ब्रज भूमि भ्रमण : मथुरा-वृंदावन के कुछ दर्शनीय स्थल

भारत पूरे विश्व में ‘त्यौहारों का देश’ नाम से विख्यात है. भारत देश में हर ऋतु के अनुसार, हर विचार-भावना एवं समाज के हर वर्ग के लिए त्यौहारों की व्यवस्था है. देश में मनाये जाने वाले विविध उत्सव एवं त्यौहार हमारे समाज के हर वर्ग हर जाति-समुदाय के अनेक लोगों को एक साथ हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण करके एक सूत्र में संगठित करने का कार्य करते हैं. हमारे त्यौहार ही हमारी संस्कृति, परंपरा, इतिहास एवं सामजिक मूल्यों को प्रगाढ़ता प्रदान करते हुए देश को संगठिन करने में विशेष योगदान करते हैं.

अलग-अलग स्थानों पर अनेक प्रकार के त्यौहार प्रसिद्ध हैं जैसे पंजाब में लोहड़ी एवं बैसाखी, वेस्ट बंगाल में दुर्गापूजा, असम का बिहु उत्सव, महाराष्ट्र का गणेश चतुर्थी, दक्षिण भारत के ओणम, पोंगल इत्यादि त्यौहार अपने स्थानों के नाम के साथ पूरे देश भर में प्रसिद्ध हैं. सामूहिक रूप से विशाल जनसमूह द्वारा मनाये जाने वाले कुछ त्यौहार तो अपने देश में ही नहीं बल्कि समूचे विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. इन त्यौहारों के साथ ही उससे सम्बंधित स्थान विशेष भी त्यौहार के साथ जुड़े होने से विश्वभर में स्वयं ही प्रसिद्ध हो जाते हैं.

भारत के अनेक त्योहारों में रंगों के पर्व होली का अपना विशेष महत्त्व है बच्चे-बुड्ढे, स्त्री-पुरुष सभी इस पर्व को उत्साह, उल्लास एवं हर्ष के साथ मनाते हैं. होली का वास्तविक दर्शन ब्रज क्षेत्र में किया जा सकता है. वसंत पंचमी से ही ब्रज क्षेत्र में होली का वातावरण बन जाता है. होली से आठ दिन पूर्व यानि होलाष्टक प्रारम्भ होते ही पूरा ब्रज क्षेत्र होली के रंग में पूर्ण रूप से रंग जाता है. नन्द गाँव कि होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाना की लठमार होली आदि अलग-अलग दिवसों पर अलग-अलग स्थानों पर होली का आयोजन बड़े धूम-धाम से किया जाता है. बरसाना की लठमार होली विश्वभर में अपने अलग स्वरुप के कारण प्रसिद्ध है. देश-विदेश से इस आयोजन को देखने के लिए लाखों कि संख्या में लोग बरसाना में एकत्रित होते हैं.

वैसे तो ब्रज क्षेत्र के मथुरा – वृंदावन – गोवर्धन आदि स्थानों पर अनेक बार जाने का सौभाग्य मिला परन्तु होली के समय में इस क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए इस बार अपनी घुमक्कड़ी की दिशा ब्रज क्षेत्र की ओर करने का विचार मन में आया और तैयारी होने लगी होली के रंग में रंगे ब्रज क्षेत्र के दर्शन की. शनिवार 8 मार्च, 2014 को ऑफिस के बाद शाम को दिल्ली से ट्रैन द्वारा मथुरा पहुँच कर अपने ससुराल पक्ष के बुआ जी-फूफा जी के मथुरा जंक्शन से कुछ कदमों की दूरी पर रेलवे बंगलो में पहुँच कर परिजनों से मेल मिलाप के पश्चात् रात्रि विश्राम किया.
अगले दिन रविवार 9 मार्च, 2014 को प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर मथुरा वृंदावन के दर्शनीय स्थलों के भ्रमण की तैयारी करने लगे.

रेलवे बंगलो में घुमक्कड़ी से पहले बच्चे मस्ती के मूड में.

रेलवे बंगलो में घुमक्कड़ी से पहले बच्चे मस्ती के मूड में.



रेलवे बंगलो में घुमक्कड़ी से पहले बच्चे मस्ती के मूड में.

रेलवे बंगलो में घुमक्कड़ी से पहले बच्चे मस्ती के मूड में.

भगवान् श्री कृष्णा की नगरी मथुरा में भ्रमण करने के लिए सर्वप्रथम भगवान् श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन किये. श्रीकृष्ण जन्मभूमि में कैमरा, मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान ले जाना प्रतिबंधित है

श्रीकृष्ण जन्म स्थल के दर्शन के पश्चात् कुछ समय जन्मभूमि प्रांगण में व्यतीत करने के पश्चात अन्य स्थलों के दर्शन व भ्रमण की रूपरेखा अपने मन में तैयार की. दोपहर 12 बजे के बाद मथुरा-वृंदावन के प्रायः सभी मंदिर सांय 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दिए जाते हैं. समय अधिक होने के कारण मथुरा के अन्य मंदिरों के दर्शन के लिए शाम 4 बजे तक प्रतीक्षा करनी पड़ती इसलिए मथुरा के अन्य मंदिरों के दर्शन का विचार छोड़ना पड़ा. ब्रजभूमि छोटे-बड़े अनेक दर्शनीय धार्मिक स्थलों को अपने पटल पर संजोये हुए है. यहाँ पग-पग पर अनेक आकर्षक मंदिर, आश्रम, मठ, धर्मशाला आदि धार्मिक स्थल हैं. सीमित समय में सभी स्थलों के दर्शन कर पाना सम्भव ही नहीं है इसलिए आगे के लिए कुछ मुख्य व प्रसिद्ध स्थलों के दर्शन का ही कार्यक्र्म बनाया.

मथुरा के बाद अब वृंदावन के रमणीय स्थल की और प्रस्थान किया. वृंदावन का कण-कण भगवन कृष्ण की लीलाओं से ओत-प्रोत है इसी कारण वृंदावन को बृजक्षेत्र का हृदय भी कहा जाता है. वृंदावन पहुँचने के बाद भी अभी मंदिरों के खुलने में बहुत समय शेष था. समय का सदुपयोग करने के लिए वृंदावन के निधिवन का विचरण कर लेना उचित लगा.

वृंदावन के निधिवन का प्रवेश व निकास द्वार.

वृंदावन के निधिवन का प्रवेश व निकास द्वार.

वृंदावन का निधिवन अपने आप में अनेक रहस्य, रोमांच और धार्मिक किम्वदंतियां संजोये हुए है. वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में स्थापित विग्रह (श्री बांके बिहारी जी की मूर्ती) का प्राकट्य स्थल है निधिवन. कहा जाता है कि निधिवन में भगवन श्रीकृष्ण राधाजी के साथ आज भी रासलीला करते हैं. भगवान् के लीलाकाल के समय किसी भी प्राणी का निधिवन में प्रवेश वर्जित है. कहा जाता है कि दिन के समय निधिवन में वास करने वाले बन्दर, पक्षी और अन्य प्राणी यहाँ तक कि चींटी आदि सूक्ष्म प्राणी भी रासलीला काल में इस स्थान से कहीं अन्यत्र चले जाते हैं.

वृंदावन के निधिवन की रज (मिटटी) में सराबोर बालदल.

वृंदावन के निधिवन की रज (मिटटी) में सराबोर बालदल.

वृंदावन के निधिवन में स्वामी हरिदास जी समाधी स्थल.

वृंदावन के निधिवन में स्वामी हरिदास जी समाधी स्थल.

निधिवन में विचरने के पश्चात् अभी भी मंदिरों के द्वार खुलने में पर्याप्त समय था. वृंदावन में आकर वृंदावनी लस्सी का मजा अगर नहीं लिया तो वृंदावन का भ्रमण अधूरा ही है. भूख भी लगी हुए थी तो कुछ खाने-पीने के साथ वृंदावनी लस्सी का मज़ा उठाने का यही सही समय था. बाकि बचे समय को श्री यमुना जी का तट पर व्यतीत करने का विचार कर पग यमुना तट की ओर चल पड़े. श्री यमुनाजी भगवान् श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं की साक्षी है. श्री यमुनाजी के तट पर बैठकर भगवन की चीर-हरण, कालिया-दमन आदि अनेक लीलाओं के दृश्य आँखों के सामने तैरने लगते हैं. श्री यमुना जी कि रेत में बच्चे क्रीड़ा करते हुए गीले रेत में सराबोर होकर आनंद के खजाने को खोदने लगे. और धीरे-धीरे समय मंदिरों के द्वार खुलने का हो गया.

वृंदावन श्री यमुनाजी के तट पर रेट और जल क्रीड़ा मग्न बच्चे.

वृंदावन श्री यमुनाजी के तट पर रेट और जल क्रीड़ा मग्न बच्चे.

वृंदावन श्री यमुनाजी में नौका विहार.

वृंदावन श्री यमुनाजी में नौका विहार.

सबसे पहले वृंदावन के प्राचीन श्री बांके बिहारी जी मंदिर के दर्शन के लिए मंदिर द्वार पर द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगे. बांके बिहारी मंदिर भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण सन 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था. वृंदावन में आने वाला प्रत्येक दर्शनार्थी इस मंदिर में श्री बांके बिहारी जी के दर्शन अवश्य करके अपने यात्रा को सफल करने का प्रयत्न करता है.

वृंदावन श्री बांके बिहारी जी मंदिर का मुख्या प्रवेश द्वार.

वृंदावन श्री बांके बिहारी जी मंदिर का मुख्या प्रवेश द्वार.

अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में कृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन टेम्पल) जो कि अंग्रेजों का मंदिर नाम से भी प्रसिद्द है. ISCON के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद जी के आदेशानुसार इस मंदिर का निर्माण सन 1975 में करवाया गया. विश्वभर के प्रसिद्द इस्कॉन मंदिरों में से एक वृंदावन का ये एक अतिप्रसिद्ध मंदिर है. वर्षभर इस मंदिर में पूरे विश्व के कृष्ण-भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है. मंदिर में प्रवेश करते ही स्वामी प्रभुपाद जी के महामंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) का मानसिक जाप स्वतः ही प्रारम्भ हो जाता है. मंदिर में सतत चलने वाला महामंत्र का संकीर्तन आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर दर्शन के साथ नर्तन करने को विवश कर देता है.

वृंदावन श्री कृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन टेम्पल) का दृश्य (साभार विकिपीडिया)

वृंदावन श्री कृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन टेम्पल) का दृश्य (साभार विकिपीडिया)

राधा वल्लभ मंदिर, रंगजी मंदिर, श्री वैष्णो देवी मंदिर, प्रेम मंदिर अन्य अनेक वृंदावन के प्रसिद्ध आकर्षक मंदिर हैं. दिन भर के भ्रमण की थकान के बाद बच्चों के साथ अन्य मंदिरों के दर्शन का विचार त्यागना पड़ा और रात्रि विश्राम हेतु वापिस मथुरा की ओर प्रस्थान किया.

(बरसाना नंदगाव कि यात्रा का विवरण आगामी लेख में)

11 Comments

  • Avtar Singh says:

    Hi Munesh ji

    Its always been interesting to visit Mathura and its surrounding areas, although clumpsy and crowded but still a nice place to visit.

    Lassi and kachodies are the treasures of Mathura-Vrindavan.

    I think you reached little early to miss the Holi celebrations there. Waiting for the next…..

  • MUNESH MISHRA says:

    Thank you Avtar Singh for commenting on the post.

  • Mukesh Bhalse says:

    Interesting and engaging post with captivating pics……Thanks for sharing.

  • Nandan Jha says:

    Thank you Munesh for sharing your experience with us. There is a ‘blue’ tint in some of the photos. Have you done some processing/treatment using any software ? I guess the quality is not that high, may be the lens is not clean enough.

    I am not a big fan of Mathura Vrindavan :-) but for sure this place attracts tons of people. Thanks again.

  • MUNESH MISHRA says:

    Thank you Nandan ji for your encouraging words. Photo quality of the both posts related to Brijbhoomi are poor because at that time I had a serious problem with my camera and took photos with my mobile phone (3 mps only. There is some editing also.

    Places of Brijbhoomi Mathura, Vrindavan, Govardhan etc. are very attractive and refreshing for ghumakkars, religious people and nature lovers from India as well as foreigners.

    I am used to go to these places frequently with family and alone as well, as time and conditions permit.

    Regards.

  • Dipak says:

    Hi everyone!!
    I am a big fan of mathura vrindavan. I have done 3 times 84 kos brij parikrama. Most of the ashrams charge you Rs.10000/- for 84 koss brij parikrama which last 40 days. But our ashram doesn’t charge any money. I am not advertising anything here. I am just helping those people who have deep spiritual inclination and starving to know more about the spiritual world. 84 kos brij parikrama is meant for those only. If you need any help then I can help you. It is very very tough. So think deeply before taking 84 kos brij parikrama which last 40 days in the month of october and november. Only our ashrams give complete descriptive 84 koss braj parikrama. Other ashrams who charge makes short cut methods and complete the parikrama. Those who are interested to take braj parikrama can contact me and I will help you. Only spiritually inclined people should contact me. Rest please don’t take this as it time consuming and health wise also 80 percent of men women fall sick during these 40 days. If you really want to know about MATHURA VRINDAVAN THEN YOU MUST DO 84 KOS BRIJ PARIKRAMA. Else you will not know anything about the truth. That is what I wanted to say. It runs very very deep. Only people who are doing research and fallen in love with divinity need to contact me. Rest excuse. Thanks

  • branavan dham apar jape ja radhe-radhe
    vishnu datt pandey

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