन चलिए कोई बात नहीं कुछ लोग जो पोस्ट में पर्सनल फ़ोटोज़ के खिलाफ हैं उन्हें तो यह पोस्ट ज़रूर पसंद आई होगी.
कविता जी !! ‘ इनडोर ‘ सॉरी इंदौर घुमक्कड़ी का ये रोचक वृतांत बड़े अपनत्व के साथ पाठक को जोड़ लेता है. मालवा के मुकुट इंदौर की तो बात ही कुछ और है . हम जैसे लोग इंदौर नहीं गएँ हैं , उनके लिए तो आपकी दी हुई जानकारी खजाने से कम नहीं है !!
वैष्णों देवी के मंदिर परिसर में माता के नाम से बड़ा “महाप्रसाद” और “दस रुपये” लिखा हुआ है !! इससे मंदिर वालों की ‘मानसिकता’ पता चलती है !! चित्र बड़े सुन्दर खींचे हुए हैं !! ‘गरम कुत्ता’ यानि ‘हॉट डॉग’ कैसा लगता है? मुझे पता नहीं !! इंदौर के ‘पोए’ तो लाजवाब हैं !! लाल बैग पैलेस की तो बात ही क्या , अन्दर के हॉल का चित्र तो कोई विदेश भ्रमण का अहसास करवाता है !
और अंत में एक दर्द भरी दास्ताँ सुना कर तो आप ने जैसे मैच के अंत में छक्का ही लगा दिया !!
दही बड़ा जी,
शायद ये आपका छद्म नाम है, और यह भी हो सकता है की यह आपका असली नाम ही हो लेकिन जो कुछ भी है, बड़ा फनी लगा. खैर, आपकी उत्साहवर्धक एवं सुन्दर टिप्पणी के लिए धन्यवाद. इंदौर को आपके द्वारा दी गई उपमा “मालवा का मुकुट” पढ़कर बड़ा अच्छा लगा, मुझे लग रहा है की मेरी इस पोस्ट के लिए यह एक बेहतरीन शीर्षक (Title) हो सकता था.
धन्यवाद.
post mein, foto mein aap logon ki foto koi nahin he. vrat mein bina kutch khaye foto aachhi nahin aati.
chori se (niyam tod kar) khinche foto bahut achhe aayee . aakhri wala lekh samajh nahin aaya ki kya darshta he
पोहा जी,
आपका नाम भी बड़ा विचित्र एवं मनोरंजक लगा. पोहा? सादा या प्याज निम्बू मारके?
प्रतिक्रिया जाहिर करने के लिए आपका धन्यवाद. आखरी वाला लेख बहुत ही साधारण भाषा में लिखा गया एक मार्मिक एवं भावपूर्ण वक्तव्य था जो की एक पूर्णतः सत्य घटना पर आधारित था. अब उसमें समझ में न आने जैसी क्या बात थी यह मेरी समझ में नहीं आया.
कविता जी ..अपने ही शहर इन्दौर को एक घुमक्कड़ की नज़रों से देखना काफ़ी आनंददायक अनुभव रहा | सुन्दर विवरण तथा दर्शनीय चित्रों के माध्यम से आपने इन्दौर को सजीव कर दिया …धन्यवाद तथा शुभकामनाएँ |
आपने खजराना मन्दिर की स्थापना सन 1875 मे बताया है ,लेकिन मे आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा की मन्दिर पर लगे पुरातत्व विभाग के सूचना पट के अनुसार मन्दिर की स्थापना 16-17 वी शताब्दी मे हुई है , कृपया एक बार पुनः देखा लेवे |
इंदौर की सुंदरता को सबके समक्ष लाने के लिए पुनः धन्यवाद |
सक्षम जी,
इतने सुन्दर शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. लगता है आप भी इंदौर से ही सम्बन्ध रखता हैं. दूसरी बात, खजराना गणेश मंदिर की आधिकारिक वेबसाईट (Official Website) में इसका निर्माण 1875 में ही होना बताया गया है. Please click the link- http://shriganeshkhajrana.com/index.php.
हो सकता है की प्राचीन मंदिर 16-17 वी शताब्दी में निर्मित हुआ हो और उसका पुनर्निर्माण 1875 में हुआ हो, ऐसा अक्सर होता है, कई बार पुराने मंदिर जीर्ण शीर्ण हो जाते हैं और फिर सदियाँ बीतने के बाद उनका पुनरोद्धार किया जाता है.
कुछ जाना-कुछ अनजाना सा, शहर है यह पहचाना सा।
ये शहर है अमन का…….यहाँ की फिज़ा है निराली.
कविता जी,
वहुत सुंदर वर्णन है, चित्र काफी खूबसूरत हैं , लाल बाग पेलेस का हाल फ़िल्मी सेट जैसा है. किसी सिक्ख भक्त दुआरा मंदिर का निर्माण, जानकार काफी अच्छा लगा.
इतनी सुंदर पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
शर्मा जी,
आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आपने बिलकुल सही कहा, लाल बाग़ पेलेस फ्रेंच तथा इटालियन शैली में निर्मित है अतः यह बाहर तथा अन्दर दोनों ओर से किसी परंपरागत भारतीय राजमहल के बजाय विदेशी महल की तरह लगता है.
Nice very post, I just started remembering my best days in Indore.
I am not from Indore, But my wife is frm Indore. We are planning to settle their in last.
Thanks.
Amit ji,
Thanks for the comment. If you are planning to settle in Indore, Its a good step. Indore is very beautiful and peaceful and fast developing city.
Thanks.
कविता जी, एक परितुष्ट कर देने वाली पोस्ट है | धार्मिक घुमक्कड़ों के लिए तो कुंजी समझिये , कुंजी नहीं बल्कि एक “डाईजेस्ट” | मंदिर के तसवीरें अच्छी धुल कर आये हैं और घुमक्कड़ी भी परवान पर रही | जैसे माँ वैष्णो देवी मंदिर उत्क्रिस्ट संयोजन का नमूना है उसी तरह से मुझे उम्मीद है की वैष्णो देवी इंदौर भी उसी तरह से चले | अंतिम अध्याय में मैं आपकी बात से सहमत हूँ , पर आपने और मुकेश नो जो किया वो भी बहुत है |
नंदन जी,
आज आपकी कमेन्ट मुझे बड़ी ही मनमोहक लगी. आपकी कमेन्ट से OK की मुहर लग जाने के बाद मन को पूर्ण संतुष्टि प्राप्ति होती है. इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार.
कविताजी… इंदौर के रंग… देख लिये आपके संग ।
कोई खास बात और बताइये…ये सब तो हर शहर में होता है… कुछ ऐसा जो इंदौर को खास बनाता हो
गरीबों का दृष्य वाकइ वीभत्स था… मुझे तो प्रेमचंद की कहानी कफन याद आ गई.. मुझे विश्वास है वो 100 रु में से 90 की दारू पी गये होगे..फिर भी मुकेशजी का हृदय करुणा से भरा है.
साइलेंट जी,
इंदौर में तो यही सब है जो मैं दर्शा रही हूँ और जो हर शहर में होता है, अब आप इसे जो भी कहें आम या ख़ास. कमेन्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आप ठीक नही समझी… आपकी पोस्ट खूबसूरत है उसमे कोई कमी नही.. मै ये कहना चाहता हूं कि अगर मेरे जैसा कोई इतनी दूर से आये तो उसके लिये इन्दौर या उसके आस-पास कोई विशेष महत्व का मंदिर या दर्शनीय स्थल है क्या..
SS जी,
सच कहूँ तो ज्यादा दूर से आने वालों के लिए तो इंदौर का एक ही रोल समझ मैं आता है – “यहाँ से ओंकारेश्वर जी के लिए बस या कोई और गाड़ी पकड़ो और पहुँच जाओ भोले बाबा के ज्योतिर्लिंग दर्शनों के लिए”. और वहां के नजारों का तो कहना ही क्या ? माँ नर्मदा, नर्मदा पे बना बाँध और पता नहीं क्या – क्या ? बिलकुल स्वर्ग मैं पहुँच जाओगे.
और हाँ जाने से पहले मुकेश जी से जरूर संपर्क कर लेना, बहुत बढ़िया मार्गदर्शन करेंगे आपका. अभी २ दिन पहले ही मैं और मेरे साथ मेरे ३६ सहयात्री ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन कर के आ रहे हैं.. मुकेश जी की सहायता से…
कविता जी आप और मुकेश जी सचमुच धन्य है क्योंकि जिन लोगों पे आप ने दया की वो सब के बस की बात नहीं है, कम से कम मैं तो अभी इतना महान नहीं हो पाया हूँ.
जय राम जी की….
और इस बार चित्र में किसी का फोटो नही आया… डर गये क्या लोगो के तानो से??
Kavita ji,
Since i myself live in Indore, it was very exciting and new to see my own city as a travel destination. But a wonderful post describing the places that we visit/come across on a daily basis in a wonderful new light.
Chappan ke pohe, Indore ke namkeen, chawani ki dudh-jalebi aur TI ki shopping…..
Ek Indorean bhi mere hisaab se kahi aur nahi reh sakta…jaisa ki mumbai aur kai aur shehron ke baashindo ke baare mein kaha jaata hein…
luking fwd 2 rd more,
bhavesh
Bhavesh Ji,
Its my pleasure that a person from Indore itself has gone through the post and that too in such depth. I am very happy that you liked it, thanks a lot for liking the post and appreciation in such encouraging words.
Thanks.
Indore in vivid colors.very good post with intriguing chappan.that old struggle to fill one’s stomach – a bitter truth in this liberalized India makes us to think that something somewhere is surely wrong.
Sir,
Thank you very much for your lovely comment. Yeah, rightly said something is definitely wrong in the whole system, I do agree.
कविता जी,
सचमुच बहुत ही अच्छा चित्रण और वर्णन ..
हो सकता है अगर मैंने आपकी ये पोस्ट मैंने ओंकारेश्वर जाने से पहले पढ़ी होती तो शायद इंदौर का कांच मंदिर और लाल बाग पैलेस
जरूर अपनी यात्रा मैं शामिल कर लिया होता. क्योंकि देवास के मंदिर भी मैंने सिर्फ मुकेश जी और विशाल जी के कहने के बाद ही शामिल किये थे और सभी (अपने साथी यात्रियों) से प्रशंसा पाई थी.
जय राम जी की….
कविता जी धन्यवाद आज google पर कुछ खोजते हुए आपकी साईट का पता चला आपने इंदौर के बारे में काफी कुछ जानकारी दी है । अधिक जानकारी के लिए हमारी साईट http://www.myindorecity.com पर पधारे ।
kavita ji aapki jaankari padhkar to man khush ho man kar raha hai abhi indore chala jau
Yadav Anil
Please Change the myindorecity link to MYindorecity.blogspot.com