यदि आप केवल à¤à¤• तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ के तौर पर मथà¥à¤°à¤¾-वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ की यातà¥à¤°à¤¾ पर जाते हैं तो बात अलग है, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ अगर आप हमारे जैसे यायावर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• हैं, जो अपने काम–धंधे या नौकरी में से कà¥à¤› समय निकाल कर कहीं घूमने के लिठनिकलता है, तो उसका à¤à¤•मातà¥à¤° उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ रहता है, कि किस पà¥à¤°à¤•ार. वो अपने समय का उचित पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन कर के, कम समय में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जगहों पर घूम सके! इसी लकà¥à¤·à¥à¤¯ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤, हमने अपनी मथà¥à¤°à¤¾-वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ वाली यातà¥à¤°à¤¾ में आगरा को à¤à¥€ समà¥à¤®à¤²à¤¿à¤¤ कर लिया| कà¥à¤¯à¥‚ंकि मथà¥à¤°à¤¾ और आगरा à¤à¤• ही हाईवे पर हैं और मथà¥à¤°à¤¾ से आगरा की कà¥à¤² दूरी à¤à¥€ लगà¤à¤— 65 किमी की ही है, अतः वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•ता का तकाजा à¤à¥€ यही है, कि यदि आप मथà¥à¤°à¤¾ केवल धारà¥à¤®à¤¿à¤• उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से ही नहीं जा रहे हों और आपका इरादा छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¥‹à¤‚ का अधिक से अधिक सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— करने का हो, तो आप इसी यातà¥à¤°à¤¾ में आगरा को à¤à¥€ जोड़ सकते हैं, जैसा की हमने किया |
मथà¥à¤°à¤¾ के अपने होटल से, अल-सà¥à¤¬à¤¹ ही नहा-धोकर हम सबने होटल से बाहर आकर उसी दà¥à¤•ान से उनà¥à¤¹à¥€ कचोडीयो का रसावादन किया, कà¥à¤› मीठा खाने के शोकीनों ने उसी के बगल में ‘शंकर मिषà¥à¤ ान’ वाले से मीठे पर हाथ आजमाया, जिनके सà¥à¤µà¤¾à¤¦ का अनà¥à¤à¤µ मैं अपनी पिछली पोसà¥à¤Ÿ ‘à¤à¤• जिंदादिल शहर : मथà¥à¤°à¤¾â€ में पहले ही कर चà¥à¤•ा हूठ| आप जानते ही हैं कि, हम शहरी लोगों की à¤à¤• और नियामत है चाय! और यदि वो ना मिले तो आप खà¥à¤¦ को तो बेचैन पाà¤à¤‚गे ही, सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वरà¥à¤— को अकà¥à¤¸à¤° कहते हà¥à¤ सà¥à¤¨à¥‡à¤‚गे कि, “सर में बहà¥à¤¤ तेज दरà¥à¤¦ है, कहीं ढंग की चाय ना मिलने की वजह से !†कà¥à¤¯à¥‚à¤à¤•ि, अकà¥à¤¸à¤° ही, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने हाथ की बनी चाय के अलावा कहीं और की बनी चाय पसंद नही आती और यकीन मानिठयदि आपके साथ à¤à¤¸à¤¾ हो तो समठलीजिये कि खतरे की घंटी बज चà¥à¤•ीं है और अब आपके बनाये हà¥à¤ सारे पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® का कबाड़ा होने ही वाला है | आखिर सौ सà¥à¤¨à¤¾à¤° की à¤à¤• लोहार की, तो à¤à¤¸à¥‡ में अपने अनà¥à¤à¤µ से हमने उड़ती चिड़िया के पर गिनना सीख लिया है | सो हमने पहले से ही à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ चाय की दà¥à¤•ान का पता लगा लिया था जो अपने काम में सिदà¥à¤§-हसà¥à¤¤ था |और फिर ‘पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· को पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ की आवशà¥à¤¯à¤•ता नही’ को चरितारà¥à¤¥ करते हà¥à¤ ‘अरोड़ा चाय वाले’ ने छोटे-छोटे कà¥à¤²à¥à¤¹à¤¡à¤¼ में जो चाय पिलाई तो उसका सà¥à¤µà¤¾à¤¦ आज à¤à¥€ हमारी जीठपर है |
बहरहाल, सà¥à¤¬à¤¹ के इस नाशà¥à¤¤à¥‡ से निपट कर हमने आगरा वाले हाईवे का रà¥à¤– किया, राह में पड़ने वाले à¤à¤• ओवरबà¥à¤°à¤¿à¤œ से उस समय à¤à¤• मालगाड़ी गà¥à¤œà¤° रही थी | कार के अंदर से ही हमने उसका फोटो लिया, कà¥à¤¯à¥‚ंकि सड़क की à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¾à¤¡à¤¼ ना तो आपको रà¥à¤•ने देती है और ना ही जेठके महीने में गाड़ी के अंदर बैठे लोग आपको खिड़की का शीशा गिराने देते हैं |

मथà¥à¤°à¤¾ से बाहर निकलते समय समय पà¥à¤² से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ मालगाड़ी के डिबà¥à¤¬à¥‡
आगरा की तरफ जाने वाली हाईवे की सड़क ठीक-ठाक है | मथà¥à¤°à¤¾ से महज 11 किमी की दूरी पर इंडियन आयल की तेल रिफाईनरी है , जिसकी चिमनी से निकलती हà¥à¤ आग की लपटें आपको आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती हैं | मथà¥à¤°à¤¾ और आस-पास के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को इसकी वजह से काफी रोज़गार के साधन उपलबà¥à¤¦ हà¥à¤ है, परंतॠइस रिफाईनरी से निकलने वाले धà¥à¤‚ठऔर विषाकà¥à¤¤ गैसों की वजह से आगरा के ताजमहल की तबियत काफी नासाज़ हो गयी थी, जिसकी वजह से माननीय सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤®à¤•ोरà¥à¤Ÿ को कà¥à¤› गाइड लाइनà¥à¤¸ बनानी पड़ी मगर अब सब ठीक है, गाड़ी के अंदर से उतारी गई इसकी à¤à¤• à¤à¤²à¤• |

चलती कार से तेल रिफाईनरी की चिमनी से निकलती आग और धà¥à¤‚ठका लिया गया फोटो, खास आपके लिà¤
आगरा के रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• टोल-टैकà¥à¤¸ à¤à¥€ है जिस पर आपको फिर à¤à¤• बार 85 रूपये की परà¥à¤šà¥€ कटवानी पडती है, अपने ही देश में. à¤à¤• ही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ में, बिना सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं वाले रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ जब बार-बार टोल à¤à¤°à¤¨à¤¾ पड़े तो चà¥à¤à¥‡à¤—ा ही | मगर जब ओखली में सर दिया तो मूसलों से कà¥à¤¯à¤¾ डरना, और हमारा कारवाठरासà¥à¤¤à¥‡ की इन छोटी-मोटी रà¥à¤•ावटों से पार पाते हà¥à¤ अपनी मंजिल की ओर बड़ता जाता है |
सड़कों पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ बढ़ने लगी है | बाहर, दिन का तापमान बढ़ना शà¥à¤°à¥‚ हो चà¥à¤•ा है, और अंदर गाड़ी का! परिवार के साथ जाने वालों में कार के सà¥à¤Ÿà¥€à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ में चलने वाले गानों के चà¥à¤¨à¤¾à¤µ पर अकà¥à¤¸à¤° बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ पà¥à¤¯à¤¾à¤° à¤à¤°à¥€ नोक-à¤à¥‹à¤‚क होती रहती है, और हम लोग à¤à¥€ इस सनातन हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ को निà¤à¤¾à¤¨à¥‡ में बिलकà¥à¤² à¤à¥€ पीछे नही ! यहाठबचà¥à¤šà¥‡ नये गाने सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहते हैं…yo yo Honey Singh!!!, वहीं हम लोग à¤à¥‚ले-बिसरे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ फ़िलà¥à¤®à¥€ गीत ! कोई पीछे हटने को तैयार नही … आखिर मांडवाली कर-कर के काम चलता है, यानी कà¤à¥€ à¤à¤• गà¥à¤°à¥à¤ª की पसंद के तो कà¤à¥€ दूसरे के | आखिर आप आगरा में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर ही जाते हैं और जब आप à¤à¥€à¤¡à¤¼-à¤à¤¾à¤¡à¤¼ वाले सिकनà¥à¤¦à¤°à¤¾ से गà¥à¤œà¤° रहे होते है, तो आपके बायीं और अकबर का मकबरा पड़ता है| अचानक ही हम सब चाहने लगते हैं कि ताजमहल देखने से पहले, कà¥à¤¯à¥‚ठना इसे à¤à¥€ à¤à¤• नजर à¤à¤° देख लिया जाये | सिकनà¥à¤¦à¤°à¤¾, ताजमहल से 16 किमी की दूरी पर, तथा आगरा शहर से 10 किमी की दूरी पर, शहर के बाहरी à¤à¤¾à¤— मे पड़ता है | अपने मकबरे का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सà¥à¤µà¤¯à¤® अकबर ने ही अपने जीवन-काल में शà¥à¤°à¥‚ करवाया था, परंतॠइसे पूरा, अकबर की मौत के बाद उसके पà¥à¤¤à¥à¤° जहांगीर ने 1613 में करवाया | हमें बताया गया कि कà¤à¥€ इस मकबरे में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के चार रासà¥à¤¤à¥‡ थे, मगर अब केवल à¤à¤• ही रासà¥à¤¤à¤¾ दरà¥à¤¶à¤•ों के लिठखà¥à¤²à¤¾ है | इस मकबरे को बाहर से देखते ही आप को ये मोहित कर लेता है जब आप पाते हैं कि इसकी दीवारों पर बहà¥à¤¤ ही कलापूरà¥à¤£ ढंग से, काफी सà¥à¤‚दर जà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¤¿ पैटरà¥à¤¨ पर सà¥à¤‚दर डिज़ाइन उकेरे गठहैं | इस मकबरे के सामने ही पारà¥à¤•िंग की जगह है और हैरानी की बात है कि मकबरे और उसके आस-पास की जगह साफ़ सà¥à¤¥à¤°à¥€ à¤à¥€ है | अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही आपको इसके दरो-दीवारों पर अकबर के सरà¥à¤µ-धरà¥à¤®-समà¤à¤¾à¤µ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ हो जाते हैं, जब इसकी दीवारों पर आपको हिंदà¥, बोदà¥à¤§, जैन, ईसाई आदि धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• संगमरमरों में उकेरे हà¥à¤ दिख जाते हैं, हालाकिं इस मकबरे की मà¥à¤–à¥à¤¯ आकृति मà¥à¤—ल शैली की ही है |

मकबरे के अंदर वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जहाठसे बोली गई आपकी बात मकबरे के दà¥à¤¸à¤°à¥‡ हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ तक पहà¥à¤‚च जाति है

मकबरे की दीवार में पतà¥à¤¥à¤° में उकेरा गया इसाई धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•

मकबरे की दीवार पर उकेरा गया सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤• का चिनà¥à¤¹

मकबरे का बाहरी दृशà¥à¤¯ , फोटो में शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤® तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी
लाल रंग के सैंड-सà¥à¤Ÿà¥‹à¤¨ पतà¥à¤¥à¤° से बना ये मकबरा काफी à¤à¤µà¥à¤¯ और सà¥à¤°à¥à¤šà¥€ पूरà¥à¤£ है, जो जà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¤¿ के truncated पिरामिड की आकृति में बना है, इसके चारों किनारों पर खड़ी मीनारें, बहà¥à¤à¥à¤œà¥€ आकार की हैं जो आपको दूर से देखने à¤à¤° से ही सà¥à¤‚दर दिखने लगती हैं, ये आपको उस दौर में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ à¤à¤µà¤¨ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कला के विकसित रूप का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ देती हैं | मà¥à¤—ल शैली के à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की खासियत ये होती है की इनमे आपको मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ तक पहà¥à¤‚चने के लिठà¤à¤• गलियारे, या उसे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶-दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ कह सकते हैं, में से होकर गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾ पड़ता है, इसके अलावा इसमें मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ के आगे और पीछे की तरफ बगीचा तथा पानी की नहर जरूर दिख जाती है जो इसà¥à¤²à¤¾à¤® में ‘बहिशà¥à¤¤â€™ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• होता है | (बहिशà¥à¤¤ , muslim शिया समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ में जनà¥à¤¨à¤¤ का बगीचा माना जाता है|)| इसके पीछे की तरफ में आपको हिरण à¤à¥€ दिखते है, जिनमे काला हिरण(black buck}, सलमान खान की वजह से सबके आकरà¥à¤·à¤£ का केनà¥à¤¦à¥à¤° है |इस मकबरे का मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ à¤à¤• चोकोर चबूतरे पर, वरà¥à¤—ाकार आकृति में बना है | पूरा मकबरा पांच तल का है, जिसके à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ तल पर सà¥à¤µà¤¯à¤® अकबर तथा उसकी अनà¥à¤¯ दो बेटियां वा नाती दफन हैं | पूरे à¤à¤µà¤¨ में कबà¥à¤°à¥‹à¤‚, और दीवारों के अतिरिकà¥à¤¤ इसकी छत पर की गयी नकà¥à¤•ाशी à¤à¥€ अदà¤à¥à¤¤ है | यहाà¤-तहाठसोने का तथा अनà¥à¤¯ कीमती रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ और पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² हà¥à¤† है | अकबर की सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की कबà¥à¤° तो आलीशान है ही, उसकी बेटियों की कबà¥à¤°à¥‹à¤‚ पर संगमरमर के पतà¥à¤¥à¤° पर उकेरी गयी आयतें, और बेल-बूटियाठकला का उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ नमूना है | पूरे मकबरे में कई जगहों पर छतरी का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² à¤à¥€ है, जो मà¥à¤—ल-कालीन इमारतों में कई जगहों पर दिखाई देती हैं, जिनमे से आगरा में फतेहपà¥à¤° सीकरी का नाम विशेष तौर पर उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है | इसमें कहीं कोई दो राय नही कि पूरा मकबरा अपने दोर की मà¥à¤—लिया शानों-शौकत की गवाही हर कदम पर देता है |

संगमरमर के à¤à¤• ही टà¥à¤•ड़े पर की गयी अदà¤à¥à¤¤ नकà¥à¤•ाशी

कबà¥à¤° के पतà¥à¤¥à¤° पर उकेरी गयी अरबी में लिखी आयतें
मà¥à¤—लों के बनवाठकà¥à¤› मकबरे तो वाकई इतने बà¥à¤²à¤‚द और आलीशान हैं कि आपको उनकी मौत से à¤à¥€ रशà¥à¤• हो जाता है | इस काल की जितनी à¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯ इमारतें हैं, उनमे कà¥à¤› ना कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ जरूर है, जिस से आप उनकी à¤à¤µà¤¨-निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कला के मà¥à¤°à¥€à¤¦ हो जाà¤à¤, इस मामले में ये मकबरा à¤à¥€ आपको à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ नायाब पल देता है, जब आप, (चितà¥à¤° में लाल घेरे वाले) पतà¥à¤¥à¤° पर खड़े होकर जो à¤à¥€ बोलते हैं, वो इस के हर हिसà¥à¤¸à¥‡ में सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देता है यानी कि आज के दौर का Public Address System. और आप हैरान तो तब रह जाते हैं जब इस सà¥à¤ªà¥‰à¤Ÿ से दो फà¥à¤Ÿ दायें–बाà¤à¤‚ या आगे-पीछे होने पर. आपकी आवाज केवल आप तक ही रह जाती है |
सदियों से, जो मौत इतनी डरावनी और à¤à¤¯à¤¾à¤µà¤¹ समà¤à¥€ जाती रही है कि कोई अपनी मरजी से उसके पास तक नही जाना चाहता, उसे याद तक नही करना चाहता, à¤à¤¸à¥‡ में उसकी यादगार को कायम रखने के लिठइतने à¤à¤µà¥à¤¯ और आलीशान मकबरों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£, वाकई कमाल की बात है |

अकबर की बेटियों वा उसके नातियों की कबà¥à¤°à¥‡à¤‚
मिरà¥à¤œà¤¼à¤¾ ग़ालिब का à¤à¤• शेर इस मौके पर बेसाखà¥à¤¤à¤¾ ही याद आकर लबों पर à¤à¤• हलà¥à¤•ी सी मà¥à¤¸à¥à¤•ान बिखेर देता है –
“ मत पूछ, के कà¥à¤¯à¤¾ हाल है मेरा तेरे पीछे?, सोच के कà¥à¤¯à¤¾ रंग तेरा, मेरे आगे ! “
मिसà¥à¤¤à¥à¤° के पिरामिड और ये मकबरे, à¤à¤¸à¤¾ नही, कि मौत को कोई चà¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥€ देते हों या मौत पर इंसान की जीत का परचम फहराते हों, पर हाठइतना जरूर है कि इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखने के बाद मौत इतनी à¤à¥€ बदसूरत नजर नही आती! बहरहाल सूरज अपना जलवा दिखाने को बेकरार हो रहा है, और घड़ी की सà¥à¤ˆà¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ सरपट à¤à¤¾à¤— रही हैं, à¤à¤¸à¥‡ में हम फैसला करते हैं कि हमें अपनी ऊरà¥à¤œà¤¾ ताजमहल के लिठà¤à¥€ बचा कर रखनी है | अत:, हम जलà¥à¤¦à¥€ से अकबर के मकबरे को अपनी यादों में समेट, मà¥à¤—लिया सलà¥à¤¤à¤¨à¤¤ के à¤à¤• बेताज बादशाह को उसकी फराखदिली और पंथ-निरपेकà¥à¤·à¤¤à¤¾ के लिठउसे अपना आखिरी सलाम देते हà¥à¤, à¤à¤• और मकबरे, ताजमहल को देखने आगरा की और कूच कर देते हैं…..
अवतार सिंह जी,
उत्कृष्ट भाषा शैली में लिखा, पर्याप्त कसाव लिए एक मनमोहक, मनोरंजक तथा ज्ञानवर्धक लेख। आपके लेखों को पढ़कर लगता है की घुमक्कड़ के हिंदी लेखकों के एक छोटे से कोष में एक और रत्न शामिल हो गया है। बहुत सुन्दर पोस्ट, हार्दिक बधाई ………………..
मकबरे के साथ साइड व्यू में रावी का चित्र, छाया चित्रकारी का बेजोड़ नमूना प्रतीत होता है। घुमक्कड़ पर लिखते रहिये …………..
धन्यवाद.
Thank you Mukesh Bhalse Ji for you comment. Your comment is praising too much, and I do not think that all the things you mentioned are deserved by me.
घुमक्कड़ के मासिक रिसाले में मैंने एक टिप्प्णी कि थी “अवतरित हुए अवतार….” जो आपके लेख ने सार्थक की है. मुकेश भाल्से के अनुसार घुमक्कड़ पर एक और रत्न का इजाफा हुआ है, मैं इससे शत्-प्रतिशत सहमत हूँ | इस मंच ने देश-विदेश के बहुत से मकबरे-इमारतें, बाग-बगीचे, जंगलात, अस्थान, अजूबे, स्थानक दिखाए व तीर्थ करवाए हैं मगर जब अवतार मौत के खौफ की बदसूरती कुछ कम करके आँकता है, सुशांत, कविता भाल्से के घर को अपनी लेखनी से “कविता भाल्से मन्दिर” यानि एक तीर्थकर बना देता है, विशाल अपनी विशालता से अपने शब्दों को शक्तिपीठ होने का एहसास दिला देता है, तो हमें घर बैठे-बैठे एक घुमक्कड़ होने का गौरव महसूस होता है.
धन्यवाद अवतार जी सिकंदरा घुमाने का तथा चित्र भी बहुत सुंदर हैं, अगली घुमक्कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
त्रिदेव चरण जी बाकी औपचारिकताऐं बाद में, पहले ये समझाएं कि आप इतनी बेहतरीन और शुद्ध हिंदी कैसे लिखते हैं…??? आपकी तो अपनी लेखन शैली ही जबरदस्त है, सर फैन हो गया आपका तो …. अब तो हर पोस्ट पे आँखे आप का कमेन्ट दूंदेगी…
धन्यवाद सर, आपने पोस्ट पसंद किया… सादर
अवतार सिंह जी,
त्रिदेव चरन जी के बारे में मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि वह बहुत घुटी हुई चीज़ हैं – अगर दिग्विजय सिंह की भाषा में कहूं तो एक दम सौ फीसदी टंच माल ! उनके एक – एक कमेंट पर मेरी दस-दस पोस्ट कुर्बान ! वह सिर्फ छोटे – छोटे कमेंट से ही हमें अपने स्नेह से इतना आप्लावित कर देते हैं कि अगर फुल पोस्ट के रूप में कहीं स्नेह की पूरी बाढ़ आ गई तो हम सब का डूब जाना तो हंड्रेड परसेंट पक्का !
Well said Sushant ji . I fully agree, but I am quite sure, like me, you too would love to fall and lost in his writings. Nowadays, one can find few people in this world who inspire others through his motivation and I feel Shri Tridev is certainly one of them…
Dear Avtaar Singh Ji
Really Nice post , excellent……
Please keep Continue …
Parmender
Thank you Parmender ji, Your words are really encouraging,
Avtar Singh Ji, a nice historical post though many tourists prefer going to Agra for Tajmahal only you have immortalized Sikandara by your visit and by your post.
Thanx a lot Rakesh ji for your kind and nice words. I agree and feel no guilt to admit that it was not included in our initial plan. It was just happened and after that we felt ourselves lucky to seize the opportunity to see it….
Hi Avtar,
An interesting account of Sikandra. I have not seen it and like you said it is not the top priority when people visit Agra.
The tomb is pretty but in my view the most imposing of all Mughal Emperors’ tombs is the Humayun Tomb in Delhi. Of course Taj was originally made for Mumtaj Mahal. So it does not count!
Looking at both the Humayun and Akbar tombs, we can see the evolution of Mughal architecture. In Humayun tomb the stones themselves provide the decoration while here it is the carving on the stones, in-laid stones and tile work that provides the decoration.
Yes you are right, most of the kings are remembered by their tombs and not the forts or palaces they built. And even if they were not able to build palaces, they or their successors built tombs for them. More tombs in my next post!
Thanks for the tour!
Thanks Nirdesh singh ji for your very analytically and detailed review of the post. I have not seen the Humayun’s Tomb as yet so it will not be appropriate for me to say anything.
The main thing about the Akbar’s Tomb is the carving of various religion symbols of the prevalent world during his time. I sent the pics of that too, but it seems, they could not deliver because of space constraint on gmail, which I will definitely love to share. This is the major diff b/w Akbar’s and other emperor’s tombs.
As for as carving part is concerned, it might be the vision of the architect, the emperor itself and the art work present at that time…. There could be various reasons and we can only guess about it after so many years.
Thanks once again for very informative comment….
Dear Avtar – I guess all the logs which I have read about Agra, probably no one ever spent enough time and effort to tell us about Sikandara. We also went to Sikandara by chance, when we discovered it right at the road and thought of stopping-by and truly loved the echo-pillars, the vast open spaces and the deers in the adjoining park.
Thank you for continuing to enthral us with your insightful writings. Looking forward to read about Agra,
Thanx Nandan ji, for your nice and encouraging words. In fact we too visited this place on the last second insists of one of the member (tushar) of the group. The place is of course peaceful as majority of the visitors do not care to stop here, as taj has more charm and charisma in their minds.
प्रिय अवतार जी…..
आगरा के सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे का चित्रण अपनीं भाषा शैली और चित्रों से बखूबी किया है, पढ़कर और देखकर अच्छा लगा |
हाँ एक बात और पहले चित्र के बारे जिसके बारे में आपने लिखा भी है (मथुरा से बाहर निकलते समय समय पुल से गुजरते मालगाड़ी के डिब्बे) ….. यह जो चित्र आपने लगाया है यह चित्र मथुरा का नहीं है…आप ध्यान दीजिए कही आपसे गलती हुई ….बल्कि यह चित्र आगरा के जीवनी मंडी से होते हुए यमुना किनारा मार्ग पर बेलनगंज के पास पड़ता है | यहाँ से हमारा लगभग प्रतिदिन ही गुजरना होता है …यह एक दो मंजिला पुल है ऊपर का भाग रेल के लिए और नीचे का भाग वाहन के लिए…….|
धन्यवाद …….लिखते रहिये….अपनी राष्ट्र भाषा में पढ़ना अच्छा लगता है….
Thanx ritesh ji for your kind words. As for your correction about the location of the bridge, I admit it could be a mistake of the identity of the place . I hope you will understand the fact that after visiting a place, it takes several days to write on it and we have to write just on our memories. Since you are a native person of Agra, you know it better. Thanx once again for your comment and the correction of course…
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एक और बेहतरीन पेशकश, अवतार जी…लगता है घूम घूम कर आपको कई ऐसे तजुर्बात हो चुके हैं, जो आगे की यात्राओं में बखूबी काम आते हैं….इसी का नाम तो घुमक्कड़ी है…सिकंदरा की खूबसूरती देखकर लम्बे समय से यहाँ जाने की दिली तमन्ना है…उम्मीद है जल्द ही इसे पूरा कर पाएंगे…खुबसूरत चित्रण के लिए मुबारकबाद!
और हाँ, त्रिदेव जी…इस परिवार के एक अनमोल रत्न हैं…इनकी मीठी गुदगुदाती सुरेन्द्र शर्मा जी जैसी ‘दो लाईना’ का सबको बेसब्री से इंतज़ार रहता हैं….आप अंदाज़ा लगा सकते हैं, जब उनकी टिप्पणियों में इतना रस भरा होता है, जिस दिन उन्होंने लेख लिखना शुरू कर दिया तो वो तो बस ग़जब ही ढा देंगे…इंशाल्लाह, वो दिन हमें जल्द ही देखने को मिले…:)…लिखने का सिलसिला यूहीं जारी रहे…
Thanx a lot Vipin ji for your nice words…. जी, हिन्दुस्तान में रहने भर से ही आपको कुछ ऐसे तज़ुर्बे लगातार होते रहते हैं या आप का कोई ना कोई परिचित अपने अनुभव आप से बांटता रहता है जो अपने आप में अनूठे होते हैं .. .
त्रिदेव जी के तो विश्लेषण वा उनकी भाषा शैली को तो यहाँ हर कोई कायल है ….इसमें कोई शक़ सुबहा नही….