सà¤à¥€Â घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ साथियों को  मेरा सपà¥à¤°à¥‡à¤®Â नमसà¥à¤•ार. à¤à¤• बार फिर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â हूà¤Â मैं आपलोगों के सामने अपनी नूतन धरà¥à¤® यातà¥à¤°à¤¾ के अनोखे अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ के साथ. अपनी जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं के कà¥à¤°à¤®Â में पिछले वरà¥à¤· समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ की गई शà¥à¤°à¥€Â महाकालेशà¥à¤µà¤°Â जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग की यातà¥à¤°à¤¾Â के बाद अगली जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ के रूप में हमने महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°Â के मराठवाड़ा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°Â में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â दो जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों औंढा नागनाथ और परली वैदà¥à¤¯à¤¨à¤¾à¤¥Â को चà¥à¤¨à¤¾. इन सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ के बारे में जानकारी जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡Â के लिà¤Â जब मैं गूगल महाशय की शरण में गया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की दोनों जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग नांदेड शहर के आसपास हैं. नांदेड का नाम पहले à¤à¥€Â कई बार सà¥à¤¨à¤¾Â था लेकिन जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾Â जानकारी नहीं थी, अपनी सरà¥à¤šÂ के दौरान नांदेड के बारे में बहà¥à¤¤Â कà¥à¤›Â जानने को मिला, और पता चला की यह शहर सिकà¥à¤– धरà¥à¤® à¤à¤• के à¤à¤• अति महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£Â तीरà¥à¤¥Â सà¥à¤¥à¤² के रूप में विशà¥à¤µ à¤à¤°Â में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦Â है, अतः मैंने à¤à¥€Â इस आसà¥à¤¥à¤¾Â के इस केंदà¥à¤° को अपने यातà¥à¤°à¤¾Â नियोजन में शामिल कर लिया. समय के लिहाज से मेरी यह यातà¥à¤°à¤¾Â चार दिन की à¤à¤• संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤Â यातà¥à¤°à¤¾ थी,
इन चार दिनों में से à¤à¥€Â अधिकतर समय तो टà¥à¤°à¥‡à¤¨Â तथा बसों में सफ़र करते हà¥à¤Â कटना था. खैर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨Â पहलà¥à¤“ं पर गहन विचार विमरà¥à¤¶Â करने के बाद मैंने अपनी यातà¥à¤°à¤¾ के लिà¤Â सही समय पर आवशà¥à¤¯à¤• रेलवे रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨Â करवा लिà¤.
25  जनवरी की रात को 8 :50 बजे हमारे नजदीकी शहर महू से हमें अकोला के लिठटà¥à¤°à¥‡à¤¨ में बैठना था अतः अपनी डà¥à¤¯à¥‚टी पूरी करने के बाद शाम करीब 6 :00 बजे हम सब (मैं, कविता,संसà¥à¤•ृति à¤à¤µà¤‚ शिवम) अपनी कार से महू के लिà¤Â निकल पड़े तथा करीब 7 :30  बजे महू पहà¥à¤‚चकर रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨Â के बाहर पारà¥à¤•िंग ज़ोन में कार पारà¥à¤• करके, à¤à¥‹à¤œà¤¨Â वगैरह करने के बाद 8:00 बजे हम टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में बैठ गà¤, तथा टà¥à¤°à¥‡à¤¨ अपने नियत समय पर चल पड़ी.
अपनी पà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¿à¤‚ग के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°Â मैंने अकोला से नांदेड के लिà¤Â सà¥à¤¬à¤¹Â  9 :30 बजे निकलने वाली काचिगà¥à¤¡à¤¼à¤¾Â à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸Â में रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨Â करवा लिया था. हमें महू से अकोला वाली मीटर गेज की टà¥à¤°à¥‡à¤¨ ने अपने समय से दो घंटे देरी से पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¯à¤¾, और तब तक हमारी अगली टà¥à¤°à¥‡à¤¨Â जिसमें मैंने नांदेड तक रिजरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¤¨Â करवाया था वह निकल चà¥à¤•ी थी. अब चूà¤à¤•ि हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ तो मीस हो चà¥à¤•ी थी और हमारे पास बस से जाने के अलावा और कोई विकलà¥à¤ªÂ नहीं था, दà¥à¤°à¥€Â अधिक होने की वजह से अकोला से नांदेड के लिà¤Â उस समय डायरेकà¥à¤ŸÂ बस à¤à¥€ नहीं थी अतः किसी तरह अकोला से हिंगोली और फिर बस बदलकर हिंगोली से नांदेड शाम के 6 :30 बजे थक हार कर पहà¥à¤‚चे, जबकि टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से 2 :00 बजे पहà¥à¤‚चा जा सकता था. वैसे मेरे साथ इस तरह की टà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‡à¤¡à¥€Â बहà¥à¤¤Â कम होती है, शायद अब तक नहीं हà¥à¤ˆÂ है. खैर, हम बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थक गà¤Â थे, बचà¥à¤šà¥‡Â à¤à¥€ बहà¥à¤¤Â परेशान हो गठथे अतः हम जलà¥à¤¦ से जलà¥à¤¦Â थोडा आराम करना चाहते थे अतः नांदेड पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡Â ही सबसे पहले ऑटो लेकर, गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡Â के नजदीक ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤Â रंजित सिंह यातà¥à¤°à¥€Â निवास में à¤à¤• कमरा बà¥à¤• करा लिया तथा निढाल होकर बिसà¥à¤¤à¤°Â पर गिर पड़े.
अब अपनी कहानी को यहीं पर कà¥à¤›Â देर विराम देकर आपको बताता हूठकà¥à¤› नांदेड के बारे में.
नांदेड– à¤à¤• परिचय:
दकà¥à¤·à¤¿à¤£ की गंगा कही जानेवाली पावन गोदावरी नदी के किनारे बसा शहर नांदेड़, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° राजà¥à¤¯ के मराठवाड़ा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का औरंगाबाद के बाद सबसे बड़ा शहर है, तथा हजूर साहिब सचखंड गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के लिठविशà¥à¤µ à¤à¤° में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है. यहीं पर सन 1708 में सिकà¥à¤–ों के दसवें तथा अंतिम गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी ने अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी. सन 1708 से पहले गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी ने धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के लिठकà¥à¤› वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिठयहाठअपने कà¥à¤› अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ अपना पड़ाव डाला था लेकिन यहीं पर कà¥à¤›Â धारà¥à¤®à¤¿à¤• तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी à¤à¥‡à¤œà¤•र उनकी हतà¥à¤¯à¤¾Â करवा दी थी. अपनी मृतà¥à¤¯à¥ को समीप देखकर गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी ने अपने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•ारी के रूप में किसी अनà¥à¤¯ को गà¥à¤°à¥Â चà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के बजाये, सà¤à¥€Â सिखों को आदेश दिया की मेरे बाद आप सà¤à¥€ पवितà¥à¤° गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को ही गà¥à¤°à¥Â मानें, और तà¤à¥€ से पवितà¥à¤° गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब कहा जाता है. गà¥à¤°à¥Â गोबिंद सिंह जी के ही शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में:  “आजà¥à¤žà¤¾Â à¤à¤ˆÂ अकाल की तà¤à¥€Â चलायो पंथ, सब सीखन को हà¥à¤•म है गà¥à¤°à¥Â मानà¥à¤¯à¥‹Â गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥.
शहर का परंपरागत सिकà¥à¤– नाम है अबचल नगर (अविचल यानी न हिलने वाला, सà¥à¤¥à¤¿à¤°) यानी शहर जिसे कà¤à¥€ विचलित नहीं किया जा सकता.
तख़à¥à¤¤ सचखंड शà¥à¤°à¥€ हजूर साहिब गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾- à¤à¤• परिचय:Â
यह गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सिकà¥à¤– धरà¥à¤® के पांच पवितà¥à¤° तखà¥à¤¤à¥‹à¤‚ (पवितà¥à¤° सिंहासन) में से à¤à¤• है, अनà¥à¤¯Â चार तख़à¥à¤¤ इस पà¥à¤°à¤•ार हैं:
1. शà¥à¤°à¥€ अकाल तख़à¥à¤¤Â अमृतसर पंजाब
2.  शà¥à¤°à¥€ केशरगढ़ साहिब, आनंदपà¥à¤° पंजाब
3. शà¥à¤°à¥€ दमदमा साहिब, तलवंडी, पंजाब
4. शà¥à¤°à¥€ पटना साहिब, पटना, बिहार
परिसर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ को सचखंड (सतà¥à¤¯ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°) नाम से जाना जाता है, यह गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी की मृतà¥à¤¯à¥ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर ही बनाया गया है. गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ का आतंरिक ककà¥à¤·à¤¾Â अंगीठा साहिब कहलाता है तथा ठीक उसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बनाया गया है जहाठसन 1708 में गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी का दाह संसà¥à¤•ार किया गया था. तख़à¥à¤¤ के गरà¥à¤à¤—ृह में गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पटना साहिब की तरà¥à¤œà¤¼ पर शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥Â गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब तथा शà¥à¤°à¥€ दसम गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥Â दोनों सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं. गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ सन 1832 से 1837 के बिच पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करवाया गया था.
ऊपर वरà¥à¤£à¤¿à¤¤Â पाà¤à¤šà¥‹à¤‚ तखà¥à¤¤Â पà¥à¤°à¥‡Â खालसा पंथ के लिà¤Â पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾Â के सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤ तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨Â के केंदà¥à¤° हैं. गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी की यह अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾Â थी की उनके निरà¥à¤µà¤¾à¤£ के बाद à¤à¥€ उनके सहयोगियों में से à¤à¤• शà¥à¤°à¥€Â संतोख सिंह जी (जो की उस समय उनके सामà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• रसोईघर के की देखरेख करते थे), नांदेड़ में ही रहें तथा गà¥à¤°à¥ का लंगर (à¤à¥‹à¤œà¤¨ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨) को निरंतर चलाये तथा बंद न होने दें, गà¥à¤°à¥ की इचà¥à¤›à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤ˆ संतोख सिंह जी के अलावा अनà¥à¤¯ अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ चाहें तो वापस पंजाब जा सकते हैं लेकिन अपने गà¥à¤°à¥ के पà¥à¤°à¥‡à¤® से आसकà¥à¤¤Â उन अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने à¤à¥€Â वापस नांदेड़ आकर यहीं रहने का निरà¥à¤£à¤¯Â लिया तथा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤°à¥Â गोविनà¥à¤¦  सिंह जी की याद में à¤à¤• छोटा सा मंदिर मंदिर बनाया तथा उसके अनà¥à¤¦à¤°Â गà¥à¤°à¥Â गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब जी की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾Â की, वही छोटा सा मंदिर आज सचखंड साहिब के नाम से सिकà¥à¤–ों के के महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£Â तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤² के रूप में खà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है.
यह तो था à¤à¤• छोटा सा परिचय नांदेड तथा सचखंड गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ का, अब आगे बढ़ते हैं….. तो अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• थकान से निढाल हो जाने के बाद यातà¥à¤°à¥€ निवास के अपने कमरे में जाकर हम सà¤à¥€ ने करीब à¤à¤• घंटे आराम किया उसके बाद गरम पानी का इंतजाम करके नहा धो कर हम सà¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ सचखंड साहिब की ओर  चल दिà¤. रणजीत सिंह यातà¥à¤°à¥€ निवास से गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤› पांच मिनट की पैदल दà¥à¤°à¥€ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है अतः कà¥à¤› देर पैदल चलने के बाद हम गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर पहà¥à¤à¤š गà¤. हिनà¥à¤¦à¥‚ होने के नाते बचपन से ही मंदिरों में तो जाते ही रहे हैं लेकिन गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के दरà¥à¤¶à¤¨Â का हमारा यह पहला अवसर था. गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के बाहर बड़ी चहल पहल थी तथा बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾Â में सिख यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¥à¤£à¥à¤¡Â दिखाई दे रहे थे, बाहर से देखने पर ही गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बड़ा सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दिखाई दे रहा था, शाम के साढ़े सात बजे का समय था, अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ हो चूका था. गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की à¤à¤•दम सफ़ेद दीवारें रंग बिरंगी रोशनियों में नहाई हà¥à¤ˆÂ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ हो रही थी और बड़ा ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°Â दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯Â उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर रही थी. पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के लिठà¤à¤• विशाल दà¥à¤µà¤¾à¤° था, अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ होने पर वहां तैनात गारà¥à¤¡ ने हमें बताया की गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ से पहले सà¤à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं (पà¥à¤°à¥à¤·, महिला तथा बचà¥à¤šà¥‡) को सर पर कà¥à¤›Â कपड़ा  डाल लेना चाहिà¤. वहीà¤Â पास में à¤à¤• बॉकà¥à¤¸Â में सर पर रखने के लिठरंग बिरंगे रà¥à¤®à¤¾à¤²Â à¤à¥€Â रखे थे, अतः हम सà¤à¥€ ने अपने सर ढंके और ईशà¥à¤µà¤° को नमन करके गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤. अनà¥à¤¦à¤°Â पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡Â पर वहां की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ देख कर हम सब अà¤à¤¿à¤à¥‚त हो गà¤, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â à¤à¤• बहà¥à¤¤Â बड़े विशाल दायरे में बना हà¥à¤† है, अनà¥à¤¦à¤°Â परिसर में सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°Â पेड़ पौधे, रंग बिरंगे फौवारे, सिकà¥à¤– धरà¥à¤® के बाल विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की विशिषà¥à¤  परंपरागत वेशà¤à¥à¤·à¤¾ में छोटी छोटी टोलियाà¤, लाउड  सà¥à¤ªà¥€à¤•र पर चलता मनमोहक अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• संगीत, धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से ओतपà¥à¤°à¥‹à¤¤Â शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं की गà¥à¤°à¥Â गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥Â साहिब दरà¥à¤¶à¤¨ के लिà¤Â आतà¥à¤°à¤¤à¤¾Â सबकà¥à¤›Â मानो à¤à¤• सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ सा लग रहा था. यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨Â मà¥à¤à¥‡Â  धारà¥à¤®à¤¿à¤• सदà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ का जीता जागता उदाहरण लग रहा था. सिकà¥à¤–ों के अलावा वहां पर बहà¥à¤¤ बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में हिनà¥à¤¦à¥‚ दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ à¤à¥€Â थे लेकिन वहां पर सब के साथ à¤à¤• जैसा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° किया जा रहा था, किसी à¤à¥€Â जगह पर कोई à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µÂ नहीं. गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परिसर का à¤à¤• चकà¥à¤•र लगाने तथा वहाà¤Â  के हर à¤à¤• दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ को अपनी आà¤à¤–ों में कैद कर लेने के बाद हम दरà¥à¤¶à¤¨ के लिà¤Â गरà¥à¤à¤—ृह की और बढे, गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की सीढियों से पहले कà¥à¤›Â दो तिन फिट चौड़ी बहते पानी की नहर बनाई गयी है जिससे गà¥à¤œà¤°Â कर ही ऊपर जाया जा सकता है जिससे à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के पैर अपने आप धà¥à¤² जाते हैं. गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡Â की चारों दीवारों पर चार दरवाज़े हैं, चारों दरवाजों पर शà¥à¤¦à¥à¤§ सोने की परत से सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°Â à¤à¤µà¤‚ कलातà¥à¤®à¤• कारीगरी की गई, चारों और नज़र दौड़ाने पर हर जगह सोने की पचà¥à¤šà¥€à¤•ारी की वजह से सबकà¥à¤› सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¤¾ दिखाई देता है, à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था बस इस दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ को घंटों बैठकर निहारते रहें. पास ही सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हलवे तथा पवितà¥à¤° जल का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ वितरण हो रहा था.

गरà¥à¤à¤—ृह में विराजित शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¥€ दसम गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥
गरà¥à¤à¤—ृह के अनà¥à¤¦à¤° का दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ à¤à¥€Â अविशà¥à¤®à¤°à¤¨à¥€à¤¯Â  था, दो अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° तखà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब तथा शà¥à¤°à¥€ दसम गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब विराजमान थे तथा गà¥à¤°à¤‚थि साहब उन पर चंवर ढà¥à¤²à¤¾ रहे थे. दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद कà¥à¤› देर और गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ को निहारने के बाद हम सब गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परिसर में ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¥ का लंगर में निशà¥à¤²à¥à¤• पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किये जाने  वाले à¤à¥‹à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने के लिठअगà¥à¤°à¤¸à¤° हà¥à¤. यह लंगर ( निःशà¥à¤²à¥à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯) गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी के समय से ही निरंतर चला आ रहा है. लंगर के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¥€ बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ माहौल था, सेवादार सà¤à¥€ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को बड़े पà¥à¤°à¥‡à¤® से तथा आगà¥à¤°à¤¹à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨ करवा रहे थे, à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ था.
à¤à¥‹à¤œà¤¨Â के बाद हम रात नौ बजे के करीब वापस यातà¥à¤°à¥€ निवास में अपने कमरे में आ कर सो गà¤. थकान बहà¥à¤¤Â जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी अतः बिसà¥à¤¤à¤°Â पर लेटते ही नींद आ गई. सà¥à¤¬à¤¹Â उठने तथा नहाने धोने के बाद à¤à¤• बार फिर गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठजाने से अपने आप को रोक नहीं पाà¤.
नांदेड शहर à¤à¥€ बड़ा साफ़ सà¥à¤¥à¤°à¤¾Â तथा शांत है, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने के बावजूद à¤à¥€ यहाठहर जगह पंजाब की à¤à¤²à¤• देखने को मिलती है. साफ़ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में कहूठतो इसे मिनी पंजाब कहा जा सकता है.
अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ तथा दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²: नांदेड़ में सचखंड गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के अलावा सात अनà¥à¤¯Â गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ à¤à¥€ हैं जो की धारà¥à¤®à¤¿à¤• दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¿Â से अति महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं: गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नगीना घाट, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â बंदा घाट, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिकार घाट, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हीरा घाट, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ माता साहिब, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ माल टेकडी, तथा गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â संगत साहिब. सचखंड गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के नजदीक ही à¤à¤• बड़ा ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°Â उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨Â गोविनà¥à¤¦Â बाग़ है जहाà¤Â डेली शाम सात से आठ बजे तक सिखों के दसों गà¥à¤°à¥à¤“ं का परिचय तथा खालसा का इतिहास लेज़र शो के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â दिखाया जाता है, जो की बड़ा ही मनà¤à¤¾à¤µà¤¨Â तथा मनोरंजक होता है. सचखंड गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ से ही गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â बोरà¥à¤¡Â के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾Â बसें उपलबà¥à¤§Â हैं जो की यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को नांदेड़ के सारे गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ तथा अनà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯Â सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨Â कराती है. यहाठकी पूरी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾Â तथा देखरेख के लिठà¤à¤• 17 सदसà¥à¤¯à¥€à¤¯Â गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बोरà¥à¤¡ है तथा 5 सदसà¥à¤¯à¥€à¤¯Â मेनेजिंग कमिटी है.
गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में दैनिक पूजा पाठकी समय सारणी:
2 .00 AM - घाघरिया सिंह के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लाये गठगोदावरी के पवितà¥à¤° जल से तखà¥à¤¤ साहिब का सà¥à¤¨à¤¾à¤¨.
3 .40 AM – गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब जी तथा दसम गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब जी का हà¥à¤•à¥à¤®à¤¨à¤¾à¤®à¤¾.
3 .45 AM – कीरà¥à¤¤à¤¨ का आरमà¥à¤
6 .15 AM – कीरà¥à¤¤à¤¨ की समापà¥à¤¤à¤¿
6 .30 AM -8 .00 AM – पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ à¤à¥‹à¤—
8 .00  AM से शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ साहिब की कथा.
ठहरने के लिठवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾:
नांदेड़ में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ठहरने के लिà¤Â सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤°à¥‚प कई तरह के सशà¥à¤²à¥à¤• à¤à¤µà¤‚ निःशà¥à¤²à¥à¤• यातà¥à¤°à¥€ निवास उपलबà¥à¤§ हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वहां पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के बाद à¤à¥€ लिया जा सकता है या गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की आधिकारिक वेबसाइट www.hazursahib.com से ऑनलाइन बà¥à¤•िंग à¤à¥€ करवाई जा सकती है.
कैसे पहà¥à¤‚चें:
रेल मारà¥à¤—: à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेलवे ने सिख यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾Â के लिठà¤à¤• सà¥à¤ªà¥‡à¤¶à¤² टà¥à¤°à¥‡à¤¨ सचखंड à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ जो की अमृतसर से चलकर नांदेड़ तक आती है तथा पà¥à¤°à¥‡ पंजाब को नांदेड़ से जोड़ती है. फिलहाल नांदेड़ रेलवे लाइन मà¥à¤‚बई (वाया मनमाड)से जà¥à¤¡à¥€Â है तथा हैदराबाद से सिकंदराबाद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जà¥à¤¡à¥€ है.
सड़क मारà¥à¤— : नांदेड़ मà¥à¤‚बई से ६५० किलोमीटर पूरà¥à¤µ में है, औरंगाबाद से यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ में ४-५ घंटे à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤£à¥‡ से ११ घंटे लगते है. नांदेड़ महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के लगà¤à¤— सà¤à¥€Â शहरों से सड़क मारà¥à¤— से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है.
हवाई मारà¥à¤—: नांदेड़ में हवाई अडà¥à¤¡à¤¾ है जहाठपर मà¥à¤‚बई से नांदेड़ के लिठकिंगफिशर की फà¥à¤²à¤¾à¤ˆà¤Ÿ उपलबà¥à¤§ है. निकटतम अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯Â हवाई अडà¥à¤¡à¤¾Â हैदराबाद है.
इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° जगह के जी à¤à¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ कर लेने के बाद हम अपने अगले सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ औंधा नागनाथ (नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग) के लिà¤Â निकल पड़े. इस शà¥à¤°à¤‚खला का यह पहला à¤à¤¾à¤— अब यहीं पर समापà¥à¤¤Â करता हूà¤Â और अगले à¤à¤¾à¤— में आपलोगों को रूबरू कराऊंगा आसà¥à¤¥à¤¾ से परिपूरà¥à¤£Â à¤à¤• अति पावन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ शà¥à¤°à¥€ नागेशà¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग से.





























मुकेश भाई .. आप लोगों के सुबह जागने से पहले ही मैंने यह खूबसूरत विवरण पढ़ लिया । बहुत सुंदर… व इस बार चित्र तो इतने अच्छे है कि कई बार आना पडे़गा चित्र दुबारा देखने।
कुछ अतिरिक्त जानकारी दे दूं… नांदेड़ का ये स्थान वास्तव में वीर बन्दा बहादुर का स्थान था । जब गुरु गोबिंदसिंहजी यहां आये तो बंदा बहादुर ने अपनी सारी तांत्रिक शक्तियां उन के विरुद्ध इस्तेमाल करी… पर जब उन्होने गुरु जी की शक्तियां देखी तो उनके शिष्य बन गये व गुरु से उनके पुत्रों की निर्मम हत्या की, व मुगलों के अत्याचार के बारे में सुना तो, गुरुजी को वहां अपनी गद्दी स्थापित कर… वे पंजाब गये, गुरु जी का आज्ञा पत्र लेकर कि सब सिख, उनका साथ दें। बंदा बहादुर ने उन अत्याचारी शासकों को नाकों चने चबवा दिये, व सरहिन्द के नवाब, जिसने गुरु-पुत्रों को जिन्दा चिनवा दिया था, को बेरहम मौत दे कर मार डाला, व अधिकतर पंजाब को मुगलों के कब्जे से आज़ाद करवा दिया. दुर्भाग्यवश उनके कुछ साथियों की दगाबाज़ी से मुगलों ने उन्हे पकड़ लिया, व पिंजरे में बन्द कर दिल्ली लाये । यहां उनकी आंखे निकाल कर, फिर चमडी उतार कर उनकी निर्मम हत्या कर दी ।
नांदेड़ का विवरण बंदा बहादुर के बिना अधुरा है.. अतः ये धृष्टता कर कुछ जानकारी लिख दी
ऊँ नमः शिवाय्
पाँच में से दो तख्तों के तो में दर्शन कर चुका हूँ तीसरा आप ने करा दिया बाकी आनंदपुर व तलवंडी के दर्शन कब होंगे पता नही.
अगले लेख का इंतज़ार रहेगा……..
ओहो, एक गडबड कर दी लेकिन चलो माफ कर देने लायक है। सचखण्ड एक्सप्रेस स्पेशल ट्रेन नहीं है। यह नियमित ट्रेन है, सुफरफास्ट है। इसके अलावा श्रीगंगानगर से बठिण्डा होते हुए भी नांदेड के लिये साप्ताहिक ट्रेन चलती है।
मैं पोस्ट के शुरू से ही सोच रहा था कि महाराज भले ही ज्योतिर्लिंग के लिये निकले हों, लेकिन नांदेड का जादू ऐसा है कि शिवजी से पहले गुरूजी बाजी मार ले गये। मुझ अधार्मिक के लिये गुरुद्वारे का मतलब होता है- फ्री में लोटना और फ्री में ही खाना। मैं हिन्दू देवताओं को भी सलाह देता रहता हूं कि एक बार गुरुद्वारे में जाकर देखो, शायद तुम्हे सदबुद्धि आ जाये। पता नहीं हमारे देवता यह फ्री वाला सिस्टम कब लागू करेंगे। पैसे चढाये बिना 10 ग्राम प्रसाद भी नहीं मिलता। तगडे रिश्वतखोर हैं ये सब। रिश्वत दो और अपना लोक-परलोक सब सुधरवा लो।
खैर, हमेशा की तरह बढिया फोटुओं से युक्त बढिया पोस्ट।
मुकेश भाई आपके लेख को पढ कर अपनी भी यादे ताजा हो गयी है, वैसे मुझे तो नान्देड साहिब, हरमिन्दर साहिब से ज्यादा भव्य लगता है, यहाँ अभी तीन चार साल पहले हुआ एक कार्यक्रम जो कि इस स्थल के 300 वर्ष पूर्ण होने के अवसर किया गया था, अब तक का सबसे शानदार व भव्य रहा है। मुकेश भाई अभी कुछ साल पहले तक भारत की सबसे लम्बी छोटी रेलगाडी अजमेर से अकोला होते हुए नान्देड तक चला करती थी, अब तो लगता है कि अकोला से रतलाम/ इन्दौर तक भी जल्द ही इतिहास बनने जा रही है। औंढा नागनाथ के पुन: दर्शन का भी इन्तजार है।
Hi Mukesh
as always a very good post with beautiful pictures. I loved the legend you wrote about Shree Guru Gobindsingh.
And Gurudwara is also very beautiful………………………..
Ab jaldi se bholenath ke darshan karwao………………………………
साइलेंट साहब,
बिलकुल सही फ़रमाया आपने, हम सो ही रहे थे और आपने हमारी पोस्ट पर नज़रे इनायत कर दी, हमें बड़ी प्रसन्नता हुई. साइलेंट साहब सच कहें तो आपसे इतना लगाव हो गया है की आपकी कमेन्ट के बिना हमें अपनी पोस्ट अधूरी सी लगती है और आपकी कमेन्ट को हम एक आशीर्वाद की तरह लेते हैं.
बिलकुल सही फ़रमाया आपने नांदेड का विवरण बंदा बहादुर के बिना अधुरा ही था, आपने अपनी कमेन्ट के माध्यम से उसे पूरा कर दिया, और आप प्लीज इसे धृष्टता कह कर हमें शर्मिंदा न करें, हमारी पोस्ट में सुधार करना आपका अधिकार है. आपसे कभी मिले नहीं फिर भी हम दोनों आपका बहुत आदर करते हैं.
धन्यवाद.
सुधार नहीं किया… अतिरिक्त जानकारी दी है। इस घोर कलियुग में आप जैसा निश्चल प्रेम करने वाला दुर्लभ है. एक बार जागेश्वर धाम आइये जहां से सब ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति हुइ है । कभी नंदन भाई ईधर मुंह करें तो उनसे कहें की एक मुलाकात करवा दें हम सब की… तो अगर मैं हिन्दुस्तान में हुआ तो अवश्य मिलेंगे ।
महेश जी,
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. अगर दो तख्तों के दर्शन बिना प्रयास किये हुए हैं तो बाकि के दर्शनों के लिए प्रयास कर लीजिये, आपकी इच्छा जरुर पूरी होगी. अगला लेख जल्द ही प्रकाशित होगा.
धन्यवाद.
नीरज जी,
भैया आप तो ट्रेन स्पेशलिस्ट हैं, रेलवे की जानकारी के मामले में हम कहाँ आपके आगे टिकते हैं. बात तो आपने बिलकुल सही कही है, निकले थे भोले के दर्शन करने के लिए लेकिन रास्ते में गुरु जी मिल गए तो उनके दर्शन कर लिए. वैसे भी गुरु के बिना गोविन्द के दर्शन कहाँ होते हैं, और हमें तो नांदेड में ही गुरु गोबिंद के दर्शन हो गए. आपकी तो भैया दूसरी बात भी बिलकुल सही है, दुसरे धर्मस्थलों की तुलना में हमारे हिन्दू धर्म स्थलों पर कुछ ज्यादा ही भ्रष्टाचार व्याप्त है.
आपकी टिप्पणी के लिए आभार.
धन्यवाद.
संदीप भाई,
आपकी कमेन्ट का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है. कमेन्ट के लिए धन्यवाद. जी हाँ 300 वर्ष पूर्ण होने पर यहाँ सन 2008 में बड़ा विशाल उत्सव मनाया गया था और उसका नारा था – 300 साल, गुरु दे नाल.
धन्यवाद.
विशाल जी,
टिप्पणी के लिए ह्रदय से धन्यवाद. जान कर हर्ष हुआ की आपको गुरु गोबिंद सिंह जी की किवदंती पढ़कर अच्छा लगा, वैसे इस सम्बन्ध में कथा बहुत बड़ी है लेकिन समयाभाव की वजह से मैंने उसे अत्यंत संक्षिप्त कर दिया है. जी हां गुरुद्वारा तो सचमुच बड़ा ख़ूबसूरत है, एक दम साफ़ स्वच्छ और बहुत विशाल, आपकी ही तरह. बस जल्द ही अगली पोस्ट प्रकाशित होगी.
धन्यवाद.
मुकेश जी
सुबह सुबह श्री हुजुर साहब जी दर्शन करने के लिए धन्यवाद
फोटो के साथ साथ लेख भी अच्छा लगा / चलो आपके दर्शन लाभ से हमें भी घर बैठे बैठे दर्शन लाभ हो रहा हैं
Nicely narrated and supported by beautiful pictures and moreover well complimented by Silent soul on the importance of the place. Was not aware of the fact that Aundha Naganath and Parli Vaidyanath are also amongst the Jyotirlingas. Regarded only Bhimashankar, Trayambakeshwar and Grishneshwar as the Jyotirlingas of Maharastra and was planning to visit there only. Now keep in mind these places also. On 8th i am proceeding for Sri Sailam Mallikaarjun and yes I have thoroughly gone through ur post on the place. Due to certain constraints Iwas not able to be regular here, even though have gone through several of the posts including the amazing ones by Aditya (Bapsa Valley) and Silent soul (particularly the post on Iceland and the tit bits of Ghummakari – kuch khatti kuch Meethi).
Thanks a lot Mukeshji for coming out with such an informative post.
Thanks Mukesh for the tour of the Nanded Gurudwara. I knew of its importance but did not know that it was called the Sachkhand Gurudwara. It is truly amazing to have darshan of a place in Marathwada which will forever be Punjab.
I love Gurudwaras. The ambience reverberates with spiritual vibrations and they are spotless and well maintained. Your photographs have captured the spirit of this holy shrine. I wish that you had also covered the Guru Gobind Singh Museum in this post.
Ved,
Thank you very much for your nice comment. Actually on some of the jyotirlingas people are not unanimous and these places of jyortirlingas are always controversial, everyone have a different view on the their location.
These jyotirlingas are mentioned in the kotirudra samhita chapter of Shivmahapuran as Dwadashjyotirlingastotram, which does not give the clear idea about their exact location and people have different interpretation about the location.
Such jyotirlingas are Nageshwar Jyotirling (Dispute among Nageshwar near Dwarka, Aundha Nagnath in Maharashtra and Jageshwar near Almora in Uttarakhand), Baidyanath Jyotirling (Dispute between Baidyanath Dham in Deoghar near jasidih in Jharkhand and Parli Vaijanath in district Beed in Maharashtra) and Bhimashankar (Dispute between Bhimashankar near Pune and Bhimeshwar in Assam).
In my view to comple twelve Jyotirling Yatra one should not waste his time on this brainstorming instead, he should visit the jyotirling which is convenient and easily accessible.
Thanks.
मुकेश आपका यहाँ बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था , :-) तो बड़ी ख़ुशी हुई आपका लेख देखकर.
सबसे पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद्, सिख धर्म के बारे में जानकारी के लिए | पढ़ कर बड़ी ख़ुशी हुई की इनमे से तीन तख़्त साहिब के दर्शन मैं कर चूका हूँ , नांदेड आपने करा दिया और अब बचता है दुमदुमा साहिब तो शायद वो भी कोई घुमक्कड़ साथी करा दे |
आपके घर धार से नांदेड कोई ६०० किलोमीटर है | काफी लम्बा रास्ता है पर मुझे लगता है की अगर आप सुबह तडके गाडी लेकर निकलते तो देर शाम तक पहुँच सकते थे , महाराष्ट्र की तो सडकें बढ़िया हैं तो शायद और पहले पहुंचते | क्योंकि रेल का सीधा कनेक्शन नहीं था तो क्या आपने खुद गाडी चला कर जाने का सोचा था ? मैं शायद खुद चला जाता | जैसे दिल्ली से अमृतसर करीब-करीब समान दूरी पर ही है और अक्सर लोग यहाँ से सड़क यातायात से जाते हैं |
मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है की कम फोटोस, और केवल गुरूद्वारे के फोटोस लगाये जाते तो स्टोरी और कसी हुई बनती |
D.L. Narayan ji,
Thank you very much for the appreciation. Because of some time constraints and excessive exertion, we couldn’t visit the museum and Govind bag.
Thanks.
नंदन,
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. मुझे भी जानकार हर्ष हुआ की आप तीन तखत साहिब के दर्शन कर चुके हैं, एक तो आपके पटना में ही हैं. दूसरी बात यह है की कार से ज्यादा लम्बी ड्राइव में मैं कम्फर्टेबल नहीं रहता हूँ, मुझे रेल का सफ़र ही सबसे अच्छा लगता है अतः मैं ज्यादा लम्बी ड्राइव के बारे में कभी सोचता ही नहीं हूँ.
धन्यवाद.
Om namah Shivay.
Hamesha ki tarah apka yeh post bhi sundar photos aur puri jankari se yukt hai.
Aapka lekh padhna ek alag hi anubhav hai. Ab meri bhi ichchca hoti hai Jyotirlingo ke darshan ki
dekho kab jana hoga. :)
रितेश जी,
क्षमा चाहता हूँ, मैं आपकी कमेन्ट का जवाब देने में थोडा लेट हो गया. कमेन्ट के लिए ह्रदय से धन्यवाद. आपने बिलकुल सही कहा, हम लोग एक दुसरे की पोस्ट के जरिये उन जगहों की भी काल्पनिक यात्रा (virtual tour) तो कर ही लेते हैं जहाँ हम जा नहीं पाते.
विनय जी,
हौंसला अफजाई के लिए शुक्रिया, आपको पोस्ट पसंद आई मेरे लिए यह बड़े हर्ष का विषय है. आजकल आप घुमक्कड़ पर कम ही दिखाई दे रहे हैं, कोई ख़ास वजह? दूसरी बात, जैसे की आपने बताया की आपकी भी ज्योतिर्लिंग यात्रा की इच्छा हो रही है, तो जरुर शुरू कर दीजिये, सचमुच बड़ा आनंद आता है.
धन्यवाद.
Dear Mr. Bhalse,
Loved your post…being a silent reader for too long but i think i will now start writing too at Ghumakkar about my travels. I must admit though that i get so full reading these posts that sometimes feel that what is the need any more to visit these places….such are your and other writers beautiful descriptions….
I am from Indore …near to you…and would soon make a post about Indore itself….
Regards,
Bhavesh
Bhavesh,
Thanks for liking the post.
First of all thank you for choosing my post to break your silence on Ghumakkar. Secondly we would wait for your post on Indore, being an Indori it will be a great pleasure for me to read a post on Indore and please don’t miss to write something about Devi Ahilya Bai and the Lal Bag Palace.
Eagerly waiting for your debut post on Ghumakkar. For any help regarding writing on Ghumakkar please feel free to dial – 9977316474.
Thanks.
Dear dost bhagwan ap ko sada sukhi rakhe apne hame nanded sahib ke darshan karvae ha thanks