राष्ट्रीय रेल संग्रहालय और तीन मूर्ति भवन की घुमक्कड़ी के पश्चात शाम होने को थी. तीन मूर्ति भवन से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब जाना उचित लगा. क्योंकि शाम का समय किसी धर्मस्थल पर व्यतीत करना एक आनंददायक अनुभूति है. शाम के छह बजे के लगभग तीन मूर्ति भवन से बाहर आकर थाना संसद मार्ग लिए डी.टी.सी. की बस की प्रतीक्षा करने लगे. दस मिनट की प्रतीक्षा के पश्चात बस से थाना संसद मार्ग के बस स्टॉप पर पहुंचकर गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब (लगभग 5 मिनट की दूरी) की पदयात्रा की. साढ़े छह बजे तक गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब के द्वार पर पहुंच गए. गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब पहुंच कर सबसे पहले प्रवेश द्वार पर छबील से ठंडा पानी पीकर प्यास को शांत किया.
किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने के अपने कुछ नियम एवं मान्यताएं होती है. गुरूद्वारे में जाने के लिए सामान्य नियम है कि गुरूद्वारे में प्रवेश के समय जूते-चप्पल आदि पैरों में नहीं होने चाहियें और आपका सर ढका होना चाहियें. सभी गुरुद्वारों में प्रायः प्रवेश द्वार पर जूते-चप्पल आदि रखने के लिए जूताघर और रुमले (सर ढकने का वस्त्र) की व्यवस्था होती है. जूताघर में अपनी जोड़ियां (जूते-चप्पल आदि) जमा करवाने के बाद हाथ-मुंह धोकर और रुमले से सर को ढककर दर्शन करने के लिए आगे प्रस्थान किया.
गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब दिल्ली के मध्य में कनॉट प्लेस के समीप अशोक रोड पर स्थित अति प्रसिद्ध धर्मस्थल है. गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब मुग़ल काल (सत्रहवीं शताब्दी) में औरंगज़ेब के सेनापति मिर्ज़ा राजा जयसिंह का बंगला था इसी कारण इसका नाम श्री बंगला साहिब पड़ा. पहले इस बंगले को जयसिंघपुरा पैलेस के नाम से जाना जाता था. सिखों के आठवें गुरु, गुरु हर किशन सिंह जी यहां अपने दिल्ली प्रवास के समय रहे थे। उस समय स्माल पॉक्स और हैजा की बीमारियां फैली हुई थीं गुरु महाराज ने अपने इस आवास के कुँए के जल का प्रयोग इन बीमारियों से ग्रस्त रोगियों के उपचार के लिए किया और उनको रोगमुक्त किया. वर्तमान में यह जल एक विशाल सरोवर (तालाब) के रूप में संरक्षित है. देश विदेश से यहाँ आने वाले यात्री इस सरोवर के जल को पवित्र जल (अमृत) के रूप में अपने निवास, कार्यालय,कार्यस्थल, दूकान, संस्थान आदि में रखते हैं.
सीढ़ियों द्वारा मुख्य प्रांगण में पहुँच कर गुरूद्वारे के मुख़्य भवन में प्रवेश किया. गुरुग्रंथ साहिबजी के पाठ की स्वरलहरी पूरे भवन के वातावरण को शान्तिप्रद और मनोहारी बना रही थी. गुरुग्रंथ साहिबजी को प्रणामकर, मत्था टेककर और भेंट अरदास के बाद गुरुग्रंथ साहिबजी के पाठ के स्वरलहरी से ताल मिलते हुए हथेलियों को धीर-धीरे थपथपाते हुए भवन से बाहर आकर मत्था टेका.
भवन के बाहर आकर पंक्ति में हलुवा का प्रशादा लिया. प्रांगण में कुछ देर शांतचित्त होकर बैठे रहने के बाद प्रशादा ग्रहण किया. गुरुद्वारों में मिलने वाले प्रशाद रूपी हलुवे की विशेषता है कि यह शुद्ध देशी घी से बना होता है और पूरी तरह से घी में तर होता है. हाथ में प्रशादा लेकर खाने के बाद हाथों में देशी घी की सुगंध और चिकनाहट बानी रहती है और स्वाद की तो बात ही क्या ‘गुरु-प्रसाद’ जो है. बच्चों ने भी प्रशादा ग्रहण किया और मेरी बड़ी बेटी भूमिका को इतना पसंद आया कि प्रशादा की लिए दोबारा से लाइन में लग गयी. प्रशादा वितरण करने वाले भगतजी ने सर पर रुमाला न होने की कारण थोड़ा डांटते हुए प्रशादा देने से मना कर दिया और हम दूर से दृश्य देखते रहे.
बाहर प्रांगण में अपनी श्रद्धानुसार भेंट देकर प्रशादे की पर्ची से यह प्रशादा प्राप्त किया जा सकता है. प्रशादा की सेवा में अपनी भेंट देने वाले श्रद्धालु यहाँ से पर्ची लेकर पास ही प्रांगण में रखी पेटियों में इन पर्चियों को डाल देते हैं. आपको यदि प्रशादा चाहिए तो पर्ची काउंटर पर देकर प्रशादा प्राप्त किया जा सकता है. इसके बाद भूमिका को भेंट के लिए पैसे देकर प्रशादा मंगवाया और सबने ग्रहण किया.
गुरूद्वारे में आने की बाद सरोवर का जल लेकर अपने शरीर पर छिड़कने की लिए प्रांगण से सरोवर की और आने वाली सीढ़ियों से सरोवर पर पहुँच गए.
सरोवर से प्रांगण में होते हुए वापिस आते हुए नीचे द्वार की पास बड़ी संख्या में सिख-समुदाय किसी निर्माण (संभवतः कार पार्किंग) के लिए होने वाले कार्य में पूरे उत्साह और लगन से श्रमदान करते हुए दिखाई दिए. मिल-जुल कर कार्य करने की और किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए की शिक्षा गुरुद्वारा संस्कृति से मिलती है.
सभी गुरुद्वारों में लंगर प्रथा का पालन किया जाता है. गुरुद्वारों में दर्शन करना आने वाले दर्शनार्थी लंगर के लिए निर्धारित स्थान पर एक साथ मिलकर ज़मीं पर बैठकर छोटे-बड़े के भेदभाव को त्यागकर लंगर में मिलने वाले गुरु-प्रसाद को ग्रहण करते है. लंगर में प्रवेश के समय भी आपका सर वस्त्र से ढका होना चाहिए. लंगर में बनने वाले प्रशाद को सेवा के लिए निर्धारित सेवकों के साथ स्वेच्छा से सेवा करने वाले श्रद्धालुओं के साथ मिलकर बनाया जाता है.
सुबह और रात्रि के समय भोजन (दाल, रोटी आदि) का वितरण किया जाता है. शाम के समय यहाँ पर चाय के साथ ब्रेड टोस्ट प्रशाद रूप में वितरित किये जा रहे थे. लंगर स्थल पर पहुँच कर चाय प्रशाद ग्रहण किया.
लंगर हॉल से बाहर आने पर सांध्यकालीन प्रार्थना का समय हो चुका था. इधर-उधर टहलने वाले सभी लोग एकत्रिक होकर, हाथ-जोड़ और श्रद्धा से आँखे मूँद कर प्रार्थना के शब्द, दोहे-चौपाइयों को श्रवण कर शांतचित्त से सुख शान्ति की कामना करने लगे. जूताघर से अपने जूते-चप्पल पहनकर वापिस घर जाने के लिए चल दिए. गुरूद्वारे के बाहर ही बैटरी से चलने वाले ई-रिक्शा से पटेल चौक मेट्रो स्टेशन (10 रुपये प्रति सवारी) पहुँच गए. पटेल चौक गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब से सबसे समीप मेट्रो स्टेशन है. गुरूद्वारे से बाहर मेट्रो स्टेशन के लिए ई-रिक्शा आसानी से उपलब्ध हैं. पटेल चौक मेट्रो स्टेशन में प्रवेश करते ही प्रांगण में मेट्रो म्यूजियम है. यहाँ मेट्रो के निर्माण से लेकर भविष्य के projects को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है. साथ ही दिल्ली मेट्रो से जुडी अन्य अनेक स्मृतियों को भी संरक्षित किया गया है.
अपने घर के लिए मेट्रो में जाने से पहले चलते हुए जल्दी-जल्दी एक दृष्टि मेट्रो म्यूजियम के आकर्षणों पर भी डाली. इसी के साथ आज के दिन का पारिवारिक साप्ताहिक भ्रमण, मनोरंजन ज्ञान-विज्ञानं और इतिहास के कुछ अंशों को जानने के साथ संपन्न हुआ.
और आगे भी घुमक्कड़ी इसी तरह बनी रहे इसी कामना के साथ …
सतश्री अकाल !
“?????????? ??? ?????? ?? ??? ???? ?? ??? ???? ???????”, yes I learnt that when for the first time I was entering in the Golden Temple, Amritsar. That was my first visit to any Gurudwara.
Enjoyed your this post too as the previous in this series. Keep traveling, and bring such stories more for us.
Thanks Munesh!
Thanks Anupam for liking the post.
Hi Munesh Ji,
Very well written.
I have visited Bangla Sahib so many times and after reading your travelogue one more visit has been added in my name and all the thanks goes to you buddy. Being the delhi walas, Bangla Sahib is our favourite family spot to spend an evening of our weekend.
Listening the prayer in Gurudwara campus works like doing meditation.
Arun
HI Arun ji
Many thanks for your appreciable words and supporting my thoughts about the place.
regards
Dear Muneesh,
Your logs are always simple and words seemingly comes out of your heart hence, very touchy. Visiting Gurudwara Bangla Sahib is a pert n parcel of every Delhite I understand. I however, couldn’t pay my obeisance since past few years by entering inside however, pass by the shrine every alternate day.
Your log has compelled me to do the visit now.
Keep traveling
Ajay
Thank you AJAY SHARMA JI for liking the post and your appreciable words.
Happy traveling
Like so many other folks who live in Delhi and NCR, I have been to Bangla Sahib many times but didn’t know the story behind its name. I guess that is what reading a log here makes you learn :).
Only the other day, we were planning to be there during Langar time. Thanks for rekindling memories and the push to be there again.
Thank you Nandan Ji for commenting.
It is true that reading / writing a log makes you learn.