तख़्त सचखंड श्री हजुर साहिब गुरुद्वारा नांदेड़/Sachkhand Gurudwara Nanded

सभी घुमक्कड़ साथियों को  मेरा सप्रेम नमस्कार. एक बार फिर उपस्थित हूँ मैं आपलोगों के सामने अपनी नूतन धर्म यात्रा के अनोखे अनुभवों के साथ. अपनी ज्योतिर्लिंग यात्राओं के क्रम में पिछले वर्ष सम्पन्न की गई श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा के बाद अगली ज्योतिर्लिंग यात्रा के रूप में हमने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित दो ज्योतिर्लिंगों औंढा नागनाथ और परली वैद्यनाथ को चुना. इन स्थलों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए जब मैं गूगल महाशय की शरण में गया तो उन्होंने बताया की दोनों ज्योतिर्लिंग नांदेड शहर के आसपास हैं. नांदेड का नाम पहले भी कई बार सुना था लेकिन ज्यादा जानकारी नहीं थी, अपनी सर्च के दौरान नांदेड के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, और पता चला की यह शहर सिक्ख धर्म एक के एक अति महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विश्व भर में प्रसिद्द है, अतः मैंने भी इस आस्था के इस केंद्र को अपने यात्रा नियोजन में शामिल कर लिया. समय के लिहाज से मेरी यह यात्रा चार दिन की एक संक्षिप्त यात्रा थी,

इन चार दिनों में से भी अधिकतर समय तो ट्रेन तथा बसों में सफ़र करते हुए कटना था. खैर विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार विमर्श करने के बाद मैंने अपनी यात्रा के लिए सही समय पर आवश्यक रेलवे रिजर्वेशन करवा लिए.

25  जनवरी की रात को 8 :50 बजे हमारे नजदीकी शहर महू से हमें अकोला के लिए ट्रेन में बैठना था अतः अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम करीब 6 :00 बजे हम सब (मैं, कविता,संस्कृति एवं शिवम) अपनी कार से महू के लिए निकल पड़े तथा करीब 7 :30  बजे महू पहुंचकर रेलवे स्टेशन के बाहर पार्किंग ज़ोन में कार पार्क करके, भोजन वगैरह करने के बाद 8:00 बजे हम ट्रेन में बैठ गए, तथा ट्रेन अपने नियत समय पर चल पड़ी.

अपनी प्लानिंग के अनुसार मैंने अकोला से नांदेड के लिए सुबह  9 :30 बजे निकलने वाली काचिगुड़ा एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा लिया था. हमें महू से अकोला वाली मीटर गेज की ट्रेन ने अपने समय से दो घंटे देरी से पहुँचाया, और तब तक हमारी अगली ट्रेन जिसमें मैंने नांदेड तक रिजर्वेशन करवाया था वह निकल चुकी थी. अब चूँकि हमारी ट्रेन तो मीस हो चुकी थी और हमारे पास बस से जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, दुरी अधिक होने की वजह से अकोला से नांदेड के लिए उस समय डायरेक्ट बस भी नहीं थी अतः किसी तरह अकोला से हिंगोली और फिर बस बदलकर हिंगोली से नांदेड शाम के 6 :30 बजे थक हार कर पहुंचे, जबकि ट्रेन से 2 :00 बजे पहुंचा जा सकता था. वैसे मेरे साथ इस तरह की ट्रेजेडी बहुत कम होती है, शायद अब तक नहीं हुई है. खैर, हम बहुत ज्यादा थक गए थे, बच्चे भी बहुत परेशान हो गए थे अतः हम जल्द से जल्द थोडा आराम करना चाहते थे अतः नांदेड पहुँचते ही सबसे पहले ऑटो लेकर, गुरूद्वारे के नजदीक ही स्थित रंजित सिंह यात्री निवास में एक कमरा बुक करा लिया तथा निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़े.

 

रंजित सिंह यात्री निवास

दिशा निर्देश

अब अपनी कहानी को यहीं पर कुछ देर विराम देकर आपको बताता हूँ कुछ नांदेड के बारे में.

नांदेडएक परिचय:

दक्षिण की गंगा कही जानेवाली पावन गोदावरी नदी के किनारे बसा शहर नांदेड़, महाराष्ट्र राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र का औरंगाबाद के बाद सबसे बड़ा शहर है, तथा हजूर साहिब सचखंड गुरूद्वारे के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. यहीं पर सन 1708 में सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी. सन 1708 से पहले गुरु गोविन्द सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए कुछ वर्षों के लिए यहाँ अपने कुछ अनुयायियों के साथ अपना पड़ाव डाला था लेकिन यहीं पर कुछ धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी. अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाये, सभी सिखों को आदेश दिया की मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें, और तभी से पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है. गुरु गोबिंद सिंह जी के ही शब्दों में:  “आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सीखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रन्थ.

शहर का परंपरागत सिक्ख नाम है अबचल नगर (अविचल यानी न हिलने वाला, स्थिर) यानी शहर जिसे कभी विचलित नहीं किया जा सकता.

तख़्त सचखंड श्री हजूर साहिब गुरुद्वारा– एक परिचय

यह गुरुद्वारा सिक्ख धर्म के पांच पवित्र तख्तों (पवित्र सिंहासन) में से एक है, अन्य चार तख़्त इस प्रकार हैं:

1.  श्री अकाल तख़्त अमृतसर पंजाब

2.  श्री केशरगढ़ साहिब, आनंदपुर पंजाब

3. श्री दमदमा साहिब, तलवंडी, पंजाब

4. श्री पटना साहिब, पटना, बिहार

परिसर में स्थित गुरूद्वारे को सचखंड (सत्य का क्षेत्र) नाम से जाना जाता है, यह गुरुद्वारा गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु के स्थान पर ही बनाया गया है. गुरूद्वारे का आतंरिक कक्षा अंगीठा साहिब कहलाता है तथा ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है जहाँ सन 1708 में गुरु गोविन्द सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था. तख़्त के गर्भगृह में गुरुद्वारा पटना साहिब की तर्ज़ पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब तथा श्री दसम ग्रन्थ दोनों स्थापित हैं. गुरूद्वारे का निर्माण सन 1832  से 1837 के बिच पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा करवाया गया था.

ऊपर वर्णित पाँचों तख्त पुरे खालसा पंथ के लिए प्रेरणा के स्त्रोत तथा ज्ञान के केंद्र हैं. गुरु गोविन्द सिंह जी की यह अभिलाषा थी की उनके निर्वाण के बाद भी उनके सहयोगियों में से एक श्री संतोख सिंह जी (जो की उस समय उनके सामुदायिक रसोईघर के की देखरेख करते थे), नांदेड़ में ही रहें तथा गुरु का लंगर (भोजन का स्थान) को निरंतर चलाये तथा बंद न होने दें, गुरु की इच्छा के अनुसार भाई संतोख सिंह जी के अलावा अन्य अनुयायी चाहें तो वापस पंजाब जा सकते हैं लेकिन अपने गुरु के प्रेम से आसक्त उन अनुयायियों ने भी वापस नांदेड़ आकर यहीं रहने का निर्णय लिया तथा उन्होंने गुरु गोविन्द  सिंह जी की याद में एक छोटा सा मंदिर मंदिर बनाया तथा उसके अन्दर गुरु ग्रन्थ साहिब जी की स्थापना की, वही छोटा सा मंदिर आज सचखंड साहिब के नाम से सिक्खों के के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में ख्यात है.

गुरूद्वारे के सामने एक दुकान

गुरुद्वारा प्रवेश द्वार

गुरुद्वारा प्रवेश द्वार

सचखंड गुरुद्वारा

गुरुद्वारा परिसर

गुरुद्वारा परिसर

गुरुद्वारा परिसर रात में

एक अन्य द्रश्य

यह तो था एक छोटा सा परिचय नांदेड तथा सचखंड गुरूद्वारे का, अब आगे बढ़ते हैं….. तो अत्यधिक थकान से निढाल हो जाने के बाद यात्री निवास के अपने कमरे में जाकर हम सभी ने करीब एक घंटे आराम किया उसके बाद गरम पानी का इंतजाम करके नहा धो कर हम सभी मुख्य गुरूद्वारे सचखंड साहिब की ओर  चल दिए. रणजीत सिंह यात्री निवास से गुरुद्वारा कुछ पांच मिनट की पैदल दुरी पर स्थित है अतः कुछ देर पैदल चलने के बाद हम गुरूद्वारे के मुख्य द्वार पर पहुँच गए. हिन्दू होने के नाते बचपन से ही मंदिरों में तो जाते ही रहे हैं लेकिन गुरूद्वारे के दर्शन का हमारा यह पहला अवसर था. गुरूद्वारे के बाहर बड़ी चहल पहल थी तथा बड़ी संख्या में सिख यात्रियों के झुण्ड दिखाई दे रहे थे, बाहर से देखने पर ही गुरुद्वारा बड़ा सुन्दर दिखाई दे रहा था, शाम के साढ़े सात बजे का समय था, अँधेरा हो चूका था. गुरूद्वारे की एकदम सफ़ेद दीवारें रंग बिरंगी रोशनियों में नहाई हुई प्रतीत हो रही थी और बड़ा ही सुन्दर द्रश्य उपस्थित कर रही थी. प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार था, अन्दर प्रविष्ट होने पर वहां तैनात गार्ड ने हमें बताया की गुरूद्वारे में प्रवेश से पहले सभी श्रद्धालुओं (पुरुष, महिला तथा बच्चे) को सर पर कुछ कपड़ा  डाल लेना चाहिए. वहीँ पास में एक बॉक्स में सर पर रखने के लिए रंग बिरंगे रुमाल भी रखे थे, अतः हम सभी ने अपने सर ढंके और ईश्वर को नमन करके गुरूद्वारे में प्रवेश कर गए. अन्दर पहुँचने पर वहां की सुन्दरता देख कर हम सब अभिभूत हो गए, गुरुद्वारा एक बहुत बड़े विशाल दायरे में बना हुआ है, अन्दर परिसर में सुन्दर पेड़ पौधे, रंग बिरंगे फौवारे, सिक्ख धर्म के बाल विद्यार्थियों की विशिष्ठ परंपरागत वेशभुषा में छोटी छोटी टोलियाँ, लाउड  स्पीकर पर चलता मनमोहक अध्यात्मिक संगीत, धार्मिक भावना से ओतप्रोत श्रद्धालुओं की गुरु ग्रन्थ साहिब दर्शन के लिए आतुरता सबकुछ मानो एक स्वप्न सा लग रहा था. यह स्थान मुझे  धार्मिक सद्भावना का जीता जागता उदाहरण लग रहा था. सिक्खों के अलावा वहां पर बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू दर्शनार्थी भी थे लेकिन वहां पर सब के साथ एक जैसा व्यवहार किया जा रहा था, किसी भी जगह पर कोई भेदभाव नहीं. गुरुद्वारा परिसर का एक चक्कर लगाने तथा वहाँ  के हर एक द्रश्य को अपनी आँखों में कैद कर लेने के बाद हम दर्शन के लिए गर्भगृह की और बढे, गुरूद्वारे की सीढियों से पहले कुछ दो तिन फिट चौड़ी बहते पानी की नहर बनाई गयी है जिससे गुजर कर ही ऊपर जाया जा सकता है जिससे भक्तों के पैर अपने आप धुल जाते हैं. गुरुद्वारे की चारों दीवारों पर चार दरवाज़े हैं, चारों दरवाजों पर शुद्ध सोने की परत से सुन्दर एवं कलात्मक कारीगरी की गई, चारों और नज़र दौड़ाने पर हर जगह सोने की पच्चीकारी की वजह से सबकुछ सुनहरा दिखाई देता है, ऐसा लग रहा था बस इस द्रश्य को घंटों बैठकर निहारते रहें. पास ही स्वादिष्ट हलवे तथा पवित्र जल का प्रसाद वितरण हो रहा था.

सचखंड गुरुद्वारा

स्वर्ण जड़ित द्वार

आतंरिक दीवारों पर सुन्दर कारीगरी

गर्भगृह में विराजित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब एवं श्री दसम ग्रन्थ

एक अन्य द्रश्य

गुरूद्वारे के ठीक सामने

गर्भगृह के अन्दर का द्रश्य भी अविश्मरनीय  था, दो अति सुन्दर तख्तों पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब तथा श्री दसम ग्रन्थ साहिब विराजमान थे तथा ग्रंथि साहब उन पर चंवर ढुला रहे थे. दर्शन करने के बाद कुछ देर और गुरूद्वारे की सुन्दरता को निहारने के बाद हम सब गुरुद्वारा परिसर में ही स्थित गुरु का लंगर में निशुल्क प्रदान किये जाने   वाले भोजन प्रसाद को ग्रहण करने के लिए अग्रसर हुए. यह लंगर ( निःशुल्क भोजनालय) गुरु गोविन्द सिंह जी के समय से ही निरंतर चला आ रहा है. लंगर के अन्दर भी बड़ा अच्छा माहौल था, सेवादार सभी भक्तों को बड़े प्रेम से तथा आग्रहपूर्वक भोजन करवा रहे थे, भोजन भी स्वादिष्ट था.

लंगर का आतंरिक द्रश्य

लंगर एक अन्य द्रश्य

लंगर में भोजन के दौरान

भोजन के बाद हम रात नौ बजे के करीब वापस यात्री निवास में अपने कमरे में आ कर सो गए. थकान बहुत ज्यादा थी अतः बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई. सुबह उठने तथा नहाने धोने के बाद एक बार फिर गुरूद्वारे दर्शन के लिए जाने से अपने आप को रोक नहीं पाए.

नांदेड शहर भी बड़ा साफ़ सुथरा तथा शांत है, महाराष्ट्र में स्थित होने के बावजूद भी यहाँ हर जगह पंजाब की झलक देखने को मिलती है. साफ़ शब्दों में कहूँ तो इसे मिनी पंजाब कहा जा सकता है.

अन्य गुरूद्वारे तथा दर्शनीय स्थल: नांदेड़ में सचखंड गुरूद्वारे के अलावा सात अन्य  गुरूद्वारे भी हैं जो की धार्मिक द्रष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं: गुरुद्वारा नगीना घाट, गुरुद्वारा बंदा घाट, गुरुद्वारा शिकार घाट, गुरुद्वारा हीरा घाट, गुरुद्वारा माता साहिब, गुरुद्वारा माल टेकडी, तथा गुरुद्वारा संगत साहिब. सचखंड गुरूद्वारे के नजदीक ही एक बड़ा ही सुन्दर उद्यान गोविन्द बाग़ है जहाँ डेली शाम सात से आठ बजे तक सिखों के दसों गुरुओं का परिचय तथा खालसा का इतिहास लेज़र शो के द्वारा दिखाया जाता है, जो की बड़ा ही मनभावन तथा मनोरंजक होता है. सचखंड गुरूद्वारे से ही गुरुद्वारा बोर्ड के द्वारा बसें उपलब्ध हैं जो की यात्रियों को नांदेड़ के सारे गुरूद्वारे तथा अन्य दर्शनीय स्थानों के दर्शन कराती है. यहाँ की पूरी व्यवस्था तथा देखरेख के लिए एक 17 सदस्यीय गुरुद्वारा बोर्ड है तथा 5  सदस्यीय मेनेजिंग कमिटी है.

गुरुद्वारा, एक अन्य द्रश्य

गुरुद्वारा

गुरुद्वारा

भक्तों की टोली

गुरूद्वारे के सामने

गुरूद्वारे के सामने

गुरूद्वारे में हम सब

रात का द्रश्य

गुरूद्वारे के सामने

नांदेड दर्शन के लिए बस

यात्री निवास

गुरूद्वारे में दैनिक पूजा पाठ की समय सारणी:

2 .00 AM – घाघरिया सिंह के द्वारा लाये गए गोदावरी के पवित्र जल से तख्त साहिब का स्नान.

3 .40 AM – गुरु ग्रन्थ साहिब जी तथा दसम ग्रन्थ साहिब जी का हुकुमनामा.

3 .45 AM – कीर्तन का आरम्भ

6 .15 AM – कीर्तन की समाप्ति

6 .30 AM -8 .00  AM – प्रसाद भोग

8 .00  AM  से श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की कथा.

ठहरने के लिए व्यवस्था:

नांदेड़ में यात्रियों के ठहरने के लिए सुविधाओं के अनुरूप कई तरह के सशुल्क एवं निःशुल्क यात्री निवास उपलब्ध हैं जिन्हें वहां पहुँचने के बाद भी लिया जा सकता है या गुरूद्वारे की आधिकारिक वेबसाइट www.hazursahib.com से ऑनलाइन बुकिंग भी करवाई जा सकती है.

कैसे पहुंचें:

रेल मार्ग: भारतीय रेलवे ने सिख यात्रियों की सुविधा के लिए एक स्पेशल ट्रेन सचखंड एक्सप्रेस जो की अमृतसर से चलकर नांदेड़ तक आती है तथा पुरे पंजाब को नांदेड़ से जोड़ती है. फिलहाल नांदेड़ रेलवे लाइन मुंबई (वाया मनमाड)से जुडी है तथा हैदराबाद से सिकंदराबाद के द्वारा जुडी है.

सड़क मार्ग : नांदेड़ मुंबई से ६५० किलोमीटर पूर्व में है, औरंगाबाद से यहाँ पहुँचने में ४-५ घंटे एवं पुणे से ११ घंटे लगते है. नांदेड़ महाराष्ट्र के लगभग सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है.

हवाई मार्ग: नांदेड़ में हवाई अड्डा है जहाँ पर मुंबई से नांदेड़ के लिए किंगफिशर की फ्लाईट उपलब्ध है. निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा हैदराबाद है.

इस सुन्दर जगह के जी भर के दर्शन कर लेने के बाद हम अपने अगले स्थान औंधा नागनाथ (नागेश्वर ज्योतिर्लिंग) के लिए निकल पड़े. इस श्रंखला का यह पहला भाग अब यहीं पर समाप्त करता हूँ और अगले भाग में आपलोगों को रूबरू कराऊंगा आस्था से परिपूर्ण एक अति पावन स्थान श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से.

24 Comments

  • Silentsoul says:

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  • Mahesh Semwal says:

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  • Neeraj Jat says:

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  • Hi Mukesh

    as always a very good post with beautiful pictures. I loved the legend you wrote about Shree Guru Gobindsingh.

    And Gurudwara is also very beautiful………………………..

    Ab jaldi se bholenath ke darshan karwao………………………………

  • Mukesh Bhalse says:

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    • Silentsoul says:

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  • Mukesh Bhalse says:

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  • Mukesh Bhalse says:

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  • Mukesh Bhalse says:

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  • Mukesh Bhalse says:

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  • Ritesh Gupta says:

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  • toddler ved says:

    Nicely narrated and supported by beautiful pictures and moreover well complimented by Silent soul on the importance of the place. Was not aware of the fact that Aundha Naganath and Parli Vaidyanath are also amongst the Jyotirlingas. Regarded only Bhimashankar, Trayambakeshwar and Grishneshwar as the Jyotirlingas of Maharastra and was planning to visit there only. Now keep in mind these places also. On 8th i am proceeding for Sri Sailam Mallikaarjun and yes I have thoroughly gone through ur post on the place. Due to certain constraints Iwas not able to be regular here, even though have gone through several of the posts including the amazing ones by Aditya (Bapsa Valley) and Silent soul (particularly the post on Iceland and the tit bits of Ghummakari – kuch khatti kuch Meethi).
    Thanks a lot Mukeshji for coming out with such an informative post.

  • D.L.Narayan says:

    Thanks Mukesh for the tour of the Nanded Gurudwara. I knew of its importance but did not know that it was called the Sachkhand Gurudwara. It is truly amazing to have darshan of a place in Marathwada which will forever be Punjab.

    I love Gurudwaras. The ambience reverberates with spiritual vibrations and they are spotless and well maintained. Your photographs have captured the spirit of this holy shrine. I wish that you had also covered the Guru Gobind Singh Museum in this post.

  • Mukesh Bhalse says:

    Ved,
    Thank you very much for your nice comment. Actually on some of the jyotirlingas people are not unanimous and these places of jyortirlingas are always controversial, everyone have a different view on the their location.
    These jyotirlingas are mentioned in the kotirudra samhita chapter of Shivmahapuran as Dwadashjyotirlingastotram, which does not give the clear idea about their exact location and people have different interpretation about the location.

    Such jyotirlingas are Nageshwar Jyotirling (Dispute among Nageshwar near Dwarka, Aundha Nagnath in Maharashtra and Jageshwar near Almora in Uttarakhand), Baidyanath Jyotirling (Dispute between Baidyanath Dham in Deoghar near jasidih in Jharkhand and Parli Vaijanath in district Beed in Maharashtra) and Bhimashankar (Dispute between Bhimashankar near Pune and Bhimeshwar in Assam).
    In my view to comple twelve Jyotirling Yatra one should not waste his time on this brainstorming instead, he should visit the jyotirling which is convenient and easily accessible.

    Thanks.

  • Nandan says:

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  • Mukesh Bhalse says:

    D.L. Narayan ji,
    Thank you very much for the appreciation. Because of some time constraints and excessive exertion, we couldn’t visit the museum and Govind bag.

    Thanks.

  • Mukesh Bhalse says:

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  • vinaymusafir says:

    Om namah Shivay.
    Hamesha ki tarah apka yeh post bhi sundar photos aur puri jankari se yukt hai.
    Aapka lekh padhna ek alag hi anubhav hai. Ab meri bhi ichchca hoti hai Jyotirlingo ke darshan ki
    dekho kab jana hoga. :)

  • Mukesh Bhalse says:

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  • Mukesh Bhalse says:

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  • Bhavesh says:

    Dear Mr. Bhalse,

    Loved your post…being a silent reader for too long but i think i will now start writing too at Ghumakkar about my travels. I must admit though that i get so full reading these posts that sometimes feel that what is the need any more to visit these places….such are your and other writers beautiful descriptions….

    I am from Indore …near to you…and would soon make a post about Indore itself….

    Regards,
    Bhavesh

  • Mukesh Bhalse says:

    Bhavesh,
    Thanks for liking the post.
    First of all thank you for choosing my post to break your silence on Ghumakkar. Secondly we would wait for your post on Indore, being an Indori it will be a great pleasure for me to read a post on Indore and please don’t miss to write something about Devi Ahilya Bai and the Lal Bag Palace.
    Eagerly waiting for your debut post on Ghumakkar. For any help regarding writing on Ghumakkar please feel free to dial – 9977316474.

    Thanks.

  • Harjit Sandhu Amritsar says:

    Dear dost bhagwan ap ko sada sukhi rakhe apne hame nanded sahib ke darshan karvae ha thanks

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