देवà¤à¥‚मि गढ़वाल जो कि अपने आप मे कà¥à¤¦à¤°à¤¤ के कà¥à¤› बेमिसाल आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को समेटे है, मेरी जनà¥à¤®à¤à¥‚मि होने के अलावा मेरी पसंदीदा विचरणसà¥à¤¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ मे से à¤à¤• à¤à¥€ है. पिछले बरस कà¥à¤› दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने यहाठघूमने की इचà¥à¤›à¤¾ जताई तो इस बेहतरीन यातà¥à¤°à¤¾ की रूपरेखा बनाई गई. चूà¤à¤•ि यातà¥à¤°à¤¾ का सारा दारोमदार मेरे कंधों पर था, सोचा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना इसे à¤à¤• रोमांचक रूप दिया जाठऔर अपने तरीके से योजित किया जाठ(जिसमे आमतौर पर कà¥à¤› à¤à¥€ पूरà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤œà¤¿à¤¤ नही होता और यही यातà¥à¤°à¤¾ का असली रोमांच होता है). कà¥à¤› à¤à¤• मà¥à¤–à¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ को आधार बनाकर, यातà¥à¤°à¤¾ का खाका मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ साà¤à¤¾ किया और निकल पड़े इस सपने को सच करने 3 ईडियट दीपक, पà¥à¤¨à¥€à¤¤ और मैं. गढ़वाल मे यातà¥à¤°à¤¾ सीज़न शà¥à¤°à¥‚ हो चà¥à¤•ा था, इस सीज़न मे आमतौर पर दिलà¥à¤²à¥€ बस अडà¥à¤¡à¥‡ से सà¤à¥€ बसें खचाखच à¤à¤°à¤•र चलती हैं. इसका सबसे पहला कारण तो शहरों मे बसे वो पहाड़ी लोग हैं जिनà¥à¤¹à¥‡ गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¾à¤ शà¥à¤°à¥‚ होते ही इन ठंडी हसीन वादियों की याद सताने लगती है और वो अपने परिवार समेत दौड़े चले आते हैं अपने अपने गावों की ओर. दूसरे मैदानी उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ मे à¤à¥€à¤·à¤£ गरà¥à¤®à¥€ और उस पर बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ दोनो मिलकर लोगों को पहाड़ों की और à¤à¤¾à¤—ने पर मजबूर कर देती हैं. और सबसे बढ़कर, गढ़वाल के चारधामों (बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥, केदारनाथ, गंगोतà¥à¤°à¥€ और यमञोतà¥à¤°à¥€) की पावन यातà¥à¤°à¤¾ जो वैसे तो लगà¤à¤— मई से अकà¥à¤Ÿà¥‚बर / नवंबर तक चलती है, पर इस यातà¥à¤°à¤¾ का सबसे वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ समय मई से जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ तक होता है जिसमे शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ ना सिरà¥à¤«à¤¼ पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· से बलà¥à¤•ि विदेशों से à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° और उसकी बनाई इस खूबसूरत धरती का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठाने खींचे चले आते हैं.
हमे हमेशा की तरह बस सिरà¥à¤«à¤¼ ऋषिकेश तक ही मिली, दिलà¥à¤²à¥€ से ऋषिकेश तक के सफ़र मे हमेशा à¤à¤• आरामदायक सीट की खोज रहती है à¤à¤¸à¤¾ इसलिठनही कि सारा सफ़र अंधेरे मे और बड़ा बोरिंग सा होता है, पर मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤¯à¤¾ इसलिठकि अंधेरे मे à¤à¤°à¤ªà¥‚र नींद ले सकें और सà¥à¤¬à¤¹ के उजाले मे हसीन वादियों का आनंद लिया जा सके. सीट मिलते ही कà¥à¤› शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ गपशप के बाद थोड़ी देर मे सà¤à¥€ लोट पड़े अपनी अपनी सीट पर और फिर सà¥à¤¬à¤¹ ऋषिकेश पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से कà¥à¤› पहले ही नींद खà¥à¤²à¥€. ऋषिकेश बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही आà¤à¤–ों मे जैसे चमक सी आ जाती है, सà¤à¥€ बसों पर जा जाकर देखता हूठकि कौन सी बस कहाठजा रही है. किसी बढ़िया जगह का नाम लिखा दिखता है तो मन ललचा जाता है लेकिन फिर इसे यह कहकर मनाना पड़ता है के ‘à¤à¤¾à¤ˆ अà¤à¥€ छोड़ फिर कà¤à¥€ जाà¤à¤à¤—े’और ईडियट मान à¤à¥€ जाता है. खैर आज की यातà¥à¤°à¤¾ मे हमारा पड़ाव रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— के नज़दीक कहीं होना था. जैसे ही ऋषिकेश से बस ने चलना शà¥à¤°à¥‚ किया, रोमांच बढ़ता गया ख़ासतौर पर मेरे दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का जिनके लिठगढ़वाल की यह पहली यातà¥à¤°à¤¾ थी. ऋषिकेश से उपर जाते समय à¤à¤• à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ छण नही होता जहाठबोरियत महसूस होती हो. ऋषिकेश बस अडà¥à¤¡à¥‡ से आगे पà¥à¤² पार करते ही अनेकों मंदिर, दà¥à¤•ानें और आशà¥à¤°à¤® आपका सà¥à¤µà¤¾à¤—त करते हैं. पर मà¥à¤à¥‡ विशेष इंतेज़ार रहता है गंगा और उस पर बने खूबसूरत पà¥à¤²à¥‹à¤‚ को देखने का. जैसे जैसे उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर चड़ते हैं, नीचे गंगा जी की लहरों से अटखेलियाठकरती हà¥à¤ˆ छोटी छोटी नावें सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ ही अपनी और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती है, à¤à¤¸à¤¾ रोमांचक मंज़र कोडियाला होते हà¥à¤ लगà¤à¤— देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— तक जारी रहता है.
ऋषिकेश से आगे à¤à¤• घà¥à¤®à¤¾à¤µà¤¦à¤¾à¤° मोड़ (बस से लिया गया फोटो)
देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— तक के रासà¥à¤¤à¥‡ मे बस आमतौर पर या तो बà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ मे या तीन धारा मे रà¥à¤•ती है जहाठआप कà¥à¤¦à¤°à¤¤à¥€ बहती हà¥à¤ˆ धारा के निरà¥à¤®à¤² जल से आतà¥à¤®à¤¾ को तृपà¥à¤¤ कर सकते हैं, इन जगहों पर मैं सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ और ठंडक पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले खीरे लेना कà¤à¥€ नही à¤à¥‚लता. इसके बाद बेसबà¥à¤°à¥€ से इंतेज़ार रहता है, देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— के विहंगम संगम दृशà¥à¤¯ का जहाठपावन गौमà¥à¤– से निकलकर à¤à¤¾à¤—ीरथी और बदà¥à¤°à¤¿à¤§à¤¾à¤® से बहती हà¥à¤ˆ अलकनंदा दोनो मिलकर इसे à¤à¤•रूप मा गंगा का नाम देते हैं जो यहाठसे देवà¤à¥‚मि का पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª पूरे मैदानी à¤à¤¾à¤—ों मे फैलाने और लोगों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने निकल पड़ती है.
à¤à¤¾à¤—ीरथी और अलकनंदा का संगम सà¥à¤¥à¤² – देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— (बस से लिया गया फोटो)
देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— से थोड़ा आगे निकलकर à¤à¤• सड़क आती है, जो हमेशा से ही मेरा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करती रही है. यह सड़क जाती है मा चंदà¥à¤°à¤¬à¤¦à¤¨à¥€ के पावन शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ के निकट जो की परà¥à¤µà¤¤ पर बैठी इस इलाक़े की à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– आराधà¥à¤¯ देवी हैं. मा चंदà¥à¤°à¤¬à¤¦à¤¨à¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ यातà¥à¤°à¤¾ के अंत मे करने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® था, इसलिठअगले पड़ाव की ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ केंदà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते हैं जो है खूबसूरत शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र. यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले ही अलकनंदा के पूरे सफ़र का सबसे वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ परंतॠकम गहरा सà¥à¤µà¤°à¥‚प देखने को मिलता. यहाठपर काफ़ी समय से à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ जल विदà¥à¤¯à¥à¤¤ परियोजना का काम चल रहा है जिसका सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग काफ़ी विरोध कर रहें हैं. इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण है अलकनंदा के तट पर बसा लोगों की आसà¥à¤¥à¤¾ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ धारी देवी मंदिर जिसकी ना सिरà¥à¤«à¤¼ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° मे बलà¥à¤•ि पूरे गढ़वाल मे काफ़ी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है.
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र से कà¥à¤› पहले अलकनंदा का à¤à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प (बस से लिया गया फोटो)
आगे चलने पर हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त करता है अलकनंदा और मंदाकिनी का अदà¥à¤à¥à¤¤ संगम सà¥à¤¥à¤² रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— जो आज के लिठहमारा पड़ाव होना था. यहीं से à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ अलकनंदा के साथ साथ जाते हà¥à¤ बदà¥à¤°à¥€à¤§à¤¾à¤® को पहà¥à¤à¤šà¤¤à¤¾ है जबकि दूसरा रासà¥à¤¤à¤¾ मंदाकिनी के किनारे किनारे केदारधाम को, पर हमे तो किसी तीसरे रासà¥à¤¤à¥‡ पर निकलना था किसी नई दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की खोज मे. यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही अपने गाà¤à¤µ की याद सताने लगती है जो यहाठसे नज़दीक ही है केदारनाथ मारà¥à¤— पर. रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पहà¥à¤à¤šà¤•र पहले तो सोचा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना रात को मौसी के घर रà¥à¤•ा जाठइसी बहाने मà¥à¤²à¤¾à¤•ात à¤à¥€ हो जाà¤à¤—ी, पर उपरवाले ने अपना बंदोबसà¥à¤¤ कहीं और ही कर रखा था. बस से उतरते ही चहलकदमी शà¥à¤°à¥‚ हो गयी, यूठतो रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— मे देखने को बहà¥à¤¤ कà¥à¤› है, पर हमारे पास समय का अà¤à¤¾à¤µ था और रात को रà¥à¤•ने का ठिकाना à¤à¥€ ढूà¤à¤¢à¤¨à¤¾ था इसलिठहमने रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— से लगà¤à¤— 3 किमी आगे अलकनंदा के तट पर बने à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² को चà¥à¤¨à¤¾ जिसे कोटेशà¥à¤µà¤° महादेव के नाम से जाना जाता है. इस गà¥à¤«à¤¾ वाले मंदिर को चà¥à¤¨à¤¨à¥‡ की मà¥à¤–à¥à¤¯ वजह थी इसका शानà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¯ और समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ कर देने वाला माहौल. सà¥à¤¬à¤¹ से यातà¥à¤°à¤¾ करते करते बहà¥à¤¤ à¤à¥‚ख लग पड़ी थी इसलिठमंदिर मे पूजा करने से पहले रासà¥à¤¤à¥‡ मे पेट पूजा की गई, वो कहते हैं ना ‘पहले पेट पूजा फिर काम दूजा’. खाने के बाद हमे लगà¤à¤— 2 किमी की पैदल यातà¥à¤°à¤¾ और करनी थी जो की हमारे लिठअचà¥à¤›à¤¾ ही था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जिस जगह हम जाने वाले थे वहाठकà¥à¤¦à¤°à¤¤ ने मसà¥à¤¤à¥€ के कà¥à¤› अचà¥à¤›à¥‡ ख़ासे पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध किठहà¥à¤ थे.
कोटेशà¥à¤µà¤° की ओर कदम बढ़ाते दो दीवाने दीपक और पà¥à¤¨à¥€à¤¤
गà¥à¤«à¤¾ तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के लिठमà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क से लगà¤à¤— आधा किमी की उतराई पार करनी पड़ती है जहाठरासà¥à¤¤à¥‡ मे विà¤à¥à¤à¤¿à¤¨ किसà¥à¤® के पशॠपकà¥à¤·à¥€ आपके सà¥à¤µà¤¾à¤—त को आतà¥à¤° बैठे मिलते हैं. जैसे जैसे नीचे उतरते गये, कà¤à¥€ कोई गिरगिट तो कà¤à¥€ कोई बंदर कोई ना कोई रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° डराता ही मिला. इनके अलावा हम à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को यहाठà¤à¤• अजीब जानवर के दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤ जो आकार मे नेवले की तरह दिखता है पर साइज़ मे लगà¤à¤— उससे 5 गà¥à¤¨à¤¾ बड़ा होता है. इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ हथियार होती है इसकी नà¥à¤•ीली धारदार तलवार जैसी पूंछ, पहाड़ी लोग इस जीव को ‘गà¥à¤µà¥…गà¥à¤²à¤¾â€™  कहते हैं. हालाà¤à¤•ि ये किसी को बेवजह हानि नही पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¤à¤¾ पर कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जिसने इसे पहले कà¤à¥€ ना देखा हो इसे देखने पर à¤à¤• बार के लिठà¤à¤¯à¤‚कर रूप से डर ज़रूर सकता है, à¤à¤¸à¤¾ ही कà¥à¤› हà¥à¤† मेरे साथियों के साथ à¤à¥€. उस पर गà¥à¤«à¤¾ से पहले à¤à¤• à¤à¥ˆà¤°à¤µ मंदिर जहाठपर शà¥à¤°à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं ने कई काले वसà¥à¤¤à¥à¤° पेड़ों पर चढ़ा रखे थे जो कि किसी à¤à¥‚तिया फिलà¥à¤® की याद दिलाते और डरने पर मजबूर कर देते.
अलकनंदा के पावन तट की ओर ले जाती सीढ़ियाà¤
पर हम लोग जैसे ही नीचे अलकनंदा के पावन तट पर पहà¥à¤à¤šà¥‡ सारा डर जैसे छूमंतर हो गया और अब सबके मन मे सिरà¥à¤«à¤¼ à¤à¤• ही शबà¥à¤¦ गूà¤à¤œ रहा था और वो था ‘मसà¥à¤¤à¥€â€™.  इससे पहले मसà¥à¤¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ हो आपको इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का पौराणिक महतà¥à¤µ बता दे, à¤à¤¸à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है की à¤à¤—वान शिव जब पांडवों से सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को बचाकर यहाठवहाठछà¥à¤ª रहे थे (ताकि पांडव उनसे कौरवों की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का वरदान ना माà¤à¤— लें) तो केदारनाथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ से पहले कà¥à¤› समय à¤à¤—वान शिव ने इसी गà¥à¤«à¤¾ मे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मे रहकर बिताया.
à¤à¤• और दीवाना कà¥à¤¦à¤°à¤¤ की कारीगरी का आनंद लेता हà¥à¤†
अपनी लगà¤à¤— सà¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं मे मेने ये बात महसूस की है की जैसे जैसे उà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर चढ़ते हैं, कà¥à¤¦à¤°à¤¤ की खूबसूरती से परदा उठता जाता है. लेकिन इस जगह मे उलà¥à¤Ÿà¤¾ था, जैसे जैसे नीचे उतर रहे थे कà¥à¤¦à¤°à¤¤ के à¤à¤• अनछà¥à¤ विसà¥à¤®à¤¯à¤•ारी रूप से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हà¥à¤ जा रहा था. बेहद विशाल सीधी खड़ी चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹ के बीच मे से निकलते पेड़ और उन पर खेलते कूदते बंदरों की सेना, चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹ पर लगी विशेष किसà¥à¤® की वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और उनसे रिसकर आता कà¥à¤¦à¤°à¤¤à¥€ मीठा जल, दो विशाल चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के बीच से बहकर आती निरà¥à¤®à¤² और शांत अलकनंदा और उसका रेतीला चमकदार तट सब मिलकर मानो à¤à¤• समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¨ सा कर रहे हो. गà¥à¤«à¤¾ मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने से पहले चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥€ जड़ी बूटियों से रिसकर आता निरà¥à¤®à¤² जल सà¥à¤µà¤¤ ही आपके उपर गिरने लगता है मानो शिव दरà¥à¤¶à¤¨ से पूरà¥à¤µ आपको शà¥à¤¦à¥à¤§à¥€ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर रहा हो और इस छोटी से गà¥à¤«à¤¾ के अंदर घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही à¤à¤• अलौकिक अनà¥à¤à¥‚ति होने लगती है जहाठपà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक रूप से बनी मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और शिवलिंग पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं.
विशाल चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥€ दरà¥à¤°à¥‹à¤‚ के बीच से बहकर आती शांत अलकनंदा…
कोटेशà¥à¤µà¤° महादेव गà¥à¤«à¤¾ का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°…
गà¥à¤«à¤¾ के समीप पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤¤ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ मे दीपक…
इस आलौकिक अनà¥à¤à¤µ के बाद, अलकनंदा के रेतीले तट पर मसà¥à¤¤à¥€ करने को आतà¥à¤° तीनो निकल पड़े. अलकनंदा का तट किसी रेतीले बीच की सी अनà¥à¤à¥‚ति दे रहा था, à¤à¤¸à¥‡ मे सबका मन नहाने को किया. लेकिन दूर से शांत दिखती अलकनंदा के जल का सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ पाते ही सबकी साà¤à¤¸à¥‡ अटक गयी और नहाने का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® रदà¥à¤¦ हो गया. लेकिन इस पर मज़ाक मैं à¤à¤• शरà¥à¤¤ लगी की जो कोई जितने मिनट पानी के अंदर पैर डà¥à¤¬à¥‹à¤•र रखेगा उसे उतने रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मिलेंगे, पर पानी वासà¥à¤¤à¤µ मे इतना ठंडा था की 1 मिनट à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¥€ पड़ रहा था.
खैर यहाठलगà¤à¤— 2 घंटे मसà¥à¤¤à¥€ करने के बाद, 5 बज चà¥à¤•े थे इसलिठअनà¥à¤¯ मंदिरों के जलà¥à¤¦à¥€ से दरà¥à¤¶à¤¨ करके चढाई शà¥à¤°à¥‚ कर दी वापसी के लिà¤. यहाठसे हमारा अगला पड़ाव होना था, उमरा नारायण मंदिर जो की यहाठसे लगà¤à¤— 4 किमी आगे था. मंदिर तक पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ अंधेरा सा होने लगा था, इसलिठसोचा की रात यहीं बिताई जाà¤. यह मंदिर यहाठसे कà¥à¤› दूर बसे सनà¥à¤¨ नामक गाà¤à¤µ के ईषà¥à¤Ÿ देवता उमरा नारायण को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है. चूà¤à¤•ि सनà¥à¤¨ मेरी मौसी का गाà¤à¤µ है इस कारण मे इस मंदिर मे पहले à¤à¥€ à¤à¤• बार अपने à¤à¤¾à¤ˆ के साथ आ चà¥à¤•ा था. मंदिर मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही मंदिर के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤, पहले तो हमने बताया कि हम यातà¥à¤°à¥€ हैं और दरà¥à¤¶à¤¨ करने आठथे, लेकिन थोड़ी देर में जब मैंने सनà¥à¤¨ गाà¤à¤µ से अपने रिशà¥à¤¤à¥‡ के बारे मे बताया तो उनके चेहरे पर à¤à¤• चमक सी आ गयी और उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ तà¥à¤°à¤‚त मेरे à¤à¤¾à¤ˆ (मौसी के लड़के मनीष) को फोन मिलाया सूचना देने के लिà¤, परंतॠउस समय किसी तकनीकी कारण से फोन नही लग पाया. रात को देखते हà¥à¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही मंदिर मे रूकने का सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गाà¤à¤µ यहाठसे काफ़ी दूर था और सारा रासà¥à¤¤à¤¾ घने जंगलों के बीच से जाता था जहाठजंगली जानवरों के मिलने की à¤à¥€ काफ़ी संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ थी. दिन à¤à¤° मसà¥à¤¤à¥€ करके थकान और à¤à¥‚ख से परेशान तीनो बंदे सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ से अलग अलग काम लेकर रातà¥à¤°à¤¿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तैयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ मे जà¥à¤Ÿ गये, कोई सबà¥à¤œà¥€ काटने मे वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ तो कोई चावल धोने मे तो कोई चूलà¥à¤¹à¤¾ जलाने मे. पहाड़ी गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ मे अकà¥à¤¸à¤° मिटà¥à¤Ÿà¥€ के घरों मे ख़ासतौर पर रसोई मे कॉकरोच, कीट, पतंगे बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ मे होते हैं जिनसे बचकर खाना खाना किसी यà¥à¤¦à¥à¤§ से कम नही था. चलो जैसे तैसे सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठाकर बाहर निकले ही थे की बाहर के माहौल ने मानो जादू सा कर दिया था. आसमान मे टिमटिमाते अनगिनत तारों की अदà¥à¤à¥à¤¤ चमक, दूसरी पहाड़ियों पर बसे छोटे छोटे गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ के मकानो से निकलती रोशनी और इनके पà¥à¤°à¤•ाश का अलकनंदा मे पड़ता पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤‚ब सब मिलकर रातà¥à¤°à¤¿ बाहर ही गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¥‡ को मजबूर कर रहे थे. पर चूà¤à¤•ि मंदिर जंगल मे था और जानवरों का à¤à¤¯ था इसलिठसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के आदेशानà¥à¤¸à¤¾à¤° हम लोग थोड़ी देर बाद कमरे मे जाकर सो गये. रात हो चà¥à¤•ी थी इसलिठहम लोग मंदिर मे दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ नही कर पाà¤. मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨, इसके पौराणिक महतà¥à¤µ की जानकारी और à¤à¤• सà¥à¤µà¤°à¥à¤— का आà¤à¤¾à¤¸ देती बेहद खूबसूरत जगह की रोमांचक सैर अगले लेख मे…