भारतकी पावन भूमि पर पश्चिमदिशा में स्थित गुजरात एक एसा राज्य है जो काफी लोगों के आस्था का केंद्र है, ऐसे गुजरात के एक छोटे से मगर बहोत ही खुबसूरत प्रदेश सौराष्ट्र की अगर बात करें तो सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी और गुजरात की सबसे ऊँची पहाड़ी गिरनार यह सब कुछ सौराष्ट्र को मिला है.
गिरनार पर्वत, जो जूनागढ़ शहर की सबसे खुबसूरत जगह में से एक है यह एकमात्र ईएसआई जगह है जहाँ पर एसियाटिक लायन (Asiatic Lion) पाए जाते है. गिरनार जो गुजरात की सबसे ऊँची पहाड़ी है और उसके सबसे ऊँचे शिखर जहाँ पर भगवन दत्तात्रेय जी की जगह है. बारिशके मौसम में यहाँ का वातावरण बहोत ही खुशनुमा होता है और पूरा जंगल एक नयी नवेली दुल्हन की तरह प्राकृतिक सौंदर्य से सजा हुआ दीखता है.
हम ७ दोस्तों ने वीकेंड पर गिरनार जाने का प्लान तैयार किया इसमें जो लोग जुड़े उनके नाम है: जीगर रत्नोत्तर, पारस कालरिया, अंकित कालरिया, जय पटेल, प्रोसोन्जित मेपदर, युवराजसिंह कंचवा और जैमिन. हम सब सुबह ५ बजे राजकोट से जूनागढ़ जो की ११० किमी की दुरी पर है वहां जाने के लिए २ गाड़ियोंमें निकले. रस्ते में गरमागरम चाय और सौराष्ट्र के प्रख्यात गांठिया का आनंद लिया. तक़रीबन सुबह के ७.३० बजे हम गिरनार की तलेटी पर पहोंचे, गाड़ीको पार्क की और सीढियाँ चड़ने की शुरुआत की, तक़रीबन ४५०० सीढियाँ चड़ने पर प्राचीन जैन देरासर आते है और ५१०० सीढियोंके आसपास माँ अंबाकी गुफा/मंदिर आता है और फिर आगे सबसे ऊँची चोटी जोकि भगवन दत्तात्रेय की है वह आती है, वहां तक पहोंचने के लिए १०००० सीढियाँ है.
वैसे हमारा प्लान गुरु दत्तात्रेय तक जाने का तो नहीं था, हम केवल घुमने के पर्पजसे ही गए थे तो जहाँ तक चढ़ पाएंगे वहां तक जाएंगे क्योंकि हमको जूनागढ़ के और भी दर्शनीय स्थान देखने थे. बारिश की वजह से सीढियाँ चढ़ने में थोड़ी तकेदारी की जरुरत थी, तो हम थोडा संभलकर और प्रकृति का लुफ्त उठाते चल रहे थे. एकदम खुशनुमा माहोल था वैसे में २ बार दत्तात्रेय तक गया हुआ हूँ पर कभी बरसातके मौसम में नहीं गया. शायद हम १५०० सीढियाँ ही चढ़े होंगे की अब हम बादलों से ऊपर थे हमने यह महसूस किया की जब भी कोई बदल हमको छुं कर निकलता तो एक हलकी सी ठण्ड का एहसास होता था और पानीकी कुछ बुँदे हमारे शारीर को रोमांचित कर जाती थी.
युवराज जिसे हम प्यार से युवी कहते है वह और जैमिन दोनों धीरे धीरे हमसे बहोत आगे निकल गए. जबकि हम बाकी दोस्त आराम से फोटो खींचते हुए चढ़ रहे थे. बारिशके मौसम में बहोत कम लोग गिरनार की चढ़ाई करते है इस वजह से भीड़ बिलकुल ही नहीं थी अगर ठण्ड के मौसम में आते हैं तो यहाँ पर भीड़ बहोत होती है. गिरनार के आसपास जंगल में ही काफी सरे महात्माकी गुफा और उनकी साधना करने की जगह भी है. जंगल का रास्ता होने की वजह से और यहाँ पर काफी मात्र में शेर भी पाए जाते है इसलिए अगर कोई जानकर न हो तो बहोत अन्दर जंगल में जाना नहीं चाहिए.
हम जब जैन देरासर तक पहोंचे तो थोड़े थक गए थे अब शरीर में पहले जैसी स्फूर्ति नहीं थी यह मैंने महसूस किया. जैन देरासर पर पहोंचने पर लगा की बादलोंके नगर में हम आ गए हो यहाँ से थोड़े निचे ‘भीमकुंड’ है पर बादलों की वजह से दिख ही नहीं रहा था. यहाँ पर ‘श्री पार्श्वनाथजी’ का अद्भुत मंदिर है. हम जब मंदिर में गए तो एकदम शांत वातावरण था और जैसे ही आंखे बंद की तो हमको बहोत ही शुकून मिला, वाकहीमें हमने पाया की अगर सच्चे मन से इश्वर की आराधना करनी हो तो एसीही जगह पर जाना चाहिए जहाँ पर अपना मन एकदम शांत होकर इश्वर के स्मरण में ही ओतप्रोत रहे.
अब हम लोगों ने तय किया की सुबह के करीबन ११ बजने को आए थे तो अगर हम यहाँ से अब निचे उतरना शुरू करते है तो भी १.३० घंटे के आसपास समय लग जाएगा. युवी और जैमिन का कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था इसीलिए हमने एक मैसेज भेजा की हम निचे जा रहे है तो आप लोग जन निचे पहोंच जाओ तो हमारा संपर्क करना. धीरे धीरे हम सावधानी पूर्वक नीचे उतरे और १ बजे तक तलेटी पर फिर पहोंच गए. अब सबको भूख भी बहोत लगी थी तो हम जूनागढ़ शहर में जो मॉडर्न की होटल है वहां पर खाना खाने गए और फिर वापस आये. अब सबको पानी के झरनों में नहाना था, बारिश के बाद गिरनार में काफी जगह पानी के छोटे छोटे झरने शुरू हो जाते है, इसलिए हमने सोचा की नजदीक में ही एक बढ़िया जगह है नहाने की ‘नारायण धरो’ वहां पर नहायेंगे. सब लोग वहां पर गए.
नारायण धरो के सामने ही ‘अशोक का शिलालेख’ है जो बहोत ही पुराना है और उसमे जो लिपि है वह आज भी कोई सोल्व नहीं कर पाया है. नारायण धरो पर पानी बहोत ही बढिया था तो सब दोस्तों को नहाने का बहोत मजा आ गया, पानी में नहाने के बाद सबकी थकान भी मानो दूर हो गई थी. नहाने के बाद मोबाइल में देखा तो युवी का मेसेज था की एकड़ घंटे में हम लोग निचे आ जाएँगे. थोडा बहोत इधर उधर हम गए और छोटे छोटे मंदिर में भी दर्शन किये. यहाँ पर सबसे पवित्र और जो मुख्य मंदिर है वह है भगवन शिव का ‘भवनाथ मंदिर’. हर साल जब महा शिवरात्रि होती है तब नागा साधुओकी पूरी जमात यहाँ पर आती है है और मंदिर के पास में ही एक कुंद है जिसे ‘मृगी कुंड’ कहते है वह है जोसमे वह लोग नहाते है और अपनी यात्रा को पूर्ण करते है इस यात्रा को जिसे लोग रवाडी कहते है यह देखने के लिए दोपहर से लाइनमें बैठ जाते है और यह रवाडी रातको बारह बजे निकलती है, तब तक लोग धीरज से यहाँ पर अपना स्थान ले लेते है. यह अद्भुत एवं देखने लायक नजारा होता है, पुरे भारत वर्ष मे से काफी साधू महात्मा इसमें हिस्सा लेने के लिए आते है.
आत्मेश्वर महादेव
जब युवी और जैमिन आ गए तो अब हम यहाँ से जंगल में एक सुन्दर जगह है जहाँ पर भगवन शंकर का एक छोटा सा मंदिर है जिसे ‘आत्मेश्वर महादेव’ कहते है वहां जाने के लिए निकले. अब आत्मेश्वर महादेव जाने के लिए पहले एक फोरेस्ट की चोकी आती है जहाँ से हमको परमिट लेनी पड़ती है. यह परमिट सुबह ८ से लेकर शाम के ४ बजे तक ही मिलती है क्योंकि मंदिर यहाँ से तक़रीबन ४ किमी अन्दर जंगल में है तो शाम को ६ बजे से पहले यात्रियों को आ जाना पड़ता है, इसीलिए ४ बजे के बाद परमिट नहीं मिलती. कैसे भी करके हमने परमिट ली और तुरंत ही जंगल में चलना शुरू किया.
बारिशकी वजह से चारोतरफ देखने लायक नजारा था. हम थोडा आगे गए की दो रस्ते आये, एक सीधा रास्ता जो किसी गाँव तक जाता था और राईट साइड जाती हुई डगर आत्मेश्वरकी और थी. हम वहां पर मुड़े तो कोने पर ही एक बड़ा सा पानी से भरा हुआ गढ्ढा दिखा. वहां पर आसपास थोड़े पशु अपना खाना ढूंढ रहे थे. अब यहाँ से जंगल का घाना रास्ता शुरू होता है. जैसे जैसे हम अन्दर जाते गए तो रास्ता संकरा होता जा रहा था. बिच बिच में बारिश की थोड़ी बुँदे गिर रही थी. एक एसी भी जगह आई जहाँ से एक छोटा सा पानी का झरना बह रहा था, हम सब थोड़ी देर वहां पर बैठे फिर आगे निकल गए, सच में ही आत्मेश्वर महादेव जाने का रास्ता बहोत ही खुबसूरत था.
धीरे धीरे हम मंदिर तक पहोंच गए, मंदिर छोटा सा था और वहां पर पुजारी जी भी एक छोटे से माकन में रहते है. सुन्दर बगीचा बना हुआ है जहाँ पर काफी पक्षी दिखाई दे रहे थे. उन्होंने हमारा स्वागत किया और थोड़ी बातचीत भी की. मंदिर सामने एक कुटिया है जहाँ पर पहले एक साध्वीजी रहते थे जो भगवान इशु के भक्त थे. उनके गुरुने उनको गिरनार के जंगलमें साधना करने को बोला था तो वह तक़रीबन १६ सालकी उम्र से यहाँ पर साधना कर रहे थे अभी उनकी उम्र करीबन ७८ के आसपास की है अब शारीर में थोड़ी कमजोरी भी है तो वह जूनागढ़ में रहकर अपनी साधना को आगे बढ़ा रहे है.
दर्शन करके फिर हम तुरंत ही चोकी पर आने के लिए निकले क्योंकि हमको ६ बजे से पहले बहार आना था और ४.५० का समय हो गया था, हमने थोडे फोटो खींचे और लगभग ६ बजे के आसपास ही वापिस आ गए. आत्मेश्वर से आगे एक और मंदिर है जिसका नाम ‘इन्द्रेश्वर महादेव’ है वहां पर भी हम लोग गए और महादेव के आगे अपनी ख़ुशी को व्यक्त किया.
अब हमने वापिस राजकोट जाने का सोचा, क्योंकि जूनागढ़ में इतने सारे देखने के स्थान है की आपको एक हफ्ता भी कम पद जाए. तो अब एक और यादगार यात्रा बनाएँगे और फिरसे वापिस आएँगे एसे बुलंद होंसलोंके साथ हम गिरनार को अलविदा कहते हुए उसकी पुरे दिन की यात्रा को अपने मन में स्थापित करते हुए हम राजकोट की ओर आगे बढे और जब पीछे देखा तो गिरनार धीरे धीरे घने बादलों से हमको जाता हुआ देख रहा था….
बेहद खूबसूरत पोस्ट है। पढ़ते पढ़ते मैं इसमें पूरी तरह खो गया था। जगह की सुंदरता देखते ही बनती है। अच्छा दिन बिताया आप लोगों ने। इसी तरह पर्यटन करते रहो। अग्रिम घुमक्कड़ी के लिए शुभकामनाएं।
जी धन्यवाद. और वाकही में गिरनार गुजरात का सबसे खूबसूरत पर्वत है. यहां पर भारत भर से लोग सासन मे asiatic lion को देखने के लिए आते हैं. यहाँ से विश्व प्रसिध्द सोमनाथ महादेव भी 60 km के आसपास है. आप का भी स्वागत है..
Nice describe for beauty of nature Big Brother SuperB Story
और भी आगे लिखते रहेंगे, वैसे अभी में एक पुस्तक लिख रहा हूँ उसके कुछ अंश यहाँ पर रखूँगा
Nicely described all the events of journey.Best wishes for all of you.
जी धन्यवाद