पिछली पोस्ट से आगे…..
हम सब इतने खुश हुये की बिना कुछ पूछे ताछे बस निकाल पड़े, चलते चलते लगभग 2 किमी बाद एक गाँव मैं पहुचे जहां पता चला की टाईगर फॉल तक सिर्फ आधे घंटे मैं पहुच जाओगे। अगर कोई जाना चाहे तो उस गाँव से कोई गाइड वागेरह भी मिल सकता हैं, या फिर होटल वाला उसका इंतेजाम करा देंगे। और यहीं हमसे गलती हो गयी हमको लगा की शायद थोड़ी दूर ही होगा और आसानी से पाहुच जाएंगे। लेकिन जब चलते चलते शाम हो गयी तो पता अपनी गलती का पता चला लेकिन रास्ता इतना मनभावन था की बिलुकल पछतावा नहीं हो राहा था। जो लोग ट्रेक्किग कर चुके हैं या जाते रहते हैं उन्हे मालूम ही होगा की ऐसे रास्तों पर यह नजारें ही थकान उतारते हैं, और जब थक जाते हैं तो आगे बढ्ने की हिम्मत भी इन्ही से मिलती हैं। खैर, कहने को तो यह ट्रेक्किग कुछ भी नहीं थी, लेकिन हम लोगों के लिए तो बहुत थी। करीब 2-3 घंटे के बाद भी जब कहीं कुछ नहीं दिखा तो थक हार कर वहीं पसर गए फिर सोचने लगे की शायद या तो रास्ता भटक गए हैं या फिर कोई छोटा मोटा झरना होगों को हमे नहीं दिख रहा॥ दरअसल उन पहाड़ियों से पूरा नज़ारा तो दिख रहा था बस वही झरना नहीं दिख रहा था। फिर हम लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ और वापस लोटने को निशचय किया तभी एक बूढ़े बाबा मिले जिनहोने बताया की वो रोज़ ही करीबन 10 – 15 किमी इसी रास्ते पर आते रहते हैं और वो झरना थोड़ा सो नीचे होने की वअजह से नहीं दिख रहा, तभी मेरे दो दोस्त उन बाबा के साथ हो लिए जबकि हम चारो की हालत खराब थी। और हम वहीं उन लोगों का इंतज़ार करने लगे। फिर हम ने सोचा की चलो थोड़ा थोड़ा ऊपर की ओर चलते हैं जिससे हम भी कहीं ठिकाना ढूंढकर थोड़ा विश्राम कर लेंगे। वहीं ऊपर ही थोड़ा ढूंढने पर एक बुड़े बुजुर्ग की छोटी से कुटिया थी जहां जाकर थोड़ा पानी पिया और उन बाबा से वहाँ के बारे मैं बातें करने लगे।
थोड़ी देर बाद जब अंधेरा होने लगा तो हमें अब सोनू और नीरज की चिंता होने लगी क्यूंकी वो लोग अब तक नहीं आए थे। तब हम लोगों ने पहले उन्हे ढूंढने का फैसला किया। वहीं थोड़ी ऊपर एक हारा भरा घास का मैदान था तो हम लोगों ने वहीं डेरा डाल लिया और सोचा के उन दोनों का यहीं इंतज़ार करेंगे। तभी सोनू का फोन आया और उसने बताया की वो लोग ऊपर आ रहें हैं और शायद रास्ता भूलकर जंगल मैं भटक गए हैं। इसलिए हमारा वहीं इंतज़ार करना। तभी पीछे से कुछ लोगों का एक झुंड जिसमे 2-3 बुजुर्ग और कुछ नौजवान लोग थे जो अपनी गायों को नीचे ले जा रहे थे हमारे पास से गुज़रा। हम लोगों ने उनसे मदद मांगने की सोची और उनसे कहा की हमारे दो दोस्त नीचे गए थे और अभी तक वापस नहीं आए। क्या आप हमारी उनको ढूंढने मैं मदद करेंगे। वैसे कुछ भी कहों पहाड़ी लोगो का दिल बहुत बड़ा होता हैं और यह लोग हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं, उन्होने कहाँ ठीक हैं मैं अपने लड़के को भेज देता हूँ और वो तुम्हारे दोस्तों को ढूंढकर ले आएंगे। तब कहीं जाकर जान मैं जान आई, वरना हमें तो यही लगा था की अब तो इसी जंगल मैं रात काटनी पड़ेगी। अब हम लोगों को एक और मुसीबत ने आ पकड़ा और यह थी “ठंड”, क्यूंकी हम लोग दोपहर को निकले थे इसलिए गरम कपड़े नहीं लाये थे, और कपड़ो के नाम पर सिर्फ एक ट्शिर्ट थीखैर किसी तरह लकड़िया इकट्ठी कर के आग जलायी और सिकने लगे, जैसे जैसे अंधेरा बदता जा रहा था वैसे वैसे हमारी हालत भी खराब भी होती जा रही थी, एक तो ठंड ऊपर से दोस्त भी खो गए।
काफी देर इंतज़ार करने के बाद कुछ शोर सुनाई दिया, और देखा तो सोनू और नीरज उनही गाँव वाले लड़कों के साथ चले आ रहे थे, उस वक़्त उन दोनों को देखकर जान मैं जान आई अब वापस होटल चलने का समय आ गया था, सो हम सब लड़के वापस चल दिये और वो जो गाँव वाले लड़के थे पता नहीं किस स्पीड से गए के दिखने ही बंद हो गए॥ लेकिन कुछ भी हो उन लोगों ने हमारी काफी मदद की थी। अब वो गाँव भी आ गया था जो रास्ते मैं पड़ा था, टाँगे बुरी तरह थकी हुयी थी और जवाब दे रही थी लेकिन हम लोग बस चले जा रहे थे। गाँव पार करने के बाद एक बड़ा ही खतरनाक रास्ता आता हैं, जाते वक़्त तो आसानी से चले गए क्यूंकी दिन निकला हुया था लेकिन अब रात होने का कारण कुछ भी नहीं दिख रहा था। रास्ता भी ऐसा के एक तरफ गहरी खाई और दूसरी तरफ हल्की सी चड़ाई। रास्ता काफी संकरा था की सिर्फ एक आदमी ही चल सकता था, लेकिन उस समय हमें याद आई अपने अपने मोबाइल मैं टॉर्च की। इनहि टॉर्च की सहायता से हम लोगों ने दो दो के तीन ग्रुप बना लिए और सावधानी से चलने लगे। अब तीन टॉर्च थी, पहले वाले के पास तीसरे वाले के पास और पांचवे के पास। बड़ी मुश्किल से हमने वो 1-1\12 किमी का रास्ता पार किया और होटल पहुँचकर चैन के सांस ली। रात करींब 9 बजे होटल पहुंचे और धड़ाम से बिस्तरों मैं गिर गए। नीरज और सोनू तो टाईगर फॉल के दर्शन कर चुके थे इसलिए खुश थे बाकी सब एक दूसरे की गलतियाँ निकालने मैं व्यस्त हो गए। खैर खाना मंगवाया गया और खा पीकर सबने खटिया पकड़ ली।
14 ओक्टुबर – सुबह सुबह जल्दी सब उठ गए और दूर पहाड़ियों से सूरज देवता के दर्शन करने लगे, सचमुच बड़ा ही मनभावन नज़ारा था। नहा धोकर हमने होटल वाले से आस पास की जगहो के बारे मैं पूछा तो कुछ ढंग का नहीं लगा तो सबने विचार किया के चलो मसूरी चलते हैं, आज रात वहीं रुकेंगे। इसके बाद सबने नाश्ता कर के थोड़ी बहुत फोटोग्राफी करने के बाद प्रस्थान कर दिया। अब हम लोगों की मंज़िल थी यमुना पल और केंपटी फॉल, पहले ही इरादा कर लिया था की टाईगर फॉल का बदला केंपटी फॉल मैं लेंगे। नाश्ता करके तो चले ही थे इसलिए कहीं रुके नहीं॥ रुके सीधा यमुना पल जाकर जब सबको जोरों से भूक की तलब लगी। यमुना पल को पार करते ही किनारे पर दाहिने हाथ पर एक छोटी सी दुकान हैं खाने के बारे मैं यूहीं पूछ लिया तो पता चला के खाना भी मिल जाएगा॥ अब सबको भूख भी ज़ोरों से लगी थी इसलिए मांगा लिया। खाने मैं थाली थी जिसमे दाल, चावल और गोभी की सब्जी थी। और पूछने पर पता चला की मछ्ली की सब्जी भी मिलेगी और वो भी ताज़ा। दुकान के मालिक ने बताया की सीज़न मैं यहाँ पर काफी भीड़ रहती हैं जिसकी वजह से बाकी दुकानें भी खुली रहती हैं, लेकिन अब सब बंद हैं शायद बाद मैं खुल जाये |
वहाँ पर शायद राफ्टिंग भी होती होगी क्यूंकी जगह जगह बोर्ड भी लगे हुये थे। खैर खाना खाया और जब दाम पूछे तो सब दंग रह गए। एक थाली का दाम था 20 रु जिसमे दाल, चावल, गोभी की सब्जी और 4 रोटी। और 1 प्लेट फिश करी सिर्फ 50 रु की कुल मिलकर 200 -250 का खर्चा रहा होगा। जिसमे कोल्ड ड्रिंक और चिप्स वागेरह भी थे। ऐसा स्वादिष्ट खाना और इतने कम दाम में तो शायद हमने पूरे टूर में नहीं खाया। खाने वाले का शुक्रिया अदा करके हम लोग मसूरी की तरफ वापस चल दिये॥ और पहाड़ों की सुंदरता के मज़े लेते रहे। शायद भरे पेट में वो ज्यादा अच्छे लग रहे थे। शाम करीब 3 बजे हम लोग केंपटी फॉल पहुंचे और बिना एक पल गवाएँ दौड़ पड़े फॉल की तरफ, मैं तो अभी 10 दिन पहले भी आया था लेकिन तब फॉल में नहाया नहीं था इसीलिए मुझे सबसे ज्यादा जल्दी थी। 2-3 घंटे तसल्ली से हम सब झरने का आनंद लेते रहे लेकिन जैसे ही शाम बढ्ने लगी हम लोग की ठिठुरन बदने लगी और एक एक करके सब बाहर आ गए॥ अब दूसरा काम था मसूरी पहुँचकर एक अच्छा सा कमरा लेना और इस काम को सोनू बड़िया कर सकता था, क्यूंकी वो भी 2-3 बार मसूरी आ चुका था। मसूरी पहुंचर हमने “दीप होटल “ मैं एक कमरा लिया। होटल काफी अच्छा था, साफ सूथरा और पार्किंग भी थी।
केवल 700 रु में हमने एक कमरा लिया जिसमे 1 डबल बेड, एक छोटा बेड और एक सोफा सेट था। हम लोगों के लिए ये काफी था। मसूरी भी मेरा पहले देखा हुया था और मेरे दोस्तों को भी मसूरी मैं कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी। तो इसलिए सोचा के खाना खाकर ही घूमेंगे। जो मसूरी की सबसे फ़ेमस जगह थी वो तो हम देख ही चुके थे इसलिए कमरे मैं ही पड़े रहे॥ खाना खाकर हम लोग मॉल रोड घूमने निकाल पड़े॥ हल्की हल्की ठंड और ऊपर से मॉल रोड की चहल पहल। वैसे तो मॉल रोड को देखकर ऐसा लगता ही नहीं की किसी हिल स्टेशन पर हैं, लेकिन जो बात चकराता में थी वो यहा नहीं। काफी घूम घामकर अब वक़्त वापस जाकर सोने का था सो हम लोग वापस होटल जाकर अगले दिन का प्रोग्राम बनाने लगे, मेरे दोस्तों तो मसूरी कुछ खास पसंद नहीं आया था तो मुझसे बोले की कल कहीं बड़िया जगह चलेंगे और फिलहाल के लिए सो गए।
अगले दिन सुबह मसूरी से ही चाय नाश्ता करके जल्दी ही मसूरी से निकाल गए थे अगला पड़ाव था देहारादून मैं रोब्बेर्स केव जिसे हिन्दी मैं गुच्चुपानी भी कहते, खैर अब यह तो पता नहीं लेकिन जब देहारादून पहुँच तो बड़ी पूछ ताछ करने के बाद आखिर हम लोग गुच्छु पानी पहुँच ही गये। ठीक तरह से तो रास्ता याद नहीं लेकिन रोब्बेर्स केव मसूरी – देहारादून के रास्ते मैं पड़ता हैं।
गुच्चु पानी या रोब्बेर्स केव एक प्रकृतिक गुफा नुमा हैं, जो दो तरफ से ऊंची ऊंची पहाड़ियाँ हैसे घिरी हुयी हैं और कहीं कहीं रास्ता इतना संकरा हैं के सिर्फ एक ही आदमी ही निकाल सकता हैं। इस के बीच मैं एक प्राकृतिक जलधारा निकाल रही हैं, शुरुआत मैं यह जलधारा घुटनों से भी नीचे होती हैं लेकिन कहीं कहीं छाती अक भी पहुँच जाती हैं। पिछली दो बार की देहारादून की यात्राओं में मैं सिर्फ सहस्त्रधारा ही देख पाया था लेकिन जब आखिरी बार आया था तो तय करके गया था की इस बार रोब्बेर्स केव जरूर देख कर जाऊंगा॥
इस गुफा का मेरे हिसाब से कोई अंत नहीं हैं, हाँ जहां तक मैं जा सकता था गया, एक रास्ता खत्म मिलता तो उसके ऊपर से कोई और रास्ता मिल जाता। जहां भी रास्ता खत्म मिलता एक छोटा सा प्रकृतिक झरना बना होता। बस, हमने भी आव देखा न चाव और घुसते चले गए लेकिन जब लगा के अब आगे नहीं जा पाएंगे जो वहीं रुककर मजे लेने लगते।
जहां भी झरना सा मिलता या थोड़ा गहरा पानी मिलता वहीं रुककर मौज मस्ती करते॥
यह सब चलता रहता अगर घड़ी में समय न देखा होता। दरअसल हम लोगों को आज ही निकालना था और कोशिश यही थी की रात तक किसी भी तरह घर पहुंचा जाए॥ लेकिन मुझे पता था की कितनी भी कोशिश कर लो 10 – 11 बजे से पहले नहीं पहुँच पाएंगे। रोब्बेर्स केव के बाहर कुछ दुकाने भी मोजूद हैं जिनमे चाय नाश्ता और मैगी आसानी से उपलब्ध होती हैं। रोब्बेर्स केव मैं जाने का प्रति व्यक्ति 15 रु के हिसाब से टिकिट लेना पड़ता हैं। खैर शाम 4 बजे जब हम लोग थक गए तो वापस चल पड़े दिल्ली की और। रात को मुज्जफरनगर मैं खाना खाकर सुबह 3 बजे तक दिल्ली पहुँच गए॥ तो इस तरह हमारी यह यात्रा अपने समापन को आई थी हम लोग सोमवार की सुबह दिल्ली पहुंचे थे इसलिए अब सबको अपने अपने काम पर जाना था।
अगले महीने कौसनी जा रहे हैं
धन्यवाद॥
good narration with nice photos.
keep it up
thnks praveen ji..
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Very nice description, good photos Thanks.
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Hi Yogesh!
Just found out about the Robber’s caves through your post.
Will definitely go check them out next time.
aapka chakratta tour padhkar bahut achcha laga, vaise me bhi ek din ke liye chakratta gaya the May2016 me, chakratta ek cantonment area he aur bahut hi peaceful he. chakratta kewal ek ya do din ke liye theek he fir aadmi boar ho jaata he.