मन में आज एक विशेष ऊर्जा और उमंग उमड़ रही थी जो अनायास ही मुझे पर्वतों और जंगलों की खूबसूरत दुनिया में ले जाने को उत्सुक हुए जा रहा था। यह कैसा उत्साह है जो तड़के ही मेरी आँखों से नींद को उड़ा ले गया ? इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए मेरी आँख खुल गयी और मैं पूरी स्फूर्ति के साथ जाग गया। अधिक पहेलियाँ न बुझाते हुए अपने पाठकों को बता देता हूँ की यह हम दोनों (मैं और मेरी अर्धांगिनी) की विवाहोपरांत पहली उत्तराखंड यात्रा थी जिसे प्रारम्भ करने के लिए हमने दिनांक 10 दिसंबर 2021 का दिन चुना था। हमारी यह चार दिनों की यात्रा दिल्ली से शुरू होकर नैनीताल में पूर्ण होनी थी जिसकी तैयारी हमने केवल एक दिन पहले ही की थी और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह की उत्तराखंडी समाज से संबंधित होने के बावजूद हम दोनों में से किसी ने भी इससे पूर्व नैनीताल भ्रमण नहीं किया था। अतः एक बात तो तय थी की हमारी यह यात्रा रोचक होने के साथ-साथ अत्यंत आनंददायक भी होने वाली थी । जून में ‘रोका’ और दिसंबर में ‘विवाह’ काज संपन्न होने के बाद अब बारी थी स्वयं के लिए कुछ समय निकालने की जिसे हम अपनी कोड लैंग्वेज में ‘वी टाइम’ कहते है। वैसे भी पिछले छह माह में विवाह की तैयारियों में जो आपा-धापी और भाग-दौड़ हुयी उसके तत्पश्चात कुछ सुकून के पलों के भी अपनी ही महत्ता होती है। और इस बार तो दिल्ली से बाहर निकलने में पूरे ढाई वर्ष का समय भी लग गया क्यूंकि अधिकांश समय तो वर्तमान आपातकालीन स्थितियों के मद्देनजर हिम्मत जुटाने में ही निकल गया था की परिवार के साथ कहीं जाना चाहिये अन्यथा नहीं ? खैर ईश्वर की कृपा से अब अल्पावधि के लिए ही सही किन्तु हालात नियंत्रण में थे और प्रशासन की तरफ से भी अब काफी मामलों में प्रजा को, नियमों का पालन करते हुए, छूट दी जा चुकी थी।
तय दिन पर प्रातः 8 बजे हम दोनों ने अपनी दिल्ली से नैनीताल की यात्रा प्रभु का नाम लेते हुए और बारापुला मार्ग से होते हुए आरम्भ की । यात्रा पूर्व हमने अपने टीकाकरण के प्रमाणपत्र की सॉफ्ट कॉपी अपने-अपने मोबाइल में सेव करके रख ली थी और कुछ जरुरी पहचान पत्र भी साथ में रख लिए थे। हमेशा की तरह एक दिन पहले ही सारे कपडे अपने ट्राली बैग में रख लिये थे और यातायात के साधन के रूप में वही अपनी विश्वसनीय वैगन-आर साथ में थी जिसकी टंकी यात्रा वाले दिन ही फुल करवा ली थी। हमारी यह यात्रा दिल्ली से होते हुए गाजियाबाद-हापुड़-मोरादाबाद-हल्द्वानी जैसे प्रसिद्ध नगरों से चलती हुयी नैनीताल में जाकर संपन्न हुयी जिसमे हमे लगभग 9 घंटो का समय लगा। यात्रा में समय थोड़ा अधिक लगा किन्तु चाय, फोटोग्राफी, शिकंजी और लंच के लिये हमने तीन बार अल्पावधि ब्रेक लिये थे जिसमे लगभग डेढ़ घंटे यूँ ही निकल गये।
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खैर शाम होते होते हम पर्वत मार्ग पर अपनी गाडी दौड़ा रहे थे और ठीक छह बजे हमारी यात्रा नैनीताल में जाकर समाप्त हुयी। अब बारी थी अपने रहने के लिये एक अच्छा सा होटल देखने की जो की रात के अँधेरे में मिलना थोड़ा मुश्किल था किन्तु असंभव नहीं। माल रोड पर एंट्री फी देते हुए एक महाशय ने बताया की उनका ज़ू रोड पर ‘विक्रांत’ नाम से एक बेहद खूबसूरत होटल है जिसमे स्पेसियस रूम होने के साथ-साथ फ्री पार्किंग, वाई फाई, पिक एंड ड्राप और इलेक्ट्रिक ब्लैंकेट आदि जैसी आवश्यक सुविधाएं भी है। जहाँ तक किराये की बात है तो ऑफ सीजन होने के कारण मात्र रुपये 2200 प्रतिदिन के हिसाब से आपको रूम मिल जायेगा। हम तो जरूरतमंद थे ही इसलिए बिना किसी तामझाम में पड़ते हुए हमने उन महाशय पर भरोसा किया और अपनी गाडी को सीधे उनके होटल में ले गये जहाँ रूम देखते ही, जो की वास्तव में चार लोगों हेतु एक फॅमिली रूम था, पहली नजर में ही हमे पसंद आ गया और रूम से बाहर का नयनाभिराम दृश्य तो और भी ज्यादा आकर्षक और खूबसूरत था जिसमे पूरी नैनी झील दिखाई पड़ती थी। आज दिनभर की थकान थी इसलिए रात्रि में बाहर जाने की कोई योजना तो नहीं थी अतः हमने होटल कक्ष में ही रात्रि का भोजन मंगवा लिया था और फिर खा-पी कर गहरी नींद में सो गये इस उम्मीद के साथ की कल की सुबह एक और नयी यात्रा पर जाना है जिसमे हिमालय दर्शन और कैंची धाम को प्राथमिकता दी जायेगी।
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योजनाबद्ध तरीके से अगले दिन की शुरुआत हुयी और माल रोड पर इडली, डोसा, सांभर और चाय का नाश्ता करने के बाद सबसे पहले हमने एक नौका (नाव) के द्वारा नैनी झील का भ्रमण किया जिसका शुल्क रुपये 210 था। नौका वाले भैया ने चप्पू के द्वारा हमें पूरी नैनी झील घुमायी जिसमे हमने शीतल पवन और गुनगुनी धूप दोनों का ही आनंद उठाया। तत्पश्चात माल रोड से ही एक बुलेट बाइक किराये पर लेकर अपनी आगे की यात्रा का श्री गणेश किया । अब बात करते हैं बाइक सम्बन्धी फॉर्मलिटीज और दस्तावेजों की। यहाँ पर आपको स्कूटी से लेकर बुलेट बाइक तक सबकुछ किराये में मिल जाता है जिस पर सवारी करते हुए आप नैनीताल और उसके आस पास की काफी जगह एक्स्प्लोर कर सकते हो। बाइक किराये पर लेने हेतु आपके पास एक वैध ड्राइविंग लाइसेंस और पहचान पत्र होना अनिवार्य है। हमे बुलेट बाइक रुपये 800 के हिसाब से एक दिन के लिये मिली थी जिसमे पेट्रोल का खर्चा शामिल नहीं है और ग्राहक को इसे अपनी जेब से देना होता है। हमारा ज्यादा दूर का कार्यक्रम नहीं था और पचास किलोमीटर के दायरे में ही हमे घूमना था अतः रुपये चार सौ का पेट्रोल बाइक में डलवाया और सीधे पहुंचे हिमालय दर्शन हेतु। नैनीताल की सड़के बेहद साफ़ और मजबूत हैं किन्तु रास्ते घुमावदार और ऊँचे नीचे हैं जिसकी वजह से सावधानी पूर्वक चलने में ही भलाई है। खैर पर्वतमालाओं में अपनी बाइक को दौड़ाते हुये हम दोनों कुछ ही देर में हिमालय दर्शन पॉइंट पर पहुँच गये जहाँ से हिम आच्छादित हिमालय पर्वतमाला का बेहद चमत्कारी दृश्य दिखाई पड़ रहा था। इस दृश्य को देखते ही हम दोनों तो कुछ पलों के लिये मंत्रमुग्ध हो गये । उसके बाद यहीं पर फोटोग्राफी का दौर चला और मैग्गी विथ चाय का लुत्फ़ भी हमने लिया। उसी दौरान हमारी मोहतरमा को एक सफ़ेद घोडा दिखाई दिया जिस पर अन्य पर्यटक बैठकर अपनी फोटो खिंचवा रहे थे, बस अब क्या था उन्होंने भी जिद्द पकड़ ली की मुझे भी इस घोड़े पर बैठ कर फोटो लेनी है । आज्ञा का पालन करते हुये घोड़े वाले से बात की गयी और वो भलामानस बोला की मात्र एक सौ रुपये दीजिये और फोटो लीजिये। सुनते ही मैंने तो तुरंत मना कर दिया की इतनी सी बात के इतने रूपए किन्तु श्रीमती जी ने अपने कर्कश स्वर में उस भलेमानस को पचास रुपये में मना लिया। अब बचने का कोई विकल्प न देखते हुये मैंने भी हामी भर दी और इस प्रकार हमारी घोडा सेल्फी का लक्ष्य प्राप्त हुआ।
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इस पूरे प्रकरण के पश्चात् अब हमने अपनी बुलेट बाइक को कैंची धाम की तरफ मोड़ दिया और 20 -22 किलोमीटर की खूबसूरत यात्रा करते हुये और नयनाभिराम दृश्यों को अपनी आँखों में सहेजते हम सीधे पहुंचे श्री कैंची धाम। यहाँ पर नीब करौरी बाबा जी का एक छोटा सा मंदिर है जिसमे श्रद्धालु अपनी भक्ति भाव से दर्शन करने आते है और बाबा से अपनी मन्नत मांगते हैं। मंदिर प्रांगण के समीप ही एक स्वच्छ जल की नदी बहती है जो की इस पूरे स्थान को एक दैवीय रूप प्रदान करती है । मंदिर के भीतर फोटोग्राफी निषेध है इसलिए हमने अधिकतर फोटोज मंदिर से बाहर आकर ही लिये । मंदिर के आस पास जलपान की भी अच्छी सुविधा है जिसमे आपको हर प्रकार का व्यंजन मिल जाता है और पेट पूजा बड़ी ही आसानी से हो जाती है। शाम का वक्त था और हमे ज्यादा भूख भी नहीं थी अतः हमने स्प्रिंग रोल्स, गुलाब जामुन और चाय का ही आर्डर किया और कुछ देर आराम करने के बाद अपनी बुलेट बाइक से वापिस नैनीताल की तरफ चल पड़े । शाम को छह बजे हम नैनीताल पहुंचे और माल रोड पर सबसे पहले अपनी बाइक को वापिस किया फिर दो कप कॉफ़ी पी क्यूंकि रात को यहाँ टेम्परेचर बहुत डाउन हो जाता है जिसमे ठिठुरन बढ़ जाती है। घर के बाकी सदस्यों के लिये कुछ छोटे मोटे गिफ्ट लेने के बाद अब बारी थी अपने रूम में जाकर रात्रि भोजन और उसके बाद आराम करने की। अगले दिन के लिये भी तो योजना बनानी थी हमे इसलिए बिना समय गंवाए हम सीधे अपने होटल पहुंचे और खा-पी कर सो गये।
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अगले दिन प्रातः नहा-धो कर रूम में ही परांठे और चाय का आर्डर किया जिसका सेवन करने के पश्चात आज हमने माँ नयना देवी जी के दर्शन हेतु मंदिर जाने का निर्णय लिया । माल रोड पर निकलते ही अनायास ही मन एक बार फिर से नौका के प्रति आकर्षित हो गया और इस बार मैंने नौका स्वयं ही चलाने का निर्णय लिया । यह एक पैडल बोट थी जिसे दो लोग मिलकर आसानी से चला सकते है। नौका को नियंत्रण में रखने हेतु एक छोटा सा हैंडल भी होता है जो नौका को दायें बायें घुमाने का कार्य करता है। लगभग एक घंटे तक इस सफर का भी लुत्फ़ लेने के बाद अब हम कदमताल करते हुये पहुंचे माँ नयना देवी जी मंदिर। झील के किनारे बना हुआ यह मंदिर बेहद शांतिपूर्ण और आकर्षक है । यहाँ पर पहुँचते ही आपको माँ की शक्ति और स्वरूप की अनुभूति होने लगती है जिसका शब्दों में विवरण तो नहीं किया जा सकता किन्तु आप स्वयं वहां जाकर इस दैवीय शक्ति का अनुभव कर सकते हैं। माँ के दर्शन बहुत ही सुगमता से हो गये और पूरा मंदिर प्रांगण केवल पर्यटकों से ही भरा हुआ था जिसमे अधिकांश पर्यटक ख़ुशी ख़ुशी फोटोग्राफी में लगे हुये थे । हमने भी अपने मोबाइल का सदुपयोग करते हुये फोटोग्राफी में आपने हाथ आजमाये और धड़ाधड़ पूरे मंदिर में सेल्फीज़ ले डाली । मंदिर के समीप ही कुछ दुकानें हैं जिनमे जलपान के साथ साथ गर्म कपडे भी मिल जाते हैं । यदि आप को कुछ खरीदने में रूचि हो तो आप जरूर यहाँ से शॉपिंग कर सकते हैं, किन्तु मोलभाव अवश्य करें क्यूंकि अक्सर स्थानीय बाजार में दाम बढ़ा-चढ़ा कर ही बताये जाते हैं ।
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कुछ समय के बाद यहाँ से हम आगे बढ़ गये अपने अगले डेस्टिनेशन की तरफ जो की नैनीताल ज़ू था। नैनीताल ज़ू में जाने के लिये आपको सरकारी गाडी में जाना होता है जो की माल रोड से आपको पिक करके ज़ू से 100 मीटर की दूरी पर ड्राप करती है । यह मात्र 3 -4 मिनट का सफर है जिसमे आपको टिकट लेकर अपनी बारी का इंतज़ार करना होता है । ज़ू पहुँचते ही ही आपको वहां पर भी नाममात्र एंट्री शुल्क देना होता है जिसके बाद आप वन्य जीवों के स्थान में प्रवेश कर सकते है। ज़ू के बारे में एक बात बता दूँ की इसके भीतर आपको समतल सड़क नहीं मिलेगी और पूरे ज़ू में केवल ऊँची नीची सड़के ही हैं जिनमे चलते हुये दम फूल जाता है। बुजुर्गों के लिये तो यह बिलकुल भी सुविधाजनक नहीं है क्यूंकि जवानों को ही हाँफते हुये ज़ू भ्रमण करना पड़ता है । हालाँकि यहाँ आप टाइगर को बहुत ही समीप से देख सकते हो जो आपको जिम कॉर्बेट पार्क में कभी नहीं दिखाई देता। इसी तरह अन्य वन्य जीवों को भी देखा जा सकता है जो आपसे केवल एक लोहे की जाली जितनी दूरी पर ही होते है। वैसे हमारा होटल ज़ू रोड पर ही था इसलिए वापसी में हमने सरकारी गाडी का इंतज़ार नहीं किया और दो कप कॉफ़ी पीते हुये पैदल ही अपने होटल में पहुँच गये जिसमे हमे पांच मिनट से भी कम समय लगा। अपने रूम में आकर पहले तो हमने रात्रि भोजन किया और उसके बाद रोज के नियम का अनुसरण करते हुये आराम से सो गये।
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अगली सुबह जब नींद खुली तो पता चला की आज हमारा नैनीताल में एक दिन और शेष है जिसमे हमे न तो कहीं घूमने जाना है और न ही कोई नयी जगह एक्स्प्लोर करनी है अतः हमने आज माल रोड पर बैठकर धूप सेकने का सोचा और तैयार होकर बाहर निकल गये। लेकिन यहाँ हमारी योजना उतनी साकार नहीं हो पायी क्यूंकि आज मौसम थोड़ा बेईमान हो रहा था और आसमान में बादल लगे हुये थे। खैर फिर भी हमने बाहर जाने का तय किया और टहलते हुये नयना देवी मंदिर के बाहर तक पहुँच गये ताकि घरवालों के लिये कुछ लिया जा सके । खैर हमे ज्यादा कुछ तो नहीं लेना था इसलिए कुमाऊं वूलेन शॉप से ही दो लेडीज स्टॉल लिये (माँ और सासूमाँ के लिये) और कुछ समय के बाद यहाँ से हम आगे बढ़ गये। आज का दिन केवल टहलने के लिये निर्धारित था अतः लगे हाथ हमने निशानेबाजी में भी हाथ आजमा लिया और कुछ स्ट्रीट फ़ूड भी चख लिये। पूरा दिन यूँ ही माल रोड पर घुमते हुये और झील को निहारते हुये हमने इस सर्द दिन का लुत्फ़ उठाया और शाम होते-होते वापिस अपने होटल में चले गये ताकि अगले दिन अपनी दिल्ली यात्रा की भी तैयारी करने का समय मिल जाये। आज रात का खाना भी हमने होटल में ही लिया क्यूंकि इनका खाना अत्यंत साधारण किस्म का था अर्थात सामान्यतः बाहर का खाना बहुत मसालेदार होता है किन्तु होटल विक्रांत का खाना कुछ-कुछ हमें घर के खाने के जायके की याद दिला रहा था ।
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हमारी नैनीताल की यह यात्रा दिनांक 10 दिसंबर को दिल्ली से शुरू हुयी थी और दिनांक 14 दिसंबर को हमने वापिस दिल्ली जाने के लिये अपनी यात्रा का आग़ाज़ किया। हमारी यह चार दिवसीय यात्रा छोटी होने के साथ बेहद सफल भी रही जिसमे जैसा हमने सोचा था वैसा ही हमे आनंद भी आया और रही बात उत्तराखंड पर्यटन की तो एक लम्बे अंतराल के पश्चात् शहर से बाहर निकलने का एक अलग ही रोमांच होता है जो की हमे भी महसूस हुआ इस पूरे सफर के दौरान। इस तरह हम दोनों फिर से 9 घंटे की सुगम यात्रा करते हुये वापिस अपने घर पहुँच गये और भगवान् को धन्यवाद देते हुये हमने अपनी इस यात्रा को विराम दिया ।
अगले यात्रा वृतांत के आने तक सभी पाठकों को नमस्कार।
What a post Arun Bhai. Sitting in Noida, these eye refreshing phots are giving me new energies and urging to plan a travel.
Thank you so much Nandan Sir.
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Thanku once again