गौमà¥à¤– की विशालता देख के दंग रह गया, बड़ी बड़ी बरà¥à¤« की चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ धारा के साथ निकल रही थी, कई साधू संत धà¥à¤ª, अगरबती जला पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर रहे थे, मैंने à¤à¥€ अपने आप को किसà¥à¤®à¤¤ का धनी मानते हà¥à¤ माठगंगा को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया की कà¥à¤› दिन पहले गरà¥à¤®à¥€ से परेशान था आज à¤à¤—वन की कृपा से सà¥à¤µà¤°à¥à¤— के दरà¥à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤. करीब आधा घंटा रà¥à¤•ने के बाद जब चलने लगा तो मेरे फौजी मितà¥à¤° à¤à¥€ आ गठथे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना आगे का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® तपोवन का बना रखा था. मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कहा की मैं आपका इंतजार गंगोतà¥à¤°à¥€ में करूà¤à¤—ा आप हो आओ. वापस à¤à¥‹à¤œà¤µà¤¾à¤¸à¤¾ पहà¥à¤à¤š कर थोडा विशà¥à¤°à¤¾à¤® किया, और अपने १ दिन के दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से विदा लेते हà¥à¤ गंगोतà¥à¤°à¥€ की ओर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया, ( चलते समय मैंने उस कà¥à¤• की चिटà¥à¤Ÿà¥€ à¤à¥€ ले ली ).
सायं गंगोतà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤à¤š कर अपने रेसà¥à¤Ÿ हाउस में गया और अगले दिन ही उठा. अगली सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ मैंने अपना पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® गंगोतà¥à¤°à¥€ मंदिर और आसपास की जगह का बनाया,

Gangotri Temple
Photo Courtesy : Mahesh Semwal’s post on Gangotri ()
गंगोतà¥à¤°à¥€ मंदिर: “मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤• पवितà¥à¤° शिला पर हà¥à¤† है जहां परंपरागत रूप से राजा à¤à¤¾à¤—ीरथ, महादेव की पूजा किया करते थे। यह वरà¥à¤—ाकार à¤à¤µà¤‚ छोटा à¤à¤µà¤¨ 12 फीट ऊंचा है जो शीरà¥à¤· पर गोलाकार है जैसा कि पहाड़ियों के मंदिरों में सामानà¥à¤¯à¤¤à¤ƒ रहता है। यह बिलà¥à¤•à¥à¤² समतल, लाल धà¥à¤®à¤¾à¤µ के साथ सफेद रंग का है जिसके ऊपर खरबूजे की शकà¥à¤² का à¤à¤• तà¥à¤°à¥à¤•ी टोपी की तरह शीखर रखा है। वरà¥à¤— के पूरà¥à¤µà¥€ सिरे से, जो पवितà¥à¤° शà¥à¤°à¥‹à¤¤ के निकट मà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है वहीं यह पतà¥à¤¥à¤° की छत सहित थोड़ा आगे बढ़ा हà¥à¤† है जहां सामने पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° है तथा ठीक इसके विपरीत इसी आकार का à¤à¤• छोटा मंदिर à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤œà¥€ का है जो इस धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² के अà¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤• माने जाते हैं। बड़े मंदिरों में गंगा, à¤à¤¾à¤—ीरथी à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ देवी-देवताओं की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ है जिनका संबंध इस सà¥à¤¥à¤² से है। संपूरà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤² अनगढ़े पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के टà¥à¤•ड़ों से बनी à¤à¤• दीवाल से घिरा है तथा इस जगह के आगे à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤ सपाट पतà¥à¤¥à¤° है। इस जगह à¤à¥€ वहां पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के लिये à¤à¤• छोटा पर आराम देह घर है। अहाते के बिना कà¥à¤› लकड़ी के छायादार निरà¥à¤®à¤¾à¤£ है तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये है जो ऊपर लटकते पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ की गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में à¤à¥€ आशà¥à¤°à¤¯ पाते हैं, जो काफी हैं।†अधिकांश लोग मंदिर के इस वरà¥à¤£à¤¨ से सहमत होगें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि तब से बहà¥à¤¤ मामूली सा परिवरà¥à¤¤à¤¨ ही हà¥à¤† है। फिर à¤à¥€ इसी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठसे ही शहर विकसित हà¥à¤† है खासकर जब से गाड़ियां चलने के लिये सड़कें बन गयी है, इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तक पहà¥à¤‚चना सहज हà¥à¤† है तथा अधिकाधिक तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ सैलानी यहां आने लगे हैं। इससे आय बढ़ी है जिसे मंदिर à¤à¤µà¤‚ शहर के विकास पर खरà¥à¤š किया गया है।
गढ़वाल के गà¥à¤°à¤–ा सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं सदी में गंगोतà¥à¤°à¥€ मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ इसी जगह किया जहां राजा à¤à¤¾à¤—ीरथ ने तप किया था। मंदिर में पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध के लिये सेनापति थापा ने मà¥à¤–बा गंगोतà¥à¤°à¥€ गांवों से पंडों को à¤à¥€ नियà¥à¤•à¥à¤¤ किया। इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोतà¥à¤°à¥€ के पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ थे। माना जाता है कि जयपà¥à¤° के राजा माधो सिंह दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ ने 20वीं सदी में मंदिर की मरमà¥à¤®à¤¤ करवायी।
गंगा à¤à¤²à¥‡ ही हिंदà¥à¤“ं के लिठमां का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ सà¥à¤µà¤°à¥‚प हो, लेकिन उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी के मà¥à¤–वा के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ के लिठतो वह बेटी है। उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी जिला मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से 75किमी दूर मà¥à¤–वागांव गंगा का मायका है। इसी गांव के लोग गंगोतà¥à¤°à¥€ के पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ हैं। शीतकाल के आरंठमें जब गंगोतà¥à¤°à¥€ मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, तब गंगा जी अपने मायके मà¥à¤–वाआ जाती हैं।यह आयोजन अकà¥à¤·à¤¯ तृतीया को गंगोतà¥à¤°à¥€ के कपाट खà¥à¤²à¤¨à¥‡ से पहले हर साल होता है, लेकिन गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ और गरिमामय वातावरण में कोई कमी नहीं रहती। विदाई के लिठडोली को सोने चांदी के छतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ खास तरह से सजाया जाता है। मà¥à¤–वा के गंगा मंदिर से विदाई के डोली को विदा देने के लिठकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के आराधà¥à¤¯ समेशà¥à¤µà¤°à¤¦à¥‡à¤µà¤¤à¤¾ à¤à¥€ अपनी डोली के साथ मौजूद रहते हैं। ढोल दमाऊंकी थाप पर जब डोली मà¥à¤–वासे विदा होती है तो लगà¤à¤— पूरा गांव साथ हो लेता है। यहां से चंदोमतिमंदिर, मारà¥à¤•णà¥à¤¡à¥‡à¤¯ मंदिर होते हà¥à¤ डोली यातà¥à¤°à¤¾ पैदल à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ घाटी पहà¥à¤‚चती है। यहां à¤à¤• दिन विशà¥à¤°à¤¾à¤® के बाद अकà¥à¤·à¤¯ तृतीया के दिन गंगोतà¥à¤°à¥€ मंदिर में विशेष पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ के साथ मां गंगा की à¤à¥‹à¤—मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ की जाती है। २५ किमी की इस यातà¥à¤°à¤¾ में रासà¥à¤¤à¥‡ में अनेक शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ à¤à¥€ शामिल हो जाते हैं।
माठगंगा के दरà¥à¤¶à¤¨ और आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ ले के आसपास के कà¥à¤‚ड जो सूरà¥à¤¯, विषà¥à¤£à¥, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ आदि देवताओ के नाम पर हैं के दरà¥à¤¶à¤¨ किये. वापस गेसà¥à¤Ÿ हाउस आकर, मैंने अगले दिन शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया, जैसे की मैंने बताया की मà¥à¤à¥‡ वापस शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र, पौड़ी होते हà¥à¤ अपने गाà¤à¤µ जाना था.
गंगोतà¥à¤°à¥€ से उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी होते हà¥à¤ मैं शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र पंहà¥à¤šà¤¾, शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र में चाय की चà¥à¤¸à¥à¤•ी के साथ मैंने पता किया की पौड़ी जाने के कà¥à¤¯à¤¾ साधन है तो पता चला की अà¤à¥€ ५.०० बजे अगर आप पौड़ी के लिठनिकल जाते हो तो कल का शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र, पौड़ी का सफ़र बचेगा और आप सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ की बस से आप अपने गाà¤à¤µ जा सकते है जो पौड़ी से चलती है, बात तो ठीक थी, आधी चाय गले में और आधी गिलास में छोड़ मैं बस पकड़ पौड़ी चल पड़ा.
परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ की हसीन वादियों में अनेक à¤à¤¸à¥‡ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हैं, जो परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¤²à¥‡ ही खास पहचान नहीं बना पाà¤, लेकिन वहां वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नैसरà¥à¤—िक छटा और सà¥à¤°à¤®à¥à¤¯à¤¤à¤¾ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी के शौकीन लोगों को आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती है। à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• जगह है ‘पौड़ी’। यह छोटा सा परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ शहर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के पौड़ी गढ़वाल का मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ है। कणà¥à¤¡à¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ हिलà¥à¤¸ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से औसत उंचाई 5950 फà¥à¤Ÿ है। इस लिहाज से पौड़ी को इस मौसम का हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ à¤à¥€ कहा जा सकता है। पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ की à¤à¥€à¤¡à¤¼à¤à¤¾à¤¡à¤¼ से ऊबने के बाद यदि किसी शांत सà¥à¤¥à¤² की तलाश हो तो पौड़ी à¤à¤• आदरà¥à¤¶ डेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤¶à¤¨ माना जाà¤à¤—ा। मजे की बात यह है कि यह à¤à¤• बजट डेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤¶à¤¨ à¤à¥€ है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहां कोई बड़ा या सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° होटल नहीं है।
बस से उतर कर à¤à¤• होटल मे चारपाई बà¥à¤• कराई, जी हाठचारपाई, वो à¤à¥€ १५ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में. रात घà¥à¤®à¤¨à¥‡ को तो कà¥à¤› नहीं था पर अपनी गाà¤à¤µ तक की टिकेट बà¥à¤• करा ली थी जो सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ ४ या ५ बजे की थी. रात करीब ११ -१२ बजे के आसपास शोर सà¥à¤¨ कर नीद खà¥à¤²à¥€, बाहर देखा तो करीब ५-६ लड़के जो नशे में थे सड़क पे लगी सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤Ÿ लाइट पे पतà¥à¤¥à¤° फांक रहे थे, और आसपास की दà¥à¤•ानों के दरवाजे पीट रहे थे. पहले मैंने सोचा की शायद ये लोग बाहर के है और यहाठमसà¥à¤¤à¥€ कर रहे है, पर होटल वाले से पता चला की ये लोग लोकल ही है, और ये उनका रोज का काम है, आप सो जाओ. नींद तो खैर कà¥à¤¯à¤¾ आनी थी, पूरी रात ये ही सोचता रहा की, जो कलà¥à¤šà¤° शहरों का था वो अब पहाड़ों में à¤à¥€ असर दिखाने लगा है. मà¥à¤à¥‡ वो दिन याद आने लगे, जब अपने गाà¤à¤µ के लड़के लडकियों को आपने गà¥à¤°à¥ (टीचर ) का काम करते हà¥à¤ देखता था, उनका खाना बनाना, जंगल से लकड़ी लाना, कपडे धोना बाकी सारे काम. सिरà¥à¤« गà¥à¤°à¥‚जी ही नहीं बाकी सà¤à¥€ बड़ों को आदर देना, ये सब सोचते सोचते कब आà¤à¤– लग गयी पता ही नहीं चला.
पी पी पी की जोर जोर आवाज से नींद टूटी तब समठआया की बस तो जाने वाली है, वो तो बढ़िया रहा की बस वाला को बता दिया था की मैं कहाठरà¥à¤•ा हूà¤, फटाफट अपना सामान समेटा और बस में बैठगया. बस में ८-१० सवारी ही थी. à¤à¤• बात बताना चाहूà¤à¤—ा की अधिकतर लोगो को बस के पहाड़ी सफ़र में उलटी या मतली लगती है, मेरे साथ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है, पाबो, बैजरो, बीरोंखाल होते हà¥à¤Â अपने गाà¤à¤µ मैठाना दोपहर करीब पहà¥à¤‚चा.
तो दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ इस तरह मेरा अंजन सफ़र का समापन हà¥à¤†. अधिकतर जगहों की जानकारी वेबसाईट से ली गयी है, à¤à¥‚लचूक माफ़.
आप सà¤à¥€ का धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥
Dear Rakesh,
Wonderful, very good writing style . Hope I will see your next post very soon.
Thanks and Regards
Dear Surinder,
Thanks for the encouragement. Sure will come up with a new yatra.
तपोवन क्यों नहीं गये? जाना चाहिये था।
नीरज जी जाना तो मैं चाहता था पर, फ़ोन की सुविधा ना होने के कारण अपने ग्रुप का पता नहीं था की वो कब गंगोत्री पहुचेगे. इस लिए वापस आना पड़ा
कोई बात नहीं। अगली बार जाओगे तो तपोवन भी जरूर जाना।
बहुत अच्छा व मनोरंजक लेख था…
अगर तपोवन जाओ तो नीरज की सलाह ले लेना…आप बेशक पहाड़ी हो पर पहाड़ो का वो Expert है
गंगोत्री में जहाँ गढ़वाल मंडल का होटल हैं वहाँ से एक रास्ता पांडव गुफा को जाता है , रास्ता काफ़ी सुंदर है |
पौड़ी से 10-12 km दूर है खीरसु , बहुत ही सुंदर जगह है , मोका मिले तो ज़रूर |
राकेश जी ,
बहुत बढ़िया लेखन सीधा सरल वर्णन और साथ में जानकारी से भरपूर .
धन्यवाद .